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Author Topic: विषय-वासना विष भरी है कटारी!  (Read 2276 times)

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Offline saib

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मनुष्य के अनेक निषेधात्मक गुणों में से एक विषय-वासना अत्यंत बलवती और हठीली है। आदमी के पतन-पराभव का केवल यही एक ऐसा कारक है, जिससे सर्वथा बच निकलना बड़े-बड़े तपस्वियों, ज्ञानी-ध्यानियों के लिए भी मुश्किल पड़ जाता है। इसीलिए ऋषि-मनीषियों ने कहा है कि इससे यदि पूर्णत मुक्ति संभव न जान पड़े, तो इसकी अति से बचकर मध्यम मार्ग अपनाकर कल्याण मार्ग पर अग्रसर हुआ जा सकता है। विषय-भोग के पीछे-पीछे भागना मानसिक दिवालियेपन का प्रतीक तो है ही, इससे शारीरिक तेजस्, मानसिक, ओजस् तथा आत्मिक वर्चस् से भी व्यक्ति श्रीहत हो जाता है और अपनी पात्रता गँवा बैठता है। इससे बचकर ही शरीर-बल, मनोबल एवं आत्मबल का धनी हुआ जा सकता है।

भारतीय आर्षवाङ्मय में मनीषियों ने कहा है - भोगा न भुक्ता, वयमेव भुक्ताः। कहने का तात्पर्य यह है कि हम भोगों को नहीं भोगते, वरन भोग ही हमें भोगते हैं, क्योंकि यह एक ऐसा दावानल या बड़वानल है, इसमें जितनी अधिक भोग-सामग्री डाली जाती है, वह उतने ही तीव्र वेग से धधकता जाता है। गोस्वामी तुलसी दास जी ने ठीक ही कहा है - बुझे न काम अगिनि कहुं तुलसी, विषय भोग बहु घी से। कितना ही जप, तप, भजन, पूजन, साधना, अनुष्ठान क्यों न किया जाए, किंतु इस एक छिद्र से ही हमारी जीवनी-शक्ति जर्जर होकर रह जाती है।

इंद्रिय-संयम के बारे में भगवान बुद्ध एक अवसर पर अपने शिष्यों को समझा रहे थे - ``इंद्रियों के माध्यम से प्रकृतिप्रदत्त शक्ति का संरक्षण, भंडारण, नियंत्रण, अभिवर्द्धन एवं सुनियोजन करके अनेक प्रकार की त्र+द्धियों और सिद्धियों का स्वामी बना जा सकता है।'' उन्होंने कहा, ``ग्यारह इंद्रियों में तीन इंद्रियाँ प्रमुख हैं - पहली स्वादेंद्रिय, दूसरी कामेंद्रिय और तीसरी मनश्चेतना का आधिभौतिक इंद्रिय `मन' है। इन तीनों में भी कामेंद्रिय-जननेंद्रिय का संयम सर्वोपरि माना गया है। इसका असंयम अनेक आधि-व्याधियों का जन्मदाता है। इस ऊर्जा केंद्र का ऊर्ध्वारोहण शारीरिक और मानसिक संयम द्वारा संभव है।''

भगवान बुद्ध के आशय को बौद्ध भिक्षु ठीक-ठीक नहीं समझ पा रहे थे। तब बुद्ध तूंबे के बने एक पात्र को लेकर भिक्षुओं के साथ नदी के किनारे गये और उस पात्र में एक-दो बड़े छिद्र कर दिये, फिर अपने एक शिष्य से कहा कि इस पात्र में जल भरकर ले आओ। शिष्य ने कई बार प्रयत्न करने पर भी उस पात्र को जलपूरित करने में अपने को असमर्थ पाया और वापस लौटकर बुद्ध के समीप आकर कहा, ``प्रभु! पात्र छिद्रयुक्त होने से जलहीन ही रहता है। उससे जल निकल जाता है।'' बुद्ध ने कहा - ``भंते! ठीक इसी प्रकार प्रकृतिप्रदत्त शक्ति छिद्रयुक्त व्यक्ति को उपलब्ध नहीं होती। सबसे बड़ा छिद्र वासना में है। यह वासना सर्वदा अपूर्णीय रिक्तता लिए हुए है। यह दुष्पूर है।''

भगवान बुद्ध ने शिष्यों को वासना का स्वभाव बताते हुए कहा कि इसके पात्र को कभी भी पूरी तरह भरा नहीं जा सकता है। राजा ययाति से लेकर सहस्रों राजा-महाराजाओं, धनाध्यक्षों के ही नहीं, वरन जन-सामान्य के भी असंख्य उदाहरण देखने-सुनने को मिल जाएँगे। विषय-भोग की चाहत को कोई कितना भी क्यों न भरना चाहे, भरा नहीं जा सकता। वह सदैव अतृप्त ही बना रहेगा। वासना पर विजय, भावना के परिष्कार एवं दृष्टिकोण के परिवर्तन से ही संभव है। चैतन्य महाप्रभु का कहना है कि जब तक वासना है, तब तक कर्म जारी रहेंगे। कर्म समाप्त करना है तो वासना को मारना होगा और वह भगवत् स्मरण से ही मरती है। वासना पर विजय पा लेने वाले व्यक्ति के संबंध में भगवान शिव का कथन है, ``वासना पर विजय प्राप्त करने वाला व्यक्ति मेरे समान हो जाता है।''


Source: Hindi Milap
om sai ram!
Anant Koti Brahmand Nayak Raja Dhi Raj Yogi Raj, Para Brahma Shri Sachidanand Satguru Sri Sai Nath Maharaj !
Budhihin Tanu Janike, Sumiro Pavan Kumar, Bal Budhi Vidhya Dehu Mohe, Harahu Kalesa Vikar !
........................  बाकी सब तो सपने है, बस साईं ही तेरे अपने है, साईं ही तेरे अपने है, साईं ही तेरे अपने है !!

 


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