Join Sai Baba Announcement List


DOWNLOAD SAMARPAN - Nov 2018





Author Topic: शील-सदाचार!Great article to read, understand and adopt!  (Read 1214 times)

0 Members and 1 Guest are viewing this topic.

Offline saib

  • Member
  • Posts: 12320
  • Blessings 166
शील-सदाचार ही सच्चा धर्म है 
- आचार्य सत्यनारायण गोयन्का

धर्म का सही मूल्यांकन करना सीखें। यदि सही मूल्यांकन करते रहेंगे तो दृष्टि सम्यक रहेगी, नीर-क्षीर विभाजन-विवेक कायम रहेगा, धर्म-पथ पर अपना संतुलन बनाए रख सकेंगे। अन्यथा धर्म का कोई एक अंग आवश्यकता से अधिक महत्व पाकर धर्म-शरीर की सर्वांगीण उन्नति में बाधक बन जाएगा। सम्यक दृष्टि यही है कि जिसका जितना मूल्य है उसको उतना ही महत्व दें। न अधिक, न कम। कंकड़-पत्थर, काँच, हीरा, मोती, नीलम, मणि सबका अपना-अपना महत्व है। मिट्टी, लोहा, ताँबा, पीतल, चाँदी, सोना, सबका अलग-अलग मूल्य है। जिसका जितना महत्व है उसका उतना ही मूल्य है।

मसलन, दान देना अच्छा है। धर्म का एक अंग है। परंतु धर्म की कसौटी पर दान का भी अलग-अलग मूल्यांकन होना चाहिए। वित्तीय नहीं, नैतिक। दान अधिक है या कम इसका कोई महत्व नहीं होता। परंतु देते समय चित्त की चेतना कैसी है, यही ध्यान देने की बात है।

यदि उस समय चित्त में क्रोध या चिड़चि़ड़ाहट या घृणा या द्वेष या भय या आतंक या बदले में कुछ प्राप्त करने की तीव्र लालसा है या यश की प्रबल कामना है अथवा प्रतिस्पर्धा का उत्कट भाव है, तो ऐसा दान शुद्ध, निष्काम, निरहंकार चित्त से दिए गए दान की अपेक्षा बहुत हल्का है। भले ही मात्रा में अधिक क्यों न हो। शुद्ध चित्त से दिए गए दान का अधिक महत्व है। इससे अपरिग्रह और त्याग धर्म पुष्ट होता है। पर इसके महत्व की भी अतिरंजना कर इसे ही सब कुछ मान बैठें तो धर्म के अन्य अंगों की अवहेलना होगी और वे कमजोर रह जाएँगे।

इसी प्रकार उपवास भी धर्म का एक अंग है। हम उपवास द्वारा शरीर को स्वस्थ रखते हैं। स्वस्थ शरीर से ही धर्म का सुगमतापूर्वक पालन किया जा सकता है। शारीरिक स्वास्थ्य के अतिरिक्त मानसिक संयम के लिए भी उपवास उपयोगी है। उपवास करें और मन भिन्न-भिन्न पकवानों में रमता रहे तो ऐसा उपवास हीन कोटि का होगा।

उपवास करें और केवल शरीर को ही नहीं, बल्कि मन को भी संयमित करें तो उपवास उच्च कोटि का होगा। हीन कोटि की तो बात ही क्या, उच्च कोटि के उपवास का भी अतिरंजित मूल्यांकन कर उसे ही सबकुछ मान बैठेंगे, तो अहंभाव के शिकार हो जाएँगे और धर्म के उससे भी अधिक महत्वपूर्ण अंग अछूते या कमजोर रह जाएँगे। उनका अभ्यास करना तो दूर की बात रही, उन्हें पुष्ट करने की बात भी हम कभी नहीं सोचेंगे।

उपवास करने वाला शील-सदाचार के क्षेत्र में दुर्बल हो तो उपवास करने वाले शीलवान व्यक्ति से हीन हैं। इसी प्रकार सामिष भोजन से निरामिष भोजन, चटपटे मिर्च-मसाले वाले राजसी भोजन से सादा सात्विक भोजन करने वाला व्यक्ति श्रेष्ठ है, उत्तम है। परंतु सात्विक निरामिष भोजन करने वाला व्यक्ति इसी एक गुण के कारण अपने आपको अन्य सभी से श्रेष्ठ मानने लगे तो मिथ्या अहं के कारण शुद्ध धर्म के उन्नति पथ से भटक जाएगा। भोजन में मात्रज्ञ और गुणज्ञ होना, यानी उतना ही और वैसा ही भोजन करना जितना और जैसा कि हमारे शरीर के लिए उपयोगी और आवश्यक है- धर्म का एक अच्छा अंग है।

परंतु धर्म के उससे भी अच्छे और ऊँचे अंग हैं, ऐसा नहीं जानेंगे तो उनसे वंचित रह जाएँगे। अपना अधिकांश समय आलस्य, प्रमाद, तंद्रा में गँवाने वाले व्यक्ति की अपेक्षा यथावश्यक कम से कम समय सोकर, अधिक से अधिक समय जागरूक रहने वाला व्यक्ति निश्चित रूप से अधिक अच्छा है, परंतु ऐसे व्यक्ति को भी धर्म-पथ की आगे की बहुत-सी मंजिलें प्राप्त करनी होती हैं, इसे वह न भूल जाए।

इसी प्रकार भजन-कीर्तन तल्लीनता के लिए है। चित्त को एकाग्र करने के साधन हैं, परंतु इन्हें इससे अधिक कुछ और मानने लगें तो फिर भुलावे में पड़ जाते हैं। किसी गुरु या संत का दर्शन, उसको किया गया नमन, उसके प्रति श्रद्धा जगाने के लिए है। उनके गुणों को देखकर मन में प्रेरणा जगाएँ और वे गुण स्वयं धारण करें, इसी निमित्त हैं।

परंतु इसका इससे अधिक मूल्यांकन करने लगते हैं तो विवेक खो बैठते हैं और अंधश्रद्धा के कारण बुद्धि ड़ होने लगती है। किसी धर्मग्रंथ का पाठ करते हैं, अथवा श्रवण करते हैं तो इसलिए कि उससे हमें प्रेरणा मिले, मार्गदर्शन मिले, जिससे कि धर्म जीवन में उतार सकें। कोरा वाणी विलास और बुद्धि विलास धर्म नहीं है। जीवन में उतरा हुआ शील-सदाचार ही धर्म है।

Source: web duniya
om sai ram!
Anant Koti Brahmand Nayak Raja Dhi Raj Yogi Raj, Para Brahma Shri Sachidanand Satguru Sri Sai Nath Maharaj !
Budhihin Tanu Janike, Sumiro Pavan Kumar, Bal Budhi Vidhya Dehu Mohe, Harahu Kalesa Vikar !
........................  बाकी सब तो सपने है, बस साईं ही तेरे अपने है, साईं ही तेरे अपने है, साईं ही तेरे अपने है !!

 


Facebook Comments