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Author Topic: STORY OF THE DAY  (Read 146099 times)

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Offline tana

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Re: STORY OF THE DAY
« Reply #315 on: February 22, 2007, 06:41:00 AM »
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  • OM SAI RAM...

    A LITTLE BOYS TEMPER

    There once was a little boy who had a bad temper. His father gave him a bag of nails and told him that every time he lost his temper, he must hammer a nail into the fence.

    The first day the boy had driven 37 nails into the fence. Over the next few weeks as he learned to control his anger, the number of nails hammered daily, gradually dwindled down. He discovered it was easier to hold his temper than to drive those nails into the fence. Finally the day came when the boy didn't lose his temper at all. He told his father about it and the father suggested that the boy now pull out one nail for each day that he was able to hold his temper.

    The days passed and the young boy was finally able to tell his father that all the nails were gone. The father took his son by the hand and led him to the fence. He said "you have done well, my son, but look at the holes in the fence. The fence will never be the same. When you say things in anger, they leave a scar just like this one."

    You can put a knife in a man and draw it out. It won't matter how many times you say I'm sorry, the wound is still there.

    Make sure you control your temper the next time you are tempted to say something you will regret later.

    JAI SAI RAM....
    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
    ॐ शन्तिः शन्तिः शन्तिः"

    " Loka Samasta Sukino Bhavantu
    Aum ShantiH ShantiH ShantiH"~~~

    May all the worlds be happy. May all the beings be happy.
    May none suffer from grief or sorrow. May peace be to all~~~

    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: STORY OF THE DAY
    « Reply #316 on: February 25, 2007, 07:29:06 AM »
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  • जय सांई राम।।।

    प्रेम और लक्ष्मी
     
    पुराने जमाने की बात है। किसी नगर में एक सेठ रहता था। एक रात उसके स्वप्न में लक्ष्मी जी प्रकट हुईं और बोलीं, 'सेठ, अब तुम्हारा पुण्य समाप्त हो गया है, इसलिए मैं तुम्हारे घर से जाने वाली हूं। जाने से पहले मुझसे जो भी मांगना चाहो मांग लो।'

    सेठ बोला, 'माँ, कल सुबह अपने परिवार के लोगों से सलाह करके तय करूंगा कि क्या मांगना है।'

    ' ठीक है वत्स, कल बता देना। ' यह कह कर लक्ष्मी अदृश्य हो गईं। सुबह जब सेठ की आंखें खुलीं तो उसे वह सपना याद आया। उसने परिवार वालों को सपने की बात बताई। परिवार में किसी ने धन दौलत मांगने की बात कही, तो किसी ने महल और किसी ने स्वर्ण भंडार की। लेकिन सेठ की सबसे छोटी बहू चुपचाप घर वालों की बातें सुनती रही।

    अंत में सेठ ने छोटी बहू से कहा, 'बहू, तुम कुछ नहीं बोल रही हो। तुम भी कुछ बताओ।'

    बहू बोली, 'पिता जी, जब लक्ष्मी घर से जाना ही चाहती हैं तो यह सब मिल भी जाए तो क्या फर्क पड़ता है। कोई भी धन-संपदा हमारे पास टिकेगी नहीं और टिकेगी भी तो हम आपस में लड़ झगड़ कर उसे नष्ट कर देंगे। इसलिए आप तो यह मांगिए कि हमारे परिवार में प्रेम बना रहे, सद्भभावना बनी रहे। अगर हम सब में प्रेम और सद्भभावना बनी रहेगी तो विपत्ति के दिन ठीक से गुजर जाएंगे।'

    सेठ को छोटी बहू की बात पसंद आ गई। उस रात भी सेठ को फिर स्वप्न में लक्ष्मी दिखाई पड़ीं। लक्ष्मी ने पूछा, 'सेठ, आज तो तुमने परिवार के साथ सलाह-मशविरा कर लिया होगा। बताओ क्या मांग रहे हो?'

    सेठ बोला, 'देवी, मैं तो चाहता हूं कि आप हमारे घर से जाए ही नहीं लेकिन यदि जाना ही चाहती हैं तो यह वरदान देती जाएं कि हमारे परिवार में परस्पर प्रेम और सद्भभावना बनी रहे।'

    लक्ष्मी जी बोलीं, 'सेठ, अब मैं तुम्हारे घर से नहीं जाऊंगी। क्योंकि जिस कुटुंब में प्रेम और सद्भभावना होगी वहां मुझे रहना ही होगा।'

    आईये हम सब बाबा सांई को प्रेम के रुप में अपने धर में जगह देकर स्थापित करें और हमेशा के लिये परिवार में बाबा-लक्ष्मी के प्रेम और सद्धभावना के फूल खिलाते रहें।

     
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    ॐ सांई राम।।।
    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: STORY OF THE DAY
    « Reply #317 on: February 26, 2007, 02:25:10 AM »
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  • जय सांई राम।।।

    बगदाद के खलीफा उमरजान बहुत ईमानदार इंसान थे। उनका हृदय त्याग की भावना से परिपूर्ण था। वे धन और ऐश्वर्य से दूर ही रहते थे। वे राजकाज और प्रजा की सेवा के बदले प्रत्येक दिन का मेहनताना केवल तीन दिरहाम (बगदाद का सिक्का) लिया करते थे। वे उसी से अपने परिवार का पालन पोषण करते थे।

    एक दिन उनकी बेगम ने कहा, 'पांच दिन बाद ईद का त्योहार आने वाला है। यदि आप तीन दिन की तनख्वाह खजाने से अग्रिम लाकर मुझे दे दें तो मैं बच्चों के नए कपड़े बनवा लूं।' खलीफा ने बेगम सेकहा, 'तुम कैसी अजीब बात कह रही हो। यदि आज या कल मेरे प्राण निकल गए तो यह कर्ज कौन चुकाएगा?' फिर कुछ पल रुककर खलीफा ने कहा, 'यदि तुम खुदा से मेरी तीन दिन की जिंदगी का पट्टा ला दो तो मुझे राज्य के खजाने से तीन दिन का अग्रिम वेतन लेने में कोई ऐतराज नहीं होगा।'

    बेगम अपने पति की ईमानदारी देखकर हतप्रभ रह गई और चुप हो गई।


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    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: STORY OF THE DAY
    « Reply #318 on: February 26, 2007, 06:30:48 AM »
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  • जय सांई राम।।।

    संसार वैसा ही है जैसा हम सोचते हैं 
     
    संसार वैसा ही है जैसा हम सोचते हैं। अपने ही अन्दर के भावों की प्रतिच्छाया हम बाहर देखते हैं। हम जो भी देखते या करते हैं, वह पानी के एक ऐसे गिलास की तरह है, जो आधा भरा हुआ है और आधा खाली। अगर हम निराशावादी हैं और केवल किसी बात का नकारात्मक पक्ष देखते हैं, तो संसार के प्रति हमारा दृष्टिकोण भी आनन्द रहित होगा। और यदि हम आशावादी हैं तो हमें चारों ओर सब कुछ सकारात्मक दिखाई देगा।

    एक बार महान दार्शनिक सुकरात एथेंस के द्वार के बाहर बैठे थे, तभी एक व्यक्ति ने उनके पास आकर पूछा, 'मैं सोचता हूँ कि यहाँ आकर रहने लगूँ। क्या आप बता सकते हैं कि यहाँ के लोग कैसे हैं? सुकरात ने उत्तर दिया- तुम्हें यहाँ के बारे में बता कर मुझे बहुत प्रसन्नता होगी, परन्तु यह बताओ कि तुम्हारा पहला आश्रय कैसा था? वह व्यक्ति बोला- ओह, बिल्कुल बकवास। वहाँ के लोग पीछे से वार करते हैं, जीना दूभर हो गया था। सुकरात थोड़ा उदास होकर बोले, तब तो आप कहीं और चले जाएं, यहाँ भी वैसे ही लोग हैं।

    थोड़ी देर में वहीं एक और व्यक्ति आया। उसने भी पहले व्यक्ति जैसा प्रश्न सुकरात से पूछा। सुकरात ने भी पहले की ही तरह प्रश्न दोहराया कि उसका पहला आश्रय स्थल कैसा था? वह व्यक्ति मुस्करा कर बोला, वहाँ के लोग बहुत ही स्नेही हैं, वहाँ का वातावरण बहुत ही स्वस्थ है। सब एक दूसरे का आदर, सहायता करते हैं। सुकरात ने कहा, मित्र! एथेंस में तुम्हारा स्वागत है, यहाँ भी वैसा ही वातावरण है।

    बहुत सी स्थितियों का सीधा सम्बन्ध हमारे अपने व्यवहार से है। दूसरों के साथ हमारे कैसे सम्बन्ध हैं, हमारे अन्दर कैसी भावनाएँ हैं, मित्रों, परिवारजनों या अपने सहकर्मियों से हम खुद कैसा व्यवहार करते हैं। हम दूसरों के प्रति कैसा दृष्टिकोण रखते हैं, वह भी कुछ हद तक हमारे अन्दर की सोच का नतीजा है। साधारणतया हम दूसरों को या दुनिया को हर बात के लिए दोषी ठहराते हैं। जिस वस्तु को हम यथार्थ समझते हैं, वह केवल हमारी अपनी धारणाओं व विचारों का ही निकास है। जो कुछ भी हम देखते हैं, सुनते हैं, अनुभव करते हैं, छूते हैं, सूंघते हैं, वह सब हमारे अन्दर का ही प्रतिबिम्ब है। व्यक्ति जैसा सोचता है, वैसा ही बन जाता है।

    जिन विचारों, विश्वासों, अनुभवों आदि की ओर हम आकर्षित हो रहे हैं, वे हमारे अपने ही विचारों, विश्वासों आदि का नतीजा है और उन्हें हमें स्वयं ही संयमित करना होगा। जो व्यक्ति यह सोचता है कि वह किसी काम का नहीं है, उसमें कोई योग्यता नहीं है, तो उसे वैसा ही प्राप्त भी होगा और वह जो कुछ भी कहेगा, वह महत्वहीन साबित होगा। जब हम यह सोचते हैं कि हम कुछ ऊँचा या अच्छा लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं, तब कुछ न कुछ पा सकते हैं। समय बीतने के साथ वह विश्वास स्वत: हमारे हर काम में झलकेगा। हम आगे बढ़ते जाएंगे और आदर सम्मान पाते रहेंगे।

    हमारा मस्तिष्क विचार पैदा करने वाली वर्कशॉप है, जिसमें दिन भर अनगिनत विचार पैदा होते रहते हैं। हमें केवल अपना आत्म-आविष्कार करना होता है और एक सकारात्मक राह पर चलने का निश्चय करना होता है।

    हमारे विचार, हमारी सोच हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं। अगर वे नकारात्मक हैं तो वे हमें असन्तोष और असफलता की ओर जाते हैं। हमारे अपने अन्दर के भाव जैसे होंगे उसके अनुरूप वे हमारे इर्द गिर्द वातावरण बना लेंगे। कई बार जीवन में ऐसी परिस्थितियां भी बन जाती हैं, जब हम दुख प्राप्त करते हैं, पर अपने नकारात्मक विचारों से हम उस दुख को और बढ़ा लेते हैं। जो कुछ हम चाहते हैं वह है नहीं और जो है उससे हम सन्तुष्ट नहीं। हम इसलिए दुखी हैं कि हम अब जिस स्थिति में हैं उससे अच्छी स्थिति प्राप्त करने के लिए छटपटाते रहते हैं। जब हमारा मन, शांत, संतुलित, स्वस्थ और सकारात्मक होगा,  मन में बाबा सांई के प्रति श्रध्दा और अपने जीवन के प्रति सबूरी होगी तो समझ लेना हम जिन्दगी की हर छोटी बड़ी जंग आसानी से जीत सकेगें और हम जहाँ भी जाएंगे, प्रसन्नता और शांति ही बिखेरेंगे।


    मेरा सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा मेरा सांई

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    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: STORY OF THE DAY
    « Reply #319 on: February 27, 2007, 08:34:49 AM »
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    सच्ची पूजा
     
    एक दिन एक नवयुवक स्वामी विवेकानन्द के आश्रम में पहुंचा। स्वामी जी के चरण स्पर्श कर वह शांत बैठ गया। स्वामी जी ने आशीर्वाद देने के बाद उससे पूछा, 'वत्स, तुम किसी चिंता में उलझे मालूम पड़ते हो।' नवयुवक ने विनम्र भाव से कहा, 'भगवन, मैं बहुत परेशान हूं। मेरी समस्या का समाधान करें।' विवेकानंद ने युवक से कहा, 'वत्स, नि:संकोच अपनी समस्या मुझे बताओ। मैं अवश्य तुम्हारी समस्या के समाधान का कोई सार्थक और सरल उपाय सुझाऊंगा।'

    ' स्वामी जी। मैंने अनेक धर्मग्रंथों का अध्ययन किया। कई पंथों से जुड़ा, पर आज तक यह नहीं जान पाया कि वास्तविक सत्य क्या है, पूजा क्या है? ईश्वर का साक्षात्कार कैसे संभव है?' विवेकानन्द ने स्नेहपूर्वक पूछा,' वत्स, तुमने परमपिता परमात्मा की प्राप्ति के लिए अब तक क्या उपाय किए हैं?'

    ' हे महामुनि योगी, मैं जब कमरे का दरवाजा बंद कर समाधि लगाकर प्रभु के ध्यान में बैठता हूं तो मेरा मन स्थिर नहीं रह पाता। इधर-उधर भटकता रहता है। कृपया ध्यान स्थिर रखने का कोई सरल उपाय सुझाएं।' विवेकानंद ने मुस्कराकर कहा, 'दरवाजा बंद करने की जरूरत नहीं है। दरवाजा खोलकर बाहर निकलो। संसार के दीन-दुखी, दरिद्र और असहाय रोगियों के पास जाओ। लाखों लोग तुम्हारी सहायता पाने की प्रतीक्षा में हैं। जाति, धर्म, नस्ल, पंथ के भेदभाव के बिना, नि:स्वार्थ रूप से तन, मन, धन से मानव सेवा में लग जाओ। भूखों को खाना दो। प्यासों को पानी पिलाओ। जितना हो सके मन, वचन और कर्म से दूसरों पर उपकार करो वत्स। स्मरण रखो परसेवा, दया, सहानुभूति तथा दरिद नारायण की सेवा ही सच्ची प्रभु पूजा और भक्ति है। परोपकार से ही तुम्हारे अशांत, चंचल मन को शांति एवं प्रभु दर्शन की सुखद अनुभूति प्राप्त होगी। मानव सेवा ही आत्मशांति का कल्याणकारी मुक्ति मार्ग है। परमार्थ परसेवा में अपना सर्वस्व निछावर करने वाले मानव संसार में महान और पूज्य बन अमर हो जाते हैं।'

    स्वामी विवेकानंद की बात सुनकर जैसे उस नवयुवक की आंखें खुल गईं। वह उनके चरण स्पर्श कर मानव कल्याण के अभियान पर उत्साह के साथ निकल पड़ा। 

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा मेरा सांई

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    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: STORY OF THE DAY
    « Reply #320 on: March 02, 2007, 08:30:53 AM »
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    कड़वी ककड़ी

    हकीम लुकमान प्रसिद्ध यूनानी चिकित्सक थे, लेकिन चिकित्सक बनने से पहले बचपन में उन्होंने एक दास के रूप में जीवन गुजारा था। लुकमान के स्वामी बहुत नेकदिल इंसान थे और उनके प्रति बहुत स्नेह रखते थे। एक दिन लुकमान के स्वामी की ककड़ी खाने की इच्छा हुई। लुकमान ने कहीं से लाकर उनको ककड़ी दे दी। ज्यों ही स्वामी ने ककड़ी मुंह में डाली, उन्हें पता नहीं क्या हुआ, उन्होंने उसे बिना खाए ही अपने मुंह से निकाल कर लुकमान को देते हुए कहा, 'ले, इसे तू खा ले।' लुकमान पूरी ककड़ी खा गए। लुकमान के स्वामी समझते थे कि ककड़ी बहुत कड़वी है, इसलिए लुकमान भी इसे खाएंगे नहीं और फेंक देंगे। लेकिन जब लुकमान सारी ककड़ी चाव से खा गए तो स्वामी को बहुत आश्चर्य हुआ। उन्होंने पूछा, 'यह तो बहुत कड़वी ककड़ी थी, तू इतनी कड़वी ककड़ी को किस तरह खा गया।'

    लुकमान ने स्वामी को जवाब दिया, 'हुजूर, आप मुझे इतना ज्यादा मानते हैं। मुझे आपने कभी दास समझा ही नहीं। कोई दुख नहीं दिया, प्रेमपूर्वक अच्छा-अच्छा स्वादिष्ट पकवान खाने को देते हैं। यहां मैं हर प्रकार से सुख भोगता हूं। तो क्या आपके हाथ की एक कड़वी ककड़ी नहीं खा सकता। यह तो मेरा सौभाग्य था कि आपके हाथ से मुझे ककड़ी खाने को मिली। मालिक, आप ही तो हमें बताते हैं कि जो परमात्मा हमेशा सुख देता है, यदि उसी के हाथ से कभी दुख भी आए तो उस दुख को प्रसन्नतापूर्वक सह लेना चाहिए। यह तो एक कड़वी ककड़ी थी, यदि आप के हाथ से मुझे कोई बड़ा कष्ट भी मिले तो मैं उसे हंसी-खुशी स्वीकार करूंगा।'

    लुकमान के स्वामी यह सुनकर काफी प्रभावित हुए। उन्होंने कहा, 'लुकमान तुम महान हो। मैं तुम्हारे जवाब से बेहद खुश हूं। आज से तुम गुलाम नहीं रहे। जाओ स्वतंत्रता का जीवन जीओ।' दासता से मुक्ति पाकर लुकमान ने उसी दिन से कड़ी मेहनत शुरू कर दी। अपने कठोर अध्ययन के बल पर उन्होंने चिकित्सा क्षेत्र में महारत हासिल की। अपने इस हुनर का इस्तेमाल उन्होंने मानवता की सेवा में किया।


    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई
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    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: STORY OF THE DAY
    « Reply #321 on: March 03, 2007, 09:10:01 PM »
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    BABA AS POTTER WE AS HIS BEAUTIFUL TEACUPS

    There was a couple who used to go  to shop in the beautiful stores. They both liked antiques and pottery and especially teacups. One day in this beautiful shop they saw a beautiful teacup. They said, "May we see that? We've never seen one quite so beautiful." As the lady handed it to them, suddenly the teacup spoke.

     "You don't understand," it said. "I haven't always been a teacup. There was a time when I was red and I was clay." My master took me and rolled me and patted me over and over and I yelled out, "let me alone", but he only smiled, "Not yet."

     "Then I was placed on a spinning wheel," the teacup said, "and suddenly I was spun around and around and around. Stop it! I'm getting dizzy!" I screamed. But the master only nodded and said, 'Not yet."

    Then he put me in the oven. I never felt such heat. I wondered why he wanted to burn me, and I yelled and knocked at the door. I could see him through the opening and I could read his lips as He shook his head, "Not yet."

    Finally the door opened, he put me on the shelf, and I began to cool. "There, that's better," I said. And he brushed and painted me all over. The fumes were horrible. I thought I would gag. "Stop it, stop it!" I cried. He only nodded, "Not yet."

    Then suddenly he put me back into the oven, not like the first one. This was twice as hot and I knew I would suffocate. I begged. I pleaded. I screamed. I cried. All the time I could see him through the opening nodding his head saying, "Not yet."

    Then I knew there wasn't any hope. I would never make it. I was ready to give up. But the door opened and he took me out and placed me on the shelf. One hour later he handed me a mirror and said, "Look at yourself." And I did. I said, "That's not me; that couldn't be me. It's beautiful. I'm beautiful."

    "I want you to remember, then," he said, "I know it hurts to be rolled and patted, but if I had left you alone, you'd have dried up. I know it made you dizzy to spin around on the wheel, but if I had stopped, you would have crumbled. I knew it hurt and was hot and disagreeable in the oven, but if I hadn't put you there, you would have cracked. I know the fumes were bad when I brushed and painted you all over, but if I hadn't done that, you never would have hardened; you would not have had any color in your life. And if I hadn't put you back in that second oven, you wouldn't survive for very long because the hardness would not have held. Now you are a finished product. You are what I had in mind when I first began with you."

    BABA SAI knows what HE's doing (for all of us). HE is the Potter, and we are HIS clay. HE will mould us and make us, So that we may be made into a flawless piece of work to fulfill HIS good, pleasing, and perfect will.

    OM SAI RAM!!!

     
    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: STORY OF THE DAY
    « Reply #322 on: March 05, 2007, 01:48:02 AM »
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  • The Story of a Wallet

    Once an old man was travelling by train on a pilgrimage to Brindavan. At night, whilst he was asleep, his wallet fell from his pocket. A co-passenger found it the next morning and enquired as to whom the wallet belonged. The old man said it was his. A picture of Sri Sai Baba inside the wallet was proof that the wallet really belonged to him.

    The old man then began to relate the story of the wallet. He soon had a group of eager listeners around him. Lifting up the purse for all to see, the old man said: This purse has a long history behind it. My father gave it to me years ago when I was a mere schoolboy. I kept my little pocket money in it and also a photograph of my parents.

    Years passed. I grew up and began studying at university. Like every youth, I became conscious of my appearance. I replaced my parents’ photograph with that of my own and I would look at it often. I had become my own admirer.

    Then came marriage. Self-admiration gave way to the consciousness of a family. Out went my own picture and I replaced it with that of my wife’s. During the day I would open the wallet many times and gaze at the picture. All tiredness vanished and I would resume my work with enthusiasm.

    Then came the birth of my first child. What a joy I experienced when I became a father! I would eagerly rush home after work to play with my little baby. Needless to say, my wife’s picture had already made way for the child’s.

    The old man paused. Wiping his tearful eyes, he looked around and said in a sad voice: Friends, my parents passed away long ago. My wife too died five years ago. My son- my only son- is now married. He is too busy with his career and his family. He has no time for me. I now stand on the brink of death. I do not know what awaits me in future. Everything I loved, everything I considered my own, has left me.

    A picture of SRI SAI BABA now occupies the place in my wallet. I know HEwill never leave me. I wish now that I had kept HIS picture with me right from the beginning! HE alone is true; all others are just passing shadows.

    These earthly ties are transitory. Today they seem to be the be-all and end-all of life, and tomorrow they vanish. Your real tie is with BABA SAI.  BABA is one’s very own. It is the eternal relationship. HE is ever looking after you. Call on the BABA who pervades the entire universe. He will shower HIS blessings upon you.

    Your wealth will remain on earth; your cattle will remain in the stables, Your wife will come till the entrance door, your relatives and friends will come till the cremation ground, your body will accompany you till the funeral pyre, but on the way beyond this life only your Karmas will accompany you.

    From The Mahabharata

    In the Divine plan, one day each union must end with separation.  In the Mahabharata, Bhishma said: Develop this attitude based on wisdom:

    I am alone. There is no one who is mine; nor do I belong to anyone. Even this body does not belong to me. These objects of the world are not mine; nor do they belong to others. Or, all things belong equally to all beings. Therefore there is no need for any mind to grieve over these.
    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

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    Re: STORY OF THE DAY
    « Reply #323 on: March 05, 2007, 01:49:50 PM »
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  • Jai Sai Ram. Ramesh Bhai ji…nice thoughts..but so difficult to live with the mentioned wisdom. May Sai bless us so we may be knowledgeable on remembering SAI always and do something useful in this life as devotional service in Holy lotus feet of Lord, without developing much attachment for any of our actions and belongings and relations.
    Om Sai Ram !

    -Anju

    "Abandon all varieties of religion and just surrender unto Me. I shall deliver you from all sinful reactions. Do not fear."

    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: STORY OF THE DAY
    « Reply #324 on: March 05, 2007, 10:43:47 PM »
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  • जय सांई राम।।।

    मृत्यु से साक्षात्कार

    तीन व्यक्ति किसी जंगल से गुजर रहे थे। तभी उन्हें एक महात्मा मिले। वे तीनों उनके पास गए और उन्हें प्रणाम कर कहा, 'हम लोग जीवन में ही मृत्यु का साक्षात्कार करना चाहते हैं। कोई रास्ता दिखाइए।' महात्मा ने सामने खड़े पहाड़ की एक गुफा की ओर इशारा करते हुए कहा, 'तुम लोग उस गुफा में जाओ। वहां तुम्हारा मृत्यु से साक्षात्कार हो जाएगा।'

    तीनों चलकर तेजी से गुफा में पहुंचे। अंदर झांका तो देखा वहां सोने का ढेर रखा था। उन्होंने कुछ देर विचार-विमर्श करने के बाद सोना घर ले जाने का निश्चय किया। एक ने कहा, 'तुम दोनों पास के गांव से रोटी और पानी ले आओ। मैं सोने की रखवाली करता हूं।' दो साथी चले गए। थोड़ी देर में एक साथी भोजन लेकर लौटा। उसने जैसे ही गुफा में प्रवेश किया वहां सोने की रखवाली के लिए मौजूद साथी ने तलवार से उसकी हत्या कर दी। एक और साथी जब थोड़ी देर बाद पानी लेकर घुसा तो उसने उसे भी मौत के घाट उतार दिया। उसने उनका लाया भोजन खाकर सोना अकेले ले जाने का निर्णय किया। लेकिन रोटी खाते ही उसे चक्कर आ गया और वह चल बसा। रोटी लाने वाले उसके साथी ने उसमें जहर मिला दिया था। 
     

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

    ॐ सांई राम।।।
    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: STORY OF THE DAY
    « Reply #325 on: March 06, 2007, 07:39:44 AM »
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  • जय सांई राम।।।
    प्रेम भक्ति का अंकुर न्यारो - प्रेम किससे होता है यह महत्वपूर्ण नहीं है, प्रेम हुआ यह बहुत मूल्यवान है।

    प्रेम एक ऐसी अद्भुत संजीवनी है, जिसके लिए सृष्टि का हर प्राणी तरसता है-फिर चाहे वे पशु पक्षी हों या मनुष्य। प्रेम की सकारात्मक शक्ति पेड़ पौधों को भी नव जीवन देती है। वे ज्यादा तेजी से बढ़ने लगते हैं, अधिक हरे-भरे हो जाते हैं, अगर प्रेम से उन्हें सींचा जाए। यह प्राणों की गहरी प्यास है, जो सिर्फ प्रेम जल से ही बुझती है। सबके भीतर जलती है इसकी लौ, लेकिन प्रेम की परिभाषा कोई कर नहीं सका। भक्ति सूत्र जैसे ग्रंथ में भक्ति का अद्वितीय विवेचन करने वाले महर्षि नारद भी अंतत: हार कर कह उठे: अनिर्वचनीयं पे्रम स्वरूपम। प्रेम का स्वरूप अनिर्वचनीय है।

    भक्ति की परिभाषा देते हुए पहले ही सूत्र में वे लिखते हैं, सा तु अस्मिन परम प्रेम रूपा। भक्ति जो है, वह उससे परम प्रेम स्वरूप होती है। उससे किससे इसे वे स्पष्ट नहीं करते। क्योंकि वह अमूर्त है, अनाम है। अगर भक्ति की आध्यात्किता को छोडें और मानवीय प्रेम की बात करें तो जब किसी से प्रेम हो जाता है, उस व्यक्ति के गहरे केंद्र से संबंध जुड़ जाता है। उसका चेहरा खो जाता है। शुरुआत भले ही चेहरे से होती हो, लेकिन जैसे गहरे उतरते हैं तो केवल अहसास शेष रहता है। इस अहसास का क्या नाम है? उसकी चुंबकीय शक्ति का क्या रूप है? इसलिए नारद मुनि का यह कहना कि प्रेमी अनाम होता है, बहुत अर्थपूर्ण है। आदमी जहां खड़ा है, वहीं से तो पहला कदम उठाएगा न! भक्ति का रास्ता प्रेम की गली से ही गुजरता है। ऊपर से देखने पर भक्ति बिलकुल सामान्य लगती है। बल्कि ऐसा माना जाता है कि योग, ध्यान, वेदान्त, सांख्य ये सब अत्यंत कठिन और दुरूह मार्ग हैं और भक्ति तो बिलकुल साधारण है। भक्त को रोने-गाने के सिवाय कोई काम ही नहीं रहता। लेकिन भक्ति सर्वाधिक कठिन है।

    कबीर कहते हैं, भगति करै कोई सूरमा जाति बरन कुल खोय। प्रेम की पगडंडी आंसुओं से पटी है। मीरा ने लिखा है, अंसुअन जल सींच सींच प्रेम बेलि बोई। भक्ति की राह आंसुओं से भीगी क्यों है? क्योंकि भक्ति हृदय में जीती है। उसके आंसू दुख के आंसू नहीं होते, यह छलकता हुआ हृदय रस होता है। कोई भी भाव अतिशय हो जाए तो छलकने लगता है। ये आंसू मन के मैल को धोकर भाव-शरीर को एकदम निर्मल और स्वच्छ बना देते हैं। असल में भावनाओं का यह ऐश्वर्य भक्ति की खास पहचान है। यह हर किसी के बस की बात नहीं। बहुत मजबूत दिल और उतना ही मजबूत जिस्म चाहिए तो भक्ति का पेड़ मनोभूमि में उग सकता है। इधर आधुनिक मानव भक्ति की इस रस पूर्ण उन्मनी दशा से वंचित रह गया है। जैसे-जैसे बुद्धिवाद का उदय हुआ, वह लोगों के दिल-ओ-दिमाग पर छा गया, वैसे-वैसे मनुष्य की प्रेम की क्षमता कम होती गई। दिमाग मजबूत होता गया और दिल सिकुड़ता गया। स्वर्गीय अमृता प्रीतम ने बड़ी खूबसूरती से कहा है, आज मैं किसी के मुंह से प्रेम और भक्ति के अल्फाज सुनती भी हूं तो ऐसे घबराए हुए से, मानों दूसरों के बाग में से चुराए हुए फूल हों। बात सच है। प्रेम की चाहत तो लोगों में बहुत है, लेकिन उसके लिए वह माहौल नहीं, जिसमें प्रेम पनपे। प्रेम के चर्चे तो बहुत हैं, लेकिन प्रेम में वह गहराई नहीं है, जो भक्ति के समुंदर को अपने सीने में समा ले। इस विज्ञान युग में प्रेम  और भक्ति कैसे पनपेगी? अंतर्दृष्टि यही है कि प्रेम के साथ ध्यान को जोड़ें। ध्यान और प्रेम दो पंख हैं जिसके सहारे मनुष्य आसमान में उड़ सकता है। प्रेम है मन से मन का मिलन, काम है तन से तन का मिलन और भक्ति है, आत्मा का आत्मा से मिलन। प्रेम बीच की कड़ी है। एक तरफ काम है, दूसरी तरफ भक्ति। प्रेम को चाहिए कि वह ऊर्ध्वगति करे। अकेला प्रेम एक भाव है,  अकेला उड़ान भरने में असमर्थ है, लेकिन वह ध्यान का सहारा ले तो उसके पंखों में बल आ जाएगा। ध्यान एक रूपांतरण का विज्ञान है, जो ऊर्जा को निरंतर ऊर्ध्वगामी कर सकती है।

    वस्तुत: प्रेम को भक्ति में परिवर्तित करना वैसे ही है, जैसे पानी को उबाल कर भाप बनाना। प्रेम को निकृष्ट भाव ईष्र्या, काम, भय, आधिपत्य से विलग कर, निष्काम ऊर्जा में बदलना भक्ति की कीमिया है। नारद ने बड़ी महीन बात कही है कि पूजा अनुराग पूर्वक होना चाहिए, रूखी सूखी नहीं। उसकी व्याख्या इस प्रकार कर सकते हैं: प्रेम आस्तिकता की पहली गंध, पहली लहर, आस्तिकता की तरफ पहला कदम। कम से कम एक में ही सही, परमात्मा दिखा तो। और एक में दिखा तो सब में दिख सकता है। लेकिन जल्दी ही तुम्हारी प्रेम की आंख धुंधली पड़ जाती है। जिसमें तुम्हें परमात्मा दिखा था वह भी एक ख्वाब, एक सपना हो जाता है। जल्दी ही तुम भूल जाते हो, धूल जम जाती है। जब प्रेम की घटना घटे तो जल्दी करना उसे पूजा बनाने की, अन्यथा समय ढांक देगा। इसलिए मैं कहता हूं, पूजा जवानी के दिन हैं। लेकिन लोग कहते हैं, पूजा बुढ़ापे में करेंगे। इतना फासला प्रेम में और पूजा में होगा तो प्रेम मर जाएगा, पूजा न आ पाएगी। और असलियत यह है कि प्रेम ही पूजा बनता है।

    प्रेम के मरने से पूजा नहीं आती, प्रेम के पूरे निखरने से पूजा आती है। एक में जो दिखाई पड़ा है, अब इस सूत्र को पकड़ लेना इसको औरों में भी देखने की कोशिश करना। जरा आंख ताजी हो, लहर नई हो, उमंग अभी जोश भरी हो, उत्साह युवा हो तो जल्दी कर लेना। जो तुम्हें अपने प्रेमी में, प्रेयसी में, बच्चे में दिखा हो, अपने मित्र में दिखा हो, जल्दी करना, क्योंकि उस वक्त तुम्हारे पास आंख है, उस वक्त जगत को गौर कर देख लेना, और तुम अचानक पाओगे, वह सभी के भीतर छिपा है, क्योंकि उसके अतिरिक्त और कोई भी नहीं है। प्रेम किससे होता है यह महत्वपूर्ण नहीं है, प्रेम हुआ यह बहुत मूल्यवान है। दूसरा तो सिर्फ बहाना है, घटना तो अपने भीतर हृदय के अतल में घटती है। लेकिन किसी भी बहाने से हो, उसकी याद आ जाए यह क्या कम है।
    हम खुदा के कभी कायल न थे
    उनको देखा तो खुदा याद आया।



    सांई रहम नज़र करना बच्चों का पालन करना।


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    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: STORY OF THE DAY
    « Reply #326 on: March 08, 2007, 08:28:40 AM »
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  • जय सांई राम।।।

    सच्चाई की जीत

    प्राचीन काल में एक राजा था। वह अपने गुरु की हर बात माना करता था। जब कभी भी उसे महत्वपूर्ण निर्णय लेने होते थे, वह फौरन अपने गुरु के पास चला जाता था और उनकी आज्ञा के मुताबिक ही कार्य करता था। इस तरह राजा अपने प्रांत की शासन व्यवस्था दुरुस्त रखता था।

    चूंकि उस राजा का कोई बच्चा नहीं था, इसलिए एक दिन उसने मन ही मन सोचा कि उसके बाद उसका उत्तराधिकारी कौन होगा? इस समस्या के हल के लिए राजा अपने गुरु के पास पहुंचा।

    गुरु ने कहा, वत्स घबराने की आवश्यकता नहीं है। मैं एक तरकीब बताता हूं, जिससे तुम अपना सही उत्तराधिकारी तलाश लोगे। गुरुजी ने अपने एक भक्त को बुलाया और उसके कानों में कुछ कहा। कुछ देर बाद वह भक्त वापस आया और एक बड़े थैले में बीज भर कर ले आया।

    बीज से भरा वह बड़ा थैला राजा को सुपुर्द करते हुए गुरुजी ने कहा, वत्स यह कोई सामान्य गुरुजी की नजर अश्विन पर पड़ी, जो अपना खाली गमला छिपाने की कोशिश कर रहा था। गुरुजी ने राजा से कहा - तुम्हें तुम्हारा उत्तराधिकारी मिल गया। वह लड़का, जो खाली गमला लेकर आया है, वही अगला राजा बनने योग्य है।
     
    थैला नहीं है। इसमें विशेष किस्म के बीज भरे हैं। तुम्हारे राज्य में जितने भी बच्चे हैं, उन्हें बुलाकर एक-एक बीज सबको बांट दो। बच्चों से कहना कि बीज को अपने-अपने घरों में ले जाएं और प्रतिदिन उसे अच्छी तरह पानी से सींचे और पौधा बड़ा होने तक उसकी देखभाल भी करें। एक साल बाद हम यह देखेंगे कि किसने किस तरह से पौधों की देखभाल की है? फिर हम तुम्हारे उत्तराधिकारी का निर्णय करेंगे।

    राजा ने पूरे राज्य के तमाम होनहार बच्चों को बुलवाकर मुनादी करा दी कि उन्हीं में से कोई एक अगला राजा होगा। राजा ने सभी बच्चों को एक-एक बीज देकर आवश्यक निर्देश दिया कि अगले साल सभी बच्चों को वापस बुलाया जाएगा और पौधे की स्थिति को देखकर ही यह तय किया जाएगा कि उसका उत्तराधिकारी कौन होगा?

    बच्चों की भीड़ में अश्विन नाम का एक लड़का था, जो ईमानदार होने के साथ-साथ दयालु भी था। वह बीज को लेकर अपने घर पहुंचा और अपनी मां से सारी बातें बताई। मां-बेटे दोनों बहुत उत्साहित थे। दोनों ने साथ मिलकर ईश्वर की प्रार्थना की और बीज को एक गमले में बोया। हर दिन सुबह-सुबह अश्विन उसमें पानी डालता, प्रकाश की पर्याप्त व्यवस्था करता और उसकी अच्छी तरह देखभाल करता। इसी तरह समय बीतता गया, मगर कुछ दिन के बाद अश्विन के चेहरे पर निराशा के बादल छाने लगे, क्योंकि वह बीज अंकुरित ही नहीं हो सका। जब यह तय हो गया कि वह बीज मर चुका है, तो अश्विन बहुत दुखी हुआ। हालांकि वह अब भी आशा का दामन छोड़ नहीं पा रहा था। बावजूद इसके कि वह बीज मर चुका था, वह रोज उसी तरह उसमें पानी डालता और ईश्वर से प्रार्थना करता कि किसी तरह उसमें पौधा उगे। दूसरी तरफ, जब वह स्कूल पहुंचा, तो अपने साथियों से तरह-तरह की बातें सुन-सुन कर और परेशान हो गया। कोई कहता कि उसके बीज से एक अद्भुत पौधा निकला है, तो कोई कहता कि उसका पौधा बड़ी तेजी से बढ़ रहा है। जितने मुंह, उतनी बातें..।

    अंत में वह दिन आ गया, जब राजा ने सभी बच्चों को अपने-अपने पौधे लेकर राजदरबार में हाजिर होने को कहा। अश्विन दुखी था कि उसके बीज से तो पौधा निकला ही नहीं..। इसके बावजूद वह अपना खाली गमला लेकर राजदरबार पहुंच गया। वहां पहुंचकर जब उसने दूसरे बच्चों के खूबसूरत गमले को देखा, तो और ज्यादा परेशान हो गया और अब वह अपना खाली गमला छिपाने लगा। इतने में राजा अपने गुरु के साथ पहुंच गए और बच्चों का राजदरबार में स्वागत किया।

    राजा ने गुरुजी से पूछा, चूंकि सभी पौधे खूबसूरत हैं, इसलिए हम यह कैसे तय करेंगे कि किसका सबसे अच्छा है और कौन अगला राजा बनने लायक है?

    गुरुजी की नजर अश्विन पर पड़ी, जो अपना खाली गमला छिपाने की कोशिश कर रहा था। गुरुजी ने राजा से कहा - तुम्हें तुम्हारा उत्तराधिकारी मिल गया। वह लड़का, जो खाली गमला लेकर आया है, वही अगला राजा बनने योग्य है।

    मगर गुरुजी इसका गमला तो खाली है..इसमें तो पौधे उगे ही नहीं..! राजा ने कहा।

    गुरुजी मुस्कुराते हुए बोले, राजन् मैंने जितने भी बीज दिए, सभी पहले से ही मरे हुए थे। उनमें से पौधे निकलने की कोई संभावना ही नहीं रह गई थी। ये जितने भी खूबसूरत पौधे तुम देख रहे हो, वे किसी अन्य बीज के हैं। राजा बनने के लोभ में सभी ने एक से बढ़कर एक पौधे उगा लिए, मगर इस बालक ने अपनी ईमानदारी दिखाई और वही बीज ले आया, जो इसे दिया गया था। अत: यही तुम्हारा उत्तराधिकारी होने योग्य है।

    यह सुनते ही अश्विन खुशी से उछल पड़ा और गुरुजी के पैरों पर गिर गया..।

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    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: STORY OF THE DAY
    « Reply #327 on: March 10, 2007, 02:44:50 AM »
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  • जय सांई राम।।।

    धर्म के प्रसार से कलियुग, सतयुग में परिवर्तित होगा

    जीवन में प्रेम पाना है तो प्रेम बांटो, इज्जत पानी है तो इज्जत दो और ज्ञानी व मानव बनना है तो ज्ञान व मानवता का प्रसार करो। मानव धर्म के प्रसार से ही कलियुग, सतयुग में परिवर्तित होगा।

    मनुष्य को अपने विवेक अनुसार कर्म करने का अधिकार है मगर जो मनुष्य बिना सोचे-विचारे कार्य करता है तो निश्चित ही बाद में उसे पछताना पड़ता है। एक बार एक प्रतापी राजा ने अपने राज्य विस्तार के लिए पड़ोसी राज्य पर आक्रमण किया। उस युद्ध में हजारों आदमी मारे गए। युद्ध में विजय के बाद राजा युद्ध के मैदान में अपने मंत्री के साथ यह देखने के लिए जाता है कि मैंने कितने लोगों को मारा। घूमते-घूमते उसने वहां कुछ गीदड़ों को आपस में बातचीत करते सुना। चूंकि राजा का मंत्री जानवरों की बोली समझता था इसलिए उसने मंत्री से पूछा कि बताओ ये गीदड़ आपस में क्या बातचीत कर रहे हैं। तब मंत्री ने कहा कि महाराजा यह बड़ा गीदड़ छोटे गीदड़ से कह रहा है कि न जाने किस मूर्ख ने इतने आदमियों को मार दिया है। यह सुनकर राजा अपने मंत्री से कहता है कि इससे पूछो कि यह गीदड़ हमें मूर्ख क्यों कह रहा है। मंत्री ने गीदड़ों की भाषा में जब उस बड़े गीदड़ से पूछा कि एक शूरवीर राजा को तुम मूर्ख कैसे कहते हो। तब गीदड़ ने जवाब दिया कि हमे जब भूख लगती है तो हम एक दो जानवरों को मारते हैं और ज्यादा भूख हुई तो हम तीसरे जानवर को मारते हैं। चार पांच जानवरों को मारने के बाद तो बड़े से बड़े जानवर की भूख भी शांत हो जाती है। यहां इतने लोगों को मारने के बाद भी इन्हें कोई नहीं खा रहा है। लगता है कि उसकी भूख शांत है बिना भूख के ही लोगों को मारता जा रहा है इसलिए मुझे उस व्यक्ति को मूर्ख कहना पड़ा।

    बात बड़ी सरल लगती है पर इस कथा में मानव समाज के लिए कितना बड़ा उपदेश है कि हम तो जानवरों से भी निम्न हो गए हैं। जब हम किसी को जीवित नहीं कर सकते तो मारने का हमें क्या अधिकार है। जब हम किसी को प्रेम नहीं दे सकते, दया नहीं कर सकते तो उसके सताने का हमें क्या अधिकार है। जब हम समाज को प्रेम और एकता के सूत्र में नहीं बांध सकते तो हमें समाज में घृणा फैलाने का,फूट डालने का क्या अधिकार है। इसीलिए हमें किसी का अहित करने का कोई अधिकार नहीं है। इससे हमें शिक्षा मिलती है कि धर्म का प्रसार कर जीवन के भवसागर को पार किया जा सकता है।
     
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    Offline jaishri

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    Re: STORY OF THE DAY
    « Reply #328 on: March 10, 2007, 09:31:03 AM »
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  • thanks for all those  stories.. no thoughts!
    here is some thing for that i want to share.

    who is right?

    one day a man was walking in the sun... holding a donkey in one hand and his small son in the other. he  then met a passer by who commented.. look this foolish man, going in the hot sun along with his donkey. he should put his son on the donkey and walk and make the child comfy.
    so the man did as was suggested.

    little while later another person came along.. he commented thus. look at this son.. an old father is walking and the son who is young is cooly riding the donkey! 
    this also seemed reasonable.

    the man pondered a while and then he also alighted the donkey.. thinking he is  accepting both the suggestions .
    a little while along the road , he met yet another person.
     this stranger then said.. look at these people, poor donkey it s so hot and both are sitting on it . what cruelty towards the animal. surely at elast one should walk.

     really this is the case in life. more often than not in my past i have been confronted with varied advice and never had the wisdom to choose.
    till sai has started speaking  from my heart. now i feel the best decisions are the one we take, after careful consideration. this must be backed by the single
    reason that it suits us. not to please some one, .
     many things in life may seem strange and unfair in others eyes. but only we know why . we are doing some thing. let sai give us all the courage of conviction. sai ram..
     

    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: STORY OF THE DAY
    « Reply #329 on: March 12, 2007, 08:13:35 AM »
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  • JAI SAI RAM!!!

    Lessons on Life

    There was a man who had four sons. He wanted his sons to learn not to judge things too quickly. So he sent them each on a quest, in turn, to go and look at a pear tree that was a great distance away.

    The first son went in the winter, the second in the spring, the third in summer, and the youngest son in the fall.

    When they had all gone and come back, he called them together to describe what they had seen

    The first son said that the tree was ugly, bent, and twisted. The second son said no it was covered with green buds and full of  promise.

    The third son disagreed; he said it was laden with blossoms that smelled so sweet and looked so beautiful, it was the most graceful thing he had ever seen.

    The last son disagreed with all of them; he said it was ripe and drooping with fruit, full of life and fulfillment.

    The man then explained to his sons that they were all right, because they had each seen but only one season in the tree's life.

    He told them that you cannot judge a tree, or a person, by only one season, and that the essence of who they are and the pleasure, joy, and love that come from that life can only be measured at the end, when all the seasons  are up.

    If you give up when it's winter, you will miss the promise of your spring, the beauty of your summer, fulfillment of your fall.

    Moral:

    Don't let the pain of one season destroy the joy of all the rest.
    Don't  judge life by one difficult season.
    Persevere through the difficult patches and better times are sure to come some time or later.

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    OM SAI RAM!!!
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