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Author Topic: सुखी जीवन के लिए निष्कपटता  (Read 2701 times)

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सुखी जीवन के लिए निष्कपटता
-- प्रो. महावीर सरन जैन

विनम्रता से सरलता आती है। सरलता से निष्कपटता की वृत्ति विकसित होती है। सरलता से अपने दोषों की आलोचना करनेवाला व्यक्ति माया एवं मद से मुक्त हो जाता है। व्यक्ति का हृदय सरल, स्पष्ट, निष्कपट हो जाता है। क्या सुखी जीवन के लिए सरलता, निष्कपटता, स्पष्टवादिता तथा ईमानदारी का होना जरूरी है।

समाज में यह धारणा भी है कि भौतिक विकास के लिए व्यक्ति को चालबाज, तिकड़मी, बेईमान, धोखेबाज होना चाहिए। चालबाज, तिकड़मी, बेईमान, धोखेबाज, कुटिल, कपटी, छली, प्रपंची व्यक्ति को व्यावहारिक चालाक, पटु माना जाता है। यह माना जाता है कि ऐसा व्यक्ति जीवन में आगे बढ़ जाता है, धनी हो जाता है, संपन्न हो जाता है। उसके पास सारी सुख सुविधाएँ हो जाती हैं।

छल और कपट को तात्कालिक स्वार्थसिद्धि के कौशल के रूप में परिभाषित किया जाता है। इसका दुष्परिणाम यह हो रहा है कि जीवन में परस्पर अविश्वास, अपवित्रता एवं कुटिलता बढ़ती जा रही है। कोई किसी के कथन पर विश्वास नहीं करता तथा उसके प्रत्येक क्रियाकलाप को संशय एवं सन्देह की दृष्टि से देखता है। चूँकि भोगवादी विचारधारा इन्द्रियों की तृप्ति में ही सुख मानती है इस कारण कपटता को सुखी जीवन का आधार मान लिया जाता है।

क्या इच्छाओं का कोई अन्त है। कामनाएँ तो आकाश के समान अनन्त हैं। क्या संपन्नता सुखी जीवन का आधार है। क्या यह सत्य है कि जो जितना संपन्न है वह उतना ही सुखी है। यदि ऐसा नहीं है तो यह विचारणीय है कि व्यक्तिगत, पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन की वास्तविक सुख शांति का क्या आधार है।

छल एवं कपट का जिस व्यक्ति के जीवन में जितना प्राबल्य होता है उसके चेतन एवं अचेतन मन की भावना का अन्तर उतना ही अधिक होता है। ऐसे व्यक्ति की स्मरण-शक्ति, कल्पना, चित्त की एकाग्रता एवं इच्छाशक्ति दुर्बल होती जाती है। उसमें न तो चरित्र बल रह जाता है और न व्यक्तित्व की पवित्रता। कपट के कारण व्यक्ति खुल नहीं पाता, अचेतन मन की खोज करके प्रत्येक प्रकार के द्वन्द्व को चेतना की सतह पर नहीं ला पाता। उसके अचेतन मन में जो भाव एवं विचार एकत्र होते हैं वे उसके व्यक्तित्व को विभाजित कर देते हैं।

दुःखों की जड़ मनोवैज्ञानिक दृष्टि से हमारे ही मन में है। ग्रन्थियों के कारण हम अन्तर्मन की खोज नहीं कर पाते तथा दुःख का कारण सदा बाह्य वातावरण में खोजते रहते है। सत्य जानने का मार्ग अवरूद्ध हो जाता है। अंधेरी कोठरी में बन्द व्यक्ति अपने से ही लड़ता रहता है। मानसिक संघर्ष के कारण बाहरी जगत में संघर्षात्मक स्थितियाँ उत्पन्न कर लेता है। अहंकार मन के कपट को बढ़ा देता है। ऐसी स्थिति में मानसिक बेचैनी, अकारण चिन्ता, भय, कल्पित शारीरिक रोग आदि उत्पन्न हो जाते हैं।

इन मानसिक रोगों से बचने के लिए निष्कपट होना होता है। निष्कपटता से मनुष्य का आन्तरिक संघर्ष चेतना की सतह पर आ जाता है। जो वासना, स्मृति एवं विचार दमित अवस्था में अचेतन मन में रहते हैं, वे चेतन मन के धरातल पर आ जाते हैं। इस प्रकार के प्रकाशन से अचेतन मन की ग्रंथियाँ ऋजु होकर शक्तिहीन हो जाती हैं। ऐसी स्थिति में व्यक्ति चेतन मन के धरातल पर स्वतः के प्रयत्न द्वारा सप्रयास आत्मनियन्त्रण कर सकता है।

आध्यात्मिक दृष्टि से व्यक्ति कपट के कारण अपना प्रकृत स्वभाव भूल जाता है। राग-द्वेष तथा इन्द्रियों के वशीभूत होकर आत्मा का शुद्व स्वभाव आच्छादित हो जाता है। इस तथ्य को प्रायः सभी दर्शन स्वीकार करते हैं। आत्मा (जीव) के साथ जैन दर्शन में पौद्गलिक कर्मों का, बौद्व दर्शन में तृष्णा का, वेदान्त दर्शन में माया का, सांख्य-योग दर्शन में प्रकृति का संयोग माना गया है।

कपट एवं कुटिलता के कारण बन्धन की ग्रन्थियाँ जुड़ती जाती हैं। निष्कपटता से इन ग्रंथियों की जकड़न दूर हो जाती है, गाँठे ऋजु हो जाती हैं। हृदय सरल, स्पष्ट, निष्कपट हो जाता है। इसी के पश्चात्‌ हृदय शुद्ध होता है। आत्म-संशोधन होता है, जहाँ धर्म ठहर सकता है। कपट का परित्याग करके ही व्यक्ति सत्य की साधना कर सकता है तथा अन्तःकरण की शुद्धि कर सकता है।

स्वस्थ शरीर, शुद्ध मन तथा आत्मानुसंधान के अतिरिक्त पारिवारिक एवं सामाजिक सुख एवं शांति की दृष्टि से भी आर्जव अथवा निष्कपटता का महत्व है। परस्पर मैत्रीभाव के लिए निष्कपटता के सतत अभ्यास की आवश्यकता है। कुटिलता के कारण पारिवारिक जीवन में अविश्वास उत्पन्न होता है। सामाजिक जीवन में छल, छद्म एवं विश्वासघात की वृत्तियाँ पनपती हैं।

पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन में परस्पर मैत्रीभाव उत्पन्न करने के लिए निष्कपटता के सतत अभ्यास की आवश्यकता असंदिग्ध है। पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन की सुख शांति तथा परस्पर मैत्री भाव का आधार है- परस्पर निष्कपटता, स्पष्टवादिता तथा ईमानदारी। प्रेम, विश्वास एवं बन्धुत्व के बिना व्यक्ति का जीवन सुखी नहीं बन सकता। पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन की सुख शांति के लिए परस्पर मैत्रीभाव का होना आवश्यक है। सुखी जीवन के लिए इसी कारण सीधा, सरल एवं निष्कपट होना जरूरी है।

Source:webduniya.com
om sai ram!
Anant Koti Brahmand Nayak Raja Dhi Raj Yogi Raj, Para Brahma Shri Sachidanand Satguru Sri Sai Nath Maharaj !
Budhihin Tanu Janike, Sumiro Pavan Kumar, Bal Budhi Vidhya Dehu Mohe, Harahu Kalesa Vikar !
........................  बाकी सब तो सपने है, बस साईं ही तेरे अपने है, साईं ही तेरे अपने है, साईं ही तेरे अपने है !!

 


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