Join Sai Baba Announcement List


DOWNLOAD SAMARPAN - Nov 2018





Author Topic: Today is the 111st Punyatithi (death anniversary) of Swami Vivekananda  (Read 3037 times)

0 Members and 1 Guest are viewing this topic.

Offline ShAivI

  • Members
  • Member
  • *
  • Posts: 12140
  • Blessings 56
  • बाबा मुझे अपने ह्र्दय से लगा लो, अपने पास बुला लो।
ॐ साईं राम !!!



SWAMI VIVEKANAND (1863-1902 C.E.)
Today is the 111st Punyatithi (death anniversary) of Swami Vivekananda.

It is belvied that Swami Vivekananda attained Mahasamadhi
on 4th July 1902 at 20.50 while he was meditative in his room.
Swami Vivekanand left us at the young age of 39.

Swami Vivekananda's guidance is
"Arise, Awake & stop not till the goal is reached !"

O Hindu brethren, let us vow to follow the words of Swami Vivekananda
until we reach the goal of the establishment of Hindu Rashtra !




‘उठो जागो और अपने लक्ष्य की प्राप्ति से पूर्व मत रुको.‘

अपनी तेज और ओजस्वी वाणी की बदौलत दुनियाभर में भारतीय अध्यात्म का डंका बजाने वाले
वाले प्रेरणादाता और मार्गदर्शक स्वामी विवेकानंद एक आदर्श व्यक्तित्व के धनी थे. आजस्वामी
विवेकानंद की पूर्न तीथी है. युवाओं के लिएविवेकानंद साक्षात भगवान थे. उनकी शिक्षा पर जो कुछ
कदम भी चलेगा उसे सफलता जरूर मिलेगी. अपनी वाणी और तेज से उन्होंने पूरी दुनिया कोचकित
किया था. आज ऐसे नेताओं की बहुत कमी है जिनकी वाणी में मिठास होने के बाद भी उनमें भीड़
इक्कठा करने की क्षमता हो. आइए ऐसे महान व्यक्ति के जीवन पर एक नजर डालें.

ओजस्वी वाणी

स्वामी विवेकानंद आधुनिक भारत के एक क्रांतिकारी संत हुए हैं. 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता में
जन्मे इस युवा संन्यासी के बचपन का नाम नरेंद्र नाथ था. इन्होंने अपने बचपन में ही परमात्मा को जानने
की तीव्र जिज्ञासावश तलाश आरंभ कर दी. इसी क्रम में उन्होंने सन् 1881में प्रथम बार रामकृष्ण
परमहंस से भेंट की और उन्हें अपना गुरु स्वीकार कर लिया तथा अध्यात्म-यात्रा पर चल पड़े.

विश्व धर्म सम्मेलन, शिकागो

उन्होंने 11 सितंबर, 1883 को शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में उपस्थित होकर अपने संबोधन में
सबको भाइयों और बहनों कह कर संबोधित किया.

इस आत्मीय संबोधन पर मुग्ध होकर सब बडी देर तक तालियां बजाते रहे. वहीं उन्होंने शून्य को ब्रह्म
सिद्ध किया और भारतीय धर्म दर्शन अद्वैत वेदांत की श्रेष्ठता का डंका बजाया. उनका कहना था कि
आत्मा से पृथक करके जब हम किसी व्यक्ति या वस्तु से प्रेम करते हैं, तो उसका फल शोक या दु:ख होता है.

अत:हमें सभी वस्तुओं का उपयोग उन्हें आत्मा के अंतर्गत मान कर करना चाहिए या आत्म-स्वरूप
मान कर करना चाहिए ताकि हमें कष्ट या दु:ख न हो. अमेरिका में चार वर्ष रहकर वह धर्म-प्रचार करते
रहे तथा 1887 में भारत लौट आए. फिर बाद में 18 नवंबर,1896 को लंदन में अपने एक व्याख्यान में
कहा था, मनुष्य जितना स्वार्थी होता है, उतना ही अनैतिक भी होता है.

उनका स्पष्ट संकेत अंग्रेजों के लिए था, किंतु आज यह कथन भारतीय समाज के लिए भी कितना अधिक
 सत्य सिद्ध हो रहा है? स्वामी विवेकानंद ने धर्म को मात्र कर्मकांड की निर्जीव क्रियाओं से निकाल कर
सामाजिक परिवर्तन की दिशा में लगाने पर बल दिया. वह सच्चे मानवतावादी संत थे. अत:उन्होंने मनुष्य
और उसके उत्थान व कल्याण को सर्वोपरि माना. उन्होंने इस धरातल पर सभी मानवों और उनके विश्वासों
का महत्व देते हुए धार्मिक जड़ सिद्धांतों तथा सांप्रदायिक भेदभाव को मिटाने के आग्रह किए.

युवा के लिए स्वामीजी का संदेश

युवाओं के लिए उनका कहना था कि पहले अपने शरीर को हृष्ट-पुष्ट बनाओ, मैदान में जाकर खेलो, कसरत
करो ताकि स्वस्थ-पुष्ट शरीर से धर्म-अध्यात्म ग्रंथों में बताए आदर्शो में आचरण कर सको. आज जरूरत है
ताकत और आत्म विश्वास की, आप में होनी चाहिए फौलादी शक्ति और अदम्य मनोबल.

शिक्षा ही आधार है

अपने जीवनकाल में स्वामी विवेकानंद ने न केवल पूरे भारतवर्ष का भ्रमण किया, बल्कि लाखों लोगों से
मिले और उनका दुख-दर्द भी बांटा. इसी क्रम में हिमालय के अलावा, वे सुदूर दक्षिणवर्ती राज्यों में भी गए,
जहां उनकी मुलाकात गरीब और अशिक्षित लोगों से भी हुई. साथ ही साथ धर्म संबंधित कई विद्रूपताएंभी
उनके सामने आई. इसके आधार पर ही उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि जब तक देश की रीढ़‘युवा’अशिक्षित
रहेंगे, तब तक आजादी मिलना औरगरीबी हटाना कठिन होगा. इसलिए उन्होंने अपनी ओजपूर्ण वाणी से सोए
हुए युवकों को जगाने का काम शुरू कर दिया.

गजब की वाणी

स्वामी विवेकानंद ने अपनी ओजपूर्ण वाणी से हमेशा भारतीय युवाओं को उत्साहित किया. उनके उपदेश
आज भी संपूर्ण मानव जाति में शक्ति का संचार करते है. उनके अनुसार, किसी भी इंसान कोअसफलताओं
को धूल के समान झटक कर फेंक देना चाहिए, तभी सफलता उनके करीब आती है. स्वामी जीके शब्दों में
 ‘हमें किसी भी परिस्थिति में अपने लक्ष्य से भटकना नहीं चाहिए’.

1902 में मात्र 39 वर्ष की अवस्था में ही स्वामी विवेकानंद महासमाधि में लीन हो गए. हां यह सच है कि
इतने वर्ष बीत जाने के बावजूदआज भी उनके कहे गए शब्द सम्पू‌र्ण विश्व के लिए प्रेरणादायी है. कुछ महापुरुषों
ने उनके प्रति उद्गार प्रकट किया है कि जब-जब मानवता निराश एवं हताश होगी, तब-तब स्वामी विवेकानंदके
 उत्साही, ओजस्वी एवं अनंत ऊर्जा से भरपूर विचार जन-जन को प्रेरणा देते रहेगे और कहते रहेंगे-
’उठो जागो और अपने लक्ष्य की प्राप्तिसे पूर्व मत रुको.’

युवाओं के प्रेरणास्त्रोत -आध्यात्मिक गुरू स्वामी विवेकानंद


ॐ साईं राम, श्री साईं राम, जय जय साईं राम !!!

JAI SAI RAM !!!

 


Facebook Comments