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Author Topic: 2. सूरा अल - बकरा  (Read 18404 times)

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2. सूरा अल - बकरा
« on: September 18, 2007, 07:35:13 AM »
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  • सूरा अल - बकरा (मदीना में उतरी - आयतें 286)

    अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान है ।

    1. अलिफ0 लाम0 मीम0 ।

    2. वह किताब यही है जिसमें कोई सन्देह नहीं, मार्गदर्शन है डर रखने वाले के लिये ।

    3. जो अनदेखे ईमान लाते है, नमाज कायम करते है और जो कुछ हमने उन्हें दिया है उसमें से खर्च करते है ।

    4. और जो उस पर ईमाल लाते है जो तुमपर उतरा और जो तुमसे पहले अवतरित हुआ है और आखिरत पर वही लोग विश्वास रखते है ।

    5. वही लोग है जो अपने रब के सीधे मार्ग पर है और वही सफलता प्राप्त करने वाले है ।

    6. जिन लोगों ने कुफ्र (इनकार) किया उनके लिए बराबर है, चाहे तुमने उन्हे सचेत किया हो या सचेत न कया हो, वे ईमान नहीं लाएँगे ।

    7. अलालाह ने उनके दिलों पर और उनके कानों पर मुहर लगा दी है उनकी आँखों पर परदा पड़ा है, और उनके लिये बड़ी यातना है ।

    8. कुछ लोग ऐसे है जो कहते है कि हम अल्लाह और अन्तिम दिन ईमान रखते है, हालाँकि वे ईमान नहीं रखते ।

    9. वे अल्लाह और ईमानवालों के साथ धोखेबाजी कर रहे है, हालांकि धोखा वे स्वयं अपने-आप को ही दे रहे है, परन्तु वे इसको महसूस नहीं करते ।

    10. उनके दिलों में रोग था तो अल्लाह ने उनके रोग को और बढ़ा दिया और नके झूठ बोलते रहने के काकरण उनके लिये एक दुखद यातना है ।
    « Last Edit: September 27, 2007, 05:37:30 AM by Jyoti Ravi Verma »
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    Re: सूरा अल - बकरा
    « Reply #1 on: September 19, 2007, 12:09:40 AM »
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  • 11. और जब उनसे कहा जाता है कि जमीन में बिगाड़ पैदा न करो, तो कहते है हम तो केवल सुधारक है ।

    12. जान लो वही है जो बिगाड़ पैदा करते है, परन्तु उन्हें एहसास नहीं होता ।

    13. और जब उनसे कहा जता है, ईमान लाओ जैसे लोग ईमान लाए है, कहते है क्या हम ईमान लाएँ जैसे कम समझ लोग ईमान लाए है । जान लो, वही कम समझ है परन्तु जानते नहीं ।

    14. और जब ईमान लालनेवालों से मिलते है तो कहते है हम भी ईमान लाए है और जब एकांत में अपने शैतानों के पास पहुँचे है, तो कहते है हम तो तुम्हारे साथ ह और यह तो हम केवल परिहास कर रहे है ।

    15. अल्लाह उनके साथ परिहास कर रहा है और उन्हें उनकी सरकशी में ढील दिए जाता है, वे भटकते फिर रहे है ।

    16. यही वे लोग है, जिन्होंने मार्गदर्शन के बदले में गुमराही मोल ली, किन्तु उनके इस व्यापार ने न कोई लाभ पहुँचाया और न ही वे सीधा मार्ग पा सके ।

    17. उनकी मिसाल ऐसी है जैसे किसी व्यक्ति ने आग जलाई, फिर जब उसने उसके वातावरण को प्रकाशित कर दिया, तो अल्लाह ने उनका प्रकाश ही छीन लिया और उन्हें अँधेरों में छोड़ दिया जिससे उन्हें कुछ सुझाई नहीं दे रहा है ।

    18. वे बहरे है, गूँगे है, अंधे है, अब वे लौटने के नहीं ।

    19. या (उनकी मिसाल ऐसी है) जैसे आकाश से वर्षा हो रही हो जिसके साथ अँधेरे हों और गरज और चमक भी हो, वे बिजली की कड़क के कारण मृत्यु के भय से अपनो कानों में उँगलियाँ दे ले रहे हो - और अल्लाह ने तो इनकार करने वालों को घेर रखा है ।

    20. मानो शीघ्र ही बिजली उनकी आँखें की रोशनी उचक लेने को है, ब भी वह उनके सामने चमकती है उसमें वे चल पड़ते है और ज उन पर अँधेरा छा जाता है तो खड़े हो जाते है, अगर अल्लाह चाहता तो उनकी सुनने और उनके देखने की शक्ति बिलकुल ही छीन लेता ।  निस्संदेह, अल्लाह हर चीज की सामर्थ्य प्राप्त है ।
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    Re: सूरा अल - बकरा
    « Reply #2 on: September 19, 2007, 01:03:35 AM »
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  • 21. ऐ लोगों बन्दगी करो अपने रब की जिसने तुम्हें और तुमसे पहले के लोगों को पैदा किया, ताकि तुम बच सको,


    22. वही है जिसने तुम्हारे लिए जमीन को फर्श और आकाश को छत बनाया, और आकाश से पानी उतारा, फिर उसके द्रारा हर प्रकार की पैदावार और फल तुम्हारी रोजी के लिए पैदा किए, अतः तुम जब जानते हो तो अल्लाह के समकक्ष क्यों न ठहराओ ।

    23. और अगर उसके विषय में जो हमने अपने बन्दे पर उतारा है, तुम किसी सन्देह में हो तो उस जैसी कोई सूरा ले आओ और अल्लाह से हटकर अपने सहायकों को बुला लो जिनके आ मौजूद होने पर तुम्हें विश्वास है, यदि तुम सच्चे हो ।

    24. फिर अगर तुम ऐसा न कर सको और तुम कदापि नहीं कर सकते, तो डरो उस आग से जसका ईंधन इनसान और पत्थर है, जो इनकार करने वालों के लिये तैयार की गई है ।

    25. जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उन्हें शुभ सूचना दे दो कि उनके लिये ऐसे बाग है जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी, जब भी उनमें से कोई फल उन्हें रोजी के रुप में मिलेगा, तो कहेंगे  यह तो वही है जो पहले हमें मिला था, और उन्हें मिलता-जुलता ही (फल) मिलेगा, उनके लिए वहाँ पाक-साफ पत्नियाँ होंगी, और वे सदैव वहाँ रहेंगे ।

    26. निस्संदेह अल्लाह नहीं शर्माता कि वह कोई मिसाल पेश करे चाहे वह हो मच्छर की, बल्कि उससे भी बढ़कर किसी तुच्छ चीज की ।  फिर जो ईमान लाए है वे तो जानते है कि वह उनके रब की ओर से सत्य है, रहे इनकार करने वाले तो वे कहते है  इस मिसाल से अल्लाह का अभिप्राय क्या है ।  इससे वह बहुतो को भटकने देता है और बहुतो को सीधा मार्ग दिखा देता है, मगर इससे वह केवल अवज्ञाकारियों को ही भटकने देता है ।

    27. जो अल्लाह की प्रतिज्ञा को उसे सुदृढ़ करने के पश्चात् भंग कर देते है और जिसे अल्लाह ने जोड़ने का आदेश दिया है उसे काट डालते है, और जमीन में बिगाड़ पैदा करतेहै, वही है जो घाटे में है ।

    28. तुम अल्लाह के साथ अविश्वस की नीति कैसे अपनाते हो, जबकि तुम निर्जीव थे तो उसने तुम्हें जीवित किया, फिर वही तुम्हें मौत देता है, फिर वही तुम्हें जीवित करेगा, फिर उसी की ओर तुम्हें लौटना है ।

    29. वही तो है जिसने तुम्हारे लिए जमीन की सारी चीजें पैदा की, फिर आकाश की ओर रुख किया और ठीक तौर पर सात आकाश बनाए और वह हर चीज को जानता है ।

    30. और याद करो जब तुम्हारे रब ने फरिश्तों से कहा कि मैं धरती में (मनुष्य को) खलीफा (सत्ताधारी) बनाने वाला हूँ ।  उन्होंनें कहा, क्या उसमें उसको रखेगा, जो उसमें बिगाड़ पैदा करे और रक्तपात करे और हम तेरा गुणगान करते र तुझे पवित्र कहते है ।  उसने कहा मैं जानता हूँ, जो तुम नहीं जानते ।

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    Re: सूरा अल - बकरा
    « Reply #3 on: September 20, 2007, 03:51:19 AM »
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  • 31. उसने (अल्लाह ने) आदम को सारे नाम सिखाए, फिर उन्हें फरिश्तों के सामने पेश किया और कहा अगर तुम सच्चे हो तो मुझे इनके नाम बताओ ।

    32. वे बोले, पाक और महिमावान है तू ।  तूने जो कुछ हमें बताया उसके सिवा हमें कोई ज्ञान नहीं ।  निसंदेह तू सर्वज्ञ, तत्वदर्शी है ।

    33. उसने कहा, ए आदम ।  उन्हें उन लोगों के नाम बताओ ।  फिर जब उसने उन्हें उनके नाम बता दिये तो (अल्लाह ने) कहा, क्या मैंने तुमसे कहा न था कि मैं आकाशें और धरती की छिपी बातों को जानता हूँ और मैं जानता हूं जो कुछ तुम जाहिर करते हो और जो कुछ छिपाते हो ।

    34. और याद करो जब हमने फरिश्तों से कहा कि आदम को सजदा करो तो, उन्होंने सजदा किया सिवाय इबलीस के, उसने इनकार कर दिया और लगा बड़ा बनने और काफिर हो रहा ।

    35. और हमने कहा, ए आदम ।  तुम और तुम्हारी पत्नी जन्नत में रहो और वहाँ जी भर बेरोक-टोक जहाँ से तुम दोनों का जी चाहे खाओ, लेकिन इस वृक्ष के पास न जाना, अन्यथा तुम जालिम ठहराओगे ।

    36.अन्ततः शैतान ने उन्हें वहाँ से फिसला दिया, फिर उन दोनों को वहाँ से निकलवाकर छोड़, जहाँ वे थे ।  हमने कहा कि उतरो, तुम एक-दूसरे के शत्रु होगे और तुम्हें एक समय तक धरती में ठहरना और बिलसना है ।

    37. फिर आदम ने अपने रब से कुछ शब्द पा लिये, तो अल्लाह ने उसकी तौबा कबूल कर ली, निस्संदेह वही तौबा कबूल करनेवाला, अत्यन्त दयावान है ।

    38. हमने कहा, तुम सब यहाँ से उतरो, फिर यदि तुम्हारे पास मेरी ओर से कोई मार्गदर्शन पहुँचे, तो जिस किसी ने मेरे मार्गदर्शन का अनुसरण किया, तो ऐसे लोगों को न तो कोई भय होगा और न वे शोकाकुल होंगे ।

    39. और जिन लोगों ने इनकार किया और हमारी आयतों को झुठलाया, वही आग में पड़नेवाले है, वे उसमें सदैव रहेंगे ।

    40. ऐ इसराईल की संतान ।  याद करो मेरे उस अनुग्रह को जो मैंने तुमपर किया था ।  और मेरी प्रतिज्ञा को पूरा करो, मैं तुमसे की हुई प्रतिज्ञा को पूरा करुँगा और हाँ मुझी से डरो ।
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    Re: सूरा अल - बकरा
    « Reply #4 on: September 20, 2007, 08:08:14 AM »
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  • 41. और ईमान लाओ उस चीज पर जो मैंने उतारी है, जो उसकी पुष्टि में है जो तुम्हारे पास है, और सबसे पहले तुम ही उसके इनकार करने ले न बनो और मेरी आयतों को थोड़ा मूल्य प्राप्त करने का साधन न बनाओ, मुझसे ही तुम डरो ।

    42. और सत्य में असत्य का घाल-मेल न करो और जानते-बूझते सत्या को छिपाओ मत ।

    43. और नमाज कायम करो और जकात दो और (मेरे समक्ष) झुकने वालों के साथ झुको ।

    44. क्या तुम लोगों को तो नेकी और एहसान का उपदेश देते हो और अपने आपको भूल जाते है, हालाँकि तुम किताब भी पढ़ते हो ।  फिर क्या तुम बुद्वि से काम नहीं लेते ।

    45. धैर्य और नमाज से मदद लो, और निस्संदेह यह (नमाज) बहुत कठिन है, किन्तु उन लोगों के लिये नहीं जो डरने वाले है,

    46. जो समझते है कि उन्हें अपने रब से मिलना है और उसी की ओर उन्हें पलटकर जाना है ।

    47. ऐ इसराईल की संतान ।  याद करो मेरे उस अनुग्रह को जो मैंने तुमपर किया था और इसे भी कि मैंने तुम्हें सारे संसार पर श्रेष्ठता प्रदान की थी ।

    48. और डरो उस दिन से जब न कोई किसी की ओर से कुछ तावान भरेगा और न किसी की ओर से कोई सिफारिश ही कबूल की जाएगी और न किसी की ओर से कोई फिदया (अर्थदण्ड) लिया जाएगा और न वे सहायता ही पा सकेंगे ।

    49. और याद करो जब हमने तुम्हें फिरऔनियों से छुटकारा दिलाया जो तुम्हें अत्यन्त बुरी यातना देते थे, तुम्हारे बेटों को मार डालते थे और तुम्हारी स्त्रियों को जीवित रहने देते थे, और इसमें तुम्हारे रब की ओर से बडऱी परीक्षा थी ।

    50. याद करो जब हमने तुम्हे सागर में अलग-अलग चौड़े रास्ते से ले जाकर छुटकारा दिया और फिरऔनियों को तुम्हारी आँखों के सामने डुबो दिया ।

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    Re: सूरा अल - बकरा
    « Reply #5 on: September 21, 2007, 12:39:25 AM »
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  • 51. और तुम याद करो जब हमने मूसा से चलीस रातों का वाद ठहराया तो उसके पीछे तुम बछड़े को अपना देवता बना बैठे, तुम अत्याचारी थे ।

    52. फिर इसके बाद भी हमने तुम्हें क्षमा किया, ताकि तुम कृतज्ञता दिखलाओ ।

    53. और याद करो जब मूसा को हमने किताब और कसौट प्रदान की, ताकि तुम मार्ग पा सको ।

    54. और याद करो जब मूसा ने अपनी कौम से कहा, ऐ मेरी कौम के लोगो ।  बछड़े को देवता बनाकर तुमने अपने ऊपरजुल्म किया है, तो तुम अपने पैदा करने वाले की ओर पलटो, अतः अपने लोगों को स्वयं कत्ल करो ।  यही तुम्हारे पैदा करने वाले की दृष्टि में तुम्हारे लिए अच्छा है, फिर उसने तुम्हारी तौबा कबूल कर ली ।  निस्संदेह, वह बड़ा तौबा कबूल करने वाला, अत्यन्त दयावान है ।

    55. और याद करो जब तुमने कहा था ।  ऐ मूसा, हम तुम पर ईमान नहीं लाएँगे जब तक अल्लाह को खुल्लम-खुल्ला न देख ले ।  फिर एक कड़क ने तुम्हें आ दबोचा, तुम देखते रहे ।

    56. फिर तुम्हारे निर्जीव हो जाने के पश्चात हमने तुम्हें जिला उठाया, ताकि तुम कृतज्ञता दिखलाओ ।

    57. और हमने तुम पर बादलों की छाया की और तुम पर मन्न और सलवा उतारा - खाओ, जो अच्छी पाक चीजें हमने तुम्हें प्रदान की है ।  उन्होंने हमारा तो कुछ भी नहीं बिगाड़ा, बल्कि वे अपने ही ऊपर अत्याचार करते रहे ।

    58. और जबहमने कहा था, इस बस्ती में प्रवेश करो फिर उसमें से जहाँ से चाहो जी भर खाओ, और बस्ती के द्वार में सजदागुजार बनकर प्रवेश करो, और कहो, छूट है ।  हम तुम्हारी खताओं को क्षमा कर देंगे और अच्छे से अच्छा काम करने वालों पर हम और अधिक अनुग्रह करेंगे ।

    59. फिर जो बात उनसे कही गई थी जालिमों ने उसे दूसरी बात से बदल दिया ।  अन्ततः जालिमों पर हमने, जो अवज्ञा वे कर रहे थे उसके कारण, आकाश ये यातना उतारी ।

    60. और याद करो जब मूसा ने अपनी कौम के लिये पानी की प्रार्थना की तो हमने कहा, चट्टान पर अपनी लाठी मारो, तो उससे बाहर स्त्रोत फूट निकले और हर गिरोह ने अपना-अपना घाट जान लिया - खाओ और पियो अल्लाह का दिया और धरती में बिगाड़ फैलाते मत फिरो ।

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    Re: 2. सूरा अल - बकरा
    « Reply #6 on: September 27, 2007, 05:42:58 AM »
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  • 61. और याद करो जब तुमने कहा था, ऐ मूसा, हम एक ही प्रकार के खाने पर कदापि संतोष नहीं कर सकते, अतः हमारे लिए अपने रब से प्रार्थना करो कि वह हमाे वास्ते धरती की उपज से साग-पात और ककडियाँ और लहसुन और मसूर और प्याज निकाले ।  कहा (मूसा ने) क्या तुम जो घटिया चीज है उसको उससे बदलकर लेना चाहते हो जो उत्तम है ।  किसी नगर में उतरो, फिर जो कुछ तुमने माँगा है, तुम्हें मिल जाएगा – र उन पर अपमान और हीन दसा थोप दी गई, और वे अल्लाह के प्रकोप के भागी हुए ।  यह इलिए कि वे अल्लाह की आयतों का इनकार करते रहे और नबियों की अकारण हत्या करते थे ।  यह इसलिये कि उन्होंने अवज्ञा की और वे सीमा का उल्लंघन करते रहे ।

    62. निस्संदेह, ईमानवाले और जो यहूदी हुए और ईसाई और साबिई जो भी अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान लाया और अच्छा कर्म किया तो ऐसे लोगो का उनके अपने रब के पास (अच्छा) बदला है, उनको न तो कोई भय होगा और न वे शोकाकुल होंगे ।

    63. और याद करो जब हमने इस हाल में कि तूर (पर्वत) को तुम्हारे ऊपर ऊँचा कर रखा था, तुमसे दृढ़ वचन लिया था ।  जो चीज हमने तुम्हे दी है उसे मजबूती के साथ पकड़ो और जो कुछ उसमें है उसे याद रखो ताकि तुम बच सको ।

    64. फिर इसके पश्चात भी तुम फिर गए, तो यदि अल्लाह की कृपा और उसकी दयालुता तुम पर न  होती, तो तुम घाटे में पड़ गये होते ।

    65. और तुम उन लोगों के विषय में तो जानते ही हो जिन्होंने तुममें से सब्त के दिन के मामले में मर्यादा का उल्लंघन किया था, तो हमने उनसे कह दिया बन्दर हो जाओ, धिक्कारे और फिटकारे हुए ।

    66. फिर हमने इसे सामनेवालों और बाद के लोगों के लिये शिक्षा-सामग्री और डर रखने वालों के लिये नसीहत बनाकर छोड़ा ।

    67. और याद करो जब मूसा ने अपनी कौम से कहा निश्चय ही अल्लाह तुम्हें आदेश देता है कि एक गाय जबह करो ।  कहने लगे, क्या तुम हमसे परिहास करते हो ।  उसने कहा मैं इससे अल्लाह की पनाह माँगता हूँ कि जाहिल बनूँ ।

    68. बोले हमारे लिये अपने रब से निवेदन करो कि वह हम पर स्पष्ट कर दे कि वह (गाय) कौन-सी है ।  उसने कहा वह कहता है कि वह ऐसी गाय है जो न बूढी है, न बछिया, इनके बीच की रास है, तो जो तुम्हें हुक्म दिया जा रहा है, करो ।

    69. कहने लगे, हमारे लिये अपने रब से निवेदन करो कि वह हमें बता दे कि उसका रंग कैसा है ।  कहा, वह कहता है कि वह गाय सुनहरी है, गहरे चटकीले रंग की कि देखनेवालों को प्रसन्न कर देती है ।

    70. बोले, हमारे लिये अपने रब से निवेदन करो कि वह हमें बता दे कि वह कौन-सी है, गायों का निर्धारण हमारे लिये संदिग्ध हो रहा है ।  यदि अल्लाह ने चाहा तो हम अवश्य पता लगा लेंगे ।
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    « Reply #7 on: October 05, 2007, 01:39:36 AM »
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  • 71. उसने कहा वह कहता है कि वह ऐसी गाय है जो सधाई हुई नहीं है कि भूमि जोतती हो, और न वह खेत को पानी देती है, ठीक-ठाक है, उसमें किसी दूसरे रंग की मिलावट नहीं है ।  बोले अब तुमने ठीक बात बताई है ।  फिर उन्होंने उसे जब्ह किया, जबकि वे करना नहीं चाहते है ।

    72. और याद करो जब तुमने एक व्यक्ति की हत्या कर दी, फिर उस सिलसिले में तुमने टाल-मटोल से काम लिया – जबकि जिसको तुम छिपा रहे थे, अल्लाह उसे खोल देने वाला है ।

    73. --------तो हमने कहा उसे उसके एक हिस्से से मारो ।  इस प्रकार अल्लाह मुर्दों को जीवित करता है और तुम्हें अपनी निशानियाँ दिखाता है, ताकि तुम समझो ।

    74. फिर इसके पश्चात भी तुम्हारे दिल कठोर हो गए, तो वे पत्थरों की तरह हो गए बल्कि उनसे भी अधिक कठोर, क्योंकि कुछ पत्थर ऐसे भी होते है जिनसे नहरें फूट निकलती है, और उनमें से कुछ ऐसे भी होते है कि फट जाते है तो उनमें से पानी निकलने लगता है, और उनमें से कुछ ऐसे भी होते है जो अल्लाह के भय से गिर जाते है ।  और अल्लाह, जो कुछ तुम कर रहे हो, उससे बेखबर नहीं है ।

    75. तो क्या तुम इस लालच में हो कि वे तुम्हारी बात मान लेंगे, जबकि उनमें से कुछ लोग अल्लाह का कलाम सुनते रहे है, फिर उसे भली-भाँति समझ लेने के पश्चात जान-बूझकर उसमें परिवर्तन करते रहे ।

    76. और जब वे ईमान लाने वालों से मिलते है तो कहते है, हम भी ईमान रखते है, और जब आपस में एक-दूसरे से एकांत में मिलते है तो कहते है क्या तुम उन्हें वे बातें, जो अल्लाह ने तुम पर खोली, बता देते हो कि वे उनके द्वारा तुम्हारे रब के यहाँ हुज्जत में तुम्हारा मुकाबिला करे ।  तो क्या तुम समझते नहीं ।

    77. क्या वे जानते नहीं कि अल्लाह वह सब कुछ करता है, जो कुछ वे छिपाते और जो कुछ जाहिर करते है ।

    78. और उनमें सामान्य बेपढे भी है जिन्हें किताब का ज्ञान नहीं है, बस कुछ कामनाओं एवं आशाओं को धर्म जानते है, और वे तो बस अटकल से काम लेते है ।

    79. तो विनाश और तबाही है उन लोगों के लिये जो अपने हाथों से किताब लिखते है फिर कहते है यह अल्लाह की ओर से है, ताकि उसके द्घारा थोड़ा मूल्य प्राप्त कर ले ।  तो तबाही है उनके लिए उसके कारण जो उनके हाथों ने लिखा और तबाही है उनके लिए उसके कारण जो वे कमा रहे है ।

    80. वे कहते है जहन्नम की आग हमें नहीं छू सकती, हाँ कुछ गिनेचुने दिनों की बात और है ।  कहो क्या तुमने अल्लाह से कोई वचन ले रखा है फिर तो अल्ला हकदापि अपने वचन के विरुद्घ नहीं जा सकता ।  या तुम अल्लाह के जिम्मे डालकर ऐसी बात कहते हो जिसका तुम्हें ज्ञान नहीं ।
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    « Reply #8 on: April 22, 2008, 12:56:41 AM »
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  • 81. क्यों नही, जिसने भी कोई बदी कमाई और उसकी खताकारी ने उसे अपने घेरे में ले लिया, तो ऐसे ही लोग आग (जहन्नम) मेंपड़ने वाले है, वे उसी में ही रहेंगे ।

    82. रहे वे लोग जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किये, वही जनन्तवाले है, वे सदैव उसी में रहेंगे ।

    83. और याद करो जब इसराईल की संतान से हमने वचन लिया अल्लाह के अतिरिक्त किसी की बन्दगी न करोगे, और माँ-बाप के साथ और नातेदारों के साथ और अनाथों और मुहताजों के साथ अच्छा व्यवहार करोगे, और यह कि लोग लोगों से भली बात कहो और नमाज कायम करो और जकात दो ।  तो तुम फिर गये, बस तुममें बचे थोड़े ही, और तुम उपेक्षा की नीति ही अपनाए रहे ।

    84. और याद करो जब हमने तुमसे वचन लिया अपने खून न बहाओगे और न अपने लोगों को अपनी बस्तियों से निकालोगे ।  फिर तुमने इकरार किया और तुम स्वयं इसके गवाह हो ।

    85. फिर तुम वही हो कि अपने लोगों की हत्या करते हो और अपने ही एक गिरोह के लोगों को उनकी बस्तियों से निकालते हो, तुम गुनाह और ज्यादती के साथ उनके विरुद्घ एक-दूसरे के पृष्ठपोषक बन जाते है, और यदि वे बन्दी बनकर तुम्हारे पास आते है , तो उनकी रिहाई के लिये फिदए (अर्थदण्ढ) का लेन-देन करते हो जबकि उनके उनके घरों से निकालना ही तुम पर हराम है ।  तो क्या तुम किताब के एक हिस्से को मानते हो और एक को नहीं मानते ।  फिर तुममे जो सा करे उनका बदला इसके सिवा और क्या हो सकता है कि सांसारिक जीवन में अपमान हो ।  और कियामत के दिन से लोगों को कठोर से कठोर यातना की ओर फेर दिया जाएगा ।  अल्लाह उससे बेखबर नहीं है जो कुछ तुम कर रहे हो ।

    86. यही वे लोग है जो  आखिरत के बदले सांसारिक जीवन के खरीदार हुए, तो न उनकी यातना हल्की की जाएगी और न उन्हें को ई सहायता पहुँच सकेगी ।

    87. और हमने मूसा को किताब दी थी, और उसके पश्चात आगे पीछे निरन्तर रसूल भेजते रहे, और मरयमम के बेटे ईसा को खुली खुली निशानियाँ प्रदान की और पवित्र आत्मा के द्घारा उसे शक्ति प्रदान की, तो यही तो हुआ कि जब भी कोई रसूल तुम्हारे पास वह कुछ लेकर आया जो तुम्हे जी को पसंद न था, तो तुमअकड़ बैठे, तो एक गिरोह को तो तुमने झुठलाया और एक गिरोह को कत्ल करते रहे ।

    88. वे कहते है हमारे दिलों पर तो प्राकृतिक आवरण चढ़े है ।  नहीं, बल्कि नके इनकार के कारण अळ्लाह ने उन पर लानत की है, अतः वे ईमान थोड़े ही लाएँगे ।

    89. और जब  उनके पास एक किताब अल्लाह की ओर से आई है जो उसकी पुष्टि करती है जो उनके पास मौजूद है - और इससे पहले तो वे ना मानने वाले लोगों पर विजय पाने के इच्छुक रहे है - फिर जब वह चीज उनके पास  गई जिस वे पहचान भी गए है, तो उसका इनकार कर बैठे, तो अल्लाह की फिटकार इनकार करने वालों पर ।

    90. क्या ही बुरी चीज है जिसके बदले उन्होंने अपनी जानों का सौदा किया, अर्थात् जो कुछ अल्लाह ने उताहा है उसे सरकशी और इस अप्रियता का कारण नहीं मानते कि अल्लाह अपना फज्ल (कृपा) अपने बन्दों में से जिस पर चाहता है क्यों उतारता है, अतः वे प्रकोप पर प्रकोप के अधिकारी हो गए है र ऐसे इनकार करने वालों के लिये अपमानजनक यातना है ।

    « Last Edit: April 22, 2008, 01:02:06 AM by Jyoti Ravi Verma »
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