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Main Section => Inter Faith Interactions => पवित्र कुरान - Quran => Topic started by: JR on September 27, 2007, 05:50:06 AM

Title: 4. सूरा अन- निसा
Post by: JR on September 27, 2007, 05:50:06 AM
सूरा अन-निसा (मदीना में उतरी - आयतें - 177)

अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान है ।

1. ऐ लोगो ।  अपने रब का डर रखो, जिसने तुमको एक जीव से पैदा किया और उसी जाति का उसके लिये जोड़ा पैदा किया और उन दोनों से बहुत से पुरुष और स्त्रियाँ फैला दी ।  अल्लाह का डर रखो, जिसका वास्ता देकर तुम एक-दूसरे के सामने अपनी माँगे रखते हो ।  और नाते-रिश्तों का भी तुम्हें ख्याल रखना है ।  निएश्चय ही अल्लाह तुम्हारी निगरानी कर रहा है ।

2. और अनाथों को उनका माल दे दो और बुरी चीज को अच्छी चीज से न बदलो, और न उनके माल को अपने माल के साथ मिलाकर खा जाओ ।  यह बहुत बड़ा गुनाह है ।

3. और यदि तुम्हें आशंका हो कि तुम अनाथों (अनाथ लड़कियों) के प्रति न्याय न कर सकोगे तो उनमें से, जो तुम्हें पसन्द हो, दो-दो या तीन-तीन या चार-चार से विवाह कर लो ।  किन्तु यदि तुम्हें आशंका हो कि तुम उनके साथ एक जैसा व्यवहार न कर सकोगे, तो फिर एक ही पर बस करो, या उस स्त्री (लौंडी) पर जो तुम्हारे कब्जे में आई हो, उसी पर बस करो ।  इसमें तुम्हारे न्याय से न हटटने की अधिक संभावना है ।

4. और स्त्रियों को उनके महर खुशी से अदा करो ।  हाँ, यदि वे अपनी खुशी से तुम्हारे लिये छोड़ दे तो से तुम अच्छा पाक समझकर खाओ ।

5. और अपने माल, जिसे अल्लाह ने तुम्हारे लिये जीवन-यापन का साधन बनाया है, बेसमझ लोगों को न दो ।  उन्हें उसमें से खिलाते और पहनाते रहो और उनसे भली बात कहो ।