Join Sai Baba Announcement List


DOWNLOAD SAMARPAN - Nov 2018





Author Topic: माननीय श्री श्रीकृष्ण खापर्डे की शिरडी डायरी  (Read 84333 times)

0 Members and 1 Guest are viewing this topic.

Offline saisewika

  • Member
  • Posts: 1549
  • Blessings 33
ॐ साईं राम


२७ दिसँबर १९११-


मैं कल रात ठीक से नहीं सोया, किन्तु प्रातः जल्दी उठ गया।  प्रार्थना की,  स्नान किया और बाकी दिनों से जल्दी तैयार हो गया।  दोपहर की आरती के बाद लगभग तीन बजे मैंने नाश्ता किया और फिर लेट गया और मुझे अच्छी नींद आई।  दोपहर में बहुत से लोगों ने साईं महाराज से मिलने का प्रयास किया लेकिन उनकी बात करने की इच्छा नहीं थी, अतः उन्होंने सभी को वापस भेज दिया।  इसीलिए मैं नहीं गया और पढने के लिए बैठा।


हम सब ने सँध्याकाल के समय उनके दर्शन किए जब वे अपनी सैर के लिए निकले और दोबारा शेज आरती पर | आज भीष्म के भजन अन्य लोगों के द्वारा इसमें गाने के कारण बहुत लम्बे चले | एक मुसलमान नवयुवक ने अपने गीत से मुझे मुग्ध कर दिया | फिर दीक्षित के द्वारा रामायण का पाठ हुआ।


जय साईं राम

Offline saisewika

  • Member
  • Posts: 1549
  • Blessings 33
ॐ साईं राम


२८ दिसँबर १९११-


प्रातः मेरे प्रार्थना करने के बाद , डाक्टर हाटे और श्री आर.डी.मोरेगावँकर को वापस जाने की अनुमति मिल गयी | इसीलिए वे लोग रवाना हो गए और उसके तुरंत बाद नानासाहेब चाँदोरकर, सी. वी. वैद्य और श्री नाटेकर 'हमसा' आए।  मैं श्री नाटेकर के साथ बहुत देर तक बातचीत करता रहा।  और फिर नानासाहेब और वैद्य से मिलने गया जो नजदीक ही एक तम्बू में ठहरे हैं।  'हमसा' ने हिमालय में बहुत समय तक यात्रा की हैं वे एक दीक्षित और स्वीकृत शिष्य हैं।  इसीलिए उनका संभाषण बहुत ही शिक्षाप्रद है।   सी. वी. वैद्य को एक आँख में कुछ परेशानी है।  वह बहुत लाल हो गयी हैं।  श्री चाँदोरकर हमेशा की तरह प्रसन्न चित्त हैं।


हम दोपहर की आरती में उपस्थित हुए।  त्रियम्बक राव, जिन्हें मारुती कहा जाता है बहुत गुस्से में हैं।  आज वह पूजा में उपस्थित नहीं हुए और काफी रूष्ट हैं।  माधव राव देशपांडे आज बेहतर हैं।  वे लगभग पूरा दिन खड़े ही रहे।  दीक्षित भी अतिथियों का ध्यान बडे परिश्रम से रख रहे हैं, जो बहुत भारी संख्या में हैं।  श्री चांदोरकर आज कल्याण गए और बोले कि वे अगले रविवार को लौटेंगे। 


मैं दोपहर में हमसा से बातें करने बैठा और लगभग साईं महाराज के सैर पर जाने के समय दर्शन करने तक बैठा रहा।  आज उन्होंने किसी को भी वहाँ बैठने की अनुमति नहीं दी और हर किसी को ' उदी ' देकर भेज दिया।  हमसा राधाकृष्णामाई के पास गए और शाम वही बिताई।  वे बहुत अच्छा गाती हैं | और बहुत मधुर भजन करती है।  हमने भीष्म के भजन सुने जिसमें कई लोगों ने भाग लिया और फिर दीक्षित की रामायण हुई।  मौरसी से दादा गोले यहाँ आए हैं।  मेरे एक मुवक्किल रामाराव भी यहाँ हैं।  वे मुझसे एक अपील लिखवाना चाहते हैं , उसके लिए बिलकुल समय नहीं हैं।


जय साईं राम

Offline saisewika

  • Member
  • Posts: 1549
  • Blessings 33
ॐ साईं राम


२८ दिसँबर १९११-


मुझे उठने में थोड़ी देरी हुई और फिर श्री नाटेकर , जिन्हें हम 'हमसा ' और स्वामी कहते हैं , के साथ मैं बातचीत करने के लिए बैठ गया।  मैं प्रार्थना वगैरह समय पर समाप्त नहीं कर पाया अतः साईं महाराज के बाहर जाते हुए दर्शन भी नहीं कर पाया।  जब वे मस्जिद लौटे तब मैंने उनके दर्शन किए।   हमसा मेरे साथ थे।  साईं महाराज बहुत अच्छी चित्तवृत्ति में थे और उन्होंने एक कहानी शुरू की जो कि बहुत बहुत प्रेरक थी लेकिन दुर्भाग्यवश त्रिम्बकराव, जिसे हम मारुति कहते हैं,  ने अत्यंत मूर्खतापूर्वक बीच में ही टोक दिया और साईं महाराज ने उसके बाद विषय बदल दिया।  उन्होंने कहा कि एक नौजवान था,  जो भूखा था और वह लगभग हर प्रकार से जरूरतमंद था।  वह नौजवान आदमी इधर- उधर घूमने के बाद साईं साहेब के पिता के घर गया और जहां उसका बहुत अच्छी तरह सत्कार हुआ और उसे जो भी चाहिए था वह दिया गया।  नौजवान ने वहाँ कुछ समय बिताया,  तँदरूस्त हो गया, कुछ चीजे जमा कर ली, गहने चुराए, और इन सब की एक पोटली बना कर जहां से आया था वहीं लौट जाना चाहा।  वास्तव में वह साईं साहेब के पिता के घर में ही पैदा हुआ था और वहीं का था लेकिन इस बात को वह नहीं जानता था।  इस लड़के ने पोटली को गली के एक कोने में डाल दिया लेकिन इससे पहले कि वह बाहर निकले , देख लिया गया।  इसी लिए उसे जाना टालना पडा।  इस बीच में चोर उसकी पोटली से गहने ले गए।  ठीक निकलने से पहले उसने उन्हें गायब पाया इसी किए वह पुनः घर में ही रुक गया और कुछ और गहने इकठ्ठे किए और फिर चल पडा।  लेकिन रास्ते में लोगो ने उसे उन चीज़ों को चुराने के संदेह में कैद कर लिया। इस मोड़ पर आकर कहानी का विषय बदल गया और वह अचानक ही रुक गयी |


दोपहर की आरती से लौटने के बाद मैंने हमसा से मेरे साथ भोजन करने का आग्रह किया और उन्होंने मेरा निमंत्रण स्वीकार कर लिया | वह बहुत ही उम्दा आदमी हैं , और खाना खाने के बाद उन्होंने हमें हिमालय के अपने भ्रमण के बारे में बताया, कि वह किस तरह मानसरोवर पहुँचे , किस तरह उन्होंने वहाँ एक उपनिषद का गायन सुना , किस तरह वह पद चिन्हों के पीछे गए , किस तरह वह एक गुफा में पहुँचे , एक महात्मा को देखा,  किस तरह उस महात्मा ने उसी दिन बंबई में  तिलक को दोषी करार दिया गया, के बारे में बात की , किस तरह उस महात्मा ने उन्हें अपने भाई ( बड़े सहपाठी )से मिलवाया , किस तरह आखिरकार वह अपने गुरु से मिले और ' कृतार्थ ' हुए


बाद में हम साईं बाबा के पास गए और मस्जिद में उनके दर्शन किए।  उन्होंने आज दोपहर को मेरे पास सन्देश भेजा कि मुझे यहाँ और दो महीने रुकना पडेगा।  दोपहर में उन्होंने अपने सन्देश की पुष्टि की और फिर कहा कि उनकी ' उदी ' में अत्याधिक आध्यात्मिक गुण है | उन्होंने मेरी पत्नी से कहा कि गवर्नर एक सैनिक के साथ आया और साईं महाराज से उसकी अनबन हुई और उन्होंने उसे बाहर निकाल दिया, और आखिरकार गवर्नर को उन्होंने शाँत कर दिया।  भाषा अत्यंत संकेतात्मक है इसीलिए उसकी व्याख्या करना कठिन है।  शाम को हम शेज आरती में उपस्थित हुए और उसके बाद भीष्म के भजन और दीक्षित की रामायण हुई।


जय साईं राम

Offline saisewika

  • Member
  • Posts: 1549
  • Blessings 33
ॐ साईं राम


३० दिसँबर १९११-


प्रातः प्रार्थना के बाद मैंने दो पत्र लिखे,  एक अपने पुत्र बाबा और दूसरा भाऊ दुर्रानी को , उन्हें यह बतलाने के लिए कि मेरा और दो महीने तक लौटना नहीं हो सकेगा।  श्री नाटेकर राधाकृष्णाबाई के पास गये।  ऐसा लगता है कि वे कहीं बाहर गई थी। वे वहाँ बैठे और उन्होंने इतनी शाँति और अच्छा अनुभव किया कि वे सारा दिन वहीं बैठे रहे।  मैंने सुबह रामायण का पाठ किया और दोपहर को भागवत सुनी और शाम ढलने से पहले साईं महाराज के पास गया | उन्होंने मेरे साथ बहुत कृपा पूर्ण व्यवहार किया,  मुझे मेरे नाम से पुकारा और सुनियोजित तरीके से सब्र का प्रभाव बढाने वाली एक छोटी सी कहानी  सुनाई।  उन्होंने कहा कि एक बार घूमते हुए वे औरंगाबाद गए और एक मस्जिद में बैठे हुए एक फकीर को देखा।  वहाँ इमली का बहुत उंचा वृक्ष था।  फकीर ने पहले उन्हें मस्जिद में घुसने नहीं दिया लेकिन अँततः उनके वहाँ रहने के लिए राजी हो गया।  वह फकीर मीठी रोटी के टुकड़े पर पूरी तरह निर्भर था जो उसे एक बूढी औरत दोपहर में देती थी।  साईं महाराज ने उसके लिए भिक्षा मागंने के लिए स्वँय इच्छा प्रकट की और बारह साल तक उसे ढेर सारा खाना देते रहे और फिर वहां से जाने की सोची।  बूढ़े फकीर ने उनकी जुदाई पर आँसू बहाए और उसको कोमल शब्दों में दिलासा देनी पढ़ी।  साईं महाराज उसके पास चार साल बाद आए और उसे वहां ठीक ठाक पाया।  वह फकीर फिर कुछ साल पहले यहाँ आया और चावड़ी में ठहरा।


मोथा बाबा फकीर ने उसकी देखभाल की।  जो भी कहा गया उससे मैंने अनुमान लगाया कि साईं बाबा बारह साल पहले औरंगाबाद के फकीर को दीक्षा देने के लिए ठहरे और उसे आध्यात्मिक जगत में भली भाँति स्थापित किया | रात को भीष्म के भजन और दीक्षित की रामायण हुई।  नाटेकर भी वहां आये और उन्होंने भी एक अध्याय पढ़ा।


जय साईं राम

Offline saisewika

  • Member
  • Posts: 1549
  • Blessings 33
ॐ साईं राम


३१ दिसँबर १९११-


प्रातः मैं बहुत जल्दी उठ गया, प्रार्थना की, और बरामदे में टहल ही ,रहा था तब हमसा नीचे आये और कहा कि वह ठीक से सो नहीं पाये और घूमते रहे, फिर खंडोबा मंदिर गये,  फिर वह उस घर में गए जहाँ अब राधाकृष्णाबाई रहती हैं, वह वहां उनकी प्रार्थना सुनने की आशा से गये थे लेकिन वहां दिन शुरू होने का कोई चिन्ह नहीं था, इसलिए वह गाँव के फाटक तक घूमने के लिए गए।   बाद में वे फिर से राधाकृष्णाबाई से मिले। उन्होंने ने उनकी सहजता से सहायता की।  फिर उन्होंने स्नान किया और साईं नाथ महाराज के द्वारा उन्हें भेजे गए प्रसाद में से नाश्ता किया।  मैं उनके साथ खड़े खड़े बात करता रहा।  वे फिर से राधाकृष्णाबाई को अलविदा कहने गये और उन्होंने उन्हें प्रसाद के रूप में धोती और कमीज़ दी|  उसके बाद वह तीन अन्य युवकों के साथ, बंबई लौट गये।  उनमें से एक का नाम रेगे था।  इन सब कारणों से मुझे हर चीज़ में देर हुई,  और फिर नाई ने और भी देर करा दी।


मैंने साईं बाबा के बाहर जाते हुए दर्शन किए लेकिन उन्होंने किसी को भी नज़दीक आकर प्रणाम नहीं करने दिया।  बाद में मैं मस्जिद गया और वहां पर दोपहर की पूजा नें सम्मलित होने के लिए वहीं बैठा रहा।  आरती के समय सभी पुरुषों को चबूतरे से नीचे खुले आँगन में खडा होना पडा और सारी मस्जिद महिलाओं के लिए छोड दी।  व्यवस्था बहुत अच्छी थी।  लौटने पर मैं कोपरगावं के मामलेदार से बात करने बैठा जो यहाँ आये हुए हैं।  बाद में डहाणु के मामलेदार श्री देव आए।


नानासाहेब चांदोरकर आरती से पहले आए।  हमारा नाश्ता रोज़ की तरह लगभग दो बजे हुआ।  इसके बाद मैं आज मिले हुए समाचार पत्रों को पढने बैठा।  शाम ढलने पर मैं मस्जिद गया लेकिन साईं महाराज ने जल्दी ही 'उदी' दे दी।  इसीलिये मैं नयी इमारत के स्तँभ के नीचे की चौकी पर गुजराथी शास्त्री, जो गोवर्धनदास के साथ हैं, के साथ बातचीत करने बैठा।  हमने साईं नाथ महाराज को हर रोज़ की तरह जब वो सैर पर निकले प्रणाम किया और बाद में शेज आरती के समय।  उसके बाद हमने भीष्म के भजन सुने और दीक्षित के रामायण।


जय साईं राम

Offline saisewika

  • Member
  • Posts: 1549
  • Blessings 33
ॐ साईं राम


१ जनवरी १९१२-


प्रातः मैं जल्दी उठ गया और काँकड़ आरती के लिए चावड़ी गया।  मैंने सर्वप्रथम साईं महाराज का मुखमँडल देखा और वह मधुर लावण्य से युक्त था।  मैं बहुत ही आनन्दित हुआ।  हमारे वाड़े में लौटने के बाद मैंने उपासनी के भाई को देखा। वह धूलिया से आए हैं।  मैंने पहले उन्हें पुणे और अमरावती में देखा था।  वे साईं महाराज के दर्शन के लिए गए और उन्हें साईं महाराज ने कहा कि लोग अपने साथ पूर्व जन्म के सँबँध लेकर आते हैं जिनके फलस्वरूप वे अब मिलते हैं | उन्होंने पूर्व जन्म की एक कहानी सुनाई जिसमें वे, बापू साहेब जोग , दादा केलकर , माधवराव देशपांडे , मैं और दीक्षित सहयोगी थे और किसी बंद गली में रहते थे।  वहां उनके मुर्शाद थे। उन्होंने फिर से हमें एक साथ मिलवाया है।


मैंने उन्हें बाहर जाते हुए देखा फिर रामायण पढनें बैठा।  दोपहर की आरती के समय मैंने फिर से उनके दर्शन किए।  वे मेरे प्रति बहुत कृपालु थे।  आज दीक्षित ने ' नैवेद्य ' भेंट किया और हम सब ने उनके साथ भोजन किया।  मैं वैद्य , नाना साहेव चांदोरकर , डहाणु के मामलेदार श्री देव और अन्य लोगों के साथ बैठा।  मैं फिर से पाठ करने बैठा और फिर मस्जिद में साईं महाराज के दर्शन के लिए गया।  उन्होंने पहले मुझे सब लोगों के साथ ही बर्खास्त कर दिया , लेकिन फिर से यह कह कर बुला लिया कि मैं ही भागने के लिए उत्सुक था।  शाम को हमने चावड़ी के सामने उनके दर्शन किए, और रात को भीष्म के भजन और दीक्षित की रामायण हुई।  बाला शिम्पी भजन में आए।


जय साईं राम

Offline saisewika

  • Member
  • Posts: 1549
  • Blessings 33
ॐ साईं राम


२ जनवरी १९१२-


प्रातः मैं बहुत जल्दी उठ गया।  उपासनी के भाई जो कल आए थे, आज दिन निकलने से पहले चले गए।  मेरे प्रार्थना समाप्त करने के बाद काका महाजनी, अत्रे और अन्य लोग गए चले।  कुछ और लोग बाद में गए।  सी.वी.वैद्य अन्य तीन सज्जनों के साथ दोपहर की आरती के बाद गए।  नाना साहेब चाँदोरकर ने धर्नुमास का अनुष्ठान किया जिसमें सभी आमंत्रित थे।  भोजन के बाद सी.वी .वैद्य गए , कोपरगाँव के मामलेदार मानकर और डहाणु के मामलेदार देव ने भी फिर प्रस्थान किया | बाद में सूर्यास्त के बाद नाना साहेब चाँदोरकर अपने पूरे परिवार सहित चले गए। इसीलिए वाडा जो पिछले कुछ दिनों में भरा और बहुत खुशहाल दिखलाई पड़ता था अब खाली सा लगता हैं और हमें साथ की कमी महसूस होती है।


हमने साईं महाराज के जब वे सैर के लिए बाहर निकले तब दर्शन किए और फिर से शेज आरती पर।  मेरा पुत्र बाबा और गोपालराव दोरले आज सुबह मुझे अमरावती ले जाने के लिए आए।  मैनें कहा कि मेरा जाना साईं महाराज की अनुमति पर निर्भर है।  वे साईं महाराज से मिले और कहा कि आज्ञा मिलने में कोई कठिनाई नहीं है।  भीष्म आज स्वस्थ नहीं हैं , इसलिए भजन नहीं हुए।  राम मारुति ने आज जाना चाहा लेकिन साईं महाराज ने उसे रोक लिया | रात में रामायण और भागवत का पाठ हुआ।


जय साईं राम

Offline saisewika

  • Member
  • Posts: 1549
  • Blessings 33
ॐ साईं राम


३ जनवरी १९१२-


सुबह जल्दी उठ गया , काकड़ आरती में उपस्थित हुआ और फिर अपनी प्रार्थना समाप्त की   मेरा पुत्र बाबा और गोपालराव दोरले साईं महाराज के पास गए और अमरावती लौटने की आज्ञा मांगी।   साईं महाराज ने जवाब दिया कि सभी वापस लौट सकते हैं।   तब मेरा पुत्र बाबा और गोपालराव दोरले अत्यंत प्रसन्नता से लौटे।   उन्होंने मुझे बताया इसीलिए मैं माधवराव देशपांडे के साथ गया और साईं महाराज ने अनुमति की पुष्टि की,  लेकिन जब हम लौट रहे थे वे हमें खिंड के पास ले गए और बोले कि हम कल जा सकते हैं।


जब वे बाहर जा रहे थे तब मैंने उनके दर्शन किए और फिर जब वे मस्जिद लौटे।  माधव राव ने मेरे प्रस्थान का विषय छेड़ा और साईं महाराज ने जवाब दिया कि मेरा घर यहाँ और अमरावती दोनों जगह है।  और मैं जहां चाहूँ वहाँ रह सकता हूँ और चाहूँ तो अमरावती कभी भी वापिस ना लौटूँ।   इससे मामला सुलझ गया, ऐसा मुझे लगा,  और मैंने अपने पुत्र बाबा और गोपालराव दोरलेको अमरावती लौट जाने को कहा।  इसीलिए वे तैयार हुए और विदा कहने के लिए गए, और साईं महाराज का आशीर्वाद प्राप्त किया।  उन्होंने उनको कल प्रस्थान करने  के किए कहा।   दोपहर में उन्होंने कहा कि वो मेरे पूरे परिवार को कल लौटने की अनुमति देगें।


मेघा ने गायत्री पुरस्चरण के अपने अनुष्ठान की समाप्ति पर कुछ ब्राहमणों को भोजन कराया।  |हमने अपना भोजन उसी के साथ किया।  भोजन साठेवाड़ा में परोसा गया।  दोपहर में मैंने साईं महाराज को , मस्जिद में और जब वे रोजाना की तरह सैर पर निकले,  दोनों बार देखा।  वे बहुत ही प्रसन्नचित्त थे और एक ही साथ हंस भी रहे थे और कटु शब्दों का प्रयोग भी कर रहे थे।  रात को भीष्म के भजन और दीक्षित की रामायण हुई, जिसके दो अध्याय पढे गए।  तात्या पाटिल के पिता शाम को चल बसे।


जय साईं राम

Offline saisewika

  • Member
  • Posts: 1549
  • Blessings 33
ॐ साईं राम


४ जनवरी १९१२-


आज सुबह जल्दी उठा, प्रार्थना की और अपने पुत्र बाबा और गोपालराव दोरले को साईं महाराज के पास जा कर अमरावती लौटने की अनुमति लेने को कहा, परन्तु मेरी पत्नी ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि आज पौष पू्र्णिमा है और कुल देवता की स्तुति का दिन है, अतः प्रस्थान के लिए अनुमति नहीं लेनी चाहिए। मैने हमेशा की तरह साईं महाराज को मस्जिद से बाहर जाते और वापिस आते हुए देखा। मध्य का समय मैंने रामायण पढते हुए बिताया। मध्यान आरती के बाद हम मस्जिद से वापिस लौटे और खाना खाने के बाद बापू साहेब जोग के साथ बैठ कर फिर से रामायण पढी। ५ बजे के बाद मैं फिर से मस्जिद गया और साईं महाराज को आँगन में घूमते हुए पाया। मेरी पत्नि भी वहाँ आई। कुछ समय के बाद बाबा अपने आसन पर विराजे, हम भी उनके पास आ बैठे। दीक्षित साहेब और उनकी पत्नि भी आए।


तब साईं महाराज ने एक कहानी सुनाई। उन्होंने कहा कि एक महल में एक राजकुमारी रहती थी। एक "मँग" ने उससे शरण माँगी । उसकी भाभी जो उस समय वहीं थी, उसने "मँग" को मना किया। वह मायूस हो कर अपनी पत्नि के साथ अपने गाँव लौट रहा था तब उसे अल्लाह मियाँ मिले। उसने उन्हें अपनी कहानी सुनाई कि किस प्रकार गरीबी से तँग आकर उसने राजकुमारी से शरण माँगी पर ठुकरा दिया गया। अल्लाह मियाँ ने उसे फिर से उसी राजकुमारी के पास जा कर पुनः शरण माँगने को कहा। उसने ऐसा ही किया और इस बार उसे महल में एक परिवार के सदस्य की तरह रहने की अनुमति मिली। ६ मास तक महल में ही रह कर उसने सब सुविधाऐं भोगी, किन्तु फिर सोने के लालच में उसने एक कुल्हाडी से राजकुमारी की हत्या कर दी। बहुत बडी सँख्या में लोग एक स्थान पर एकत्रित हुए और पँचायत की। "मँग" ने अपना गुनाह स्वीकार कर लिया। जब मुकदमा राजा के पास लाया गया तब अल्लाह मियाँ ने राजा को "मँग" को छोड देने को कहा। राजा ने अल्लाह मियाँ की बात मान कर उसे जाने दिया। जिस राजकुमारी की हत्या हुई थी वह "मँग" के घर पुत्री बन कर पैदा हुई। एक बार फिर "मँग" को राज महल में रहने की अनुमति मिली और वह १२ साल तक महल में सभी सुविधाऐं भोगता हुआ रहा।


तब अल्लाह मियाँ ने राजा को "मँग" से राजकुमारी की हत्या का बदला लेने के लिए प्रेरित किया। "मँग" उसी प्रकार मारा गया जिस प्रकार उसने राजकुमारी की हत्या की थी। "मँग" की विधवा पत्नि इसे विधाता का न्याय समझ कर गाँव लौट गई। राजकुमारी जो "मँग" की पुत्री बन कर पैदा हुई थी, उसने वह सब प्राप्त किया जो पिछले जन्म में उसका ही था और प्रसन्नता पूर्वक रहने लगी। इस प्रकार ईश्वर के कार्य और न्याय की स्थाप्ना हुई।


रात्रि में शेज आरती, भीष्म के भजन और दीक्षित की रामायण हुई। जब साईं महाराज शेज आरती के लिए चावडी के जुलूस के साथ जा रहे थे तब राम मारूति ने उन्हें प्रणाम किया।


जय साईं राम

Offline saisewika

  • Member
  • Posts: 1549
  • Blessings 33
ॐ साईं राम


५ जनवरी १९१२-


यद्यपि मैं रात को ठीक से नहीं सो पाया परन्तु सुबह जल्दी उठ गया। मैं काँकड आरती में सम्मिलित हुआ। साईं महाराज प्रसन्न चित्त थे। मेरा पुत्र बाबा और गोपालराव दोरले उनके पास गए। उन दोनो को देखते ही साईं महाराज ने कहा " जाओ "। इसे शिरडी छोडने की अनुमति समझ कर दोनो ने बाला भाऊ का ताँगा किया और चले गए। मैंने प्रार्थना की , साईं महाराज को बाहर जाते हुए और जब वे लौटे तब आते हुए देखा। वे अत्यँत प्रसन्नचित्त थे। बहुत से लोग आए। दोपहर की आरती और भोजन के बाद मैं कुछ देर लेटा और दीक्षित की रामायण सुनी। वहाँ उपासनी, भीष्म और माधवराव भी उपस्थित थे।


लगभग शाम पाँच बजे मैं भीष्म और अपने पुत्र बलवँत के साथ साईं महाराज के दर्शन के लिए गया। उन्होने बताया कि किस प्रकार उनकी तबीयत ठीक नहीं थी और मजाक में ही अपनी बीमारी के बारे में बताया। बाला भाऊ जोशी भुना चना लाए थे। साईं महाराज ने थोडा खाया और बाकी बाँट दिया। फिर जब साईं महाराज घूमने निकले तब हम चावडी के पास खडे हुए। तदन्तर हमने वाडे में ही आरती, भीष्म के भजन और दीक्षित की रामायण सुनी। उन्होंने दो अध्याय पढे। आज धूलिया से कुछ लोग आए और लौट गए।


जय साईं राम

Offline saisewika

  • Member
  • Posts: 1549
  • Blessings 33
ॐ साईं राम


६ जनवरी १९१२-


मैं प्रातः दिन चढने के पूर्व ही उठ गया। रोज़ की भाँति प्रार्थना की और साईं महाराज को बाहर जाते हुए देखा। जब वे चले गए तो मैं बाला साहेब भाटे के पास गया और उनसे रँगनाथ स्वामी की मराठी में रचित योग वशिष्ठ की प्रति माँगी। परन्तु वापिस आ कर मैंने रामायण ही पढी। हम सभी ने दोपहर की आरती की और हमेशा की तरह भोजन किया। मैं दोपहर को लेटना नहीं चाहता था, किंतु शीघ्र ही नींद ने मुझे घेर लिया और मैं लगभग दो घँटे सोया।


दीक्षित ने रामायण पढी। बाद में मैं मस्जिद गया और साईं महाराज के दर्शन किए। वे प्रसन्न चित्त थे और किसी विषय पर चर्चा हो रही थी।


शाम को रोज़ की भाँति वाड़े में आरती और रात को चावडी में शेज आरती में सम्मिलित हुआ। आझ साईं महाराज अत्याधिक प्रसन्न थे। उन्होंने मेधा की ओर देख कर कुछ गुप्त आध्यात्मिक ( mystic ) सँकेत किए, जिसे यौगिक भाषा में "दृष्टिपात" कहा जाता है। धूलिया से एक ज्योतिषी आए हैं और उपासनी के साथ वाड़े में अतिथि बन कर ठहरे हैं। रात को भीष्म के भजन और दीक्षित की रामायण सुनी।


जय साईं राम

Offline saisewika

  • Member
  • Posts: 1549
  • Blessings 33
ॐ साईं राम


७ जनवरी १९१२-


प्रातः मैं जल्दी उठा और काँकड आरती में सम्मिलित हुआ। साईं महाराज अत्याधिक प्रसन्न थे और यौगिक दृष्टि से निहार रहे थे। मेरा लगभग पूरा दिन एक प्रकार के परमानन्द में बीता। उसके बाद मैने, बापू साहेब जोग और उपासनी ने रँगनाथ की योगवशिष्ट पढी। हमने साईं महाराज को बाहर जाते हुए देखा और फिर कुछ युवा यवनों के साथ बैठकर बातचीत की जो मस्जिद में आए थे। उनमें से एक ने कुरान की कुछ आयतें भी सुनाई। दोपहर की आरती कुछ देर से हुई।

साईं महाराज ने एक बहुत अच्छी कहानी सुनाई उन्होंने कहा उनका एक बहुत अच्छा कुआँ था। उसका पानी हल्के नीले रँग का था और अथाह था। चार "मोथ" भी उसे खाली नहीं कर सकते थे और उसके पानी से सिंचित फल असाधारण रूप से ताजे और स्वादिष्ट थे। इसके बाद की कहानी उन्होंने नहीं सुनाई।

दोपहर को दीक्षित ने रामायण के दो अध्याय पडे। उपासनी, मैं और राम मारूति वहीं थे। फिर हम साईं महाराज के पास गए और घूमने के लिए भी उनके साथ गए। अँधरा हो चला थे। वह शायद क्रोधित थ या उन्होंने दिखाया कि वह लकडी काटने वाली स्त्री से नाराज़ हैं। रात को भीष्म के भजन और दीक्षित के भजन सुने।


जय साईं राम

Offline saisewika

  • Member
  • Posts: 1549
  • Blessings 33
ॐ साईं राम


८ जनवरी १९१२ सोमवार-


आज सुबह उठा तो लगा कि अभी तो बहुत जल्दी है इसलिए फिर से सो गया और कुछ ज़्यादा ही सोया रहा। फलतः पूरी दिनचर्या प्रभावित हुई। प्रार्थना के बाद मैंने बापू साहेब जोग, उपासनी, राम मारूति और माधवराव देशपाँडे के साथ रँगनाथ की योग वशिष्ट पढी। हमने साईं महाराज को बाहर जाते हुए और फिर वापिस आते हुए देखा।


दोपहर की आरती के बाद साईं महाराज अचानक अत्याधिक क्रोधित लगे। वे उग्र भाषा का प्रयोग भी कर रहे थे। ऐसा लगता है कि यहाँ प्लेग के फिर से फैलने की सँभावना है और साईं महाराज उसे ही रोकने का प्रयास कर रहे हैं। भोजन के बाद हम कुछ देर वार्तालाप करते रहे। मैंने थोडी देर रामायण पढी। फिर कोपरगाँव के मामलेदार श्री सेन धूलिया के उप जिलाधीश श्री धूलिया के साथ आए। रामायण का एक अध्याय पढने के बाद हम साईं महाराज के दर्शन के लिए गए। साईं महाराज रोज़ की भाँति सैर के लिए गए थे, अतः हमने काफी देर उनका इंतज़ार किया। हम शेज आरती में सम्मिलित हुए। रात को रोज़ की भाँति भजन और रामायण हुई।

जय साईं राम

Offline saisewika

  • Member
  • Posts: 1549
  • Blessings 33
ॐ साईं राम


९ जनवरी १९१२, मँगलवार-


मैं प्रातः जल्दी उठा, काँकड आरती में सम्मिलित हुआ, और प्रार्थना समाप्त करने के बाद स्नान किया।  तदन्तर बापू साहेब जोग, उपासनी और राम मारूति के साथ योगवशिष्ठ का पठन किया।  हमने साईं महाराज के बाहर जाते हुए और फिर वापिस मस्जिद में लौटने पर दर्शन किए। वहाँ पिम्पल नाम के एक सज्जन जो अमलवेद से हैं, एक साथी के साथ आए हैं।  


दोपहर की आरती के बाद हमने भोजन किया,  और मैं आज की डाक में मिले पत्र पढने लगा।  यहाँ तीन समाचार पत्र भी हैं। अतः पढने के लिए काफी सामग्री है।  दीक्षित ने शाम को ५ बजे रामायण पढी और फिर हम मस्जिद गए और साईं महाराज को सैर के लिए बाहर जाते समय प्रणाम किया।  रात्रि में हमेशा की तरह भीष्म के भजन और दीक्षित की रामायण हुई।


जय साईं राम
« Last Edit: May 03, 2012, 08:54:40 PM by saisewika »

Offline saisewika

  • Member
  • Posts: 1549
  • Blessings 33
ॐ साईं राम


१० जनवरी १९१२-


आज सुबह बहुत जल्दी उठ गया। दिन चढने के पूर्व ही मैंने प्रार्थना और सभी कार्य पूर्ण कर लिए। बाद में मस्जिद गया और साईं महाराज के बाहर जाते हुए और वापिस आते हुए दोनो बार दर्शन किए। आज एक मारवाडी वहाँ आया और उसने अपना एक स्वप्न सुनाया। उसने कहा कि स्वप्न में उसने देखा कि उसे बहुत सी चाँदी और सोने की छडे मिली । जब वह उन्हें गिन रहा था तब उसकी नींद खुल गई। साईं महाराज ने कहा कि स्वप्न दर्शाता है कि किसी बडे व्यक्ति की मृत्यु होने वाली है।


जय साईं राम

 


Facebook Comments