ॐ साईं राम
२८ दिसँबर १९११-
मुझे उठने में थोड़ी देरी हुई और फिर श्री नाटेकर , जिन्हें हम 'हमसा ' और स्वामी कहते हैं , के साथ मैं बातचीत करने के लिए बैठ गया। मैं प्रार्थना वगैरह समय पर समाप्त नहीं कर पाया अतः साईं महाराज के बाहर जाते हुए दर्शन भी नहीं कर पाया। जब वे मस्जिद लौटे तब मैंने उनके दर्शन किए। हमसा मेरे साथ थे। साईं महाराज बहुत अच्छी चित्तवृत्ति में थे और उन्होंने एक कहानी शुरू की जो कि बहुत बहुत प्रेरक थी लेकिन दुर्भाग्यवश त्रिम्बकराव, जिसे हम मारुति कहते हैं, ने अत्यंत मूर्खतापूर्वक बीच में ही टोक दिया और साईं महाराज ने उसके बाद विषय बदल दिया। उन्होंने कहा कि एक नौजवान था, जो भूखा था और वह लगभग हर प्रकार से जरूरतमंद था। वह नौजवान आदमी इधर- उधर घूमने के बाद साईं साहेब के पिता के घर गया और जहां उसका बहुत अच्छी तरह सत्कार हुआ और उसे जो भी चाहिए था वह दिया गया। नौजवान ने वहाँ कुछ समय बिताया, तँदरूस्त हो गया, कुछ चीजे जमा कर ली, गहने चुराए, और इन सब की एक पोटली बना कर जहां से आया था वहीं लौट जाना चाहा। वास्तव में वह साईं साहेब के पिता के घर में ही पैदा हुआ था और वहीं का था लेकिन इस बात को वह नहीं जानता था। इस लड़के ने पोटली को गली के एक कोने में डाल दिया लेकिन इससे पहले कि वह बाहर निकले , देख लिया गया। इसी लिए उसे जाना टालना पडा। इस बीच में चोर उसकी पोटली से गहने ले गए। ठीक निकलने से पहले उसने उन्हें गायब पाया इसी किए वह पुनः घर में ही रुक गया और कुछ और गहने इकठ्ठे किए और फिर चल पडा। लेकिन रास्ते में लोगो ने उसे उन चीज़ों को चुराने के संदेह में कैद कर लिया। इस मोड़ पर आकर कहानी का विषय बदल गया और वह अचानक ही रुक गयी |
दोपहर की आरती से लौटने के बाद मैंने हमसा से मेरे साथ भोजन करने का आग्रह किया और उन्होंने मेरा निमंत्रण स्वीकार कर लिया | वह बहुत ही उम्दा आदमी हैं , और खाना खाने के बाद उन्होंने हमें हिमालय के अपने भ्रमण के बारे में बताया, कि वह किस तरह मानसरोवर पहुँचे , किस तरह उन्होंने वहाँ एक उपनिषद का गायन सुना , किस तरह वह पद चिन्हों के पीछे गए , किस तरह वह एक गुफा में पहुँचे , एक महात्मा को देखा, किस तरह उस महात्मा ने उसी दिन बंबई में तिलक को दोषी करार दिया गया, के बारे में बात की , किस तरह उस महात्मा ने उन्हें अपने भाई ( बड़े सहपाठी )से मिलवाया , किस तरह आखिरकार वह अपने गुरु से मिले और ' कृतार्थ ' हुए
बाद में हम साईं बाबा के पास गए और मस्जिद में उनके दर्शन किए। उन्होंने आज दोपहर को मेरे पास सन्देश भेजा कि मुझे यहाँ और दो महीने रुकना पडेगा। दोपहर में उन्होंने अपने सन्देश की पुष्टि की और फिर कहा कि उनकी ' उदी ' में अत्याधिक आध्यात्मिक गुण है | उन्होंने मेरी पत्नी से कहा कि गवर्नर एक सैनिक के साथ आया और साईं महाराज से उसकी अनबन हुई और उन्होंने उसे बाहर निकाल दिया, और आखिरकार गवर्नर को उन्होंने शाँत कर दिया। भाषा अत्यंत संकेतात्मक है इसीलिए उसकी व्याख्या करना कठिन है। शाम को हम शेज आरती में उपस्थित हुए और उसके बाद भीष्म के भजन और दीक्षित की रामायण हुई।
जय साईं राम