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Author Topic: माननीय श्री श्रीकृष्ण खापर्डे की शिरडी डायरी  (Read 84362 times)

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Offline saisewika

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ॐ साईं राम


११ फरवरी १९१२-


प्रातः जब तक मैंने अपनी प्रार्थना समाप्त की, मैंने देखा कि श्री गडरे उठ गए थे, और मैं बैठ कर उनसे बातें करने लगा। उन्हें लौटने की अनुमति मिल गई और वह नासिक वापिस चले गए। हमने साईं महाराज के बाहर जाते समय दर्शन किए और अपनी पँचदशी के पाठ की सँगत उपासनी, बापूसाहेब जोग और श्रीमति कौजल्गी के साथ की। नासिक जिले के श्री लेले, जो कि नासिक जिले के राजस्व निरीक्षक हैं, उन्होंने भी पाठ में भाग लिया। वह बहुत भले व्यक्ति हैं और साईं महाराज उन्हें बहुत पसँद करते हैं।


साईं महाराज के वापिस लौटने के बाद मैं रोज़ की तरह मस्जिद में गया और देखा कि बहुत से व्यक्ति वहाँ बैठे हैं। उनमें से अधिकतर अजनबी हैं। उनमें से एक अकोला पुलिस में हैं, वह मुझे देखते ही बोले कि उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है और नागपुर के बैरिस्टर श्री गोविन्द राव देशमुख के साथ नौकरी में पदभार ग्रहण कर लिया है।


दोपहर की आरती के बाद मैं कुछ देर के लिए लेट गया और फिर दीक्षित के रामायण पुराण में सम्मिलित हुआ। बाद में हम साईं महाराज की शाम की सैर के समय उनके दर्शन के लिए गए और श्री लेले को वहाँ पाकर उनसे बातें करने लगे। शाम को वाडे में और बाद में शेज आरती, भीष्म का भागवत पाठ, और दीक्षित की रामायण हुई। शिवानन्द शास्त्री को आज लौटने की अनुमति नहीं मिली।


जय साईं राम

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ॐ साईं राम


१२ फरवरी १९१२-


मैं जल्दी उठा और काँकड आरती में सम्मिलित हुआ। बाद में हमारी पँचदशी के पाठ की सँगत हुई, और साईं बाबा के बाहर जाते हुए दर्शन किए। दोपहर की आरती रोज़ की तरह सम्पन्न हुई। मैंने बापू साहेब जोग से बात की कि वह दादा केलकर से पूछें कि क्या दोपहर को ५ से ६ के बीच पठन करना उनके लिए अनुकूल रहेगा। बापू साहेब जोग उनसे पूछना भूल गए। दोपहर में श्रीमान दीक्षित ने हमेशा की तरह रामायण पढी।


जब मैं सीढियाँ उतर रहा था, उस समय शिवानन्द शास्त्री ने, जो अभी भी यहाँ हैं, मेरा ध्यान एक व्यक्ति की ओर आकर्षित किया जो यहाँ आया है, और वह एक उन्मादी की तरह व्यवहार कर रहा था। उसने अपने हाथ और पैर हिलाए, इधर उधर देखा और हम पर जूते फैंके। मैंने श्रीमान दीक्षित को बुलाया। एक बार तो हमने सोचा कि उसने मदिरा सेवन किया हुआ है। पर बाद में ऐसा लगा कि वह सिर्फ केवल महत्व पाने के लिए धार्मिक उन्मादी होने का दिखावा कर रहा था। मैं उसे साईं बाबा के पास ले गया, उन्होंने उसे बाहर निकलने का आदेश दे दिया।


कोपरगाँव के मामलेदार के पिता श्रीमान साने आज आए और कुछ देर हमारे साथ बैठ कर बात की। वह एक बहुत भले, पुराने किस्म के सज्जन व्यक्ति हैं, और उन्होंने कहा कि उन्होंने मुझे पहले १९०८ के प्रान्तीय सम्मेलन में धूलिया में देखा था।


वाड़ा आरती के बाद भीष्म के भजन हुए। मैं यहाँ बताना चाहता हूँ कि दोपहर की आरती के बाद मैंने दो लोगों को नाश्ते पर बुलाया। उनमें से एक पॅावेल से और दूसरे धरना जारी से थे। वे दोनों धर्म प्रवृत और दीन थे। रात को पुराण से पूर्व हम एक स्थानीय स्कूल के शिक्षक की पुत्री के विवाह के सँबँध मे शीमँत पूजन में गए। फिर दीक्षित की रामायण हुई।


जय साईं राम

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ॐ साईं राम


१३ फरवरी , १९१२-


मुझे प्रातः उठने में बहुत देर हुई।  परिणामस्वरूप मेरे सारे कार्रक्रम स्वाभाविक रूप से आगे टल गए।  प्रार्थना के बाद मैंनें, उपासनी, बापू साहेब जोग, और श्रीमति लक्ष्मी बाई कौजल्गी ने पँचदशी की सँगत की और द्वितीय अध्याय पूर्ण किया।  फिर हमने साईं साहेब मे बाहर जाते हुए दर्शन किए और एक स्थानीय विद्यालय के शिक्षक की पुत्री के विवाह में गए।  उसका घर छोटा है और यहाँ के लोगों ने उसे मँडप लगाने देने की सुविधा नहीं दी।  अतः हम चावड़ी में फकीर बाबा के साथ चिलम पीते बैठे, वह बहुत प्रसन्न थे।  विवाह उस समय के बहुत देर बाद सम्पन्न हुआ जितना कि हमने सोचा था।  उसके बाद हम मस्जिद में गए। 


साईं साहेब आन्नदित भाव में थे और दोपहर की आरती रोज़ाना की तरह पूर्ण हुई।  उसके पश्चात हम लौटे और दोपहर के भोजन किया।  मेरी पत्नि, भीष्म और बन्दु ने एकादशी का व्रत रक्खा था।  मैं कुछ देर लेट गया और फिर बैठ कर पढ़ने लगा।  श्रीमान दीक्षित दोपहर के भोजन के बाद हमेशा की तरह मस्जिद में गए और साईं महाराज ने उन्हें कुछ देर आराम करने को कहा।  अतः वह लौटे और लेट गए और लगभग शाम के ५ बजे तक नहीं उठे।  हमें परमामृत की सँगत दादा केलकर के लाभ के लिए शुरू कर देनी चाहिए थी परन्तु उन्हें किसी बहुत ज़रूरी काम से बाहर जाना था अतः दीक्षित ने रामायण पढ़ी और फिर हम मस्जिद गए।  जैसे ही मैं अन्दर गया साईं महाराज ने मुझे उदी दी तो मैं पुलकित हो उठा कि यह मुझे जाने के लिए संकेत है।  इस पर वे बोले " तुम्हे जाने के लिए कौन कहता है? बैठ जाओ। " इसके बाद वे आनन्दित होकर बात करने बैठे कि जो गाय अभी दीक्षित के पास है वे मूल रूप से म्हाल्सापति की थी । फिर वह औरंगाबाद गई , फिर जालना और अब श्री दीक्षित की सम्पत्ति बन कर लौट आयी है।  भगवान जाने यह किस की सम्पत्ति है।  मेरी तरफ उन्होंने देखते हुए कहा _ " ऐसा कोई भी नहीं है जिसका ईश्वर पर विश्वास हो और उसे किसी चीज़ की कमी हो।"  मेरी पत्नी और अन्य लोग वहां थे।


हम सब ने शाम को सैर पर उनके दर्शन किए।  फिर वाड़ा में आरती हुई और बाद में शेज आरती।  रात को भीष्म ने भजन किए और श्री दीक्षित ने रामायण पड़ी।  आज साईं बाबा ने दोपहर की आरती और शेज आरती दोनों के बाद विशेषकर मुझे मेरे नाम से बुला कर वाड़ा जाने के लिए कहा।


जय साईं राम

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ॐ साईं राम


१४ फरवरी १९१२-


मैं जल्दी उठा, काँकड आरती में सम्मिलित हुआ, और इस बात ने मुझे बहुत उलझाया कि चावडी छोडते समय साईं बाबा ने अपने सटके से पूर्व, उत्तर और दक्षिण की ओर इशारे किए। फिर उन्होंने हमेशा की तरह कटु शब्दों का प्रयोग किया। हम हमेशा की तरह अपनी पँचदशी के पाठ की सँगत में सम्मिलित हुए, साईं बाबा के बाहर जाते हुए दर्शन किए, और हमेशा की तरह बाद में मस्जिद गए। साईं बाबा ने दो कहानियाँ सुनाईं।


उनमें से एक इस तरह थी कि एक यात्री था, जिसे प्रातः एक दुष्ट आत्मा (राक्षस) ने टोका। यात्री ने इसे एक बुरा शगुन समझा, किन्तु आगे चलने पर उसे दो कुँऐं मिले जिनके ठँडे पानी ने उसकी प्यास बुझाई। जब उसे भूख लगी तब उसे एक किसान मिला जिसने अपनी पत्नि के परामर्श पर उसे खाना दिया। जब उसने पके हुए मक्के के खेत को देखा तो उसने हरदा खाने की इच्छा जाहिर की। खेत के मालिक ने उसे वह दिया, अतः यात्री खुश हुआ और खुशी से धूम्रपान करता हुआ आगे बढ गया। जिस जँगल में से वह जा रहा था, उसे एक बाघ मिला, उसकी हिम्मत ने जवाब दे दिया और उसने खुद को एक गुफा में छुपा लिया। बाघ बहुत विशालकाय था , और उसे ढूँढ रहा था। उसी समय साईं बाबा का वहाँ से गुज़रना हुआ, उन्होंने यात्री की हिम्मत बढाई, उसे बाहर निकाला और उसके रास्ते पर डाल कर कहा कि "बाघ तुम्हें तब तक नुकसान नहीं पहुँचायेगा जब तक तुम उसे किसी तरह का नुकसान नहीं पहुँचाओगे।"


दूसरी कहानी इस तरह थी कि साईं बाबा के चार भाई थे, उनमें से एक बाहर जा कर, भिक्षा माँग कर पका हुआ भोजन, रोटी और मक्कई ले कर आता था। उसकी पत्नि उनके पिता और माता को सिर्फ थोडा सा देती थी, पर सभी भाइयों को भूखा रखती थी। साईं बाबा को तब एक ठेका मिला, वे धन ले कर आए और सब को जिनमें वह खुशहाल भाई भी शामिल था, भोजन मिला। बाद में उस भाई को कुष्ठरोग हो गया। सभी ने उसे नकार दिया। पिता ने उसे निकाल दिया। तब साईं बाबा ही उसको भोजन कराया करते थे, और उसकी सुविधाओं का ख्याल रखा करते थे। अँततः भाई मर गया।


दोपहर की आरती रोज़ की तरह सम्पन्न हुई, और उसके बाद हमने भोजन किया तथा मैंने थोडा आराम किया। शिवानन्द शास्त्री और विजयदुर्ग के ठाकुर आज चले गए। स्थानीय प्रधान के व्याकी ने आज सबको भोजन के लिए बुलाया। मैंने जाने से मना कर दिया परन्तु बाकी सब चले गए। साईं बाबा ने शाम की सैर के समय पूछा कि मैं क्यों नहीं गया और मैंने उन्हें सच बताया कि मैं एक दोपहर के समय में दो बार भोजन नहीं पचा सकता।


साईं बाबा चिंता में डूबे हुए दिखाई दिए, पूर्व और पश्चिम की ओर निरँतर टकटकी लगा कर देखते रहे और रोज़ की तरह "वाडे को जाओ" कह कर हम सबको विदा कर दिया। रात को भीष्म के भजन हुए और दीक्षित ने रामायण पढी।


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१५ फरवरी १९१२, बृहस्पतिवार-


मैं राज़ाना की तरह उठा, प्रार्थना की और उपासनी शास्त्री, बापूसाहेब जोग, और श्रीमति लक्ष्मीबाई कौजल्गी के साथ पँचदशी के पाठ की सँगत में सम्मिलित हुआ। हमने साईं महाराज के बाहर जाते हुए दर्शन किए और अपने पठन को जारी रखा। उसके बाद मैं मस्जिद गया और साईं साहेब जो कह रहे थे, वह बैठ कर सुना। वे प्रफुल्लित थे, और उन्होंने कहा कि उन्होंने अत्यँत परिश्रम किया, कई मास तक भूखे रहे, उन्होंने 'काला तकाल', नीम और दूसरे वृक्षों के पत्ते खा कर गुज़ारा किया। उन्होंने कहा कि ईश्वर उन पर बहुत ही दयालु था कि बावजूद इसके कि उनकी चमड़ी सूख गई, हड्डियाँ ऐसी लगने लगीं मानो टूट कर बिखर जाऐंगी, परन्तु उनकी जान नही गई।


दोपहर की आरती हमेशा की तरह सम्पन्न हुई, और उसके बाद हम भोजन के लिए लौटे। मेरी पत्नि और अन्य लोग शिवरात्री के लिए कल कोपरगाँव जाना चाहते हैं। साईं साहेब को लगा कि ये जरूरी नहीं है, पर उन लोगों ने जोर दिया और एक प्रकार से उन्हें जाने की अनुमति मिल गई।


आज दोपहर के पुराण के बाद हमने दादा केलकर के हितलाभ के लिए परमामृत के पठन की सँगत की। हम ज़्यादा नहीं पढ़ पाए क्योंकि यह पहला ही दिन था। हमने साईं महाराज के उनकी शाम की सैर के समय दर्शन किए, और फिर वाड़े की आरती के बाद शेज आरती में सम्मिलित हुए। बालासाहेब भाटे सम्मिलत हुए। मेरे हाथ में आने से पहले मोरशल (मोर पँख) उन्होंने ही पकडा था। अतः मैंने वह उन्हें ही पकडा दिया। मुझे उसकी जगह एक पँखा मिला। बाला साहेब भाटे ने काफी प्रगति की है।


जय साईं राम

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१६ फरवरी १९१२, शुक्रवार-


मैं काँकड आरती में सम्मिलित हुआ। साईं साहेब ने अत्यँत ईश्वरीय प्रभाव के साथ कटु शब्दों का प्रयोग भी किया। हमने प्रातःकालीन प्रार्थना मे बाद पँचदशी के पाठ की सँगत की। मेरी पत्नि और अन्य लोग कोपरगाँव नहीं जा सके क्योंकि उन्हें जाने के लिए कोई ताँगा नहीं मिला। हमने साईं महाराज के बाहर जाते हुए दर्शन किए।


श्रीमान मोरगाँवकर आए और उन्होंने परा पूजा के अनुवाद की प्रतिलिपियाँ बाँटी। यहाँ कल्याण भिवँडी के एक शास्त्री हैं। वे बापूसाहेब जोग के साथ रह रहे हैं, और बहुत शाँत भले व्यक्ति हैं। उन्होंने शिवरात्री के उपलक्ष्य में व्रत रखा। दोपहर को दीक्षित की पुराण हुई और उसके बाद हमने परमामृत के पाठ की सँगत की और अच्छी प्रगति की। हमने दोपहर की आरती के समय साईं साहेब के दर्शन किए और फिेर उनकी शाम की सैर के समय भी। वे अत्यँत प्रसन्नचित्त थे। वाड़ा आरती के बाद हमेशा की तरह पुराण और भजन हुए।


जय साईं राम

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१७ फरवरी १९१२, शनिवार-


मैं प्रातः जल्दी उठा, प्रार्थना की, और हमेशा की तरह उपासनी, बापू साहेब जोग, कल्याण के कुन्ते शास्त्री और मोरेगाँवकर के साथ पँचदशी के पाठ की सँगत में सम्मिलित हुआ। आज हमने तीसरा अध्याय पूरा किया। हमने साईं महाराज के बाहर जाते हुए और जब वे लौटे, तब दर्शन किए। वे अत्यँत प्रसन्नचित्त थे और ठिठोली कर रहे थे।


दोपहर की आरती हमेशा की तरह सम्पन्न हुई और उसके बाद हमने भोजन किया। श्रीमान दीक्षित अपने पुत्र के मुँज (मुँडन) के लिए नागपुर जाना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि इसके लिए वे ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को साथ ले जाऐं, परन्तु सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि साईं महाराज क्या आदेश देते हैं।


दोपहर को दीक्षित की रामायण हुई और हमने अपनी परमामृत की सँगत में अच्छी प्रगति की। बाद में साईं महाराज की सैर के समय हमने उनके दर्शन किए, फिर वाड़ा आरती और शेज आरती हुई। शेज आरती में मेरे हाथ बड़ा पँखा आया। हमारे वापिस आने के बाद कल्याण के कुन्ते शास्त्री नें कीर्तन किया। उन्होंने उत्तर गोग्रहन की कहानी सुनाई। वह एक बूढे व्यक्ति हैं, और उनकी आयु , जो कि लगभग ८० वर्ष है, को देखते हुए उनकी सहनशक्ति, जोश और अन्य गुण काबिले तारीफ और विलक्षण हैं। दीक्षित की रामायण और भीष्म के भजन भी हुए।


जय साईं राम

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१८ फरवरी, रविवार, १९१२-


माधवराव देशपाँडे ने प्रातः मुझे उठाया, और प्रार्थना के बाद मैं काँकड़ आरती में सम्मिलित हुआ। साईं साहेब शाँत थे और हमेशा की तरह उन्होंने जिन कटु शब्दों का प्रयोग किया, वह भी कोमल थे। श्रीमान दीक्षित अपने पुत्र के जनेऊ सँस्कार के लिए नागपुर जाना चाहते हैं। उन्होंने साईं महाराज से मुझे साथ ले जाने के लिए पूछा और उन्हें अस्पष्ट जवाब मिला। मुझे लगभग पक्का लगा कि मुझे जाने की अनुमति नहीं मिलेगी। मेरी पत्नि जाने के लिए अत्याधिक उत्सुक है।


जब मैं उपासनी शास्त्री, बापू साहेब जोग और अन्य लोगों के साथ पँचदशी के पाठ की सँगत में बैठा था तब नाना साहेब चाँदोरकर आए और श्रीमान दीक्षित के साथ बैठे। मैं उनसे तब मिला जब मैं सँगत के बाद साईं साहेब के दर्शन के लिए गया। साईं साहेब उनसे सामान्य तरीके से तेली, वामन तात्या और अप्पा कोते के बारे में बातें कर रहे थे।


दोपहर की आरती हमेशा की तरह सँपन्न हुई, सिवाय इसके कि उसके समाप्त होते होते साईं बाबा थोडे अधीर दिखाई दिए और उन्होंने लोगों को जल्दी से चले जाने को कहा।


मैंने श्रीमान दीक्षित और नाना साहेब चाँदोरकर के साथ भोजन किया और नाना साहेब को कहा कि वह उस वार्तालाप को पुनः आगे बढाएँ जो तब छूट गया था जब वे थोडी अवधि के लिए यहाँ आए थे। उन्होंने कहा कि विषयवस्तु साईं बाबा के हाथ में थी। वह अपने साथ बनावटी उपवन एक बडे चाँद के साथ लाए हैं, वैसा ही जैसा चिवाह के अवसर पर हमारे यहाँ होता है। उसका आदेश राधाकृष्णा बाई ने दिया था।


मैं कुछ देर के लिए लेटा। फिर लगभग ४ बजे नाना साहेब चले गए और श्रीमान दीक्षित ने रामायण पढी। बाद में हमने अपनी परमामृत के पाठ की सँगत की और उसके बाद हम साईं साहेब की शाम की सैर के समय उनके दर्शन के लिए गए। "चाँद" को रोशन कर दिया गया था और वह शानदार रोशनी फेंक रहा था।


मेरी पत्नि ने अमरावती लौट जाने की प्रार्थना को पुनः दोहराया और हमेशा की तरह उन्हें साईं साहेब से अस्पष्ट जवाब मिला। वाड़ा आरती के बाद श्रीमान दीक्षित ने रामायण पढी और भीष्म के भजन हुए। श्रीमान दीक्षित और माधवराव देशपाँडे ने कल प्रातः जल्दी जाने की तैयारियाँ करनी हैं अतः हमने आज सब जल्दी समाप्त किया।


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१९ फरवरी, सोमवार, १९१२-


श्रीमान दीक्षित, माधवराव देशपाँडे, हीरालाल और अन्य लोग आज प्रातः चले गए। दीक्षित अपने पुत्र बाबू के मूँज सँस्कार के लिए नागपुर गए। माधवराव देशपाँडे ऐसे ही एक उत्सव के लिए हरदा में अपने एक मित्र के घर गए। प्रार्थना के बाद हमने पँचदशी के पाठ की सँगत की। मोरगाँवकर ने कहा कि उनकी घडी और चेन गुम हो गए। वह सोने की होने के कारण कीमती थे। उन्होंने खोजने की कोशिश की पर वह बेकार रही।


हमने साईं महाराज के बाहर जाते हुए और वापिस लौटने पर दर्शन किए। दोपहर की आरती हमेशा की तरह सँपन्न हुई, सिवाय इसके कि आज एक की जगह दो चँवर थे। बाला साहेब भाटे पूजा के लिए और आरती के लिए आज रूकना चाहते थे लेकिन साईं बाबा ने उन्हें घर जाने को कहा।


भोजन के बाद मैं थोडी देर लेटा और फिर हमने रोज़ के सदस्यों के साथ पँचदशी की सँगत को आगे बढाया। बाद में दादा केलकर, बाला शिम्पी और अन्य लोग आए। हमने साईं महाराज के उनकी शाम की सैर के समय दर्शन किए, और उसके बाद वाड़ा आरती तथा शेज आरती में सम्मिलित हुए जिसमें बनावटी उपवन और चाँद का पहली बार प्रयोग किया गया था। वह बहुत लुभावने लग रहे थे और उनके कारण अच्छी भीड जमा हुई। ऐसा नहीं लगा कि साईं साहेब ने उन्हें नापसँद किया हो। मुझे लगता है कि चाँद काफी उपयोगी है।


भीष्म ने आज रात भागवत और दासबोध के दस समास पढे। श्रीमान नाटेकर उर्फ हमसा ने आज मुझे लिखा है कि मुझे इस मास के अँत तक अमरावती लौट जाना चाहिए।


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२० फरवरी, मँगलवार, १९१२-

हम काँकड आरती में सम्मिलित हुए और उसकी विलक्षण बात यह थी कि साईं साहेब ने चावड़ी छोड़ कर मस्जिद में प्रवेश करते समय एक शब्द भी नहीं कहा, सिवाय इसके- "ईश्वर ही महानतम है"। प्रार्थना के बाद मैंने, उपासनी, बापू साहेब जोग और श्रीमति लक्ष्मीबाई कौजल्गी ने पँचदशी के पाठ की सँगत की। जब मैं मस्जिद गया तब साईं साहेब सुबह की सैर के बाद वापिस आ गए थे। उन्होंने कहा कि वे मस्जिद को दोबारा बनवाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि उसके लिए काफी धन भी है, और फिर वे उसके बारे में ही बात करते रहे। बड़ोदा के शिरके परिवार की महिलाऐं यहाँ आई हैं। उन्होंने दोपहर की आरती में भाग लिया। आरती हमेशा की तरह सम्पन्न हुई।

राधाकृष्णा बाई के पास सारस के अँडे हैं, उसने उन्हें वहाँ लटकाया जहाँ साईं साहेब बैठते हैं, उन्होंने उन्हें खींचा और बाहर फैंक दिया। हमने दोपहर को अपनी पँचदशी के पाठ की सँगत को आगे बढाया और शाम को लगभग ६ बजे मैं मस्जिद में गया। साईं साहेब ने दो कहानियाँ सुनाईं , उनमें से पता नहीं मुझे कौन सी पसँद आई, पर पहली मुझे याद नहीं रही। मैंने अपनी पत्नि से और अन्य लोगों से जो वहाँ उपस्थित थे, उस कहानी के बारे में पूछा, पर वह किसी को भी याद नहीं थी, यह बहुत आश्चर्यजनक था।

दूसरी कहानी इस प्रकार थी कि एक स्थान पर एक बूढी औरत अपने पुत्र के साथ रहती थी। वह गाँव में मृतक शरीरों के अँतिम सँस्कार में सहायता करता था, और उसके बदले में उसे पारिश्रमिक मिलता था। एक बार वहाँ पर एक प्रकार का हैजा फैला और बहुत से लोग मर गए। इसलिए उसे बहुत सा मेहनताना मिला। उस बूढ़ी औरत को एक दिन अल्लाह मिले और उन्होंने उसे कहा कि उन्हें उसके बेटे के व्यापार से लाभ नहीं कमाना चाहिए। किन्तु उसके बेटे ने उस बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और अँततः वह मर गया। वह बूढी औरत सूत कात कर अपना निर्वाह करने लगी। अल्लाह मियाँ ने उसे कहा कि वह अपने पति के रिश्तेदारों के घर चली जाए, पर उसने ऐसा करने से मना कर दिया। एक दिन कुछ ब्राहम्ण उससे कुछ सूत खरीदने के लिए आए, उसके घर की सम्पूर्ण जानकारी का भेद लिया और रात को उसके घर में सेंध लगाई। उनमें से एक चोर उसके सामने निर्वस्त्र खड़ा हुआ। उस बूढी ने उसे भाग जाने के लिए कहा अन्यथा जिले के लोग उसे उसके अपराध के लिए मार डालेंगे। अतः वह चोर वहाँ से भाग गया। अँततः वह बूढी औरत मर गई और चोर के घर पुत्री बन कर पैदा हुई।

मुझे नहीं लगता कि मैं कहानी को पूरी तरह से समझ पाया। हमने साईं साहेब के उनकी शाम की सैर के समय दर्शन किए, और रात को भी। वाड़ा आरती के बाद भीष्म ने भागवत और दासबोध का पठन किया।


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२१ फरवरी, बुधवार, १९१२-


मैं रोज़ाना की तरह उठा पर देवाजी, जिन्हें हम साक्षातकारी बुवा कहते हैं, के द्वारा किए गए शोर के कारण मेरी प्रार्थना में विघ्न पडा। मैं अपने मस्तिष्क को नियँत्रित करने में सफल रहा और अपनी प्रार्थना समाप्त की। बाद में हमने साईं महाराज के बाहर जाते हुए दर्शन किए और पँचदशी के पाठ की सँगत की। इसके बाद हम मस्जिद में गए और वहाँ हमने बड़ोदा के शिरके परिवार की महिलाओं को साईं बाबा की सेवा करते हुए देखा। आज बम्बई से एक नर्तकी आई और उसने मस्जिद में कुछ गीत गाए। उसने कहा कि वह बाल कृष्ण बुवा की शिष्या है। साईं महाराज ने उसके गीत सुने। उसके बाद दोपहर की आरती हमेशा की तरह सम्पन्न हुई। साईं बाबा अत्यँत प्रसन्नचित्त थे।


दोपहर के भोजन के बाद मैं कुछ देर के लिए लेटा और फिर हमने रोज़ के सदस्यों के साथ अपनी पँचदशी के पाठ की सँगत की। सूर्यास्त के लगभग हम साईं महाराज की सैर के समय उनके दर्शन के लिए गए, दोबारा वाड़ा आरती के समय और शेज आरती के समय भी। शोभायात्रा और उसके सभी प्रबँध आज बहुत भव्य थे। भजन भी मँजीरे आदि के साथ हुए। शेज आरती के बाद बम्बई की नर्तकी ने मस्जिद में भी कुछ गीत गाए। रात्रि में भीष्म ने भागवत और दासबोध का पठन किया।


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२२ फरवरी, बृहस्पतिवार, १९१२

प्रातः काँकड़ आरती हुई और हम सबने उसमें हिस्सा लिया। शिरके परिवार की महिलाऐं आरती समाप्त होते ही अपने सेवकों के साथ वापिस चली गईं। बम्बई की नर्तकी भी अपने लोगों के साथ वापिस गई। उसने कहा कि वह अमरावती जाना चाहती थी।

हमने अपनी पँचदशी की पाठ की सँगत की। मुझे पता चला कि आज प्रातः मेरी पत्नि ने एक स्वप्न देखा कि साईं बाबा ने बँदू के हाथ सँदेशा भेजा है कि सुबह ९ बजे से पूर्व चले जाओ। साईं बाबा ने भी दादा केलकर और बाला शिम्पी से पूछा कि क्या मैं जाने की बात कर रहा था। नाटेकर (हमसा) की ओर से भी एक नोट मिला है कि इस माह के अँत तक मुझे जाने की अनुमति मिल जाएगी। इन सब बातों ने मेरी पत्नि के जाने की आशाओं को बढा दिया, परन्तु दोपहर की आरती के समय साईं बाबा की ओर से इस बात का कोई जिक्र ही नहीं हुआ। माधवराव देशपाँडे हरदा से दोपहर की आरती के समय तक लौट आए। उनकी पत्नि और बच्चे भी अहमदनगर से आ गए।

दोपहर के भोजन के बाद मैं कुछ देर लेटा और उसके बाद अपनी पँचदशी के पाठ की सँगत को आगे बढाया जो कि लगभग अँधेरा होने तक चली और मैं शीघ्रता से साईं साहेब के दर्शन करने के लिए गया और ऊदी ली।

रात को भीष्म ने दासबोध और भागवत का पाठ किया और भजन हुए। श्रीमान बाला साहेब भाटे और बापूसाहेब जो आबकारी निरीक्षक हैं, अपने कुछ बच्चों के साथ रात को मुझसे मिलने आए और हमने बैठ कर साईं बाबा की आश्चर्यजनक लीलाओं के विषय में कुछ देर बातचीत की। माधवराव देशपाँडे भी वहाँ उपस्थित थे।

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२३ फरवरी, शुक्रवार, १९१२-

मैं रोज़ाना की तरह उठा, प्रार्थना की और प्रातः पँचदशी की सँगत की। हमारे रोज़ के सदस्यों के अतिरिक्त नासिक की एक सुँदराबाई नाम की महिला भी वहाँ मौजूद थीं। हमने साईं बाबा के मस्जिद से बाहर जाते हुए और फिर वापिस आते हुए दर्शन किए। उन्होंने मुझे एक कहानी सुनाई, कि किस प्रकार वे एक युवक थे, किस प्रकार वे एक सुबह बाहर गए, और अचानक एक युवती बन गए और कुछ समय के लिए वैसे ही बने रहे। उन्होंने बहुत विस्तार नहीं बताया।

दोपहर की आरती रोज़ की तरह सम्पन्न हुई। आज बहुत से लोग अर्चना के लिए आए। भोजन के बाद मैं कुछ देर लेटा और फिर अपनी पँचदशी के पाठ की सँगत की। माधवराव देशपाँडे ने साईं बाबा से आज मेरी वापसी के बारे में पूछा और उत्तर पाया कि समय मेरे लिए बहुत प्रतिकूल चल रहा है, अतः मुझे कुछ माह यहाँ रहना पडेगा।

शाम को हम साईं बाबा की सैर के समय उनके दर्शन के लिए गए। वाड़ा आरती के बाद शेज आरती हुई और बाद में भीष्म ने भागवत और दासबोध दोनों का पठन किया।

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२४ फरवरी, शनिवार, १९१२-


मैं काँकड आरती में सम्मिलित हुआ और फिर हमने पँचदशी के पाठ की सँगत की। हमने साईं महाराज के बाहर जाते हुए दर्शन किए और बाद में मस्जिद में दोपहर की आरती में हिस्सा लिया। सब कुछ भली भाँति रोज़ की तरह सम्पन्न हुआ। दोपहर के भोजन के बाद मैं थोडी देर के लिए लेटा।


कोपरगाँव के मामलेदार श्रीमान साने और राजस्व निरीक्षक श्रीमान नाना साहेब , बाला साहेब भाटे के साथ आए और बैठ कर कुछ देर बातचीत की। उनके जाने के बाद हमने अपनी पँचदशी की सँगत को आगे बढ़ाया किन्तु कुछ खास प्रगति नहीं कर पाए। हमने साईं बाबा के उनकी शाम की सैर के समय दर्शन किए, और सँध्या समय नासिक की महिलाओं ने वाड़ा आरती के बाद हुए भजनो में साथ दिया। उनकी आवाज़ें बहुत अच्छीं थीं, परन्तु वे बहुत कमज़ोर दिख रहीं थी और वे लगातार साथ नहीं दे पा रहीं थी।


जय साईं राम

Offline saisewika

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ॐ साईं राम


२५ फरवरी, रविवार, १९१२-

मैं प्रातः जल्दी उठा, प्रार्थना की और श्रीमान माधवराव देशपाँडे को शिरडी से नागपुर जाते हुए मिला। वह वहाँ से नाना साहेब चाँदोरकर के पुत्र कि विवाह के लिए ग्वालियर चले जाऐंगे और वापसी में कई धार्मिक स्थानों - बनारस इलाहाबाद, गया मथुरा और अन्य जगहों को देखते हुए वापस आऐंगे। हमने अपनी पँचदशी के पाठ की सँगत की परन्तु उपासनी अस्वस्थ लग रहे थे इस लिए हमारी प्रगति धीमी थी।

हमने दोपहर की आरती में हिस्सा लिया और उसके बाद पँचदशी की सँगत पुनः शुरू की और कुछ प्रगति भी की। शाम को वाड़ा आरती के बाद हम शेज आरती में भी सम्मिलित हुए, उसके बाद भीष्म ने दासबोध का पाठ किया।


जय साईं राम

 


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