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Author Topic: माननीय श्री श्रीकृष्ण खापर्डे की शिरडी डायरी  (Read 84259 times)

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ॐ साईं राम


२६ फरवरी, सोमवार, १९१२

मैंने काँकड आरती में भाग लिया। साईं बाबा बिना कुछ विशेष कहे मस्जिद में गए। नासिक की महिलाऐं आज सुबह वापिस चली गईं। उसके बाद हमने अपनी सँगत की और साईं बाबा के बाहर जाते हुए और जब वे मस्जिद वापिस लौटे तब दर्शन किए। उन्होंने अपने भाई के बारे में एक कहानी सुनाई जिसने एक बार अभद्र व्यवहार किया और इस कारण उसे जाति से बाहर कर दिया गया।

दोपहर की आरती रोज़ की तरह सम्पूर्ण हुई और दोपहर के भोजन के बाद मैं थोडी देर लेटा और फिर हमने पँचदशी की सँगत को आगे बढाया। पूना से कोई एक श्रीमान दातार अपने पुत्र के साथ जो कि अधिवक्ता प्रतीत होता है,आए हैं। वे हॅाल में ठहरे हैं।

हम साईं साहेब की सैर के समय उनके दर्शन के लिए मस्जिद में गए। वाड़ा आरती के बाद भागवत और दासबोध का पाठ हुआ और भजन हुए जिसमें श्रीमति कौजल्गी और सोनूबाई ने साथ दिया।


जय साईं राम

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ॐ साईं राम


२७ फरवरी, मँगलवार, १९१२-

मैं रोज़ की तरह उठा, प्रार्थना की और पँचदशी की सँगत की। एक बार हम साईं बाबा के बाहर जाते हुए दर्शन नहीं कर पाए, और तब तक उन्हें नहीं देखा जब तक कि वे वापिस नहीं आए। मैं लगभग ११॰१५ बजे मस्जिद गया। साईं बाबा ने कहा कि वे एक खेत के पास से गुज़रे जिसमे कि बहुत बड़े तोते थे। वह तोते बाबा की मौजूदगी से नहीं घबराए और वे उनके आकार और रँगों को प्रशँसनीय दृष्टि से देखते हुए देर तक वहाँ खड़े रहे।

दोपहर की आरती रोज़ की तरह सम्पूर्ण हुई और दोपहर के भोजन के बाद मैं थोडी देर लेटा और फिर हमने पँचदशी की सँगत को, लगभग रात होने तक आगे बढाया, जब तक कि हम साईं महाराज के उनकी शाम की सैर के समय दर्शन करने नहीं गए। रात को वाड़ा आरती और फिर शेज आरती हुई। भीष्म ने भागवत और दासबोध का पाठ किया।


जय साईं राम

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ॐ साईं राम

२८ फरवरी, बुधवार, १९१२-


मैं काँकड आरती में सम्मिलित हुआ और वापिस आने पर प्रार्थना कर ही रहा था कि ढोंढे बाबा पूना से आ गए। वह अभी अभी बर्मा से लौटे हैं और मैंनें उनसे अपने मित्र तिलक की तबीयत और उनकी मनःस्थिति के बारे में पूछा। वो वैसी ही है जैसी कि इन हालातों में हो सकती है। वह चाहते हैं कि मैं अदालत में अपनी वकालत पुनः शुरू करूँ, किन्तु सब कुछ साईं साहेब के आदेश पर निर्भर करता है।


हमने पँचदशी के पाठ की सँगत की और श्रीमान भाटे उसमें सम्मिलित हुए। हमने साईं साहेब के बाहर जाते हुए और जब वह मस्जिद में लौटे तब दर्शन किए। उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या जीवामुनि मूल्य चुकाएगा? मैं समझ नहीं सका कि जीवामुनि का क्या अर्थ है, किन्तु मैंने उत्तर दिया कि अगर आदेश दिया जाए तो वह चुकाएगा। उन्होंने मुझे बहुत से फल और मिठाईयाँ दी।


दोपहर की आरती रोज़ाना की तरह सम्पन्न हुई। आज एकादशी थी, और मेरे और रघुनाथ के सिवा किसी ने नाश्ता या दोपहर का भोजन नहीं किया। ढोंढे बाबा ने भी व्रत रखा। वह लगभग ४ बजे शाम को दादा केलकर के पुत्र भाऊ के साथ पूना चले गए। उसके बाद हमने पँचदशी के पाठ की सँगत की, और शाम को साईं महाराज की सैर के समय उनके दर्शन किए। वे अत्यँत प्रसन्नचित्त थे , धीमे से चल रहे थे, और हँसी कर रहे थे। वाड़ा आरती के बाद भीष्म ने भागवत और दासबोध का पठन किया।


जय साईं राम

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२९ फरवरी, बृहस्पतिवार, १९१२-


मैंने प्रातः प्रार्थना की और रोज़ाना की तरह पँचदशी के पाठ की सँगत की। जब हम सँगत कर ही रहे थे, तब साईं बाबा वहाँ से गुज़रे और हमने उन्हें साठे वाड़ा के समीप देखा। वे बहुत थके हुए लग रहे थे। मैंने उन्हें तब भी देखा जब वे लौटे, और वे बहुत शाँत चित्तवृत्ति में थे। उन्होंने कहा कि बाला साहेब भाटे एक "खत्री" थे, उनकी पत्नि एक "सालिन", अर्थात एक बुनकर थी और उनका पुत्र बाबू भी एक सालिन था। साईं साहेब ने आगे कहा कि वासुदेव काका अपने पिछले जन्म में एक राजपूत था और उसका नाम जयसिंह था, कि वह मॅास खाने का बहुत शौकीन था, और साईं साहेब और अन्य उसे यह कह कर बहुत नाराज़ कर देते थे कि क्या उसे बकरे का सिर चाहिए, कि इस जयसिंह के तीन पुत्र थे जो कि सेना में काम करते थे एक बेटी थी, जिसका चरित्र ठीक नहीं था। वह एक नाई की रखैल बनी, उसके बच्चे हुए और फिर वह मर गई।


दोपहर की आरती रोज़ की तरह सम्पन्न हुई, सिवाय इसके कि वामन तात्या आरती के बाद आए, वे पूजा करना चाहते थे पर उन्हें कटु शब्दों की अच्छी खुराक मिली। दोपहर के भोजन के बाद मैं कुछ देर के लिए लेटा और फिर हमने अपनी पँचदशी के पाठ की सँगत तब तक की, जब तक हम साईं महाराज की शाम की सैर के समय उनके दर्शन के लिए गए।


वाड़ा आरती के बाद मैं चावड़ी के जुलूस में और शेज आरती में सम्मिलित होने के लिए मस्जिद में गया। साईं साहेब क्रोधित भाव में थे, उन लोगों को भला बुरा कह रहे थे जो मस्जिद की छत पर दिए जलाने के लिए चढे थे, और जब जुलूस शुरू हुआ, तब उन्होंने बापू साहेब जोग की पत्नि श्रीमति ताई जोग पर अपना सटका भी फेंका। चावड़ी में मुझे लगा कि वे बापू साहेब जोग पर हाथ उठाऐंगे, पर कुछ समय बाद उन्होंने अपने सटके से बाला शिम्पी की पिटाई की और बाद में त्रियम्बक राव जिन्हें वे मारूति कहते हैं, की भी। बाला शिम्पी भाग गए परन्तु त्रियम्बक राव ने खडे रह कर वार को झेला और साईं साहेब के सामने दँडवत किया। मुझे लगता है कि उसे अपार कृपा प्राप्त हुई और वह कम से कम एक स्तर तो आगे बढा ही। जब हम लौटे तब साईं साहेब ज़ोर से बोल रहे थे। मैंने बैठ कर बाला साहेब भाटे के साथ बात की। भीष्म ने भागवत और दासबोध का पठन किया।


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१ मार्च, शुक्रवार, १९१२-

मैंने काँकड आरती में हिस्हा लिया और प्रार्थना के बाद पँचदशी के पाठ की सँगत की, किन्तु बापू साहेब जोग और उपासनी को देर हुई क्योंकि उन्हें हजामत करवानी थी, और हम असल में तब तक नहीं निकल पाए जब तक कि साईं बाबा बाहर नहीं चले गए, और हमने उनके साठे वाड़ा के पास दर्शन किए। जब हम सच में शुरूआत करते हैं तभी प्रगति होती है।

मैं लगभग सुबह ११ बजे के करीब मस्जिद गया , साईं बाबा बहुत आनन्दित भाव में थे, पर थके हुए लग रहे थे। त्रियम्बक राव जिस बात के लिए फकीर बाबा को अपशब्द कह रहे थे वह मेरी दृष्टि में वह तुच्छ बात थी।

दोपहर की आरती रोज़ाना की तरह सम्पन्न हुई। साईं बाबा श्रीमान दीक्षित, नाना साहेब चाँदोरकर और साठे को याद कर रहे थे। भोजन के बाद हमने अपनी पँचदशी की सँगत को आगे बढाया और अच्छी प्रगति की। हमने साईं बाबा के दर्शन उनकी शाम की सैर के समय किए और रात को भीष्म ने भागवत और दासबोध का पठन किया। उन्होंने भजन भी गाए, बाला साहेब भाटे भी उसमें सम्मिलित हुए। हमारे सामने रहने वाले एक तेली की आज शाम को मृत्यु हो गई। उसकी पत्नि सतराबाई और पुत्री गोपी घरेलू नौकर का कार्य करते हैं।


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२ मार्च, शनिवार, १९१२-

मैंने प्रातः प्रार्थना की और अपनी पँचदशी के पाठ की सँगत की। इसी बीच हमने साईं महाराज के बाहर जाते हुए दर्शन किए। जब मैं ११ बजे के करीब मस्जिद में गया तब उन्होंने कहा कि वे अस्वस्थ हैं, और उन्होंने पेट में दर्द की शिकायत की। यहाँ एक गायक मँडली आई है जिसने आज मस्जिद के सामने प्रदर्शन किया। उन्हें एक मारवाड़ी ने अपने घर के एक विवाह के लिए बुलाया है।

दोपहर की आरती हमेशा की तरह सम्पन्न हुई। आज होली थी। इसलिए मैंने आज भाई, केशव और देवाजी को दोपहर के भोजन के लिए आमन्त्रित किया। हमने आलीशान तरीके से भोजन किया। उसके बाद मैं कुछ देर लेटा और फिर पँचदशी के पाठ को आगे बढाया। हमने तृप्ति दीप समाप्त किया और कूटास्था का आरम्भ किया।

हमने साईं महाराज की शाम की सैर के समय उनके दर्शन किए, उसके बा वाड़ा आरती और शेज आरती बडी शाँति से सम्पन्न हुई, क्योंकि साईं महाराज अत्यँत विनोदी भाव में थे। रात को भीष्म ने भागवत और दासबोध का पाठ किया। बाला साहेब भाटे दासबोध के लिए आए।


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३ मार्च, रविवार, १९१२-

मैंने काँकड आरती में भाग लिया। साईं बाबा प्रसन्नचित्त लग रहे थे और वे बिना कटु शब्दों का प्रयोग किए मस्जिद में गए। अब्दुल्ला एक लटकते हुए लैम्प को उतारने की कोशिश कर रहा था पर उसने गलती से उसे वैसे ही छोड़ दिया और वह ज़मीन पर गिर कर टुकड़े टुकड़े हो गया। मुझे लगा कि शायद साईं बाबा क्रोधित होंगे, पर ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने उस ओर कोई ध्यान नहीं दिया।

हमने अपनी पँचदशी की सँगत की, हम मेरे कमरे में बैठे क्योंकि बरामदे में बहुत हवा थी। हमने साईं बाबा के बाहर जाते हुए और उनके लौटने के बाद दर्शन किए। उन्होंने कहा कि मैं पिछले जन्म में दो या तीन वर्ष के लिए उनके साथ था, और फिर राजसी सेवा में चला गया, जबकि घर में आराम के सारे साधन मौजूद थे। मैं इसके आगे का विवरण भी जानना चाहता था परन्तु साईं बाबा ने आगे नहीं बताया।

दोपहर की आरती रोज़ की तरह सम्पूर्ण हुई और दोपहर के भोजन के बाद मैं थोडी देर लेटा और फिर हमने पँचदशी की सँगत को आगे बढाया। हम साईं महाराज की शाम की सैर के समय उनके दर्शन के लिए गए। रात को वाड़ा आरती के बाद भीष्म के भजन हुए। आज धूलिया से कोई एक डा॰ रानाडे आए हैं। उन्होंने कहा कि वह उस रानाडे के सँबँधी हैं जो कि बाबा महाराज के सामने रहता था। उन्होंने यह भी कहा कि वह मुझसे सिंहागद में मिले थे। यहाँ बम्बई के एक सज्जन हैं जोकि जाति से पालसे हैं, उन्होंने कहा कि वह कुछ वर्ष पूर्व मेरे पास अमरावती आए थे।


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४ मार्च, सोमवार, १९१२-

मैं प्रातः जल्दी उठा, प्रार्थना की और पँचदशी की सँगत की। हमने साईं बाबा कै बाहर जाते हुए दरशन किए और मैं रोज़ाना की तरह लगभग ११ बजे मस्जिद गया। साईं बाबा बहुत आनन्दित भाव में थे, बैठ कर बातें करते रहे, किन्तु उन्होंने बताने लायक कोई कहानी नहीं सुनाई।


दोपहर की आरती हमेशा की तरह सम्पन्न हुई। मेरी पत्नि को साईं साहेब की पूजा करने के लिए जाने में देर हुई, लेकिन साईं साहेब ने अत्यँत कृपा पूर्वक अपना भोजन बीच में ही रोक कर उसे पूजा करने दी। दोपहर को हमने अपनी पँचदशी के पाठ की सँगत को आगे बढाया जो कि लगभग अँधेरा होने तक चली जब कि हम साईं बाबा की सैर कि समय उनके दर्शन कि लिए गए। वाड़ा आरती के बाद शेज आरती हुई। वहाँ रोज़ की अपेक्षा ज़्यादा सँगीत था और साईं बाबा पूरे समय बहुत चुपचाप थे। रात को भीष्म ने भागवत और दासबोध का पाठ किया। दासबोध के अध्ययन के समय श्रीमान बाला साहेब भाटे भी मौजूद थे।


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५ मार्च, मँगलवार, १९१२-

मैं प्रातः इतनी जल्दी उठा कि मैंने अपनी प्रार्थना समाप्त कर ली, सुबह के कार्यों से निवृत हुआ, और काँकड आरती के समय से पहले एक घँटा लेट भी गया। मैं उसमें सम्मिलित हुआ और फिर अपनी पँचदशी की सँगत की, परन्तु मैंने स्वयँ को अस्वस्थ महसूस किया अतः हमने कोई प्रगति नहीं की। मेरा पेट खराब लग रहा है और मुझे दो बार दस्त हुए। हमने साईं साहेब के बाहर जाते हुए दर्शन किए, और जब वे लौटे तब हम मस्जिद में गए। वे ज़्यादा कुछ नहीं बोले और दोपहर की आरती बिना किसी घटना के सम्पन्न हुई।

भोजन के बाद मैं लेट गया और देर तक सोता रहा। श्रीमान बापू साहेब जोग, बाला साहेब भाटे के साथ अपना निवृत्ति वेतन लेने कोपरगाँव गए और दोपहर में सँगत नहीं हुई। मैं भी स्वस्थ नहीं था और मुझे दस्त हुए थे। मैं शाम को साईं महाराज की शाम की सैर के समय उनके दर्शन के लिए गया, और वापिस आने पर मुझे इतनी नींद आई कि मैं लेट गया जबकि भीष्म अभी भी दासबोध का पठन कर रहे थे।


जय साईं राम
 

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६ मार्च, बुधवार, १९१२-


मैं रात को गहरी नींद सोया और परिणामस्वरूप प्रातः मैंने बहुत अच्छा महसूस किया। मेरे प्रार्थना समाप्त करने के बाद, हमने अपनी पँचदशी की सँगत की और उसी दौरान हमने साईं महाराज के बाहर जाते हुए दर्शन किए। हमने कूटास्था दीप को समाप्त किया और ध्यानस्दीप की शुरूआत की। सँगत के बाद मैं रोज़ाना की तरह मस्जिद में गया, साईं बाबा बहुत आन्न्दित थे अतः मैं बैठ कर उनकी सेवा करने लगा। उन्होंने कहा कि उन्हें लगा कि वे कमर, छाती, और गर्दन से जकड़े गए हैं, कि उन्होंने सोचा कि उनकी आँखों में नागावेली के पत्ते डाल दिए गए हैं, आँखे खोलने पर उन्हें पता चला कि माजरा क्या था, उन्होंने देखा कि कुछ ऐसा था जिसे वे समझ नहीं पाए। उन्होंने उसकी एक लात पकड़ी तो वह नीचे लेट गया। उन्होंने आग जलाने की कोशिश की, पर लकड़ी पूरी सूखी नहीं थी अतः नहीं जली। उन्हें लगा कि उन्होंने चार मृत शरीर निकलते हुए देखे पर वे समझ नहीं पाए कि वह किसके थे। साईं साहेब उसी लय में बोलते रहे कि उनके ऊपर के बाएँ और नीचे के जबड़े में इतना दर्द था कि वे पानी भी नहीं पी सकते थे।


दोपहर की आरती हमेशा की तरह सम्पन्न हुई और भोजन के बाद मैं कुछ देर लेटा और फिर वाक्यामृत का पठन करने बैठा। बाद में हमने पँचदशी की सँगत अँधेरा होने तक की और फिर साईं साहेब की सैर के समय उनका दर्शन किया। वाड़ा आरती के बाद शेज आरती हुई। कँदीलों के चक्र को हमेशा की तरह जुलूस में नहीं ले जाया जा सका, अतः उन्हें उस छोटे से कमरे में रख दिया गया जहाँ साईं साहेब सोते हैं। इससे काफी असुविधा हुई और मुझे नहीं लगता कि साईं साहेब ने यह पसँद किया।


रात्रि में भीष्म ने भागवत और दासबोध का पाठ किया। बाला साहेब भाटे दासबोध के पाठ में सम्मिलित हुए।


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७ मार्च, बृहस्पतिवार, १९१२-

मैं काँकड़ आरती मे सम्मिलित हुआ। साईं महाराज बहुत ही आन्नदित भाव में थे, और चावड़ी से निकल कर जब वे मस्जिद की ओर गए तब उन्होंने नृत्य किया। हमने अपनी पँचदशी की सँगत की और उसी बीच साईं बाबा के बाहर जाते हुए दर्शन किए। मैं सँगत के बाद मस्जिद में गया। वहाँ बहुत भीड़ थी। धीरे धीरे वह कम हुई।


दोपहर की आरती हमेशा की तरह सम्पन्न हुई और भोजन के बाद मैं थोडी देर लेट गया। बन्दु साप्ताहिक बाज़ार के लिए रहाता गया। दोपहर में हमने पँचदशी की सँगत को आगे बढ़ाया। मैंने पठन किया और ध्यानदीप का समापन किया। उसके बाद मैं साईं साहेब की शाम की सैर के समय उनके दर्शन के लिए गया। वे प्रसन्नचित्त थे। मैं सूर्यास्त के समय लौटा।


रात्रि में वाड़ा आरती हई, भीष्म ने भागवत और दासबोध का पाठ किया और फिर भजन गाए जिसमें गीता और बाबा गरदे की पँचदशी में से छँद भी थे। बाला साहेब भाटे भी आखरी पाठ के समय मौजूद थे।


जय साईं राम

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८ मार्च, शुक्रवार, १९१२-

प्रातः भीष्म और बन्दु जल्दी उठे और सँगीतमय प्रार्थना की। यह बहुत सहायक था। मैंने प्रार्थना की और उसके बाद हमने पँचदशी की सँगत की। हमने साईं महाराज के बाहर जाते हुए दर्शन किए और फिर मैं मस्जिद में गया। साईं महाराज ने अत्यँत कृपा पूर्वक मुझे मेरे नाम से पुकारा, और जैसे ही मैं बैठा, उन्होंने अपनी चार भाईयों की गाथा सुनाई। उन्होंने कहा कि वह बहुत छोटे थे और बहुत बुद्धिमान थे। वह अपने घर में खेला करते थे, जो कि बहुत बडा था, और नज़दीक के आशरखाने में भी। उसके पास ही एक बहुत बूढा आदमी बैठा करता था जो कि ना तो मस्जिद ही जाता था और ना ही आशरखाने में ही, और कहता था कि जहाँ वह लेटता है वह स्थान उसका है। साईं बाबा के सँबंधी नहीं चाहते थे कि वे आशरखाने में जाऐं और ना ही वहाँ जो गतिविधियाँ चलती थीं उनका समर्थन ही करते थे। वह वृद्ध व्यक्ति साईं बाबा की माता के पिता निकले और साईं बाबा उनके लिए रोटी और साथ में कुछ खाने के लिए ले जाते थे।


वह वृद्ध कुष्ठरोगी थे, उनकी हाथ पैर की अँगुलियाँ गल चुकी थीं और दिन प्रतिदिन और भी खराब होती जा रही थीं। यहाँ तक कि एक दिन उन्होंने खाना खाने से भी मना कर दिया और वह मर गए। साईं बाबा उनके पास खेल रहे थे पर उन्हें सँदेह ही नहीं हुआ कि मृत्यु इतनी नज़दीक थी। वे अपनी माँ से उसके बारे में बात करते रहे, जो कि अपने पिता को देखने चली गई। जब साईं बाबा गए तो उन्होंने देखा कि वृद्ध जा चुके थे और उनका शरीर चावलों में बदल गया था। किसी ने भी वृद्ध के वस्त्रों की जिम्मेदारी नहीं ली। बाद में चावल गायब हो गए, और वृद्ध व्यक्ति का पुनर्जन्म हुआ, परन्तु उनका सम्पर्क "मँग" लोगों से था। साईं बाबा ने उसे भोजन दिया, और वृद्ध का तीसरी बार कोण्डा जी के पुत्र के रूप में जन्म हुआ। वह बालक साईं बाबा के साथ खेलता था और कुछ माह पूर्व वह मर गया।


दोपहर की आरती के समय साईं बाबा मेरे निकट आए और मेरी बाईं बाजू को छुआ, और अपना हाथ कमर की ऊँचाई तक उठाया जैसे कि हम एक युवक को दर्शाने के लिए करते हैं। दूसरे हाथ से उन्होंने वैसा इशारा किया जैसा कि हम पास से निकलते हुए व्यक्ति को दर्शाने के लिए करते हैं। उन्होंने अपनी आँखों से एक इशारा किया। मैं इस सम्पूर्ण बात को नहीं समझ पाया और पूरा दिन व्याकुल रहा।


दोपहर को हमने अपनी पँचदशी की सँगत की, नाट्यदीप समाप्त किया और ब्रहमानन्द की शुरूआत की। हमने साईं बाबा के उनकी सैर के समय दर्शन किए और वाड़ा आरती के बाद शेज आरती में सम्मिलित हुए। रात्रि में भीष्म ने भागवत समाप्त की और दसबोध का पाठ किया। बाला साहेब भाटे भी उसमें सम्मिलित हुए।


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९ मार्च, शनिवार, १९१२-


प्रातः मैं काँकड़ आरती में सम्मिलित हुआ। साईं महाराज बहुत आनन्दित भाव में प्रतीत हो रहे थे। उन्होंने हम सब को हमेशा कि तरह यह कहते हुए आशीर्वाद दिया कि ईश्वर ही सर्वोपरि है। उसके बाद वे मस्जिद में चले गए। मैं वापिस आया, प्रार्थना की और पँचदशी की सँगत के लिए तैयारी कर ही रहा था कि बम्बई से धानजीशा आ गए। वह साईं साहेब के लिए बहुत बढ़िया फल लाए थे। हमने बैठ कर बात की और साईं साहेब के बाहर जाते हुए दर्शन किए। हमने अपनी सँगत की परन्तु ज़्यादा प्रगति नहीं कर पाए।


मैं रोज़ाना की तरह मस्जिद गया। साईं साहेब ने दो चिड़ियों की कहानी सुनाई जो "निम्बर" की दक्षिण दिशा की ओर ऊँचे स्थान पर बैठी थीं। उन्होंने कहा कि चिडियों ने वहाँ घोंसला बनाया और वहीं बैठा करती थीं जहाँ वे अभी बैठी थीं। मृत्यु ने उनको घेर लिया। वह एक सर्प के रूप में आई जो कि "निम्बर" पर रेंग कर चढ़ गया और उन दोनों को निगल गया। चिड़ियों ने पुनः जन्म लिया और अपना घोंसला बिल्कुल उसी स्थान पर बनाया जहाँ वह पहले था, और वे वहीं बैठती हैं जहाँ पहले बैठती थी। साईं बाबा ने कहा कि उन्होंने कभी भी उन्हें हाथ नहीं लगाया और ना ही कभी उनसे बात की।


उन्होंने धानजीशा की पूजा को स्वीकार कर लिया और फूल मालाओं को उससे कहीं ज़्यादा देर धारण किए रहे जितना कि वह वैसे करते थे। उन्हें फूल पसँद आए, और उन्होंने कुछ अँगूर खाए। धानजीशा स्वाभाविक रूप से मेरे साथ ही ठहरे हैं। भोजन के बाद मैं कुछ देर लेट गया और फिर हमने अपनी पँचदशी की सँगत की या कहें तो उसे आगे बढ़ाया। हमें वह हिस्सा बहुत पसँद आया।


सूर्यास्त के समय हमने साईं महाराज के उनकी सैर के समय दर्शन किए। वे प्रसन्नचित्त थे किन्तु उन्होंने कहा कि उन्हें ध्वजपट की जरूरत नहीं है, उन्हें तो लोग चाहिए। रात्रि में भीष्म ने "स्वामीभाव दिनकर" और दासबोध का पठन किया। बाला साहेब भाटे भी आए। वहाँ भजन भी हुए।


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१० मार्च, रविवार, १९१२-


मैं प्रातः उठा, प्रार्थना की और हमने हमेशा की तरह पँचदशी की सँगत की। श्रीमान वामनराव पितले, जिनके पिता बड़ौदा में कार्यरत थे, यहाँ एक दिन ठहर कर अपनी पत्नि के साथ चले गए और मुझसे आग्रह किया कि श्रीमान दीक्षित के लौटने पर मैं विशेष रूप से उनका ज़िक्र करूँ।

हमने साईं बाबा के बाहर जाते हुए दर्शन किए, और उनके लौटने पर मैं मस्जिद में गया। उन्होंने मेरा नाम ले कर मुझे पुकारा और कहा कि उनके पिता बहुत धनवान थे, उन्होंने सभी कल्पनीय स्थानों पर धन गाढ़ा हुआ था। जब वे तरूण थे तब एक बार उनका अपने पिता के साथ छोटा सा मन मुटाव हुआ, और वे एक स्थान पर चले गए। वह नागफनी की एक चोड़ी और स्थूल बाड़ थी, और उन्हें उसके नीचे बहुत बड़ा खजाना मिला। साईं साहेब उस पर बैठ गए और एक बड़े नाग में तबदील हो गए। वे वहाव कुछ समय तक बैठे रहे और फिर चलने को प्रवृत्त हुए। अतः वे एक पड़ोसी गाँव की ओर चल पड़े और रास्ते में उन्हें मानव शरीर वापस मिल गया। फिर वे एक गली में गए और लोगों को मौत के घाट उतारा। वे वहाँ घूमते रहे परन्तु सकुशल रहे। फिर वे भिक्षा माँगने निकले और सारा खजाना ले आए।


दोपहर की आरती हमेशा की तरह सम्पन्न हुई, और जब मैं लौट रहा था तब उन्होंने कहा -" यहाँ देखो, सावधानीपूर्वक रहो, कुछ मेहमान आऐंगे, उन्हें प्रवेश मत करने दो", वह सब जिसका अर्थ था कि कुछ परेशान करने वाली बातें होंगी और मुझे उन्हें सहन करना होगा।


दोपहर के भोजन के बाद मैं कुछ देर लेट गया और फिर मुझे अन्नासाहेब मुतालिक का एक पत्र प्राप्त हुआ जिसमें लिखा था कि उमा एक महिला बन गई है अतः धार्मिक और सामाजिक अनुष्ठान करने होंगे, जिसका अर्थ है खर्चा। नारायण धमनकर ने अमरावती से लिखा कि वे सब सभी ओर से पैसे की तँगी से परेशान हैं। मुझे साईं साहेब के द्वारा दी गई चेतावनी की आवश्यकता समझ में आ गई।




दोपहर को हमने अपनी सँगत को आगे बढ़ाया और शाम को साईं महाराज की सैर के समय उनके दर्शन के लिए गए। रात्रि में वाड़ा आरती और शेज आरती हुई। आग के गोले का कँदील गिर कर टूट गया। बाला साहेब भाटे हमेशा की तरह रात को आए।




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११ मार्च, सोमवार, १९१२-

काँकड़ आरती सँगीतमय तरीके से हुई, और दीपक सभी ने घुमाए। आज प्रातः काँकड आरती इसी तरह की गई। साईं बाबा बहुत प्रसन्न दिख रहे थे, उन्होंने कोई कटु शब्द नहीं बोले और कहा कि उनके माता और पिता वहाँ उपस्थित थे। उन्होंने हमें वाड़े में जाने के लिए भी कहा।

वापिस आने पर मैंने प्रार्थना की और अपनी पँचदशी की सँगत की। दोपहर की आरती हमेशा की तरह सम्पन्न हुई। शाम होते होते हमने साईं साहेब के दर्शन उनकी सैर के समय दर्शन किए। वे प्रसन्नचित्त थे। वाड़ा आरती हुई और भीष्म ने स्वामीभाव दिनकर और दासबोध का पठन किया, और उसके बाद भजन भी हुए।

जय साईं राम

 


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