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Author Topic: माननीय श्री श्रीकृष्ण खापर्डे की शिरडी डायरी  (Read 84276 times)

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Offline saisewika

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ॐ साईं राम
 
 
१२ दिसँबर १९११-
 
 
मैं और भीष्म यह सोचकर जल्दी उठे  कि काकड़ आरती शुरू होने वाली है लेकिन हम लोग समय से लगभग एक घंटा आगे थे।  बाद में मेघा आया और हम आरती में सम्मिलित हुए। फिर मैंने प्रार्थना की और साईं महाराज के बाहर जाने की प्रतीक्षा में बैठ गया।  मैंने उस समय उनके दर्शन किए और वापस लौटने के बाद भी।   मैंने इसके बीच का समय गोखले के गीत सुनने में बिताया।  वह अच्छा गाते हैं | आज सुबह का नाश्ता देर से हुआ क्योकि मेधा को बेल पत्र नहीं मिल सके और उसे उनके लिए बहुत दूर जाना पड़ा | इसलिए दोपहर की पूजा करीब डेढ बजे तक समाप्त नहीं हुई | साईं महाराज बहुत प्रसन्न भाव में थे वे बैठे हुए बातचीत करते और हँसते रहे।  नाश्ते के बाद मैं कुछ देर लेट गया और फिर अपने लोगों के साथ मस्जिद गया | साईं महाराज आनन्द भाव में थे और उन्होंने एक कहानी सुनाई | पास पड़े हुए एक फल को उठा कर उन्होंने मुझसे पूछा कि , यह कितने फल पैदा कर सकता है | मैंने उत्तर दिया कि , उतने हज़ारों बार जितने बीज इसके अन्दर है | वे बड़ी मधुरता से मुस्कुराए और आगे बोले कि , ये तो अपने ही नियम का पालन करता है।   उन्होंने यह भी बताया कि , किस तरह वहां एक बहुत भली और धर्मनिष्ठ लडकी थी, किस तरह उसने उनकी सेवा की और प्रगति की।
 
 
हमें लगभग सूर्यास्त के समय 'उदी' मिली और साईं महाराज के दर्शन के लिए, जब वे शाम की सैर के लिए बाहर निकलते है, चावड़ी के सामने खड़े हो गए।  हमने उनके दर्शन किए और वापस आकर भीष्म, गोखले, भाई और एक नवयुवक दीक्षित के भजन सुनने बैठ गए।  माधव राव देशपांडे और उपासनी उपस्थित थे।  शाम बहुत सुखद बीती।
 
 
जय साई राम
 

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ॐ साईं राम
 
 
१३ दिसँबर १९११-
 
 
मैं रोज़ की तरह उठा,  प्रार्थना की और स्नान करना चाहा लेकिन गर्म पानी तैयार नहीं था,  इसीलिए बाहर निकला और बातें करने बैठ गया।  मैंने साईं महाराज को जब वे बाहर जा रहे थे , नमस्कार किया और फिर स्नान किया।  फिर मैंने पंचदशी का पाठ किया।  बाद में मैं मस्जिद में साईं महाराज के दर्शन के लिए गया और आरती के बाद लौटा।  लगभग चार बजे मैं , बलवंत,  भीष्म और बंदु के साथ गया जो मेरा हुक्का लेकर आया था।   साईं महाराज ने उसमें से कश लिया। 
 
 
माधव राव ने मेरे अमरावती लौटने के लिए आज्ञा माँगी लेकिन साईं महाराज बोले कि वे इस विषय में कल सुबह निर्णय करेंगे।   उन्होंने वहाँ उपस्थित सभी लोगों को मस्जिद के बाहर कर दिया और अत्यधिक स्नेह से , वास्तव में पितृभाव में मुझे निर्देश दिए।   सूर्यास्त पर हम फिर से गए और चावड़ी के सामने उनके दर्शन किए।   और शेज आरती में सम्मिलित हुए।  फिर भीष्म ने और दिनों से जल्दी ही पंचपदी की।   भाई ने भी एक भजन गाया।
 
 
जय साईं राम

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ॐ साईं राम


१४ दिसँबर १९११-


आज जाने की इच्छा से मैं जल्दी उठ गया | काकड़ आरती में सम्मिलित हुआ, और कुछ जल्दी से पूजा करके माधवराव देशपांडे के साथ मस्जिद में साईं महाराज के पास गया | साईं महाराज ने कहा कि मैं कल जा सकता हूँ | और आगे बोले कि मुझे केवल प्रभु की ही सेवा करनी चाहिए और किसी की नहीं | उन्होंने कहा - " जो भगवान् देते हैं वह कभी ख़त्म नहीं होता और जो मनुष्य देता है वह कभी रहता नहीं "। फिर मैं वापस आ गया और कल्याण के दरवेश साहेब फाल्के को आते देखा।  वे पुराने स्वभाव के बड़े भले व्यक्ति हैं।  श्री शिंगणे और उनकी पत्नी भी उनके साथ हैं।  श्री शिंगणे बंबई के ऊँचे दर्जे के वकील हैं।  वे वकालत की शिक्षा भी देते हैं। 


मैं मध्यान्ह पूजा में सम्मलित हुआ और मैंने बापूसाहेब जोग के साथ नाश्ता किया।   उसके बाद मैं लेटा और मुझे नींद आ गई।  मुझे मस्जिद जाने में थोड़ी देर हो गई और बाद मैं मैंने चावडी के पास साईॅ महाराज को नमस्कार किया।  उसके बाद मैं दरवेश साहेब और श्री शिंगणे के साथ बातचीत करने बैठा।   बाद में भीष्म ने अपना दैनिक भजन का कार्यक्रम सम्पन्न किया।


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ॐ साईॅ राम


१५ दिसँबर १९११-


सुबह प्रार्थना के बाद मैं श्री शिंगणे और दरवेश साहेब फालके के साथ बातचीत करने बैठा।   वे हाजी साहेब भी कहलाते हैं।   उन्होंने बग़दाद, कान्सटेंटीनोपोल, मक्का , और आसपास के स्थानों की यात्रा की है।   उनकी बातचीत बहुत ही सुखकर और शिक्षाप्रद है।  साईं महाराज उन्हें बहुत पसंद करते हैं , उनके लिए भोजन भिजवाते हैं और उनका बहुत ख्याल रखते हैं।


मैंने साईं महाराज के,  बाहर जाते हुए और बाद मैं फिर उनके मस्जिद लौटने पर, दर्शन किए।  वे बहुत ही प्रसन्न मुद्रा में थे और हम सबने उनकी बातों का आनन्द लिया।  खाने के बाद मैं थोड़ी देर के लिए लेटा और फिर मेरे पुत्र बलवंत के द्वारा पड़े गए दिल्ली के एक वृताँत को सुनने बैठ गया।  फिर हम लोग मस्जिद गए।  साईं महाराज का आशीष प्राप्त किया और बाद में शेज आरती के लिए गए।


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ॐ साईं राम


१६ दिसँबर १९११-


पता चला कि मुझे ज़बर्दस्त सर्दी लग गई है।  मैं काकड़ आरती के लिए समय पर नहीं उठ सका।  मैं सुबह तीन बजे उठा और फिर देर तक सोता रहा।  प्रार्थना के बाद मैं दरवेश साहेब फालके के साथ बातचीत करने बैठ गया , जिन्हें लोग बिना जाने बूझे हाजी साहेब या हज़रत कहते हैं।  वे हिन्दू परम्परा के अनुसार एक कर्म मार्गी कहे जा सकते हैं, और उनके पास सुनाने के लिए अनेकों किस्से - कहानियाँ हैं।


 मैंने साईं महाराज के बाहर जाते हुए और बाद में जब वे मस्जिद लौट रहे थे तब दर्शन किए।  वे अत्यंत आनन्द भाव में थे,  और बातें व हंसी मज़ाक करने बैठे।  आरती के बाद मैं अपने ठिकाने पर लौटा , खाना खाया और थोड़ी देर के लिए लेट गया लेकिन सो नहीं पाया।  अमरावती से उन्होंने मुझे अमृत बाजार पत्रिका के अलावा 'बंबई एडवोकेट' के दो अंक भी भेजे , इसलिए पढने के लिए काफी सामग्री है।  सेशन केस के प्रस्ताव के बारे में एक तार भी मिला।  तीन दिन पहले वर्धा में एक केस की पेशकश के बारे में एक तार था।  मैंने उसे अस्वीकार कर दिया क्योंकि साईं महाराज ने लौटने की अनुमति नहीं दी।  आज के तार के बारे मैं भी वही नतीजा हुआ।  माधव राव देशपांडे ने मेरे लिए अनुमति माँगी,  और साईं महाराज ने कहा कि मैं परसों या अब से एक महीने बाद जा सकता हूँ।  इससे मामला तय हो गया है।


मैंने उन्हें अन्य दिनों की तरह चावडी के सामने नमस्कार किया और आरती के बाद हम वाडे में भीष्म के भजन सुनने बैठे | आज नए आने वालों में से श्री हाटे हैं जिन्होंने एल.एम.एण्ड.एस. की परीक्षा दी है | वे बहुत ही भले नवयुवक हैं | उनके पिता जी अमरेली में जज थे और बाद में पलिताना के दीवान बने। मुझे लगता है कि मैं उनके चाचा को जानता हूँ


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१७ दिसँबर १९११-


प्रार्थना के बाद मैंने साईं महाराज के बाहर जाते हुए दर्शन किए और फिर उनके लौटने के बाद | वे अत्यँत प्रसन्न भाव में थे और हमने उनके द्वारा सुनाए चुटकुलों का पूर्ण आनन्द लिया।  नाश्ते में देर हुई क्योंकि मेघराज बेलपत्र लेने के लिए बाहर गया हुआ था।  उसे लौटने में थोड़ी देर हुई।  दोपहर में मैं हाजीसाहेब फाल्के, डा. हाटे, श्री शिंगणे और अन्य लोगों के साथ बातचीत करने बैठा।  गोखले आज चले गये।  लगभग शाम के समय मैं मस्जिद में गया लेकिन साईं महाराज ने मुझे व मेरे साथियों को दूर से नमस्कार करने को कहा।  हालाँकि उन्होंने मेरे पुत्र बलवंत को अपने पास बुलाया और उसे दक्षिणा लाने को कहा।  हम सब ने उन्हें चावड़ी के सामने प्रणाम किया और फिर से रात को शेज आरती में। आज रात साईं महाराज चावड़ी में सोते हैं।


जय साईं राम

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१८ दिसँबर १९११-
 
 
मेरा गला कल से बेहतर है।  प्रार्थना के बाद मैं श्री शिंगणे, वामनराव पटेल और दरवेश साहेब, जिनका पूरा नाम  मालूम पड़ता है कि कल्याण के दरवेश हाजी महोम्मद सादिक है , के साथ बातचीत करने बैठा।  मैंने साईं साहेब के बाहर जाते हुए दर्शन किए और बाद में जब वे लौटे मैं मस्जिद गया।  उन्होंने कहा मैं अपनी बाल्टी भर चुका था , नीम की ठंडी हवा का मज़ा ले रहा था और अपने आप में ही आनन्दित था।  जबकि वे सारी परेशानी झेलते रहे थे और सोये नहीं थे।  वे बहुत ही प्रसन्न थे और बहुत से लोग पूजा करने आए।  मेरी पत्नि भी आई।
 
 
हम लोग दोपहर की आरती के बाद लौटे और खाने के बाद हाजी साहेब, बापूसाहेब जोग और अन्य लोगों के साथ बात करने बैठे।  शाम होने को थी, अतः हम मस्जिद गए और साईं साहेब के समीप बैठे लेकिन ज्यादा समय नहीं रह गया था क्योंकि शाम हो चली थी।  इसलिए उन्होंने हमें विदा किया और हम चावड़ी के सामने खड़े हो गए और रोज़ की ही तरह उन्हें वहीं से नमस्कार किया।  अपने ठिकाने में लौटने पर मैं भीष्म के भजन सुनने बैठा।
 
 
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१९ दिसँबर १९११-


प्रातः मैं जल्दी उठ गया। मुझे तरोताजा, प्रार्थना की और  मैंने हर तरह से बेहतर महसूस किया।  जब मैं प्रार्थना कर ही रहा था कि साईं महाराज बाहर निकले इसीलिए मैं उनके दर्शन न कर सका।  बाद में मैं मस्जिद गया और उन्हें बहुत प्रसन्न चित्त पाया।  उन्होंने कहा की एक अमीर आदमी था जिसके पाँच लड़के और एक लडकी थी।  इन बच्चों ने पारिवारिक संपत्ति का बँटवारा कर लिया।  चार लड़कों ने तो चल और अचल संपत्ति में अपना हिस्सा ले लिया।  पाँचवाँ लड़का और लडकी अपने हिस्से का अधिकार नहीं ले पाए।  वे भूखे घूमते रहे और साईं बाबा के पास आए।  उनके पास जवाहरों से भरी छह गाड़ियां थी।  लुटेरे छह में से दो गाड़ियाँ ले गए।  बाकी चार को बरगद के पेड़ के नीचे खडा कर दिया।  यहीं पर त्रिंबकराव,  जिसे बाबा मारुति कहते हैं , ने टोक दिया और कहानी का रुख बदल गया।


दोपहर की आरती के बाद मैं अपने आवास पहुँचा , खाना खाया और दरवेश साहेब के साथ बातचीत करने बैठा | वे बहुत ही हँसमुख व्यक्ति हैं।  वामनराव पटेल आज चले गए।  दोपहर में राममूर्ति बुवा आए।  भजन के दौरान वे बहुत नाचे-कूदे।  हमने साईं महाराज के शाम को दर्शन किए और फिर शेज आरती के समय।  राममूर्ति बुवा भीष्म के भजन में सम्मिलित हुए और नाचे और कूदे।


आज दोपहर साईं बाबा नीम गाँव की ओर निकले, डेंगले के पास गए, एक पेड़ काटा और वापिस लौटे।  बहुत लोग सँगीत वाद्य लेकर उनके पीछे गए और उन्हें घर लाए।  मैं बहुत दूर नहीं गया।  राधाकृष्णाबाई हमारे वाड़े के पास साईं साहेब का अभिनन्दन करने आई और मैंने पहली बार उन्हें लम्बे घूँघट के बगैर देखा।


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२० दिसँबर १९११-


मैं प्रातः बहुत जल्दी उठ गया और काँकड़ आरती के लिए गया। जब आरती समाप्त होने को थी, उस समय  मैंने वहाँ वामनराव को उपस्थित देखा, इससे मुझे बहुत हैरानी हुई, बाद में पता चला कि उन्होंने रास्ते में कोपरगांव के पास अपने बैलगाडी चालक को अमरुद खरीदने भेजा और बैल भाग गए।  वह फिर भटकते रहे और उन्हें अच्छी खासी परेशानी हुई।


यह बहुत ही आश्चर्यजनक किस्सा था।  साईं महाराज धीमी अस्पष्ट आवाज़ में कुछ बोले और चावड़ी से निकले | उन्होंने केवल अल्लाह मालिक कहा।  मैं अपने आवास पर वापिस पहुँचा,  प्रार्थना की और साईं महाराज के बाहर जाते हुए और फिर उनके मस्जिद में लौटने पर दर्शन किए। वे बड़े ही प्रसन्न भाव  में थे।  दरवेश साहेब ने मुझे बताया कि साईं महाराज ने उन्हें रात को दर्शन दिए और उनकी मनोकामना पूरी की।  मैंने साईं महाराज से इसका उल्लेख किया, लेकिन वे कुछ नहीं बोले।


आज मैंने साईं महाराज की चरण सेवा की।  उनके अँगों की कोमलता अद्भुत है।  हमारे खाने में थोड़ी देर हुई।  इसके बाद मैं आज मिले हुए समाचार पत्रों को पढने बैठा।  शाम होने पर मैं मस्जिद गया और साईं बाबा के आशीष प्राप्त किए।  चावड़ी के सामने उन्हें नमस्कार किया और अपने आवास पर लौट आया।  राम मारूति बाबा भीष्म के भजन में सम्मिलित हुए औए दीक्षित ने रामायण पढी।


जय साईं राम

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२१ दिसँबर १९११-


मैं और दिनों की ही तरह प्रातः उठा , प्रार्थना की और दरवेश साहेब के साथ बातचीत करने बैठा।  उन्होंने बताया कि उन्हें एक स्वप्न हुआ जिसमें उन्होंने तीन लड़कियों और एक अंधी महिला को उनका दरवाज़ा खटखटाते हुए देखा। उन्होंने उनसे पूछा कि वे कौन हैं? तब उन्होंने उत्तर दिया कि वे लोग अपना मन बहलाने के लिए आई हैं, उन्होंने लात की मार से होने वाली दर्द जैसा महसूस किया। इस पर उन्होंने उनसे बाहर निकल जाने को कहा और एक प्रार्थना शुरू कर दी।  वे लडकियाँ और बड़ी औरत प्रार्थना के उन शब्दों को सुनकर भाग खड़ी हुई।  फिर उन्होंने कमरे में उपस्थित सभी के लिए,  घर में सभी के लिए और पूरे गावँ में सभी के लिए दुआ की।  उन्होंने मुझसे साईं साहेब से पूछने को कहा।


मैं साईं साहेब के मस्जिद लौटने के बाद उनके दर्शन के लिए गया। मैं अभी ठीक से बैठा ही था कि साईं साहेब ने एक कहानी शुरू कर दी।  उन्होंने कहा कि कल रात किसी चीज़ से उनके गुप्तांगों पर और हाथों पर मार पड़ी, फिर उन्होंने तेल लगाया , इधर -उधर घूमें,  शौच को गए और फिर आग के पास बेहतर महसूस किया। मैंने उनकी चरण सेवा की और लौटने पर वह कहानी दरवेश साहेब को सुनाई।  उत्तर सपष्ट था।  मध्यान्ह आरती के बाद मैं भावार्थ रामायण पढने बैठा और बाद में चावड़ी के पास साईं साहेब के दर्शन किए,  और बाद में पुनः चावड़ी में शेज आरती पर।  फिर हमने भीष्म के भजन और राम मारूति के हाव भाव व इशारे देखे। फिर उसके बाद में श्री दीक्षित ने रामायण पढी।


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२२ दिसँबर १९११-


मैं काकड़ आरती में जाने के लिए सुबह जल्दी उठ गया , मगर माधवराव देशपांडे के द्वारा की गयी एक टिप्पणी के कारण मैंने नहीं जाने की सोची , लेकिन बाद में माधव राव खुद गए और मैं भी उनके साथ गया | साईं महाराज विशेष रूप से आनन्दित दिखाई पड़ रहे थे, वे चुपचाप मस्जिद गए।  हम सबने उनको उस समय प्रंणाम किया जब वे बाहर गए और बाद में फिर से जब वे मस्जिद में लौटे।  शिंगणे और दरवेश साहेब ने आज जाने का प्रयास किया।  लेकिन साईं महाराज ने आवश्यक अनुमति नहीं दी।


दरवेश साहेब बीमार पड़ गए और उन्हें बुखार हो गया।  डा. हाटे ने उनका इलाज किया।  मेरे ख्याल से मैंने पहले उल्लेख किया है की यहाँ एक टिपनीस अपनी पत्नी के साथ रह रहे हैं। वह महिला बीमार है और डा. हाटे उसके लिए जो कुछ कर सकते थे वह करते रहे हैं।  राम मारुति महाराज भी उसके लिए यहाँ हैं।  शाम को उसको एक दौरा पड़ा , लेकिन यह एक प्रेतोन्माद निकला।  दीक्षित , माधवराव देशपांडे और अन्य लोग उसे देखने गए।  वह जिस घर में रहती है उसके पुराने मालिक और दो महारों के वह कब्जे में है।  उस मकान मालिक ने कहा कि वह उसे मार ही देता लेकिन साईं बाबा ने उसे ऐसा न करने की आज्ञा दी है। महारों को भी साईं बाबा ने दूर रखा है।  जब टिपनीस ने अपनी पत्नि को इस वाड़े मे ले आने की धमकी दी तो उन आत्माओं ने बहुत नम्रतापूर्वक विनती की और उन्हें ऐसा न करने के लिए कहा।  उन आत्माओं ने कहा कि साईं बाबा उनकी पिटाई करेंगें।  सामान्य दिनों की तरह भीष्म के भजन हुए,  और बाद में मध्य रात्रि से कुछ पहले दीक्षित के द्वारा रामायण पाठ हुआ।


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२३ दिसँबर १९११-


मैं प्रातः जल्दी उठ गया लेकिन मुझे फिर से नींद आ गई और फिर मैं बहुत देर से उठा।  नीचे आने पर मैंने पाया कि शिंगणे, उनकी पत्नी और दरवेश साहेब को घर जाने की अनुमति मिल चुकी थी।  इसीलिए शिंगणे बंबई और दरवेश साहेब कल्याण चले गए थे।  प्रत्यक्षतः  दरवेश साहेब आध्यात्मिक रूप से बहुत उन्नत हैं, क्योंकि साईं महाराज, जहां दीवार टूटी हुई है वहां तक उन्हें विदा करने आए।  मुझे उनकी कमी बहुत महसूस हो रही है क्योंकि हम लोगों के बीच लम्बी बातचीत होती थी।


बंबई के सालीसिटर श्री मंत्री अपने चार भाईयों और बहुत सारे बच्चों के साथ कल आए।  वे बहुत ही भले व्यक्ति हैं।  हम बात-चीत करने बैठे।  श्री महाजनी जिन्हें मैं पिछले साल भी मिला था,  कल आए और बहुत अच्छे फल और साईं बाबा के लैम्प के लिए कांच के ग्लोब लाए।  भयंदर के श्री गोवर्धन दास भी यहाँ हैं।  वे बहुत अच्छे फल, और चावडी में साईं महाराज के सुधारे हुए कक्ष के लिए रेशमी पर्दे लाए, और जो स्वयंसेवी छत्र , चँवर , पंखें लेकर चलते हैं, उनके लिए नए परिधान लेकर आए।  वे बहुत ही धनी माने जाते हैं।


माधव राव देशपांडे, मेरी पत्नि व लड़के के बीच दीक्षित वाडे में रहने के बारे में थोड़ा बेमतलब का मतभेद हुआ।  साईं बाबा बोले कि वाडा उनका अपना है, वह न तो दीक्षित का है और न ही माधव राव का, ऐसे मामला अपने आप सुलझ गया।  मैं साईं महाराज के बाहर जाते हुए दर्शन नहीं कर पाया परन्तु उनके मस्जिद में लौटने के बाद मैंने उनका अभिवादन किया | उन्होंने मुझे फल दिए और अपनी चिलम का धुँआ दिया।   दोपहर में खाने के बाद मैं थोड़ा सोया और फिर आज मिले हुए दैनिक समाचार पत्रों को पढने बैठा।


वामन राव पटेल  एल .एल .बी . की परीक्षा में उत्तीर्ण हो गए हैं , डा. हाटे भी इसमें सफल हों ऐसा मैंने चाहा।  साईं महाराज कहते है - उसे बहुत अच्छी खबर मिलेगी।  टिपनीस ने अपना ठिकाना बदल लिया है और उनकी पत्नि बेहतर है।  वह उतनी बेचैन नहीं रहती जैसे पहले रहती थी।  राम मारुति बुवा अभी भी यही हैं।  हम शेज आरती के लिए गए।  शोभा यात्रा बहुत ही प्रभाव पूर्ण थी और नए पर्दे और परिधान भी बहुत सुन्दर लगे।  मैंने इसका बहुत आनन्द उठाया।  कैसी दयनीय बात है कि इस तरह की कीमती भेंट देना मेरे बस में नहीं है।  ईश्वर महान है।  रात को भीष्म ने भजन किए और दीक्षित ने रामायण पढी।


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२४ दिसँबर १९११-


प्रातः मैं जल्दी उठ गया और काँकड आरती में गया।  लौट कर मैंने प्रार्थना की और टहला।  श्री मंत्री को वापस जाने की अनुमति मिल गयी,  इसीलिए वे अपने पूरे परिवार के साथ लगभग हर एक को विदा कह कर चले गए।  वे बहुत-बहुत भले आदमी हैं।  वामन राव पटेल भी चले गए।  उसके बाद बड़ी संख्या में दर्शनार्थी भी आए। उन लोगों में अनुसूयाबाई नाम की एक महिला थी।  वह अध्यात्मिक रूप से विकसित लगी और साईं महाराज ने उनके साथ बहुत सम्मानपूर्वक व्यवहार किया और उन्हें चार फल दिए।  बाद में उन्होंने एक आदमी की कहानी सुनाई जिसके पांच लड़के थे उनमें से चार ने बंटवारे की मांग की, जो उन्हें मिल गया।  इन चार में से दो ने पुनः पिता के साथ मिल जाने का निश्चय किया।  पिता ने माँ से इन दोनों में से एक को जहर देने को कहा और माँ ने उसका कहना मान लिया।  दूसरा एक ऊँचे पेड़ से गिर पड़ा | वह घायल हुआ और मरने ही वाला था लेकिन पिता के द्वारा उसे लगभग बारह साल जीवित रहने की अनुमति मिली तब तक उसके एक लड़का और एक लडकी हुए और फिर वह मर गया।  साईं बाबा ने पांचवे पुत्र के बारे में कुछ नहीं कहा और मुझे यह कहानी अधूरी सी लगी।


दोपहर के भोजन के बाद मैं थोड़ी देर लेट गया और फिर रामायण पढने बैठा।  शाम को रोजाना की तरह हम चावड़ी के सामने साईं साहिब को नमस्कार करने गए और रात को भीष्म के भजन और दीक्षित की रामायण हुई।  डा. हाटे अभी भी इधर है और बहुत बहुत अच्छे आदमी हैं।  श्री महाजनी भी यहाँ हैं।


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२५ दिसँबर १९११-


प्रातः प्रार्थना के बाद मैंने साईं महाराज के बाहर जाते हुए दर्शन किए और श्री महाजनी और अन्य लोगों के साथ बातचीत करने बैठा।  काफी अतिथि चले गए और बहुत से और आए।  यहाँ  सब कुछ अति व्यस्त दिखाई पड़ने लगा।  श्री गोवर्धन दास ने रात्रि भोज दिया और यहाँ लगभग हर एक को आमँत्रित किया।  मेरे बेटे बलवंत  को कल रात एक स्वप्न आया जिसमें उसका सोचना है कि उसने साईं महाराज और श्री बापूसाहेब जोग को हमारे एलिचपुर वाले मकान में देखा | उसने साईं महाराज को भोजन अर्पण किया।  उसने मुझे सपने के बारे में बतलाया और मैंने इसे केवल काल्पनिक समझा।  लेकिन आज उन्होंने बलवंत को बुलाया और कहा , " मैं कल तुम्हारे घर गया और तुमने मुझे खाना खिलाया लेकिन दक्षिणा नहीं दी। अब तुम्हे पच्चीस रूपये देने चाहिए "। इसी लिए बलवंत वापिस अपने आवास पर आया और माधवराव देशपांडे के साथ जा कर दक्षिणा भेंट की।


दोपहर की आरती के समय साईं महाराज ने मुझे पेड़े और फलों का प्रसाद दिया और मुझे बहुत ही स्पष्ट संकेत कर के प्रणाम करने के लिए कहा।  मैंने तुरंत ही साष्टांग प्रणाम किया।  आज नाश्ते में बहुत देर हुई और शाम चार बजे तक भी नाश्ता नहीं हुआ। मैंने गोवर्धन दास के साथ , बल्कि कहूँ तो हमारे आवास के पास ही उनके खर्चे से लगे पंडाल में लिया।  उसके बाद मुझे बहुत सुस्ती आने लगी और मैं बातचीत करने बैठा।  हमने साईं महाराज के दो बार दर्शन किए, शाम को जब वे रोज की तरह सैर पर निकले और फिर से जब उन्हें भजन शोभा यात्रा के साथ चावड़ी ले जाया गया।  कोंडाजी फकीर की लडकी आज रात चल बसी।  उसे हमारे आवास के पास दफनाया गया। भीष्म के भजन हुए और दीक्षित ने रामायण पढी।


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२६ दिसँबर १९११-
 
 
मैं जल्दी उठ गया और काँकड़ आरती में सम्मिलित हुआ। साईं महाराज कुछ असामान्य भाव में थे, उन्होंने अपना सटका लिया और उससे चारों तरफ की जमीन को ठोक कर देखा।  जब तक वे चावड़ी की सीड़ियों से उतरे, तब तक दो बार वे पीछे और आगे गए और उग्र भाषा का प्रयोग किया।
 
 
वापिस आ कर मैंने प्रार्थना की , स्नान किया और अपने कमरे के सामने वाले बरामदे में बैठा।  मैंने साईं महाराज के बाहर जाते हुए दर्शन किए | श्री गोखले, जो पुणे में वकील हैं, वे आए।  वे मेरी पत्नि से शेंगांव में पहले भी मिले थे जब गणपति बाबा इस भौतिक संसार में कार्यरत थे।  उनके साथ भारतीय खिलौनों का एक विक्रेता और कोई अन्य भी था।  वे मुझे दोपहर की आरती के बाद मिले जब मैं भोजन कर चुका था।  मैं दिन के तीसरे पहर में थोड़ी देर के लिए लेट गया और फिर महाजनी , डा.हाटे और अन्य लोगों के साथ बातचीत करने बैठा।
 
 
हमने साईं महाराज को दोपहर में चावड़ी में देखा और सँध्या ढलने पर जब वे सैर के लिए निकले। उस समय वे अत्यँत दयामय प्रतीत हुए।  आज उन्होंने मेरे पुत्र बलवंत से बात की और बाकी सभी को चले जाने के लिए कहने के बाद भी उसे बैठाए रखा।  उन्होंने उसे शाम के समय किसी भी मेहमान को स्थान देने के लिए मना किया और उनका ध्यान रखने के लिए कहा और इसके बदले में वे ( साईं बाबा ) उसका ध्यान रखेंगे।
 
 
माधव राव देशपांडे बीमार हैं, उन्हें बहुत जुकाम है और अगर उन्हें वास्तव में बिस्तर पर पड़े हुए न भी माना जाए तो भी वे बहुत देर से लेटे हुए हैं।  शाम को और दिनों की ही तरह भीष्म के भजन हुए और उसके बाद दीक्षित की रामायण हुई।  श्री भाटे भी वहां पुराण सुनने के लिए उपस्थित थे।  आज हमने सुँदर काँड का पाठ प्रारंभ किया।
 
 
जय साईं राम

 


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