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Author Topic: माननीय श्री श्रीकृष्ण खापर्डे की शिरडी डायरी  (Read 85105 times)

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ॐ साईं राम



१२ मार्च, मँगलवार, १९१२-


जैसे ही मैंने अपनी सुबह की प्रार्थना समाप्त की, समाचार आया कि आज नाना साहेब चाँदोरकर आने वाले हैं। हमने अपनी पँचदशी की सँगत की और आज के कार्य सम्पन्न किए। पुस्तक सम्पूर्ण करने के उपलक्ष्य में हमने दो अनार खाए।

हमने साईं महाराज के बाहर जाते हुए दर्शन किए। जब वे मस्जिद में लौटे तब मैं उनके दर्शन के लिए गया। जैसे ही मैं बैठा , साईं साहेब बोले-"लोग बहुत अज्ञानी हैं, जब वे मुझे स्थूल शरीर में नहीं पाते तो समझते हैं कि मैं अनुपस्थित हूँ।" उसके बाद उन्होंने कहा कि आज प्रातः उन्हें पिम्पलगाँव का ध्यान आया, फिर वहाँ के चार लोगों ने मस्जिद आते हुए उनका पीछा किया। फिर किसी तरह से बातचीत विवाह से जुड़ी निशानियों की ओर मुड़ गई और एक नई बनाई जा रही दीवार की ओर सँकेत करते हुए साईं साहेब ने कहा कि वहाँ एक रास्ता और नीम का पेड़ हुआ करता था। वहाँ एक बूढ़ा आदमी जो कि बहुत धर्मनिष्ठ था, बैठा करता था। वह जालना से आया था और लगभग १२ वर्ष तक उसने वापिस लौटने की नहीं सोची जबकि उसके भाई और परिवार ने उसकी अनुपस्थिति में बहुत दुख झेला। अँततः वह लौटने के लिए चला। वह घोड़े की पीठ पर सवार हो कर चला और साईं साहेब ने एक ताँगे में उसका साथ दिया। जालना पहुँचने पर वह बूढ़ा अपनी पत्नि और चार पुत्रों के साथ रहा, फिर उसने अचानक अपने भाई की बेटी से विवाह करने का निश्चय किया। विवाह सम्पन्न हुआ हालाँकि सबने तिरस्कार की हद तक उसकी हँसी उड़ाई। दुल्हन बहुत अल्पायु थी। अँततः वह बड़ी हुई और बूढ़े आदमी का उससे एक पुत्र हुआ। जब उसका पुत्र ६ वर्ष का हुआ तब बूढ़े व्यक्ति की मृत्यु हो गई। उस लड़के को भाइयों ने ज़हर दे दिया। जवान विधवा और शोकसँतप्त माँ ने सादा जीवन व्यतीत किया, कभी पुनः विवाह नहीं किया और अँततः वे मर गईं। वह लड़का पुनः बाबू बन कर पैदा हुआ, फिर मरा और अब बम्बई में उसका पुनः जन्म हुआ। ईश्वर के कार्य ऐसे ही विशिष्ट होते हैं।


दोपहर की आरती के समय नाना साहेब चाँदोरकर का परिवार आया और कुछ ही देर बाद वह स्वँय आए। उन्होंने एक भोज का आयोजन किया और दोनों वाड़ों के लोगों को आमँत्रित किया। सब कुछ समाप्त होते होते हमें ५ बज गए। बाबा पालेकर नाना साहेब के साथ आए। वह अमरावती से आए हैं और मेरे साथ ठहरे हैं। मैं स्वाभाविक रूप से उनके साथ बैठ कर बात करने लगा। मेरे लोग काफी तँगी में हैं।


मैं साईं साहेब की शाम की सैर में सम्मिलित हुआ। श्रीमान नाना साहेब चाँदोरकर अपने परिवार के साथ वाड़ा आरती के बाद चले गए। उन्हें विदा करने के बाद मैंने और बाला साहेब भाटे ने चावड़ी में शेज आरती में हिस्सा लिया। रात को एक हरिदास ने जो पहले यहाँ ही हुआ करता था, एक कहानी सुनाते हुए कीर्तन किया। हरिदास भुसावल से है।


जय साईं राम

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ॐ साईं राम


१३ मार्च, बुधवार, १९१२-


मैंने काँकड़ आरती में हिस्सा लिया और साईं साहेब अत्यँत प्रसन्नचित्त दिखाई दिए। श्रीमान दीक्षित लगभग प्रातः ९ बजे लौटे। वह अकेले ही आए हैं, पत्नि को वहीं छोड़ दिया है। हम बैठ कर बात करने लगे और पँचदशी की सँगत नहीं कर पाए। काफी अजीब तरीके से मुझे नींद आ गई और मैं लेट गया। हमने साईं महाराज के बाहर जाते हुए दर्शन किए और बाद में मस्जिद में भी। उन्होंने एक लम्बी कहानी सुनाई जिसका सार यह था कि एक वृद्ध पाटिल उनके पास आया करता था, कि कोई चार और बाद में लगभग बारह गोविनदास ( जासूस ) उस पर नज़र रखते थे, कि उस व्यक्ति और उन जासूसों में कहा सुनी हो गई। साईं साहेब ने वृद्ध का साथ दिया, उसके खेत में गए और जब एक बार जासूसों ने वृद्धपर हमला किया तो उनको मारा भी। अन्ततः वह बूढ़ा व्यक्ति उनसे निपटने के लिए एक बड़े शहर में स्थानाँतरित हो गया, कि साईं साहेब ने हस्तक्षेप किया और उसे उनसे छुड़ाया।

बाबा पालेकर को मुझे कल या परसों ले जाने की अनुमति प्राप्त हो गई। दोपहर में हमने अपनी पँचदशी की सँगत की और साईं साहेब की शाम की सैर के समय उनके दर्शन किए। रात्रि में रामायण और स्वामीभाव दिनकर का पाठ हुआ और भजन हुए।


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१४ मार्च, बृहस्पतिवार, १९१२-


मैं प्रातः जल्दी उठा, प्रार्थना की और अपनी पँचदशी की सँगत की। हमने पहले के प्रथम विवेक के कुछ छँदों को पुनः दोहराया। हमने साईं साहेब के बाहर जाते हुए दर्शन किए और बाद में जब वे लौटे तो मैं मस्जिद में गया। बाबा पालेकर पहले गए और कल मेरे अमरावती लौटने की अनुमति प्राप्त की। चलने का निश्चित समय अभी अनिश्चित है।


दोपहर की आरती हमेशा की तरह सम्पन्न हुई और दोपहर के भोजन के बाद मैं थोडी देर लेट गया। सतारा से एक शास्त्री एल॰सँशग्यावती उमा की तरुणाई की औपचारिक घोषणा के लिए आए हैं। उन्होंने साईं साहेब के दर्शन भी किए। दोपहर में हमने अपनी पँचदशी की सँगत को आगे बढ़ाया और शाम होते होते साईं महाराज की शाम की सैर के समय उनके दर्शन किए। रात्रि में वाड़ा आरती और बाद में शेज आरती हुई। मैं दोनों में सम्मिलित हुआ। फिर भीष्म ने थोड़ा स्वामीभाव दिनकर और दासबोध का पठन किया।


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१५ मार्च, शुक्रवार, १९१२-


शिरडी से भुसावल-

मैं प्रातः जल्दी उठा, प्रार्थना की और काँकड़ आरती में सम्मिलित हुआ। साईं बाबा प्रसन्नचित्त उठे और मस्जिद में गए। आज रोहिल्ला की चित्तवृत्ति लड़ाकू थी और बाद में मुझे पता चला कि उसने बूटया को पीटा भी। मैं बाबा पालेकर और श्रीमान दीक्षित के साथ मस्जिद में गया। साईं बाबा रोहिल्ला और बूटया को शाँत करने की लोशिश कर रहे थे। जब वे अपने स्थान पर बैठे तब दीक्षित मेरे अमरावती लौटने की अनुमति माँगने कि लिए आगे बढ़े और वह मिली भी। अतः मैं वापिस लौटा और अपनी पत्नि को मेरे प्रस्थान की तैयारी करने को कहा। वह भीष्म और बन्दु के साथ कुछ और दिन शिरडी में रुकेंगी। मैंने पँचदशी की सँगत की और उसका पहला अध्याय पूर्ण किया। उसके पश्चात मैंने दोपहर की आरती में हिस्सा लिया जो कि हमेशा की तरह सम्पन्न हुई। श्रीमान चाँदोरकर उसके पूर्व आ गए थे अतः उन्होंने स्वाभाविक रूप से उसमें हिस्सा लिया।


मैंने अपना भोजन दीक्षित, चाँदोरकर और अन्य लोगों के साथ किया। भोजन के बाद मैं गया और गाँव के द्वार के पास साईं साहेब से मिला। उनकी आज्ञा पर हम दौड़े और ऊदी लाए और उनके हाथ से वह ली। उन्होंने हमें "अल्लाह भला करेगा" कह कर आशीर्वाद दिया और एक दम से चलने को कहा। अतः मैंने जल्दी से भाटे, जोशी, दादा केलकर, श्रीमान चाँदोरकर, उपासनी, दुर्गाभाऊ, को अलविदा कहा। श्रीमति कौजल्गी और बापू साहेब ने मुझे रोका। बालाराम और युवक दीक्षित साथ ही रामचँद्र भी वहाँ थे। भाई और केशव मिल नहीं पाए।


हम, अर्थात मैं और पालेकर ताँगे से चले और लगभग ४ बजे या उसके हुछ देर बाद कोपरगाँव पहुँचे और शाम ७ बजे तक प्लेटफार्म पर बैठे। शिरडी के कई आगन्तुक दिखाई दिए, जैसे कि नवलकर और डा॰ उजिन्की, और हमने बैठ कर बात की। हम उस रेलगाड़ी से निकले जो शाम ७ बजे निकलती है, और मनमाड पहुँचे। बहुत से यात्री साथ वाले प्लेटफार्म पर इँतज़ार कर रहे थे। मैं स्वयँ रेल में चढ़ा और पालेकर को टिकट लाने के लिए कहा। इसी बीच गाड़ी चल पड़ी और मैंने पाया कि वह चढ़ नहीं पाए। उस डिब्बे में टिकट परीक्षक था। मैंने उसे सब बताया। उसने सुझाव दिया कि मैं भुसावल जाऊँ और वहाँ पालेकर का इँतज़ार करूँ। मैंने वैसा ही किया। मैं अब इँतज़ार कर रहा था और मेरे पास ना तो टिकट था और ना ही एक पैसा ही। टिकट निरीक्षक भला आदमी था लेकिन वो जलगाँव उतर गया।


मैं श्री देवले से मिला जो यहाँ टिकट क्लेकटर हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि मैं या तो प्लेटफार्म पर इँतज़ार कर सकता हूँ या फिर गाड़ी में जो कि नागपुर जाने के लिए खड़ी थी। मैंने गाड़ी में इँतज़ार करने का निश्चय किया।


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१६ मार्च, रविवार, १९१२-


भुसावल- अमरावती-


कुली ने मुझे प्रातः ५ बजे उठाया और प्लेटफार्म पर पहुँचने पर मैंने बाबा पालेकर को वहाँ आते हुए देखा। उन्होंने कहा कि पिछली रात मेरी गाड़ी चले जाने के बाद वह मनमाड के स्टेशन मास्टर से मिले और उन्हें सारी स्थिति से अवगत कराया कि कैसे वह सब कोच के क्लर्क की असावधानी से हुआ। स्टेशन मास्टर एक समझदार व्यक्ति था अतः उसने कम्पनी के खर्चे पर सभी स्टेशनों- भुसावल, बदनेरा और अमरावत में बिना किसी तकलीफ के मुझे चले जाने देने के लिए तार कर दिया। श्रीमान देवले भी आए । मैं और बाबा पालेकर नागपुर यात्री गाड़ी से निकले।


शेगावँ में मुझे श्रीमान गोविन्द राज के पुत्र बाबा मिले। वह एक उप रजिस्ट्रार हैं। मुझे यह सुन कर दुख हुआ कि श्रीमान गोविन्द राज स्वस्थ नहीं हैं। अकोला में वृद्ध श्रीमान महाजनी मेरे डिब्बे में चढ़े और अमरावती तक मेरे साथ सफर किया। पूरे रास्ते हम सामान्य विषयों पर बातें करते रहे। वह नैतिक और धार्मिक उपदेशों के विषय में किसी सभा में सम्मिलित होने जा रहे थे।


अमरावती में नारायण धमरकर और महादेव स्टेशन पर आए थे। घर पहुँचने पर मैं दुर्गे शास्त्री से मिला। वह बहुत कमज़ोर हैं और लगभग सूरदास हैं। उसके बाद मैंने स्नान किया और कुछ खाया भी। मैंने लेटने का प्रयास किया पर मुझे बहुत गर्मी लगी। अतः मैं दैनिक समाचार पत्र पढ़ने लगा और कुछ लिखा।


करँदिकर, रघुनाथराव टीकेकर, असनारे, भाऊ दुरनी, काका तारुबे, श्रीराम खातरे, गोपालराव दोले, व॰के॰ काले और अन्य लोग दिन में और शाम को मुझसे मिलने आए और मैं बैठकर उनसे अपने शिरडी प्रवास,वहाँ की जीवन शैली और साईं साहेब की महानता के बारे में, जो कि लगातार मेरे मस्तिष्क में समाए हुए थे, बातें करता रहा। हम कुछ देर छत पर बैठे। मुझसे मिलने गोखले भी आए। मैं बहुत थक गया और मैं जल्दी आराम करूँगा।


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१७ मार्च, रविवार, १९१२-


मैं प्रातः थोड़ा देर से उठा और प्रार्थना के बाद अपनी पुरानी जीवन शैली में लौटने का प्रयास किया। कुछ मुव्क्किल आए और कुछ लोग मुझसे मिलने आए। मैंने बैठकर उनसे बात की। मैंने कुछ पत्र लिखे। डा॰ शाहानी आए और मेरे सुझाव पर अगले बुधवार को दुर्गे जोशी की बाईं आँख की शल्यचिकित्सा करने को तैयार हो गए। अकोला में एक बड़े मुकदमें का प्रस्ताव है। गोरे भी कोनकन के एक ब्राहम्ण के साथ आए। दोपहर के भोजन के तुरँत बाद श्रीमान नाटेकर जो हमसा के नाम से जाने जाते हैं, अकोला से पुरोहित के साथ आए। उन्होंने ऐसा करके बड़ी कृपा की। वह एक धार्मिक व्यक्ति हैं, यौगिक तपस्या करते हैं और उनन्त शक्तियाँ प्राप्त कर चुके हैं। हम उनके साथ बात करने बैठे। हिमालय में उनके अनुभव अद्भुत हैं, और मैं उनके बारे में सुनते हुए कभी नहीं थकता।

वी॰के॰काले और करँदिकर हमारे थियोसोफिक समाज में जाने के लिए आए पर हमसा के मेरे साथ होने के कारण मैं नहीं गया। शाम होते होते हमसा थोड़ी देर हवा खाने गए। कल और परसों उनको थोड़ा बुखार और पेट दर्द था। उन्हें आज भी वह तकलीफ है। मैं बामनगाँवकर, वामनराव जोशी, भाऊ दुरानी, बाबा पालेकर, श्रीराम और अन्य लोगों के साथ छत पर बातें करने बैठा। हमसा कल चले जाना चाहते हैं।


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१८ मार्च, सोमवार, १९१२-


अमरावती-

यहाँ शिरडी जैसा आध्यात्मिक वातावरण नहीं है और मैं अपने आप को अत्याधिक कष्ट में महसूस कर रहा हूँ बावजूद इसके कि हमसा मेरे साथ एक छत के नीचे हैं और उनका प्रभामँडल बहुत शक्तिशाली है। मैं वैसे ही उठना चाहता हूँ जैसे कि शिरडी में उठता था, पर नहीं उठ पाया और सूर्योदय से पूर्व मेरी प्रार्थना पूरी करने के लिए मुझे काफी मेहनत करनी पड़ी। उसके पश्चात मैंने आज की याचिका को देखा, जल्दी तैयार हुआ और कुछ खा कर न्यायलय गया। मैं श्री ब्राउन को उनके न्यायलय के पास मिला और एक मुकद्दमें मे मुझे इतना समय मिला कि मैं हमारा लिखित बयान दे सकूँ। फिर मैं श्री प्राइस के न्यायलय में गया और उन्हें एक सेशन के मुकद्दमें में व्यस्त पाया। वह याचिकाँए नहीं सुन सकते थे, अतः मेरा काम खत्म हो गया। मैं बार रूम में गया और और श्रीमान पालेकर को, जो कि मेरे साथ आए थे, वहाँ बैठा हुआ पाया।


मैंने उनके साथ बैठ कर बात की और उन्हें तीन रुपये दिए जो कि मेजर मोरिस को दिए जाने वाले सम्मानसूचक रात्रिभोज के लिए सचिव को देने थे। ताँबे, दारुले, और भिडे वहाँ आए और साथ ही श्री नारायण राव केतकर भी। ऊनके साथ बात करने के बाद मैं गोपालराव दोले और दारुले के साथ घर आया। दोले मेरे साथ ही सुबह न्यायलय गए थे। घर लौटने पर मैं हमसा और अन्य लोगों के साथ बात करने बैठा जो हमसा को देखने आए थे। उनकी तबियत कुछ ठिख नहीं लग रही थी। बाद में उन्हें ठीक लगा। फिर हम बाबा पालेकर के आवास पर गए जहाँ हमसा ने दूध और फल लिए।


तदन्तर हम रेलवे स्टेशन गए, वहाँ मैंने दिओलघाट के नवाब को , वृद्ध श्री महाजनी और अन्य लोगों को देखा। हमसा शाम की गाड़ी से पुरोहित के साथ मोरतुगापुर चले गए। मेरा पुत्र बाबा और कुछ अन्य बदूरा चले गए और मैं घर वापिस आ गया। मैं करँदिकर, वी॰क॰ काले, वामनराव जोशी, जयराम पाटिल और अन्य लोगों के साथ छत पर बैट कर बात करने लगा। बाद में मुझे व्ह॰ वी॰ जोशी का एक पत्र मिला जिसमें कहा गया था कि मुझे श्री मोरिस के प्रीतिभोज में सम्मिलित होने से मना किया गया था क्योंकि उसे श्री स्लाय और दूसरे पसँद नहीं करते। मैं परिस्थिति को समझ नहीं पाया। यह प्रीतिभोज बार और बेन्च की ओर से दिया जाना था और मुझे उसमें सम्मिलित होने का पूरा अधिकार था। इस बात से फर्क नहीं पड़ता था कि श्री स्लाय और अन्य उसे पसँद करें या नहीं। हम बैठ कर बहुत देर तक बात करते रहे।


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४ जून, मँगलवार, १९१२-
अमरावती-


प्रातः मैं जल्दी उठा, प्रार्थना की और हॅाल में बैठ कर पँजीकरण कानून के प्रमाण खोजने लगा। बाद में श्री असगा खान आए और मैंने उनके लिए यिओतवाल में प्रस्तुत करने के लिए याचिका तैयार की। दोपहर के भोजन के बाद मैं लेटा पर आराम नहीं कर सका, अतः उठा और बैठ कर पढ़ने लगा। केलकर ने महारालता में बम्बई सरकार के केसरी से सुरक्षा की माँग की कार्यवाही के खिलाफ बहुत अच्छा विरोध प्रस्तुत किया है। उन्होंने कथित ठेस पहुँचाने वाले लेखों का अनुवाद किया है। अनुवाद में कुछ सुधार की गुन्जाईश है और मैंने सुधार करने का सोचा भी परन्तु उसके लिए सँदर्भ पुस्तकों की आवश्यकता थी और दिन में बहुत ज़्यादा गर्मी के कारण भी मैंने कार्य कल के लिए छोड़ दिया।

मैं हवा खाने के लिए वी॰ के॰ काले के साथ गया और फिर बुरुँगाँवकर , केसारिसा और ब्वाजी के साथ बात करने बैठा।

आज मुझे शिरडी से माधवराव देशपाँडे ने साईं महाराज के कहने पर एक पत्र भेजा है जिसमें मुझे आदेश दिया है कि मैं श्रीमान करखानिस को मिलूँ और उन्हें अपनी पत्नि को वापिस बुलाने और उसके साथ अच्छा व्यवहार करने को कहने को कहूँ। साईं महाराज ने कहा है कि वह बहुत भाग्यशालिनी स्त्री है और उसकी उपस्थिति कारखानिस और मुझे बहुत लाभ पहुँचाएगी। करखानिस यहाँ नहीं है। जब वह अपनी छुट्टी से बापिस आएगा तब मैं अपनी ओर से पूरी कोशिश करूँगा।


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५ जून, बुधवार, १९१२-
अमरावती-


मैं रोज़ के मुकाबले ज़रा जल्दी ही उठ गया, प्रार्थना की और फिर कुछ देर बरामदे में घूमने के बाद हॅाल में बैठा। मुझे साईं बाबा के श्रीमति करखानिस के विषय में दिए गए आदेशों को ले कर कई पत्र लिखने हें। मैंने माधवराव देशपाँडे, शिरडी के गोपाल राव जोशी और स्वयँ साईं बाबा को भी पत्र लिखा। फिर मैंने एक पत्र श्रीमति करखानिस के पिता को भी लिखा। दोपहर के खाने के बाद मैं कुछ देर लेट गया और फिर बैठ कर पढ़ने लगा। मैंने दोपहर को भी कुछ पत्र लिखे।


वी॰ के॰ काले उपनिषद के पठन के लिए कुछ जल्दी आए पर यिओतवाल के श्रीमान भाऊजी पेशवे आ गए और हम बैठ कर बात करने लगे। बेचारे पेशवे दिमाग से कुछ प्रभावित हैं। वह कोई काम नहीं करते और सबसे बुरी बात यह है कि वह अपने ही लोगों और सँबँधियों से नफरत करते हैं। उनके वृद्ध पिता स्वाभाविक रूप से बहुत चिन्तित रहते हैं।


मैंने शाम की सैर पेशवे और वी॰ के॰ काले के साथ की। बमनगाँवकर भी आए। हमने बैठ कर वी॰क॰काले का लिखा हुआ एक निबँध और माँडुक्य के एक भाग का पठन भी किया। वहाँ कई मुवक्किल भी थे। मैंने उन्हें कल सुबह आने को कहा। रात को ब्वाजी और जयँतराव आए और हमने बैठ कर बात की।


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१७ जून, सोमवार, १९१२-
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मैं प्रातः जल्दी उठा और हॅाल में बैठ कर दो याचिकाँओ के ज्ञापन बनाए और बाद में श्रीमान असगर हुसैन की सहायता से यिओतवाल के मुवक्किल के लिए याचिका बनाई। इसमें ही पूरी सुबह चली गई। दोपहर की आरती कर बाद मैं थोड़ी देर लेट गया पर मुझे आराम करने के लिए मुझे बहुत बँद और गर्म लगा। अतः मैं उठ गया और बैठ कर पढ़ने लगा। दोपहर को बारिश शुरू हो गई और रात होने तक गिरती रही। करँजा से एक आदमी आया और उसने एक लम्बी कहानी सुनाई कि किस प्रकार कुछ युवकों ने एक सँस्था अन्धे, लँगड़े और गरीबों की सहायता के लिए बनाई, किस प्रकार उन्होंने छोटी सी धन राशी एकत्रित की और उसे पहले बापू साहेब घुडे, फिर जोधा के और फिर एक पलोसकर के पास रक्खा लेकिन कभी भी सँतोषजनक रूप से उसका हिसाब नहीं दे पाए। पुलिस को उसकी भनक लग गई और वह अब पूछताछ कर रही है। बाद में वी॰ के॰काले, असनारे, गोडबोले और हमारे अन्य लोग आए और हम बैठ कर बात करने लगे। मुधोलकर के विरूद्ध मुकद्दमा दायर कर दिया गया है। वह हिसाब किताब के सिलसिले में ही है।


इसके पश्चात करखानिस आए। मैंनें उन्हें माधवराव देशपाँडे द्वारा साईं महाराज के कहने पर लिखा गया पत्र पढ़ने के लिए दिया। उसने कहा कि वह साईं महाराज के प्रति गहन श्रद्धा रखता है और उनकी हर बात मानेगा सिवाए अपनी पत्नि के मामले को ले कर। मैंने उसे जा कर साईं महाराज के दर्शन करने को कहा। उसने कहा कि वह अभी ऐसा नहीं करेगा। और अँत में मैंने उसे रोज़ साईं महाराज की पूजा करने के लिए कहा और वह ऐसा करने को तैयार हो गया।


उसके जाने के बाद ब्वाजी आए और हमने बैठ कर बात की। वह अपने साथ एक मोची को लाए, उसने मेरे पैर का नाप लिया और कहा कि वह मेरे लिए एक चप्पल बनाएगा। हालाँकि बहुत बारिश नहीं हुई थी पर हमें अच्छा और ठँडा लगा।


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१८ जून, मँगलवार, १९१२-
अमरावती-

प्रातः मैं जल्दी उठा, प्रार्थना की और मुतसुई भूषण कुइशा के मुकद्दमें के प्राधिकारियों को नोट किया। मैंने श्रीमान पराँजपे के मुकद्दमें की गवाही के कागज़ात भी देखे। सुबह का नाशता जल्दी कर के मैं अपने पुत्र बाबा और भाऊ दुर्रानी के साथ न्यायलय गया। श्रीमान प्राइस के सम्मुख वाला मुकद्दमा स्थगित कर दिया गया। मैं श्रीमान पराँजपे के सम्मुख प्रस्तुत हुआ। दूसरे पक्ष के पास सिर्फ दो गवाह थे और उसमें से एक की ही गवाही हुई और मुकद्दमा स्थगित हो गया।


उसके बाद मैं बार रूम में गया , काँगा को खोजा किन्तु वह नहीं मिला और छोटे न्यायलय में चला गया। वहाँ मुझे लगभग दो घँटे से ज़्यादा प्रतीक्षा करनी पड़ी। श्रीमान काँगा शाम ३ बजे के बाद आए। फिर मुकद्दमें पर बहस हुई और उन्हें हमारा एक मुद्दा मानना पड़ा। मुकद्दमा स्थगित हो गया और मैं घर लौटा। असनारे वहाँ थे पर वह दूसरी तरफ से हाजिर हुए थे।

शाम को वी॰क॰काले, असनारे, शामराव देशपाँडे, करँदिकर और अन्य लोग आए और हम बैठ कर बातें करने लगे। मैं यह बताना भूल गया कि मेरा तीसरा पुत्र बलवन्त आज सुबह सतारा से वापिस आ गया। वह कुछ दिन पूना में रुका और रास्ते में तिलक परिवार से मिला। वह पूना में श्रीमान भुसारी के साथ रुका था।

मैंने शिरडी के माधवराव देशपाँडे को करखानिस के साथ हुई बातचीत का पूरा ब्यौरा पत्र मे लिखा।

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२७ जुलाई, शनिवार, १९१२-
नागपुर-

मैं प्रातः उठा और बगीचे में घूमते हुए अपनी प्रार्थना की। वहाँ रुक रुक कर बारिश हो रही थी और मुझे या तो एक वृक्ष के नीचे या बरामदे में शरण लेनी पड़ती थी। जब मैं नहा रहा था तब श्री नीलकँठ राव उद्धवजी श्रीमान पँडित तथा उनके गोद लिए पुत्र के साथ आए और हमने बैठ कर बात की। वह मेरी शिरडी यात्रा और वहाँ ठहरने के ब्यौरे के बारे में जानने को अति उत्सुक हैं, और बातचीत स्वाभाविक रूप से साईं महाराज के बारे में हुई।

उन्होंने ने मुझे, गोपालराव बूटी, और दोरले को कल दोपहर के भोजन के लिए आमँत्रित किया । हमने इस शर्त पर आमँत्रण स्वीकार कर लिया कि वह सुबह के नाशते के लिए हमारे साथ रुकें और उन्होंने वैसा किया भी। भोजन देर से हुआ और उसके बाद मैं लेट गया, तभी उठा जब भगीरथ प्रसाद, बल्लाल और नारायण राव आलेकर के आने पर मुझे उठाया गया। हमने बैठ कर बात की। श्रीमान नीलकँठ राव आलेकर के साथ चले गए।

बाद में मैं दोरले और भैरुलाल, जो आज आए थे, उनके साथ डा॰ मूँजे के घर गया। हम बहुत से दोस्तों के साथ बैठ कर बात करते रहे और फिर राम मँदिर के कीर्तन में गए। वह किसी घुले ने किया परन्तु प्रस्तुति बुरी थी। हम डा॰ मूँजे के घर में सोए।

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४ जुलाई, शुक्रवार, १९१३-
अमरावती-


प्रातः मैं रोज़ाना की तरह उठा , प्रार्थना की और कुछ पत्र लिखे। गोडबोले आए। भोजन के बाद मैं गोडबोले के साथ न्यायलय गया और श्रीमान मोरिस के सम्मुख प्रस्तुत हुआ। वहाँ मेरी केवल एक याचिका थी और वह जल्दी ही खत्म हो गई क्योंकि वह शुद्धतः गवाही पर निर्भर थी। देशपाँडे दूसरी ओर से उपस्थित हुए। उसके पश्चात मैंने कुछ कागज़ों पर हस्ताक्षर किए और घर वापिस आया तथा पढ़ने लगा। हैदराबाद के शीरालाल मोतीलाल के गुरूष्टा मुझसे मिलने आए और वार्तालाप किया। जब वह बैठे ही थे कि असनारे आए और मुझे राजा अविकशेत की कहानी पढ़ कर सुनाई। वह एलिचपुर में होने वाले गणपति उत्सव में उसका नाट्य रुपाँतरण प्रस्तुत करना चाहते हैं। वह एक बहुत सुन्दर कहानी है और बहुत रोचक रहेगी। हम बैठ कर उसके बारे में बात करते रहे। दुर्रानी आए पर शीघ्र ही चले गए। बेरार शिक्षा समिति की प्रबँध समिति ने नियम में सँशोधन किया। उन्हें सामान्य सभा के समक्ष प्रस्तुत और उसके द्वारा पास कर दिया जाना चाहिए।

मैं शाम की हवा खाने मिरज़ा याद अली बेग के साथ गया। बाद में अप्पा साहेब वटावे आए और हमने बैठ कर बात की। आज शुक्रवार होने के कारण कोई कक्षा नहीं थी। त्रिम्बक राव, जो जब मैं शिरडी में था, वहाँ साईं महाराज की सेवा किया करते थे, वह दोपहर को आए। उन्होंने कहा कि वह जगन्नाथ जा रहे हैं, उन्होंने अपना पहनावा पूरी तरह से बदल दिया है। अब वह वैसी लम्बी कमीज़ पहनते हैं जैसी साईं महाराज पहनते हैं और उसे पहने हुए ही भोजन करते हैं1


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१४ जुलाई, मँगलवार, १९१४-
नागपुर-अमरावती

मैं प्रातः ७ बजे नागपुर पहुँचा। वर्धा से जो गाड़ी जुड़ी, उसमें मैं एल॰ सी॰ बूपत से मिला। वह, मैं और दोरले बूटी की गाड़ी में गए। वह बूटी के महल के पास उतर गए, और मैं और दोरले वाड़े में चले गए। मैं बैठ कर आज की दूसरी याचिका को देखने लगा। मुवक्किल आए और उन्होंने पैसा अदा किया। भोजन के बाद मैं और दोरले न्यायलय गए और शीघ्र ही हमारे मुकद्दमें की सुनवाई हुई। जनाब बी॰के॰ भोसे हमारी ओर से प्रस्तुत हुए। ढिल्लों, जोशी और अभ्यँकर दूसरी ओर से प्रस्तुत हुए। जनाब भोसे ने न्यायलय को बड़ी सक्षमता से सँबोधित किया। श्री ढिल्लों ने जवाब दिया और जोशी ने उसमें कुछ जोड़ा, उन्होंने कहा था कि वह कुछ शब्द कहेंगे, पर वह एक भाषण जितना लम्बा हो गया। इसने बहुत समय ले लिया और जब तक उन्होंने समाप्त किया तब तक शाम के ५ बज गए।

हम बूटी के वाड़े तक गए। एल॰सी॰ बापत पुनः राजा राम पुस्तकालय के पास कहीं चले गए। श्रीमान अभ्यँकर मुझसे किलने आए और हम देर तक बातें करते रहे। फिर बारिश भी होने लगी। बाद में डा॰ मूँजा आए और चुनाव के विषय में बात करते रहे।

सावत राम रामप्रताप के कर्मक हमें मिलने के लिए आए और बैठ कर बात करते रहे। गणपत राव नारके यहाँ हैं, और सभी बच्चे भी। गोपाल राव बूटी शिरडी में हैं। मैं शिरडी के साईं महाराज के बारे में देर तक गणपत राव नारके के साथ बात करता रहा। वे एक महान सन्त हैं रात ९ बजे मैं और दोरले रेलवे स्टेशन पहुँचे और ९॰५० की गाड़ी ली हम यहाँ दिन निकलते ही पहुँच गए। बडेरा में मैं बेदोरकर कान्गा और अन्य लोगों से मिला।

जय साईं राम

Offline saisewika

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ॐ साईं राम


२९ दिसँबर, बुधवार, १९१५,
शिरडी-

मैं प्रातः लगभग ३॰३० बजे मनमाड में जागा और कोपरगाँव जाने वाली गाड़ी में बैठा। मैंने गाड़ी में ही प्रार्थना की और दिन चढ़ने से पहले ही कोपरगाँव पहुँचा और वहाँ डा॰ देशपाँडे से मिला, जो कि कोपरगाँव के औषधालय में प्रभारी हैं। मैं उन्हें पहले से नहीं जानता था। मैंने उन्हें और उनके पुत्र को औषधालय तक अपनी सवारी में जगह दी और उन्होंने मुझे गर्म चाय की प्याली और कुछ खाने को दिया। वहाँ गहरा कोहरा था और मुझे उसमें गाड़ी चला कर कोपरगाँव से पहुँचने में सुबह के ९ बज गए। मेरी पत्नि और बच्चे वहाँ थे।

मैं माधवराव देशपाँडे के साथ मस्जिद में गया और साईं महाराज को प्रणाम किया। उनका स्वास्थय बहुत खराब था। उन्हें खाँसी से बहुत तकलीफ हो रही थी। मैंने पूजा के समय छत्र पकड़ा। यहाँ दिन बड़ी सरलता से कट जाता है। जी॰एम॰बूटी उर्फ बापू साहेब अपने स्वामी गुरुष्टा के साथ यहाँ हैं। काका साहेब दीक्षित, बापू साहेब जोग, बाला साहेब भाटे और सभी पुराने मित्र यहाँ हैं। और मैं बहुत ही ज़्यादा खुश हूँ।

जय साईं राम

 


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