का से कहूँ पीर जीया की, का को अपना दर्द कहूँ रे
जिस साईं संग प्रीती लागी,वा साई संग कैसे रहूँ रे?
उसका कोई रूप नही रे, ना कोई वा की मूरत रे,
बस नैनों मे समा रखी है, मैने उसकी सूरत रे।
वा साई है मोरी प्रीती, वा साई मेरा संगी रे,
उस निराकार में डूब रह है, मोरा हर इक अंगी रे।
मोरे मन मे आन बसो अब,छोडके आँख मिचोली रे,
अब मोसे और सही ना जाए-तोरी ये ठीठोली रे।