ॐ सांई राम।।।
जिन्दगी है खेल कोई पास कोई फेल खिलाड़ी है कोई अनाड़ी है कोई....बाबा समझे क्या? नन्ही नन्ही जीवन की गाड़ियाँ सबकी यूँही चलती रहें। पटरियाँ सबकी अलग-अलग पर ठिकाना तो एक है। श्रद्दा और सबूरी के दो इंजन हो आगे और पीछे तो फिर चाहे जितनी ज्यादा सवारियाँ हो उसमे, भागेगी अपनी गाड़ी साँई रफ्तार से। क्यों?
बिन मांगी दुआ से तुम मिले मुझे मेरे दोस्त...
कैसे करूं मैं तेरी दोस्ती का हक अदा...
ऐ मेरे दोस्त!.. मैं कैसे करूं तेरा शुक्रिया...
कड़कती धूप में जल रही थी मेरी ज़िंदगी...
तुम लेके आये प्यार का घना साया..
मुझे जो रखा पलकों की छांव तले...
ऐ मेरे दोस्त!... मैं कैसे करूं तेरा शुक्रिया...
अंधेरी, सीली फ़िज़ां में घुटता था दम मेरा...
सहमी सांसें, खोई थी रोशनी कहीं...
तुम बन के आये खुशी का उजियारा..
खुद से पहचान कराके किया जो मुझे रोशन..
ऐ मेरे दोस्त!.. मैं कैसे करूं तेरा शुक्रिया..
डरा, सहमा मैं था अकेला.. बिल्कुल तन्हा....
साथी भी सारे बन गये थे अजनबी...
ऐसे में तुमने साया बन साथ निभाया...
श्रद्दा और सबूरी के दो बनाये मेरे साथी...
ऐ मेरे दोस्त!.. मैं कैसे करूं तेरा शुक्रिया...
मेरे सूने मन पर जब अंधेरा गहराया...
खो दी थी मैंने मंज़िल की राह भी...
ऐसे में तुमने हाथ पकड़ चलना सिखाया..
शिरडी की राह दिखा के जो चले मेरे संग....
ऐ मेरे दोस्त!... मैं कैसे करूं तेरा शुक्रिया...
मेरा खाली दामन तुम्हें कुछ भी ना दे पाया..
पर मेरी सारी मुश्किलें तुमने थाम लीं...
और तुम हर पल बने रहे मेरा सरमाया...
मैरे आंसू पोछ के तुमने मुझे हंसना सिखाया....
ऐ मेरे दोस्त!... मैं कैसे करूं तेरा शुक्रिया...
ॐ सांई राम।।।