मेरे साई
साई-साई कह रहे, सारे संत फकीर!
साई को वह पा सके,जो हो सरल लकीर!
साई तो कहते रहे,ले जा मुझसे ज्ञान!
हम ही भटक कर रह गए, जोड़ उठे समान!
साई ने फिर भी कहा,मांग ले तू मुस्कान!
साई को न मांग कर, मांगी नई दूकान!
साई मुझसे दूर कब,वो तो सदा है पास!
नेह गंध की च्चँव में,साई का अहसास!
साई के दरबार में,सब धर्म एक समान!
मानवता एक धर्म है, सब धर्मो की खान!
हम क्या पाये आज तक ,मन में करो विचार !
पाओ बस साई कृपा, पाओ उसका प्यार!