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Author Topic: बाबा की यह व्यथा  (Read 229051 times)

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Offline Ramesh Ramnani

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    • Sai Baba
Re: बाबा की यह व्यथा
« Reply #135 on: August 18, 2009, 07:29:49 AM »
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  • जय सांई राम।।।

    बहुत खूब सुरेखा जी। वाह।

    जहां तुम्हारी आंखें भर जाएं; वंही झुक जाना। जिससे तुम्हारे नेत्र तृप्त हों; वहीं झुक जाना। जिससे तुम्हें सुख की झलक मिले, वहीं झुक जाना। जहां शांति का आकाश खुले; वहीं झुक जाना।  यही अर्चना है, यही प्रार्थना है, यही बंदगी है बाबा के प्रति।

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई
    ॐ सांई राम।।।
    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

    Offline saisewika

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    Re: सबका मालिक एक
    « Reply #136 on: September 03, 2009, 07:56:29 AM »
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  • ॐ साईं राम


    साईं नाम सुनाम के
    परम भाव अनेक
    अति उत्तम इक भाव है
    सबका मालिक एक

    द्वैत भाव की तोड कर
    बीच खडी दीवार
    ईश सभी का एक ही
    बतलाया करतार

    प्राणी प्राणी में करो नहीं
    जाति धर्म का भेद
    प्रेम सभी के ह्रदय बसे
    होवे नहीं विच्छेद

    जन्म से ऊँचा कोई नहीं
    ना नीचा कोई धर्म
    ऊँचा उसी को जानिए
    जिसके ऊँचे कर्म

    तेरा मेरा करे नहीं
    हिंदु या इस्लाम
    जन जन बाँटे प्रेम जो
    सज्जन वही सुजान

    सम है सभी में आत्मा
    सम है सभी में प्राण
    एक ही साईं सबका है
    सबमें साईं मान

    सबका मालिक एक है
    अल्लाह कहो या राम
    रस्ते चाहे अलग अलग
    सबका एक ही धाम

    सागर में नदिया कई
    आकर के मिल जावें
    छोड के निज अस्तित्व को
    सागर ही कहलावें

    ऐसे ही सब आत्मा
    परमात्मा का अंश
    एक में जाकर सभी मिलें
    होवें तभी अनन्त

    जय साईं राम

    Offline saisewika

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    Re. प्रेम याचना
    « Reply #137 on: September 08, 2009, 08:31:25 AM »
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  • ॐ साईं राम

    साईं पावन प्रेम का
    मुझे दीजिए ज्ञान
    परमात्मा से प्रेम का
    पाऊँ अनुपम दान

    तुमसे ही बस प्रीति हो
    मोह माया को त्याग
    सच्ची लगन हो प्रभु से
    भक्तिमय अनुराग

    तेरे प्रेम में मैं पडूँ
    भूल के जग के बन्ध
    प्रेममय रस पान करूँ
    पाऊँ मैं मकरन्द

    तेरी प्रेम नगरी में मैं
    करूँ प्रेम से वास
    तुझ से जोडूँ नाता मैं
    बंधू प्रेम के पाश

    तेरे प्रेम में झंकृत हों
    मेरे मन के तार
    प्रेम नाद छिड जावे तो
    छूटें सभी विकार

    दुख आवे,सुख जावे चाहे
    जीवन में सौ बार
    तुमसे प्रीति कम ना होवे
    बढता जाए प्यार

    तेरे प्रेम वियोग में
    मैं रोऊँ और बिलखूँ
    प्रेम पगी दृष्टि से साईं
    तुझको ही मैं निरखूँ

    प्रियतम साईं तुम्हें लिखूँ
    भक्ति भाव की पाती
    शब्दों में हो प्रेम गंग
    अमृत रस बरसाती

    प्रेममयी भक्ति करूँ
    पूर्ण भाव के संग
    रोम रोम हो प्रेम भरा
    मन में प्रेम उमंग

    तुझमें श्रद्धा सबुरी ही
    विशुद्ध प्रेम का रूप
    तुझसे प्रेम विरक्त जो
    पडे अन्ध के कूप

    जय साईं राम

    Offline saisewika

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    Re: तन्हाई
    « Reply #138 on: September 10, 2009, 09:39:45 AM »
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  • ॐ साईं राम

    वो अक्सर मुँह अँधेरे ही चली आती थी
    मैं चाहूँ ना चाहूँ, मेरे पास ही मँडराती थी

    मैंने कई बार उसे दुत्कारा और भगाया था
    पर अक्सर उसे अपने नज़दीक ही पाया था

    सच बताऊँ, मैं उससे बहुत डरती थी
    वो आज ना आए, हर दिन दुआ करती थी

    पर रोज़ की तरह, वो उस दिन भी चली आई
    मुझे देखा और व्यंग्य से मुस्कराई

    मैंने कहा- तुम रोज़ क्यूँ चली आती हो
    जानती तो हो कि तुम मुझे बिल्कुल नहीं भाती हो

    वैसे भी नहीं चाहिेए मुझे तु्म्हारा साथ
    क्योंकि मेरे साथ हरदम हैं मेरे साईं नाथ

    वो बोली दिल के बहलाने को तुम्हारा ये ख्याल अच्छा है
    पर सच बताऊँ, साईं से तुम्हारा प्यार अभी कच्चा है

    अगर ऐसा ना होता तो मैं तुम्हारे वजूद पर छा नहीं सकती थी
    और जिस दिल में साईं रहते हों,उसमें मैं समा नहीं सकती थी

    अच्छा सच बताओ-
    जब तुम नहीं देखती, तब भी तुम्हारे घर में टी वी कयूँ चलता रहता है
    क्यूँ तुम भरम पालती हो कि तुम अकेली नहीं,तुम्हारे संग कोई रहता है

    क्यूँ तुम्हारे कान दरवाज़े की घंटी पर लगे रहते हैं
    और क्यूँ अक्सर तुम्हारी आँखों से आँसू बहते हैं

    वैसे तुम ही नहीं, बहुत से लोग मुझ से घबराते हैं
    और कई तो भीड में भी मुझे अपने साथ ही पाते हैं

    यह कह कर तन्हाई "खामोश" हो गई, और मुझे निहारा
    पहली बार मुझे उसका साथ लगा अनोखा और प्यारा

    उसने आज मुझे एक कडवा सच बतलाया था
    पल भर में ही दूर हो गया मायूसियों का साया था

    मैनें कहा शुक्रिया तन्हाई, तुम्हारी बातों ने आज मुझे चेताया है
    और साईं साथ हों तो तुम्हारा वजूद नहीं ये सच मुझे समझाया है

    अब तुम मेरे आस पास रहो मुझे फर्क नहीं पडता
    और तुम कहीं आ ना जाओ,ये सोच कर दिल नहीं डरता

    अब मैं और मेरा साईं अक्सर, बातें करते रहते हैं
    और सुना है मेरे पीछे लोग मुझे दिवाना कहते हैं

    जय साईं राम

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    Re: नौकरी की अरजी
    « Reply #139 on: September 14, 2009, 07:15:43 AM »
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  • ॐ साईं राम

    तेरी नौकरी मुझे चाहिए
    हे साईं अभिराम
    चाकर मुझे बना लो, दे दो
    श्री चरणों में स्थान

    चौबिस घंटे, सातों दिन की
    ड्यूटी मुझको दे दो
    बचा समय जो इस जीवन का
    निज सेवा में ले लो

    वेतन में तुम मझको देना
    श्रद्धा और सबूरी
    इतना वेतन हो कि स्वामी
    तुम से ना हो दूरी

    सिक्क लीव मुझे नहीं चाहिए
    ई एल तुम ना देना
    इस जीवन का हर क्षण दाता
    अपने नाम कर लेना

    टी ए, डी ए जब हो जाए
    कभी ड्यू जो मेरा
    शिरडी धाम का लगवा देना
    साईं तुम इक फेरा

    अप्रेज़ल के समय में दाता
    मेरे दोष निरखना
    सच्ची झूठी भक्ति को तुम
    साईं आन परखना

    लेश मात्र भी कमी जो पाओ
    डिमोशन चाहे करना
    जैसे कर्म हो मेरे, वैसे
    फल से झोली भरना

    बोनस में मुझको दे देना
    दरशन अपना प्यारा
    तेरी नौकरी में ही बीते
    मेरा जीवन सारा

    प्रमोशन जब भी करना चाहो
    तब इतना ही करना
    भक्ति की ऊँची सीढी पर
    साईं मुझको धरना

    रिटायरमेंट का समय जो आवे
    तुम खुद ही आ जाना
    इस जीव को दाता अपने
    सँग तुम्हीं ले जाना

    अरजी मैनें डाली है, तुम
    इस पर करो विचार
    तेरी नौकरी पा जाऊँ तो
    हो जावे उद्धार

    जय साईं राम

     

    Offline saisewika

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    Re: इस जग में तुम सबसे सुंदर
    « Reply #140 on: September 17, 2009, 10:19:15 AM »
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  • ॐ साईॅ राम

    इस जग में तुम सबसे सुंदर
    हे मेरे चित्त चोर
    तुम्हें निरख नित्त थिरके मेरे
    चंचल मन का मोर

    गणपति जैसे मंगलदायक
    शुभसूचक सुखदायी
    करूणामयी कल्याणी मूरत
    तेरी साईं सहाई

    सत्यवक्ता तुम राम सरीखे
    अति विनम्र, गंभीर
    सदाचारी, कोमल और निर्मल
    जीवनदायी समीर

    रवि तेज का पुँज है मुख पर
    दमके स्वर्ण समान
    नयनों में शीतलता जैसे
    गगन में निकला चाँद

    वैरागी शिव शंकर जैसे
    महासमाधि में लीन
    राजधिराज होकर भी रहते
    ज्यों दीनों के दीन

    कर्मयोगी और कर्मठ ऐसे
    जैसे कृष्ण कन्हाई
    जड चेतन और सारी सृष्टि
    साईं में ही समाई

    दुर्गा मइया जैसी ममता
    तव नयनों से झलके
    ह्रदय से प्रेम गंग की धारा
    भक्तों के हित छलके

    तुझमें देखूँ राम कृष्ण को
    शिव को तुझमें ही पाऊँ
    ममता की मूरत मैं तुझपे
    वारि वारि जाऊँ

    जय साईं राम

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    • साई राम اوم ساي رام ਓਮ ਸਾਈ ਰਾਮ OM SAI RAM
      • Sai Baba
    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #141 on: September 17, 2009, 11:38:45 AM »
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  • Another masterpiece from Surekha ji.

    Sai Ram

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    Re: बाबा की यह व्यथा- 2
    « Reply #142 on: September 24, 2009, 11:05:33 AM »
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  • ॐ साईं राम

    बडे दिनों के बाद कल
    सपनें में बाबा आए
    अंजलि भर श्री चरण में मैंने
    श्रद्दा सुमन चढाए

    हाथ जोड फिर पूछा उनसे
    इतने दिन के बाद
    भक्त जनों की साईं नाथ को
    अब आई है याद

    बाबा बोले निकल गया था
    मैं कुछ ज़्यादा दूर
    समझ रहा था खुद को मैं
    व्याकुल और मजबूर

    शीश झुकाकर मैंने पूछा
    साईं ये समझा दो
    परम विधाता व्याकुल कैसे
    होते हैं बतलादो

    अति मधुर वाणी में बाबा
    बोले हौले हौले
    अपने व्याकुल मन के भेद
    बाबा ने यूँ खोले

    मेरे प्रिय भक्तों ने मुझ पर
    लगा दिए आरोप
    उनके दिल मे क्रोध भरा है
    और भरा आक्रोश

    उनको लगता मेरे कारण
    वो हर दुख सहते हैं
    फिर भी जाने क्यूँ वो खुद को
    भक्त मेरा कहते हैं

    अक्सर कोई इच्छा ले कर
    वो द्वार मेरे आते हैं
    अगर ना पूरी कर पाऊँ तो
    मुझ पर झल्लाते हैं

    मन्नत में कभी कोई भक्त
    चरित्र पारायण करता है
    कभी कोई नव वार का व्रत
    इस हेतु धरता है

    फिर मुझसे मनचाहा पाना
    उसका हक हो जाता है
    पूजा और वरों का लिक्खा
    भक्त जनों नें खाता है

    नहीं जानते वो दुख उनका
    मेरा दुख होता है
    उनके दुख में मैं जगता हूँ
    जब ये जग सोता है

    मैं चाहता हूँ कर दूँ मैं
    हर भक्त की इच्छा पूरी
    लेकिन ऐसा ना करने की
    मेरी है मजबूरी

    समय से पहले,भाग्य से ज़्यादा
    किसी को कुछ नहीं मिलता
    कर्मों के ग़र बीज ना हों तो
    कोई फूल नहीं खिलता

    लेकिन मेरे भोले भक्त
    मुझसे है आस लगाते
    अपनी झोली फैलाते है
    मेरे दर पर आते

    मैं पूरी कोशिश करता हूँ
    कर्म बन्ध मैं काटूँ
    अपने भक्तों के जीवन में
    ढेरों खुशियाँ बाँटू

    लेकिन ऐसा ना कर पाऊँ
    तो ये मन रोता है
    भक्त समझते उनका साईं
    कहीं पडा सोता है

    अपने भक्तों को मैं कैसे
    समझाऊँ ये बात
    हानि लाभ जीवन मरण
    यश अपयश विधि हाथ

    सब जीवों के कर्म फलों का
    अपना ताना बाना है
    जितना जिसकी बही में लिक्खा
    उतना सुख दुख पाना है

    इतना कह कर मौन हो गये
    साईं पालन हारे
    सबकी चिन्ता करने वाले
    जन जन के रखवाले

    श्री चरणों में मस्तक धरकर
    और जोडकर हाथ
    सविनय अरज करी तब मैंने
    भक्ति भाव के साथ

    गत जन्मों के कर्म बन्ध के
    जितने भी है भार
    ढोने को उन सब को साईं
    हम भी है तैयार

    बस अब कभी दुखी ना होना
    साईं मेरे स्वामी
    हँस कर दुख सहने की शक्ति
    दे दो अंतरयामी

    जय साईॅ राम

    Offline saib

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #143 on: September 24, 2009, 12:27:47 PM »
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  • साईं सेविका जी,
    सच कहा आपने, कई बार लोग साईं के साथ भी दुकानदार जैसा व्यव्हार करते है . कुछ सो या हज़ार या लाख जप या साईं सतचरित्र के कुछ पठन साईं को दो और बदले में नौकरी, या मनचाहा साथी या स्वास्थ्य या व्यापर में लाभ कुछ भी. पर लोग यह भूल जाते है की वोह किसके साथ सौदा कर रहे है . जिसके नाम का ध्यान ब्रह्माण्ड में निरंतर चलता रहता है . न केवल चेतन बल्कि अवचेतन जैसे वृक्ष, नदिया, पर्वत, सागर भी जिसका निरंतर गुणगान कर रहे हों, उसे हमारे कुछ हज़ार या लाख जपोँ से क्या अंतर पड़ेगा . यह तो ऐसा ही है किसी करोड़पति को १ रुपया देना . लोग भूल जाते है की कर्मो के रोग के इलाज में समय तो लगता ही है, जैसे किसी को गलत खान पान की आदत के कारण रोग हो जाये  तो ठीक होने में तो समय लगेगा ही . डॉक्टर को यह तो नहीं कह सकते की तुंरत ठीक कर दो और जितनी चाहे फीस ले लो. इसी तरह कर्मो के फल का रोग भी वक़्त आने से ही ठीक होता है. जाप तो दवाई की तरह है जो ठीक होने में मदद करता है. पर जिस तरह ठीक होने के बाद भी आदते न बदली जाएँ तो रोग फिर लग जाता है , उसी तरह यदि मुराद पूरी होने के बाद भी साईं के नाम से न जुड़े रह सके तो जल्द ही माया फिर से पुरानी गत में ले जाती है और फिर वही सिलसिला चल पड़ता है.

    खुशनसीब हैं वोह जिन्होंने साईं से साईं को माँगा,
    वरना तो क्या कहें कुछ सिक्को की खनक में खो गए,
    कुछ हूरों की चमक में, कुछ महलों की दमक में,
    कुछ नाम लेकर रह गए, कुछ दाम लेकर चल दिए .

    हर आत्मा को एक दिन परमात्मा में ही विलय होना होता है, सब उसी के अंश है . पर यह तभी संभव हो पाता है जब हिरदय में उस इश्वर के प्रति प्रेम उत्पन हो, और कोई लालसा शेष न रह जाये . तभी तो सब योगों में भक्ति योग को सर्वश्रेस्ट कहा गया है.

    साईं सब पर किरपादृष्टि बनाये रखें, सबका जीवन सुख व मंगलमय हो.

    ॐ श्री साईं राम !         
    om sai ram!
    Anant Koti Brahmand Nayak Raja Dhi Raj Yogi Raj, Para Brahma Shri Sachidanand Satguru Sri Sai Nath Maharaj !
    Budhihin Tanu Janike, Sumiro Pavan Kumar, Bal Budhi Vidhya Dehu Mohe, Harahu Kalesa Vikar !
    ........................  बाकी सब तो सपने है, बस साईं ही तेरे अपने है, साईं ही तेरे अपने है, साईं ही तेरे अपने है !!

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #144 on: September 25, 2009, 01:33:17 PM »
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  • ॐ साईं राम

    सही कहा Saibji॰॰॰॰ बाबा की भक्ति अनेकों के लिए एक व्यापार और सौदेबाजी सी लगती है॰॰॰मन माँगी मुराद मिल गई तो साईं की वाह वाह, नहीं तो साईं धोखेबाज॰॰ऐसे ही कितनी गठरियाँ कर्मों की हम अपने सिर पर लादते जा रहे हैं॰॰॰॰॰
    बस इतनी ही अरदास है साईं से कि वो हम सब को सद बुद्धि दें

    जो मेरे हित में है हे दाता
    सो ही देना मुझे विधाता

    जय साईं राम

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    Re: सीमोंल्लंघन.........
    « Reply #145 on: September 25, 2009, 02:07:52 PM »
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  • ॐ साईं राम

    समय॰॰॰॰॰॰॰ २॰३० दोपहर
    दिवस॰॰॰॰॰॰॰विजयादशमी १९१८
    स्थान॰॰॰॰॰॰॰शिरडी
    भाव॰॰॰॰॰॰॰॰॰सभी शिरडी वासियों के



    सीमोंल्लंघन करके साईं
    चले गए तुम आज
    ना मुडके देखा हमको
    ना तुमने दी आवाज़

    गरीबों का मसीहा
    दुखियों का था सहारा
    बस छोड गया देह को
    किया सबसे ही किनारा

    कितनी ही आँखें भीगी
    कितने ही प्राण छूटे
    कितने ही ख्वाब बिखरे
    कितने ही सपने टूटे

    ना चिडिया कोई चहकी
    ना फूल मुस्कुराए
    ग़मों के काले साऐ
    हर ज़िन्दगी पे छाए

    दसों दिशाऐं सिसकीं
    पृथ्वी का सीना काँपा
    दुनिया के हर ज़र्रे में
    दुखों का सागर व्यापा

    तुम चल दिए तो चल दिया
    दुनिया का नूर सारा
    चहूँ ओर ही फैला है
    कालरात्री का अँधियारा

    वो करुणामयी आँखे
    आशिश में उठा हाथ
    श्री चरणों की शरण वो
    उन सब का छूटा साथ

    वो भक्ति भाव लहरी
    हर हृदय में थी रहती
    शिरडी के हर कूचे में
    साईं नाम धुन थी बहती

    मस्जिद में गूँजता वो
    शँख नाद न्यारा
    हर पल धधकती धूनि
    प्रवचन वो प्यारा प्यारा

    कैसे जिऐंगे देवा
    तुम इतना तो बता दो
    तुम्हारे बिना जीने की
    तुम हमको ना सजा दो

    निवेदन है तुम्हीं से
    ये भक्ति भाव भीना
    ले जाओ हमें सँग में
    हमको नहीं है जीना

    जय साईं राम

    Offline saib

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #146 on: September 26, 2009, 10:58:51 AM »
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  • क्यों होता है ऐसा बाबा
    इस जग में रसना बसना
    तुमरे भक्तों का,
    न मिलता है चैन
    दिन हो या हो रैन
    मन रहे सदा बचैन
    तुमरे दर्शन को.
    अखियाँ रोएँ
    मन पुकारे
    आजा साईं
    अब तो मोरे
    देर न कर
    पल पल जीवन बीता जाये
    यही आस लिए तो जीता जाये
    साईं मोरे आएंगे
    इक पल दरस दिखाएँगे
    जीने की चाह नहीं
    दिखती कोई राह नहीं
    मन कोई समझ न पाए
    क्यों गीत विरह के गाये
    अब कोई कैसे समझाए
    साईं से ये कैसी प्रीत
    अजब पहेली कौन सुल्जाये
    साईं आजा देर न कर
    समय का अब फेर न कर
    एक बार जो दर्शन कर जाऊं
    चैन सदा सदा के लिए पाऊँ !

    om sai ram!
    Anant Koti Brahmand Nayak Raja Dhi Raj Yogi Raj, Para Brahma Shri Sachidanand Satguru Sri Sai Nath Maharaj !
    Budhihin Tanu Janike, Sumiro Pavan Kumar, Bal Budhi Vidhya Dehu Mohe, Harahu Kalesa Vikar !
    ........................  बाकी सब तो सपने है, बस साईं ही तेरे अपने है, साईं ही तेरे अपने है, साईं ही तेरे अपने है !!

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    Re: विजयादशमी को महासमाधि
    « Reply #147 on: September 28, 2009, 09:02:34 AM »
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  • ॐ साईं राम

    साईं प्रभु जी हो गए
    महासमाधि में लीन
    अश्रुपूरित नयन लिए
    भक्त खडे बन दीन

    काल कराल आन खडा
    द्वारकामाई के द्वारे
    स्वयं प्रभु की आज्ञा हो तो
    यम भी कैसे टारे

    विजयादशमी का दिवस चुना
    महाप्रयाण के हेत
    परम ईश में प्रभु मिले
    साधन सभी समेट

    सावधान किया साईं ने
    भक्त जनों को आप
    अन्तस दानव मार कर
    हो जाओ निष्पाप


    मार सको तो मार दो
    अपनी "मैं" का रावण
    सदगुरू साईं की शिक्षा को
    कर लो हृदय में धारण

    भेदभाव की भेद कर
    मन में खडी दीवार
    मानव मानव से करे
    भातृवत अति प्यार

    काम क्रोध मद मत्सर लोभ
    वैर द्वेष कुविचार
    अहंकार सब त्याग कर
    क्षमा हृदय में धार

    यही दशहरा पर्व है
    दमन करो निज पाप
    दलो सभी विकार को
    बनो शुद्ध और पाक

    जय साईं राम

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    Re: कैसे साईं कैसे
    « Reply #148 on: October 02, 2009, 10:27:45 AM »
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  • ॐ साईं राम

    कैसे साईं कैसे

    कैसे प्यार तुम्हारा पाऊँ
    कैसे पास तुम्हारे आऊँ

    कैसे साईं कैसे

    कैसे नयन की प्यास बुझाऊँ
    कैसे साईं तुझे रिझाऊँ

    कैसे साईं कैसे

    कैसे श्रद्धा रक्खूँ पूरी
    कैसे धारण करूँ सबूरी

    कैसे साईं कैसे

    कैसे भक्ति कर लूँ सच्ची
    कैसे पाऊँ शिक्षा अच्छी

    कैसे साईं कैसे

    कैसे बेडा होगा पार
    कैसे खुलेंगे मोक्ष के द्वार

    कैसे साईं कैसे

    साईं भेद ये सारे खोलो
    श्री मुख से कुछ वचन तो बोलो

    कोई मार्ग सुझाओ साईं
    भक्त प्रेम की तुम्हें दुहाई

    दुविधा खडी बडी है भारी
    सुलझाओ हे साईं मुरारी

    इनका उत्तर मुझको दे दो
    ईश मिलन के मर्म को भेदो

    जय साईं राम

    Offline saisewika

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    Re: साईं नाम चालीसा
    « Reply #149 on: October 06, 2009, 02:07:54 PM »
  • Publish
  • ॐ साईं राम


    दो अक्षर से मिल बना
    साईं नाम इक प्यारा
    लिखते जाओ मिट जाएगा
    जीवन का अँधियारा


    ॐ साईं राम है
    महामंत्र बलवान
    इस मंत्र के जाप से
    साईं राम को जान


    ॐ साईं राम कह
    ॐ साईं राम सुन
    साईं नाम की छेड ले
    भीतर मधुर मधुर सी धुन


    जागो तो साईं राम कहो
    जो भी सन्मुख आए
    साईं साईं ध्याये जो
    सो साईं को पाए


    साईं नाम की माला फेरूँ
    साईं के गुण गाऊँ
    यहाँ वहाँ या जहाँ रहूँ
    साईं को ही ध्याऊँ


    साईं नाम सुनाम की
    जोत जगी अखँड
    नित्य जाप का घी पडे
    होगी कभी ना मन्द


    भक्ति भाव की कलम है
    श्रद्धा की है स्याही
    साईं नाम सम अति सुंदर
    जग में दूजा नाहीं


    साईं साईं साईं साईं
    लिख लो मन में ध्यालो
    साईॅ नाम अमोलक धन
    पाओ और संभालो


    साईं नाम सुनाम है
    अति मधुर सुखदायी
    साईं साईं के जाप से
    रीझे सर्व सहाई


    सिमर सिमर मनवा सिमर
    साईंनाथ का नाम
    बिगडी बातें बन जाऐंगी
    पूरण होंगे काम


    बिन हड्डी की जिव्हा मरी
    यहां वहां चल जाए
    साईं नाम गुण डाल दो
    रसना में रस आए


    सबसे सहज सुयोग है
    साईं नाम धन दान
    देकर प्रभू जी ने किया
    भक्तों का कल्याण


    घट के मंदिर में जले
    साईं नाम की जोत
    करे प्रकाशित आत्मा
    हर के सारे खोट


    साईं नाम का बैंक है
    इसमें खाता खोल
    हाथ से साईं लिखता जा
    मुख से साईं बोल


    साईं नाम की बही लिखी
    कटे कर्म के बन्ध
    अजपा जाप चला जो अन्दर
    पाप अग्नि हुई मन्द


    साईं नाम का जाप है
    सर्व सुखों की खान
    नाम जपे, सुरति लगे
    मिटे सभी अज्ञान
     

    मूल्यवान जिव्हा बडी
    बैठी बँद कपाट
    बैठे बैठे नाम जपे
    अजब अनोखे ठाठ


    मुख में साईं का नाम हो
    हाथ साईं का काम
    साईं महिमा कान सुने
    पाँव चले साईं धाम


    साईं नाम कस्तूरी है
    करे सुवासित आत्म
    गिरह बँधा जो नाम तो
    मिल जाए परमात्म


    साईं नाम का रोकडा
    जिसकी गाँठ में होए
    चोरी का तो डर नहीं
    सुख की निद्रा सोए
     
    साईं नाम सुनाम का
    गूँजे अनहद नाद
    सकल शरीर स्पंदित हो
    उमडे प्रेम अगाध

    मन रे साईं साईं ही बोल
    मन मँदिर के पट ले खोल
    मधुर नाम रस पान अमोलक
    कानों में रस देता घोल

    श्री चरणों में बैठ कर
    जपूँ साईं का नाम
    मग्न रहूँ तव ध्यान में
    भूलूँ जाग के काम

    साईं साईं साईं जपूँ
    छेड सुरीली तान
    रसना बने रसिक तेरी
    करे साईं गुणगान

    साईं नाम शीतल तरू
    ठँडी इसकी छाँव
    आन तले बैठो यहीं
    यहीं बसाओ गाँव

    साईं नाम जहाज है
    दरिया है सँसार
    भक्ति भव ले चढ जाओ
    सहज लगोगे पार

    साईं नाम को बोल कर
    करूँ तेरा जयघोष
    रीझे राज धिराज तो
    भरें दीन के कोष

    बरसे बँजर जीवन में
    साईं नाम का मेघ
    तन मन भीगे नाम में
    बढे प्रेम का वेग

    उजली चादर नाम की
    ओढूँ सिर से पैर
    मैं भी उजली हो गई
    तज के मन के वैर

    सिमरन साईं नाम का
    करो प्रेम के साथ
    धृति धारणा धार कर
    पकड साईं का हाथ

    साईं नाम रस पान का
    अजब अनोखा स्वाद
    उन्मत्त मन भी रम गया
    छूटे सभी विषाद

    साईं नाम रस की नदी
    कल कल बहती जाए
    मलयुत्त मैला मन मेरा
    निर्मल करती जाए

    साईं नाम महामँत्र है
    जप लो आठो याम
    सकल मनोरथ सिद्ध हों
    लगे नहीं कुछ दाम

    साईं नाम सुयोग है
    जो कोई इसको पावे
    कटे चौरासी सहज ही
    भवसागर तर जावे

    पारस साईं नाम का
    कर दे चोखा सोना
    साईं नाम से दमक उठे
    मन का कोना कोना

    साईं नाम गुणगान से
    बढे भक्ति का भाव
    श्रद्धा सबुरी सुलभ हो
    चढे मिलन का चाव

    मनवा साईं साईं कह
    बनके मस्त मलँग
    साईं नाम की लहक रही
    अन्तस बसी उमँग

    सरस सुरीला गीत है
    साईं राम का नाम
    तन मँदिर सा हो गया
    मन मँगलमय धाम

    पू्र्ण भक्ति और प्रेम से
    जपूँ साईं का नाम
    श्री चरणों में गति मिले
    पाऊँ चिर विश्राम

    जय साईं राम

    « Last Edit: October 06, 2009, 02:18:12 PM by saisewika »

     


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