बहुत समय बाद एक सुन्दर कविता का उपहार दिया, साईंसेविका बहन ने !
प्रिये प्रताप जी,
साईं ने समस्त जगत से प्रीत रखने को कहा है पर साथ ही मोह ग्रस्त होने से भी सावधान किया है . प्यार और मोह मे बहुत फरक होता है . मोह जहाँ विकारों को जनम देता है, प्रेम वहीँ मन को निर्मल बनाता है . संसार से सम्बन्ध तोड़ने का अर्थ सब को छोड़ कर जंगलों मे तपस्या करना नहीं है बल्कि जगत मे रहते हुए जीवन का हर करम उस मालिक को समर्पित करना है , माया हमें उन संबंधनो से इस प्रकार जोडती है की हम इश्वर का साक्षात्कार होने पर भी उससे जगत के पदार्थ ही मंगाते है , इश्वर को प्राप्त करने की भावना उत्पन नहीं होती . यदि साईं साक्षात् आकर कहें की मे तुमारी भक्ति और प्रेम से प्रस्सन हूँ, मेरे साथ द्वारकामाई मे चलो और मेरे साथ रहो, तो क्या हम साहस कर पाएंगे , क्या हम संसार के समस्त संबंधों को तुरंत तितांजलि दे सकेंगे , वोह भी एक ही पल मे ..........!
इसीलिए जगत मे रहते हुए भी इस सत्य को स्वीकार करना चहिये कि ............. सब कुछ अस्थाई है यदि कुछ सदेव रहने वाला है तो वोह है मात्र साईं और साईं का पावन मधुर और दिव्य नाम...............!
और अंत मे ........... सब नातों को तोड़ का अर्थ सिर्फ मनुष्यों से नाता तोडना नहीं है पर पूरण समर्पण है, अपनी आदतों पर नियंत्रण , समय का सदुपयोग . यदि समय है तो व्यर्थ के कामो जैसे TV के बेसिरपैर के कार्यक्रम देखने, इन्टरनेट पर वक़्त बर्बाद करने के स्थान पर, साईं का चिंतन किया जा सकता है, साईं सत्चरित्र या किसी भी ग्रन्थ का पठन, या कोई भी ऐसा कार्य जिससे जगत के जीवों का भला हो और साईं के चरणों से प्रीत और गहरी हो...........!
ॐ श्री साईं राम!
सपना है तो इसको सपना
रहने दो करतार
नहीं जागना मुझे नींद से
हे मेरे सरकार
जिसे प्रीत हो साईं से सच्ची
स्वपन ही जीवन बन जाता है
साईं का अहसास
दिन हो या रात
पतझड़ हो या बहार
मन मे ऐसे रम जाता है
अब और कुछ सूझे न
सब साईं ही साईं
नजर आता है ........
जय श्री साईं राम !