ॐ साईं राम
साईं राम साइब जी
हमेशा की तरह आप थोड़े में बहुत कह जाते हैं। आप के सधे हुए शब्दों में सदा ही साईं का वास महसूस करती हूँ। बहुत से ज्ञानवान साईं भाइयों और बहनों से बहुत कुछ सीखा। पता नहीं क्यों बहुत से द्वारकामाई में नहीं आते, पर उनकी कमी हमेशा ही महसूस होती है, क्योंकि वे सच में केवल साईं की दीवानगी में ही यहाँ आते थे। रमेश भाई जी, द्रष्टा जी, अनु, मानव और दीपक भाई , कई प्रकाशित भक्त अब नहीं आते तो यह भी मेरे बाबा की कोई लीला ही है। आपने सही कहा मन का जुड़ाव केवल साईं से होना चाहिए। और जैसे जैसे साईं से मन जुड़ता है वैसे वैसे मन के सभी विकार वैसे ही दूर होते चले जाते हैं जैसे सूरज के आते ही अँधेरा भाग जाता है।
जबही नाम हिरदे घरा, भया पाप का नाश ।
मानो चिंगरी आग की, परी पुरानी घास ॥
बाबा साईं आपको हमेशा सुखी रखें
जय साईं राम