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Author Topic: बाबा की यह व्यथा  (Read 251702 times)

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Offline ShAivI

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  • बाबा मुझे अपने ह्र्दय से लगा लो, अपने पास बुला लो।
कल रात सपने में बाबा आये !!!
« Reply #255 on: January 16, 2012, 01:48:58 AM »
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  • ॐ साईं राम !!!

    कल रात सपने में बाबा आये !!!


    बाबा :- क्यूँ दुखी होती है मैं जब तेरे साथ हूँ क्यूँ धीरज खोती है?

    मैं बोली :- बाबा जानती हूँ तुम आस पास हो
    फिर भी ये दिल चिंतित होता है
    कर्मो के चक्कर में पड़कर ये दिल धीरज खोता है

    बाबा :- श्रद्धा और सबुरी ये मंत्र मैने सबको सिखाया है
    ये मत सोच तुने क्या खोया है
    ये सोच के क्या क्या पाया है

    मैं बोली :- बाबा मुझको तो बस साईं शरण ही प्यारी है
    सबको भूल चुकी हूँ बस एक आस तुम्हारी है

    तुम मुझसे रूठ जाओ बाबा ऐसा कभी न करना

    तुम मुझसे दूर जाओ बाबा ऐसा कभी न करना

    बाबा, मैं बुला बुला के हारूँ तुम को हर दम पुकारूँ
    तुम फेर लो मुँह अपना ऐसा कभी न करना बाबा

    मैं अनजाने में कुछ गलत कर दूं
    तुम राह दीखाना मुझको मैं उसी राह पे चलूंगी

    बाबा, तुम पास आकर मेरे, मुझे न बुलाओ ऐसा कभी न करना
    ऐसा कभी न करना बाबा,  ऐसा कभी न करना, बाबा!!!


    ॐ साईं राम, श्री साईं राम, जय जय साईं राम!!!

    sharing.............what is shared with me ......................


    JAI SAI RAM !!!

    Offline Dipika

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #256 on: February 26, 2012, 03:06:19 PM »
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  • ॐ साईं राम


    कई बार ऐसा होता है
    बिलख बिलख कर दिल रोता है
    मैं ख़ुद पर ही झल्लाती हूँ
    मन मार कर रह जाती हूँ

    क्यूँ ना हो पाया ये साईं
    तुम ही कह दो सर्वसहाई
    जब तुम देह में थे हे दाता
    तब क्यूँ ना जन्मी मैं विधाता

    जो मैं शिर्डी वासी होती
    तुम्हें निरख कर हंसती रोती
    तव चरणों की रज मैं पाती
    दर्शन करते नहीं अघाती 

    सुप्रभात होती या रैन
    तक तक तुम्हें ना थकते नैन
    सरल साधारण सादा जीवन
    क्यूँ ना मिल पाया सहचर धन

    सुवचन नित्त सुनती तव मुख से
    जीवन कट जाता अति सुख से
    सुभक्तों की संगत पाकर
    धन्य धन्य हो जाती चाकर

    मैं भी तुमको चंवर ढुलाती
    अपनी किस्मत पर इतराती
    पश्चाताप बड़ा है भारी
    क्यूँ अब जन्मी साईं मुरारी

    काश मैं यंत्र ऐसा कोई पाऊँ
    समय चक्र को पुन: घुमाऊं
    आ पहुंचू मैं तेरे द्वारे
    साक्षात दर्शन हों न्यारे

    हाथ थाम लूँ साईं तेरा
    जनम सफल हो जाए मेरा


    जय साईं राम

    साईं बाबा अपने पवित्र चरणकमल ही हमारी एकमात्र शरण रहने दो.ॐ साईं राम


    Dipika Duggal

    Offline saisewika

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #257 on: March 19, 2012, 04:24:35 PM »
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  • ॐ साईं राम


    साईं तेरा शुक्र भी है
    पर दिल में कुछ मलाल भी है
    तेरे शुभ चरणों में सुकूँ भी है
    पर जीवन कुछ बेहाल भी है


    कुछ खालीपन और तन्हाई
    किस्मत की तँगदिली भी है
    पर तेरे नाम की सुन्दर सी
    इक कली खिली खिली सी है


    कुछ तो बदलेगा जीवन में
    इक मौके की तलाश भी है
    कोई आस नहीं है दुनिया से
    पर तुझ पर दृढ विश्वास भी है


    मेरी झोली में हैं छेद हजार
    और किस्मत की कुछ मार भी है
    पर तुझसे जो है जुडा नाता
    तेरी रहमतों का इंतज़ार भी है


    इन टेढे मेढे रस्तों पर
    कई दोस्त मिले औेर छोड गए
    पर तू ना छोडेगा मुझको
    इस दिल में एतबार भी है


    दुनिया के रिश्ते नातों ने
    कुछ ज़ख्म दिए हैं सीने में
    पर तेरे मेरे रिश्ते में
    मरहम भी और प्यार भी है


    जय साईं राम

    Offline saisewika

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #258 on: April 15, 2012, 07:45:15 PM »
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  • ॐ साईं राम
     
     
    साईं तेरे द्वारे आऊँ
    बाबा तुझको शीश नवाऊँ
    तुझपे मैं बलिहारी जाऊँ
    तुझपे वारि वारि जाऊँ
     
     
    तेरा रस्ता मँज़िल मेरी
    तुझको पाना चाहत मेरी
    तेरे पथ पर चलती जाऊँ
    थकूँ रुकूँ ना बढती जाऊँ
    तुझपे मैं बलिहारी जाऊँ
    तुझपे वारि वारि जाऊँ
     
     
    तेरा सुमिरन काम है मेरा
    मन मन्दिर में धाम है तेरा
    साईं साईं रटती जाऊँ
    साँस साँस से तुझको ध्याऊँ
    तुझपे मैं बलिहारी जाऊँ
    तुझपे वारि वारि जाऊँ
     
     
    तेरी कथा कहूँ सुनूँ मैं
    तेरा लीला गान गुनूँ मैं
    तेरी महिमा सुनूँ सुनाऊँ
    तेरी चर्चा में सुख पाऊँ
    तुझपे मैं बलिहारी जाऊँ
    तुझपे वारि वारि जाऊँ
     
     
    तुझपे श्रद्धा, तेरी भक्ति
    तुझसे चाहत और आसक्ति
    तुझसे ही बस आस लगाऊँ
    मन में दृढ विश्वास जगाऊँ
    तुझपे मैं बलिहारी जाऊँ
    तुझपे वारि वारि जाऊँ
     
     
    जय साईं राम

    Offline saisewika

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #259 on: April 19, 2012, 09:27:01 AM »
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  • ॐ साईं राम


    ये जो नश्वर काया है
    इसकी अद्भुत माया है
    मानों तो ये सब कुछ है
    जान लो तो छाया है

    चाहो तो जगत मिथ्या में
    तुम राग रंग में मस्त रहो
    या फिर खुद को पहचानो
    श्री चरणों में अलमस्त रहो

    चाहो तो इस पर मान करो
    इस रूप पर अभिमान करो
    पर इसने तो ढल जाना है
    इस सच पर थोडा ध्यान धरो

    वात्त, पित्त और कफ़ से दूषित
    ऐसी नश्वर काया को
    साईं नाम से निर्मल करके
    जानो ठगिनी माया को

    तो चलो क्षणभंगुर काया को
    साईं नाम कर देते हैं
    अंग अंग में साईं नाम की
    भक्ति को भर लेते हैं

    पांच इन्द्रियां केन्द्रित हो जायें
    बाबा जी के ध्यान में
    पांचों प्राण बाबा जी को
    मन्जिल अपनी मान लें

    ह्रदय को 'सुह्रदय' कर लो
    मन को करो 'सुमन'
    फिर बाबा को अर्पण करके
    पावो नाम का धन

    बुद्धि को सदबुद्धि कर लो
    चित्त को सच्चिदानन्द
    धृत्ति धारणा धार के
    पावो परमानन्द

    पलक उठे जब जब भी अपने
    बाबा जी का दर्शन पाये
    पलक झुके तो मन मन्दिर में
    देवा को बैठा पाये

    मुख से जब कुछ बोलें तो
    साईं नाम ही दोहरायें
    कानों से कुछ सुनना हो तो
    साईं नाद ही सुन पायें

    हाथ उठें तो जुड जायें
    श्री चरणों में भक्ति से
    कारज करते साईं ध्यायें
    बाबा जी की शक्ति से

    पांव चलें तो मन्ज़िल उनकी
    बाबा जी का द्वारा हो
    पांव रुकें तो ठीक सामने
    मेरा साईं प्यारा हो

    रसना का रस ऐसा हो जाये
    साईं नाम में रस आये
    बैठे, उठते, सोते, जगते 
    साईं जी का जस गायें

    चंचल मन इक मंदिर हो जाये
    साईं का जिसमें डेरा हो
    मोह माया ना होवे जिसमें
    ना अज्ञान अंधेरा हो

    मन की डोर थमी हो मेरे
    बाबा जी के हाथ में
    जब जी चाहे ले जायें वो
    इसको अपने साथ में

    सांस सांस जब आवे जावे,
    साईं का अनहद नाद हो
    अंत समय जब सांस रुके तो
    साईं जी की याद हो

    ऐसे काया पावन होगी
    मन मन्दिर हो जावेगा
    साईं याद में डूबा प्राणी
    साईं में मिल जावेगा

    जय साईं राम

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #260 on: April 19, 2012, 09:40:00 AM »
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  • ॐ श्री साईं नाथाय नमः

    साईं राम जी

    धन्यवाद. बहुत ही सुंदर और  सत्य को दर्शाती हुई ये आपकी कविता है. हर शब्द,हर पंक्ति ही साईं की गरिमा और साईं के वचनों का चित्रण करती हुई दिख रही है.

    धन्यवाद .

    ॐ साईं राम

    Offline saisewika

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #261 on: April 19, 2012, 06:27:49 PM »
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  • ॐ साईं राम

    साईं राम प्रताप एन मिश्रा जी

    आपके प्रशँसात्मक शब्दों के लिए धन्यवाद। बाबा ही सब कर्मों के कर्ता और प्रेरक हैं।  मैं स्वयँ आपके लेखों की मूक प्रशँसक हूँ।

    बाबा आपको सदैव सुखी रखें

    जय साईं राम

    Offline saisewika

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #262 on: May 08, 2012, 12:20:32 PM »
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  • ॐ साईं राम


    मेरे घर के पास बाबा का
    इक मँदिर बन रहा है
    खुशी के मारे मेरा
    उछल ये मन रहा है


    कब से तड़प रही थी
    देवा तुम्हारी दासी
    क्या भूल हुई मुझसे
    क्यूँ अखियाँ रहीं प्यासी


    मेरे मालिक ने तमन्ना
    मेरे दिल की पूरी कर दी
    सारे जहाँ की खुशियाँ
    मेरे दामन में हैं भर दी


    पावन पुनीत सुन्दर
    दिलकश नज़ारा होगा
    तरसे नैनों के सन्मुख
    मेरा साईं प्यारा होगा


    अब तेरे दर पे स्वामी
    नित आना जाना होगा
    भक्तों की सँगतों का
    मँज़र सुहाना होगा


    खुश होऊँगी मैं जब जब
    तेरे पास आ जाऊँगी
    बाँटूंगी तुझसे खुशियाँ
    मन में मैं हरषाऊँगी


    याऽ कभी जो देवा
    गमगीन होगी दासी
    दर्शन तुम्हारा पाकर
    मिट जाएगी उदासी


    नित आरती में आकर
    मँजीरे बजाऊँगी
    मनभावन साईं तेरा
    नेवैद्य बनाऊँगी


    परदेस में भी मेरा
    इक मायका प्यारा होगा
    साईं माँ का आँचल होगा
    अद्भुत सहारा होगा


    भक्तन की भावना को
    स्वीकार दाता करना
    मेरा फैला हुआ दामन
    शुभ दर्शनों से भरना


    जय साईं राम

    Offline saisewika

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #263 on: May 17, 2012, 10:15:14 AM »
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  • ॐ साईं राम


    आज क्यूं फिज़ाओं में सुरूर छाया है
    आज किसने ज़मीं पर अमृत बरसाया है
    लगता है मेरा साईं है कहीं आस पास
    उसने ही मेरे मन मयूर को थिरकाया है


    आज सूरज भी कुछ ज़्यादा ही दमकता है
    लगता है बाबा के मुख से इसने कुछ नूर चुराया है
    आज फूलों की पंखुडियां हैं और भी कोमल
    लगता है बाबा ने इन्हें प्यार से सहलाया है


    आज मेरे घर के पीछे की झील का पानी है और भी निर्मल
    लगता है इसने बाबा की दया दृष्टि को पाया है
    आज चर्च के घंटे की आवाज़ ज़्यादा सुरीली क्यूं है
    लगता है बाबा को छू कर आई हवा ने इसे बजाया है


    हां मेरा साईं मेरा खुदा यकीनन मेरे पास है
    उसी ने मेरे दिल के द्वार को खटखटाया है
    वो यहीं मेरे पास आ के बैठा है
    उसी ने इन पंक्त्तियों को मेरे कानों में गुनगुनाया है


    जय साईं राम

    Offline saisewika

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #264 on: May 21, 2012, 09:51:58 AM »
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  • ॐ साईं राम


    कल रात सपने में मैंने
    बाबा जी को देखा
    आंखों से आंसू झरते थे
    मिट गयी थी स्मित रेखा


    सिसक रहे थे मेरे बाबा
    भरते लम्बी आँहें
    भक्तों ने ये क्या कर डाला
    चाहे या अनचाहे


    मैंने तो समझा था मेरे     
    प्यारे भक्त अनेक
    मिल जुल नाम करेंगे रोशन
    मेरा सहित विवेक 


    देख देख गदगद होता था
    सुंदर द्वारकामाई
    दूर दूर के भक्तों ने
    भावो. से जो सजायी


    अनुभव कोई सुनाता अपने
    नाम जाप कोई करता
    सबने मुझको मान लिया था
    सुख करता दुःख हरता


    कुछ दिन से पर लगता ऐसा
    भक्त खो गए सारे
    तू तू मैं मैं पर आ उतरे
    जो थे मेरे प्यारे


    उलझन में यूँ उनको पाकर
    मन रोता है मेरा
    क्यूँ मेरे मन्दिर में छाया
    अहम् भाव का घेरा


    द्वारका छोड़ कोई कर लेता
    मुझसे सहज किनारा
    स्वयँ न्यायधीश बन जाता
    मेरा कोई प्यारा


    क्या मैं समझूं भक्तों का
    विश्वास ना मैंने जीता
    या फिर श्रद्धा और सबूरी से
    उनका मन है रीता


    घायल मन है दुखी आत्मा
    देख सको तो देखो
    नाम छोड़ कर भटक रहे हैं
    मेरे भक्त अनेकों


    बाबा जी की व्यथा जान कर
    मन मेरा भी रोया
    बाबा हमको वापस दे दो
    जो भी हमने खोया


    मानव हैं हम, हमसे दाता
    भूल हो गयी भारी
    हाथ जोड़कर क्षमा माँगते
    तुमसे बारी बारी


    बस अपना आशीष और प्यार
    मैया हमको दे दो
    अहम् भाव सब तुम्हें समर्पण
    इसको तुम ही ले लो


    वादा करते हैं हम तुमसे
    फिर ना होगा ऐसा
    जैसा तुम चाहते हो साईं
    मन्दिर रहेगा वैसा


    जय साईं राम

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #265 on: May 22, 2012, 06:36:22 AM »
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  • ॐ श्री साई नाथाय नमः  

    बाबा तुम्हारे श्री चरणों में
    इस दिन दास का  कोटि-कोटि प्रणाम
    कहना  चाहता हूँ देवा तुमसे अब
    कुछ अपनी व्यथा का हाल ।।

    कल तुम्हारी व्यथा को जानके
    दिल मेरे भी बहुत रोता है
    सुंदर सुहाना  बाग द्वारकामाई का
    हमारे अहंकार ने रौंदा है  ।।

    बाबा तुम तो हो सर्वज्ञानी
    हम हैं मूढ़बुद्धि और अभिमानी
    माया की माया को ना समझे
    करते रहते है हरदम नादानी ।।

    बाबा तुमभी अगर रूठोगे तो
    हमसब कैसे फिर जी पायेंगे
    क्षणभर में ही देवा हम तो
    दुःख के भवसागर में डूब जायेंगे ।।

    बाबा तुम्हारी लीला अजब निराली
    नित्य  नए -नए खेल खिलाती
    खेल -खेल में ही सबकुछ
    कह  जाती है अमृत वाणी ।।

    मस्जिद माई में रहकर भी हमसब ने
    अनर्थ-अधर्म का ही काम किया
    कर्ता -कारक खुद ही तुम बनके
    अहं-त्वं का फिर से ज्ञान दिया ।।

    बाबा तुम्हारी  शिक्षा की पद्धति
    सबसे अनोखी सबसे है निराली
    समय-समय पे याद दिलाके
    करते रहते हो जीवन की रखवाली ।।

    बाबा तुम्हारी इस लीला ने
    ज्ञानचक्षु हमारे खोल दिए
    ओर किसी को ना अब हम कभी
    अपमानित करने को भी सोचेंगे ।।

    राग द्वेष  की इस   चादर को
    अब कभी ना हम फिर से  ओढेंगे
    तुम्हारे वचनों की चादर में
    बाकि जीवन को संजोयेंगे   ।।

    बाबा तुम हो संरक्षक हमारे जानके
    माया को भी ललकारना शुरू किया
    तुम्हारे वचनों की खातिर
    काँटों पर भी चलना अब सिख लिया ।।

    हम अबोध और अज्ञानी
    सदा अहं-त्वं में ही रहते हैं
    माया की इस शक्ति को
    तुम्हारी कृपा से ही विजय कर सकते हैं ।।

    बाबा तुमने हमारे सुख के खातिर
    श्रधा  -सबुरी का जीवन मन्त्र दिया
    अहंकार के इस रावण ने
    छल-बल से हमसे इसको छीन लिया ।।

    बाबा हमसब बच्चे हैं तेरे
    खोने इसे ना हम देंगे
    अहंकार के इस रावण को हम मारके
    तुम्हारे चरणों में फिर  अर्पण करेंगे ।।

    पंचभूत  के इस देह में
    माया का बसेरा है
    काम क्रोध मद मोह लोभ ने
    इसमें डाला डेरा है ||

    बाबा तुम्हारे वचनों के प्रकाश से
    ये असुर सब भाग जायेंगे
    परमपिता के चरणों में तब हम
    पूर्ण शरणागति को पाएंगे ||

    माँ का आँचल छोड़ के भी
    क्या कोई बच्चा रह पाया है
    तेरे आँचल में ही तो
    सब सुखो की छाया है  ||

    बाबा तुमसे करते है एक निवेदन
    अपनी बगिया को फिर बसादो
    जो फूल टूटके  बिखर गये  
    उनको अपनी माला में फिर से पिरो दो ||

    वादा करते हैं हमसब तुमसे बाबा
    अब ना कोई राग-द्वेष करेंगे
    तुम्हारी इस प्यारी बगिया में
    केवल प्रेम और ज्ञानके ही फूल खिलेंगे ||



    ॐ साईं राम







     


    « Last Edit: May 22, 2012, 07:49:31 AM by Pratap Nr.Mishra »

    Offline saib

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #266 on: May 23, 2012, 12:11:25 AM »
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  • प्रताप जी, आपने और साईंसेविका बहन ने बहुत सुन्दर शब्दों मे अपनी भावनाएं व्यक्त की है ! मेरे अनुभव आपसे बांटना चाहूँगा ! प्रथम इश्वर की शरण मे मात्र इश्वर की कृपा और अनुमति से ही कोई रह सकता है, अहम् को त्यागे बिना इश्वर को प्राप्त नहीं किया जा सकता क्योंकि जहाँ "मै" है वहां "हरी" नाही ! जहाँ "हरी" वहां "मै" नाही ! जब कोई मनुष्य अपने को कर्ता मानने लगता है तो उसकी अंतरात्मा स्वम उसे सुधार के पथ पर ले जाती है ! दूसरा जिस प्रकार मानव देह एक सीमा से अधिक भोजन ग्रहण नही कर सकती उसी प्रकार मन भी एक सीमा से अधिक अध्यात्मिक ज्ञान नही ग्रहण कर सकता, वक़्त इश्वर की कृपा से अपने आप मन की शक्ति को वृहद् कर देता है !

    यहाँ कई बड़े भक्त और ज्ञानवान सदस्य है जिनसे हम प्रेरणा ग्रहण करते है,पर मन का जुडाव मात्र साईं से होना चाहिए क्योंकि वही एक मात्र कर्ता है , वही मार्गदर्शक है ! सदा यह विश्वास मन मै रहना चाहिए वह जो भी कर रहे है, उसी मै सब का भला  है !

    अंत मै साईं से यही प्रार्थना है सभी भाई बहनों का मन निर्मल हो और सभी मिल कर साईं की लीलाओं और साईं के पावन नाम के मधुर अमृत का आनंद प्राप्त करें !


    ॐ श्री साईं राम !
    om sai ram!
    Anant Koti Brahmand Nayak Raja Dhi Raj Yogi Raj, Para Brahma Shri Sachidanand Satguru Sri Sai Nath Maharaj !
    Budhihin Tanu Janike, Sumiro Pavan Kumar, Bal Budhi Vidhya Dehu Mohe, Harahu Kalesa Vikar !
    ........................  बाकी सब तो सपने है, बस साईं ही तेरे अपने है, साईं ही तेरे अपने है, साईं ही तेरे अपने है !!

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #267 on: May 24, 2012, 12:35:20 PM »
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  • ॐ श्री साईं नाथाय नमः

    साईं के श्री चरणों में
    करके कोटि-कोटि प्रणाम
    साईं के वचनों का फिर
    करता हूँ गुणगान

    साईं तुम ही जड़ में
    तुम चेतन में
    तुम ही सर्व सृष्टि के
    कण-कण में ||

    तुम्हारा आदि है ना अंत है
    शक्ति तुम्हारी अनंत है
    तुम्हारे सत -चित-आनंद को
    वेद भी वर्णन करने में असमर्थ हैं ||

    बाबा तुम्हारी लीला बड़ी निराली
    नित्य नये नये रूप दिखलाती है
    खुद ही ब्रह्मा विष्णु महेश बनके
    जगत की उत्पति संचालन संहार करवाती है ||

    हम सब जगत के प्राणी
    तुम्हारा ही तो अंश हैं
    अज्ञानता के वस् में रहकर
    कहते तुमसे भिन्न हैं ||

    राग-द्वेष काम मद लोभ ने
    डाला ऐसा डेरा है
    खुद को तुमसे भिन्न जानके
    अनंत दुखों ने घेरा है ||

    हर युग काल में खुद ही आकर
    देते रहते हो अभिन्नता का ज्ञान
    पर हम मुरख-अज्ञानी फिर भी
    करते रहते हैं सदा मनमानी

    मनुष्य योनी पाकर भी हमने
    धारण कभी ना किया तुम्हारा ज्ञान
    माया के चक्कर में फंसके
    करते रहे अधर्म और अकाम ||

    जन्म जन्मांतर तक हम ऐसे ही
    आवागमन के बंधन में बंधे रह जायेंगे
    माया मोह को ना त्यागकर सदा ही
    इस दुःख के सागर में गोते खायेंगे ||

    गीता बाईबल गुरु ग्रंथ कुरान से तुमने
    कर्म भक्ति प्रेम अहिंसा का ज्ञान दिया
    खुद मनुष्य रूप जगत में आके
    हम प्राणियों का कल्याण किया ||

    कर्म किये जा फल की इच्छा
    मतकर तू इंसान
    जैसा कर्म करेगा वैसा
    फल देगा भगवान्  ||

    सबसे सदा ही प्रेमभाव रखना
    राग-द्वेष कभी ना करना
    सबके भीतर मुझको जानो
    किसी का कभी अहित ना करना ||

    जब तुम सब वासनाओं से
    खुदको मुक्त करा पाओगे
    उसदिन ही तुम मेरे
    सत्य स्वरुप में लीन हो जाओगे ||

    मन के मते ना कभी चलना
    मन है एक बाजीगर
    क्षण-क्षण अपनी बाजी से
    झूट को बना देता है सच ||

    मन के निग्रह से ही
    मिलता है आत्मस्वरुप का ज्ञान
    बिना इस ज्ञान के
    जीव का हो नहीं सकता कल्याण ||

    आत्मस्वरुप में स्थिर जीव
    समानत्व का भाव रखता है
    भौतिक सुख-दुःख आने पर भी
    एक सामान ही रहता है ||

    माया की माया भी उसका
    कुछ बिगाड़ ना पाती है
    माया भी खुद लज्जित होकर
    नमन करने को आती है ||

    मार्ग है बहुत कठिन भयंकर
    पर हमको डर क्यों करना है
    साईं के चरणों में हम हैं बेठे
    अब साईं को ही सब करना है ||

    ॐ साईं राम






















     









































     
     
    « Last Edit: May 24, 2012, 12:46:23 PM by Pratap Nr.Mishra »

    Offline saisewika

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #268 on: May 24, 2012, 12:57:31 PM »
  • Publish
  • ॐ साईं राम

    साईं राम प्रताप एन मिश्रा जी

    बहुत सुन्दर शब्दों में आपने साईं वचनों को कविता में पिरोया है।

    सबसे सदा ही प्रेमभाव रखना
    राग-द्वेष कभी ना करना
    सबके भीतर मुझको जानो
    किसी का कभी अहित ना करना

    बाबा साईं आपको सदा सुखी रखें

    जय साईं राम

    Offline saisewika

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #269 on: May 24, 2012, 01:02:10 PM »
  • Publish
  • ॐ साईं राम


    साईं राम साइब जी

    हमेशा की तरह आप थोड़े में बहुत कह जाते हैं। आप के सधे हुए शब्दों में सदा ही साईं का वास महसूस करती हूँ।  बहुत से ज्ञानवान साईं भाइयों और बहनों से बहुत कुछ सीखा। पता नहीं क्यों बहुत से द्वारकामाई में नहीं आते, पर उनकी कमी हमेशा ही महसूस होती है, क्योंकि वे सच में केवल साईं की दीवानगी में ही यहाँ आते थे। रमेश भाई जी, द्रष्टा जी, अनु, मानव और दीपक भाई , कई प्रकाशित भक्त अब नहीं आते तो यह भी मेरे बाबा की कोई लीला ही है।  आपने सही कहा मन का जुड़ाव केवल साईं से होना चाहिए। और जैसे जैसे साईं से मन जुड़ता है वैसे वैसे मन के सभी विकार वैसे ही दूर होते चले जाते हैं जैसे सूरज के आते ही अँधेरा भाग जाता है।

    जबही नाम हिरदे घरा, भया पाप का नाश ।
    मानो चिंगरी आग की, परी पुरानी घास ॥

    बाबा साईं आपको हमेशा सुखी रखें

    जय साईं राम

     


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