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Author Topic: बाबा की यह व्यथा  (Read 228935 times)

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Offline saisewika

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Re: बाबा की यह व्यथा
« Reply #30 on: January 16, 2008, 11:17:14 AM »
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  • जय सांई राम।।।

    उससे प्यार तो कभी भी किया नहीं जा सकता। उससे प्यार तो अपने आप हो जाता है। दिन और रात... धरती और आसमान,  एक दूसरे के बिना सब अधूरे हैं। सन-सन करती हवाएं,  सुन्दर नजारे,  फूलों की खुशबू ... सभी में छिपा होता है उसका प्यार... कुछ तो प्यार में हारकर भी जीत जाते हैं,  तो कुछ जीतकर भी अपना प्यार हार जाते हैं। लेकिन उसके प्यार में ऐसा नशा है जिसमें जो डूबता है वो ही पार होता है। प्यार पर किसी का वश नहीं होता.... अगर आप भी प्यार महसूस करना चाहते हैं तो डूबिये उसके प्यार में ... दुनिया की सबसे बड़ी नेमत है ढाई आखर का प्यार... जब आप भी मेरे बाबा को चाहने लगेंगे तो उसके दूर होने पर भी आपको उसको अपने नजदीक होने का अहसास होने लगेगा,  हर चेहरे में आप उसका चेहरा ढूंढने की असफल कोशिश करने लगेंगे,  कोई पल ऐसा न गुजरेगा जब उसका नाम आपके होठों पर न रहे... यही तो होता है उसके प्यार में... सुन्दर, सुखद , निश्छल और पवित्र अहसास। पूरी दुनिया के सुख इस प्रेम में समाए हुए हैं। क्यों करेंगे ना उससे प्रेम?  आओ मेरे सांई आपका इन्तज़ार कर रहे है

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

    ॐ सांई राम।।।


    ओम साईं राम

    रमेश भाई जी

    बहुत ही सुंदर लिखा है आपने इतना सुंदर कि खुद को रोक नहीं पा रही हूं और आपके इन्ही विचारों को कविता में कहने की हिमाकत कर रही हूं ..  आशा करती हूं कि आप मुझे इस गुस्ताखी के लिए माफ करेंगे

    उससे प्यार किया नहीं जाता
    वो तो खुद ब खुद हो जाता है
    इस बिरहन और मालिक का
    ऐसा ही नाता है

    जैसे दिन और रात
    इक दूजे बिन अधूरे हैं
    जैसे धरती और अम्बर
    परस्पर अधूरे हैं

    सनसनाती हवाएं हैं
    उसके प्यार से सरोबार
    सुंदर नजारे, फूलों की खुशबू में
    छिपा होता है उसका प्यार

    कुछ तो प्यार मे
    हारकर भी जीत जाते हैं
    कुछ जीत कर भी खुद को
    हारा हुआ पाते हैं

    उसके प्यार का नशा
    जिसपर सवार होता है
    वो उसमें डूब जाता है
    फिर भी पार होता है

    अगर तुम भी चाहते हो
    उसी प्यार का एहसास
    तो ढाई आखर प्रेम की
    जगाओ खुद में प्यास

    जब तुम बाबा को
    दिल से चाहोगे
    तो दूर होने पर भी
    उसे पास ही पाओगे

    हर चेहरे में उसे ढूंढना
    तुम्हारा काम होगा
    तुम्हारे होठों पर
    बस उसका नाम होगा

    एक सुन्दर,सुखद,निश्चल
    और पवित्र एह्सास
    हमेशा रहेगा
    इस दिल के पास

    पूरी कायनात की खुशियां
    इस प्रेम में समाई
    उससे प्रीत लगाओ
    इंतजार में हैं साईं

    जय साईं राम


    http://www.shirdi-sai-baba.com/sai/कविताये/उससे-प्यार-किया-नहीं-जाता-t286.0.html
    « Last Edit: January 17, 2008, 06:25:45 AM by Jyoti Ravi Verma »

    Offline tana

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #31 on: January 16, 2008, 09:38:17 PM »
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  • ॐ साईं राम~~~

    रमेश भाई और सुरेखा दीदी,
    सांईराम~

    हाए मेरे बाबा~~मज़ा आ गया सुबह सुबह~~~

    रमेश भाई के शब्दों के फूलों को सुरेखा दीदी ने माला में पिरो दिया।
    और अगर ये गुस्ताखी है तो दीदी ये गुस्ताखी आप को माफ है।आप की इस गुस्ताखी की सज़ा भुगतने के लिए हम तैयार है।वो सज़ा हमें मंज़ूर है।

    प्रीत लगी मोहे साईं की , मुझे शरण में लेलों साईं~~~

    जय साईं राम~~~
       
    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
    ॐ शन्तिः शन्तिः शन्तिः"

    " Loka Samasta Sukino Bhavantu
    Aum ShantiH ShantiH ShantiH"~~~

    May all the worlds be happy. May all the beings be happy.
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    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #32 on: January 17, 2008, 04:16:13 AM »
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  • जय सांई राम़।।।

    खुशामदीद ये तो तुम्हारी ज़रानवाज़ी....मेरी खुशनसीबी कि तुम जैसी बहन मेरे टूटे फूटे शब्दों को अपने खूबसूरत अंदाज़ में पिरोये और पेश करे अपने बाबा के चरणों में एक नायाब कविता के रूप में....इससे बढ़कर मान और क्या होगा एक भाई का.....आप जैसी गुरू बहनें ही दिला सकतीं हैं अपने गुरू भाईयों को भाई होने का अहसास.....वाह! सुरेखा वाह!  तुम सच में ग्रेट हो....बाबा तुम्हारी हर मुराद बिना तुम्हारी इज़ाज़त के पूर्ण करें।

    मकसदों की आग तेज हो
    मनोबल की हवाएँ हो
    तो वो आग बुझती नहीं है
    मंजिल पा कर ही दम लेती है...
    आँधियाँ तो नन्हें दीपक से हार जाती हैं

    सच है,
    क्षमताओं को बढाने के लिए
    आँधी तूफ़ान का होना ज़रूरी होता है...
    प्रतिभाएं तभी स्वरूप लेती हैं
    जब वक़्त की ललकार होती है....

    जो ज़मीन बंज़र दिखाई देती हैं
    उससे उदासीन मत हो....
    ज़रा नमी तो दो
    फिर देखो वह क्या देती है
    हाथ,  दिल,  मस्तिष्क,  दृष्टि लिए
    बाबा तुम्हारे संग हैं
    सपनो की बारीकियां देखो
    फिर हकीकत बनाओ....
    तुम्हारे ऊपर है!

    हाथ को खाली देखते हो
    या सामर्थ्यापूर्ण!
    मन अशांत हो
    तो घबराओ मत
    याद रखो,
    समुद्र मंथन के बाद ही
    अमृत निकलता है....

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई
    ॐ सांई राम।।।

    http://www.shirdi-sai-baba.com/sai/कविताये/मकसदों-की-आग-तेज-हो-t287.0.html
    « Last Edit: January 17, 2008, 06:26:44 AM by Jyoti Ravi Verma »
    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

    Offline saisewika

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #33 on: January 17, 2008, 11:31:32 AM »
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  • ओम साईं राम

    आज द्वारकामाई में आकर
    मेरी आंखे भर आई
    इतनी प्यारी दुआंओ के लिए शुक्रिया
    अनु बहन रमेश भाई

    शुक्रिया है साईंनाथ का
    जिन्होंने ये मंदिर बनाया
    भक्ति के फूलों को चुनकर
    इसमें आन सजाया

    बाबा ने प्यारे भक्तों की
    एक जमात बनाई
    देख देख उनको मुस्काते
    साईं सर्व सहाई

    जब जब भक्त यहां पर आकर
    याद तुम्हें करते हैं
    आनंदित हो सारी खुशियां
    झोली में भरते हैं

    जिसकी जो भी व्यथा हो साईं
    यहां आकर कहता है
    निर्मल भक्ति का पावन झरना
    यहीं कहीं बहता है

    कितने ही भक्तों की झोली
    तुमने यहां भरी है
    कितनों के मन की मुरादें
    तुमने पूर्ण करी हैं

    मुझको अब ये प्यारा मंदिर
    शिरडी सा लगता है
    इसके इक इक भक्त हृदय में
    साईं नाथ बसता है

    जय साईं राम


    http://www.shirdi-sai-baba.com/sai/कविताये/आज-द्वारकामाई-में-आकर-t309.0.html
    « Last Edit: January 18, 2008, 11:19:16 AM by Jyoti Ravi Verma »

    Offline tana

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #34 on: January 17, 2008, 10:16:38 PM »
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  • ॐ साईं राम~~~

    आज द्वारकामाई में जब सुरेखा दीदी आई,
    आते ही दुवाएँ पाकर आँखे उनकी भर आई,
    हमारी दुवाओं मे तो बाबा का प्यार बसा है,
    इतना प्यारा सुरेखा नाम का फूल हमारे लिए साईं ने खुद चुना है~~
           
    मेरे सर्व सहाई की इस मुस्कान के सदके,
    इस सुंदर पावन धाम के सदके,
    आकारण कृपा करने वाले नाथ के सदके~~

    यह दर तेरा बरकतों का भंडार है,
    खाली झोली भरता यहा हर कोई बार बार है,
    सब के मन की मुरादों को पूर्ण साईं करता आप है~~

    ऐसा नज़ारा यही होता,
    एक दूसरे के लिए मागें मिल कर सब दुआ,
    निर्मल भक्ति के झरने में हर कोई गोते खाता,
    गोते खाते-खाते अपनी व्यथा वो भूल जाता~~

    हमकों अब ये प्यारा मंदिर शिरडी जैसा लगता,
    इस द्वारकामाई में रोज़ एक फूल खिलता,
    द्वारकामाई के इक इक भक्त हृदय में साईं नाथ खुद बसता~~

    जय सांई राम~~~


    http://www.shirdi-sai-baba.com/sai/कविताये/आज-द्वारकामाई-में-जब-सुरेखा-दीदी-आई-t310.0.html
    « Last Edit: January 18, 2008, 11:20:32 AM by Jyoti Ravi Verma »
    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
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    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #35 on: January 18, 2008, 08:35:32 AM »
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  • जय सांई राम़।।।

    बाबा से दोस्ती का एक पवित्र रिश्ता है
    इस में न कोई छल-कपट,  न निंदा है
    मुझे बाबा की दोस्ती पर है गर्व
    दुनिया को यही बना सकती है स्वर्ग

    बाबा की दोस्ती में नहीं कुछ ज्यादा न कम,
    आईये खुलकर बांटे हम,  खुशियाँ और ग़म ,
    बाबा जैसे दोस्तों के संग हम होते हैं हम
    साथ रहेंगे वो जब तक दम में है दम

    बाबा जैसे दोस्तों की जीवन मैं एहमियत होती है वो 
    घोर अंधेरे मैं जो होती है लौ की
    सब के दिल मैं होता है एक कोना
    बाबा जैसे दोस्तों बगैर जो रह जाए सूना

    बाबा की दोस्ती मैं नही होती कोई दीवार
    न उम्र न मज़हब की दरार
    दिल यही चाहता है बार-बार
    हर जनम मैं रहे संग बनके दोस्त जैसे मेरे बाबा मेरे यार...

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई
    ॐ सांई राम।।।

    http://www.shirdi-sai-baba.com/sai/कविताये/बाबा-से-दोस्ती-का-एक-पवित्र-रिश्ता-है-t311.0.html
    « Last Edit: January 18, 2008, 11:21:27 AM by Jyoti Ravi Verma »
    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

    Offline saisewika

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #36 on: January 18, 2008, 03:04:28 PM »
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  • ओम साईं राम

    साईं मेरे चंचल मन को
    पावन तीरथ कर दो
    गंगा जी सम निरमल होवे
    स्वामी ऐसा वर दो

    इस मन की गंगा के तट पर
    मंदिर हो एक न्यारा
    उसके अंदर आन विराजे
    मेरा साईं प्यारा

    भक्ति पथ पर बहता जाए
    मन गंगा का पानी
    बाधाओं से थमे रूके ना
    ऐसी होवे रवानी

    जीवन के मैदानों में यूं
    बहते बहते दाता
    कभी थकूं या रुकूं नहीं मैं
    ध्याते तुझे विधाता

    पर्वत जैसा दुख हो कोई
    या उपवन सा सुख हो
    मन मेरा ना विचलित होवे
    ना ही तुझसे विमुख हो

    भक्तों की सत्संगति को मैं
    पुलकित हो जाऊं पाकर
    ज्यों नदिया की धारा में
    धाराएं मिलती आकर

    अपने मन की गंगा में मै
    खुद ही डूब नहाऊं
    ऐसे निर्मल पावन होके
    साईं तुझको पाऊं

    जय साईं राम

    Offline abhinav

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    • सबका मालिक एक।
    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #37 on: January 19, 2008, 10:50:30 AM »
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  • saisewika ji,

    aapke man-mandir me to baba ki ganga already beh chuki hai............aur aap to pehle hi se baba ke naam roopi ganga jal me sanaan kar rahi hai. baba ke prati aisa prem.............aisa samarpan..............dil se aapke liye naman nikalta hai.

    bas baba ki kripa aap par yuhi barasti rahe............aur aapki kripa poem ban kar hum sab par barasti rahe.

    om sai ram.
    मी पापी-पतित धीमंद । 
    तारणें मला गुरुनाथा, झडकरी ।।
    मुझसा कोई पापी तेरे दर पे ना आया होगा।
    और जो आया होगा, खाली लौटाया ना होगा॥
    ॐ साई राम          اوم ساي رام          ਓਮ ਸਾਈ ਰਾਮ          OM SAI RAM          ॐ साई राम          اوم ساي رام          ਓਮ ਸਾਈ ਰਾਮ          OM SAI RAM          ॐ साई राम          اوم ساي رام          ਓਮ ਸਾਈ ਰਾਮ          OM SAI RAM          ॐ साई राम          اوم ساي رام          ਓਮ ਸਾਈ ਰਾਮ          OM SAI RAM

    Offline tana

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      • Sai Baba
    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #38 on: January 23, 2008, 05:23:09 AM »
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  • ॐ साँई राम~~~

    अब और मुझसे सहा न जाए
    इक पल भी दूर रहा न जाए
    अब मुझे कुछ भी न भाए
    सांस लेना भी भारी लगे
    हर पल आप की याद सताएं
    आप ने क्या कर दिया
    मेरा कैसा हाल किया
    अब तो आँसू भी नहीं आते
    जब आते है तो रूक नहीं पाते
    आप की छवि आँखों में रहती
    दिल को मेरे कचोटती रहती
    बाहें फैलाए मुझे बुलाती
    पर मैं तो आ ही न पाते
    फिर उस पल मेरा दिल घबराए
    जी चाहे अभी उङ जाए
    पंछी बिन पर जैसे फङफङाए
    इसका वही हाल हो जाए
    ये आप तक आ न पाए
    बस यहीं पङा मायूस हो जाए
    अब और सही नहीं जाती ये सजाएं
    अब तो आप कृपा बरसाएं
    मुझको चरणों में अब बिठाएं~~~

    जय साँई राम~~~
    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
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    Offline Ramesh Ramnani

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      • Sai Baba
    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #39 on: January 23, 2008, 11:06:32 PM »
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  • जय सांई राम।।।

    यूँ तो गुज़र रहा है हर एक पल खुशी के साथ
    फिर भी कोई कमी सी है ज़िन्दगी के साथ,
    रिश्ते, वफा, दोस्ती सब कुछ तो है पास,
    क्या बात है पता नही दिल क्यों है उदास,
    हर लमहा हंसी, नई दिलकशी के साथ
    फिर भी कोई कमी सी है क्यों ज़िन्दगी के साथ
    चाहत भी है सुकून भी है दिलबरी भी है,
    आंखों मे ख्वाब भी है लबों पर हंसी भी है
    दिल को नही कोई शिकायत किसी के साथ,
    फिर भी कोई कमी सी है क्यों ज़िन्दगी के साथ
    सोचा था जैसा वैसा ही जीवन तो है मगर,
    अब और तलाश में है क्यों बेचैन सी नज़र,
    कुदरत भी मेहरबान है दरिया दिल के साथ
    फिर भी कोई कमी सी है क्यों ज़िन्दगी के साथ
    यूं तो गुज़र रहा है हर इक पल खुशी के साथ
    फिर भी कोई कमी सी है क्यों ज़िन्दगी के साथ।

    है किसी के पास इन सब बातों का जवाब?  मैं तो मानता हूँ कि मेरे बाबा के अलावा किसी के पास ना होगा इन बातों का जवाब। चलो आओ फिर भी खोजें अपना अपना जवाब।

    आप जानते है यही है व्यथा मेरे बाबा की। सब कुछ होने के बावजूद भी क्यों करते है हम सब बाबा को तंग इतना?

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई
    ॐ सांई राम।।।
    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

    Offline saisewika

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #40 on: February 15, 2008, 11:03:32 AM »
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  • ओम साईं राम

    साईं तुम बिन जीवन जीना
    जीते जी हलाहल पीना

    बिन पंछी ज्यों पिंजरा खाली
    व्यंजन बिन ज्यों रीती थाली

    ज्यों कुमकुम बिन लगे सुहागन
    तुलसी बिन ज्यों लगता आंगन

    जल बिन ज्यों हो सूखा झरना
    बिन मतलब ज्यों बातें करना

    ज्यों चंदा बिन रहे चकोर
    बिन पंखों ज्यों नाचे मोर

    बिन खुशबू ज्यों कोई फूल
    शिव मूरत बिन ज्यों त्रिशूल

    कमल रहित ज्यों हो तालाब
    लवण बिना ज्यों होवे साग

    बिन आभूषण ज्यों हो नार
    रंग बिना होली त्योहार

    बिन जल के ज्यों गागर भरना
    बिन भावों के पूजा करना

    बिना देव के ज्यों देवालय
    बिन शिक्षक के ज्यों विद्यालय

    बिन राजा के ज्यों हो राज
    सुरों बिना ज्यों होवे साज

    ऐसे साईं बिना तुम्हारे
    जीवन अर्थहीन है प्यारे

    बेमतलब है,दिशा विहीन है
    तुम बिन जीवन प्राण हीन है

    साईं समझो मन की पीर
    विनती करते भक्त अधीर

    हमसे तुम ना रहना दूर
    जीवन में आ बसो हुजूर

    जय साईं राम

    Offline saisewika

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #41 on: February 18, 2008, 10:43:25 AM »
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  • ओम साईं राम


    साईं मां

    तुमसे लगन लगा कर जीना
    अमृत की प्याली को पीना

    भिक्षुक का ज्यों भाग हो जागा
    सोने पर ज्यों सजे सुहागा

    चंदा दिन दिन ज्यों है बढता
    सूरज नित नित ज्यों है चढता

    मस्त धूप का टुकडा कोई
    सर्दी में ज्यों गरम सी लोई

    नदिया की अल्हड सी धारा
    नाविक को ज्यों मिले किनारा

    ज्यों मां के आंचल मे छुपना
    सुंदरतम वादी में रुकना

    सागर सी गहराई पाना
    पर्वत के ऊपर चढ जाना

    जैसे मन का मीत मिला हो
    जीवन से ना कोई गिला हो

    थके पथिक को मिले बिछौना
    मल को ज्यों गंगा में धोना

    ऐसे साईं संग तुम्हारे
    धन्य धन्य हुए भाग हमारे

    तुम संग जीवन है उजियारा
    अति सुखद लगता जग सारा

    जय साईं राम

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #42 on: February 23, 2008, 11:17:55 AM »
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  • ओम साईं राम

    कल रात जब मायूस सी
    मैं तन्हा सी बैठी थी
    साईं से खफा सी थी
    क्रोध से एंठी थी

    तब यकायक साईं
    सामने आ खडे हुए
    मुझे देखा यूं ही
    निश्चल से पडे हुए

    बोले मुझसे खफा हो
    कि मैं तुम्हारी सुनता नहीं
    पर कभी सोचा है
    तुममें ही कमी होगी कहीं

    बाबा ने कहा
    तुम मेरे पास आओ
    मैं तुम्हें अपनाऊंगा
    चाहे सारी दुनिया ठुकरा दे
    मैं तो गले लगाऊंगा

    तुम्हारी सारी पीडाएं
    मैं जल्दी ही दूर भगा दूंगा
    गमों के हर साए का
    नामों निशां मिटा दूंगा

    बस तुम्हें इतना ही करना है
    अपने मन मंदिर को
    साईं नाम से भरना है

    पर जान लो
    यह इतना आसान नहीं
    केवल नाम लेना ही
    मेरे भक्तों की पहचान नहीं

    सबसे पहले तुम्हें
    अपने विकारों को दूर हटाना होगा
    क्रोध, लोभ और मोह को
    हृदय से भुलाना होगा

    और हां सबसे पहले
    तुम इतना जान लो
    ईर्ष्या हर विकार की जननी है
    उसे पहचान लो

    जब तक तुम्हारे मन में
    किसी भी प्राणी के लिये
    लेश मात्र भी विद्वेष है
    सच जानो वो तुम्हारी अपनी
    आत्मा के लिए क्लेश है

    अगर तुम अन्जाने में भी
    किसी को नीचा दिखाना चाहते हो
    फिर शिकायत ना करना
    कि साईं का रहम नहीं पाते हो

    अपने हृदय में झांको
    कहीं तृण मात्र भी
    उसमें कहीं विकार तो नहीं
    किसी एक के लिए द्वेष
    दूसरे के लिए प्यार तो नहीं

    अगर ऐसा है तो पहले
    अपने हृदय को निर्मल कर लो
    पश्चाताप के आंसुओं को
    आंखों में भर लो

    जितना खुद से करते हो
    दूसरे से भी उतना ही प्यार करो
    जैसा खुद के लिए चाहते हो
    सबसे वैसा ही व्यवहार करो

    और यह सब दिखावे के लिए नहीं
    सच में करना होगा
    फिर हृदय में
    साईं नाम को भरना होगा

    तब देखना सोचने से पहले
    तुम्हारी सब इच्छाएं पूरी होंगी
    तुम्हारे मन मंदिर में
    श्रधा और सबूरी होगी

    तब मैं ज़िंदगी के हर कदम पर
    रहूंगा तुम्हारे साथ
    और तुम्हारे मस्तक पर होगा
    मेरा ही वरद हाथ

    जय साईं राम

    Offline tana

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      • Sai Baba
    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #43 on: February 23, 2008, 07:27:35 PM »
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  • ॐ साईं राम~~~

    सुरेखा दी.........
    आप लाजवाब है आप की कोई मिसाल नहीं~~~~~

    बाबा पर छोड़ कर हे तो देख,
    बाबा न सुने तो कहना~~
    साईं को मन से बुला कर के तो देख,
    दौड़े चले न आये तो कहना~~
    साईं को हिए से कगा कर हे तो देख,
    साईं हिए से न लगाए तो कहना~~
    साईं को अपनी बात बता कर के तो देख,
    वो पूरी न करे तो कहना~~
    साईं नाम की मन में अलख जगा कर के तो देख,
    वो मन में न बस जाए तो कहना~~
    साईं की तरफ एक कदम बढ़ा कर तो देख,
    वो दस कदम न बढ़ाए तो कहना~~
    साईं के चरणों में नत-मस्तक हो कर के देख,
    वो सिर पर हाथ न रखें तो कहना~~
    साईं के आगे झोली फैला कर के देख,
    वो झोली खुशियों से न भर दे तो कहना~~
    मन साफ,पवित्र ,ईर्ष्या, द्वेश मिटा कर के तो देख,
    तेरा बोला सच न हो जाए तो कहना~~

    जय साईं राम~~~   

           
    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
    ॐ शन्तिः शन्तिः शन्तिः"

    " Loka Samasta Sukino Bhavantu
    Aum ShantiH ShantiH ShantiH"~~~

    May all the worlds be happy. May all the beings be happy.
    May none suffer from grief or sorrow. May peace be to all~~~

    Offline Ramesh Ramnani

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      • Sai Baba
    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #44 on: February 24, 2008, 07:14:15 AM »
  • Publish
  • जय सांई राम।।।

    सुरेखा बहन की बाबा से
    खफाऐ दर्द की
    दास्तां सुन मुझे भी लगा कि
    कभी किसी रोज़ बस यूंही 
    चलते चलते अपनी भी दास्तान
    बयान करूंगा!
    आज सिर्फ बस यह कि
    व्यर्थ कोई बात नहीं होती,
    हर काल के पीछे
    विकास चलता है.....
    मृत्यु है तो जन्म है,
    हार है तो जीत है,
    आंसू है तो मुस्कान
    भी दूर नही!
    कैसा भय और क्यूँ?
    अंगारों पर चलने का हौसला मिटने मत दो-
    अंगारों पे पांव रखोगे तो पांव जलेंगे.....
    पर ज़िन्दगी यदि दूसरी छोर पर है,
    तो हिम्मत तुम्हे करना होगा,
    अंगारों पे चलने का....
    बेशक!
    पांव जलेंगे,
    शायद नाकाम भी हो जाएं पर,
    ज़िन्दगी ने तुम्हे इस तरह बुलाया है तो
    निश्चित ही नए आयाम भी देगी!!!
    और अपने बाबा सांई
    की हथेली होगी
    अंगारों से बचाने के लिए....

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

    ॐ सांई राम।।। 
    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

     


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