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Sai Literature => Sai Baba poems => Topic started by: saisewika on December 14, 2007, 04:11:27 PM

Title: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on December 14, 2007, 04:11:27 PM
ओम साईं राम

कल रात मेरे सपने में
बूढा फ़कीर इक आया
वेशभूषा तो बाबा सी थी
पर मुख था मुरझाया

जीर्ण क्षीण थी बूढी काया
दिखती थीं सब आंते
आंखे डबडब भरी हुई थीं
हाथ कांपते जाते

एक हाथ टमरैल थमा था
कंधे पर था झोला
एक हाथ में सटका था और
फटा हुआ था चोला

उनकी हालत देख देख कर
मन मेरा घबराया
पूछा बाबा क्या कर डाला
ये क्या हाल बनाया

दुखी स्वरों में बाबा बोले
तुमको क्या बतलाऊं
क्या क्या मुझको भक्त बोलते
बतलाते शरमाऊं

कोई कहता मैनें उसको
धोखा बहुत दिया है
कोई कहता मेरे कारण
वो पीडा में जिया है

कोई कहता मैंने उसकी
झोली रक्खी खाली
कोई कहता दुखी ज़िंदगी
मैंने है दे डाली

कोई मर्म ना जाने मेरा
कैसे मैं समझाऊं
सुख दुख सब कर्मों का फल है
कैसे मैं बतलाऊं

फिर भी मैं कोशिश करता हूं
उनके दुख मैं ले लूं
उनको जो भी कष्ट भोगने
मैं ही उनको झेलूं

ऐसी बातें सुन सुन कर
है फटती मेरी छाती
दोषारोपण ऐसा पाकर
रूह कांपती जाती

अब मैं पछताता हूं क्यों मैं
इस धरती पर आया
क्यों भक्तों के पाप काटने
तन मानव था पाया

भक्तों ने जो घाव दिये हैं
उनसे टूटा मन है
पाप कर्म सब उनका ढोते
बोझिल मेरा तन है

देखो उनके दुख हैं मैंने
इस झोली में डाले
उनको ढोते ढोते मेरे
पडे पैर में छाले

अपने ऊपर दुख ओढता
उफ़ ना मैं करता हूं
मैं ही उनका दुख हरता हूं
मैं ही सुख करता हूं

फिर भी मेरे भक्त समझते
मैं दोषी हूं उनका
केवल सुख ही सुख चाहता
हर पल हर दिन जिनका

बाबा की यह व्यथा जानकर
मन मेरा भी कांपा
रोम रोम में दुख का सागर
मुझमें भी आ व्यापा

बाबा के चरणों में गिरकर
फूट फूट मैं रोई
बाबा हमको माफ करो तुम
तुम बिन और ना कोई

नहीं जानते हैं वो बाबा
जो ये सब हैं कहते
शायद वो घबरा जाते हैं
दुख दर्द को सहते

भक्तों के मन की आखों को
स्वामी तुम ही खोलो
पत्ते पत्ते में कण कण में
भक्ती रस को घोलो

हम तो दाता इतना चाहें
कुछ ऐसा तुम कर दो
जब भी हाथ पसारे
दरशन चाहें ऐसा वर दो

इससे कुछ ज़्यादा ना चाहें
ना धन, यश ना मान
देना है तो स्वामी दे दो
श्री चरणों में स्थान

जय साईं राम

Admin: This poem is published on Sai Baba Blog:
http://www.shirdi-sai-baba.com/sai/कविताये/बाबा-की-यह-व्यथा-t26.0.html
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: JR on December 15, 2007, 12:01:17 AM
Jai Sai Ram Saisewika Ji,

अरे वाह दिल खुश कर दिया आपने । बहुत सही लिखा है आपने ।  सच में बाबा भी कितना कष्ट झेलते है हमारे लिये ।  फिर भी हम सभी हमेशा सिर्फ बाबा को ही दोष देते रहते है ।

बाबा सभी का ध्यान रखते है और सदा अपने भक्तों पर इसी तरह दया बनाये रखे ।

रक्षा करें बाबा ।

Jai Sai Ram.


इससे कुछ ज़्यादा ना चाहें
ना धन, यश ना मान
देना है तो स्वामी दे दो
श्री चरणों में स्थान

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Ramesh Ramnani on December 15, 2007, 01:38:49 AM
जय सांई राम।।।

कभी कभी दर्द बयां नही होता बस आह निकलती है वही हाल अभी अभी मेरा हुआ है सुरेखा रचित बाबा की मर्म दास्तान पढ़कर। वाह सुरेखा वाह! जिस बात को मैं अक्सर टुकड़ों-टुकड़ों मे कहता था आज तुमने पिरो दिया अपने प्यार से भरे शब्दों में! बाबा से भक्ति एक व्यापार, सौदेबाज़ी सी हो गई है, बस हर कोई अपना दुखड़ा, अपना रोना लिये तैयार सा बैठा है। एक तरफ से दे - एक तरफ से ले! मानो सब छलावा सा कर रहे है मेरे भोले भाले बाबा सांई से! सच में किसी को कोई फिक्र ही नही मेरे सांई की। काश कोई समझ पाये मेरे दयालु बाबा के करूणामयी रुप को।

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई


ॐ सांई राम।।।
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on December 15, 2007, 01:04:46 PM
ओम साईं राम

धन्यवाद ज्योति जी, रमेश भाई जी

बाबा की असीम कृपाओं के लिये वो शब्द ही नहीं मिलते जो उनका शुक्रिया
अदा कर सकें. बस इतना कह सकती हूं कि -

वो वीतरागी वो महात्यागी
फटी कफ़नी में ज़िंदगी गुज़ार गया
शरण उसकी जो भी आया
उसका जीवन सुधार गया

पर वाह रे भक्तों तुमने उनको
कैसा सिला दिया है
उनकी रहमतों के बदले
सिर्फ गिला ही किया है

फिर भी वो वैरागी बाबा
दुख सबके लेता है
बदले में अपने बच्चों को
खुशियां ही देता है

शुक्रिया ओ परम दयालु
धन्यवाद है तेरा
रोम रोम से शत शत प्रणाम
बाबा तुम्हें हो मेरा

जय साईं राम

Admin: This poem is published on Sai Baba Blog:
http://www.shirdi-sai-baba.com/sai/कविताये/वो-वीतरागी-वो-महात्यागी-t27.0.html
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: tana on December 17, 2007, 01:54:24 AM
ॐ सांई राम~~~

सुरेखा जी,
सांई राम~~~

कोई शब्द ही नहीं है क्या बोलूं....बस ये पढ़ कर आँखे नम है और दिल में ये तङप है...

बाबा की ये व्यथा पढ़,
मेरा दिल बङा ही तङपा,
दिल पर चोट लगी कुछ ऐसी,
मन से रूदन फूटा...

कब हुआ,कैसे हुआ हम से
इतना बाबा को तङपाया,
ना सोचा ना समझा
कैसे बाबा को रूलाया...

बार बार समझाते बाबा
सब कर्मों का फल है,
फिर भी हर बार हमने बस
बाबा को ही कोसा...

ये ना दिया वो ना दिया...
हाए....मेरे सांई...मेरे करूणामयी बाबा,
कैसे इतना तङपाया.....
क्यों ना समझे अब तक हम,
बाबा के मन की व्यथा...

आज हम सब करते वादा
बस सांईमय हो जाए,
रात -दिन बस सांई सांई करे
ज़िन्दगी यूँ ही बिताए....

सिर्फ इतना मांगे बाबा से कि
जब भी हम इस जग से जाए
मन से तुझे ध्याए और मूँह से सांईराम सांईराम गाए,
हाथ सदा सिर पर हो तेरा
तेरे चरणों में सीस नवाए,
और बस तेरे ही हो जाए....

अब हम सांईमय हो जाए...बस अब सांई मय हो जाए~~~~

जय साईं राम ~~~


http://www.shirdi-sai-baba.com/sai/कविताये/बाबा-की-ये-व्यथा-पढ़-t28.0.html
       
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on December 17, 2007, 12:49:46 PM
ओम साईं राम

अनु जी
बहुत सही कहा है आपने इससे आगे और कुछ कहने को नही है-----

आज शब्द मौन हैं
विचार शून्य हो चुके
क्या कहूं कैसे कहूं
शब्द अर्थ खो चुके

तो चलो वाणी को विश्राम दें
श्री चरणों पर ध्यान दें
साईं साईं रटते जाएं
भक्ती को सोपान दें

कुछ नहीं कहें कुछ नहीं सुने
ये दुनियादारी रहने दें
बस श्रद्धा से नतमस्तक हों
और भक्ती भाव को बहनें दें

जय साईं राम
http://www.shirdi-sai-baba.com/sai/कविताये/आज-शब्द-मौन-हैं-t29.0.html
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Ramesh Ramnani on December 18, 2007, 12:01:50 AM
जय सांई राम।।।

हर बार की तरह फिर
सुरेखा बहन जी आई हैं
फोरम को निशब्दों का
एक नया आयाम देने...

बाबा सांई जिनके साथ हो
उन मतवालों दीवानों को....

बिना कहे सब कुछ
कहना आ जाता है
बिना बताये सब कुछ
बताना आ जाता है....

जिस तरह रोशनी
के पास बैठो
रोशनी खुद ब खुद
रोऐं रोऐं को
सर्पश कर जाये मानो...

द्वारकामाई वाली सुगंध
चाहे तुम्हारे नासापुट
सक्रिय न भी हों
तुम्हारे फेफड़ों तक पहुंच जाए...

वाह सुरेखा वाह...

तुम्हारे निशब्दों में भी बाबा सांई का वास हो।

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई


ॐ सांई राम।।।

http://www.shirdi-sai-baba.com/sai/कविताये/हर-बार-की-तरह-फिर-t31.0.html
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on December 18, 2007, 11:16:47 AM
ओम साईं राम

बाबा जी के दोहे----------


मन्दिर मस्जिद जोड के
द्वारका देइ बनाय
सबका मालिक एक है
साईं दियो समझाय

गोदावरी के तीर की
महिमा दस दिस छाई
प्रभु स्वयं ही प्रगट हुए
नाम धराया साईं

तीन वाडों के बीच में
हरि करते विश्राम
तांता भक्तों का लगा
शिरडी बन गई धाम

हिन्दु हैं या यवन हैं
बाबा नहीं बतलाए
जैसी जाकी भावना
तैसो दरशन पाए

चन्दन उत्सव जोड दिया
रामनवमी के संग
हिन्दु मुसलिम प्रेम का
खूब जमा फिर रंग

पाप ताप संताप का
करने हेतु अंत
बाबा चक्की पीसते
देखे हेमाडपंत

चक्की में आटा पिसा
मेढ दियो बिख्रराय
शिरडी से सभी व्याधी को
साईं दियो भगाय

पोथी पढे नहीं होत है
अग्यानी को ग्यान
सदगुरु जिसके ह्रदय बसे
ताको ग्यानी जान

द्वारकामाई की गोद मे
बैठो कर विश्वास
सबके पापों का माई
कर देती है नाश

समाधि मंदिर की सीढी पर
रख देते जो पांव
उनके जीवन दुख का
रहे ना कोई ठांव

सब जीवों में देखे जो
साईं राम का वास
उसके ह्रदय में साईं
आप ही करे निवास

दास गणु क्यूं जात हो
प्रयाग काशी आप
गंगा जमना यहीं रहे
श्री चरणों में व्याप

तेली तुमने दिया नहीं
साईंनाथ को तेल
पानी से दीपक जले
लीला के थे खेल

चोलकर शक्कर छोड के
जोडे पाई पाई
अंतरयामी साईं ने
कर दीन्ही भरपाई

जो जन की निंदा करे
ऐसो ही गति पाए
जैसे कूडा ढेर से
शूकर विष्ठा खाए

पूजन चिन्तन मनन का
जो करता अभ्यास
साईं उसके साथ हैं
साईं उसके पास

मर्म दक्षिणा जान लो
पूरा लो पहचान
कर्मबन्ध के काटने
साईं लेते दान

नश्वर ये संसार है
मोह माया को त्याग
यही बताने को साईं
ऊदी दियो परसाद

धूप दीप का थाल ले
जोग खडे प्रभु द्वार
तांत्या चंवर ढुला रहे
नाना है बलिहार

जय साईं राम

http://www.shirdi-sai-baba.com/sai/कविताये/बाबा-जी-के-दोहे-t32.0.html
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Apoorva on December 18, 2007, 02:17:31 PM
अद्भुत, आपके ऊपर माँ सरस्वती की असीम कृपा है |
संतचरित्र के रचेयता से परमात्मा अति प्रस्सन होते है |
साधुचरित्र शुभ सरिस कपासू | नीरस विषद गुणमाय फल जासू ||
जो सहि दुःख पर छिद्र दुरावा | वन्दनीय जेहि जग जस पावा ||
-- तुलसीदास
आपको नमन
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on December 20, 2007, 10:36:20 AM
ओम साईं राम

अपूर्वा जी

धन्यवाद

नमन की पात्र मैं नहीं साईं नाथ हैं. नमन के पात्र वो सभी भक्त जन हैं जिन्हें ये कविताएं इसलिये अच्छी लगती हैं क्यूंकि इनमें साईं जी की स्तुति है और वो हर साईं भक्त करना चाहता है. मुझे तो इस फ़ोरम की हर पोस्ट" गुड कर्मा" लगती है क्यूंकि उसमें साईंनाथ का नाम होता है.. चाहे अखंड साईं नाम जाप में कोई जाप करे, बाबा जी के बारे मे लेख , कविता कुछ भी लिखे हर पोस्ट गुड कर्मा है वो " नाट सो गुड पोस्ट" हो ही नही सकती क्युंकि उसमें साईं नाथ जी के प्रति भक्ती भाव जुडा है.. इसलिये नमन है इस फोरम के एक एक भक्त को..

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on December 24, 2007, 07:21:59 AM
ओम साईं राम

शिरडी नाम का छोटा सा
एक गांव है प्यारा
उसके अंदर समाधी मंदिर
अद्भुत अनुपम न्यारा

उसके अंदर साईं बैठे
मंद मंद मुस्काएं
जिनको उनसे मिलना है
वो शिरडी धाम को आए

समाधी मंदिर में बैठे बाबा
देख रहे हैं राह
भक्तों से मिलने की
भगवन भी रखते हैं चाह

द्वारका माई में बैठे बाबा
ताप रहे हैं सेक
श्री चरणों में शीश झुकाकर
माथा तुम लो टेक

चावडी में बैठे बाबा
करते हैं विश्राम
नैनों को शीतल करने को
पहुंचो शिरडी धाम

नीम तले हैं बैठे बाबा
देखो आंखे मूंद
भक्ती रस की चख लो आकर
हर इक पावन बूंद

पालकी में बैठे बाबा
देख रहे चहुं ओर
बाबा की अद्भुत लीला का
पावे ना कोई छोर

बाबा जा रहे हैं करने
लैंडी बाग की सैर
जल्दी जल्दी कदम बढाओ
पकडो उनके पैर

अहोभाग्य हमारा हमने
दर्शन पाये न्यारे
जितने भी थे पूरे हो गये
नैनों के सपने प्यारे


जय साईं राम

http://www.shirdi-sai-baba.com/sai/कविताये/शिरडी-नाम-का-छोटा-सा-t42.0.html

Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on December 29, 2007, 01:32:00 PM
ओम साईं राम

ये शोर क्यूं मचा है
ये बवंडर क्यूं उठा है
ये कैसा है विवाद
ये कैसा है फ़साद 

क्या दुनिया में ऐसा
पहली बार हुआ है
कि इश्क ने किसी आशिक के
दिल को छुआ है

एक सोने के सिंहासन को
मुद्दा बना डाला
एक बेमानी सवाल को
बेमतलब ही उछाला

जो स्वामी है सारे जग का
राजाओं का है राजा
वो महामहिम है दाता
धन्वन्तरी महाराजा

मोहताज नहीं यकीनन
वो ऐसी सौगातों का
पर है ख़्याल रखता
भक्तों के जज़्बातों का

कर लेता है कबूल
जो भी करो तुम अर्पण
बस भक्ती भाव हो पूरा
और पूर्ण हो समर्पण

अगर वो ना चाहे
तो पत्ता तक ना हिलता
ना धरती अम्बर होता
ना मानव जीवन मिलता

फिर क्यूं हम खुद ही
इस बहस को बढाएं
भक्ती के सिंहासन में
विवादों के जोडें पाये

बाबा के साथ कृप्या
ना राजनीति जोडें
रहने दें ज़ोर आज़माइश
ये रस्साकशी छोडें

बाबा को अपने मन के
सिंहासन पर बैठाएं
मालिक वो सारे जग का
उस से ही लौ लगाएं

जय साईं राम
Title: Re nav varsh ki badhai
Post by: saisewika on December 31, 2007, 02:50:53 PM
ओम साईं राम



नव वर्ष की प्रथम बधाई
तुमको हो साईं नाथ
द्वितीय मेरे मात पिता को
जिनका आशिष साथ

फिर बाबा के भक्त जनों को
नव वर्ष की बधाई
सब भक्तों के अंग संग
सोहे सर्व सहाई

अति सुखद हो मंगलमय हो
नया चढा जो साल
संतति विहीनों के आंगन में
खेले बाल गोपाल

कोई भी दुखिया ना होवे
ना होवे लाचार
आधि व्याधि दूर हटाएं
साईं सर्वाधार

पूरण हों सबकी आशाएं
खुशियां हो बेअंत
शुभ कर्मों की वृद्धि हो
पापों का होवे अंत

श्रद्धा और सबूरी का
मनों में हो प्रकाश
भक्ती भाव भरपूर रहे
और पूरा हो विश्वास

दुनिया के सब मुल्कों में
शांति हो समृद्धि हो
आतंकवाद का नाश हो
भाईचारे की वृद्धि हो

हाथ जोड कर तुमसे विनती
करते हम सरकार
हर प्राणी के हृदय में
भर दो करुणा प्यार

जय साईं राम

Title: Re: Re nav varsh ki badhai
Post by: SaiServant on December 31, 2007, 03:51:58 PM
ओम साईं राम



नव वर्ष की प्रथम बधाई
तुमको हो साईं नाथ
द्वितीय मेरे मात पिता को
जिनका आशिष साथ

फिर बाबा के भक्त जनों को
नव वर्ष की बधाई
सब भक्तों के अंग संग
सोहे सर्व सहाई

अति सुखद हो मंगलमय हो
नया चढा जो साल
संतति विहीनों के आंगन में
खेले बाल गोपाल

कोई भी दुखिया ना होवे
ना होवे लाचार
आधि व्याधि दूर हटाएं
साईं सर्वाधार

पूरण हों सबकी आशाएं
खुशियां हो बेअंत
शुभ कर्मों की वृद्धि हो
पापों का होवे अंत

श्रद्धा और सबूरी का
मनों में हो प्रकाश
भक्ती भाव भरपूर रहे
और पूरा हो विश्वास

दुनिया के सब मुल्कों में
शांति हो समृद्धि हो
आतंकवाद का नाश हो
भाईचारे की वृद्धि हो

हाथ जोड कर तुमसे विनती
करते हम सरकार
हर प्राणी के हृदय में
भर दो करुणा प्यार

जय साईं राम





Jai Sai Ram!!

Sai bhaktoan ko nav varsh ki badhai!! Saisewika ji ki rachna bahut sunder hai. Iss ke liye unka bahut dhanyawaad!!

Happy New Year to dear brothers and sisters! May Baba be with us always!!

Om Sai Ram!!

 :) :) :) :) :)




Title: Re: Re nav varsh ki badhai
Post by: tana on December 31, 2007, 11:07:18 PM
ओम साईं राम



नव वर्ष की प्रथम बधाई
तुमको हो साईं नाथ
द्वितीय मेरे मात पिता को
जिनका आशिष साथ

फिर बाबा के भक्त जनों को
नव वर्ष की बधाई
सब भक्तों के अंग संग
सोहे सर्व सहाई

अति सुखद हो मंगलमय हो
नया चढा जो साल
संतति विहीनों के आंगन में
खेले बाल गोपाल

कोई भी दुखिया ना होवे
ना होवे लाचार
आधि व्याधि दूर हटाएं
साईं सर्वाधार

पूरण हों सबकी आशाएं
खुशियां हो बेअंत
शुभ कर्मों की वृद्धि हो
पापों का होवे अंत

श्रद्धा और सबूरी का
मनों में हो प्रकाश
भक्ती भाव भरपूर रहे
और पूरा हो विश्वास

दुनिया के सब मुल्कों में
शांति हो समृद्धि हो
आतंकवाद का नाश हो
भाईचारे की वृद्धि हो

हाथ जोड कर तुमसे विनती
करते हम सरकार
हर प्राणी के हृदय में
भर दो करुणा प्यार

जय साईं राम



ॐ सांई राम~~~

नव वर्ष की मंगल बेला पर मागें यही वरदान,
हर कर्त्तव्य करे हम पूरा,
बस रटते हुए सांई राम ,सांई राम,
जिंदगी यूँ ही बीते हमारी जपते तेरा नाम....
सुख शांति सब को मिले पूर्ण हो सब के काम...



जय सांई राम~~~
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Ramesh Ramnani on January 01, 2008, 04:11:33 AM
ओम साईं राम

अनु जी
बहुत सही कहा है आपने इससे आगे और कुछ कहने को नही है-----

आज शब्द मौन हैं
विचार शून्य हो चुके
क्या कहूं कैसे कहूं
शब्द अर्थ खो चुके

तो चलो वाणी को विश्राम दें
श्री चरणों पर ध्यान दें
साईं साईं रटते जाएं
भक्ती को सोपान दें

कुछ नहीं कहें कुछ नहीं सुने
ये दुनियादारी रहने दें
बस श्रद्धा से नतमस्तक हों
और भक्ती भाव को बहनें दें

जय साईं राम
http://www.shirdi-sai-baba.com/sai/कविताये/आज-शब्द-मौन-हैं-t29.0.html


JAI SAI RAM!!!

I don't know what to say
I never know what to say
yet there is great power in not knowing
knowing I can never know
the mystery constantly deepens
overwhelming my sense of what is
the mystery speaks without words
taking the breath away
leaving no air for words
in silence there is room for pain and bliss
in unlimited measure...

OM SAI RAM!!!
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on January 02, 2008, 12:19:23 PM
ओम साईं राम

अनु जी
बहुत सही कहा है आपने इससे आगे और कुछ कहने को नही है-----

आज शब्द मौन हैं
विचार शून्य हो चुके
क्या कहूं कैसे कहूं
शब्द अर्थ खो चुके

तो चलो वाणी को विश्राम दें
श्री चरणों पर ध्यान दें
साईं साईं रटते जाएं
भक्ती को सोपान दें

कुछ नहीं कहें कुछ नहीं सुने
ये दुनियादारी रहने दें
बस श्रद्धा से नतमस्तक हों
और भक्ती भाव को बहनें दें

जय साईं राम
http://www.shirdi-sai-baba.com/sai/कविताये/आज-शब्द-मौन-हैं-t29.0.html


JAI SAI RAM!!!

I don't know what to say
I never know what to say
yet there is great power in not knowing
knowing I can never know
the mystery constantly deepens
overwhelming my sense of what is
the mystery speaks without words
taking the breath away
leaving no air for words
in silence there is room for pain and bliss
in unlimited measure...

OM SAI RAM!!!




OM SAI RAM

Silence is calm and quiet
like an empty space
it is fullness, totality
of a hollow place
under the nine feet grave
when life fails
& deep under the sea
silence prevails
sun is silent,
moon and stars
trees are silent,
grass and flowers
all are flourishing
with "silence tranquil"
as GOD cannot be found
in excitement and thrill
we need silence
to be alone with GOD
to feel the presence
of that heavenly abode
a true dialogue
if you want to start
exchange the "silence"
keep the words apart

JAI SAI RAM
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on January 07, 2008, 08:12:34 AM
ओम साईं राम

मेरे मन की व्यथा


साईं तुम बिन सब जग रीता
क्षण क्षण साल साल सा बीता

बिरहन का मन रहा उदासा
मेघ बिना ज्यों चातक प्यासा

तडप तडप के दिन को काटा
चीत्कार करता सन्नाटा

रात अंधेरी थी और काली
सूनी सूनी खाली खाली

जल बिन ज्यों मछली हो प्यासी
सिसक सिसक कर रोई दासी

ज्यों चंदा बिन रहे चकोर
ऐसा था मेरे मन का मोर

तुम बिन सूना ये जग सारा
दरशन दे दो प्यारा प्यारा

व्याकुल मन को आए चैन
तुमको देखूं दिन और रैन

जय साईं राम

http://www.shirdi-sai-baba.com/sai/कविताये/साईं-तुम-बिन-सब-जग-रीता-t238.0.html
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Ramesh Ramnani on January 08, 2008, 07:51:41 AM
जय सांई राम।।।

ज़िन्दगी कभी मुश्किल तो कभी आसान होती है...
आंखों में कभी नमी, तो होंठों पे कभी मुस्कान होती है....
बाबा के प्रेम की राह पे साल दर साल...
यूंही चलते चलते....
ना भूलना अपनी मुस्कराहट को...
इसी से होगी हर मुश्किल आसान तेरी...

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

http://www.shirdi-sai-baba.com/sai/कविताये/ज़िन्दगी-कभी-मुश्किल-तो-कभी-आसान-होती-है-t239.0.html


ॐ सांई राम।।।

Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on January 08, 2008, 03:26:31 PM
ओम साईं राम

जाग जा रे मनवा
अब तो साईं नाम जाप कर
होठों पर हो साईं नाम
मन में साईं व्याप कर

चौरासी लाख योनियों में
भटकता ही रह गया
काग,नाग,शूकर बनके
ज़िल्लतों को सह गया

अब तो जाग तूने जो ये
मानव तन पाया है
पुन्य तेरे जाग उठे
भाग्य भी मुस्काया है

आंखे खुली रख कर ना
सोता रह भाई तू
जीवन को सुधार ले
कर ले कमाई तू

रिश्ते और नातों की
जंजीरों में तू जकडा है
काल तेरे साथ चलता
फिर काहे को अकडा है

प्रेमिका है,पत्नी है
बहना है या माता है
कर्मों के सब बंधन हैं
क्षण भंगुर ये नाता है

भाई बंधु कोई तेरे
काम नहीं आएंगे
महल और चौबारे सब
यहीं रह जाएंगे

तेरे ही प्यारे तुझे
कंधों पर उठाएंगे
मृतक को निकालने को
जल्दी ये मचाएंगे

तुझसे जो हैं गले मिलते
तुझसे छू जो जाएंगे
अपने अपने घर जा कर
वो ही फिर नहाएंगे

मिट्टी का ये ढेर फिर
मिट्टी में मिल जाएगा
काहे नाम नाहि ध्याया
पाछे फिर पछताएगा

केवल एक नाता सांचा
तेरा और साईं का
नाम धन की गठरी बांध
मार्ग चुन भक्ताई का

बाबा साईं कभी तेरा
साथ नहीं छोडेंगे
दुनिया के उस पार भी वो
खुद से तुझ को जोडेंगे

तो जाग जा रे मनवा
अब तो साईं नाम जाप कर
होठों पर हो साईं नाम
मन में साईं व्याप कर


जय साईं राम


http://www.shirdi-sai-baba.com/sai/कविताये/जाग-जा-रे-मनवा-t240.0.html
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Ramesh Ramnani on January 09, 2008, 03:06:25 AM
जय सांई राम।।।

प्यार के दीप जलाने वाले कुछ कुछ पागल होते हैं
अपनी जान से जाने वाले कुछ कुछ पागल होते हैं
हर पल "उनके" ख्वाब रहते हैं आँखों मे
ख्वाबों मे मुस्कुराने वाले कुछ कुछ पागल होते हैं

इस झूठी दुनिया मे ये हमने हमेशा देखा है
सच्ची बात बताने वाले कुछ कुछ पागल होते हैं

दिलवाले कहाँ किसी बाग की बहार को चाहते हैं
दूसरों को महकाने वाले कुछ कुछ पागल होते हैं

हवा मे "आप" की खुशबू ढूँढते हैं,  दिल से आहें भरते है
आप को दिल से चाहने वाले कुछ कुछ पागल होते हैं

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

ॐ सांई राम।।।

http://www.shirdi-sai-baba.com/sai/कविताये/प्यार-के-दीप-जलाने-वाले-कुछ-कुछ-पागल-होते-हैं-t241.0.html;msg241
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on January 09, 2008, 02:40:39 PM
ओम साईं राम

मेरी ज़िंदगी की जो भी सुबह शाम होती है
वो मेरे देवा तेरे ही नाम होती है
तेरा ही नाम ले ले कर सूरज उगता है
तेरा ही नाम ले कर ढल जाता है
मेरी इस ज़िंदगी का हर काम
तेरा नाम ले कर ही चल जाता है

तेरे ही नाम से प्रीत लगाई है
तेरे ही नाम की लौ जगाई है
तेरी ही शान में सजदे करती हूं
तेरे ही नाम का दम भरती हूं
तेरा नाम ही मेरे वजूद की पहचान है
इसीलिए तो साईंसेविका मेरा नाम है

जय साईं राम

http://www.shirdi-sai-baba.com/sai/कविताये/मेरी-ज़िंदगी-की-जो-भी-सुबह-शाम-होती-है-t242.0.html
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: tana on January 09, 2008, 10:01:05 PM
ॐ सांई राम~~~

मैं पागल मेरा मनवा पागल,
पागल मेरी देह,
सब जग पागल दीखे मोहे,
मेरे पास नहीं मेरी नेह~~~

बाबा......

जय सांई राम~~~
       
 

http://www.shirdi-sai-baba.com/sai/कविताये/मैं-पागल-मेरा-मनवा-पागल-t243.0.html
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on January 11, 2008, 09:06:04 AM
ओम साईं राम

मैं नदिया तुम एक समंदर
तुममें जो मिल जाऊं मैं
चिर विश्रांति पाऊं मैं

मै याचक तुम राज धिराज
तेरे द्वारे आऊं मैं
साईं नाम धन पाऊं मैं

मैं मलयुत तुम निर्मल नीर
दया दृष्टि जो पाऊं मैं
उज्जवल स्वच्छ हो जाऊं मैं

जय साईं राम

http://www.shirdi-sai-baba.com/sai/कविताये/मैं-नदिया-तुम-एक-समंदर-t268.0.html
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on January 14, 2008, 12:17:12 PM
ओम साईं राम

कल रात मेरे सपने मे
फिर से बाबा आए
हाथ जोडकर खडी रही मैं
जडवत शीश नवाए

बाबा बोले प्रश्न पूछ ले
कर ना तू संकोच
जो भी तेरे मन में है
सब कह दे यूं ना सोच

श्री चरणों मे नत होकर मैं
बोली मेरे स्वामी
कुछ शंकाए मन में हैं
सुलझाओ अंतरयामी

कैसे करूं तुम्हारी पूजा
साईं ये बतलादो
विधि विधान जैसे भी हों
भक्तों को समझा दो

तुमको अर्पण करूं मैं बाबा
कैसे हों वो फूल
कोई ऐसा फूल नहीं है
जिसमें ना हों शूल

धूप दीप कहां से लाऊं
जिनमें सुगंध हो पूरी
बिना सुगंध के मेरी पूजा
रह ना जाए अधूरी

कैसे स्वर में मधुर आरती
गा के तुम्हें पुकारूं
कागा जैसी मेरी वाणी
कैसे इसे सुधारूं

नैवेद्य बनाऊं कैसा जो हो
मनभावन प्रभु तेरा
स्वीकारो तुम खुशी खुशी से
जो चढावा हो मेरा

इन सारे प्रश्नों को सुनकर 
बाबा जी मुस्काए
फिर पूजा कैसी हो इसके
सभी भेद समझाए

बोले मुझको नहीं चाहिए
पुष्पों की कोई माला
अपने मन को "सुमन" बना कर
अर्पित कर दो बाला

धूप दीप या बाती की
मुझे नही दरकार
श्रद्धा और सबूरी ही मैं
कर लेता स्वीकार

दे सको तो अपने सारे अवगुण
मेरे आगे डालो
सेवा और त्याग का मार्ग
जीवन में अपनालो

वाणी कर लो ऐसी कि तुम
जब भी मुख को खोलो
हर प्राणी से मधुर स्वरों में
मीठी बातें बोलो

कभी किसी का दिल ना तोडो
कभी ना करो विवाद
तेरे कारण किसी जीव को
कभी ना होवे विषाद

सीधी सच्ची भक्ति की राह
दिखलाता हूं तुझको
पूजा के कोई आडम्बर
नहीं चाहिए मुझको

पूर्ण भाव से नत हो कर के
करो एक ही बार
ऐसा श्रद्धामय वंदन मैं
कर लेता स्वीकार

जय साईं राम




http://www.shirdi-sai-baba.com/sai/कविताये/कल-रात-मेरे-सपने-मे-t274.0.html
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Ramesh Ramnani on January 14, 2008, 09:48:57 PM
जय सांई राम।।।

अपनी सुरेखा बहन के बाबा के प्रति अगाद प्रेम को देख मेरे पास हमेशा की तरह 'वाह' के अलावा अन्य कोई शब्द नही हैं।

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई


ॐ सांई राम।।।

Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: tana on January 15, 2008, 12:43:51 AM
ॐ साईं राम~~~

सुरेखा दीदी,
आप के बाबा के प्रति प्यार की कोई मिसाल नहीं,
आप बेमिसाल है आप की कोई मिसाल नहीं~~~

जय साईं राम~~~
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: abhinav on January 15, 2008, 11:08:57 AM
ओम साईं राम

कल रात मेरे सपने मे
फिर से बाबा आए
हाथ जोडकर खडी रही मैं
जडवत शीश नवाए

बाबा बोले प्रश्न पूछ ले
कर ना तू संकोच
जो भी तेरे मन में है
सब कह दे यूं ना सोच

श्री चरणों मे नत होकर मैं
बोली मेरे स्वामी
कुछ शंकाए मन में हैं
सुलझाओ अंतरयामी

कैसे करूं तुम्हारी पूजा
साईं ये बतलादो
विधि विधान जैसे भी हों
भक्तों को समझा दो

तुमको अर्पण करूं मैं बाबा
कैसे हों वो फूल
कोई ऐसा फूल नहीं है
जिसमें ना हों शूल

धूप दीप कहां से लाऊं
जिनमें सुगंध हो पूरी
बिना सुगंध के मेरी पूजा
रह ना जाए अधूरी

कैसे स्वर में मधुर आरती
गा के तुम्हें पुकारूं
कागा जैसी मेरी वाणी
कैसे इसे सुधारूं

नैवेद्य बनाऊं कैसा जो हो
मनभावन प्रभु तेरा
स्वीकारो तुम खुशी खुशी से
जो चढावा हो मेरा

इन सारे प्रश्नों को सुनकर 
बाबा जी मुस्काए
फिर पूजा कैसी हो इसके
सभी भेद समझाए

बोले मुझको नहीं चाहिए
पुष्पों की कोई माला
अपने मन को "सुमन" बना कर
अर्पित कर दो बाला

धूप दीप या बाती की
मुझे नही दरकार
श्रद्धा और सबूरी ही मैं
कर लेता स्वीकार

दे सको तो अपने सारे अवगुण
मेरे आगे डालो
सेवा और त्याग का मार्ग
जीवन में अपनालो

वाणी कर लो ऐसी कि तुम
जब भी मुख को खोलो
हर प्राणी से मधुर स्वरों में
मीठी बातें बोलो

कभी किसी का दिल ना तोडो
कभी ना करो विवाद
तेरे कारण किसी जीव को
कभी ना होवे विषाद

सीधी सच्ची भक्ति की राह
दिखलाता हूं तुझको
पूजा के कोई आडम्बर
नहीं चाहिए मुझको

पूर्ण भाव से नत हो कर के
करो एक ही बार
ऐसा श्रद्धामय वंदन मैं
कर लेता स्वीकार

जय साईं राम




thank you saisewika ji,

your post has solved one of my confusion..............thanks.

om sai ram
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Ramesh Ramnani on January 16, 2008, 08:26:38 AM
जय सांई राम।।।

उससे प्यार तो कभी भी किया नहीं जा सकता। उससे प्यार तो अपने आप हो जाता है। दिन और रात... धरती और आसमान,  एक दूसरे के बिना सब अधूरे हैं। सन-सन करती हवाएं,  सुन्दर नजारे,  फूलों की खुशबू ... सभी में छिपा होता है उसका प्यार... कुछ तो प्यार में हारकर भी जीत जाते हैं,  तो कुछ जीतकर भी अपना प्यार हार जाते हैं। लेकिन उसके प्यार में ऐसा नशा है जिसमें जो डूबता है वो ही पार होता है। प्यार पर किसी का वश नहीं होता.... अगर आप भी प्यार महसूस करना चाहते हैं तो डूबिये उसके प्यार में ... दुनिया की सबसे बड़ी नेमत है ढाई आखर का प्यार... जब आप भी मेरे बाबा को चाहने लगेंगे तो उसके दूर होने पर भी आपको उसको अपने नजदीक होने का अहसास होने लगेगा,  हर चेहरे में आप उसका चेहरा ढूंढने की असफल कोशिश करने लगेंगे,  कोई पल ऐसा न गुजरेगा जब उसका नाम आपके होठों पर न रहे... यही तो होता है उसके प्यार में... सुन्दर, सुखद , निश्छल और पवित्र अहसास। पूरी दुनिया के सुख इस प्रेम में समाए हुए हैं। क्यों करेंगे ना उससे प्रेम?  आओ मेरे सांई आपका इन्तज़ार कर रहे है

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई


ॐ सांई राम।।।
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on January 16, 2008, 10:26:02 AM
ओम साईं राम

कल रात मेरे सपने मे
फिर से बाबा आए
हाथ जोडकर खडी रही मैं
जडवत शीश नवाए

बाबा बोले प्रश्न पूछ ले
कर ना तू संकोच
जो भी तेरे मन में है
सब कह दे यूं ना सोच

श्री चरणों मे नत होकर मैं
बोली मेरे स्वामी
कुछ शंकाए मन में हैं
सुलझाओ अंतरयामी

कैसे करूं तुम्हारी पूजा
साईं ये बतलादो
विधि विधान जैसे भी हों
भक्तों को समझा दो

तुमको अर्पण करूं मैं बाबा
कैसे हों वो फूल
कोई ऐसा फूल नहीं है
जिसमें ना हों शूल

धूप दीप कहां से लाऊं
जिनमें सुगंध हो पूरी
बिना सुगंध के मेरी पूजा
रह ना जाए अधूरी

कैसे स्वर में मधुर आरती
गा के तुम्हें पुकारूं
कागा जैसी मेरी वाणी
कैसे इसे सुधारूं

नैवेद्य बनाऊं कैसा जो हो
मनभावन प्रभु तेरा
स्वीकारो तुम खुशी खुशी से
जो चढावा हो मेरा

इन सारे प्रश्नों को सुनकर 
बाबा जी मुस्काए
फिर पूजा कैसी हो इसके
सभी भेद समझाए

बोले मुझको नहीं चाहिए
पुष्पों की कोई माला
अपने मन को "सुमन" बना कर
अर्पित कर दो बाला

धूप दीप या बाती की
मुझे नही दरकार
श्रद्धा और सबूरी ही मैं
कर लेता स्वीकार

दे सको तो अपने सारे अवगुण
मेरे आगे डालो
सेवा और त्याग का मार्ग
जीवन में अपनालो

वाणी कर लो ऐसी कि तुम
जब भी मुख को खोलो
हर प्राणी से मधुर स्वरों में
मीठी बातें बोलो

कभी किसी का दिल ना तोडो
कभी ना करो विवाद
तेरे कारण किसी जीव को
कभी ना होवे विषाद

सीधी सच्ची भक्ति की राह
दिखलाता हूं तुझको
पूजा के कोई आडम्बर
नहीं चाहिए मुझको

पूर्ण भाव से नत हो कर के
करो एक ही बार
ऐसा श्रद्धामय वंदन मैं
कर लेता स्वीकार

जय साईं राम




thank you saisewika ji,

your post has solved one of my confusion..............thanks.

om sai ram



ओम साईं राम

अगर इस दुनिया में कोई
किसी की उलझन को सुलझाता है
तो सच जानिये अभिनव भाई
मेरा साईं ही सुलझाता है

वो बात और है कि हर बार
वो खुद सामने नहीं आता है
किसी भी शख्स को अपना जरिया बनाता है
उसका हाथ पकडता है और मनचाहा लिखवाता है

ऐसे वो अपने प्यारे भक्तों की
गुत्थियों को सुलझाता है
क्योंकि वो ही परम दयालु है
करुणा सागर है, दीनों का दाता है

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on January 16, 2008, 11:17:14 AM
जय सांई राम।।।

उससे प्यार तो कभी भी किया नहीं जा सकता। उससे प्यार तो अपने आप हो जाता है। दिन और रात... धरती और आसमान,  एक दूसरे के बिना सब अधूरे हैं। सन-सन करती हवाएं,  सुन्दर नजारे,  फूलों की खुशबू ... सभी में छिपा होता है उसका प्यार... कुछ तो प्यार में हारकर भी जीत जाते हैं,  तो कुछ जीतकर भी अपना प्यार हार जाते हैं। लेकिन उसके प्यार में ऐसा नशा है जिसमें जो डूबता है वो ही पार होता है। प्यार पर किसी का वश नहीं होता.... अगर आप भी प्यार महसूस करना चाहते हैं तो डूबिये उसके प्यार में ... दुनिया की सबसे बड़ी नेमत है ढाई आखर का प्यार... जब आप भी मेरे बाबा को चाहने लगेंगे तो उसके दूर होने पर भी आपको उसको अपने नजदीक होने का अहसास होने लगेगा,  हर चेहरे में आप उसका चेहरा ढूंढने की असफल कोशिश करने लगेंगे,  कोई पल ऐसा न गुजरेगा जब उसका नाम आपके होठों पर न रहे... यही तो होता है उसके प्यार में... सुन्दर, सुखद , निश्छल और पवित्र अहसास। पूरी दुनिया के सुख इस प्रेम में समाए हुए हैं। क्यों करेंगे ना उससे प्रेम?  आओ मेरे सांई आपका इन्तज़ार कर रहे है

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई


ॐ सांई राम।।।


ओम साईं राम

रमेश भाई जी

बहुत ही सुंदर लिखा है आपने इतना सुंदर कि खुद को रोक नहीं पा रही हूं और आपके इन्ही विचारों को कविता में कहने की हिमाकत कर रही हूं ..  आशा करती हूं कि आप मुझे इस गुस्ताखी के लिए माफ करेंगे

उससे प्यार किया नहीं जाता
वो तो खुद ब खुद हो जाता है
इस बिरहन और मालिक का
ऐसा ही नाता है

जैसे दिन और रात
इक दूजे बिन अधूरे हैं
जैसे धरती और अम्बर
परस्पर अधूरे हैं

सनसनाती हवाएं हैं
उसके प्यार से सरोबार
सुंदर नजारे, फूलों की खुशबू में
छिपा होता है उसका प्यार

कुछ तो प्यार मे
हारकर भी जीत जाते हैं
कुछ जीत कर भी खुद को
हारा हुआ पाते हैं

उसके प्यार का नशा
जिसपर सवार होता है
वो उसमें डूब जाता है
फिर भी पार होता है

अगर तुम भी चाहते हो
उसी प्यार का एहसास
तो ढाई आखर प्रेम की
जगाओ खुद में प्यास

जब तुम बाबा को
दिल से चाहोगे
तो दूर होने पर भी
उसे पास ही पाओगे

हर चेहरे में उसे ढूंढना
तुम्हारा काम होगा
तुम्हारे होठों पर
बस उसका नाम होगा

एक सुन्दर,सुखद,निश्चल
और पवित्र एह्सास
हमेशा रहेगा
इस दिल के पास

पूरी कायनात की खुशियां
इस प्रेम में समाई
उससे प्रीत लगाओ
इंतजार में हैं साईं

जय साईं राम


http://www.shirdi-sai-baba.com/sai/कविताये/उससे-प्यार-किया-नहीं-जाता-t286.0.html (http://www.shirdi-sai-baba.com/sai/कविताये/उससे-प्यार-किया-नहीं-जाता-t286.0.html)
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: tana on January 16, 2008, 09:38:17 PM
ॐ साईं राम~~~

रमेश भाई और सुरेखा दीदी,
सांईराम~

हाए मेरे बाबा~~मज़ा आ गया सुबह सुबह~~~

रमेश भाई के शब्दों के फूलों को सुरेखा दीदी ने माला में पिरो दिया।
और अगर ये गुस्ताखी है तो दीदी ये गुस्ताखी आप को माफ है।आप की इस गुस्ताखी की सज़ा भुगतने के लिए हम तैयार है।वो सज़ा हमें मंज़ूर है।

प्रीत लगी मोहे साईं की , मुझे शरण में लेलों साईं~~~

जय साईं राम~~~
   
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Ramesh Ramnani on January 17, 2008, 04:16:13 AM
जय सांई राम़।।।

खुशामदीद ये तो तुम्हारी ज़रानवाज़ी....मेरी खुशनसीबी कि तुम जैसी बहन मेरे टूटे फूटे शब्दों को अपने खूबसूरत अंदाज़ में पिरोये और पेश करे अपने बाबा के चरणों में एक नायाब कविता के रूप में....इससे बढ़कर मान और क्या होगा एक भाई का.....आप जैसी गुरू बहनें ही दिला सकतीं हैं अपने गुरू भाईयों को भाई होने का अहसास.....वाह! सुरेखा वाह!  तुम सच में ग्रेट हो....बाबा तुम्हारी हर मुराद बिना तुम्हारी इज़ाज़त के पूर्ण करें।

मकसदों की आग तेज हो
मनोबल की हवाएँ हो
तो वो आग बुझती नहीं है
मंजिल पा कर ही दम लेती है...
आँधियाँ तो नन्हें दीपक से हार जाती हैं

सच है,
क्षमताओं को बढाने के लिए
आँधी तूफ़ान का होना ज़रूरी होता है...
प्रतिभाएं तभी स्वरूप लेती हैं
जब वक़्त की ललकार होती है....

जो ज़मीन बंज़र दिखाई देती हैं
उससे उदासीन मत हो....
ज़रा नमी तो दो
फिर देखो वह क्या देती है
हाथ,  दिल,  मस्तिष्क,  दृष्टि लिए
बाबा तुम्हारे संग हैं
सपनो की बारीकियां देखो
फिर हकीकत बनाओ....
तुम्हारे ऊपर है!

हाथ को खाली देखते हो
या सामर्थ्यापूर्ण!
मन अशांत हो
तो घबराओ मत
याद रखो,
समुद्र मंथन के बाद ही
अमृत निकलता है....

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

ॐ सांई राम।।।

http://www.shirdi-sai-baba.com/sai/कविताये/मकसदों-की-आग-तेज-हो-t287.0.html (http://www.shirdi-sai-baba.com/sai/कविताये/मकसदों-की-आग-तेज-हो-t287.0.html)
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on January 17, 2008, 11:31:32 AM
ओम साईं राम

आज द्वारकामाई में आकर
मेरी आंखे भर आई
इतनी प्यारी दुआंओ के लिए शुक्रिया
अनु बहन रमेश भाई

शुक्रिया है साईंनाथ का
जिन्होंने ये मंदिर बनाया
भक्ति के फूलों को चुनकर
इसमें आन सजाया

बाबा ने प्यारे भक्तों की
एक जमात बनाई
देख देख उनको मुस्काते
साईं सर्व सहाई

जब जब भक्त यहां पर आकर
याद तुम्हें करते हैं
आनंदित हो सारी खुशियां
झोली में भरते हैं

जिसकी जो भी व्यथा हो साईं
यहां आकर कहता है
निर्मल भक्ति का पावन झरना
यहीं कहीं बहता है

कितने ही भक्तों की झोली
तुमने यहां भरी है
कितनों के मन की मुरादें
तुमने पूर्ण करी हैं

मुझको अब ये प्यारा मंदिर
शिरडी सा लगता है
इसके इक इक भक्त हृदय में
साईं नाथ बसता है

जय साईं राम


http://www.shirdi-sai-baba.com/sai/कविताये/आज-द्वारकामाई-में-आकर-t309.0.html (http://www.shirdi-sai-baba.com/sai/कविताये/आज-द्वारकामाई-में-आकर-t309.0.html)
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: tana on January 17, 2008, 10:16:38 PM
ॐ साईं राम~~~

आज द्वारकामाई में जब सुरेखा दीदी आई,
आते ही दुवाएँ पाकर आँखे उनकी भर आई,
हमारी दुवाओं मे तो बाबा का प्यार बसा है,
इतना प्यारा सुरेखा नाम का फूल हमारे लिए साईं ने खुद चुना है~~
       
मेरे सर्व सहाई की इस मुस्कान के सदके,
इस सुंदर पावन धाम के सदके,
आकारण कृपा करने वाले नाथ के सदके~~

यह दर तेरा बरकतों का भंडार है,
खाली झोली भरता यहा हर कोई बार बार है,
सब के मन की मुरादों को पूर्ण साईं करता आप है~~

ऐसा नज़ारा यही होता,
एक दूसरे के लिए मागें मिल कर सब दुआ,
निर्मल भक्ति के झरने में हर कोई गोते खाता,
गोते खाते-खाते अपनी व्यथा वो भूल जाता~~

हमकों अब ये प्यारा मंदिर शिरडी जैसा लगता,
इस द्वारकामाई में रोज़ एक फूल खिलता,
द्वारकामाई के इक इक भक्त हृदय में साईं नाथ खुद बसता~~

जय सांई राम~~~


http://www.shirdi-sai-baba.com/sai/कविताये/आज-द्वारकामाई-में-जब-सुरेखा-दीदी-आई-t310.0.html (http://www.shirdi-sai-baba.com/sai/कविताये/आज-द्वारकामाई-में-जब-सुरेखा-दीदी-आई-t310.0.html)
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Ramesh Ramnani on January 18, 2008, 08:35:32 AM
जय सांई राम़।।।

बाबा से दोस्ती का एक पवित्र रिश्ता है
इस में न कोई छल-कपट,  न निंदा है
मुझे बाबा की दोस्ती पर है गर्व
दुनिया को यही बना सकती है स्वर्ग

बाबा की दोस्ती में नहीं कुछ ज्यादा न कम,
आईये खुलकर बांटे हम,  खुशियाँ और ग़म ,
बाबा जैसे दोस्तों के संग हम होते हैं हम
साथ रहेंगे वो जब तक दम में है दम

बाबा जैसे दोस्तों की जीवन मैं एहमियत होती है वो 
घोर अंधेरे मैं जो होती है लौ की
सब के दिल मैं होता है एक कोना
बाबा जैसे दोस्तों बगैर जो रह जाए सूना

बाबा की दोस्ती मैं नही होती कोई दीवार
न उम्र न मज़हब की दरार
दिल यही चाहता है बार-बार
हर जनम मैं रहे संग बनके दोस्त जैसे मेरे बाबा मेरे यार...

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

ॐ सांई राम।।।

http://www.shirdi-sai-baba.com/sai/कविताये/बाबा-से-दोस्ती-का-एक-पवित्र-रिश्ता-है-t311.0.html (http://www.shirdi-sai-baba.com/sai/कविताये/बाबा-से-दोस्ती-का-एक-पवित्र-रिश्ता-है-t311.0.html)
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on January 18, 2008, 03:04:28 PM
ओम साईं राम

साईं मेरे चंचल मन को
पावन तीरथ कर दो
गंगा जी सम निरमल होवे
स्वामी ऐसा वर दो

इस मन की गंगा के तट पर
मंदिर हो एक न्यारा
उसके अंदर आन विराजे
मेरा साईं प्यारा

भक्ति पथ पर बहता जाए
मन गंगा का पानी
बाधाओं से थमे रूके ना
ऐसी होवे रवानी

जीवन के मैदानों में यूं
बहते बहते दाता
कभी थकूं या रुकूं नहीं मैं
ध्याते तुझे विधाता

पर्वत जैसा दुख हो कोई
या उपवन सा सुख हो
मन मेरा ना विचलित होवे
ना ही तुझसे विमुख हो

भक्तों की सत्संगति को मैं
पुलकित हो जाऊं पाकर
ज्यों नदिया की धारा में
धाराएं मिलती आकर

अपने मन की गंगा में मै
खुद ही डूब नहाऊं
ऐसे निर्मल पावन होके
साईं तुझको पाऊं

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: abhinav on January 19, 2008, 10:50:30 AM
saisewika ji,

aapke man-mandir me to baba ki ganga already beh chuki hai............aur aap to pehle hi se baba ke naam roopi ganga jal me sanaan kar rahi hai. baba ke prati aisa prem.............aisa samarpan..............dil se aapke liye naman nikalta hai.

bas baba ki kripa aap par yuhi barasti rahe............aur aapki kripa poem ban kar hum sab par barasti rahe.

om sai ram.
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: tana on January 23, 2008, 05:23:09 AM
ॐ साँई राम~~~

अब और मुझसे सहा न जाए
इक पल भी दूर रहा न जाए
अब मुझे कुछ भी न भाए
सांस लेना भी भारी लगे
हर पल आप की याद सताएं
आप ने क्या कर दिया
मेरा कैसा हाल किया
अब तो आँसू भी नहीं आते
जब आते है तो रूक नहीं पाते
आप की छवि आँखों में रहती
दिल को मेरे कचोटती रहती
बाहें फैलाए मुझे बुलाती
पर मैं तो आ ही न पाते
फिर उस पल मेरा दिल घबराए
जी चाहे अभी उङ जाए
पंछी बिन पर जैसे फङफङाए
इसका वही हाल हो जाए
ये आप तक आ न पाए
बस यहीं पङा मायूस हो जाए
अब और सही नहीं जाती ये सजाएं
अब तो आप कृपा बरसाएं
मुझको चरणों में अब बिठाएं~~~

जय साँई राम~~~
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Ramesh Ramnani on January 23, 2008, 11:06:32 PM
जय सांई राम।।।

यूँ तो गुज़र रहा है हर एक पल खुशी के साथ
फिर भी कोई कमी सी है ज़िन्दगी के साथ,
रिश्ते, वफा, दोस्ती सब कुछ तो है पास,
क्या बात है पता नही दिल क्यों है उदास,
हर लमहा हंसी, नई दिलकशी के साथ
फिर भी कोई कमी सी है क्यों ज़िन्दगी के साथ
चाहत भी है सुकून भी है दिलबरी भी है,
आंखों मे ख्वाब भी है लबों पर हंसी भी है
दिल को नही कोई शिकायत किसी के साथ,
फिर भी कोई कमी सी है क्यों ज़िन्दगी के साथ
सोचा था जैसा वैसा ही जीवन तो है मगर,
अब और तलाश में है क्यों बेचैन सी नज़र,
कुदरत भी मेहरबान है दरिया दिल के साथ
फिर भी कोई कमी सी है क्यों ज़िन्दगी के साथ
यूं तो गुज़र रहा है हर इक पल खुशी के साथ
फिर भी कोई कमी सी है क्यों ज़िन्दगी के साथ।

है किसी के पास इन सब बातों का जवाब?  मैं तो मानता हूँ कि मेरे बाबा के अलावा किसी के पास ना होगा इन बातों का जवाब। चलो आओ फिर भी खोजें अपना अपना जवाब।

आप जानते है यही है व्यथा मेरे बाबा की। सब कुछ होने के बावजूद भी क्यों करते है हम सब बाबा को तंग इतना?

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

ॐ सांई राम।।।
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on February 15, 2008, 11:03:32 AM
ओम साईं राम

साईं तुम बिन जीवन जीना
जीते जी हलाहल पीना

बिन पंछी ज्यों पिंजरा खाली
व्यंजन बिन ज्यों रीती थाली

ज्यों कुमकुम बिन लगे सुहागन
तुलसी बिन ज्यों लगता आंगन

जल बिन ज्यों हो सूखा झरना
बिन मतलब ज्यों बातें करना

ज्यों चंदा बिन रहे चकोर
बिन पंखों ज्यों नाचे मोर

बिन खुशबू ज्यों कोई फूल
शिव मूरत बिन ज्यों त्रिशूल

कमल रहित ज्यों हो तालाब
लवण बिना ज्यों होवे साग

बिन आभूषण ज्यों हो नार
रंग बिना होली त्योहार

बिन जल के ज्यों गागर भरना
बिन भावों के पूजा करना

बिना देव के ज्यों देवालय
बिन शिक्षक के ज्यों विद्यालय

बिन राजा के ज्यों हो राज
सुरों बिना ज्यों होवे साज

ऐसे साईं बिना तुम्हारे
जीवन अर्थहीन है प्यारे

बेमतलब है,दिशा विहीन है
तुम बिन जीवन प्राण हीन है

साईं समझो मन की पीर
विनती करते भक्त अधीर

हमसे तुम ना रहना दूर
जीवन में आ बसो हुजूर

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on February 18, 2008, 10:43:25 AM
ओम साईं राम


साईं मां

तुमसे लगन लगा कर जीना
अमृत की प्याली को पीना

भिक्षुक का ज्यों भाग हो जागा
सोने पर ज्यों सजे सुहागा

चंदा दिन दिन ज्यों है बढता
सूरज नित नित ज्यों है चढता

मस्त धूप का टुकडा कोई
सर्दी में ज्यों गरम सी लोई

नदिया की अल्हड सी धारा
नाविक को ज्यों मिले किनारा

ज्यों मां के आंचल मे छुपना
सुंदरतम वादी में रुकना

सागर सी गहराई पाना
पर्वत के ऊपर चढ जाना

जैसे मन का मीत मिला हो
जीवन से ना कोई गिला हो

थके पथिक को मिले बिछौना
मल को ज्यों गंगा में धोना

ऐसे साईं संग तुम्हारे
धन्य धन्य हुए भाग हमारे

तुम संग जीवन है उजियारा
अति सुखद लगता जग सारा

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on February 23, 2008, 11:17:55 AM
ओम साईं राम

कल रात जब मायूस सी
मैं तन्हा सी बैठी थी
साईं से खफा सी थी
क्रोध से एंठी थी

तब यकायक साईं
सामने आ खडे हुए
मुझे देखा यूं ही
निश्चल से पडे हुए

बोले मुझसे खफा हो
कि मैं तुम्हारी सुनता नहीं
पर कभी सोचा है
तुममें ही कमी होगी कहीं

बाबा ने कहा
तुम मेरे पास आओ
मैं तुम्हें अपनाऊंगा
चाहे सारी दुनिया ठुकरा दे
मैं तो गले लगाऊंगा

तुम्हारी सारी पीडाएं
मैं जल्दी ही दूर भगा दूंगा
गमों के हर साए का
नामों निशां मिटा दूंगा

बस तुम्हें इतना ही करना है
अपने मन मंदिर को
साईं नाम से भरना है

पर जान लो
यह इतना आसान नहीं
केवल नाम लेना ही
मेरे भक्तों की पहचान नहीं

सबसे पहले तुम्हें
अपने विकारों को दूर हटाना होगा
क्रोध, लोभ और मोह को
हृदय से भुलाना होगा

और हां सबसे पहले
तुम इतना जान लो
ईर्ष्या हर विकार की जननी है
उसे पहचान लो

जब तक तुम्हारे मन में
किसी भी प्राणी के लिये
लेश मात्र भी विद्वेष है
सच जानो वो तुम्हारी अपनी
आत्मा के लिए क्लेश है

अगर तुम अन्जाने में भी
किसी को नीचा दिखाना चाहते हो
फिर शिकायत ना करना
कि साईं का रहम नहीं पाते हो

अपने हृदय में झांको
कहीं तृण मात्र भी
उसमें कहीं विकार तो नहीं
किसी एक के लिए द्वेष
दूसरे के लिए प्यार तो नहीं

अगर ऐसा है तो पहले
अपने हृदय को निर्मल कर लो
पश्चाताप के आंसुओं को
आंखों में भर लो

जितना खुद से करते हो
दूसरे से भी उतना ही प्यार करो
जैसा खुद के लिए चाहते हो
सबसे वैसा ही व्यवहार करो

और यह सब दिखावे के लिए नहीं
सच में करना होगा
फिर हृदय में
साईं नाम को भरना होगा

तब देखना सोचने से पहले
तुम्हारी सब इच्छाएं पूरी होंगी
तुम्हारे मन मंदिर में
श्रधा और सबूरी होगी

तब मैं ज़िंदगी के हर कदम पर
रहूंगा तुम्हारे साथ
और तुम्हारे मस्तक पर होगा
मेरा ही वरद हाथ

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: tana on February 23, 2008, 07:27:35 PM
ॐ साईं राम~~~

सुरेखा दी.........
आप लाजवाब है आप की कोई मिसाल नहीं~~~~~

बाबा पर छोड़ कर हे तो देख,
बाबा न सुने तो कहना~~
साईं को मन से बुला कर के तो देख,
दौड़े चले न आये तो कहना~~
साईं को हिए से कगा कर हे तो देख,
साईं हिए से न लगाए तो कहना~~
साईं को अपनी बात बता कर के तो देख,
वो पूरी न करे तो कहना~~
साईं नाम की मन में अलख जगा कर के तो देख,
वो मन में न बस जाए तो कहना~~
साईं की तरफ एक कदम बढ़ा कर तो देख,
वो दस कदम न बढ़ाए तो कहना~~
साईं के चरणों में नत-मस्तक हो कर के देख,
वो सिर पर हाथ न रखें तो कहना~~
साईं के आगे झोली फैला कर के देख,
वो झोली खुशियों से न भर दे तो कहना~~
मन साफ,पवित्र ,ईर्ष्या, द्वेश मिटा कर के तो देख,
तेरा बोला सच न हो जाए तो कहना~~

जय साईं राम~~~   

       
 
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Ramesh Ramnani on February 24, 2008, 07:14:15 AM
जय सांई राम।।।

सुरेखा बहन की बाबा से
खफाऐ दर्द की
दास्तां सुन मुझे भी लगा कि
कभी किसी रोज़ बस यूंही 
चलते चलते अपनी भी दास्तान
बयान करूंगा!
आज सिर्फ बस यह कि
व्यर्थ कोई बात नहीं होती,
हर काल के पीछे
विकास चलता है.....
मृत्यु है तो जन्म है,
हार है तो जीत है,
आंसू है तो मुस्कान
भी दूर नही!
कैसा भय और क्यूँ?
अंगारों पर चलने का हौसला मिटने मत दो-
अंगारों पे पांव रखोगे तो पांव जलेंगे.....
पर ज़िन्दगी यदि दूसरी छोर पर है,
तो हिम्मत तुम्हे करना होगा,
अंगारों पे चलने का....
बेशक!
पांव जलेंगे,
शायद नाकाम भी हो जाएं पर,
ज़िन्दगी ने तुम्हे इस तरह बुलाया है तो
निश्चित ही नए आयाम भी देगी!!!
और अपने बाबा सांई
की हथेली होगी
अंगारों से बचाने के लिए....

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई


ॐ सांई राम।।। 
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on February 25, 2008, 11:43:49 AM
ओम साईं राम

साईं अगर आंसू दे
तो सिर माथे पर हमारे
चाहे छोडे मझधार में
चाहे लगाए किनारे

पर साईं तो मां का आंचल है
वृक्ष की ठंडी छाया है
जीवन का आधार है
हमदर्द है, सरमाया है

वो हमें दुख नहीं
केवल खुशियां ही देता है
और हमारी सारी चिंताओं को
हमसे वो ले लेता है

फिर भी ये कहकर कि हम मानव हैं
हम गलतियों का हक पाते हैं
और हर कदम पर हर रोज़
गलतियां किए जाते हैं

फिर शिकायत करते हैं साईं से
कि वो हमारी सुनता नहीं
हम तो उसे बुलाते हैं
पर उसे हमारी चिंता नहीं

पता नहीं कितनी बार
हम यूं ही शिकायत करते हैं
और उस पर साईं से
प्रेम का दम भरते हैं

पर साईं तो फिर भी साईं हैं
वो तो बक्शन हार है
भक्तों की हज़ार गलतियां भी
मेरे बाबा को स्वीकार हैं

इसी लिए तो मेरा साईं
मुझको इतना प्यारा है
केवल उसका नाम ही
जीवन का सहारा है

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: tana on February 25, 2008, 09:51:08 PM
ॐ साईं राम~~~

जैसे बच्चा अपने टूटे खिलौने लाता है,
आँखो में आँसू लिए,माता-पिता के पास!
वैसे ही हम अपने टूटे सपने लाते है बाबा के पास,
क्योंकि साईं, मेरे करूणामयी साईं पूरी करते है सब की आस!!

फिर शांति से उन्हें काम
करने देने की बजाय
हम बार-बार उन्हें टोकते है,
अपने ढ़ग से उन्हें मदद की गुहार लगाते है,
ऐसा होता तो अच्छा रहता,
ये हो जाता तो और अच्छा हो जाता,
वो नहीं किया....ऐसा कर दो न बाबा.....

जब फिर पूरे न होते सपने,
फिर यूँ लगता अब बाबा न रहे अपने,
फिर लगाने लगते शिकायतों की फेरी,
दूसरों की व्यथा सुनते हो
और मेरी बारी क्यों इतनी देरी??

फिर मेरे साईं मेरे बाबा बोले कुछ यूँ रो कर--
"ओ मेरे प्यारे बच्चों ,मैं क्या करता?
मैं क्या कर सकता था?
तुमने कभी पूर्ण विश्वास किया ही नहीं,
तुमने कभी पूरी तरह छोङा ही नहीं मुझ पर ".....


जय साईं राम~~~
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on March 04, 2008, 12:05:47 PM
ओम साईं राम

ख़्वाहिशें कुकुरमुत्तों की तरह
बढती जाती हैं
कभी एक पूरी हुई भी तो
दूसरी नहीं हो पाती है

तमाम उम्र चलता है
चाहतों का सिलसिला
कभी साईं का शुकराना
तो कभी उससे गिला

जैसे सारी ज़िंदगी सिमटी हो
चाहतों के आस पास
कुछ ना कुछ पाने की
बुझती नहीं प्यास

कभी सोचती हूं साईं
कि ज़िंदगी ऐसी क्यूं है
आशाओं का, तम्मनाओं का
रचा क्यूं चक्रव्यूह है

बस अब बहुत हुआ
नहीं चाहिए अब कुछ और
बढती हुई मांगों का
बस बंद हो ये शोर

पर क्या कोई चाहत ना हो
ये भी मेरी चाहत तो नही?
एक और ही मांग की
दस्तक या आहट तो नहीं

साईं इस नादान मन का
आप ही कुछ कीजिए
बंद हो ये सिलसिला
कोई ऐसा ही वर दीजिए

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: tana on March 04, 2008, 06:27:23 PM
ॐ सांई राम~~~

तम्मना, इच्छा, चाह, आरज़ू, ख्वाईश या जुस्तजू
न जाने कितने नाम धराए तू
क्या तेरा कोई अंत नहीं,जितने नाम उससे भी बङी तू,
क्या कभी पूरी होती तू,
तेरा एक कहां पूरा हो,दूसरी तैयार करती तूं,
पहले से आखिर सांस तक,हर पल साथ है रहती तूं,
कोई न जीत पाया तुझे,तेरे आगे सब झुके,
इंसा तो क्या भगवान के बस में भी नहीं तूं!!!

साईं इस नादान मन का आप ही कुछ कीजिए
बंद हो ये सिलसिला कोई ऐसा ही वर दीजिए!!!


जय सांई राम~~~

Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on March 12, 2008, 11:49:09 AM
ओम साईं राम

आंख खुली जब आज सवेरे
मन में थे कई प्रश्न घनेरे

तुमको साईं कैसे पाऊं
ढूंढूं कहां कहां मैं जाऊं

यही सोच मैं घर से निकली
कानों में आ बोली तितली

वो देखो वो ठीक सामने
उस वृद्ध को शीघ्र थामने

जिस युवक ने बांह बढाई
उसमें ही है तेरा साईं

और वो देखो दूर वहां पर
मंदिर दिखता एक जहां पर

भूखों को जो रोटी देती
ढेर दुआएं उनकी लेती

उस बाला में साईं को मान
कर ले उसकी तू पहचान

दुखिया, पंगु और असहाय
इनकी सेवा में सुख पाय

उन सब में है साईं का वास
क्यूं ना तुझको है आभास

व्यर्थ भटकती यहां वहां
साईंमय है सकल जहां

केवल मन की आंखे खोल
मुख से साईं नाम ही बोल

मिट जायगा सब अंधियारा
नित देखेगी साईं प्यारा

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: nimmi_sai on March 12, 2008, 12:11:40 PM
sai sevika ji ...
very nice &very true ...he is everywhere ..sirf man ki aankhey chaiye
bahut..bahut  sunder likha hai aapney .....baba says what we make happen for others will happen for us..
....You are a very kind and loving child of our sai  and I pray that you receive many blessings...amennnn

pm sai shri sai jai jai sai
Nimmi
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on March 13, 2008, 08:28:24 AM
OM SAI RAM

Nimmi_SAI ji

Thanks for your blessings. It is like getting SAI PRASAD.
May SAI bless you and each and every member of this devalaya .

JAI SAI RAM
Saisewika
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on March 15, 2008, 10:59:38 AM
ऒम साईं राम

आते हैं साईं
बुलाकर तो देखो
दिल में साईंनाथ को
बैठा कर तो देखो

भवसागर से पार
लगाएंगे वो ही
खुद को उनकी याद में
डुबा कर तो देखो

पाओगे निसदिन
दरस उनका प्यारा
मन में उनका मंदिर
सजा कर तो देखो

भूलोगे सारे
गमों को दुखों को
जग को उनकी खातिर
भुला कर तो देखो

सब्र और सबूरी
आ जाएंगे खुद ही
श्रद्धा का दीपक
जला कर तो देखो

पाओगे जो भी है
मन में तुम्हारे
शिरडी का फेरा
लगा कर तो देखो

दामन में होंगी
ज़माने की खुशियां
साईंराम से लौ
लगा कर तो देखो

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: tana on March 16, 2008, 06:56:01 AM
ॐ सांई राम~~~

वो आए रूके कुछ पल , झाका और चल दिए,
मैं दौङी पीछे पकङा हाथ,
और हैरानी से पूछा कहां चल दिए
वो बोले बङे दुखी मन से ...अरे पगली
तुने की थी पुकार तो में दौङा चला आया,
पर लगा जब अंदर आने,
तो देखा मैने कि भीङ है लगी हुई
सभी ने है डेरा जमाया,
मैं बैठू कहां ये बता मुझको
क्या है तेरे मन में मेरा ठिकाना
तू जब पुकारें मुझे मैं दौङा चला आता हूँ
पर तू तो ये भी ना जाने कि है मुझे कहां बिठाना
इस भीङ कि कुछ कम कर
कर साफ मेरी जगह को
फिर बुला मुझे फिर देख कभी ना होगा वापस जाना
मैं हो गई शर्मिदां इस सच को जान कर
कि मैने की पुकार वो आ भी गए
पर कभी नहीं सोचा कि है उन्हे कहाँ बिठाना!!!!

जय सांई राम~~~

Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on March 17, 2008, 10:48:47 AM
ओम साईं राम

तेरे चरणों में अपना ठिकाना चाहते हैं

तुझे दिल में अपने बैठाना चाहते हैं

शर्मसार हैं अपने करमों पे खुद ही

किसी मुकाम पर खुद को पहुंचाना चाहते हैं

जब नाम ले साईं तेरा, अपनी बात भी निकले

काम कोई ऐसा कर जाना चाहते हैं

तुम आकर वापिस जा ना सको

अपने दिल को ही मन्दिर बनाना चाहते हैं

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Ramesh Ramnani on March 20, 2008, 04:03:44 AM
जय सांई राम।।।

बाबा की व्यथा के साथ-साथ ये इन्सान की व्यथा ही कहेंगे कि ज़माने बीत जाते हैं....

कभी नज़रें मिलाने में ज़माने बीत जाते है
कभी नज़रें चुराने में ज़माने बीत जाते हैं
किसी ने आंख भी खोली तो सोने की नगरी में
किसी को घर बनाने में ज़माने बीत जाते है
कभी काली स्याह रातें हमे पल पल की लगती है
कभी इक पल बिताने में ज़माने बीत जाते है
कभी खोला घर का दरवाज़ा खड़ी थी सामने मन्ज़िल
कभी मन्ज़िल को आने में ज़माने बीत जाते हैं
इक इक पल में टूट जाते है उम्र भर के वो रिश्ते
वो रिश्ते जो बनाने में ज़माने बीत जाते हैं।

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई


ॐ सांई राम।।।
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on March 20, 2008, 01:04:09 PM
ओम साईं राम

शिवरात्रि के अगले दिन
झील के किनारे टहलने गई
तो बाबा को पहले से ही वहां बैठा पाया
आंखे मली, चुटकी काटी
खुद को ही यकीं ना आया

करीब गई, ध्यान से देखा
हां मेरे प्यारे साईं ही थे
मेरे राम, मेरे देव
मेरे कृष्ण कन्हाई ही थे

दण्डवत प्रणाम किया
पर बाबा ने ना ध्यान दिया
फिर रूखे स्वर में बाबा बोले
वैसे तो तुम साईं नाम का दम भरती हो
पर जो मुझे रूचते नहीं
वो काम क्यूं करती हो?

हाथ जोडकर मैंने पूछा
मुझसे क्या कुछ भूल हो गई?
मेरी कैसी करनी आपकी
शिक्षा के प्रतिकूल हो गई?

बाबा बोले गलती करके भी
तुम्हें उसका अहसास नहीं
यकीन जानो अभी तुम्हें
साईं नाम का अभ्यास नहीं

कल तुम शिव पूजन के लिए
मन्दिर गई थीं
याद करो तुमने एक नहीं
गलतियां करी कई थीं

मन्दिर के बाहर एक भूखा बालक
मां का हाथ थामें रोता था
एक और मां के आंचल में
भूखा ही सोता था

तुम उन्हें देख कर भी
आगे बढ गई
दूध की थैली लिए
तुम मन्दिर की सीढियां चढ गई

शिवलिंग पर तुमने
पंचामृत और दूध चढाया
और सोचा अपने कर्मों के खाते में
एक और पुण्य बढाया

अगर तुम उन भूखे बच्चों को
दूध पिलाती
और शिवलिंग पर
भक्ती भाव का तिलक ही लगाती

तो भी भोले बाबा
उसे स्वीकार करते
तुम्हारे दिल में दया है
इसलिए तुम्हें प्यार करते

पर तुम निर्दयी ही नहीं
क्रूर भी थी
खुद को बडा भक्त समझने के
अहंकार में चूर ही थीं

इसीलिए तुम लाईन तोड
गलत तरीके से आगे बढी
एक वृद्धा को धक्का मारा
और उसके पैर पर चढी

दर्द से वो कराही
पर तुमने ना ध्यान दिया
कई भक्तों को पीछे छोडा
इस जीत पर भी अभिमान किया

तुम क्या सोचती हो
तुम्हारी पूजा स्वीकार होगी
पूजा का आडम्बर करके
तुम भवसागर से पार होगी

तुम्हे लगता है
भक्ती मर्ग पर चलना बहुत आसान है
नहीं, इस पर चलना
पतली सुतली पर चलने के समान है

पग पग पर
गड्डे हैं,खंदक है, खाई है
ज़रा सी भूल
और पतन की गहराई है

मुझ तक पहुंचने के लिए
बीच का कोई रास्ता नहीं
या तो तुम्हारा इस माया से
या मुझसे कोई वास्ता नहीं

इसलिए या तो तुम
मेरे नाम का दम मत भरो
या फिर पूरे मन से ही
मुझे याद करो

तुम्हे बार बार समझाने
तुम्हारे पास आता हूं
क्यूंकि अपना नाम लेने वालों को
मैं बहुत चाहता हूं

संभलो, जीवन को यूं ना
बेकार करो
दुखियों का दर्द समझो
प्राणीमात्र से प्यार करो

अगर तुम ये सीधा सच्चा
रास्ता अपनाओगी
नि: संदेह अपने बाबा को
एक दिन अपने सन्मुख पाओगी

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: tana on March 24, 2008, 11:06:22 PM
ॐ सांई राम~~~

सुरेखा दी...कोई शब्द ही नहीं है~~~

बस इतना ही कहूं गी~~~

ओ बंदे सोच समझ कर कदम उठा,
मंदिर जा ना मस्जिद जा,
पर किसी को यूँ ही न दुखा...
किसी का दुःख दर्द समझ,
किसी की मजबूरी को समझ,
उसका फायदा न उठा...
भले ही ऱब को मना या न मना,
पर दिल किसी का न दुखा...
इतना ही कर के देखो,
फिर देखो बाबा की कृपा और बाबा का प्यार~~~

जय सांई राम~~~
 
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Ramesh Ramnani on March 26, 2008, 07:30:03 AM
जय सांई राम।।।

वाह सुरेखा वाह। तुम्हारे शब्दों के सामने तो मेरे शब्द निशब्द मौन हो जाते है। तुम्हारा खूबसूरत अंदाज़े बयान पढ़कर तो मेरी लेखनी मानों थम सी जाती है।  बहन जवाब नही तुम्हारी बाबा भक्ति का।  ना जाने कितनी बार जब भी समय मिलता है तुम्हारे पिरोये मोतियो को सिर्फ बस पढ़ता रहता हूँ।  बाबा तुम्हारे द्वारा ना जाने कितनो के प्रश्नों का जवाब दे देते है। 

क्यों याद करते है तुझे ऐ बाबा जब वो अकेले होते है
क्यों वो याद तुझे करते है जब वो परेशानी में होते हैं।
कहने में तुझसे कभी वो शर्मिंदा नही होते है?
आख़िर क्या वजह है कि वो
तुझे केवल अपने ग़मों में ही याद करते हैं।

करते है तुझसे शिकायत ही क्यों,
जब अपने किए का ही फल वो पाते है।
आखिर क्या वजह है,  कि वो,  तुझे समझ नही पाते है।

यूं तो कहते है सभी कि तू उनका मालिक है,
फिर भी क्यों तेरी मर्ज़ी में दखल करते है,
फिर भी हमेशा सिर्फ अपने भले की
ही हमेशा उम्मीद क्यों करते हैं?

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई


ॐ सांई राम।।।
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on March 29, 2008, 11:10:38 AM
ओम साईं राम

रमेश भाई जी, और अनु

इस द्वारकामाई में आकर आप से और दूसरे भक्तों से भक्ती के मायने बस जान पाई हूं. पता नहीं कब सभी विकार दूर होंगे और अपने को सच्चा साईं भक्त कह पाऊंगी.

मैं इक अधम पतित प्राणी
तन मन भरा विकार
दयामयी हैं करूणा सागर
कर लेते स्वीकार

भली बुरी अब जैसी भी हूं
बाबा शरण हूं तेरी
भक्ती पथ पर मुझे लगाकर
बांह थामना मेरी

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Ramesh Ramnani on March 29, 2008, 10:45:21 PM
जय सांई राम।।।

मायूस मत होना ये एक गुनाह होता है
मिलता वही है जो किस्मत में लिखा होता है
हर चीज़ मिले हमे ये ज़रूरी तो नही
कुछ चीज़ो का ज़िक्र दूसरे जंहा में होता है
जो खुद को कोसते है वो शायद बेखबर है
कुछ पा लेने का इकख्तयार खुद पे भी होता है
हर एक को कसूरवार क्यों ठहराये हम
अपने सामने भी तो एक आईना होता है
हम अपनी ज़िन्दगी से क्यों हार जायें
गर डूबता है सूरज तो कल भी उजाला होता है
मायूस मत होना ये एक गुनाह होता है
मिलता वही है जो किस्मत में लिखा होता है

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई


ॐ सांई राम।।।
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: tana on March 30, 2008, 12:13:19 AM
ॐ सांई राम~~~

तेरे चाहने से कुछ नहीं होता
होगा वही जो किस्मत में लिखा होगा,
रो रो कर गिङगिङा कर देख ले
फिर भी होगा वही जो होना होगा,
तू कर समझौता और मुस्कुरा कर के देख
फिर दुखों का दर्द कुछ कम होगा,
खुशी-गम चाहे हो सुख-दुःख
सब उसी की इच्छा से होगा,
जीवन बिता पर ये याद रख
उसकी इच्छा में कभी तेरा बुरा ना होगा,
दुःख-सुख जो भी मिले तुझे
इसमे जरूर कुछ भला ही होगा~~~


जय सांई राम~~~
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on March 31, 2008, 08:36:05 AM
ओम साईं राम

मायूसी और खुशी
जुडवां बहने हैं
सदा साथ साथ चलती हैं
इसीलिए कभी हंसता है मानव
कभी दिल से आह निकलती है

पर इसका मतलब यह नहीं
कि हम ज़िंदगी से हारे हैं
क्योंकि साईं हमारे साथ हैं
ये जीवन उन्हीं के सहारे है

वैसे भी ये मायूसियां
जीवन से लडना सिखाती हैं
क्यूं कि हर खूबसूरत सुबह
रात के बाद ही आती है

इसलिए मायूसियां और उदासी
हमें मंज़ूर है
इनमें भी छुपी हुई
बाबा की रज़ा ज़रूर है

तभी ये मायूसियां
हमें बहुत भाती हैं
क्यूं कि हर मायूसी हमें
बाबा के और पास ले जाती है

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on April 01, 2008, 10:26:02 AM
ओम साईं राम

जो हंसते हैं साईं की याद में
जो रोते हैं साईं की याद में
जो जगते हैं साईं की याद में
जो सोते हैं साईं की याद में

जिनके लिए हर कौर
साईं का प्रसाद है
जिनके लिए जीवन का हर क्षण
साईं की याद है

साईं का नाम जिनके लब पर
मुस्कुराहट लाता है
वो आंख में समाए हैं
इसलिए हर आंसू बह जाता है

जिनके लिए आशा की पहली किरण
श्री साईं हैं
जिन्होंने आखरी उम्मीद
सिर्फ बाबा से लगाई है

जिन्होंने अपना तन मन
साईं पर वारा है
जिनके जीवन का आधार ही
साईं प्यारा है

जो जहां झुकते हैं
द्वारकामाई बन जाती है
जिनकी संगत ही
शिरडी की याद दिलाती है

उन सभी बाबा के बहुत प्यारों को
उन सभी भक्त जन न्यारों को
साईंसेविका का शत शत प्रणाम
ये चंद पंक्तियां उन्हीं भक्तों के नाम

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: tana on April 02, 2008, 02:00:06 AM
ॐ सांई राम~~~

हमारी इस द्वारकामाई में~~~

हम हंसते बाबा के नाम संग~
हम रोते बाबा के नाम संग~
हम जागते बाबा के नाम संग~
हम सोते बाबा के नाम संग~

सुख बांटते बाबा के नाम संग~
दुःख बांटते बाबा के नाम संग~
हर पल बाबा के नाम संग~
हर क्षण बाबा के नाम संग~

हर लब की मुस्कुराहट बाबा के नाम संग~
हर आँख के आँसू सूखे बाबा के नाम संग~

आशा की पहली किरण बाबा के नाम संग~
आखरी उम्मीद बाबा के नाम संग~
तन मन की चाह बाबा के नाम संग~
हर जीवन का आधार बाबा के नाम संग~

इस द्वारकामाई में हर पल रहते बाबा के नाम संग~
सब की मनोकामना पूरी होती बाबा के नाम संग~
सब मिल एक दूसरे के लिए प्रार्थना करते बाबा के नाम संग~
सब की मुरादे पूरी होती बाबा के नाम संग~

और ऐसी सुदंर चंद पंक्तियां लिखने वाली सुरेखा दीदी के प्यार भरे प्रणाम को शत शत प्रणाम बाबा के नाम संग~~~

जय सांई राम~~~
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Ramesh Ramnani on April 02, 2008, 07:40:29 AM
ओम साईं राम

जो हंसते हैं साईं की याद में
जो रोते हैं साईं की याद में.....

जो जहां झुकते हैं
द्वारकामाई बन जाती है
जिनकी संगत ही
शिरडी की याद दिलाती है

उन सभी बाबा के बहुत प्यारों को
उन सभी भक्त जन न्यारों को
साईंसेविका का शत शत प्रणाम
ये चंद पंक्तियां उन्हीं भक्तों के नाम.....

जय साईं राम




जय सांई राम।।।

सौ बार देखूं तस्वीर अपने यार बाबा की, फिर भी प्यास रहे बाकी
लगता है कुछ और ही है ये माजरा,
कही ये इश्क तो नही सुरेखा दीदी?

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई


ॐ सांई राम।।।
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on April 02, 2008, 10:33:32 AM
ओम साईं राम

साईं जब से प्रीत लगी तुझसे
मैं हुई जुदा खुद ही खुद से
सब कहते रहते हैं मुझसे
मेरे नैना लगते हैं खुश से

इसे कह लो इश्क या कह लो प्यार
मुझको कोई नहीं दरकार
अलमस्त बनी तुझसे जुड के
मुझे नहीं देखना अब मुड के

तेरे प्रेम में मैं दीवानी हुई
सारी दुनिया से अनजानी हुई
साईं चरणों की मैं धूल सही
उन्हें छू ही लूंगी मै उड के
नहीं रहना उनसे बिछुड के

जय साईं राम

Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on April 04, 2008, 01:55:15 PM
ओम साईं राम

जब मन मेरा अकुलाता है
मुझे ध्यान तुम्हारा आता है
तुम आओगे मुझे थामोंगे
कोई कानों मे कह जाता है

जब आशाएं सब छूटती हैं
जो बंधी उम्मीदें टूटती हैं
मैं याद तुम्हे कर लेती हूं
मन हर मुशकिल सह जाता है

जब सुख में साथी कई मिले
दुख आते ही सब छोड चले
मैं दर्द सभी पी जाती हूं 
बस ध्यान तेरा रह जाता है

मैं जब भी ठोकर खाती हूं
चलते चलते थक जाती हूं
किसी मोड पे तुम मिल जाओगे
विशवास मेरा गहराता है

जय साईं राम


Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: tana on April 05, 2008, 02:29:25 AM
ॐ सांई राम~~~

सुरेखा दीदी....ये ठोकरे बहुत कुछ सिखा देती है~~~बाबा के ओर करीब ला देती है~~~ इनका हर पल शुक्रिया~~~

मुझको राह दिखाने वाली ओ प्यारी ठोकरो~
मुझे सांई से मिलाने वाली ओ प्यारी ठोकरो~
सोई को जगाने वाली ओ प्यारी ठोकरो~
असलियत बताने वाले ओ प्यारी ठोकरो~
दुनिया का रूप दिखाने वाले ओ प्यारी ठोकरो~
मुझे पक्का करने वाली ओ प्यारी ठोकरो~
धन्यवाद तुम्हारा है ओ प्यारी ठोकरो~
तुम न होती तो मैं कैसे पाती ये राह,
मुझ अंधी की कौन पकङता बाँह,
सब से दूर करके तुमने,
मुझे मेरे सांई के पास किया,
ओ प्यारी ठोकरो तुम्हारा,
हर पल शुक्रिया~~~

जय सांई राम~~~
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on April 07, 2008, 11:03:15 AM
ओम साईं राम

शब्दों ने साधी है फिर आज चुप्पी
कविता भी कोने में बैठी है दुबकी
कोरे हैं पन्ने सूखी है स्याही
ख्यालों को भी मैने दे दी बिदाई
बस मै हूं और है साईं मेरा प्यारा
शब्दों को जब भी वो देगा सहारा
दिल में नई रचना अंगडाई लेगी
पन्नों पर स्याही फिर से उतरेगी
फिर नई कविता के आसार होंगे
शब्दों में फिर साईं साकार होंगे

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: nimmi_sai on April 07, 2008, 12:47:56 PM
saisevika ji,
You always write so beautifully! Just too beautiful for words! So very heartfelt and touching! Your awesome poetry always moves me and causes deep emotions!

....On behalf of each and every one of us, Thank you... for giving us something strengthening to feel :)
baba ki kripa app per hamesha aise hi bani rahey
best wishes to u always
Nimmi
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on April 08, 2008, 11:19:10 AM
OM SAI RAM
 
Thank you nimmi_sai ji. 

Your words of appreciation touched my heart. You are right, its all Baba's kripa prasad.

May Baba bless you always.

JAI SAI RAM
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on April 09, 2008, 11:39:54 AM
ओम साईं राम

आ जाओ अब मेरे साईं
ऐसे आओ तुम
मेरे मन में आन बसो और
फिर ना जाओ तुम

मेरी जैसी चाल देख लो
तुम बिन जो है हाल देख लो
अगर तुम्हें मैं भा जाऊं तो
यहीं बस जाओ तुम

पूजा अर्पण सब को परखो
मन के आंदर झांको निरखो
जो कोई भी मैल ना पाओ
यहीं रस जाओ तुम

कविता पढ लो मेरे मन की
शब्दों से जो छेड छाड की
तुमको अच्छी जो लग जाए
कुछ मुस्काओ तुम

मेरा भक्ती भाव देख लो
साईं मिलन का चाव देख लो
जो इसमें पूरी उतरूं तो
दरस दिखाओ तुम

मेरे तरसे नैना देखो
कटे ना काली रैना देखो
नाथ तार दो अब तो आकर
ना तरसाओ तुम

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: tana on April 09, 2008, 02:15:56 PM
ॐ सांई राम~~~

सांई दर आप का बरकतों का भण्डार है,
तुझे तो सांई सभी से प्यार है,
तेरी बेटी प्यासी है तेरे इस प्यार की,
तेरे दुलार की,तेरे दीदार की,
इस दर से कोई गया न निराश है,
मेरे दिल में भी इक आस है,
कैसी भी हूँ सांई मुझे अपनाओंगे तुम,
मुझे हिए से लगाओगे तुम,
ये दिल में आज ठाना है मैने,
तुझे देखे बिना नहीं जाना है मैने,
झोली भर के ही जाऊंगी मैं,
जिद्द ये मेरी है तुम्हे आना पङेगा,
मुझे हिए से लगाना पङेगा,
पापी हूँ,पतित हूँ ,कुटिल हूँ चाहे,
पर बेटी हूँ तेरी ये मानना पङेगा,
पुकार ये आज तुझे सुननी पङेगी,
नहीं तो बेटी तुझसे लङ पङेगी,
तूं मान या न मान,तुझे प्यार है मुझसे,
मैने जो पुकारा तुझे आना पङेगा,
आकर मुझे हिए से लगाना ही पङेगा~~~

जय सांई रामा~~~
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: tana on April 21, 2008, 05:31:39 AM
ॐ सांई राम~~~

बाबा~~~ये मेरे मन की व्यथा~~~

नाम महारस पान करा कर,पहले मुझे मस्त किया,
अब आप कहे कर्त्तव्य निभाओ,ये आप की क्या अदा,
कहीं मन न लगे,कुछ भी न भावे,दीवाना सा कर दिया,
अब आप कीजीए जो हो करना,मुझसे सांई कुछ भी न होता,
आप क्या जाने सांई आप की तङप,ये जो नाम रस आप का पिया,
इस रस ने कहीं का न छोङा,मुझको कमली कर दिया,
अब इसके आगे कुछ भी न भाए,हे मेरे सांई ये आप ने क्या किया~~~

जय सांई राम~~~
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on April 22, 2008, 08:17:06 AM
ओम साईं राम

मुझे नाम खुमारी चढ गई रे
मैं हो गई रे दीवानी
मुझे समझाते सब रह गए रे
मेरे दिल ने एक ना मानी

बढता ही गया वो उसकी तरफ
बढी कठिन है जिस के दर की डगर
मैं दुनिया भर से तोड के नाता
हो गई रे बैगानी

सब कहते रहे उसकी राहों में
मिलेंगे मुझको कांटे
ना दिन में चैन मैं पाऊंगी
ना रात कटेगी काटे
मैं फिर भी आगे बढ गई रे
हुई अपनों से अनजानी

अब नाम की मस्ती संग में रे
और साईं से है नाता
अब दुनिया की रंगरलियों में
मुझको कुछ ना भाता
मैं उसके रंग में रंग गई रे
मैं हो गई रे दीवानी
मुझे नाम खुमारी चढ गई रे.........

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on April 23, 2008, 01:10:25 PM
ओम साईं राम

बाबा जी के कुछ और दोहे.............

जो दूजे को पीडा देवे
कष्ट पहुंचावे मोहे
जो खुद ही पीडा को झेले
सो ही मोको सोहे

ज्यों नदिया सागर मे मिलती
होती एकाकार
त्यों भक्त आ मुझ मे मिलते
तज के ये संसार

जिन भक्तों के लिए सदा है
शिरडी तीरथ स्थान
सहज भाव से उन भक्तों का
हो जाता कल्याण

साईं नाथ प्रभु अनुकम्पा
हर कोई सकत ना पाय
बौर लगें कई वृक्ष पर
कुछ सड कुछ झड जाएं

भूखे को भोजन देवे
प्यासे को दे पानी
राही को आंगन देवे
सो भक्त साईं का जानी

सब जीवों में साईं का
करे जो साक्षात्कार
उसके पूजा अर्चन को
साईं करे स्वीकार

ये काया है पिंजरा
पंछी आत्माराम
मुक्त करेंगे बावरे
तुझको साईं राम

काया से माया जुडी
पर ये माया अच्छी
इस माया को पाय के
कर ले भक्ती सच्ची

सात समंदर जाय के
भक्त भले बस जाय
साईं खीचे डोर तो
पंछी उड उड आय

नीर दिखे ना दूध में
पवन ना देखें नैन
घट घट साईं जान ले
पा जावेगा चैन

नाविक पर विश्वास कर
नदिया करते पार
साईं हाथ में दे डालो
जीवन की पतवार

सभी चतुरता छोड दो
साईं साईं ध्याओ
भव सागर से पार हो
जग से मुक्ति पाओ

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: tana on April 23, 2008, 11:09:01 PM
ॐ सांई राम~~~
 
मैनूं सांई दी मस्ती चढ़ गई,
हाए नी मैं कमली हो गई,
मैनूं ताने देंदे लोकी,
ऐ तेनूं की होया?
नी तूं ते झल्ली ही हो गई...
तूं की कीत्ता जी,
तूं ता कल्ली हो गई...
मैं आख्या लोका नूं,
मैं कल्ली नहीं ओ लोको,

मेरे नाल है मेरा सांई....
जिदे नाल है सांई ओदे नाल सारी खुदाई....

जय सांई राम~~~

       
 
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: tana on April 27, 2008, 05:59:36 AM
ॐ सांई राम~~~

बढता जाता है कुछ अजीब सा एहसास,
नहीं कोई भी मेरे साथ,
बस एक तेरी दिल को आस,
मेरे सांई मेरे बाबा~~कहां हो तुम~~

छुटता जाता है कुछ रिश्तों का साथ,
नहीं बढ़ाता कोई अपना हाथ,
बस एक तेरी ही नज़र की प्यास,
मेरे सांई मेरे बाबा~~कहां हो तुम~~

दिखाई देती है हर खुशी भी उदास,
रूकी-रूकी सी आती है हर सांस~
बस एक तेरी ही है तलाश,
मेरे सांई मेरे बाबा~~कहां हो तुम~~

जय सांई राम~~~
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: tana on April 27, 2008, 01:14:41 PM
ॐ सांई राम~~~

बस इसी तरह,
धीरे धीरे कदम बढ़ाते बढ़ाते,
मैं यूँ ही होती गई बाबा के करीब,
पता न चला कि कब थामी बाबा ने बाह,
कब रखा सिर पर अपना हाथ,
कब बना सांई मेरा सहारा,
कुछ न पता चला,
बस~~
बाबा तुम्हारी तरफ बढ़ते हर कदम पर यही महसूस किया,
कि मैं खुद से ही दूर होती चली गई~~~

जय सांई राम~~~
 
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on May 05, 2008, 08:22:13 AM
ओम साईं राम

रे मन खुद को जान ले
साईं का ले नाम
विशुद्ध रूप पहचान ले
आत्म रूप ले जान

देह नही है देही तू
तेरा नहीं शरीर
स्त्री पुरुष तू है नहीं
ना ही रंक अमीर

ना ही तू जन्मा कभी
ना ही तू मर पाएगा
समय पूर्ण जो हो गया
त्याग ये चोला जाएगा

दुनयावी ये रिश्ते हैं
मात पिता और भाई
चोखा रिश्ता एक है
तू और तेरा साईं

ईंट जोड कर बना लिया
तूने जो घर बार
इनसे ना खुल पाएगा
परम मोक्ष का द्वार

ठगिनी माया खडी हुई
ले सतरंगा रूप
इससे जो मोहित हुआ
गिरेगा अंधे कूप

संभल संभल कर पांव धर
साईं नाम कर जाप
अगर कभी गिर जावे तो
नाथ संभालें आप

तू तो निर्मल रूप है
अजर अमर निष्पाप
परमात्मा का अंश है
उसमें ही तू व्याप

लाख चौरासी भोग कर
जब आवेगा अंत
परम प्रभु को पावेगा
होगा तभी अनन्त

साईं नाथ को पावेगा
साईं का हर चेरा
नया दिवस फिर आवेगा
होगा दूर अंधेरा

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on May 12, 2008, 09:36:08 AM
ओम साईं राम

आज सुबह बाबा ने मुझे
झंझोड कर उठाया
आंखो मे कुछ गुस्सा था
मुख भी था तमतमाया

वैसे मैं जानती थी
आज बाबा ज़रूर आएंगे
जो गलती मुझ से हो गई है
वो ही मुझे बताएंगे

हाथ जोड मैं उनके सन्मुख
आंखे झुकाए खडी थी
अपराध ही ऐसा हुआ था
शर्म से मैं गढी थी

दुखी स्वरों में बाबा बोले
अब मैं तुमसे क्या बोलूं
क्या क्या तुम कर जाती हो
राज़ तुम्हारे क्या खोलूं

अगर कहीं तुम मुझ पर ही
पूर्ण विश्वास रख पातीं
चाहे कष्ट घनेरे होते
पर तुम वहां नहीं जाती

आंखों में आंसू भर बोली
बाबा भूल हुई मुझसे
क्यों मैं ऐसा कर बैठी
शर्मिन्दा हूं मैं भी खुद से

पिछले कुछ दिन से बाबा
कष्ट बडा ही गहरा था
मेरे जीवन पर बैठा
दुख दर्द का पहरा था

अपने उन संतापों को
मैं बस सह नहीं पाई
साईं आपके वचन भुलाकर
चली गई बस रह नहीं पाई

सोचा था यह कष्ट सभी हैं
दुष्ट ग्रहों के ही कारण
कोई पंडित पोथी पढकर
करवा देगा कोई निवारण

पंडित जी ने हाथ देखकर
हाल सभी बतलाया था
उलटी राह पर ग्रह हैं सारे
मुझको यह समझाया था

वक्री ग्रहों को सीधी चाल
कैसे अभी चलाना होगा
दान दक्षिणा पूजा पाठ
मुझसे अब करवाना होगा

सब कुछ सुनकर मधुर स्वरों में
प्यारे बाबा बोले यूं
मुझको सौंप दिया जो जीवन
दुख से फिर घबराना क्यूं

मानव जीवन में कितने ही
सुख आते दुख आते हैं
सच्चे भक्त तो सम रहते हैं
मुझको भूल ना पाते हैं

याद करो तंदुलकर को तुम
वो बिल्कुल ना घबराया था
परीक्षा में पुत्र पास ना होगा
पंडित ने बतलाया था

लेकिन उस भक्त पुत्र का
विश्वास मुझ पर पूरा था
कष्ट देखकर घबरा जाता
तुम सा नहीं अधूरा था

मेहनत करता रहा निरंतर
परीक्षा में वो पास हुआ
मुझ पर जो था रखा उसने
पूरा वो विश्वास हुआ

भक्त जनों की सही परीक्षा
ऐसे ही हो पाती है
दुख आएं तो सारी भक्ति
कहीं पडी रह जाती है

वो जो पंडित, तंत्र और मंत्र के
चक्कर में पड जाते हैं
भक्ति पथ से डिग जाते हैं
कच्चे भक्त कहाते हैं

सुख दुख सब कर्मों का फल है
सच्ची बात बताता हूं 
कर्म भोग कर बन्ध काट लो
तुमको फिर समझाता हूं

ऐसे जीवन अपना जीकर
अन्त समय जब आवेगा
मेरा भक्त मुझे पावेगा
मुझ में आ मिल जावेगा

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on May 14, 2008, 11:28:41 AM
ओम साईं राम

आज सुबह,बाबा की मूरत के आगे
सर झुकाया
तो एक आंसू उनके गाल पर
ढलता पाया

आंखों से करुणा का सागर
जैसे बहता जाता था
दुख आंखों से टपक रहा था
उनसे सहा ना जाता था

मैंने पूछा बाबा से
बाबा मुख मुरझाया क्यूं
मुखमंडल पर पडा हुआ है
दुख दर्द का साया क्यूं

व्यथित हुए क्यूं साईं नाथ जी
कैसी पीडा है आई
प्रेम पगे से कमल नयन में
घोर उदासी क्यूं छाई

कंपित स्वर में बाबा बोले
मेरा दुख बडा भारी है
कैसे खुश रह सकता मैं
जब पीडित दुनिया सारी है

कभी सुनामी लाखों लोग
साथ बहा ले जाता है
कभी कहीं धरती कांपे तो
मानव ना बच पाता है

या फिर कलयुग के मानव
ऐसा कुछ कर जाते हैं
अपने हाथों से मानव को
घोर कष्ट पहुंचाते हैं

भूमंडल पर कोई बवंडर
अति विकट हो जाता है
कभी स्वयं को खुदा समझ कर
मानुष घात लगाता है

मैंने तो संदेश दिया था
सबका मालिक एक है
लेकिन मानव ने गढ डाले
अपने खुदा अनेक हैं

प्रकृति कभी विनाश करे नो
मानव फिर सह जाता है
इक दूजे का हाथ थाम कर
फिर आगे बढ जाता है

पर ना जाने क्यूं करता है
प्राणी प्राणी पर ही वार
क्यूं भाई भाई पर करता
घोर अमानुष अत्याचार

ऐसे उनको बंटा देख कर
दिल ये मेरा रोता है
इंसा ऐसा क्यूं हो गया
बुरे कर्म क्यूं ढोता है

बडे भाग्य से मिला ये जीवन
इससे अच्छे काम करो
इसको व्यर्थ ना जाने दो
ना ही यूं बदनाम करो

निष्पाप रहो सत्काज करो
खुशियां बांटो तुम जन जन में
जीव मात्र से प्रेम करो
किंचित मैल ना हो मन में

कभी नहीं मैं दुखी रहूंगा
जो अमन चैन हो चारों ओर
प्रेम मय हो धरती सारी
सुख का पाऊंगा ना छोर

सच्ची बात तुम्हें कहता हूं
मानों या ना मानों तुम
मेरा सुख दुख भक्तों के हाथ
इस सच्च को पहचानों तुम

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Ramesh Ramnani on May 14, 2008, 11:53:35 PM

जय सांई राम।।।

बहुत खूब। नमन् अपनी बहन सुरेखा को। निशब्द भावभीन नमन् अपने भक्तो के लिये चिन्तित बाबा सांई को।

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई


ॐ सांई राम।।।
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on May 19, 2008, 09:49:59 AM
ओम साईं राम

कौन प्रिय है साईं को
आओ करें विचार
वैसे ही फिर ढाल लें
अपने सभी व्यवहार

बाबा को लगते हैं प्यारे
वो ही अपने बच्चे
तज के सब दुर्भावना
काज करें जो अच्छे

अपने उन भक्तों को चाहते
साईंनाथ भगवान
प्रेम करें हर प्राणी से
साईं रूप ही जान

उन भक्तों के हृदय में
साईंनाथ बस जाते
दुनिया की सुख संपत जो
श्री चरणों में पाते

उन भक्तों के सिर पर होता
बाबाजी का हाथ
श्रद्धा और सबूरी का
जो ना छोडें साथ

जन प्यारा वो बाबा का
जिसमें क्षमा का भाव
मन में जो धारण करे
जन जन से सदभाव

श्री बाबा के प्रेम का
वो ही है अधिकारी
करूणा जिसके हृदय बसे
दयावान उपकारी

भक्त प्रिय वो बाबा को
जो जीए पर हेत
ग्यान चक्षु हों खुले हुए
आत्मा होवे चेत

भक्ति मार्ग का पथिक हो
निर्लोभी निष्काम
श्री चरणों में ही पावे
अंत समय विश्राम

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on May 27, 2008, 08:25:22 AM
ओम साईं राम

मेरे घट के मंदिर में
साईं नाथ विराजे
करतल घंटा वीणा छुन छुन 
मधुर स्वरों में बाजे

परम तेजमय पुंज है
साईंनाथ अभिराम
आन बसे जो हृदय में
पायी भक्ति सुजान

अलख जोत जगी नाम की
पल पल स्पंदित होवे
मन अंधियारा दूर कर
करे प्रकाशित मोहे

साईं प्रेम के भाव ने
छेडा ऐसा नाद
मन के तार बजे तो छूटे
वाद विवाद विषाद

श्री चरणों को पूज कर
मैं का कर के त्याग
श्रद्धा और सबूरी का
पाया महाप्रसाद

अब मैं और मेरा साईंया
साथ रहें दिन रैन
चंचल चित्त अधीर ने
पाया अनुपम चैन

जय साईं राम

Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on May 29, 2008, 09:45:55 AM
ओम साईं राम

चंदा की खिडकी को खोल
बाबा देख रहे चहुं ओर

मधुर चांदनी चमचम चमके
बाबा के नैनों में दमके

टिम टिम करते ढेरों तारे
आंगन में आ उतरे सारे

संग संग उतरे मेरे बाबा
अनुपम थी उस मुख की आभा

ठंडी ठंडी मस्त हवाएं
बाबा की ले रही बलाएं

फूलों ने खुशबु बिखरा दी
चंदा ने अपनी आभा दी

दसों दिशाएं महिमा गाएं
सूरज किरणें चंवर ढुलाएं

कोयल कूकी छेडी तान
मधुर स्वरों में गाया गान

मेघों ने कर दी जल वृष्टि
साईं मय हुई सारी सृष्टि

सुंदर रूप दिखाया आप
हृदय पटल पर छोडी छाप

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: tana on June 10, 2008, 06:47:39 AM
ॐ सांई राम~~~

आज बङे दुखी मन से की फरियाद,बाबा से
इतना दुःख दिया मुझे प्रभु ये क्या किया,
कुल मिला कर यूं कहें तो मैने खूब गिला दिया,
बाबा तो कुछ न बोले बस रहे चुप,
पर मेरा अंतरमन बोल पङा
इतना सुख भोगा तूने क्या तब भी गिला दिया
कि इतना सुख क्यों दिया ये आपने क्या किया,
तब तो खूब मजा लिया खुशिया पाई आनन्द लिया
मन से तो फिर भी शुक्र किया पर गिला तो कभी नहीं दिया,
सुख-दुःख दोनों उसी की संताने
हे मन उन्हे प्यार कर और गले लगा~~~

जय सांई राम~~~
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: tana on June 29, 2008, 01:29:08 AM
ॐ सांई राम~~~

ये किन कर्मों का फल है बाबा,
कि मैंने तुमको पाया है~~
ये बहु-प्रतीक्षित सा समय बाबा,
मेरे जीवन में आया है~~
ये मूरत तेरी, ये सूरत तेरी बाबा,
कितनी सुन्दर काया है~~
चेहरे से नज़रे हटाऊँ कैसे बाबा,
ये तेरी कैसी माया है~~~

जय सांई राम~~~
 
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: bindu tanni on July 01, 2008, 02:00:49 PM
मेरा साँई जग का दाता
सब का वो ही भाग्य विधाता
नहीं चाहता स्वर्ण सिंहासन
उसे चाहिये भाव भरा मन

हाथ में सटका तन पर कफ़नी
यही संपदा साईं की अपनी
एसा सांई मुझको भाता
लगता जनम-जनम का नाता

स्वर्ण सिंहासन वाला सांई
बहुत दूर है मुझको लगता
उसको छू न सकने का दुख
मेरे मन को घायल करता

मेरा सांई अमनी का है
मेरा सांई जमली का है
बायजा माँ का बेटा है वो
वही सांई मुझ पगली का है

माँ सरस्वति की सतत कृपा हो
बाबा की रहमत भी बरसे
और तुम्हारी रचनाओं से
हम भक्तों का मन भी सरसे

और दुआ इतनी सी करना
भजन रचूँ मैं बस सांई के
सोते जगते चलते फ़िरते
केवल स्वप्न दिखें सांई के
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: MANAV_NEHA on July 01, 2008, 02:06:11 PM
साई की है महिमा इतनी न्यारी
जिस पर नाज़ करती है यह दुनिया सारी
तेरी कृपा की है अब आशा
तेरे रूप को देखने की है अभिलाषा
कब हमारा मनोरत सिद्ध होगा
कब इन आखो को तेरा दर्श होगा
तुझ में है यह जग समाया
तेरे दर से न कोई खाली आया
सबके ह्रदय की बात तू जाने
सबके मन में तू विराजे
कण कण में तेरा वास है
तेरी करुना का न कोई पार है
तेरी महिमा है इतनी न्यारी
जिसपे नाज़ करती है यह दुनिया सारी.......ॐ साई राम     
     
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: tana on July 01, 2008, 09:24:36 PM
ॐ साँई राम~~~

अब और मुझसे सहा न जाए
इक पल भी दूर रहा न जाए
अब मुझे कुछ भी न भाए
सांस लेना भी भारी लगे
हर पल आप की याद सताएं
आप ने क्या कर दिया
मेरा कैसा हाल किया
अब तो आँसू भी नहीं आते
जब आते है तो रूक नहीं पाते
आप की छवि आँखों में रहती
दिल को मेरे कचोटती रहती
बाहें फैलाए मुझे बुलाती
पर मैं तो आ ही न पाते
फिर उस पल मेरा दिल घबराए
जी चाहे अभी उङ जाए
पंछी बिन पर जैसे फङफङाए
इसका वही हाल हो जाए
ये आप तक आ न पाए
बस यहीं पङा मायूस हो जाए
अब और सही नहीं जाती ये सजाएं
अब तो आप कृपा बरसाएं
मुझको चरणों में अब बिठाएं~~~

जय साँई राम~~~

Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: tana on July 04, 2008, 08:43:31 PM
ॐ साँई राम~~~

बाबा की यह व्यथा~~~

वाह रे वाह ओ समझदार इंसान,
इतना कुछ मिला तुझे शुक्र ना हुआ,
कुछ एक आध रह गया फट गिला दे दिया~~~

जय साँई राम~~~
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: tana on July 09, 2008, 09:37:12 PM
ॐ सांई राम~~~

तेरे चाहने से कुछ नहीं होता
होगा वही जो किस्मत में लिखा होगा,
रो रो कर गिङगिङा कर देख ले
फिर भी होगा वही जो होना होगा,
तू कर समझौता और मुस्कुरा कर के देख
फिर दुखों का दर्द कुछ कम होगा,
खुशी-गम चाहे हो सुख-दुःख
सब उसी की इच्छा से होगा,
जीवन बिता पर ये याद रख
उसकी इच्छा में कभी तेरा बुरा ना होगा,
दुःख-सुख जो भी मिले तुझे
इसमे जरूर कुछ भला ही होगा~~~


जय सांई राम~~~

Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: tana on July 25, 2008, 07:54:10 AM
ॐ साईं राम~~~

जैसे बच्चा अपने टूटे खिलौने लाता है,
आँखो में आँसू लिए,माता-पिता के पास!
वैसे ही हम अपने टूटे सपने लाते है बाबा के पास,
क्योंकि साईं, मेरे करूणामयी साईं पूरी करते है सब की आस!!

फिर शांति से उन्हें काम
करने देने की बजाय
हम बार-बार उन्हें टोकते है,
अपने ढ़ग से उन्हें मदद की गुहार लगाते है,
ऐसा होता तो अच्छा रहता,
ये हो जाता तो और अच्छा हो जाता,
वो नहीं किया....ऐसा कर दो न बाबा.....

जब फिर पूरे न होते सपने,
फिर यूँ लगता अब बाबा न रहे अपने,
फिर लगाने लगते शिकायतों की फेरी,
दूसरों की व्यथा सुनते हो
और मेरी बारी क्यों इतनी देरी??

फिर मेरे साईं मेरे बाबा बोले कुछ यूँ रो कर--
"ओ मेरे प्यारे बच्चों ,मैं क्या करता?
मैं क्या कर सकता था?
तुमने कभी पूर्ण विश्वास किया ही नहीं,
तुमने कभी पूरी तरह छोङा ही नहीं मुझ पर ".....


जय साईं राम~~~

Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on August 07, 2008, 08:57:36 AM
ओम साईं राम


उदासियों के साये
है ज़िंदगी पे छाये
रस्ते पे हैं निगाहें
शायद कभी तू आए

जय साईं राम

Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: abhinav on August 07, 2008, 09:12:02 AM
इस राह को मै तेरी राह समझकर चलने लगा,
लड्खडाते कदमों से गिर-गिरकर मैं सम्भलने लगा।

चला आया हूँ बहुत दूर अब घर से मैं,
कि लौट के जाना भी अब मुम्किन तो नहीं।

मुझे मंजिल मिले ये जरूरी तो नहीं,
मै इसे तेरी रज़ा समझकर बढने लगा।
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Ramesh Ramnani on August 07, 2008, 09:28:02 AM

ओम साईं राम

उदासियों के साये
है ज़िंदगी पे छाये
रस्ते पे हैं निगाहें
शायद कभी तू आए

जय साईं राम



जय सांई राम।।।

वो अपने दिल में एक तलाश रखते है
न जाने क्यों हसीन चेहरे को उदास रखते है
निगाहें उनकी बयां करती है हाल-ऐ-दिल
न जाने क्यों लबों को वो खामोश रखते है

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई


ॐ सांई राम।।।
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: tana on August 10, 2008, 11:32:36 PM
ओम साईं राम


उदासियों के साये
है ज़िंदगी पे छाये
रस्ते पे हैं निगाहें
शायद कभी तू आए

जय साईं राम


Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on August 16, 2008, 01:50:10 PM
ओम साईं राम

साईं तेरा साथ मिला
जीवन से अब नहीं गिला

बाबा तेरी भक्ति पाई
दुख सहने की शक्ति पाई

मन में जागी श्रद्धा पूरी
सब्र किया और पाई सबूरी

श्री चरणों में डाला डेरा
दामन थाम लिया बस तेरा

भेद भाव की तोड दिवार
तुझ से कर ली आंखे चार

कर्ता पन का भाव छोडकर
मैं पन की तलवार तोड कर

तुझ से प्रीत लगाई साईं
थामें रहना सर्व सहाई

परम प्रिय हे साईं हुज़ूर
खुद से ना अब करना दूर

कभी छोडना ना तुम साथ
वरना जी ना पाएंगे हम नाथ

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on September 02, 2008, 11:32:26 AM
ॐ साईं राम

साईं नाथ का आशीर्वाद है ऊदी
बाबाजी का प्रसाद है ऊदी

त्याग का पाठ पढाती है ऊदी
वैराग का ज्ञान कराती है ऊदी

बीमार की संजीवनी दवा है ऊदी
भक्तो को बाबा की दुआ है ऊदी

मुश्किलों में सहारा देती है ऊदी
डूबते को किनारा देती है ऊदी

श्रद्धालु के माथे का टीका है ऊदी
जीवन जीने का तरीका है ऊदी

बाबा पर बच्चो का विशवास है ऊदी
साईं भक्तो के लिए बहुत ही ख़ास है ऊदी

देवा के प्यारो की पूंजी है ऊदी
असंभव से कामो की कुंजी है ऊदी

साईं के संग का एहसास है ऊदी
उनसे निकटता का आभास है ऊदी

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on September 07, 2008, 10:10:48 AM
ॐ साईं राम

कल रात सपने में मैंने
बाबा जी को देखा
आंखों से आंसू झरते थे
मिट गयी थी स्मित रेखा

सिसक रहे थे मेरे बाबा
भरते लम्बी आँहें
भक्तों ने ये क्या कर डाला
चाहे या अनचाहे

मैंने तो समझा था मेरे     
प्यारे भक्त अनेक
मिल जुल नाम करेंगे रोशन
मेरा सहित विवेक 

देख देख गदगद होता था
सुंदर द्वारकामाई
दूर दूर के भक्तों ने
भावो. से जो सजायी

अनुभव कोई सुनाता अपने
नाम जाप कोई करता
मुझको सबने मान लिया था
सुख करता दुःख हरता

कुछ दिन से पर लगता ऐसा
भक्त खो गए सारे
तू तू मैं मैं पर आ उतरे
जो थे मेरे प्यारे

उलझन में यूँ उनको पाकर
मन रोता है मेरा
क्यूँ मेरे मन्दिर में छाया
अहम् भाव का घेरा

क्या मैं समझूं भक्तों का
विशवास ना मैंने जीता
या फिर श्रद्धा और सबुरी
से उनका मन रीता

घायल मन है दुखी आत्मा
देख सको तो देखो
नाम छोड़ कर भटक रहे हैं
मेरे भक्त अनेकों

बाबा जी की व्यथा जान कर
मन मेरा भी रोया
बाबा हमको वापस दे दो
जो भी हमने खोया

मानव हैं हम हमसे दाता
भूल हो गयी भारी
हाथ जोड़कर क्षमा माँगते
तुमसे बारी बारी

बस अपना आशीष और प्यार
मैया हमको दे दो
अहम् भाव सब तुम्हें समर्पण
इसको तुम ही ले लो

वादा करते हैं हम तुमसे
फिर ना होगा ऐसा
जैसा तुम चाहते हो साईं
मन्दिर रहेगा वैसा

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: tana on September 21, 2008, 09:06:44 PM
ॐ साँई राम~~~

अब और मुझसे सहा न जाए
इक पल भी दूर रहा न जाए
अब मुझे कुछ भी न भाए
सांस लेना भी भारी लगे
हर पल आप की याद सताएं
आप ने क्या कर दिया
मेरा कैसा हाल किया
अब तो आँसू भी नहीं आते
जब आते है तो रूक नहीं पाते
आप की छवि आँखों में रहती
दिल को मेरे कचोटती रहती
बाहें फैलाए मुझे बुलाती
पर मैं तो आ ही न पाते
फिर उस पल मेरा दिल घबराए
जी चाहे अभी उङ जाए
पंछी बिन पर जैसे फङफङाए
इसका वही हाल हो जाए
ये आप तक आ न पाए
बस यहीं पङा मायूस हो जाए
अब और सही नहीं जाती ये सजाएं
अब तो आप कृपा बरसाएं
मुझको चरणों में अब बिठाएं~~~

जय साँई राम~~~

Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on September 24, 2008, 11:08:12 AM
ॐ साईं राम

कल रात सपने में मैनें
फिर बाबा को पुकारा
कई प्रश्न पूछने हैं
आ जाओ ना दोबारा

आवाज़ मेरी सुनकर
बाबाजी चले आए
प्रश्नों की झडी लगादी
बिन क्षण भी इक गवाए

जो भी था मेरे मन में
उनके समक्ष रखा
फिर साईं की वाणी का
सुमधुर सा रस चक्खा

मैंने कहा ये उनसे
साईं इतना तो बता दो
मेरी भक्ती में क्या कमी है
ये मुझको भी जता तो

कभी भी बाबा क्यूँ तुम
मेरे सामने ना आते
क्यूँ चमत्कार कोई
मुझको नहीं दिखलाते

सोती हूँ जागती हूँ
मैं तेरे ही सहारे
नख शिख से जानता है
मुझको तू साईं प्यारे

फिर क्यूँ नहीं दिखलाते
तुम लीला कोई न्यारी
अदभुत सा खेल कोई
दिखलादो अबकी बारी

वो फूलों की जो माला
मैनें तुम्हें चढाई
मैं देखती ही रह गयी
पर तुमने ना बढाई

मेरे सामने हे दाता
तुमने ना आँख खोली
इक पलक ही झपका दो
मैं कितना तुमसे बोली

साईं तेरे लबों को
मैं एक टक निहारी
कभी ना बोले मुझसे
तुम बाबा एक बारी

मेरे घर का हर इक कोना
मैंने तो छान डाला
तुम कहीं तो दिखोगे
ये वहम मैंने पाला

पर तुम दिखे ना मुझको
ना निशाँ कोई छोडा
कैसे बताऊँ साईं
इस दिल को तुमने तोडा

ये बात मेरी सुनकर
बाबाजी मुस्कुराए
इक क्षण में दूर हो गए
गमो के जो थे साए

सुमधुर वाणी में फिर
बाबाजी मुझसे बोले
कच्ची तुम्हारी भक्ती
जो क्षण क्षण में है डोले

क्यूँ देखना चाहती हो
तुम चमत्कार मेरा
विशवास उठ गया क्या
मुझसे ही कहो तेरा

क्या बार बार मुझको
परीक्षा देनी होगी
क्यूँ चमत्कार चाहता
आता है दर पे जो भी

मैं भी तो चाहता हूँ
कई भक्त ऐसे प्यारे
म्हालसापति जैसे
शामा के जैसे न्यारे

इच्छा रहित करी थी
उन सबने मेरी भक्ती
ना आशा थी ना तृष्णा
ना थी कोई आसक्ती

जो नहीं दिखाउंगा
मैं चमत्कार अपना
तो भूलोगी क्या मुझको
समझ के कोई सपना

चमत्कार की तुम
आशाएं ना यूँ पालो
चंचल अधीर मन को
साधो और संभालो

भक्ति बढाओ अपनी
ये माला, पलक छोडो
श्रधा से मन को भर के
तुम मेरी ओर मोडो



मैं देह में नहीं पर
भक्तों के दरम्यां हूँ
ह्रदय टटोलो अपना
पाओगी मैं वहाँ हूँ

जय साईं राम 
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: etgirl on September 25, 2008, 12:47:02 AM
very beautiful....simply amazing words..
may baba always bless u

sairam
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on September 25, 2008, 11:02:50 AM
OM SAI RAM

Thank You etgirlji.

Its all Baba's inspiration.

JAI SAI RAM
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on September 29, 2008, 09:09:08 AM
ॐ साईं राम

साईं नाम की माला फेरूँ
साईं के गुण गाऊं
यहाँ वहाँ या जहाँ रहूँ
साईं साईं ध्याऊं

आँख उठाऊँ साईं दिखता
आँख झुकाऊँ साईं
मन मन्दिर में आन विराजा
मेरा सर्व सहाई

दीवानी सी हुई बावरी
साईं तेरी दासी
निरख निरख सुख पातीं
फिर भी अखियाँ रहती प्यासी

साँस साँस जो आती जाती
साईं साईं ध्याती
गुण गान करती ये जिव्हा
कभी ना थकने पाती

बस ऐसे ही साईं मेरे
तुझको ध्याती जाऊं
सिमर सिमर कर स्वास स्वास में
साईं तुझको पाऊँ

कभी ना भूलूं देवा तुझको
मुझको ऐसा कर दो
तुझको भूलूँ तो जग छूटे
साईं ऐसा वर दो

जय साईं राम     
 
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on February 23, 2009, 07:40:16 AM
HAPPY MAHASHIVRATRI TO ALL


ॐ साईं राम

साईं अपरम्पार तुम
शिवजी के अवतार तुम

भक्त जनों का करने तारण
मानव चोला कर लिया धारण

धरती पर उतरे कैलासी
बन कर देवा शिरडी वासी

विरक्ति वही विराग वही था
नवजीवन पर त्याग वही था

त्रिशूल छोड कर सटका थामा
जटाधारी ने पटका बांधा

व्याघ्र चर्म को छोड़ के दाता
कफनी धारण करी विधाता

त्याग कमंडल पकडा टमरैल
सबके दिल का धोते मैल

शिव साईं ने मांगी भिक्शा
मालिक एक की देते शिक्शा

जटा की गंगा चरण में लाए
भक्त जनों का मन हरषाए

तन की भस्म की करी विभूति
स्वंय हाथ से देते ऊदि

मृगछाला का छोड बिछोना
शुरु किया तख्ते पर सोना

उसके भी टुकड़े कर डाले
शिव साईं के रंग निराले

वीतरागी थे महा अघोरी
सबके दिल की करते चोरी

अमृत छोड के विष पी जाते
भक्तों का हर दुख अपनाते

शिवशंकर साईं भगवान
कोटि कोटि है तुम्हें प्रणाम


 जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on March 11, 2009, 11:37:53 AM
HAPPY HOLI TO ALL SAI BANDHUS


ॐ साईं राम

आओ हिलमिल होली खेलें
साईंनाथ के संग
भक्ति भाव में रंग ले खुद को
रंगे साईं के रंग

श्रद्धा की पिचकारी थामें
सबुरी का हो गुलाल
तज के सब दुर्भावना
रंगे साईं के लाल

तन को रंग ले मन को रंग लें
रंग लें दिल और जान
साईं नाम की भंग चढा लें
भूलें सकल जहान

प्रेमगंग में सरोबार हो
झूमें तेरी तरंग में
होली आए होली जाए
रंगे रहें तेरे रंग में

जय साईं राम
Title: Re: द्वारकामाई
Post by: saisewika on April 24, 2009, 09:53:49 AM
ॐ साईं राम

अति पुनीत है,पावन है,
है परम सुखदायी
शिरडी धाम में बाबाजी का
स्थल है द्वारकामाई

साठ बरस तक यही बनी थी
बाबा जी का द्वारा
भक्ति रस की बहती रहती
यहां निरंतर धारा

हिंदु मुस्लिम सबको आश्रय
देती मस्जिद माई
राम रहीम को जोड दिया था
साईं सर्वसहाई

कभी नमाज़ की अजान गुंजाकर
मस्जिद इसे बनाया
दीपों से कभी जगमग करके
मंदिर यहीं बनाया

रामलला का यहीं पडा था
पलना सजा सजाया
चन्दन उत्सव भकतजनों ने
हिलमिल यहीं मनाया

यहीं बैठकर बाबाजी ने
जल से दीप जलाए
लीलाधर की लीला के
सबने सुख थे पाए

यहीं साईं नाथ जी ने
श्री चरणों से गंग बहाई
धन्य किया भक्तों को,
तीरथ बन गई द्वारकामाई

चक्की पीसी, शिरडी की
सीमा पर आटा डाला
द्वारकामाई में बैठा फकीर वो
सबका है रखवाला

कर कमलों से बाबाजी ने
धूनि अलख जलाई
इसी से उपजी ऊदि की
महिमा दस दिश छाई

भक्तजनों की काशी है ये
मस्जिद माई महान
यहां पे आकर मिट जाते हैं
झंझावत तूफान

इसकी महत्ता का बाबा ने
स्वयं किया गुणगान
श्री मुख से साईं जी ने
आप दिया फरमान--

"द्वारकामाई की गोदी में
जो बैठेगा आकर
दुख दर्द सब मिट जावेंगे
होगा जीव उजागर"

"द्वारकामाई की सीढी पर
जो रख देता पांव
उसके जीवन में फिर दुख का
नहीं रहे कोई ठांव"

इसके कण कण में बसते हैं
सबके प्यारे साईं
जिसको दर्शन पाने हो
आ जाए द्वारकामाई

जय साईं
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: shalabh on April 24, 2009, 09:52:57 PM
जय साईं राम

Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saikripa.dimple on April 29, 2009, 12:19:26 AM
JAI SAI RAM
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

sach, bilkul sach hi likha hai aapne
kaise hum log bina baba ke baare me soche
kahte jaate hai unse
kitne swarthi ho jate hai hum log

Aapne apni feelings  ko is kadar shabdo me utara hai kii
kuch kahne ko shabd nh hai
aur aankhein aansuon se bhari hai;;

baba too dekh hi rahe honge
ise padkar baba ko bahut khushi hogi
qkii yahi toh asli bhakti
baaki sab toh kuch na kuch maangne hi jaate hai unke paas
magar aapne unhe samjha
yeh jankar bahut khush honge hamare baba ji

Jai sai Ram
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saikripa.dimple on April 29, 2009, 12:31:45 AM
Aao aaj hum sab milkar ye Vaada kare khudse
Kii

 
Jis haal me rakhe Sai , Us haal me khushi se rahenge Hum
Sukh ho ya Dukh , Naam unka japenge har pal
Chahe bhatkaye ye zamana
Chahe maare jag taana
Magar Sai Sai kahte kahte
Jeevan gujarenge Hum

Kuch kahna hoga gar Sai se
Toh Shukriya hi karenge Hum

mila hai ye jeevan toh den hai usi ki
Usi ke liye jeevan nyochhavar karenge Hum

Nahi hume haq rulane ka kissi ko
Nahi hume haq satane ka kissi ko
Gar nh kar paaye kisi ki madad toh
Rasta use Sai Dar ka dikhlayenge Hum

Joh bhatak gaye hai zindagi se apni
Joh naraz hai har khushi se apni
Joh anjaan hai Sai ki shakti se
Unhe jeevan jeena sikhayenge Hum

Nahi phir Sai ka dil kabhi dukhayenge Hum
Kabhi na karenge shikwa unse
Sada musakuraayenge Hum

Hai yakeen mera musakurata hume dekh kar
Sai ki Vyadha ko kam kar paynge hum

Do Sai Aashirwaad prann ko hamare
Saari duniyaa ko Sai se milana Chahate hai Hum

Diya hai Jeevan Ye aapne
Aapko hi samarpit ye jeevan karte hai hum

Karo aisi kripa apne bachcho par
Aa kar paas tumhare
tumhare hi ho le Hum

Na bhule kabhi dil Sai ko apne
Sote Jagte Sai Japte rahe Hum


OM SAI RAM
Title: Re: साईं प्यार तुम्हारा
Post by: saisewika on May 10, 2009, 06:52:33 PM
ॐ साईं राम
 
साईं प्यार तुम्हारा
 
साईं प्यार तुम्हारा मुझको
कर देता है मतवाला
अपने प्रेम के रंग में साईं
तन मन तुमने रंग डाला
 
 
कभी कभी शब्दों में ढलकर
ये प्यार गीत बन जाता है
कभी कभी मरहम बन जाता
मुझे आन दुलराता है
 
 
कभी सपनों की नगरी में ये
हाथ थाम ले जाता है
साईं प्यार तुम्हारा मुझको
शिरडी तक पहुंचाता है
 
 
कभी कभी ये सावन बन कर
चहुँ ओर छा जाता है
मेरे मन के आँगन में ये
रिम झिम मेह बरसाता है
 
 
कभी पवन का झोंका बन कर
तन मन शीतल करता है
प्राण हीन सी पडी हुई में
नव जीवन ये भरता है
 
 
कभी कभी पर प्यार तुम्हारा
मुझको यूँ तरसाता है
तुमको कान्हा, विरह में मुझको
मीरा सा कर जाता है
 
 
जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on May 20, 2009, 07:57:40 AM
OM SAI RAM

Sainetra ji

Tanvi is truely a blessed child of Baba Sai.

Its Baba's grace and kripa that she is singing his stuti at the age of 3.5.....


May Baba always bless Tanvi and your family.


JAI SAI RAM
Title: Re: काश ...........
Post by: saisewika on May 21, 2009, 09:18:33 AM
ॐ साईं राम
 
काश अगर मैं सटका होती
साईं तेरे हाथ का
परम पुनीत होता ये जीवन
सुख पाती तव साथ का
 
 
मुझे हाथ में थामे रहते
मेरे प्यारे साईं राम
फिर कोई चाहत ना रहती
जीवन हो जाता निष्काम
 
 
कभी धरा पर पटक के सटका
जल के स्त्रोत बहाते तुम
अग्नि ज्वाला मद्धम होती
सटका जो लहराते तुम
 
 
'सटका लीला' करते साईं
निरख निरख जग सुख पाता
तेरे हाथ में आकर साईं
मेरा जीवन तर जाता
 
 
काश अगर मैं झोला होती
कन्धे पर लटकाते तुम
जहां जहां भी जाते साईं
मुझको भी ले जाते तुम
 
 
सारे सुख दुख भक्त जनों के
मुझमें तुम डाला करते
बडे जतन से, समझ के संपद
मझको नाथ संभाला करते
 
 
काश अगर मैं कफनी होती
मुझको धारण करते तुम
पतित जो जीवन इस दासी का
इसका तारण करते तुम
 
 
कैसा पावन जीवन होता
पाकर साईं संग तेरा
कतरे कतरे पर चढ जाता
प्रेम तेरा और रंग तेरा
 
 
और जो होती तेरी पादुका
श्री चरणों में रहती मैं
मुझसा भाग्य नहीं किसी का
ऐसा सबसे कहती मैं
 
 
श्री चरणों की पावन रज को
साईं निशदिन पाती मैं
धारण कर मस्तक पर, अपनी
किस्मत पर इतराती मैं
 
 
टमरैल या भिक्षा पात्र ही होती
साईं तेरी दासी तो
महा पुण्य प्रताप मिल जाता
नित दर्शन की प्यासी को
 
 
जाने कितने क्षुधित तृषित
तृप्ति आकर पा जाते
कौर कौर को तरस रहे जो
महाप्रसाद वो पा जाते
 
 
काश अगर जो ऐसा होता
धन्य धन्य हो जाती मैं
पद पंकज में आश्रय पाकर
चिर विश्रांति पाती मैं
 
 
जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: child_of_sai on May 22, 2009, 07:34:15 AM
saisewika ji, very nice indeed...thanks...
Sai Ram.
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on May 29, 2009, 11:43:27 AM
OM SAI RAM

Thanks child_of_SAI ji.


JAI SAI RAM
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on July 07, 2009, 11:47:23 AM
ॐ साईं राम

गुरु शिष्य पूर्णिमा


सदगुरू साईं गुरू दिवस की
आपको बहुत बधाई
श्री चरणों में हमको रखना
साईं सर्व सहाई

पुण्य दिवस में हमको साई
बस इतना ही वर दो
गुरू दिवस के संग संग इसको
शिष्य पूर्णिमा कर दो

हर शिष्य के मन मंदिर में
साईॅ आन विराजो
दास जनों के हृदय पटल पर
सूरज सम तुम साजो

शरण में अपनी राखिए
सदगुरू साईं सुजान
श्रद्धा और सबूरी का
प्रभु दीजिए दान

भक्ति से साईं आपकी
कभी ना भटके मन
हर पल तुझमें रमा रहे
नश्वर ये जो तन

सबके मन में सदा जले
तेरे नाम की जोत
प्रेम तेरे के रंग में साईं
रहें ओत और प्रोत

सदगुरू की महिमा अनंत
नित नित गाते जाएं
प्रति दिवस हो गुरू पूर्णिमा
हर दिन इसे मनाऐॅ

गुरू शिष्य की परम्परा
सदा रहे अखंड
ऐसा आशिश दीजिए
हे श्री सच्चिदानन्द॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰

जय साईॅ राम
Title: Re: साईं सतचरित्र
Post by: saisewika on July 12, 2009, 03:43:24 PM
ॐ साईं राम

साईं सतचरित्र

साईं सतचरित्र नाम की
महागंग है एक
इसमें डूब के तर गए
साईं भक्त अनेक

साईं मार्ग का जान लो
ये है अनुपम मोती
भक्तों के जीवन में जगती
इससे जगमग ज्योति

बाबाजी के जीवन की
इसमें सकल है गाथा
जो बांचे इसे प्रेम से
सो अतिशय सुख पाता

साईं नाथ का नाम ले
भाव की जोत बना लो
अश्रु घी बन जाएंगे
प्रेम का दीप जला लो

श्रद्धा और सबूरी से
अपने मन को भर लो
चिन्तन, मनन,ध्यान फिर
साईं नाथ का कर लो

मन में धर के धारणा
निशदिन पढो पढाओ
हर अक्षर के संग में
साईं साईं ध्याओ

सांयकाल या प्रातः हो
जब जी चाहे पढना
या फिर सप्ताह पाठ ही
चाहे इसका धरना

समय हो चाहे खुशी का
या आपद की घात
पढो समय कट जावेगा
यही सार की बात

सतचरित्र के पठन से
बढे भक्ति और ज्ञान
पतित आत्मा पावन हो
जन का हो कल्याण

अविद्या का नाश कर
काटे पाप के कर्म
भवसागर से पार हो
समझ गया जो मर्म

सतचरित्र के पाठ से
खुले मोक्ष के द्वार
जन्म मरण छूटे सभी
जन का हो उद्धार

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Admin on July 12, 2009, 04:30:47 PM
Sau Ram

As usual as wonderful as SAI himself.

Thanks a lot for sharing with devotees.

Sai Ram
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on July 14, 2009, 07:32:03 AM
SAIRAM Ravi bhai

Thanks.... Can you please post it in the next issue of SAMARPAN.


JAI SAI RAM

Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Admin on July 14, 2009, 09:04:00 AM
Sai Ram Ji

it's alreday in :)

Sai Ram

SAIRAM Ravi bhai

Thanks.... Can you please post it in the next issue of SAMARPAN.


JAI SAI RAM


Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Ramesh Ramnani on July 18, 2009, 08:34:00 AM
जय सांई राम।।।
 
अति सुन्दर। बहुत खूब। शब्दों को पिरोने में ज़वाब नही अपनी सुरेखा बहन का।   

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई


ॐ सांई राम।।।
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saikripa.dimple on July 21, 2009, 02:04:43 AM
Nahi dukh unko kabhi sata paaye
jo bhi sai sharan mein aaye

muskraate hue yeh jeevan bitaye
dukh toh paas bhatak bhi naa paye
 ik baar agar tu sai ko apnaaye

bhul kar yeh duniya
bhul kar rishtedaari
ho ja magan , sai ki masti me
phir dekh kya rang laati  hai
yeh saari duniya sai ki shakti se

bhul ja ki ye sab hai tere liye
bhul ja ki ye zindagi teri hai
bas yaad rakh , toh Sai ka naam
hota hai kya, phir dekh
Sai ki marzi se..........

hai bahut sundar, suhana woh safar
jisme Sai saath saath chale
jab gire woh uthaye, kabhi humko sambhale
jab tadpane lage, toh, gale se lagaye

har pyar toh hume unhi se mila hai
yeh toh duniya toh bas, dukh hi deti
toh q naa hum bhi sai me mil jaaye
kar le sarthak ye jeevan
sai charno me apna sheesh jhukaye

Jai Sai Nath
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on July 21, 2009, 03:50:03 PM
Nahi dukh unko kabhi sata paaye
jo bhi sai sharan mein aaye

muskraate hue yeh jeevan bitaye
dukh toh paas bhatak bhi naa paye
 ik baar agar tu sai ko apnaaye

bhul kar yeh duniya
bhul kar rishtedaari
ho ja magan , sai ki masti me
phir dekh kya rang laati  hai
yeh saari duniya sai ki shakti se

bhul ja ki ye sab hai tere liye
bhul ja ki ye zindagi teri hai
bas yaad rakh , toh Sai ka naam
hota hai kya, phir dekh
Sai ki marzi se..........

hai bahut sundar, suhana woh safar
jisme Sai saath saath chale
jab gire woh uthaye, kabhi humko sambhale
jab tadpane lage, toh, gale se lagaye

har pyar toh hume unhi se mila hai
yeh toh duniya toh bas, dukh hi deti
toh q naa hum bhi sai me mil jaaye
kar le sarthak ye jeevan
sai charno me apna sheesh jhukaye

Jai Sai Nath



very nice saikripa.dimpleji


JAI SAI RAM
Title: Re: एक विनती
Post by: saisewika on July 21, 2009, 03:53:54 PM
ॐ साईं राम

बस इतना ही मांगा है
साईं तेरी दासी ने
पावन चरणों की धूलि ने
शुभ दर्शन की प्यासी ने

साईं अपने भक्त जनों में
मुझको भी शामिल कर लो
सच्ची भक्ति मैं कर पाऊँ
देवा मुझको ये वर दो

जग की कोई आशा तृष्णा
मुझे ना विचलित करने पाए
वैभव या कोई महा प्रलोभन
साईं कभी ना मुझे लुभाए

"मैं" मर जाए साईं मेरा
अहम भाव का नाश हो
पर निंदा कर पाऊँ किसी की
ऐसा ना अवकाश हो

भक्ति का दिखावा ना हो
आडम्बर में पडूं नहीं
जो भी तुमने शिक्षा दी है
जीवन में बस करूँ वही

नाम तेरे की जोत अखंड से
मन का दूर अंधेरा हो
ज्ञान चक्षु खुल जाएं मेरे
जीवन मे नया सवेरा हो

मुझमें और तुझमें हे साईं
अब ना कोई दूरी हो
क्षण भर भी मैं भूलूं तुझको
ऐसी ना मजबूरी हो

आगम, अस्तित्व, अस्त मेरा
तुझसे ही बस जुडा रहे
कभी किसी क्षण जीव मेरा
तुझसे ना कभी जुदा रहे

शांत भाव , एकांत वास में
साईं तुझको ध्याऊँ मैं
ध्याता तू है, ध्येय भी तू ही
साईं तुझको पाऊँ मैं

गत जन्मों के सारे बन्धन
दाता अब तो तोडो तुम
अधम जीव को पार लगा दो
बीच भंवर ना छोडो तुम

जय साईं राम
Title: भरोसा
Post by: saisewika on July 27, 2009, 09:56:21 AM
ॐ साईं राम

मुझे भरोसा है तेरा
हे साईं अभिराम
तपता सूरज सिर पर हो
या ढलती हो शाम

पूरा है विश्वास कि
तुम हो मेरे साथ
जो मैं गिर भी जाऊँ तो
तुम्ही संभालो नाथ

विपदा का चाहे समय हो
या कष्ट हो घोर
मुझे भरोसा है साईॅ
तुम हो मेरी ओर

बीच अकेला छोड दें
सारे बंधु सुजान
तुम ना मुझ को छोडोगे
मेरे साईं राम

आधि व्याधि तू हरे
तू ही दोष निवारे
मुझे भरोसा है साईं
तू मुझे करे किनारे

मुझसे पहले जान ले
क्या हित में है मेरे
पूर्ण भरोसा मैं करूँ
साईं करुणाप्रेरे

काल कराल खडा रहे
चाहे मेरे द्वारे
तेरे भरोसे जीवन है
तू मारे या तारे

मेरा भरोसा रहे अटल
दिन दिन होवे गहरा
इस जीवन पर सदा रहे
श्री साईं का पहरा

एकांत वास में बैठ कर
सात समन्दर पार
तेरे भरोसे मैं जिऊँ
हे सच्ची सरकार

जय राम साईं
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on July 29, 2009, 02:02:10 PM
ॐ साईं राम

बहुत कुछ कहना है तुमसे बाबा
पर कह नही पाती हूँ
अक्सर शब्दों का पीछा करते करते
थक सी जाती हूँ

बैठ जाती हूँ फिर यूँ ही
चुपचाप, गुमसुम
तभी होले से,पीछे से
आ जाते हो तुम

कुछ नईं पँक्तियां
मेरे कानों मे गुनगुनाते हो
शब्दों के ताने बाने
मुझे तुम सुनाते हो

थमा देते हो लेखनी
फिर मेरे हाथों में
चढ जाते हैं कई शब्द
ज़िन्दगी के खातों में

तुम्हारी मीठी सी महक लेकर
फिर नई कविता उभर आती है
बस यूँ ही तेरे ख्यालों में
ये उम्र गुज़री जाती है

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Ramesh Ramnani on July 30, 2009, 07:55:34 AM
जय सांई राम।।।
 
एक बार फिर लाजवाब कृति। अति सुन्दर। बहुत खूब। बाबा की प्यारी दुलारी लाडली अपनी सुरेखा बहन। बाबा सदा कृपा बनाये रखें। 

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई


ॐ सांई राम।।।
Title: Re: HAPPY FRIENDSHIP DAY
Post by: saisewika on August 01, 2009, 04:46:18 PM
ॐ साईं राम

सखा भाव से कीजिेए
साईं हमें स्वीकार
मित्र रूप में दीजिए
हमको अपना प्यार

दोस्त बना लो हमको साईं
जैसे भक्त थे शामा
तुम्हीं हमारे कृष्ण हो साईं
समझो हमें सुदामा

योग्य बना दो,क्षमता दे दो
तुम्हें दोस्त हम कह लें
एक दिवस तो संग में तेरे
सखा रूप में रह लें

तुमसे दिल की बातें कर लें
सारे सुख दुख बांटे
इस मित्र दिवस को साईं
आओ ऐसे काटें

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Ramesh Ramnani on August 01, 2009, 11:19:10 PM
जय सांई राम।।।
 
दोस्त रूप में
साथ ही तो हूँ सदा तुम्हारे
बोलता भी हूँ
तुम सुनते भी हो
लेकिन, निश्चय ही अभी समझ
नही पाते हो
एक द्वार है नया
आयाम है अपरिचित
भाषा है अनजान
पर धैर्य रखो
धीरे धीरे सब समझ पाओगे
शब्दहीन संवाद मे दीक्षा दे रहा हूँ
मौन हो सुनते रहो
समझने की अभी चिन्ता ही न करो
क्योंकि उससे भी मौन भंग होता है
और, मन गति करता है
अभी तो बस सुनो ही
क्योंकि मनमीत
हो मेरे सदा
भेद नही है तुममें
मुझमे

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई


ॐ सांई राम।।।
Title: Re: तेरे नाम का तराना
Post by: saisewika on August 07, 2009, 06:35:11 AM
ॐ साईं राम

इस देह में हे साईं
जो सांसें आती जाती हैं
संग संग में मेरे देवा
बस तुझको ही ध्याती हैं

हर श्वास श्वास मेरी
साईं तुझको है पुकारे
तू खुद ही आ के सुन ले
मेरे मीत मेरे प्यारे

हाँ मुझमें गूँजता है
तेरे नाम का तराना
मेरी साँसे गाती रहती
हैं तेरे नाम का ही गाना

मेरे दिल की धडकनें भी
हर पल है ताल देती
हाथों से बजती ताली
सुर लय का काम देती

जय साईं राम कह कर
मैं झूम सी हूँ जाती
तेरा नाम ले के देवा
हर सुख मैं हूँ पाती

बन के मेरा सहारा
साईं गीत बन गया है
मैं गुनगुनाती रहती हूँ
वो संगीत बन गया है

ये अरज है तुमसे बाबा
ये लय ना मेरी टूटे
चलता रहे तराना
जब तक ये सांस छूटे

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Ramesh Ramnani on August 08, 2009, 08:06:28 AM
जय सांई राम।।।

एक बार फिर नमन् सांई के गीतों को गुनगुनाने वालों को।

मांग रहे है लोग-मदिंरो में, मस्ज़िदों मे, गुरूद्वारों मे, शिवालयों में, प्रार्थना नही हो रही है। मंदिर-मस्ज़िद मे जाता ही गलत आदमी है। जिसे प्रार्थना करनी हो वह कंही भी कर लेगा। जिसे प्रार्थना करने का ढंग आ गया,  सलीका आ गया, वो जहां भी है वहीं कर लेगा। यह सारा संसार ही उसका है,  उसका ही मंदिर है, उसकी ही मस्ज़िद है। यह स्मरण आ जाए तो जब आंख बंद की, तभी मंदिर खुल गया, जब हाथ जोड़े तभी मंदिर खुल गया, जंहा सिर झुकाया वहीं उसकी प्रतिमा स्थापित हो गयी।

हर चट्टान में उसी का द्वार है।
और हर वृक्ष मे उसी की खबर है।
कहां जाना है और?
तेरे कूचे मे रहकर
मुझको मर मिटना गवारा है
मगर दैरो-हरम की खाक
अब छानी नही जाती

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई


ॐ सांई राम।।।

Title: Re: श्रद्धा और सबुरी
Post by: saisewika on August 10, 2009, 07:28:24 AM
ॐ साईं राम


साईॅ खडे हैं द्वार पे
देखो हाथ पसार
दो पैसे की दक्षिणा
मांग रहे सरकार

पहला पैसा श्रद्धा का
भक्ति भाव भरपूर
लेशमात्र भी कम हो तो
लेंगे नहीं हुजूर

श्रद्धा पूरी चाहिए
ज्यों पूर्णिमा चन्द्र
कष्ट ताप संताप से
होवे ना जो मंद

पर्वत जैसा अटल रहे
भक्तों का विश्वास
भ्रम संशय तो हो नहीं
ना होवे कोई आस

श्रद्धा से भक्ति बढे
जगे प्रेम का भाव
घट घट देखे साईं को
चढे मिलन का चाव

दूजी दक्षिणा सबुरी की
धीरज धरती जैसा
साईं भक्त से मांग रहे
यही दूसरा पैसा

कष्ट देखकर सामने
धैर्य ना डगमग होवे
सब्र करे, ना विचलित हो
भक्ति भाव ना खोवे

झंझावत तूफान हो
या दुख का हो सागर
छलक छलक कर गिरे नहीं
भक्ति रस की गागर

सब्र संपदा अति सुखद
साईं की अति प्यारी
जिसकी गाँठ ये संपदा
साईं प्रेम अधिकारी

धृति धारणा धैर्य धर
मन निर्मल हो जावे
जिसके हृदय सबुरी हो
वही साईं को पावे

सारे जग के दाता की
भक्तों से दरकार
श्रद्धा और सबुरी ही
मांगे देवनहार

जय साईॅ राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Ramesh Ramnani on August 18, 2009, 07:29:49 AM
जय सांई राम।।।

बहुत खूब सुरेखा जी। वाह।

जहां तुम्हारी आंखें भर जाएं; वंही झुक जाना। जिससे तुम्हारे नेत्र तृप्त हों; वहीं झुक जाना। जिससे तुम्हें सुख की झलक मिले, वहीं झुक जाना। जहां शांति का आकाश खुले; वहीं झुक जाना।  यही अर्चना है, यही प्रार्थना है, यही बंदगी है बाबा के प्रति।

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

ॐ सांई राम।।।
Title: Re: सबका मालिक एक
Post by: saisewika on September 03, 2009, 07:56:29 AM
ॐ साईं राम


साईं नाम सुनाम के
परम भाव अनेक
अति उत्तम इक भाव है
सबका मालिक एक

द्वैत भाव की तोड कर
बीच खडी दीवार
ईश सभी का एक ही
बतलाया करतार

प्राणी प्राणी में करो नहीं
जाति धर्म का भेद
प्रेम सभी के ह्रदय बसे
होवे नहीं विच्छेद

जन्म से ऊँचा कोई नहीं
ना नीचा कोई धर्म
ऊँचा उसी को जानिए
जिसके ऊँचे कर्म

तेरा मेरा करे नहीं
हिंदु या इस्लाम
जन जन बाँटे प्रेम जो
सज्जन वही सुजान

सम है सभी में आत्मा
सम है सभी में प्राण
एक ही साईं सबका है
सबमें साईं मान

सबका मालिक एक है
अल्लाह कहो या राम
रस्ते चाहे अलग अलग
सबका एक ही धाम

सागर में नदिया कई
आकर के मिल जावें
छोड के निज अस्तित्व को
सागर ही कहलावें

ऐसे ही सब आत्मा
परमात्मा का अंश
एक में जाकर सभी मिलें
होवें तभी अनन्त

जय साईं राम
Title: Re. प्रेम याचना
Post by: saisewika on September 08, 2009, 08:31:25 AM
ॐ साईं राम

साईं पावन प्रेम का
मुझे दीजिए ज्ञान
परमात्मा से प्रेम का
पाऊँ अनुपम दान

तुमसे ही बस प्रीति हो
मोह माया को त्याग
सच्ची लगन हो प्रभु से
भक्तिमय अनुराग

तेरे प्रेम में मैं पडूँ
भूल के जग के बन्ध
प्रेममय रस पान करूँ
पाऊँ मैं मकरन्द

तेरी प्रेम नगरी में मैं
करूँ प्रेम से वास
तुझ से जोडूँ नाता मैं
बंधू प्रेम के पाश

तेरे प्रेम में झंकृत हों
मेरे मन के तार
प्रेम नाद छिड जावे तो
छूटें सभी विकार

दुख आवे,सुख जावे चाहे
जीवन में सौ बार
तुमसे प्रीति कम ना होवे
बढता जाए प्यार

तेरे प्रेम वियोग में
मैं रोऊँ और बिलखूँ
प्रेम पगी दृष्टि से साईं
तुझको ही मैं निरखूँ

प्रियतम साईं तुम्हें लिखूँ
भक्ति भाव की पाती
शब्दों में हो प्रेम गंग
अमृत रस बरसाती

प्रेममयी भक्ति करूँ
पूर्ण भाव के संग
रोम रोम हो प्रेम भरा
मन में प्रेम उमंग

तुझमें श्रद्धा सबुरी ही
विशुद्ध प्रेम का रूप
तुझसे प्रेम विरक्त जो
पडे अन्ध के कूप

जय साईं राम
Title: Re: तन्हाई
Post by: saisewika on September 10, 2009, 09:39:45 AM
ॐ साईं राम

वो अक्सर मुँह अँधेरे ही चली आती थी
मैं चाहूँ ना चाहूँ, मेरे पास ही मँडराती थी

मैंने कई बार उसे दुत्कारा और भगाया था
पर अक्सर उसे अपने नज़दीक ही पाया था

सच बताऊँ, मैं उससे बहुत डरती थी
वो आज ना आए, हर दिन दुआ करती थी

पर रोज़ की तरह, वो उस दिन भी चली आई
मुझे देखा और व्यंग्य से मुस्कराई

मैंने कहा- तुम रोज़ क्यूँ चली आती हो
जानती तो हो कि तुम मुझे बिल्कुल नहीं भाती हो

वैसे भी नहीं चाहिेए मुझे तु्म्हारा साथ
क्योंकि मेरे साथ हरदम हैं मेरे साईं नाथ

वो बोली दिल के बहलाने को तुम्हारा ये ख्याल अच्छा है
पर सच बताऊँ, साईं से तुम्हारा प्यार अभी कच्चा है

अगर ऐसा ना होता तो मैं तुम्हारे वजूद पर छा नहीं सकती थी
और जिस दिल में साईं रहते हों,उसमें मैं समा नहीं सकती थी

अच्छा सच बताओ-
जब तुम नहीं देखती, तब भी तुम्हारे घर में टी वी कयूँ चलता रहता है
क्यूँ तुम भरम पालती हो कि तुम अकेली नहीं,तुम्हारे संग कोई रहता है

क्यूँ तुम्हारे कान दरवाज़े की घंटी पर लगे रहते हैं
और क्यूँ अक्सर तुम्हारी आँखों से आँसू बहते हैं

वैसे तुम ही नहीं, बहुत से लोग मुझ से घबराते हैं
और कई तो भीड में भी मुझे अपने साथ ही पाते हैं

यह कह कर तन्हाई "खामोश" हो गई, और मुझे निहारा
पहली बार मुझे उसका साथ लगा अनोखा और प्यारा

उसने आज मुझे एक कडवा सच बतलाया था
पल भर में ही दूर हो गया मायूसियों का साया था

मैनें कहा शुक्रिया तन्हाई, तुम्हारी बातों ने आज मुझे चेताया है
और साईं साथ हों तो तुम्हारा वजूद नहीं ये सच मुझे समझाया है

अब तुम मेरे आस पास रहो मुझे फर्क नहीं पडता
और तुम कहीं आ ना जाओ,ये सोच कर दिल नहीं डरता

अब मैं और मेरा साईं अक्सर, बातें करते रहते हैं
और सुना है मेरे पीछे लोग मुझे दिवाना कहते हैं

जय साईं राम
Title: Re: नौकरी की अरजी
Post by: saisewika on September 14, 2009, 07:15:43 AM
ॐ साईं राम

तेरी नौकरी मुझे चाहिए
हे साईं अभिराम
चाकर मुझे बना लो, दे दो
श्री चरणों में स्थान

चौबिस घंटे, सातों दिन की
ड्यूटी मुझको दे दो
बचा समय जो इस जीवन का
निज सेवा में ले लो

वेतन में तुम मझको देना
श्रद्धा और सबूरी
इतना वेतन हो कि स्वामी
तुम से ना हो दूरी

सिक्क लीव मुझे नहीं चाहिए
ई एल तुम ना देना
इस जीवन का हर क्षण दाता
अपने नाम कर लेना

टी ए, डी ए जब हो जाए
कभी ड्यू जो मेरा
शिरडी धाम का लगवा देना
साईं तुम इक फेरा

अप्रेज़ल के समय में दाता
मेरे दोष निरखना
सच्ची झूठी भक्ति को तुम
साईं आन परखना

लेश मात्र भी कमी जो पाओ
डिमोशन चाहे करना
जैसे कर्म हो मेरे, वैसे
फल से झोली भरना

बोनस में मुझको दे देना
दरशन अपना प्यारा
तेरी नौकरी में ही बीते
मेरा जीवन सारा

प्रमोशन जब भी करना चाहो
तब इतना ही करना
भक्ति की ऊँची सीढी पर
साईं मुझको धरना

रिटायरमेंट का समय जो आवे
तुम खुद ही आ जाना
इस जीव को दाता अपने
सँग तुम्हीं ले जाना

अरजी मैनें डाली है, तुम
इस पर करो विचार
तेरी नौकरी पा जाऊँ तो
हो जावे उद्धार

जय साईं राम

 
Title: Re: इस जग में तुम सबसे सुंदर
Post by: saisewika on September 17, 2009, 10:19:15 AM
ॐ साईॅ राम

इस जग में तुम सबसे सुंदर
हे मेरे चित्त चोर
तुम्हें निरख नित्त थिरके मेरे
चंचल मन का मोर

गणपति जैसे मंगलदायक
शुभसूचक सुखदायी
करूणामयी कल्याणी मूरत
तेरी साईं सहाई

सत्यवक्ता तुम राम सरीखे
अति विनम्र, गंभीर
सदाचारी, कोमल और निर्मल
जीवनदायी समीर

रवि तेज का पुँज है मुख पर
दमके स्वर्ण समान
नयनों में शीतलता जैसे
गगन में निकला चाँद

वैरागी शिव शंकर जैसे
महासमाधि में लीन
राजधिराज होकर भी रहते
ज्यों दीनों के दीन

कर्मयोगी और कर्मठ ऐसे
जैसे कृष्ण कन्हाई
जड चेतन और सारी सृष्टि
साईं में ही समाई

दुर्गा मइया जैसी ममता
तव नयनों से झलके
ह्रदय से प्रेम गंग की धारा
भक्तों के हित छलके

तुझमें देखूँ राम कृष्ण को
शिव को तुझमें ही पाऊँ
ममता की मूरत मैं तुझपे
वारि वारि जाऊँ

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Admin on September 17, 2009, 11:38:45 AM
Another masterpiece from Surekha ji.

Sai Ram
Title: Re: बाबा की यह व्यथा- 2
Post by: saisewika on September 24, 2009, 11:05:33 AM
ॐ साईं राम

बडे दिनों के बाद कल
सपनें में बाबा आए
अंजलि भर श्री चरण में मैंने
श्रद्दा सुमन चढाए

हाथ जोड फिर पूछा उनसे
इतने दिन के बाद
भक्त जनों की साईं नाथ को
अब आई है याद

बाबा बोले निकल गया था
मैं कुछ ज़्यादा दूर
समझ रहा था खुद को मैं
व्याकुल और मजबूर

शीश झुकाकर मैंने पूछा
साईं ये समझा दो
परम विधाता व्याकुल कैसे
होते हैं बतलादो

अति मधुर वाणी में बाबा
बोले हौले हौले
अपने व्याकुल मन के भेद
बाबा ने यूँ खोले

मेरे प्रिय भक्तों ने मुझ पर
लगा दिए आरोप
उनके दिल मे क्रोध भरा है
और भरा आक्रोश

उनको लगता मेरे कारण
वो हर दुख सहते हैं
फिर भी जाने क्यूँ वो खुद को
भक्त मेरा कहते हैं

अक्सर कोई इच्छा ले कर
वो द्वार मेरे आते हैं
अगर ना पूरी कर पाऊँ तो
मुझ पर झल्लाते हैं

मन्नत में कभी कोई भक्त
चरित्र पारायण करता है
कभी कोई नव वार का व्रत
इस हेतु धरता है

फिर मुझसे मनचाहा पाना
उसका हक हो जाता है
पूजा और वरों का लिक्खा
भक्त जनों नें खाता है

नहीं जानते वो दुख उनका
मेरा दुख होता है
उनके दुख में मैं जगता हूँ
जब ये जग सोता है

मैं चाहता हूँ कर दूँ मैं
हर भक्त की इच्छा पूरी
लेकिन ऐसा ना करने की
मेरी है मजबूरी

समय से पहले,भाग्य से ज़्यादा
किसी को कुछ नहीं मिलता
कर्मों के ग़र बीज ना हों तो
कोई फूल नहीं खिलता

लेकिन मेरे भोले भक्त
मुझसे है आस लगाते
अपनी झोली फैलाते है
मेरे दर पर आते

मैं पूरी कोशिश करता हूँ
कर्म बन्ध मैं काटूँ
अपने भक्तों के जीवन में
ढेरों खुशियाँ बाँटू

लेकिन ऐसा ना कर पाऊँ
तो ये मन रोता है
भक्त समझते उनका साईं
कहीं पडा सोता है

अपने भक्तों को मैं कैसे
समझाऊँ ये बात
हानि लाभ जीवन मरण
यश अपयश विधि हाथ

सब जीवों के कर्म फलों का
अपना ताना बाना है
जितना जिसकी बही में लिक्खा
उतना सुख दुख पाना है

इतना कह कर मौन हो गये
साईं पालन हारे
सबकी चिन्ता करने वाले
जन जन के रखवाले

श्री चरणों में मस्तक धरकर
और जोडकर हाथ
सविनय अरज करी तब मैंने
भक्ति भाव के साथ

गत जन्मों के कर्म बन्ध के
जितने भी है भार
ढोने को उन सब को साईं
हम भी है तैयार

बस अब कभी दुखी ना होना
साईं मेरे स्वामी
हँस कर दुख सहने की शक्ति
दे दो अंतरयामी

जय साईॅ राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saib on September 24, 2009, 12:27:47 PM
साईं सेविका जी,
सच कहा आपने, कई बार लोग साईं के साथ भी दुकानदार जैसा व्यव्हार करते है . कुछ सो या हज़ार या लाख जप या साईं सतचरित्र के कुछ पठन साईं को दो और बदले में नौकरी, या मनचाहा साथी या स्वास्थ्य या व्यापर में लाभ कुछ भी. पर लोग यह भूल जाते है की वोह किसके साथ सौदा कर रहे है . जिसके नाम का ध्यान ब्रह्माण्ड में निरंतर चलता रहता है . न केवल चेतन बल्कि अवचेतन जैसे वृक्ष, नदिया, पर्वत, सागर भी जिसका निरंतर गुणगान कर रहे हों, उसे हमारे कुछ हज़ार या लाख जपोँ से क्या अंतर पड़ेगा . यह तो ऐसा ही है किसी करोड़पति को १ रुपया देना . लोग भूल जाते है की कर्मो के रोग के इलाज में समय तो लगता ही है, जैसे किसी को गलत खान पान की आदत के कारण रोग हो जाये  तो ठीक होने में तो समय लगेगा ही . डॉक्टर को यह तो नहीं कह सकते की तुंरत ठीक कर दो और जितनी चाहे फीस ले लो. इसी तरह कर्मो के फल का रोग भी वक़्त आने से ही ठीक होता है. जाप तो दवाई की तरह है जो ठीक होने में मदद करता है. पर जिस तरह ठीक होने के बाद भी आदते न बदली जाएँ तो रोग फिर लग जाता है , उसी तरह यदि मुराद पूरी होने के बाद भी साईं के नाम से न जुड़े रह सके तो जल्द ही माया फिर से पुरानी गत में ले जाती है और फिर वही सिलसिला चल पड़ता है.

खुशनसीब हैं वोह जिन्होंने साईं से साईं को माँगा,
वरना तो क्या कहें कुछ सिक्को की खनक में खो गए,
कुछ हूरों की चमक में, कुछ महलों की दमक में,
कुछ नाम लेकर रह गए, कुछ दाम लेकर चल दिए .

हर आत्मा को एक दिन परमात्मा में ही विलय होना होता है, सब उसी के अंश है . पर यह तभी संभव हो पाता है जब हिरदय में उस इश्वर के प्रति प्रेम उत्पन हो, और कोई लालसा शेष न रह जाये . तभी तो सब योगों में भक्ति योग को सर्वश्रेस्ट कहा गया है.

साईं सब पर किरपादृष्टि बनाये रखें, सबका जीवन सुख व मंगलमय हो.

ॐ श्री साईं राम !         
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on September 25, 2009, 01:33:17 PM
ॐ साईं राम

सही कहा Saibji॰॰॰॰ बाबा की भक्ति अनेकों के लिए एक व्यापार और सौदेबाजी सी लगती है॰॰॰मन माँगी मुराद मिल गई तो साईं की वाह वाह, नहीं तो साईं धोखेबाज॰॰ऐसे ही कितनी गठरियाँ कर्मों की हम अपने सिर पर लादते जा रहे हैं॰॰॰॰॰
बस इतनी ही अरदास है साईं से कि वो हम सब को सद बुद्धि दें

जो मेरे हित में है हे दाता
सो ही देना मुझे विधाता

जय साईं राम
Title: Re: सीमोंल्लंघन.........
Post by: saisewika on September 25, 2009, 02:07:52 PM
ॐ साईं राम

समय॰॰॰॰॰॰॰ २॰३० दोपहर
दिवस॰॰॰॰॰॰॰विजयादशमी १९१८
स्थान॰॰॰॰॰॰॰शिरडी
भाव॰॰॰॰॰॰॰॰॰सभी शिरडी वासियों के



सीमोंल्लंघन करके साईं
चले गए तुम आज
ना मुडके देखा हमको
ना तुमने दी आवाज़

गरीबों का मसीहा
दुखियों का था सहारा
बस छोड गया देह को
किया सबसे ही किनारा

कितनी ही आँखें भीगी
कितने ही प्राण छूटे
कितने ही ख्वाब बिखरे
कितने ही सपने टूटे

ना चिडिया कोई चहकी
ना फूल मुस्कुराए
ग़मों के काले साऐ
हर ज़िन्दगी पे छाए

दसों दिशाऐं सिसकीं
पृथ्वी का सीना काँपा
दुनिया के हर ज़र्रे में
दुखों का सागर व्यापा

तुम चल दिए तो चल दिया
दुनिया का नूर सारा
चहूँ ओर ही फैला है
कालरात्री का अँधियारा

वो करुणामयी आँखे
आशिश में उठा हाथ
श्री चरणों की शरण वो
उन सब का छूटा साथ

वो भक्ति भाव लहरी
हर हृदय में थी रहती
शिरडी के हर कूचे में
साईं नाम धुन थी बहती

मस्जिद में गूँजता वो
शँख नाद न्यारा
हर पल धधकती धूनि
प्रवचन वो प्यारा प्यारा

कैसे जिऐंगे देवा
तुम इतना तो बता दो
तुम्हारे बिना जीने की
तुम हमको ना सजा दो

निवेदन है तुम्हीं से
ये भक्ति भाव भीना
ले जाओ हमें सँग में
हमको नहीं है जीना

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saib on September 26, 2009, 10:58:51 AM
क्यों होता है ऐसा बाबा
इस जग में रसना बसना
तुमरे भक्तों का,
न मिलता है चैन
दिन हो या हो रैन
मन रहे सदा बचैन
तुमरे दर्शन को.
अखियाँ रोएँ
मन पुकारे
आजा साईं
अब तो मोरे
देर न कर
पल पल जीवन बीता जाये
यही आस लिए तो जीता जाये
साईं मोरे आएंगे
इक पल दरस दिखाएँगे
जीने की चाह नहीं
दिखती कोई राह नहीं
मन कोई समझ न पाए
क्यों गीत विरह के गाये
अब कोई कैसे समझाए
साईं से ये कैसी प्रीत
अजब पहेली कौन सुल्जाये
साईं आजा देर न कर
समय का अब फेर न कर
एक बार जो दर्शन कर जाऊं
चैन सदा सदा के लिए पाऊँ !

Title: Re: विजयादशमी को महासमाधि
Post by: saisewika on September 28, 2009, 09:02:34 AM
ॐ साईं राम

साईं प्रभु जी हो गए
महासमाधि में लीन
अश्रुपूरित नयन लिए
भक्त खडे बन दीन

काल कराल आन खडा
द्वारकामाई के द्वारे
स्वयं प्रभु की आज्ञा हो तो
यम भी कैसे टारे

विजयादशमी का दिवस चुना
महाप्रयाण के हेत
परम ईश में प्रभु मिले
साधन सभी समेट

सावधान किया साईं ने
भक्त जनों को आप
अन्तस दानव मार कर
हो जाओ निष्पाप


मार सको तो मार दो
अपनी "मैं" का रावण
सदगुरू साईं की शिक्षा को
कर लो हृदय में धारण

भेदभाव की भेद कर
मन में खडी दीवार
मानव मानव से करे
भातृवत अति प्यार

काम क्रोध मद मत्सर लोभ
वैर द्वेष कुविचार
अहंकार सब त्याग कर
क्षमा हृदय में धार

यही दशहरा पर्व है
दमन करो निज पाप
दलो सभी विकार को
बनो शुद्ध और पाक

जय साईं राम
Title: Re: कैसे साईं कैसे
Post by: saisewika on October 02, 2009, 10:27:45 AM
ॐ साईं राम

कैसे साईं कैसे

कैसे प्यार तुम्हारा पाऊँ
कैसे पास तुम्हारे आऊँ

कैसे साईं कैसे

कैसे नयन की प्यास बुझाऊँ
कैसे साईं तुझे रिझाऊँ

कैसे साईं कैसे

कैसे श्रद्धा रक्खूँ पूरी
कैसे धारण करूँ सबूरी

कैसे साईं कैसे

कैसे भक्ति कर लूँ सच्ची
कैसे पाऊँ शिक्षा अच्छी

कैसे साईं कैसे

कैसे बेडा होगा पार
कैसे खुलेंगे मोक्ष के द्वार

कैसे साईं कैसे

साईं भेद ये सारे खोलो
श्री मुख से कुछ वचन तो बोलो

कोई मार्ग सुझाओ साईं
भक्त प्रेम की तुम्हें दुहाई

दुविधा खडी बडी है भारी
सुलझाओ हे साईं मुरारी

इनका उत्तर मुझको दे दो
ईश मिलन के मर्म को भेदो

जय साईं राम
Title: Re: साईं नाम चालीसा
Post by: saisewika on October 06, 2009, 02:07:54 PM
ॐ साईं राम


दो अक्षर से मिल बना
साईं नाम इक प्यारा
लिखते जाओ मिट जाएगा
जीवन का अँधियारा


ॐ साईं राम है
महामंत्र बलवान
इस मंत्र के जाप से
साईं राम को जान


ॐ साईं राम कह
ॐ साईं राम सुन
साईं नाम की छेड ले
भीतर मधुर मधुर सी धुन


जागो तो साईं राम कहो
जो भी सन्मुख आए
साईं साईं ध्याये जो
सो साईं को पाए


साईं नाम की माला फेरूँ
साईं के गुण गाऊँ
यहाँ वहाँ या जहाँ रहूँ
साईं को ही ध्याऊँ


साईं नाम सुनाम की
जोत जगी अखँड
नित्य जाप का घी पडे
होगी कभी ना मन्द


भक्ति भाव की कलम है
श्रद्धा की है स्याही
साईं नाम सम अति सुंदर
जग में दूजा नाहीं


साईं साईं साईं साईं
लिख लो मन में ध्यालो
साईॅ नाम अमोलक धन
पाओ और संभालो


साईं नाम सुनाम है
अति मधुर सुखदायी
साईं साईं के जाप से
रीझे सर्व सहाई


सिमर सिमर मनवा सिमर
साईंनाथ का नाम
बिगडी बातें बन जाऐंगी
पूरण होंगे काम


बिन हड्डी की जिव्हा मरी
यहां वहां चल जाए
साईं नाम गुण डाल दो
रसना में रस आए


सबसे सहज सुयोग है
साईं नाम धन दान
देकर प्रभू जी ने किया
भक्तों का कल्याण


घट के मंदिर में जले
साईं नाम की जोत
करे प्रकाशित आत्मा
हर के सारे खोट


साईं नाम का बैंक है
इसमें खाता खोल
हाथ से साईं लिखता जा
मुख से साईं बोल


साईं नाम की बही लिखी
कटे कर्म के बन्ध
अजपा जाप चला जो अन्दर
पाप अग्नि हुई मन्द


साईं नाम का जाप है
सर्व सुखों की खान
नाम जपे, सुरति लगे
मिटे सभी अज्ञान
 

मूल्यवान जिव्हा बडी
बैठी बँद कपाट
बैठे बैठे नाम जपे
अजब अनोखे ठाठ


मुख में साईं का नाम हो
हाथ साईं का काम
साईं महिमा कान सुने
पाँव चले साईं धाम


साईं नाम कस्तूरी है
करे सुवासित आत्म
गिरह बँधा जो नाम तो
मिल जाए परमात्म


साईं नाम का रोकडा
जिसकी गाँठ में होए
चोरी का तो डर नहीं
सुख की निद्रा सोए
 
साईं नाम सुनाम का
गूँजे अनहद नाद
सकल शरीर स्पंदित हो
उमडे प्रेम अगाध

मन रे साईं साईं ही बोल
मन मँदिर के पट ले खोल
मधुर नाम रस पान अमोलक
कानों में रस देता घोल

श्री चरणों में बैठ कर
जपूँ साईं का नाम
मग्न रहूँ तव ध्यान में
भूलूँ जाग के काम

साईं साईं साईं जपूँ
छेड सुरीली तान
रसना बने रसिक तेरी
करे साईं गुणगान

साईं नाम शीतल तरू
ठँडी इसकी छाँव
आन तले बैठो यहीं
यहीं बसाओ गाँव

साईं नाम जहाज है
दरिया है सँसार
भक्ति भव ले चढ जाओ
सहज लगोगे पार

साईं नाम को बोल कर
करूँ तेरा जयघोष
रीझे राज धिराज तो
भरें दीन के कोष

बरसे बँजर जीवन में
साईं नाम का मेघ
तन मन भीगे नाम में
बढे प्रेम का वेग

उजली चादर नाम की
ओढूँ सिर से पैर
मैं भी उजली हो गई
तज के मन के वैर

सिमरन साईं नाम का
करो प्रेम के साथ
धृति धारणा धार कर
पकड साईं का हाथ

साईं नाम रस पान का
अजब अनोखा स्वाद
उन्मत्त मन भी रम गया
छूटे सभी विषाद

साईं नाम रस की नदी
कल कल बहती जाए
मलयुत्त मैला मन मेरा
निर्मल करती जाए

साईं नाम महामँत्र है
जप लो आठो याम
सकल मनोरथ सिद्ध हों
लगे नहीं कुछ दाम

साईं नाम सुयोग है
जो कोई इसको पावे
कटे चौरासी सहज ही
भवसागर तर जावे

पारस साईं नाम का
कर दे चोखा सोना
साईं नाम से दमक उठे
मन का कोना कोना

साईं नाम गुणगान से
बढे भक्ति का भाव
श्रद्धा सबुरी सुलभ हो
चढे मिलन का चाव

मनवा साईं साईं कह
बनके मस्त मलँग
साईं नाम की लहक रही
अन्तस बसी उमँग

सरस सुरीला गीत है
साईं राम का नाम
तन मँदिर सा हो गया
मन मँगलमय धाम

पू्र्ण भक्ति और प्रेम से
जपूँ साईं का नाम
श्री चरणों में गति मिले
पाऊँ चिर विश्राम

जय साईं राम

Title: Re: बस इतनी सी अरज है
Post by: saisewika on October 13, 2009, 08:37:21 AM
ॐ साईं राम

यहाँ रहूँ या वहाँ रहूँ
जहाँ में चाहे जहां रहूँ

तझसे ही बस प्रेम करूँ
तेरा ही बस ध्यान धरूँ

तुझमें ये मन रमा रहे
नाम मनन का समा रहे

तेरी चर्चा में सुख पाऊँ
हर क्षण तुझको सन्मुख पाऊँ

नयनों में तव रूप भरा हो
तुझमें श्रद्धा भाव खरा हो

कोई ऐसा साँस ना आवे
संग जो तेरा नाम ना ध्यावे

नाम तेरा ले सोऊँ जागूँ
तुझसे बस तुझको ही माँगूं

तुझमें ही तल्लीन रहूँ मैं
तेरे भाव में लीन रहूँ मैं

चढ जाए मुझपे नाम खुमारी
मर जाए भीतर का संसारी

ठोको पीटो जैसे मुझको
स्व साँचे में ढालो मुझको

बस इतनी सी अरज है मेरी
तुझसे जुडना गरज है मेरी

जय साईं राम
Title: Re: तव दर्शन की प्यासी अखियाँ
Post by: saisewika on October 19, 2009, 07:40:26 AM
ॐ साईं राम


तव दर्शन की प्यासी अखियाँ
तुम बिन रहे उदासी अखियाँ


सब में ढूँढे तुझको अखियाँ
दुख देती हैं मुझको अखियाँ


राह तकती हैं तेरा अखियाँ
माने कहा ना मेरा अखियाँ


हर आहट पे चौंकें अखियाँ
बह जाती बे मौके अखियाँ


जागे रात रात भर अखियाँ
भर आती हर बात पे अखियाँ


तुझे देख मुस्काती अखियाँ
सब बातें कह जाती अखियाँ


तुझसे जुडी घनेरी अखियाँ
मेरी हैं या तेरी अखियाँ


जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: drashta on October 19, 2009, 02:19:14 PM
Om Sai Ram.

Dear Saisewika ji, your poems are simply beautiful. Every verse shows your love and devotion for Baba. I bow down before you. Thank you for sharing such lovely poems with us.

Om Sai Ram.
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on October 20, 2009, 01:12:45 PM
OM SAI RAM

Thank you so very much Drashtaji for your kind and inspiring words.  Its all Baba's wish.  I cannot write a word without his will and grace. He is the doer of all things.

Thanks once again. Your words mean a lot to me.

JAI SAI RAM
Title: Re: ना सौदा ना व्यापार
Post by: saisewika on October 23, 2009, 12:06:04 PM
ॐ साईं राम

ना कोई कौल किया है
ना करार किया है
साईं हमने तुमसे बस
प्यार किया है

ना कोई दावा किया है
ना ही वादा लिया है
साईं तुमसे जुडने का
इरादा किया है

ना कोई शर्त रक्खी है
ना ही माँग रक्खी है
तेरे पैरों तले हे नाथ
दिल और जान रक्खी है

ना मुराद माँगी कोई
ना ही आस लगाई है
बस दिल में तेरे लिए
इक मस्जिद बनाई है

ना कोई रसमें ही निभायी
ना ही कसमें खाई हैं
दिल की मस्जिद में तुझे
बैठाया हे साईं है

ना ही सौदा किया है
ना व्यापार किया है
तुझपे साईं तन मन
ये वार दिया है

जय साईं राम
Title: Re: बाबा जी के भक्त- १ (श्यामा जी)
Post by: saisewika on October 28, 2009, 07:45:11 AM
ॐ साईं राम

माधवराव देशपाँडे जी
शिरडी धाम में रहते थे
बहत्तर जन्मों से साईं सँग थे
ऐसा बाबा कहते थे

बच्चों को शिक्षा देते थे
गुरु धरे साईं राम
सुबह शाम बस साईं जपना
यही प्रिय था काम

बडे प्रेम से बाबा जी ने
उनको श्यामा नाम दिया
भक्ति पथ पर उन्हें बढाने
का बाबा ने काम किया

धर्म ग्रन्थ कभी उनको देकर
बाबा ने कृतार्थ किया
संकट और सुख में भी उनका
साईं नाथ ने साथ दिया

बाबाजी के भक्त प्रिय थे
थोडे गुस्से वाले
लेकिन सब कुछ कर रक्खा था
साईं नाथ के हवाले

बाबा जी से तनिक भी दूरी
उन्हें नहीं भाती थी
बिछड ना जाँए देव, सोच कर
जान चली जाती थी

जैसे शिव मँदिर के बाहर
नन्दी खडे रहते हैं
ऐसे बाबा सँग हैं श्यामा
भक्त यही कहते हैं

दुखियों के कष्टों को श्यामा
बाबा तक पहुँचाते थे
बदले में उन भक्त जनों की
ढेर दुआँऐं पाते थे

श्यामा जी के रोम रोम में
साईं यूँ थे व्याप्
उनकी निद्रा में चलता था
साईं नाम का जाप

धन्य जन्म था श्यामा जी का
बाबा का सँग पाया
गत जन्मों के शुभ कर्मों से
जीव देव सँग आया

युगों युगों तक दिखा ना सुना,
था वो बँधन ऐसा
साईं ईश और श्यामा भक्त
के बीच बना था जैसा

जय साईं राम
 
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saib on October 29, 2009, 09:27:59 PM
Dear Saisewika,

Thanks for sharing story of some of divine devotees of Baba and Reminding us (or atleast me) that there are billions of beloved devotees, and who can have more fortune than those who get blessings directly through Baba, Sometimes We feel that we are the most loyal and beloved devotee of Baba, Who can more love to Baba than us, But when open the eyes, everyone (including all elements of nature) are in devotion of Lord, where we stand perhaps the last end of the line, for the Darshan and blessings of Baba. (Still as for Baba all bhakats are special at par)

Just Bow in the holy feet of all blessed and beloved devotees of Sai.

om sri sai ram!
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on October 30, 2009, 05:10:35 PM
OM SAI RAM

SAIRAM Saibji

While surfing the net, I came across a beautiful article about the devotees who come down along with the Lord to help the Supreme soul to show his leelas. The article is written by Anil Antony and it was so inspiring that I started to write poems about those true devotees of Baba. The article goes like this-

"When the Lord comes in human form, some devotees certainly recognize Him as God. However, such recognition of Krishna as God brings the concept that Krishna is omnipotent. This aspect immediately diverts even the devotees to get attracted towards solving their problems by using the omni potency of God. Thus the devotion becomes impure and the devotees are diverted to sideline of worldly affairs.

If Krishna remains as Krishna, this problem does not arise at all. The recognition of Krishna as God spoils the mind of the devotees. After recognition, the devotees are expected to travel in the right line, which is service to Him without aspiring any fruit. If the devotees go in this right line, then only they are said to be realized souls. If they take the loop line (using the super power for personal problems) from the point of recognition, they are as good as ordinary human beings. Therefore recognition of Krishna as God is not the end of the spiritual effort. This is a junction-station. If you proceed straight, you are a realized soul. From this point if you take the sideline, you are an ordinary human being.

In fact the ordinary human beings are always in search of God in human form for solving their problems. It is just like searching for oil wells in the ground. The search is for using the oil as a fuel for daily comforts. Therefore recognizing the human incarnation is of no use unless you proceed in the main line from that point. At this point, there are some guides to lead you to the right line. Such guides are the liberated souls who come down along with the Lord. They are scattered and mixed with the ordinary human beings. They recognize the Lord along with the other people. From this point of the recognition, the liberated souls proceed in the main line only without any deviation standing as guides for the devotees, who are with them standing at the point of recognition.

Therefore, the liberated soul is already realized soul who comes down along with the Lord to stand as a guide from the recognition point onwards. Thus the liberated souls are the close servants of the Lord who come down to participate in the divine play for fulfilling the divine mission. Seeing them as examples, at least some devotees may follow the main line along with them and may get liberated. A liberated soul is already a realized soul doing the spiritual effort (Sadhana) from the starting point to the end point to stand as an example for the human beings.

After recognizing the God, you can follow the path of the liberated soul who is acting as a devotee trying for success in the spiritual journey. The liberated souls will certainly succeed in their spiritual effort because they are already liberated and they try to achieve liberation only to guide others. Thus all the devotees who recognize the Lord without any proof and spontaneously participate in the service crossing over all the hurdles are the liberated souls."


I am sure that it was Baba's will that we acknowledge and appreciate his devotees , and the result was these few poems.....

JAI SAI RAM
Title: Re: बाबा जी के भक्त -२ ( म्हालसापति जी )
Post by: saisewika on October 31, 2009, 10:07:17 AM
ॐ साईं राम

म्हालसापति जी परम भक्त थे
बाबा जी के प्यारे
साईं नाथ के अँग सँग रहते
मस्जिद माई के द्वारे

बाबा जी को साईं नाम ले
म्हालसापति ने पुकारा था
बाबा ने भी प्रसन्न भाव से
प्यारा नाम स्वीकारा था

साईं उनको बडे प्रेम से
"भक्त" कहा करते थे
सुख दुख साईं प्रसाद मान कर
"भक्त" सहा करते थे

निष्काम भक्ति के प्रतीक भक्त थे
श्रद्धा थी भरपूर
धन तृष्णा और लोभ मोह से
रहते थे अति दूर

ना ही कोई इच्छा थी उनकी
ना ही थी अभिलाषा
बाबा के सँग यूँ रहते थे
ज्यों पानी सँग प्यासा

एक बार जाब साईं नाथ ने
महासमाधि लगाई
तीन दिवस तक प्राण चिन्ह भी
दिया नहीं दिखलाई

म्हालसापति बैठे रहे
पावन देह को गोद धरे
अडिग रह कर साईं नाथ की
प्रतीक्षा वो करते रहे

उनको था विश्वास कि देव
शीघ्र चले आऐंगे
भक्तों को बीच भँवर में छोड
साईं नहीं जाऐंगे

धन्य धन्य थे म्हालसापति जी
बाबा के रक्षक बने
घोर विरोध सह कर भी
साईं के सँग रहे तने

महासमाधि पर्यन्त "भक्त"
बाबा जी के साथ रहे
साया बन कर साईं नाथ का
सुख दुख उनके सँग सहे

बाबा जी की महासमाधि के
चार वर्ष के बाद
साईं में जा लीन हुए वो
मिला नाद से नाद

जय साईं राम
Title: Re: बाबा जी के भक्त -३ ( तात्या कोते पाटिल )
Post by: saisewika on November 02, 2009, 08:55:23 AM
ॐ साईं राम

बढ भागी थे तात्या कोते
मालिक के सँग रहते थे
बाबा उनको बडे प्रेम से
छोटा भाई कहते थे

भले बुरे का ज्ञान नहीं था
तात्या छोटे बालक थे
पर बाबा उनके रक्षक थे
बाबा उनके पालक थे

कभी कभी बाबा की बातें वो
सुनी अनसुनी कर देते थे
तब बाबा उन के कष्टों को
अपने ऊपर ले लेते थे

द्वारकामाई में बाबा के सँग
तात्या चौदह वर्ष रहे
तीन दिशा में पैर जोडकर
सुख दुख सारे सुने कहे

क्या हित में है तात्या के
ये बाबा जी बतलाते थे
बडे प्रेम से देवा उनको
भला बुरा समझाते थे

तात्या भी परछाईं बन कर
सदा रहे बाबा के साथ
अँत समय तक फिर ना छोडा
साईं ने भी उनका हाथ

अन्तर्यामी साईं ने था
देख लिया तात्या का अँत
कृपा सिंधु करतार ने तब
कृपा वृष्टि थी करी अनन्त

तात्या के बदले साईं ने
मृत्यु को स्वीकार किया
प्राणों से बढकर बाबा ने
तात्या को था प्यार दिया

धन्य धन्य हे साईं देव
भक्त प्रेम अति सुखदाई
जीवन के पग पग पर रक्षा
करते रहते सर्व सहाई

जय साईॅ राम

Title: Re: बाबा जी के भक्त -४ ( भागो जी शिंदे )
Post by: saisewika on November 05, 2009, 09:39:28 AM
ॐ साईं राम

भागो जी शिंदे नामक
बाबा के इक भक्त थे
देवा के सँग साया बन कर
वो रहते हर वक्त थे

बाह्य दृष्टि से देखो तो वो
लगते थे दुर्भागी से
तन की पीडा घोर सही थी
कुष्ठ रोग की व्याधि से

महारोग से पीडित थे वो
जर्जर उनकी काया थी
लेकिन उन पर साईं नाथ के
वरद हस्त की छाया थी

उनका कोई महापुण्य ही
जीवन मे सन्मुख आया
इसीलिेए तो भागो जी ने
साईं का सँग था पाया

बाबा के प्रधान सेवक थे
हर दम साथ रहते थे
साईं नाथ का प्रेम और क्रोध
सम रह कर वो सहते थे

साँयकाल में बाबा जी जब
लेण्डी बाग को जाते थे
भागो छाता ताने चलते
फूले नहीं समाते थे

एक बार जब साईं नाथ ने
नन्हा शिशु बचाने को
अपना हाथ आग में डाला
परम कृपा बरसाने को

तब सेवा का अवसर पाया
भागो जी के जागे भाग
तेल लगा कर पट्टी करते
देवा का वो थामें हाथ

अँत समय तक चली ये सेवा
साईं ने ना मना किया
ले कर सेवा भागो जी की
उनको आशिर्वाद दिया

भागो जी के पुण्य जागे
जब साईं के साथ हुए
पाप सब कट गए उनके
भागो जी कृतार्थ हुए

धन्य धन्य हे साईं देव
भक्त की पीडा हरने वाले
धन्य धन्य हे भक्त महान
सब कुछ अर्पण करने वाले

जय साईं राम
 
Title: Re: बाबा जी के भक्त -५ ( नानावली जी )
Post by: saisewika on November 09, 2009, 08:09:03 PM
ॐ साईं राम

नानावली बाबा का भक्त
शिरडी में ही रहता था
बडा दीवाना मतवाला सा
उसे ज़माना कहता था

बाबा के सन्मुख, अँतर ना था
उसमें और सब भक्तों में
ढाल बना खडा रहता था
भले बुरे सब वक्तों में

बाबा से कहते थे सब ही
दीवाने को दूर हटाओ
भक्तों को ये तँग करता है
सबको इससे आप बचाओ

पर बाबा तो दयामयी थे
करूणा के अवतार
भक्त प्रिय को करते थे वो
हृदय से स्वीकार

वो भी बाबा से करता था
जान से बढकर प्यार
बुरा जो कहता कोई, तो होता
लडने को तैयार

एक बार नानावली ने
बाबा जी से बोला यूँ
मुझे बैठना है गादी पर
जिस गादी पर बैठे तुम

उठ बैठे गादी से बाबा
नानावली से कुछ नहीं कहा
भक्तों का उन्माद और प्रेम
बाबा जी ने सदा सहा

ऐसा सच्चा भक्त था वो
सब दुनिया से न्यारा
बाबा जी के जाते ही
दुनिया से किया किनारा

साईं नाथ की महासमाधि के
तेरह दिन के अँदर
परमात्मा में विलय हो गया
बाबा जी का बँदर

जय साईं राम
Title: Re: बाबा जी के भक्त -६ ( हेमाडपँत जी )
Post by: saisewika on November 30, 2009, 11:17:47 AM
ॐ साईॅ राम

साईं सच्चरित्र रचयिता
गोविंदराम था नाम
जीवन गाथा लिख साईं की
पाया योग सुनाम

नाना साहब की प्रेरणा से
शिरडी धाम पधारे
बाबाजी के दर्शन पाए
अति सुन्दर अति प्यारे

प्रथम परिचय था इतना अनुपम
क्षुधा तृषा सब भूले
श्री चरणों का स्पर्श जो पाया
सुख के पल्लव फूले

अहम भाव सब किया समर्पण
साईं नाथ के आगे
हेमाडपँत की पाई उपाधि
सुकर्म भक्त के जागे

बाबा जी की लीला लिखी
मधुर किया गुणगान
भक्त जनों पर अनुग्रह करके
पाया यश और मान

बाबा जी ने कृपा करी
अन्तस्थल में आन बसे
सच्चरित्र के शब्द शब्द से
श्रद्दा और भक्ति रसे

समय समय पर साईं नाथ ने
साक्षात्कार करवाया
होलिकोत्सव के उत्सव में
चित्र अपना भिजवाया

बाबा जी की लीलाओं को
हेमाडपँत निरखते रहे
दिव्यचक्षु पा साईं नाथ से
चरित्र चित्रण करते रहे

साईं सँस्थान की वित्त व्यवस्था
करी कुशलता सँग
कार्य संभाल कर सँस्थान के
किया सभी को दँग

बने मील के स्तम्भ हेमाड जी
सब को राह दिखाने वाले
प्रत्येक भक्त के हृदय पटल में
अनुपम प्रेम जगाने वाले

सूरज चँदा तारे जब तक
इस दुनिया में चमकेंगे
भक्तों के तारागण में हेमाड
ध्रुव तारे सम दमकेंगे

जय साईं राम
Title: Re: किंकर मुझे बना ले
Post by: saisewika on December 03, 2009, 10:31:35 AM
ॐ साईं राम

श्री चरणों के दास की
इतनी है अरदास
जैसे चाहे रखना साईं
पर रखना तुम पास

तुम्हें थमा दी है अब मैंने
इस जीवन की डोर
सब कुछ छोडा तुम पर साईं
ले जाओ जिस ओर

तू ही मेरा सगा सँबंधी
तू ही मेरा प्यारा
तू ही पालक तू ही दाता
तू ही है रखवाला

तेरे मन में है जो दाता
वो है मुझको करना
तेरी मरजी से जीना है
तेरी मरजी मरना

तेरे इशारे पर मैं जागूँ
अपनी आँखे खोलूँ
तेरी लीला सुनूँ सुनाऊँ
तेरी बानी बोलूँ

तुझको तुझसे माँगूं दाता
तेरी भक्ति पाऊँ
तेरी चर्चा में दिन बीते
तेरी महिमा गाऊँ

साईं साईं करके दाता
जीवन अपना काटूँ
तेरा नाम इक्ट्ठा कर लूँ
तेरा नाम ही बाँटूं

तेरी करनी में सुख पाऊँ
सब कुछ तुझ पे छोडूँ
दुनिया के सब तोड के बँधन
तुझसे नाता जोडूँ

अपने द्वारे रख ले साईं
किंकर मुझे बना ले
सेवादार बना ले, मेरी
सेवा को अपना ले

जय साईं राम
Title: Re: बाबा जी के भक्त- ७ ( बायजा माँ )
Post by: saisewika on December 08, 2009, 08:21:25 AM
ॐ साईं राम

तात्याकोते की जननी थी
बायजा बाई नाम था
साईं साईं रटती रहती
उनका यही तो काम था

नैवेद्य अर्पण नित्त करती थी
बाबा को अति भाव से
साईं भी स्वीकार करते
अर्पण को अति चाव से

कभी कभी तो बाबा प्यारे
जँगल में चले जाते थे
भूखे प्यासे तप करते थे
द्वारकामाई ना आते थे

तब बायजा माँ, रोटी साग
भर कर एक भगोने में
खोजा करती थी साईं को
वन के कोने कोने में

जब तक साईं ना मिल जाते
बायजा ना वापिस आती
स्वँय हाथ से उन्हें खिलाकर
माता फिर तृप्ति पाती

साईं नाथ भी बडे प्रेम से
उनको माता कहते थे
प्रेम भरा आशिष और डाँट
दोनो बाबा सहते थे

महाभाग थे बायजा माँ के
ईश्वर का था साथ मिला
उनके जीवन के आँगन में
साईं भक्ति का फूल खिला

अँत समय तक बाबा जी ने
सेवा उनकी रक्खी याद
माता पुत्र के जीवन में
कृपा वृष्टियाँ करी अगाध

जय साईं राम
Title: Re: दिनचर्या
Post by: saisewika on December 09, 2009, 01:21:21 PM
ॐ साईं राम

हाथ जोड वँदन करूँ
परम दयामय नाथ
स्व भक्तों के भाल पर
रखना अपना हाथ


प्रातः काल.........


नित प्रातः वँदन करूँ
रवि किरणों के सँग
तेरे नाम सुनाम का
पाऊँ मैं मकरन्द

तेरे पूजन अर्चन से
सुबह शुरू हो मेरी
श्रद्धा मन में धार कर
करूँ सुभक्ति तेरी


दिन भर...............


सिमर सिमर तुझे हे प्रभु
बीते मेरा दिन
कर्मशील बन कर रहूँ
काटूँ मैं पलछिन्न

दिन बीते शुभ कर्म में
कर पाऊँ उपकार
किसी प्राणी के लिए प्रभु
हृदय में ना हो रार

मेरे कारण साईं नाथ
दुखी ना कोई होवे
बुरा समय जो आवे तो
मन ना आपा खोवे

करते जगत के कार्य भी
तुझे भजूँ हे ईश
रसना से तव नाम मैं
तजूँ नहीं जगदीश


साँय काल.............


साँय काल के समय में
ध्याऊँ तुझे अभिराम
सँध्या, कीर्तन, भजन में
बीते मेरी शाम

दिन जैसे भी बीता हो
शान्त रहे मेरा मन
बोझिल ना हो आत्मा
ना बोझिल हो तन


रात्रि काल.............


निद्रा का जब समय हो
ध्याऊँ तुझे हे देव
सोते में भीतर चले
साईं नाम सदैव

सपने में साईं नाथ मेरे
मैं शिरडी हो आऊँ
सुषुप्ता अवस्था में प्रभु
दर्शन तेरा पाऊँ

ऐसे तेरा नाम ले
सोऊँ, जागूँ, जीऊँ
साईं तेरे नाम का
अमृत प्याला पीऊँ

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saib on December 09, 2009, 11:16:42 PM
BAHUT ACCHA LIKHA SAISEWIKA JI, AGAR AISE HI DAILY ROUTINE HO, TO JEEVAN KI NAIYA
KABHI KISI TOOOFAN MAIN NAHI DAGMAGAYEGI, SAI NAAM KI PATVAR KE SAHARE CHALTI JAYEGI, BUS CHALTI JAYEGI...........AUR APNI MANJIL KO PAYEGI!

HAR SWAS TUMHE ARPIT HO SAI
HAR KARM TUMHE SAPARPIT HO SAI
JEEVAN MATR TUMARE NIMIT HO SAI
HAR SOCH SIMIT SAI HO SAI!

JAL ME, NABH ME, DHAR ME,
HAR PAL ME SAI
JEEVAN MARAN KA BHED NAHI
SAI HAI JAB SADA  SAHAI!

SAI KAHTE JIS ROOP ME KHOJO
MUJKO JIS NAAM SE SOCHO
US ROOP ME MAI AAUNGA
DARSHAN DE VACHAN NIBHAYUNGA!

BUS AB EK INTZAR HAI
MAN BHI KYA BEKARAR HAI
KABHI LAGTA EK PAL KI BAAT HAI
KABHI LAGTA BACCHE HAJARO  SAAL HAI!

………..SAI KI LEELA SAI HAI JANE!

OM SRI SAI RAM!
Title: Re: तो साईं मिलेंगे
Post by: saisewika on December 15, 2009, 02:17:25 PM
ओम साईं राम

नीयत हो अच्छी
कमाई हो सच्ची
तो साईं मिलेंगे

मन में उमंग हो
दरस की तरंग हो
तो साईं मिलेंगे

मुख पर जाप हो
ह्रदय नाम व्याप हो
तो साईं मिलेंगे

करुणा का भाव हो
धर्म का मार्ग हो
तो साईं मिलेंगे

दया हो, धृत्ति हो
सत्कार्य की वृत्ति हो
तो साईं मिलेंगे

हरिजन से भी प्यार हो
भेदभाव ना स्वीकार हो
तो साईं मिलेंगे

प्रेम का सागर हो
बुद्दि उजागर हो
तो साईं मिलेंगे

दिशा का ग्यान हो
मार्ग की पहचान हो
तो साईं मिलेंगे

सुख दुख में सम भाव हो
घमंड का अभाव हो
तो साईं मिलेंगे

हर हाल में आनंद हो
ह्र्दय में परमानन्द हो
तो साईं मिलेंगे

दर्द से नाता हो
याद वो विधाता हो
तो साईं मिलेंगे 

जय साईं राम
 
 
Title: Re: साईं जी की चक्की लीला
Post by: saisewika on December 21, 2009, 02:11:56 PM
ॐ साईं राम

एक दिवस हेमाड जी
पहुँचे द्वारकामाई
लीला की तैयारी करके
बैठे थे प्रभु साईं

कपडा एक बिछाकर प्रभु ने
चक्की रक्खी उस पर
गेहूँ डाला, लगे पीसने
आटा साईं गुरूवर

बाबा की लीला लखने को
उमडी जनता सारी
कोई समझ सका ना लीला
बाबा जी की न्यारी

चार स्त्रियाँ आगे बढकर
पहुँची साईं के पास
जबरन चक्की ले लेने का
करने लगी प्रयास

पहले क्रोधित हुए, शाँत फिर
हो गए बाबा साईं
पीछे हटकर बाबा ने थी
चक्की उन्हें थमाई

चक्की पीसते, रही सोचती
चारों ही ये बात
इस आटे की उनको ही
बाबा देंगे सौगात

घर द्वार नहीं है बाबा का
ना वो रसोई बनाते
पाँच घरों से माँग के भिक्षा
बाबा काम चलाते

यही सोचते, गाकर गीत
सारा गेहूँ पीसा
आपस में बाँट के आटा
चली ले अपना हिस्सा

उनको देख ले जाते आटा
क्रुद्ध हो गए साईं
एक गरजती वाणी फिर थी
उनको पडी सुनाई

किसकी सँपत्ति समझ कर तुम
ले जाती हो आटा
कर्ज़दार का माल नहीं जो
आपस में है बाँटा

जाओ, इस आटे को
गाँव की सीमा पर ले जाओ
सारे आटे की इक रेखा
सीमा पर बिखराओ

हुए अचँभित शिरडी वासी
आदेश साईं का पा कर
आटा बिखराया शिरडी की
सीमा पर ले जा कर

चहूँ ओर प्लेग था फैला
छाई थी महामारी
सुरक्षित शिरडी को करने की
थी उनकी तैयारी

भक्तों ने साईं लीला का
पाया मधुर सुयोग
रही सदा सुरक्षित शिरडी
फैला ना कोई रोग

हुए रोमाँचित हेमाड जी
देख साईं की लीला
भक्ति रस से हो गया
उनका तन मन गीला

उपजा पावन हृदय में
अति उत्तम सुविचार
साईं की गाथा लिखी तो
होगा बेडा पार

भक्तों का कल्याण करेंगी
बाबा की लीलाएँ
सुने गुनेगा जो कोई उसके
पाप नष्ट हो जाएँ

शामा जी ने करी प्रार्थना
बाबा जी के आगे
मिली स्वीकृति गाथा लिखने की
भाग्य हेमाड के जागे

ऐसे लीला रच बाबा ने
दाभोलकर को चेताया
माध्यम उन्हें बना कर अपना
अमृत रस बरसाया

मुदित हुए सब भक्त जो पाया
सच्चरित्र का दान
श्रद्धा प्रेम की लहर उठी तो
मिटा घोर अज्ञान

जय साईं राम
Title: Re: शुक्रिया साईं नाथ
Post by: saisewika on December 23, 2009, 01:21:45 PM
ॐ साईं राम

शुक्रिया साईं नाथ तेरा
करूँ मैं बारम्बार
नाम सुनाम भेंट दिया
करने को उद्धार

बुद्धिहीन मैं अति मलिन
तुम सच्ची सरकार
लेकर अपनी शरण में
ढाँपे सभी विकार

मन मेरा था कीच भरा
कमल तुम्हारा नाम
खिला जो चँचल चित्त में
सजा तुम्हारा धाम

जीवन के पथरीले पथ पर
थामी मेरी बाँह
जब जब भूली रास्ता
करी प्रकाशित राह

दिया सहारा भक्ति का
डोलूँ ना चहुँ ओर
डगमग जब विश्वास हुआ तो
खींची मेरी डोर

कभी परखने मन मेरा
फेंका माया जाल
चेतन करके फिर मुझे
खुद ही लिया निकाल

भक्तों की सत्सँगत का
चखवाया सुस्वाद
तेरा लीला गान सुना तो
छूटे सभी विषाद

धन्य धन्य मैं हो गई
पा कर तुम सा नाथ
मुझ सम अधमा को प्रभु
जोडा अपने साथ

धन्यवाद कैसे करूँ
अनगिन तव उपकार
सीमित मेरी लेखनी
लघुतम मैं लाचार

भाव भरा इक नमन ही
दे सकती जगदीश
श्रद्धामय वँदन मेरा
स्वीकारो हे ईश

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: rakesh410 on December 27, 2009, 03:11:53 PM
ॐ साईं राम

शुक्रिया साईं नाथ तेरा
करूँ मैं बारम्बार
नाम सुनाम भेंट दिया
करने को उद्धार

बुद्धिहीन मैं अति मलिन
तुम सच्ची सरकार
लेकर अपनी शरण में
ढाँपे सभी विकार

मन मेरा था कीच भरा
कमल तुम्हारा नाम
खिला जो चँचल चित्त में
सजा तुम्हारा धाम

जीवन के पथरीले पथ पर
थामी मेरी बाँह
जब जब भूली रास्ता
करी प्रकाशित राह

दिया सहारा भक्ति का
डोलूँ ना चहुँ ओर
डगमग जब विश्वास हुआ तो
खींची मेरी डोर

कभी परखने मन मेरा
फेंका माया जाल
चेतन करके फिर मुझे
खुद ही लिया निकाल

भक्तों की सत्सँगत का
चखवाया सुस्वाद
तेरा लीला गान सुना तो
छूटे सभी विषाद

धन्य धन्य मैं हो गई
पा कर तुम सा नाथ
मुझ सम अधमा को प्रभु
जोडा अपने साथ

धन्यवाद कैसे करूँ
अनगिन तव उपकार
सीमित मेरी लेखनी
लघुतम मैं लाचार

भाव भरा इक नमन ही
दे सकती जगदीश
श्रद्धामय वँदन मेरा
स्वीकारो हे ईश

जय साईं राम


Baap re!!! Aap to sach me sachhi sai sevika hai. You are so lucky ki aap par Sai Baba ki etni krupa hai. Kaash wo kabhi ham par bhi thode se maherba ho jaate. Main nahi dekha kabhi kisi ko Sai bhakti me is kadar duba hua. Pure ke pure sai me samai hui hai aap.

Meri shubh kaamna e aap ke liye, aur prarthna sai baba se ki agar unka koi aashirwad mere liye hai to wo use aap ko hi de devi.

Jai Sai Naath
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on December 27, 2009, 07:01:52 PM
OM SAI RAM

SAIRAM Rakeshji

Bahut shukriya aap ki taarif ke liye....par jo bhi jaisa bhi hai sab SAI ki hi kripa hai....jo chahe likhwate hai....

par itni badi baat ki agar SAI ne koi ashirwad aape liye rakha hai to......I am speechless...Baba apko hamesha sukhi rakhe.....

JAI SAI RAM
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: rakesh410 on December 27, 2009, 07:12:30 PM
Are logo...

Maine suna tha ki log Sai Bhakti me Pagal hote hai, es duniya me bhagwan ke bhakt apane sai ke liye kuch bhi kar jaate hai. Par aaj es forum pe aa ke me to hakka bakka sa rahe gaya. Dil sahem sa gaya aap logo ka Sai baba ke prati pyar dek kar.

He sai naath.... Etana to karna Swami... Kabhi hamare dil me bhi aap ke liye etna pyar ho, etni bhakti ho, etna vishvash ho, etni shraddha ho, etni saboori ho, etna apna pan ho... ki har vakt jubaan pe chahe jo bhi ho par dil me to bas aap hi naam nikale...
Title: Re: साईं तेरी प्यारी आँखें
Post by: saisewika on December 28, 2009, 06:04:42 PM
ॐ साईं राम

साईं तेरी प्यारी आँखें
सब दुनिया से न्यारी आँखें

झील से भी गहरी आँखें
भक्त जनों की प्रहरी आँखें

करूणा रस छलकाती आँखें
प्रेम गंग बरसाती आँखें

ममता भरी भरी सी आँखें
सुन्दर और चमकीली आँखें

दुख से बोझिल होती आँखें
भक्तों के सँग रोती आँखें

प्रेम पगी मुस्काती आँखें
अँदर तक धँस जाती आँखें

चुप रह कर भी बोलें आँखें
अमृत रस सा घोलें आँखें

देखें सबको हर पल आँखें
गँगा जल सी निर्मल आँखें

जय साईं राम
Title: Re: नव वर्ष की शुभकामना
Post by: saisewika on December 31, 2009, 11:03:01 AM

ॐ साईं राम

नव वर्ष की प्रथम बधाई
तुम्हें हो साईं नाथ
द्वितीय मेरे मात पिता को
जिनका आशिष साथ

फिर बाबा के भक्त जनों को
नव वर्ष की बधाई
सब भक्तों के अंग संग सोहे
साईं सर्व सहाई

अति सुखद हो मंगलमय हो
नया चढा जो साल
संतति विहीनों के आंगन में
खेले बाल गोपाल

कोई भी दुखिया ना होवे
ना होवे लाचार
आधि व्याधि दूर हटाएं
साईं सर्वाधार

पूरण हों सबकी आशाएं
खुशियां हो बेअंत
शुभ कर्मों की वृद्धि हो
पापों का होवे अंत

श्रद्धा और सबूरी का
मनों में हो प्रकाश
भक्ती भाव भरपूर रहे
और पूरा हो विश्वास

दुनिया के सब मुल्कों में
शांति हो समृद्धि हो
आतंकवाद का नाश हो
भाईचारे की वृद्धि हो

हाथ जोड कर तुमसे विनती
करते हम सरकार
हर प्राणी के हृदय में
भर दो करुणा प्यार

जय साईं राम
 
Title: Re: साईं भक्तों का नव सँकल्प
Post by: saisewika on January 02, 2010, 01:38:41 PM
ॐ साईं राम
 
साईं के दरबार में
शुभ आगमन नव वर्ष का
भक्त जनों के सन्मुख आए
समय सदैव हर्ष का
 
हरेक मानव के हृदय में
साईं नाम व्याप हो
सत्कार्य की वृत्ति हो
मुख में साईं जाप हो
 
हर्ष हो उल्लास हो
साईं मिलन की आस हो
श्रद्धा का दामन ना छूटे
मन में दृढ विश्वास हो
 
कोई भूखा सोए ना
दुखी ना हो कोई आत्मा
साईं भक्त हर जन में देखें
अँश इक परमात्मा

रोग ना हो, शोक ना हो
तन मन सभी के स्वस्थ हों
कार्य शील बनें सभी
साईं कारज में व्यस्त हों

साईं ने कहा है जैसा
प्रेम करें हर प्राणी से
साईं की आज्ञा को मानें
मन, कर्म और वाणी से
 
साईं की महिमा कहें
साईं की लीला सुने
साईं सच्चरित्र के सभी
साईं वचनों को गुनें

जो दिया है साईं ने
खुशी उसी में मान लें
साईं की रज़ा में ही हम
रज़ा अपनी जान लें
 
मन में चिर सँतोष हो
खुश रहें हर हाल में
धन्यवाद आओ करें
साईं का नए साल में
 
नूतन वर्ष पर करें
नव सँकल्प धारण सभी
नहीं करेंगे साईं से
गिले और शिकवे कभी
 
साईं की शिक्षाओं को
हृदय में हम धार लें
नया चढा जो साल उसे
साईं पर ही वार दें
 
जय साईं राम
Title: Re: ऐसे साईं सिमरिए
Post by: saisewika on January 05, 2010, 03:37:27 PM
ॐ साईं राम

रे मन साईं नाम जप
पल पल आठों याम
लगन लगी जो नाम की
तो होगा तव कल्याण

ऐसे साईं सिमरिए
ज्यों नवेली नार
सिमरे प्रियतम प्यारे को
भूल के सब संसार

जैसे गढे खजाने में
रहे कृपण का ध्यान
धर के ऐसे ध्यान तू
सिमर साईं भगवान

ज्यों भूखा सिमरे सदा
भोजन और पकवान
सुरत लगा कर ऐसे ही
सिमरों साईं नाम

पाने को जल बूँद ज्यों
चातक सिमरे मेघ
ऐसे मन में राखिए
साईं नाम का वेग

दूर देश के पुत्र को
जैसे ध्याती माता
मनसा, वाचा, कर्मणा
सिमरो साईं विधाता

चलता चल संसार में
पकड नाम की डोर
लक्ष्य बना ले एक ही
शुभ चरणों की ठौर

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Pearl India on January 06, 2010, 09:58:08 AM
om sia ram

 pata nhi kaise ...is topic ko khol rhi thi....aur tabhi apneaap page 6 khul gaya...

saisewikaji....
ye bhav pad ke bas....maza aa gaya.

jai sai ram
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Ramesh Ramnani on January 24, 2010, 12:09:35 AM
om sia ram

 pata nhi kaise ...is topic ko khol rhi thi....aur tabhi apneaap page 6 khul gaya...

saisewikaji....ye bhav pad ke bas....maza aa gaya.

jai sai ram

 
जय सांई राम।।।
 
उसकी महफिल मे मस्ती जाम भरती हूँ
उसकी मय पीने पिलाने का काम करती हूँ
साज़ मेरे दिल का जो छेड़ दिया है उसने
बस उसके नग्में गाने का काम करती हूँ
गर किसी दिल मे तस्वीर बसी हो उसकी
कदमों पे उसी के अपने मुकाम करती हूँ
गर उस दीवाने का हाथ पकड़ मे आए
थाम कर चूम लेने का काम करती हूँ
नूर आता हो नज़र उसका आंखों मे कहीं
उसके दीदार मे उमर तमाम करती हूँ
उसके रस मे डूबा मिल जाए मस्त कोई
ज़िंदगी अरे खुद की उसके नाम करती हूँ
जो नाचे गाए-सांई वही है बंदा
सदके जाती हूँ उसे सलाम करती हूँ
उसकी महफिल मे मस्ती का जाम भरती हूँ
उसकी मय पीने पिलाने का काम करती हूँ।।

ऐसी है हमारी सुरेखा बहन। इनके बारे में जितना भी कहा जाये उतना कम है। उनके बाबा के प्रति प्रेम के आगे हम बहुत फीके है सलाम बहन सलाम नमन है मेरा आपको....

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

ॐ सांई राम।।।
Title: Re: मैं बस तेरी सेविका
Post by: saisewika on February 05, 2010, 09:25:59 AM
ॐ साईं राम

कोई साज़ नहीं है हाथ मेरे
महिमा तेरी गाऊँ कैसे
कागा जैसे स्वर में बाबा
तुमको गीत सुनाऊँ कैसे

ना मैं मीरा, ना मैं राधा
ना मैं मुक्ताबाई,
ना मैं शौनक, ना मैं नरहरि,
ना मैं सजन कसाई

प्रहलाद के जैसा तप ना जानूँ
ना ध्यानूँ सा ध्यान
नारद जैसा जप ना जानूँ
नहीं जनक सा ज्ञान

नहीं लेखनी मेरे हाथ में
हेमाडपंत के जैसी
जैसी दासगणु की थी
नहीं मेरी वाणी वैसी

मैं बस तेरी सेविका
अति मलिन, गुणहीन
तुम हो स्वामी परब्रह्म
मैं विरहिन अतिदीन

पूजन अर्चन मनन के
नियम नहीं मैं जानूँ
भाव भरी प्रीति करूँ
लक्ष्य तुम्हीं को मानूँ

तेरी प्रेम उपासना
करूँ पडी दिन रैन
तेरे दर्शन को तरसें
मेरे चँचल नैन

तेरी कमली बनके मैं
घूमूँ जग के बीच
मन के चक्षु खोल कर
तन की आँखें मीच

तुझे रिझाने को साईं
बस इतना कर सकती
तेरा नाम ले कर जिऊँ
तेरा नाम ले मर सकती

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saib on February 06, 2010, 01:24:00 AM
साईं का नाम लेने से मरना कोई मरना नहीं है वोह तो मुक्ति है जनम  और मरण के बन्धनों से. हर भक्त अपने में अजब है, हर भक्त की भक्ति ग़जब है . किसी की भी किसी के साथ कोई भी तुलना नहीं की जा सकती . कोई बस साईं साईं करना चाहता है, कोई बस साईं की ही मूरत निहारना चाहता है, कोई साईं के गुणगान ही हर पल करना चाहता है, कोई बस साईं की लीलाओं में ही खो जाना चाहता है , साईं तो अजब है ही उनके पूरण भक्त भी कम नहीं !

साईंसेविका जी, इतने अद्भुत शब्दों में अपनी प्रीत व्यक्त करते हुए आप हमें भी कुछ समय के लिए जैसे साईं के चरण कमलों से जोड़ देती है . धन्य है आपकी लेखनी . साईं आपकी सभी समरथ कामनाओं को पूरण करें, और आपके माध्यम से हमें अपनी पावन मूरत की अनुभूति कराते रहे  !

ॐ श्री साईं राम!
Title: Re: बाबा जी के भक्त-8
Post by: saisewika on February 08, 2010, 11:39:20 AM
ॐ साईं राम

दासगणु जी महाभक्त थे
भक्तों के भक्तार
साईं की महिमा पहुँचाई
हर घर में हर द्वार

गणपत्त राव दत्तात्रेय
ये असली था नाम
कार्यरत थे पुलिस बल में
रक्षा का था काम

नानासाहेब चाँदोरकर के सँग
शिरडी धाम को आते थे
बाबा जी का प्रेम और आशिष
दोनो ही वो पाते थे

नाच और गाना प्रिय था उनको
पुलिस की नौकरी के साथ
गाँव जिले की नौटँकी में
खुश हो कर लेते थे भाग

परख लिया था बाबाजी ने
गणपतराव की क्षमता को
लेकिन गणपत्त समझ ना पाए
साईं नाथ की ममता को

बाबा जी चाहते थे, गणु जी
छोड दें अब पुलिस का काम
प्रभु को जीवन अर्पण करके
पाँवें श्री चरणों मे स्थान

परम देव ने लीला रच कर
उनको खींचा अपनी ओर
आशिष पा कर बाबा जी का
'दासगणु' जी हुए विभोर

त्यागपत्र दे दिया उन्होंने
छोड दिया था पुलिस का काम
साईं नाम का कीर्तन करते
घूमें गणु जी ग्राम ग्राम

अलख जगाई साईं नाम की
बहुत किया गुण गान
शब्दों के मोती चुन चुन कर
रचना करी महान

एक दिवस निश्चय किया
दासगणु ने आप
प्रयाग स्नान कर पाएँ तो
होंगे वो निष्पाप

देवा की आज्ञा लेने वो
पहुँचे द्वारका माई
बाबा जी की मधुर सी वाणी
उनको पडी सुनाई

इधर उधर क्यूँ व्यर्थ भटकते
मुझ पर करो विश्वास
प्रयाग काशी सारे तीरथ
पाओगे मेरे पास

दासगणु ने साईं चरणों में
श्रद्धा से शीश नवाया
गँगा जमना की धारा को
श्री चरणों में बहता पाया

भक्ति भाव से रोमाँचित हो
रोए 'गणु' बेहाल
"साईं स्त्रोतस्विनी" उनके मुख से
प्रवाहित हुई तत्काल

साईं नाम की ध्वजा को
पकड कर अपने हाथ
भवसागर से पार गए
भजते 'गणु' साईं नाथ

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on February 12, 2010, 04:51:00 PM
ओम साईं राम

शिवरात्रि के अगले दिन
झील के किनारे टहलने गई
तो बाबा को पहले से ही वहां बैठा पाया
आंखे मली, चुटकी काटी
खुद को ही यकीं ना आया

करीब गई, ध्यान से देखा
हां मेरे प्यारे साईं ही थे
मेरे राम, मेरे देव
मेरे कृष्ण कन्हाई ही थे

दण्डवत प्रणाम किया
पर बाबा ने ना ध्यान दिया
फिर रूखे स्वर में बाबा बोले
वैसे तो तुम साईं नाम का दम भरती हो
पर जो मुझे रूचते नहीं
वो काम क्यूं करती हो?

हाथ जोडकर मैंने पूछा
मुझसे क्या कुछ भूल हो गई?
मेरी कैसी करनी आपकी
शिक्षा के प्रतिकूल हो गई?

बाबा बोले गलती करके भी
तुम्हें उसका अहसास नहीं
यकीन जानो अभी तुम्हें
साईं नाम का अभ्यास नहीं

कल तुम शिव पूजन के लिए
मन्दिर गई थीं
याद करो तुमने एक नहीं
गलतियां करी कई थीं

मन्दिर के बाहर एक भूखा बालक
मां का हाथ थामें रोता था
एक और मां के आंचल में
भूखा ही सोता था

तुम उन्हें देख कर भी
आगे बढ गई
दूध की थैली लिए
तुम मन्दिर की सीढियां चढ गई

शिवलिंग पर तुमने
पंचामृत और दूध चढाया
और सोचा अपने कर्मों के खाते में
एक और पुण्य बढाया

अगर तुम उन भूखे बच्चों को
दूध पिलाती
और शिवलिंग पर
भक्ती भाव का तिलक ही लगाती

तो भी भोले बाबा
उसे स्वीकार करते
तुम्हारे दिल में दया है
इसलिए तुम्हें प्यार करते

पर तुम निर्दयी ही नहीं
क्रूर भी थी
खुद को बडा भक्त समझने के
अहंकार में चूर ही थीं

इसीलिए तुम लाईन तोड
गलत तरीके से आगे बढी
एक वृद्धा को धक्का मारा
और उसके पैर पर चढी

दर्द से वो कराही
पर तुमने ना ध्यान दिया
कई भक्तों को पीछे छोडा
इस जीत पर भी अभिमान किया

तुम क्या सोचती हो
तुम्हारी पूजा स्वीकार होगी
पूजा का आडम्बर करके
तुम भवसागर से पार होगी

तुम्हे लगता है
भक्ती मर्ग पर चलना बहुत आसान है
नहीं, इस पर चलना
पतली सुतली पर चलने के समान है

पग पग पर
गड्डे हैं,खंदक है, खाई है
ज़रा सी भूल
और पतन की गहराई है

मुझ तक पहुंचने के लिए
बीच का कोई रास्ता नहीं
या तो तुम्हारा इस माया से
या मुझसे कोई वास्ता नहीं

इसलिए या तो तुम
मेरे नाम का दम मत भरो
या फिर पूरे मन से ही
मुझे याद करो

तुम्हे बार बार समझाने
तुम्हारे पास आता हूं
क्यूंकि अपना नाम लेने वालों को
मैं बहुत चाहता हूं

संभलो, जीवन को यूं ना
बेकार करो
दुखियों का दर्द समझो
प्राणीमात्र से प्यार करो

अगर तुम ये सीधा सच्चा
रास्ता अपनाओगी
नि: संदेह अपने बाबा को
एक दिन अपने सन्मुख पाओगी

जय साईं राम
 
 
Title: साईं मेरे वैलन्टाइन
Post by: saisewika on February 15, 2010, 09:31:35 AM
ॐ साईं राम

कल वैलन्टाइन डे पर
बाबा की मूरत के आगे
सिर झुकाया
तो बाबा जी को
मँद मँद मुस्कुराते हुए पाया

बाबा ने अपने
सुन्दरतम लब खोले
और प्रेम से होले होले
ये बोले
 
"लगता है आज फिर
प्रेम दिवस आया है
इसीलिए तुमने
लाल गुलाब का फूल
चढाया है"
 
मैनें कहा बाबा आपने
बिल्कुल ठीक पहचाना है
असल में मुझे आपको
अपना वैलन्टाइन बनाना है
 
क्या आप मेरा
वैलन्टाइन बनोगे?
और मेरी झोली
ढेर सारे प्रेम से भरोगे?

बाबा ने कुछ सोचा
और मुस्कुरा कर कहा
असल में मेरे दिल में भी है
किसी का वैलन्टाइन बनने की चाह

पर क्या तुम वो लाई हो
जो सब अपने वैलन्टाइन को देते हैं
और बदले में उनका
ढेर सा प्रेम पा लेते हैं?

वो मँहगे चाकलेट,
दिल की आकृति के गुब्बारे
गुलदस्ते और कार्ड
और गिफ्ट्स ढेर सारे

मैनें कहा- नहीं बाबा
मैं ये सब तो नहीं लाई हूँ
आपको अपना वैलन्टाइन बनाने
मैं खाली हाथ ही आई हूँ

पर मेरे दिल में
श्रद्धा और सबूरी है और प्रेम का भाव है
और सच बताऊँ मुझे हर दिन
आप को अपना वैलन्टाइन बनाने का चाव है

ये कहते हुए मेरा कँठ रूँध गया
आँखों में आसूँ भर आए
बाबा के चरणों में मैने
आँसुओं के फूल चढाए

बाबा बडे प्रेम से बोले
पगली-----
मुझे इसी प्रेम भाव की ही
दरकार है
मैं अपने सब भक्तों का
वैलन्टाइन हूँ
मुझे अपने सब प्रेमी भक्तों से
बेपनाह प्यार है

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: drashta on February 15, 2010, 10:12:12 AM
Om Sai Ram.

Dear Saisewika ji, thanks much for such beautiful verses! You made my day. Lately, I've been thinking that Baba does not love me. But your poem conveyed His message. Thank you.

Love, and regards,
Om Sai Ram.
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Ramesh Ramnani on February 18, 2010, 12:12:28 AM
जय सांई राम।।।
 
सदैव की भांति अति सुन्दर,  सुरेखा बहन की वैलेन्टाईन दिवस की अति उतम कृति...

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई


ॐ सांई राम।।।
Title: बाबा जी के भक्त - 9
Post by: saisewika on February 18, 2010, 01:08:55 PM
ॐ साईं राम

राधाकृष्णा माई जी
परम भक्त थी बाबा की
शिरडी ही उनकी काशी थी
शिरडी ही उनका काबा थी

२५ वर्ष की आयु में वो
शिरडी धाम पधारी थी
भक्ति भाव अटूट था उनमें
पर किस्मत की मारी थी

सुन्दरा बाई नाम था असली
दुनिया का कुछ ज्ञान ना था
अति रुपवान थी वो पर
रँग रूप का मान ना था

सतरह वर्ष की आयु में ही
विवाह हो गया था उनका
लेकिन उनके भाग्य में
प्रणय बँध का सुख ना था

आठ दिवस पश्चात विवाह के
विधवा हो गई नार नवेली
दुख का सागर उमडा उन पर
दुनिया में रह गई अकेली

मोह भँग हो गया था उनका
चैन कहीं ना पाती थी
परम ईश को लगी ढूँढने
शहर शहर वो जाती थी

यूँ हीं ढूढती सदगुरू अपना
पहुँची थी वो शिरडी धाम
साईं नाथ का दरस जो पाया
आहत रूह को मिला आराम

अँतरयामी बाबा जी ने
हाल सभी था जान लिया
"राधामाई" कह कर पुकारा
और 'शाला' में स्थान दिया

अगले दस बरस तक भक्तिन
भूली अपना नाम ग्राम
केवल साईं नाथ की सेवा
बस ये ही था उनका काम

जिन जिन रस्तों से बाबा जी
गुज़रा करते थे दिन में
'माई' उनको झाड बुहार
स्वच्छ करती थी पल छिन्न में

चावडी में सोने की जब
बाबा की बारी होती थी
राधा माई उस दिन जतन से
द्वारकामाई को धोती थी

राधामाई की प्रेरणा से ही
गठित हुआ था साईं सँस्थान
धीरे धीरे दस दिश गूँजा
शिरडी धाम का पावन नाम

साईं सँस्थान की हर इक वस्तु
राधामाई ने सँजोयी थी
साईं की सेवा में "राधा"
मीरा बन कर खोई थी

निःस्वार्थ यूँ सेवा करती
राधाकृष्णा माई जी
अँतरँग भक्तिन कहलाई
साईं सर्व सहाई की

दस वर्ष पश्चात अचानक
उन्नीस सौ सोलह में वो
परम ईश को प्रिय हो गई
परम नींद में गई वो सो

निष्काम भक्ति का प्रतीक बना
राधाकृष्णा माई का जीवन
अर्पण करके साईं नाथ को
पाया अमोलक साईं नाम धन

जय साईं राम

Title: मोहभँग
Post by: saisewika on February 22, 2010, 02:37:10 PM
ॐ साईं राम

तुझसे अब ये दूरियाँ
मुझसे सही ना जाती
मोहिनी माया जगत की
पग पग पर भरमाती

माया साँपिन बन चढी
जकडा सकल शरीर
सुख पाने की चाह में
भटकी बनी अधीर

जग के जँतर मँतर में
भूली अपनी राह
कितने विषम विकार ओढे
ईर्ष्या, द्वेष और ढाह

विषय सुखों से मोहित हो
छिटकी तुझसे दूर
आशा,तृष्णा मान में
मैं तो हो गई चूर

राग रँग में मस्त हुई
समय गँवाया व्यर्थ
श्रद्धा, भक्ति, प्रेम के
समझ ना पाई अर्थ

मेरे 'मैं" ने ढाँप लिया
परम ईश का ज्ञान
तेरा रूप ओझल हुआ
बिसरी तेरा नाम

धीरे धीरे सुख सारे
बने गले की फाँस
जग के नाते रिश्तों से
पाया कटुतम त्रास

मोहभँग सब हो गया
गई आत्मा चेत
मन उचटा सँसार से
जैसे उड जाए रेत

पश्चाताप के आँसू से
भरे मेरे दो नैन
तुझे ढूँढने निकली मैं
पाऊँ कहीं ना चैन

पत्ता गिर कर डाल से
सूखे और मुरझाए
ऐसे तुझसे बिछड कर
भक्त नहीं जी पाए

क्षमा करो हे नाथ जी
मेरे पाप के कर्म
तुझसे बिछड, वियोग का
जाना मैनें मर्म

तू तो परम दयालु है
क्षमाशील करतार
प्रेम पगी सुदृष्टि से
अब तो मुझको तार

मानुष जीवन बीत रहा
बन कर दिन और साल
महा मृत्यु के आने से
पहले मुझे सँभाल

निज भक्ति का दान दे
माँगूँ ना कुछ और
तुझसे निकटता पाऊँ मैं
श्री चरणों की ठौर

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saib on February 23, 2010, 01:40:46 AM
मित्र परिजन लगे बेगाने
जब मन हुए साईं दिवाने
मन न रमता अब कही और
जब न मिलती साईं की ठोर
गिरते पड़ते भागे साईं की और
साईं बोले मेरा भक्त यूंह परेशान
क्या है चिंता  लो विराम
ले आंसू अखियों में
गिर पड़ा साईं चरणों में
साईं माया बहुत सताती है
बहुत प्रलोभन दिखाती है
रूप बदल कर आती है
साईं से दूर कर जाती  है .
 
साईं मुस्कुराये बोले
ओह नादाँ , क्यों भटके
साईं को कहाँ खोजे
में तो घट घट का वासी
माया को भी रूप मेरा जान
जो साईं को द्रेत कर जाने
माया उन्हें सताती है
पर जो साईं को पहचाने
माया ही तो उनको मुझ तक लाती है .

अब मन शांत हुआ
द्रेत भाव साईं का दूर हुआ
साईं ही तो हर रूप मे
मन से तड़प ख़तम हुई
अनुतरित था जो प्रशन सदियों से
खोज वोह ख़तम हुई .

माया फिर आई पर अब अग्न शांत थी
हर बार वोह मुस्कुराती थी
और सताती थी
पर अब जो भक्त मुस्कुराया
माया पहले तो हैरान हुई
फिर मुस्कुराई और बोली
अच्छा तो साईं ने तुम्हे ज्ञान दिया
मेरे हर रूप में साईं विराजे
यह तुमने जान लिया
बस बदल गया जीवन
माया संग न अब बेगाना था
हर रिश्ता साईं अक्स
साईं का ही गाना था .
Title: बाबा जी के भक्त -१० मेघा जी
Post by: saisewika on February 25, 2010, 05:46:02 PM
ॐ साईॅ राम

मेघा नामक गुजराती ब्राह्मण
विरम गाँव का रहने वाला
निर्धन और निरक्षर था पर
शिव भक्त था भोला भाला

साठे जी के घर रहता था
रसोईया था बडा गुणवान
गायत्री मँत्र तक बोल ना पाता
पर भक्ति की था वो खान

पहली बार उन्नीस सौ नौ में
शिरडी धाम में आया था
लेकिन तब बाबा का आशिष
उसको मिल ना पाया था

सुना था उसने रस्ते में कि
साईं नाथ जी हैं यवन
भोला ब्राह्मण कर ना पाया
भक्ति भाव से उन्हें नमन

मेघा के दिल की दुविधा को
बाबा ने जाना तत्काल
क्रोधित हो गए साईं, उस को
द्वारकामाई से दिया निकाल

दुखी हृदय से मेघा पहुँचा
नासिक के त्रयम्बकेश्वर धाम
डेढ वर्ष तक रहा वहाँ पर
शिव का भजता रहता नाम

अगले वर्ष उन्नीस सौ दस में
मेघा शिरडी वापस आया
दादा केलकर के आग्रह पर
बाबा ने उसको अपनाया

लगा मानने बाबा को वो
भोले शँकर का अवतार
सेवा करने को साईं की
हर दम रहता वो तैय्यार

शिरडी के सब देवालयों में
वो सुबह सवेरे जाता था
फिर साईं की पूजा करके
फूला नहीं समाता था

एक बार सक्राँति के दिन
अभिषेक कराने बाबा को
गोदावरी का जल लाने को
आठ कोस तक चला था वो

भोले भक्त के भाव जान कर
बाबा ने भी आग्रह माना
पटिया पर बैठा बाबा को
करने लगा अभिषेक दिवाना

बाबा बोले सुन लो मेघा
जल तुम मुझ पर ऐसे डालो
शरीर ना गीला होने पाए
थोडा अपना हाथ सँभालो

लेकिन मेघा भाव विह्वल था
हर हर गँगे कह कर वो
गागर पूरी उडेल साईं पर
भक्ति रस में गया वो खो

फिर गागर को एक ओर रख
देखी उसने अदभुत लीला
देह सूखी थी बाबा जी की
सिर्फ हुआ था सिर ही गीला

बाबा की सेवा में मेघा
खोया रहता था दिन रात
परम कृपालु साईं ने उस पर
किया आलौकिक 'शक्ति पात'

काँकण, मध्याह्न और शेज आरती
साईं सर्व सहाई की
तीनो मेघा ही करता था
भक्ति बनी सुखदाई थी

१५ जनवरी उन्नीस सौ बारह को
उसको थोडा ताप चढा
विघ्न पडा पूजन अर्चन में
ताप ना उतरा, और बढा

अँतरयामी साईं नाथ ने
अन्त उसका था जान लिया
अब ना मेघा बच पाएगा
देवा ने ऐलान किया

१९ जनवरी उन्नीस सौ बारह का
दिन आया बडा दुखदायी
प्रातःकाल ४ बजे मेघा ने
छोडे प्राण, परम गति पाई

उसका मृत शरीर जो देखा
फूट फूट कर रोए साईं
हाथ फेरते थे शरीर पर
रूदन करते सर्व सहाई

"सच्चा भक्त था मेरा मेघा"
ये कह कर साईं रोते थे
सगा संबंधी गया हो वैसे
धीरज अपना खोते थे

अति प्रिय होते हैं भक्त
परम पूज्य भगवान को
मानव सम रोए थे साईं
बतलाने इस ज्ञान को

धन्य धन्य थे कर्म भक्त के
साक्षात ईश्वर को पूजा
जनम सफल हुआ उसका, उस सम
बडभागी कोई और ना दूजा

जय साईं राम
Title: साईं के सँग होली
Post by: saisewika on February 27, 2010, 03:37:11 PM
ॐ साईं राम

आओ हिलमिल होली खेलें
साईंनाथ के संग
भक्ति भाव में रंग ले खुद को
रंगे साईं के रंग

श्रद्धा की पिचकारी थामें
सबुरी का हो गुलाल
तज के सब दुर्भावना
रंगे साईं के लाल

आचार रँग लें,विचार रँग लें
रँग ले सब व्यवहार
भक्ति भाव में रँग लें आओ
अपना घर सँसार

चलो होलिका दहन में डालें
काम, क्रोध, मद, मान
भस्म करें पावन धूनि में
छल, कपट,अज्ञान

तन को रंग ले मन को रंग लें
रंग लें दिल और जान
साईं नाम की भंग चढा लें
भूलें सकल जहान

प्रेमगंग में सरोबार हो
झूमें तेरी तरंग में
होली आए होली जाए
रंगे रहें तेरे रंग में

जय साईं राम
Title: काश अगर साईं होता ऐसा
Post by: saisewika on March 04, 2010, 07:38:31 AM
ॐ साईं राम


काश अगर साईं होता ऐसा
मन अभिलाषी सोचे जैसा

आ जाते तुम मेरे द्वारे
दर्शन पाती तेरे प्यारे

निरख निरख तुझको ना थकती
अखियाँ रहती टुक टुक तकती

कभी देखती घर मैं अपना
सच है या कोई है सपना

हाथ पकड तुम्हें भीतर लाती
सुख आसन पर तुम्हें बैठाती

श्री चरणों को धो कर देवा
पाँव दाब कर करती सेवा

फिर पूजा का थाल सजाती
चँदन धूप दिया और बाती

अक्षत, कुमकुम, सुँदर हार
बडे यतन से कर तैय्यार

करती पूजा बडे भाव से
नैवेद्य बनाती अति चाव से

सांजा, उपमा, खीर और खिचडी
छाछ, भात और पूरन पोली

जो व्यँजन मेरे देव को भाते
पलक झपकते वो बन जाते

फिर मैं तुमको भोग लगाती
बडे प्रेम से तुम्हें खिलाती

लौंग, इलायची, पान सुपारी
अर्पण करती तुम्हें मुरारी

तकिये पर कुहनी को टेक
कहते सब का मालिक एक

श्री मुख से शुभ वचन सुनाते
देवा अध लेटे हो जाते

पलकें दिखतीं थोडी भारी
निद्रा की होती तैय्यारी

फिर मैं कहती देवा मेरे
विश्राम करो अब भक्त के डेरे

शेज आरती गाकर स्वामी
तुम्हें सुलाती अँतरयामी

अहो भाग्य मेरा ये होता
जग का स्वामी सुख से सोता

काश अगर कहीं ऐसा होता
काश अगर कभी ऐसा होता

जय साईं राम
Title: सपने की सीख
Post by: saisewika on March 10, 2010, 01:18:07 PM
ॐ साईं राम

कल रात सपने में देखी
साईं लीला न्यारी
साईं माँ के घर जनमी मैं
बनके बेटी प्यारी

साईं माँ की गोदी में मैं
निश्चित पडी थी सोती
पल भर भी मैया जाती तो
सुबक सुबक मैं रोती

मेरे दिन और रात जुडे थे
साईं माँ के साथ
उन्हें काम करने ना देती
थामे रहती हाथ

साईं मैया जी ने सोचा
इसका एक उपाय
मुझे ले बाज़ार गईं और
खिलौने कई दिलाए

काठ की सखियाँ,काठ के साथी
नन्हें बरतन, चूल्हा,
छोटी प्यारी सुन्दर चीज़ें
काठ का सुन्दर दूल्हा

साईं मैया लगी काम में
यूँ मुझको बहला कर
मैं भी उनसे लगी खेलने
भूली माँ का आँचल

इतने में मेरी आँख खुल गई
सपना मेरा टूटा
सुन्दर खेल खिलौने और
साईं माँ का आँचल छूटा

उठ कर देखा ठीक सामने
बाबा को बैठा पाया
श्री चरणों में झुक कर मैंने
श्रद्धा से शीश नवाया

उत्साहित हो नाथ को मैंने
अद्भुत स्वप्न सुनाया
श्री मुख से तब बाबा जी ने
ये मधुर वचन फरमाया

क्या अर्थ है स्वप्न का आओ
मैं तुमको समझाता हूँ
बद्ध जीव और जीवन का मैं
सार तुम्हें समझाता हूँ

याद है तुमको स्वप्न में मैंने
खिलौने कई दिलाए थे
कैसे तुमको उलझाने को
माया जाल फैलाए थे

तुम भी उनको पा कर कैसे
फूली नहीं समाई थी
खेल खिलौनों में तुम डूबी
याद ना मेरी आई थी

ऐसे इस दुनिया में आकर
जीव भूलते हैं मुझको
मैं जो रचता माया उसमें
उलझा लेते हैं खुद को

सोने के पिंजरे में पँछी
सुख सुविधा को पा कर के
खुद को ना वो बद्ध समझता
दाना दुनका खा कर के

ऐसे जब तक मोक्ष की इच्छा
मन में किसी के जागे ना
बँधन को बँधन ना समझे
मोह माया से भागे ना

तब तक इस दुनिया में उसका
आना जाना होता है
ऐसे जनम जनम तक प्राणी
मानव देह को ढोता है

बाबा बोले - तुम पर है
तुम इसको जैसा भी मानो
माया में ही खुश रह लो
या फिर इसको बँधन जानो

पर अन्ततः आत्म मिलेगा
परमात्मा से आकर
जैसे नदिया बह कर मिलती
महा समुद्र में जाकर

ये कह कर बाबा जी प्यारे
मँद मँद मुस्काए
सपना दिखला कर माया के
सभी भेद समझाए

जय साईं राम

Title: धूनि माँ की महिमा
Post by: saisewika on March 25, 2010, 11:00:46 AM
ॐ साईं राम

इस बार द्वारकामाई में जाकर
धूनि माँ के सन्मुख सिर झुकाया,
तो उन्हे अपने से ही
बात करते हुए पाया

पिछले डेढ सौ साल से जलती धूनि ने
मेरे माथे को हल्के से छुआ
तो जैसे बाबा के स्पर्श का
मधुर सा आभास हुआ

यूँ ही अपने ताप को
फैलाते होले होले
धूनि माँ ने अपने
जीवन के भेद खोले

अपनी सुर्ख लपटों को
हल्के से लहरा कर
धूनि माँ बोली
अपनी गर्मी को गहरा कर

याद है मुझे आज भी वो दिन
जब बाबा ने अपनी योग शक्ति से
मुझे जलाया था
फिर हर दिन सुबह और शाम
मैनें प्रेम बाबा का पाया था

बाबा अक्सर लकडियाँ डालते हुए
मेरे सामने बैठ जाते थे
कभी आसमान की ओर देखते,
कभी श्री मुख से वचन फरमाते थे

साईं प्रतिदिन भिक्षा में
जो कुछ भी पाते थे
सर्वप्रथम उसकी आहूति
मेरी ज्वाला में चढाते थे

फिर हवा में चमकीली चिंगारियाँ
छोडते हुए धुनि माँ ने बताया
कैसे समय ने उन्हे
साईं की लीलाओं का साक्षी बनाया

एक बार दशहरे के दिन बाबा
क्रोधित हुए किसी बात पर
भक्तों को लगा कि क्रोध
शाँत ना होगा रात भर

बाबा ने अपने सभी वस्त्र
क्रोधित हो कर फाड डाले
और मेरी अग्नि की लपटों के
कर दिए हवाले

इस आहूति को पा मेरी लपटें
दुगुनी धधक पडी थी
बाबा की क्रोधाग्नि और मेरी ज्वाला
मानों एक साथ बढी थीं

धीरे धीरे बाबा शाँत हुए
और पुनः प्रेम बरसाया था
सब भक्त जनों ने मानो
नव जीवन सा पाया था

एक दिवस मैने भी
बाबा की लीला देखने का मन बनाया
और अपनी लपटों को तेज कर
ऊपर की ओर बढाया

अपनी ज्वाला को
धीरे धीरे बढा कर
जैसे मैने छू ही लिया
द्वारकामाई की छत को जा कर

अन्तरयामी साईं ने क्षण भर मे
मेरी इच्छा को था जान लिया
और अद्भुत लीला दिखला कर
उस इच्छा को था मान दिया

बाबा ने अपने सटके से चोट की
द्वारकामाई की दीवार पर
मेरी लपटें शाँत होने लगी
सटके की हर मार पर

साठ बरस में ना जाने
कितनी ही बार
बाबा की लीलाओं का
पाया था मैनें साक्षात्कार

एक अग्निहोत्र की तरह बाबा ने
मुझे जीवन भर प्रज्जवलित रक्खा था
और मेरी ही राख से उपजी 'ऊदि' का
भक्तों ने कृपा प्रसाद चक्खा था

बाबा से किसी भक्त ने
पूछा था एक बार
सदैव धूनि जलाए रखने का
क्या है आधार?

तब साईं नाथ ने
श्री मुख से जो फरमाया था
उसने भक्त जनों मे
मेरा महत्व बढाया था

बाबा ने कहा था-
धूनि की पावन अग्नि
कर्मों और विकारों को जलाती है
और जीवन में जो भी है,क्षणभंगुर है
यह एहसास कराती है

अग्नि वस्तु और कुवस्तु में
भेद नहीं जताती है
जो भी उसके सँपर्क में आए
उसे सम ताप ही पहुँचाती है

समस्त वेद पुराण भी
धूनि की महिमा गाते हैं
देवता भी अपना नैवेद्य
अग्नि के द्वारा ही पाते हैं

धूनि की अग्नि में भस्म हो
जो कुछ भी बच जाता है
उसी का तो हर साईं भक्त
महा प्रसाद पाता है

फिर गर्म साँस को
हवा में छोड कर
अपनी पावन लपटों से मानों
हाथों को जोड कर

धूनि माँ ने साईं नाथ को
प्रणाम किया
और मुझे आशिष देते हुए
अपनी वाणी को विश्राम दिया

मैंनें भी मँत्र मुग्धा हो
धूनि माँ की महिमा को जाना
साईॅ उनके माध्यम से जो कहना चाहते थे
उस सच को पहचाना

लोबान डालते हुए मैनें
धुनि माँ को प्रणाम किया
जीवन की एकमात्र सच्चाई
'ऊदि' का प्रसाद लिया

धूनि माँ से प्रेरित हो कर
मैने भी अपने ह्रदय में
साईं नाम की धूनि जलाई है
कोशिश करती हूँ उसमें
अपने विकारों की आहूति दूँ,
यही शिक्षा तो मैनें धूनि माँ से पाई है

जय साईं राम
Title: अनगिनत सवाल
Post by: saisewika on March 30, 2010, 09:02:22 AM
ॐ साईं राम


कई बार सोचती हूँ साईं
आपकी भक्ति के पथ पर
मेरी स्थिति कैसी है,
मेरा क्या स्थान है?
भक्ति का स्तर कैसा है?
क्या कोई आत्मज्ञान है?

आपने मुझे किस प्रकार
स्वीकार किया है?
अधम, साधारण या उत्तम
किस श्रेणी में स्थान दिया है?

क्या आपने मुझे
तात्या की तरह अपनाया है?
या फिर म्हालसापति की तरह
मैनें आपके दरबार में स्थान पाया है?

क्या मुझे शामा की तरह
आपसे रूठने का अधिकार है?
क्या खुशालचँद की तरह
आपको इस भक्त से भी विशेष प्यार है?

क्या लक्ष्मीबाई शिंदे की तरह
आप मेरा नेवैद्य भी करते हैं स्वीकार?
क्या राधाकृष्णामाई की तरह,महाप्रसाद पाने का
मुझे भी है अधिकार?

क्या भीमाजी पाटिल की तरह
मेरे गत कर्मों को आपने नष्ट कर दिया है?
क्या मेघा की तरह
मेरी पूजा को भी आपने स्वीकार किया है?

क्या सपटणेकर की तरह मेरे
दुविधाग्रस्त संशय से आप परेशान हैं?
क्या हाजी सिद्दीकी की तरह
मेरे अहँ को देख कर आप हैरान हैं?

मद्रासी भजनी मँडली के मुखिया की तरह
मेरी सकाम भक्ति, क्या आपको कष्ट पहुँचाती है?
इतने ढेर सवालों से बोझिल डगमग भक्ति
क्या मेरे नाथ को भाती है?

इन सब प्रश्नों का उत्तर देने को साईं
एक बार तो आपको सामने आना ही होगा
अपनी कृपा वृष्टि से देवा
भक्तिन को नहलाना ही होगा

जिस दिन आप हे नाथ
इन प्यासे नैनों के सन्मुख आओगे,
अपने सुमधुर आशिष से
मेरी आत्मा को सहलाओगे

उस दिन स्वामी मिट जाऐंगे
भ्रम, सँशय और सवाल
जग की ठगिनी माया के
सभी कटेंगे जाल

उस दिन हर सँदेह,
हर प्रश्न बेमानी हो जाएगा
शुभ दर्शन से मोहित ये मन
चिर विश्राँति को पाएगा

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: nitin_super on April 07, 2010, 12:59:02 AM
Jai Sai Ram
Om Sai Ram

Mere Baba hum sab ke paap ka kasht kam karke hume sidhi saadhi zindagi jine ki prerna dijiye. Baba shanti dijiye apane bhakto ke man ko. Aap ki jagat ke bhag vidhaata ho, aap ke dum se ye kudrat hai. Tum hi ek malik ho hum sabake. Hum sab tumari santaan. Apane bachcho pe daya drishti banaye rakhna..

Om Sai Ram
Title: ब्रह्मज्ञान
Post by: saisewika on May 05, 2010, 03:58:56 PM
ॐ साईं राम
 
 
ब्रह्मज्ञान की इच्छा रख
धनी महाशय एक
साईं नाथ के सन्मुख आ
बोले माथा टेक
 
 
दिया बहुत कुछ ईश ने
धन सँपत्त और दास
जो थी पूर्ण हो गई
हर इच्छा हर आस
 
 
अब तो बस ये चाहूँ मैं
ब्रह्मज्ञान मिल जाए
जल्दी से पा जाऊँ तो
जनम सफल हो जाए
 
 
साईं मैंने है सुना
देते हो तुम ज्ञान
ब्रह्म दर्शन करवा कर के
कर दो मम कल्याण
 
 
बाहर ताँगा है खडा
दिन जाता है ढलता
जल्दी ज्ञान मिल जाए तो
मैं वापिस हूँ चलता
 
 
मँद मँद मुस्काकर के
साईं ने फरमाया
धन्य हुआ जो मैंने आज
दर्शन आपका पाया
 
 
कितने ही जन आते यहाँ
इच्छा लिए अनेक
ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति को
आप ही आए एक
 
 
यहाँ विराजो मित्र तुम
देता हूँ मैं ज्ञान
विरले पिपासु आए तुम
भक्ति भाव की खान
 
 
साईं नाथ महाराज ने फिर
बालक एक बुलाया
पाँच रुपये उधार लाने को
उसको था दौडाया
 
 
खाली हाथ लौटा था बालक
एक नहीं कई बार
कई जगह पर जा कर भी
लाया नहीं उधार
 
 
धनी महाशय हुए अधीर
होती देख अबेर
बोले ब्रह्मज्ञान दो साईं
होती है मुझे देर
 
 
तब देवा ने श्री मुख से
मधुर वचन फरमाया
इस सारे नाटक से तुमको
समझ नहीं कुछ आया?
 
 
ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति का
सहज नहीं उपाय
मोह माया से ग्रसित जन
कैसे उसको पाय
 
 
ब्रह्मज्ञान का अधिकारी
सो ही जानो आप
पाँच वस्तुऐॅ त्यागे जो
हो जावे निष्पाप
 
 
पाँच प्राण, पाँच इन्द्रियाँ,
मन, बुद्दि, अहँकार
मुमुक्षु जन त्यागे इन्हें
समझे जीवन सार
 
 
बँधन माने माया को
होना चाहे मुक्त
प्रयत्न करे सँकल्प से
हो भक्ति से युक्त
 
 
उदासीन हो लोक से
चाहे ना धन मान
विरक्त रहे सँसार से
रमा रहे हरि नाम
 
 
अन्तर्मुखी हो मन से जो
इधर उधर ना डोले
लीन रहे परमात्म में
मुख से अमृत घोले
 
 
सभी दुष्टता त्याग दे
पाप कर्म को छोडे
पूर्ण शाँत और स्थिर होवे
नाता ईश से जोडे
 
 
सत्यवान हो, त्यागी हो
वश में कर ले मन
चित्त शुद्ध हो, सरल हो
उज्जवल होवे तन
 
 
ऐसे जीवन साध कर
गुरू कृपा जब होवे
ईश कृपा भी मिले उसे
जग के बँधन खोवे
 
 
ब्रह्मज्ञान मिलता नहीं
लोभ मोह के सँग
मन की काली चादर पे
चढे ना कोई रँग
 
 
पाँच रुपये के पचास गुना
धरे तुम्हारे पास
लेकिन धन की तृष्णा की
बुझी ना तेरी प्यास
 
 
धनी महाशय द्रवित हुए
पाकर मधुर उपदेश
श्री चरणों पर मस्तक टेक
पाया ज्ञान विशेष
 
 
जय साईं राम
 
 
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: nitin_super on May 09, 2010, 05:27:55 AM
Jai Sai Ram
Om Sai Ram

Sabka Malik Ek Sai..

Apane bachho pe daya karna Sai.
Unke dosho ko maaf kar dena Baba..

Tumhi ho mata, pita tumhi ho
Tumhi ho bandhu, sakha tumhi ho....

Om Sai Ram
Title: साईं तेरे भक्त जनों को क्या चाहिए
Post by: saisewika on June 30, 2010, 05:04:00 AM
ॐ साईं राम


साईं तेरे भक्त जनों को क्या चाहिए
तेरे श्री चरणों में बस जगह चाहिए

तेरे श्री दर्शन का एक बहाना चाहिए
शिरडी धाम में अपना आना जाना चाहिए

श्रद्धा और सबूरी का भँडार चाहिए
और ज़रा सा साईं तुमसे प्यार चाहिए

भक्त जनों के मस्तक पे तेरा हाथ चाहिए
हमको हरदम देवा तेरा साथ चाहिए

तेरी लीला लखने का हर मौका चाहिए
तुझसे जुड जाए जीवन ऐसा चोखा चाहिए

गुणगान तेरा करने को मधुर सी वाणी चाहिए
रूप तेरा जो निरखे, आँख नूरानी चाहिए

करे जो तेरे कारज साईं तन वो चाहिए
रमा रहे जो तुझमें, सुँदर मन वो चाहिए

तेरी लीला सुने जो हरदम कर्ण वो चाहिए
चले जो तेरे पथ पर, हमको चरण वो चाहिए

जीवन गाथा लिखे तेरी, कलम वो चाहिए
भाए तेरे मन को, चाल चलन वो चाहिए

समझे तेरा इशारा, ऐसी बुद्धि चाहिए
तुझको सौंप सकें, वो जीवन शुद्धि चाहिए

तेरी रज़ा में खुशी मिले, ज्ञान वो चाहिए
मिले तेरे दरबार में, हमको मान वो चाहिए

तेरे नाम से जुडे, वही पहचान चाहिए
साईंमय धरती और आसमान चाहिए


जय साईं राम
Title: तू सुने या ना सुने
Post by: saisewika on July 07, 2010, 09:35:08 AM
ॐ साईं राम


तू सुने या ना सुने
मैं पुकारूँगी
तू स्वीकारे ना स्वीकारे
तन मन वारूँगी

तू देखे या ना देखे
शीश नवाऊँगी
तू चाहे तो दुत्कारे
दूर ना जाऊँगी

तू चाहे तो मुख फेरे
दर ना छोडूँगी
तुझसे जो जोडा नाता
मैं ना तोडूँगी

तू चाहे प्रेम ना कर
मैं प्रीत निभाऊँगी
मैं भक्ति भाव की गँग में
बहती जाऊँगी

तू चाहे आशिष ना दे
चरण पखारूँगी
तू इम्तिहाँ ले मेरा
मैं ना हारूँगी

तू चाहे तो आज़मा ले
ना घबराऊँगी
मैं तेरा दामन थामें
भव तर जाऊँगी


जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Dipika on July 07, 2010, 09:45:42 AM
OMSAIRAM!Saisewika aaj tuney mere man ki bat keh di

I just cudnt express 2 baba...but u did it so beautifully

तू चाहे आशिष ना दे
चरण पखारूँगी
तू इम्तिहाँ ले मेरा
मैं ना हारूँगी

तू चाहे तो आज़मा ले
ना घबराऊँगी
मैं तेरा दामन थामें
भव तर जाऊँगी


जय साईं राम


Thanks Saisewika ...ur a real Sai sent messenger for me  ;D


Baba bless Saisewika with whatever she wamts in life  ;D

Bow to Sri Sai!

Sai baba let your holy lotus feet be our sole refuge.OMSAIRAM




Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saib on July 08, 2010, 02:32:20 AM
Dipika Ji,

Don't know I am right or not, But just feel, Asish ki iccha rakhna hi galat hai, Guru par itna vishvas hona chahiye ki woh jo denge uchit hi hoga, Yeh icchayen hi to dukh ka karan hai..................sara sansar icchaon ki aag mai jalta hai, Sai ki sharan me aakar bhi mukat na hue, to aisa mauka baar baar nahi milta.................!

om sri sai ram !
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on July 08, 2010, 06:12:17 AM
OM SAI RAM

SAIRAM  Dipikaji

You are absolutely right.....we are all messenger of Baba. He talks to us, advises us, guides us, consoles us, shower his blessings upon us through all of us (as the fortunate members of online SAI temples). We get signs of his will through each other's views, articles, prayers and sometimes through poems. We all are the agents of his SUPREME WILL.

SAIRAM Saibji

You are also absolutely right.....Baba knows what we require and what is best for us.....

Isi liye to kaha hai...


तू चाहे आशिष ना दे......


But still I think that spiritual wishes can not do any harm in the spiritual development of a person.....

JAI SAI RAM
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Dipika on July 08, 2010, 07:09:03 AM
Dipika Ji,

Don't know I am right or not, But just feel, Asish ki iccha rakhna hi galat hai, Guru par itna vishvas hona chahiye ki woh jo denge uchit hi hoga, Yeh icchayen hi to dukh ka karan hai..................sara sansar icchaon ki aag mai jalta hai, Sai ki sharan me aakar bhi mukat na hue, to aisa mauka baar baar nahi milta.................!

om sri sai ram !


OMSAIRAM!Saib bhai i dnt agree on this ...becoz some devotees use to go to Shyama for getting blessings from deva...BABA blessed Dr Pilley and removed his sufferings in 10 days...let BABA decide ...let it be between deva and devotee

take example of Mrs. Aurangabadkar ..Shama, "I know the power of Your word and blessing. Your word will give her a string or series of children. You are wrangling and not giving real blessing".

The parley went on for a while. Baba repeatedly ordering to break the coconut and Shama pleading for the gift of the unbroken fruit to the lady. Finally Baba yielded and said, "She will have an issue". "When?" asked Shama. "In 12 months" was the reply. The cocoa-nut was therefore broken into two part, one was eaten by the two, the other was given to the lady.

The Shama turned up to the lady and said, "Dear madam, you are a witness to my words. If within 12 months you do not get any issue, I will break a cocoa-nut against this Deva's head and drive him out of this Masjid. If I fail in this, I will not call myself Madhav. You will soon realize what I say".

She delivered a son in one year's time and the son was brought to Baba in his fifth month. Both husband and wife, prostrated themselves before Baba and the grateful father (Mr. Aurangabadkar) paid a sum of Rs.500/- which was spent in constructing a shed for Baba's house "Shyamakarna".

http://www.saibaba.org/satcharitra/sai36.html

agreed we should ask deva to give us what is best for us...let BABA decide being our father what is gud for his kid..:)

BABA doesnt like any other person interfering in devotion as quoted in SSC

let it be between deva and his devotee...what He gives will be ultimately gud for us  ;D

Baba's Characteristics -- His Dependency on Bhaktas

Baba allowed His devotees to serve Him in their own way, and did not like any other persons interfering in this. To quote an instance, the same Mavsibai was on another occasion, kneading Baba's abdomen. Seeing the fury and force used by her, all the other devotees felt nervous and anxious. They said, "Oh mother, be more considerate and moderate, otherwise you will break Baba's arteries and nerves". At this Baba got up at once from His seat, dashed His satka on the ground. He got enraged and His eyes became red like a live charcoal. None dared to stand before or face Baba. Then He took hold of one end of the Satka with both hands and pressed it in the hollow of his abdomen. The other end He fixed to the post and began to press His abdomen against it. The satka which was about two or three feet in length seemed all to go into the abdomen and the people feared that the abdomen would be ruptured in a short time. The post was fixed and immovable and Baba began to go closer and closer to it and clasped the post firmly. Every moment the rupture was expected, and they were all dismayed, did not know what to do, and stood dumb with wonder and fear. Baba suffered this ordeal for the sake of His Bhakta. The other devotees wanted only to give a hint to the Mavsibai to be moderate in her service and not cause any trouble or pain to Baba. This they did with good intention, but Baba did not brook even this. They were surprised to see that their well-intentioned effort had resulted in this catastrophe; and they could do nothing but to wait and see. Fortunately, Baba's rage soon cooled down. He left the satka and resumed His seat. From this time onward, the devotees took the lesson that they should not meddle with anybody but allow him to serve Baba as the chooses, as He was capable to gauge the merits and worth of the service rendered unto Him.  

Bow to Shri Sai - Peace be to all

Sai baba let your holy lotus feet be our sole refuge.OMSAIRAM

Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saib on July 08, 2010, 08:14:22 AM
Dear Dipika,

It was just what I think, so shared. Need not to agree or disagree. It was just a thought.

But do you Remember story of Bhai Manjh, You shared a few days ago.

http://forum.spiritualindia.org/bhai-manjh-t36077.0.html

and in your own words, Let baba decide.

Baba ki Leela Baba hi Jane!

Dear Saisewika,

But still I think that spiritual wishes cannot do any harm in the spiritual development of a person.....

Wish is a dangerous word, one should have aim to attain spiritual development, but how should leave completely on Guru. e.g. If you go to learn computer from a real master, He will take you step by step, We might wish to adopt as per own interest, but It is only Master who ensures to move from basic to advance!

also I feel I should not interfere in (individual) devotion of others, All possess different knowledge, If 5 people Read Sai satcharitra all will interpret differently as per their inner nature and spiritual level. I think it is a lesson, and I should take care in future.

Thanks to both of you! :)

om sri sai ram!
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Dipika on July 08, 2010, 09:42:39 AM
OMSAIRAM!Saib bhai whenever i read Sai Satcharitra it feels like i m learning some new lessons.

i used to think that we should ask BABA to give what is best for us and not what we may desire,but today i listened to reading of Chapter 36 from SSC by Veena Maa..2 instances i quote her showing how BABA gives us what HE tHINKS IS BEST

Baba did not allow Bhagat Mhalsapati to make any money, nor gave him anything from the Dakshina amount,Once a kind and liberal merchant named Hansaraj gave a large amount of money to Mhalsapati in Baba's presence, but Baba did not allow him to accept it.


The other instance is of Mrs. Aurangabadkar

Shama, "I know the power of Your word and blessing. Your word will give her a string or series of children. You are wrangling and not giving real blessing".

The parley went on for a while. Baba repeatedly ordering to break the coconut and Shama pleading for the gift of the unbroken fruit to the lady. Finally Baba yielded and said, "She will have an issue". "When?" asked Shama. "In 12 months" was the reply. The cocoa-nut was therefore broken into two part, one was eaten by the two, the other was given to the lady.

The Shama turned up to the lady and said, "Dear madam, you are a witness to my words. If within 12 months you do not get any issue, I will break a cocoa-nut against this Deva's head and drive him out of this Masjid. If I fail in this, I will not call myself Madhav. You will soon realize what I say".

She delivered a son in one year's time and the son was brought to Baba in his fifth month. Both husband and wife, prostrated themselves before Baba and the grateful father (Mr. Aurangabadkar) paid a sum of Rs.500/- which was spent in constructing a shed for Baba's house "Shyamakarna".

Bow to Shri Sai - Peace be to all

so let baba decide what is best for us....like in the case of Bhagat Mhalsapati and Mrs. Aurangabadkar


Bow to Sri Sai!

Sai baba let your holy lotus feet be our sole refuge.OMSAIRAM





Title: मौसी बाई कौजलगी
Post by: saisewika on July 12, 2010, 06:03:30 AM
SAIRAM Dipikaji

Thanks for being inspiration behind these lines.


ॐ साईं राम


मौसी बाई कौजलगी
बाबा की थी भक्त
साईं नाथ की सेवा का
पाया था शुभ वक्त

चरण दाब करती थी सेवा
ऐसे थे अहोभाग
हँसी ठिठोली भी चलती थी
भक्त जनों के साथ

एक दिवस फिर हुआ था ऐसा
मस्ज़िद माई के द्वार
प्रभु और भक्त का सँबँध बताने
लीला की करतार

बडे भाव से एकाग्र चित्त हो
अँगुलियाँ जोड दो हाथ की
वेणु मौसी पेट मसल कर
सेवा करती नाथ की

देख रहे थे भक्त सभी
मौसी को करते सेवा
ज्यों ज्यों पेट मसलती मौसी
इधर उधर सरकें देवा

वशीभूत हो प्रेम भाव से
व्यग्र हुए थे भक्त तभी
परामर्श देने मौसी को
ऐसा कहने लगे सभी

"मौसी कष्ट ना हो साईं को
धीरे धीरे हाथ चलाओ
अँतडी नाडी टूट ना जाए
कृप्या हौले से सहलाओ"

कह भी ना पाए थे इतना
और मुख में थी आधी बात
अति क्रोधित होकर आसन से
उठ बैठे थे साईं नाथ

आँखो से अँगार टपकता
गुस्से से मुख दमका था
सूरज जैसे आसमान में
आग उगल कर चमका था

साईं नाथ ने थामा सटका
नाभि पर रक्खा इक छोर
दूजा रक्खा धरती पर और
लगे लगाने पूरा ज़ोर

पेट से देते धक्का उसको
साईं क्रोधित होते थे
भयभीत हो भक्त सभी
सौ सौ आँसू रोते थे

कहीं जो सटका धँस गया अँदर
टूटेगी विपदा भारी
डरी हुई सी सहमी सी
खडी रही सँगत सारी

धीरे धीरे शाँत हो गया
परम गुरू का सारा क्रोध
दिखा के तेवर बाबाजी ने
भक्त जनों को दिया ये बोध

जैसे जिसके श्रद्धा भाव
वैसी सेवा कर ले दास
और किसी का हस्तक्षेप
सहन नहीं देवा को आप

मौसी बाई को भक्त जनों ने
शुद्ध भाव से रोका था
पर देवा का 'भक्त प्रेम' भी
सबसे अलग अनोखा था

ना कोई ज़्यादा ना कोई कम
सारे भक्त समान हैं
वो सब प्यारे हैं साईं को
जो भक्ति की खान हैं

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Dipika on July 12, 2010, 07:16:58 AM
SAIRAM Dipikaji

Thanks for being inspiration behind these lines.


ॐ साईं राम


मौसी बाई कौजलगी
बाबा की थी भक्त
साईं नाथ की सेवा का
पाया था शुभ वक्त

चरण दाब करती थी सेवा
ऐसे थे अहोभाग
हँसी ठिठोली भी चलती थी
भक्त जनों के साथ

एक दिवस फिर हुआ था ऐसा
मस्ज़िद माई के द्वार
प्रभु और भक्त का सँबँध बताने
लीला की करतार

बडे भाव से एकाग्र चित्त हो
अँगुलियाँ जोड दो हाथ की
वेणु मौसी पेट मसल कर
सेवा करती नाथ की

देख रहे थे भक्त सभी
मौसी को करते सेवा
ज्यों ज्यों पेट मसलती मौसी
इधर उधर सरकें देवा

वशीभूत हो प्रेम भाव से
व्यग्र हुए थे भक्त तभी
परामर्श देने मौसी को
ऐसा कहने लगे सभी

"मौसी कष्ट ना हो साईं को
धीरे धीरे हाथ चलाओ
अँतडी नाडी टूट ना जाए
कृप्या हौले से सहलाओ"

कह भी ना पाए थे इतना
और मुख में थी आधी बात
अति क्रोधित होकर आसन से
उठ बैठे थे साईं नाथ

आँखो से अँगार टपकता
गुस्से से मुख दमका था
सूरज जैसे आसमान में
आग उगल कर चमका था

साईं नाथ ने थामा सटका
नाभि पर रक्खा इक छोर
दूजा रक्खा धरती पर और
लगे लगाने पूरा ज़ोर

पेट से देते धक्का उसको
साईं क्रोधित होते थे
भयभीत हो भक्त सभी
सौ सौ आँसू रोते थे

कहीं जो सटका धँस गया अँदर
टूटेगी विपदा भारी
डरी हुई सी सहमी सी
खडी रही सँगत सारी

धीरे धीरे शाँत हो गया
परम गुरू का सारा क्रोध
दिखा के तेवर बाबाजी ने
भक्त जनों को दिया ये बोध

जैसे जिसके श्रद्धा भाव
वैसी सेवा कर ले दास
और किसी का हस्तक्षेप
सहन नहीं देवा को आप

मौसी बाई को भक्त जनों ने
शुद्ध भाव से रोका था
पर देवा का 'भक्त प्रेम' भी
सबसे अलग अनोखा था

ना कोई ज़्यादा ना कम
सारे भक्त समान हैं
वो सब प्यारे हैं साईं को
जो भक्ति की खान हैं

जय साईं राम


OMSAIRAM!Dear SaiSewika i am just a humble servant of BABA..

ITS baba's leelas..HE alone sings HIS leelas through blessed kids like you

BABA bless u to write many more leelas in a poetic form

these lines moved me to tears...

पेट से देते धक्का उसको
साईं क्रोधित होते थे
भयभीत हो भक्त सभी
सौ सौ आँसू रोते थे

ना कोई ज़्यादा ना कम
सारे भक्त समान हैं
वो सब प्यारे हैं साईं को
जो भक्ति की खान हैं


Sai baba bless us all


Bow to Sri Sai!

Sai baba let your holy lotus feet be our sole refuge.OMSAIRAM


Title: बूझो क्या है उसका नाम?
Post by: saisewika on July 15, 2010, 10:20:28 AM
ॐ साईं राम


वो जो सब का पालनकर्ता
वो दुख हरता
वो सुख करता
क्या है उसका नाम?
बूझो क्या है उसका नाम?

शिरडी धाम में बसने वाला
सँत फकीर बडा निराला
भक्त जनों का जो रखवाला
क्या है उसका नाम?
बूझो क्या है उसका नाम?

तात्या और शामा का प्यारा
मेघा को जिसने था तारा
मस्जिद माई जिसका द्वारा
क्या है उसका नाम?
बूझो क्या है उसका नाम?

वैद्यों का जो वैद्य महान
सँस्कृत भाषा का विद्वान
अष्टाँग योग का जिसको ज्ञान
क्या है उसका नाम?
बूझो क्या है उसका नाम?

धूनि जिसने सदा जलाई
आधि व्याधि मार भगाई
वो ही सबका सर्व सहाई
क्या है उसका नाम?
बूझो क्या है उसका नाम?

जिसने जल से दीप जलाए
श्री चरणों से स्त्रोत बहाए
भेद भाव ना जिसे सुहाए
क्या है उसका नाम?
बूझो क्या है उसका नाम?

जिसे चाहिए श्रद्धा पूरी
चाहे धीरज और सबूरी
भक्तों से ना रखता दूरी
क्या है उसका नाम?
बूझो क्या है उसका नाम?

भिक्षा लेता, टाट पे सोता
हाथ में थामें रहता सोटा
हँसता कभी, कभी वो रोता
क्या है उसका नाम?
बूझो क्या है उसका नाम?

महाप्रसाद में भस्म जो बाँटे
पाप ताप सँताप जो काटे
कभी दुलारे कभी वो डाँटे
क्या है उसका नाम?
बूझो क्या है उसका नाम?

हर प्राणी में देखे ईश
निर्मल पावन वो जगदीश
झुकता जिसके दर हर शीश
क्या है उसका नाम?
बूझो क्या है उसका नाम?

जिसको हमने सब कुछ माना
सबका वो जाना पहचाना
पहेली तो बस एक बहाना
जपने को साईं नाम
आओ जप लें उसका नाम
बोलो साईं राम, साईं राम, साईं राम

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: arti sehgal on July 16, 2010, 12:07:35 AM
jai sairam
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on July 17, 2010, 10:42:02 AM
ॐ साईं राम


आओ हिल मिल कर लेते हैं
साईं की जय जय कार सखी
जो सदगुरू सर्व सहाई है
उस पर तन मन दे वार सखी

हम ठहरे मिट्टी के ढेले
वो ठहरा कुम्भकार सखी
हम बेढब पीतल के लौंदे
वो अद्भुत है स्वर्णकार सखी
हम अति मलिन, मैले, मलयुत
वो पावन गँगा की धार सखी

वो हमें थामने खडा हुआ
हम गिरने को तैयार सखी
काम, क्रोध से भरा ये मन
और सौ सौ भरे विकार सखी
अपराध हमारे पर्वत सम
वो ठहरा बक्शनहार सखी

भक्ति के पथ पर खँदक खाई
और गड्ढों की भरमार सखी
जो हाथ थाम ले सदगुरू साईं
तो होगा बेडा पार सखी
जो पूर्ण समर्पण कर दें हम
तो हो जाए ऊद्धार सखी

जीवन के रस्ते अति कठिन
ज्यों दो धारी तलवार सखी
ना चाहें तो भी उलझे हम
ये होता बारम्बार सखी
हम गिर के उठ ना पाऐंगे
जो थामें ना सरकार सखी

हम कर्म भूमि के पथ पर चल
करते कितने व्यवहार सखी
कितना भोला वो साईं है
जो कर लेता स्वीकार सखी
चलो हाथ जोड कर करें नमन
कुछ व्यक्त करें आभार सखी

हर आँख के सुँदर सपने को
वो करता है साकार सखी
जहाँ सबकी झोली भरती है
वो सच्चा है दरबार सखी
जहाँ झुकने को मन करता है
हर भक्त का बारम्बार सखी

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Dipika on July 17, 2010, 11:29:46 AM
OMSAIRAM!Just love your poems dear SaiSewika..

 हर आँख के सुँदर सपने को
वो करता है साकार सखी
जहाँ सबकी झोली भरती है
वो सच्चा है दरबार सखी
जहाँ झुकने को मन करता है
हर भक्त का बारम्बार सखी



जय साईं राम

Sai baba bless us all


Bow to Sri Sai!

Sai baba let your holy lotus feet be our sole refuge.OMSAIRAM जय साईं राम

Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on July 18, 2010, 09:22:52 AM
OM SAI RAM

SAIRAM Dipika ji

I too am a humble servant of our Baba SAI. He alone is the doer of all Karmas. He is the one who assign different tasks to different devotees according to his wish.

Hemadpant has a beautifully description about this in chapter 3 of SAI SATCHARITRA

Different Works Assigned to Devotees

The Lord entrusts different works to different devotees. Some are given the work of building temples and maths, or ghats (flight of steps) on rivers; some are made to sing the glories of God; some are sent on pilgrimages; but to me was allotted the work of writing the Sat Charita. Being a jack of all trades but master of none, I was quite unqualified for this job. Then why should I undertake such a difficult job? Who can describe the true life of Sai Baba? Sai Baba’s grace alone can enable one to accomplish this difficult work. So, when I took up the pen in my hand, Sai Baba took away my egoism and wrote Himself His stories. The credit of relating these stories, therefore, goes to Him and not to me. Though Brahmin by birth, I lacked the two eyes. (i.e. the sight or vision) of Shruti and Smriti and therefore was not at all capable of writing the Sat-Charita, but the grace of the Lord makes a dumb man talk, enables a lame man to cross a mountain. He alone knows the knack of getting things done as He likes. Neither the flute, nor the harmonium knows how the sounds are produced. This is the concern of the Player. The oozing of Chandrakant jewel and the surging of the sea are not due to the jewel and the sea but to the rise of the moon.


Baba SAI bless us all

JAI SAI RAM

Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Dipika on July 18, 2010, 11:24:46 AM
OMSAIRAM!Dear sis SaiSewika...ur my Sai Sister who is truly humble


I totally agree with u that BABA's is the doer of all karmas.

Its true BABA assigns different works to different devotees.


Sai baba bless us all


Bow to Sri Sai!

Sai baba let your holy lotus feet be our sole refuge.OMSAIRAM जय साईं राम
Title: कभी तो साईं
Post by: saisewika on July 27, 2010, 10:25:39 AM
ॐ साईं राम


कभी तो साईं सन्मुख आओ
कभी तो कर लो हमसे बात
कभी तो हाथ बढाओ स्वामी
कभी तो थामों मेरा हाथ


कभी तो बैठो बातें कर लें
सुख दुख तुमसे बाँटे नाथ
कभी तो दिल की गाँठे खोलें
पल दो पल तो काटें साथ


कभी तो सहला दो हे देवा
कर कमलों से भक्त का माथ
कभी तो प्रेम पगी दृष्टि से
हमें निहारो प्यारे तात


कभी तो साईं हँसी ठिठोली
हमसे भी कर लो हे नाथ
अधरों पे मुस्कान बिखेरो
बहने दो दिल के जज़्बात


कभी तो जीवन के रस्ते पर
कदम मिला कर चल दो साथ
इस जीवन में अपने सँग की
एक बार दे दो सौगात


जय साईं राम
 
Title: धन्यवाद हो तेरा साईं
Post by: saisewika on July 28, 2010, 09:51:44 AM
ॐ साईं राम


धन्यवाद हो तेरा साईं
रोम रोम से मेरे
तू ही पार लगाता स्वामी
भक्त जनों के बेडे


कैसे करता है तू देवा
लीला इतनी प्यारी
बँजर भूमि में उपजाता
फूलों से भरी क्यारी


बीहड में तू स्त्रोत बहाता
अदभुत तेरी क्षमता
कृपा सिन्धु तू दया की मूरत
छल छल छलके ममता


असँभव को कर देता सँभव
जाने कैसे दाता
दे देता है उसको जो भी
हाथ पसारे आता


तेरे आषिश से हे साईं
पँगु चढते परबत
चक्षुहीन दृष्टि पा जाते
ऐसे तेरे करतब


नास्तिक के हृदय में देवा
तू भक्ति उपजाता
पाषाण हृदय हैं जिनके उन में
प्रेम के दीप जलाता


बुद्धिहीन को बुद्धि देता
निर्बल को बल देता
भक्त जनों के दुख तकलीफें
अपने ऊपर लेता


निर्धन धन पाते हैं मालिक
आ कर तेरे द्वारे
बीच भँवर में जिनकी नैया
करता तू ही किनारे


अवगुण दूर हटा कर तू
विनम्र बनाता दास
तेरे शरण में आ कर होता
अहँकार का नाश


तेरी ऊदि से मिट जाते
पाप ताप और श्राप
कृपा दृष्टि से मिट जाते हैं
मन के सब सँताप


क्या गिनवाऊँ कैसे गाऊँ
तेरा लीला गान
शब्दकोश में शब्द नहीं
मैं कैसे करूँ बखान


वाणी में रस, हृदय में भाव
भर दे करुणाप्रेरे
नित नित गाऊँ गान तेरा
अहोभाग्य हों मेरे

जय साईं राम
Title: तू ही तू है
Post by: saisewika on August 04, 2010, 07:38:24 AM
ॐ साईं राम


साईं ये जग
छाया तेरी
कतरा कतरा
माया तेरी
तू उलझाता
तू सुलझाता
स्वप्न दिखा कर
तू भरमाता
सकल जगत
प्रतिच्छाया तेरी

जब जी चाहे
तू दे देता
जिससे चाहे
वापस लेता
रूप बदल
आता हर युग में
सतयुग कलयुग
द्वापर त्रेता

परमार्थ के रस्ते
तू ही डाले
मोह माया से
भक्त निकाले
रिद्धि सिद्धि
दे देता उनको
जिनका जीवन
तेरे हवाले

अहम भाव का
नाशक तू है
शुद्ध भाव का
रक्षक तू है
अणु अणु का
स्वामी तू है
सकल सृष्टि का
सँरक्षक तू है

स्व गाथा का
गायक तू है
अनुयायियों का
नायक तू है
सत्कर्मों का
प्रेरक तू ही
भक्तों को
फलदायक तू है

जीवन के
हर कर्म में तू है
भक्ति पथ और
धर्म में तू है
जिन खोजा
तिन ये ही पाया
जीवन के
हर मर्म में तू है

जय साईं राम
Title: अच्छा लगता है
Post by: saisewika on August 07, 2010, 06:13:23 AM
ॐ साईं राम


मुझे अच्छा लगता है
मेरे साईं
अच्छा लगता है

काँकड गा कर तुझे जगाना
अच्छा लगता है
सुबह सुबह तेरा दर्शन पाना
अच्छा लगता है

श्रद्धा से तुझको नहलाना
अच्छा लगता है
बडे चाव से तुझे सजाना
अच्छा लगता है

तेरी खातिर भोज बनाना
अच्छा लगता है
प्रेम भाव से तुझे खिलाना
अच्छा लगता है

तेरे आगे दीप जलाना
अच्छा लगता है
मधुर स्वरों में आरती गाना
अच्छा लगता है

तेरे दर नित चल कर आना
अच्छा लगता है
श्री चरणों में शीश झुकाना
अच्छा लगता है

तेरे सँग कुछ वक्त बिताना
अच्छा लगता है
दिन भर की बातें बतलाना
अच्छा लगता है

बातें सुन तेरा मुस्काना
अच्छा लगता है
कभी कभी पलकें झपकाना
अच्छा लगता है

तेरी शान में गीत बनाना
अच्छा लगता है
सारी सँगत को पढवाना
अच्छा लगता है

मेरी मैं का तू हो जाना
अच्छा लगता है
तेरी दुनिया में खो जाना
अच्छा लगता है

जय साईं राम
Title: काश अगर ऐसा होता
Post by: saisewika on August 11, 2010, 06:45:41 AM
ॐ साईं राम


काश अगर ऐसा होता
बाबा आज भी द्वारकामाई में
सशरीर विराजित होते
जो भी शिरडी जाता॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
बाबा के सदेह दर्शन पाता॰॰॰॰॰॰॰॰

अब यूँ ना कहिएगा कि
बाबा हैं ना सब तरफ
बस मन की आँखें चाहिए
उन्हें भीतर खोजूँ वगैरहा वगैरहा॰॰॰॰॰॰॰॰॰

मुझे तन की आँखों से देखना है उन्हें॰॰॰॰॰॰
आमने सामने॰॰॰॰जेसे देखते थे सब भक्त
जो उनके साथ थे॰॰॰॰॰॰॰

काश अगर ऐसा होता
आज भी समाधि मँदिर की जगह पर
बाबा के हाथों से सींची, रोपी,
पुष्पित, पल्लवित फुलवारी होती
हम उसमें से फूल तोडते,गूँथते,
और प्रेम से बनाई माला
बाबा के गले में पहनाते॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰

अब यूँ ना कहिएगा कि
भावों की माला बनाकर
बाबा को पहना दी
तो समझो बाबा ने माला पहन ली॰॰॰

मुझे सचमुच दुनिया के सुन्दरतम फूलों से
गूँथी माला बाबा को पहनानी है॰॰॰॰॰॰॰॰
और फिर देर तक उन्हें निहारना है॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰

काश अगर ऐसा होता कि
चावडी के जुलूस में॰॰॰॰॰॰
बाबा के सन्मुख चँवर ढुलाने का अवसर
हमें भी मिलता॰॰॰॰॰
बाबा हौले हौले श्री चरण बढाते
लाल गलीचे पर चलते
तो हम भी उन के पीछे चलते

अब यूँ ना कहिएगा कि
शिरडी में पालकी यात्रा में
शामिल हो जाओ॰॰॰॰॰॰॰या फिर
हर रात सोने से पहले
चावडी समारोह का दृश्य
आँखों के सन्मुख लाऊँ
और समझूँ कि मैं
उस जुलूस में सम्मिलित थी॰॰॰॰॰॰॰॰॰

मुझे सच में चावडी जुलूस में
अपने बाबा के कोमल पैरों तले
गुलाब की पँखुडियों को बिछाना है॰॰॰॰॰॰॰
उनके श्री चरणों की धूल को
अपने माथे से लगाना है॰॰॰॰॰॰॰॰॰

काश अगर ऐसा होता कि
बाबा द्वारकामाई में बैठ
श्री मुख से प्रवचन सुनाते,
अपने अनोखे अँदाज़ में कहानियाँ कहते,
और मैं सब भक्तों के बीच बैठी
बाबा की मधुर वाणी सुनती,
उनकी ठिठोली पर हँसती,
उनके गुस्से पर सहमती॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰

अब यूँ ना कहिएगा कि
मैं साईं सच्चरित्र का पाठ करके ही
साईं लीलाओं का आनँद लूँ
और भक्तों के अनुभव पढकर
मालिक की कृपाओं को अनुभव करूँ

सच तो ये है कि जब जब भी मैनें
बाबा के चरित्र का पाठ किया है,
उनकी लीलाओं का अमृत पान किया है॰॰॰॰॰॰
तब तब ही जैसे कोई अँदर से चीत्कार करता है॰॰॰॰॰
क्यों मै सौ बरस पहले ना जन्मी॰॰॰॰॰॰॰॰
क्यों समय वहीं रूक नहीं गया॰॰॰॰॰॰
क्यों॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: arti sehgal on August 12, 2010, 01:09:54 AM
jai sairam sai sewika
bahut sundar lika hai . may sai bless you . aaj to tumne sai ka bhi dil jeet liya hoga .
jai sairam
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on August 12, 2010, 09:41:39 AM
OM SAI RAm

SAIRAM Arti

May Baba bless all of us.


ॐ साईं राम


वो मेरे मन का साईं
हर पल हर घडी
आठों याम मेरे साथ ही रहता है

मेरी ढेर सी बातें सुनता है
मुझसे ढेरों बातें कहता है

सोते जगते उठते बैठते
खाते पीते सब समय वो
मेरे साथ होता है
मेरे सुख में हँसता है
मेरे दुख में रोता है

वही गुनगुनाता है
नईं नईं पँक्तियाँ मेरे कानो में
यही अटूट सत्य है
तुम मानों या ना मानों ये

मेरी कलम से निकला
हर शब्द उसका है
हर पँक्ति उसकी है
हर ख्याल उसका है

मैं स्वयँ कुछ लिख नहीं सकती
मैंने कुछ लिखा ही नहीं
सच तो ये है कि
उससे परे या उससे अलग
मुझे कुछ दिखा ही नहीं

कविता?॰॰॰॰॰॰॰वो क्या होती है?
मैं नहीं जानती
उसके कोई कायदे कानून
मात्रा व्याकरण
मैं नहीं मानती

बस इतना जानती हूँ कि॰॰॰॰॰॰॰
ये लेखनी उसकी है॰॰॰॰॰॰॰
लीला उसकी है॰॰॰॰॰॰॰॰
स्याही उसकी है॰॰॰॰॰॰॰

और अगर ये पँक्तियाँ
किसी को भाती हैं॰॰॰॰॰॰
तो तारीफ भी उसकी है॰॰॰॰॰॰

किसकी?????
वही वो मेरे मन का साईं
जो हर पल हर घडी
आठों याम मेरे साथ ही रहता है
मेरी ढेर सी॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰

जय साईं राम
Title: साईं तेरे दर पे
Post by: saisewika on August 19, 2010, 12:51:33 PM
ॐ साईं राम


हिंदु भी खडे हैं और
मुसलमान खडे हैं
निर्धन भी खडे हैं
और धनवान खडे हैं

साईं तेरे दर पे
सब ही आन पडे हैं॰॰॰॰॰॰॰॰॰

फैलाए खडे हैं कोई तो
झोलियाँ अपनी
कोई लुटाने को
दिल और जान खडे हैं

फरमान तेरा सुनने को
चले आए हैं कई
कहने को कोई अपनी
दास्तान खडे हैं

सीने में हूक, आँखों में
पानी है कईयों के
अधरों पे लिए कई तो
मुस्कान खडे हैं

थैलियाँ ले आए हैं
कई सोने चाँदी की
कोई लिए दिल में
बस तूफान खडे हैं

झुके खडे हैं कई
तेरी रहमतों तले
कोई तुझपे करने को
अहसान खडे हैं

दुनिया की ठोकरों से
बेजान से हैं कई
करने को तेरा सजदा
कई इँसान खडे हैं

पँक्ति में खडे हैं
जो हैं आम आदमी
पर आगे आगे खास
कुछ मेहमान खडे हैं

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on September 05, 2010, 10:32:58 AM
ॐ साईं राम


शुक्रिया साईं

मेरी हर माँग को पूरा करने के लिऐ
मैंने वक्त, बेवक्त
जायज़, नाजायज़
सँभव, असँभव
तिनका, पहाड
चीज़ या रिश्ता
यहाँ तक कि
देश और जहान
जो भी माँगा है तुमसे
जैसे भी
अड कर,
ज़िद कर
हक से
रो कर
पैर पटक कर
मान मनुहार से
रिश्वत का लालच दे कर
और ना जाने
किस किस चीज़ का वास्ता दे कर
तुमने हमेशा ही दिया है॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
कैसे साईं कैसे?॰॰॰॰॰॰॰
मेरे दिल की धडकन तक तुम सुन लेते हो
कैसे काँटों में से फूल फूल मेरे लिए चुन लेते हो
कैसे तुम्हें पहले से पता होता है कि
मैं जीवन के कौन से रास्तों से गुज़रने वाली हूँ
तुम पहले से सब बाधाऐं दूर कर देते हो
सच तो ये है कि
अब मैं  स्तब्ध भी नहीं होती
क्योंकि॰॰॰॰॰॰
जब भी मेरे सामने कोई मुश्किल आ खडी होती है
मैं जानती हूँ कि उसके पीछे तुम खडे ही हो॰॰॰॰॰॰॰
धक्का दे कर परे कर ही दोगे उसे॰॰॰॰॰॰॰॰॰

शुक्रिया साईं॰॰॰॰॰॰॰॰॰
मेरे मन में इस विश्वास को जगाने के लिए॰॰॰॰॰॰॰॰॰
शुक्रिया मेरे विश्वास पर दौडे आने के लिए॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰

शुक्रिया मेरे मालिक॰॰॰॰॰॰॰

जय साईं राम
Title: साईं का निर्वाण दिवस
Post by: saisewika on October 15, 2010, 12:45:35 PM
ॐ साईं राम

चलो साईं का निर्वाण दिवस
कुछ यूँ मनाते हैं
द्वारकामाई की धूनि में
हर पाप जलाते हैं

भूल जाते हैं दीवारें
झूठे मज़हब की
चलो दीवाली और ईद
इक साथ मनाते हैं

छोड देते हैं दिखावा
सोने चाँदी का
चलो किसी भूखे को चल
खाना खिलाते हैं

मँदिरों की सीढियाँ तो
हर रोज़ चढते हैं
आज चल वृद्धाश्रम का
चक्कर लगाते हैं

शिकवे तो कर लेते हैं
हर रोज़ साईं से
आज श्री चरणों में बस
मस्तक झुकाते हैं

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on October 27, 2010, 12:15:20 PM
ॐ साईं राम


जब भी हाथ पसारा साईं
तुझसे श्रद्धा भक्ति माँगी
सुख सँपत्त की आस ना रखी
दुख सहने की शक्ति माँगी

तेरी रज़ा में रही मैं राजी
कष्टों से घबराई ना
शूलों पर भी चली मैं लेकिन
पीडा मुख पर आई ना

पर हे देवा आज मैं आई
आँचल को फैला कर के
परम पिता मेरे प्रिय पिता के
जीवन की भिक्षा तू दे

पीडा उनकी बडी है भारी
बोझिल है जर्जर काया
जीवन पर मेरे तात के छाया
दुखों का काला साया

कष्ट उनका देख देख मैं
सौ सौ आँसू रोती हूँ
किंचित दुख भी बाँट ना पाती
मन का आपा खोती हूँ

दया करो मम जनक पे देवा
स्वस्थ करो उन्हें तन मन से
दीर्घायु का वर दो साईं
हारें ना वो जीवन से

वैद्यों के हे वैद्य महान
खाली झोली भर दो तुम
मेरे जीवन दाता की
आधि व्याधि हर लो तुम

भीमा जी के कर्म बन्ध को
देवा तुमने काटा था
दुख दर्द का साया साईं
स्व आशिष से छाँटा था

स्व भक्तों की व्याधि को
तुमने तन पर धारा था
शामा जी के सर्प दँश को
तुमने नाथ उतारा था

रामचन्द्र और तात्या को
तुमने जीवन दान दिया
जो भी आया हाथ पसारे
तुमने था कल्याण किया

मैं भी तेरे दर पर आई
आँखों में आँसू भर के
मेरे प्रिय पिता का जीवन
साईं तेरे हाथों में

कृपा करो हे परम कृपालु
दया करो दयामय ईश
बाबुल छत्र रहे मेरे सिर पर
वरद हस्त धर दो आशिष

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Dipika on November 04, 2010, 08:41:27 PM
ॐ साईं राम


जब भी हाथ पसारा साईं
तुझसे श्रद्धा भक्ति माँगी
सुख सँपत्त की आस ना रखी
दुख सहने की शक्ति माँगी

तेरी रज़ा में रही मैं राजी
कष्टों से घबराई ना
शूलों पर भी चली मैं लेकिन
पीडा मुख पर आई ना

पर हे देवा आज मैं आई
आँचल को फैला कर के
परम पिता मेरे प्रिय पिता के
जीवन की भिक्षा तू दे

पीडा उनकी बडी है भारी
बोझिल है जर्जर काया
जीवन पर मेरे तात के छाया
दुखों का काला साया

कष्ट उनका देख देख मैं
सौ सौ आँसू रोती हूँ
किंचित दुख भी बाँट ना पाती
मन का आपा खोती हूँ

दया करो मम जनक पे देवा
स्वस्थ करो उन्हें तन मन से
दीर्घायु का वर दो साईं
हारें ना वो जीवन से

वैद्यों के हे वैद्य महान
खाली झोली भर दो तुम
मेरे जीवन दाता की
आधि व्याधि हर लो तुम

भीमा जी के कर्म बन्ध को
देवा तुमने काटा था
दुख दर्द का साया साईं
स्व आशिष से छाँटा था

स्व भक्तों की व्याधि को
तुमने तन पर धारा था
शामा जी के सर्प दँश को
तुमने नाथ उतारा था

रामचन्द्र और तात्या को
तुमने जीवन दान दिया
जो भी आया हाथ पसारे
तुमने था कल्याण किया

मैं भी तेरे दर पर आई
आँखों में आँसू भर के
मेरे प्रिय पिता का जीवन
साईं तेरे हाथों में

कृपा करो हे परम कृपालु
दया करो दयामय ईश
बाबुल छत्र रहे मेरे सिर पर
वरद हस्त धर दो आशिष

जय साईं राम


(http://lh3.ggpht.com/_lOgd1uS-wX0/TNCA87f3UqI/AAAAAAAAF3s/g_iFDHl9tfA/s400/happy-deewali-greetings.jpg)


श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।


साईं बाबा अपने पवित्र चरणकमल ही हमारी एकमात्र शरण रहने दो.ॐ साईं राम
Title: दक्षिणा का मर्म
Post by: saisewika on November 25, 2010, 12:24:39 PM
ॐ साईं राम



साईं नाथ की लीला का
अद्भुत था व्यवहार
बाबा माँगे दक्षिणा
अपने हाथ पसार

यूँ ही व्यर्थ ना माँगते
बाबा सबसे दान
लक्ष्य नाथ का एक था
भक्तों का कल्याण

गत जन्मों का करना हो
जिस जन ने भुगतान
उससे पैसा माँगते
शिरडी के भगवान

इक पैसे की दक्षिणा
माँगे जब सरकार
अपने भक्त से साईं की
होती ये दरकार

प्राणी मात्र में जानिए
एक आत्म का वास
सबका मालिक एक है
कर लो ये विश्चास

दो पैसे की दक्षिणा
साईं भक्ति का सार
साईं नाथ से जोडता
सीधे मन के तार

इक पैसा है श्रद्धा का
दूजा पैसा सबूरी
धारणकर्ता की मिट जाती
परम पिता से दूरी

जब भी मालिक माँगते
दान में रूपये चार
तब वो चाहते भक्त से
ऐसा कुछ व्यवहार

अपने मन, चित्त, बुद्धि से
अहँकार को त्याग
चित्त उपवन मे रोप लो
साईं का अनुराग

पाँच रूपये की दक्षिणा
जिससे माँगे देव
प्रिय भक्त से चाहते
दाता यही सदैव

पाँच प्राण पाँच इन्द्रियाँ
साध सके तो साध
मन के पौधे में डालो
भक्ति भाव की खाद

जब जब माँगे साईं जी
छः रूपये का दान
भक्त को देना चाहते
देवा ऐसा ज्ञान

साईं के सन्मुख करो
षड् रिपुओं का अर्पण
काम क्रोध लोभ मोह मद मत्सर
कर दो इन्हें समर्पण

नौ रूपये की दक्षिणा
भक्ति भाव की नींव
भक्ति के प्रकार की
देते दाता सीख

चाहे जिस भी भाव से
ध्याओ अपना ईश
अडिग रहे विश्वास तो
पाओगे जगदीश

पँद्रह रूपये की दक्षिणा
अनुपम बडी विशेष
जब जब साईं माँगते
देते ये सँदेश

धार्मिक पुस्तक से करो
शिक्षा आत्मसात
फिर साईं के भक्तों में
बाँटो वह सौगात

अति उत्तम जो भक्त थे
परम भाग्य की खान
साढे सोलह रूपये का दान
माँगे उनसे भगवान

पूर्ण शरणागत से चाहें
दक्षिणा ऐसी नाथ
उन भक्तों के मस्तक पर
रहता साईं का हाथ

साईं नाथ की दक्षिणा का
बडा गूढ था मर्म
वो ही देते साईं को
जिनके अच्छे कर्म

अपने तन पर ओढते
भक्त जनों के कष्ट
माँग भक्त से दक्षिणा
करते पाप को नष्ट

दे दक्षिणा होते भक्त
कर्म बन्ध से मुक्त
भक्त जनों की पीडा हर
नाथ भी होते तृप्त

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: drashta on November 28, 2010, 09:50:14 AM
Om Sai Ram.

Dear Saisewika ji,
Thank you very much for this beautiful poem. I have been missing your presence on this forum. Great to have you back :).

Love and regards,
Jai Sai Ram.
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on January 19, 2011, 01:15:11 PM
ॐ साईं राम


तन पर कफनी
सिर पर पटका
काँधे झोला
हाथ में सटका
अद्भुत उसका रूप निराला
दया दृष्टि बरसाने वाला


होठो पर स्मित रेखा न्यारी
आँखे सारे जग से प्यारी
करूणा रस बरसाने वाला
मेरा साईं बडा निराला


दो आवाज़ तो दौडा आता
स्व वचनों को सदा निभाता
जन जन का जो है रखवाला
व्याधि दूर भगाने वाला


भक्त जनों के कष्ट ओढता
बीच भँवर में नहीं छोडता
भव से पार लगाने वाला
ब्रह्म के दरस कराने वाला


हृदय में प्रेम गँग थी बहती
नयनों मे करूणा थी रहती
जल से दीप जलाने वाला
चमत्कार दिखलाने वाला


ना कोई है, ना था, ना होगा
तीन लोक में वैसा दूजा
धूनि सदा रमाने वाला
शिव सा साईं भोला भाला


हिंदु मुस्लिम सब का स्वामी
कण कण में वो अँतरयामी
एक ईश बतलाने वाला
भेदी भाव मिटाने वाला


जड चेतन का कर्ता धर्ता
वो दुख हरता वो सुख करता
रमते राम बुलाने वाला
उदिया की गुनिया लाने वाला


जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Dipika on January 19, 2011, 08:52:44 PM
OMSAIRAM!SaiSewika dear i was really missing your wonderful poems.

Your poem touches our emotions..दो आवाज़ तो दौडा आता
स्व वचनों को सदा निभाता

how sweet our BABA is,HE keeps running towards his bhaktas in their hour of need.

Thankyou BABA

I wil get ur no from Tana and speak wth u soon.


साईं बाबा अपने पवित्र चरणकमल ही हमारी एकमात्र शरण रहने दो.ॐ साईं राम
Title: हैप्पी वैलेन्टाइन डे
Post by: saisewika on February 14, 2011, 11:53:03 AM
ॐ साईं राम



आज सुबह वैलेन्टाइन डे के दिन बाबा ने
प्यार से मेरे माथे को सहलाकर मुझे जगाया
और मेरे हाथ में लाल गुलाबों का
सुन्दर सा गुलदस्ता थमाया


मैंने अचरज से बाबा की ओर देखा
उनके दमकते चेहरे पर चमकती थी स्मित रेखा


बाबा मुझे देख मँद मँद मुस्कुरा रहे थे
और हौले हौले हैप्पी वैलेन्टाइन का गीत गा रहे थे


मैं हैरान थी कि आज देवा को क्या हुआ है
लगता है कि भक्तों के प्यार ने बाबा के दिल को छुआ है


अँतरयामी साईं ने मेरे दिल की बात को जाना
और फिर शुभ वचनों का बुना ताना बाना

बाबा बोले-


तुम्हारे दिल में बिल्कुल सही ख्याल आया है
मेरे प्यारों की श्रद्धा और प्रेम ने
मेरे दिल के तारों को झनझनाया है


मैं हैरान होता हूँ जब मेरे भक्त
दुखों में भी मेरा शुक्रिया अदा करते हैं
और कष्टों का सागर
मेरा नाम ले कर पार करते हैं


मैंने उन्हें ना किए हुए पापों की भी
क्षमा माँगते हुए देखा है
उन्होंने अपना सर्वस्व समर्पण कर
मेरे दर पर मस्तक टेका है


वो हर दिन की शुरूआत
मेरा ही नाम ले कर करते हैं
उनके लबों पर मेरा ही नाम रहता है
आठों पहर वो मेरा ही दम भरते हैं


मेरी लीलाओं के गान में
उन्हें अपरिमित सुख मिलता है
चाहे उनका जीवन मरुस्थल सा ही क्यूँ ना हो
उसमें मेरे ही नाम का फूल खिलता है


जो मायूसियों में भी
मेरा नाम लेना नहीं छोडते हैं
जैसे बच्चा डाँट खाकर भी
माँ का आँचल नहीं छोडता
वैसे ही वो मेरी ही ओर दौडते हैं


मैं उनके निष्काम प्रेम को
बखूबी पहचानता हूँ
और वो मुझे अपना वैलेन्टाइन बनाने की
चाह रखते हैं
इस बात को अच्छी तरह जानता हूँ


इसीलिए मैं लाल गुलाबों का
ये गुलदस्ता लाया हूँ
और वैलेन्टाइन डे मनाने
अपने भक्तों के पास खुद चलकर आया हूँ


जाओ ये फूल दे दो
मेरे भक्तों को, प्यारों को
मेरा नाम लेने वालों को
मेरे प्रेमी जन न्यारों को


तुम भी जाकर उनके साथ
हैप्पी वैलेन्टाइन डे का गीत गुनगुनाना
और इस तरह हँसी खुशी
इस प्रेम दिवस को मनाना



जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: drashta on February 14, 2011, 03:03:38 PM
Om Sai Ram.

Dear Saisewika ji, thanks for this very beautiful poem! Yes, only Baba is our real Valentine.
Happy valentine's Day!

Jai Jai Sai Baba.
Title: Happy Women's Day
Post by: saisewika on March 07, 2011, 11:04:14 AM
ॐ साईं राम


अपने अद्भुत साईं की
अनुपम रचना हूँ मैं
बेटी हूँ , बहन हूँ ,
बहू हूँ , माँ हूँ मैं

सृष्टिकर्ता की सँरचना का
ज़रिया हूँ मैं
प्यार का बहता हुआ
दरिया हूँ मैं

माँ बाबा को आनन्द देती
सुता हूँ मैं
सहेजी सँभाली मायके की
अस्मिता हूँ मैं

भाई की कलाई पर बँधा
प्यार हूँ मैं
प्रेम के पवित्रतम रूपों का
इज़हार हूँ मैं

ससुराल के वँश को आगे बढाती
बहू हूँ मैं
पीढी दर पीढी रगों में दौडता हुआ
लहू हूँ मैं

धरती पर ईश्वर के होने का
प्रमाण हूँ मैं
उपहार हूँ , सँपदा हूँ ,
वरदान हूँ मैं

मातृत्व के सिंहासन पर बैठी
साम्राज्ञी हूँ मैं
सक्षम हूँ , सबला हूँ ,
बडभागी हूँ मैं

देवी हूँ , दासी हूँ ,
वीराँगना हूँ मैं
कामिनी हूँ , रमणा हूँ
ललना हूँ मैं

शक्ति हूँ , समर्थ हूँ ,
ना बेचारी हूँ मैं
जीवन को गतिमान बनाती
नारी हूँ मैं

जय साईं राम
Title: Baba ne mujhe jeena Sikhaya... - Mai Ladli hu sai ki
Post by: Sai ki Laadli on March 26, 2011, 04:36:34 AM
Sadguru Shri Sai Baba,
Jab Maine Tumhara Pyaar Paya,
Mujhe Yaha Jeevan Jina Aya.
Tumhare Is Pyaar Ki Khushbu Se
Mujhe Mehkana Aya
Mujhe Muskurana Aya
Jo Baag Abhi Tak Sune The
Vahaa Tumhare Pyaar Ki Shakti Se
Phoolo Ko Khilna Aya
Jab Mene Tumhara Pyaar Paya
Mujhe Yaha Jeevan Jina Aya

Baba,
Jis Din Tum Ruthoge, Mar Jaaunga, Main
Jin Din Chhodoge
Kho Jaaunga, Main
Lekin Mera Pyaar
Tumhe Yaad Ayega
Tumhe Bhi Hasayega
Tumhe Bhi Rulayega
Mera Pyaar Yu Hi
Vyarth Naa Jayega
Vo Tumse Mila Tha
Isiliye Amar Ho Jayegaa
Sabhi Ko Jeena Sikha Jayega
Tumhare Pyaar Ki Shakti Se
Muskurana Sikha Jayega

Sadguru!
Ab Main Kahi Naa Jaunga
Har Baar Lout Kar
Tumhare Paas Hi Aunga
Phir Muskuraunga
Apne Saath, Sabhi Ko
Jeena Sikha Jaunga

Baba!
Vo Pal Bhi Kya Hasi The
Jab Main Tumse Mila Tha
Laga Tha! Shirdi Ki Bagiya Mein
Ek Naya Phool Khila Tha
Main Yu Hi Mahak Raha Tha
Idhar-Udhar Dekh
Chahak Raha Tha
Tabhi Mujhe Tumhara
Ek Deewana Mila
Jisne Mujhe Uthaya
Apne Gale Se Lagaya
Mujhe Tum Se Prem Karna Sikhaya
Mujhe Jeena Sikhaya
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on April 18, 2011, 01:48:42 AM
ॐ साईं राम


जब याद तुम्हें मैं करती हूँ
इक कविता सी बन जाती है
भावों का वेग उमडता है
शब्दों की मस्ती छाती है

मन काबू में ना रहता है
कुछ कह डालूँ ये कहता है
मैं मौन कहाँ रह पाती हूँ
तब कलम हाथ में आती है

तेरी लीलाऐं कहने को
वाणी भी मुखरित होती है
जिव्हा मतवाली होकर के
बस गान तेरा ही गाती है

कुछ ताने बाने शब्दों के
उगते हैं कोरे कागज़ पे
श्रद्धा सबुरी के दीपक की
ज्योति मन में जग जाती है

जब बात ना तेरी कर पाऊँ
तब मन मेरा अकुलाता है
रूह घायल सी हो जाती है
और प्रेम अश्रु छलकाती है

तुम मुखर रहो मेरे शब्दों मे
अपनी लीला खुद कह डालो
करते जाना गुणगान तेरा
मेरे जीवन की थाती है

जय साईं राम
Title: Re: स्व को उपदेश
Post by: saisewika on August 02, 2011, 12:56:07 PM
ॐ साईं राम


सिमर सिमर रे मन सिमर
साईं नाथ का नाम
मन में जोत जला कर कर ले
परम पिता का ध्यान

मन के मनके से तू जप ले
साईं नाम की माला
भक्ति के सागर से भर ले
साईं मस्ती का प्याला

अँतरमन के खोल कर
सारे बँद कपाट
साईं नाम का महाप्रसाद
जन जन में तू बाँट

चँचल चित्त को साध ले
नाम की डाल लगाम
इधर उधर डोले नहीं
सिमरे साईं नाम

नाम बिना ये जिव्हा मरी
निरा मास का लोथ
नामामृत का पान कर
मिट जावें सब खोट

नख से शिख जितने भरे
ईर्ष्या ढाह विकार
नाम गँग से सभी धुलें
होवे आत्म उजार

कर कमाई नाम की
धन तृष्णा को त्याग
किया एकत्रित नाम तो
जागेंगे तव भाग

साईं नाम की लत लगा
बाकी आदत छोड
जोड साईं से नाता एक
सब नातों को तोड

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Ishvarya on August 02, 2011, 01:01:42 PM
OM SAI RAM!

Dear Saisewika ji,
thanks for this very beautiful poem!

VERY TRUE!



ॐ साईं राम

साईं नाम की लत लगा
बाकी आदत छोड
जोड साईं से नाता एक
सब नातों को तोड

जय साईं राम

Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Pratap Nr.Mishra on August 03, 2011, 01:39:56 PM
OM SAI RAM!

Dear Saisewika ji,
thanks for this very beautiful poem!

VERY TRUE!



ॐ साईं राम

साईं नाम की लत लगा
बाकी आदत छोड
जोड साईं से नाता एक
सब नातों को तोड

जय साईं राम


ॐ साईं राम


साई से नाता जोड़ ले बन्दे ,सब सुख तुजेह मिलजायेगा
सब नातो को तोडके तू क्या सोचे ,साई तुजेह अपनाएगा .||

साई ने तो ये ज्ञान दिया ,तोडके नहीं प्यार से जोड़कर चलो
पर  अपने जीवन भर हम अज्ञानी,  तोड़  के  करते रहे नादानी ||

बाबा ने प्यार का सन्देश फेला कर ,सबको एक ही राह पर चलने का सन्देश दिया
स्वार्थ ओर अज्ञानता के अंधकार के चलते हमने ,उनके वचनों को ही तोड़ दिया ||

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on August 04, 2011, 09:10:16 AM
ओम साईं राम


कल मेरे चंचल से चित्त ने
फिर से भरी उडान
जिस आंगन में जाकर उतरा
ना था वो अन्जान

जो भी इसने देखा सोचा
उसे स्वप्न ही कह लो
संग संग मेरे ख्वाब देख लो
भक्ती भाव में बह लो

मैंने देखा मै पहुंची हूं
बाबा जी के धाम
भक्त जनों से घिरे हुए थे
साईं जी अभिराम

बापू जोग जी कर रहे थे
आरती की तैयारी
द्वारकामाई में उमडी थी
शिरडी की जनता सारी

तात्या बैठे बाबा जी के
दबा रहे थे पांव
भागो जी छाते से करते
सिर पर ठंडी छांव

म्हालसापति ने उनके मुख में
बीडा पान का डाला
बूटी जी ने उन्हें ओढाने
शेला एक निकाला

शामा जी कुछ परेशान से
दिखते थे गंभीर
बाबा थके हैं यही सोच कर
होते थे वो अधीर

हाथ जोडकर शीश नवाए
मैं भी वहीं खडी थी
एकाएक बाबा की दृष्टि
मुझ पर आन पडी थी

बाबा जी ने नाम मेरा ले
मुझको पास बुलाया
कानों में कुछ शहद सा टपका
रोम रोम लहराया

धीरे से मैं कदम बढाती
चली साईं की ओर
मन मयूर मेरा खुश था इतना
जिसका ओर ना छोर

आंखो से गिरते थे आंसू
काया कांप रही थी
सच है या सपना है कोई
इसको भांप रही थी

बाबा जी के पास पहुंच कर
मैंने शीश नवाया
आशिश मुद्रा में बाबा ने
अपना हाथ उठाया

आंखे बंद थीं हाथ जुडे थे
मुख पर था साईं नाम
डर था आंख खुली तो
ओझल ना हों साईं राम

जाने कितनी देर रही मैं
वैसे आंखे मीचे
साईं के पद पंकज मैनें
इन अंसुअन से सींचे

सपना है तो इसको सपना
रहने दो करतार
नहीं जागना मुझे नींद से
हे मेरे सरकार

हे साईं रहने दो मुझको
निज चरणों के पास
हर क्षण दरशन तेरा पाऊं
पूरी कर दो आस

जय साईं राम
 
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saib on August 04, 2011, 09:42:37 AM
बहुत समय बाद एक सुन्दर कविता का उपहार दिया, साईंसेविका बहन ने !

प्रिये प्रताप जी,  

साईं  ने समस्त जगत से प्रीत रखने को कहा है पर साथ ही मोह ग्रस्त होने से भी सावधान किया है . प्यार और मोह मे बहुत फरक होता है . मोह जहाँ विकारों को जनम देता है, प्रेम वहीँ मन को निर्मल बनाता है . संसार से सम्बन्ध तोड़ने का अर्थ सब को छोड़ कर जंगलों मे तपस्या करना नहीं है बल्कि जगत मे रहते हुए जीवन का हर करम उस मालिक को समर्पित करना है , माया हमें उन संबंधनो से इस प्रकार जोडती है की हम इश्वर का साक्षात्कार होने पर भी उससे जगत के पदार्थ ही मंगाते है , इश्वर को प्राप्त करने की भावना उत्पन नहीं होती . यदि साईं साक्षात् आकर कहें की मे तुमारी भक्ति और प्रेम से प्रस्सन हूँ, मेरे साथ द्वारकामाई मे चलो और मेरे साथ रहो, तो क्या हम साहस कर पाएंगे , क्या हम संसार के समस्त संबंधों को तुरंत तितांजलि दे सकेंगे , वोह भी एक ही पल मे ..........!

इसीलिए जगत मे रहते हुए भी इस सत्य को स्वीकार करना चहिये कि ............. सब कुछ अस्थाई है यदि कुछ सदेव रहने वाला है तो वोह है मात्र साईं और साईं का पावन मधुर और दिव्य नाम...............!

और अंत मे ........... सब नातों को तोड़ का अर्थ सिर्फ मनुष्यों से नाता तोडना नहीं है पर पूरण समर्पण है, अपनी आदतों पर नियंत्रण , समय का सदुपयोग . यदि समय है तो व्यर्थ के कामो जैसे TV के बेसिरपैर के कार्यक्रम देखने, इन्टरनेट पर वक़्त बर्बाद  करने के स्थान पर, साईं का चिंतन किया जा सकता है, साईं सत्चरित्र या किसी भी ग्रन्थ का पठन, या कोई भी ऐसा कार्य जिससे जगत के जीवों का भला हो और साईं के चरणों से प्रीत और गहरी हो...........!


ॐ श्री साईं राम!  


सपना है तो इसको सपना
रहने दो करतार
नहीं जागना मुझे नींद से
हे मेरे सरकार  


जिसे प्रीत हो साईं से सच्ची
स्वपन ही जीवन बन जाता है
साईं का अहसास
दिन हो या रात
पतझड़ हो या बहार
मन मे ऐसे रम जाता है
अब और कुछ सूझे न
सब साईं ही साईं
नजर आता है ........

जय श्री साईं राम !
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: ShAivI on August 05, 2011, 04:27:31 AM
OM SAI RAM SAI SEWIKA JI,

Beautiful !!!

We missed you a lotttttt.

साईं सेविकाजी मेरे पास शब्द नहीं है. क्या कहू?   आपने जो सपना दिखाया है न, उस सपने से जागने को सचमुच दिल ही नहीं करता.

ॐ साईं राम श्री साईं राम जय जय साईं राम ! :)
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on August 05, 2011, 12:44:14 PM
OM SAI RAM


Thank you Ishvaryaji and Shaiviji for your kind and inspiring words.

Thank you Saibji for your encouraging words and reading between the lines and interpreting them so beautifully.....

Thank you Pratap ji for reminding us the teachings of Baba Sai. Truely Baba tought us to LOVE every creature of this universe.
 

JAI SAI RAM
Title: Re: क्या पता?
Post by: saisewika on August 19, 2011, 10:38:36 PM
ॐ साईं राम


क्या पता?

क्या पता जब बाबा देह में थे
तब मैं भी देहधारी ही थी
बाबा के संग संग रहती थी
मैं बाबा जी की प्यारी थी
क्या पता?

क्या पता॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
नित शिरडी में आना जाना था
या शिरडी में ही रहती थी
बाबा की वाणी सुनती थी
और दिल की बातें कहती थी
क्या पता?

क्या पता॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
कोई चिडिया कीट पतँगा थी
मस्जिद में उडती फिरती थी
किसी दिए से जा कर टकराती
मैं श्री चरणों में गिरती थी
क्या पता?

क्या पता॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
कोई कूकर, शूकर या मोटी गाय
बाबा के पास मँडराती थी
या मक्खी या तितली बनकर
बाबा का दर्शन पाती थी
क्या पता?

क्या पता॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
वो बूढा बाघ थी जिसने
श्री चरणों मे मुक्ति पाई थी
या फिर वो छिपकली थी शायद
जो औरँगाबाद से आई थी
क्या पता?

क्या पता॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
शिरडी के अनगिन लोगों में
मैं भक्त थी अपने देवा की
मैंने भी पाँव दाब कर के
अपने मालिक की सेवा की
क्या पता?

क्या पता॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
चुनकर सुँदर और ताजे फूल
मैं सुँदर हार बनाती थी
प्रभु प्यारे को अर्पित कर
मैं मन ही मन मुस्काती थी
क्या पता?

ऐसी ही अनगिन सँभावनाऐं
उठती हैं चँचल चित्तवन में
मैं भाव विह्वल हो जाती हूँ
खुश हो लेती हूँ मन में

क्या पता ये मेरा भरम ना हो
कुछ सच में हुआ हो ऐसा ही
सपना जो देखा है मन ने
कुछ घटा हो सच में वैसा ही

बाबा भी तो ये ही कहते हैं
जन्मों का नाता है अपना
फिर क्यूँ ना सोते जगते में
मैं देखूँ ये सुन्दर सपना

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: PiyaSoni on August 19, 2011, 11:59:23 PM
OmsaiRam

Saisewika ji Thanks for sharing this loving poem with all of us , truely said words   "क्या पता"

Baba always bless yu with his divine love and grace ..

Sai Samarth..........Shraddha Saburi
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Pearl India on September 06, 2011, 07:46:55 AM
om sai ram...

thats a lovely poem....

एक भक्त के मन क भाव आपने सहज ही एक कविता में पिरो दिए है...कई बार मन में सच ऐसे ही विचार उठते हैं...

बोहोत सुंदर कविता है

...straight to the heart.
thank u fr sharing it wd us all.

om sai ma
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on September 29, 2011, 12:17:02 PM
OM SAI RAM

Thank you Piyagoluji and Suhaniji.

May Baba bless you always.

JAI SAI RAM
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on September 29, 2011, 12:21:28 PM
ॐ साईं राम


तुझसे शुरू करते हैं
तुझपे खत्म करते हैं
जब भी बातें करते हैं
तेरी बातें करते हैं


तेरा सिमरन करते हैं
तेरी माला जपते हैं
जब भी बातें करते हैं
तेरी बातें करते हैं


तेरी लीला सुनते हैं
तेरी गाथा कहते हैं
जब भी बातें करते हैं
तेरी बातें करते हैं


तेरा नाम लिख लिख कर
कोरे कागज़ भरते हैं
जब भी बातें करते हैं
तेरी बातें करते हैं


तुझपे श्रद्धा रखते हैं
विश्वास तुझी पर धरते हैं
जब भी बातें करते हैं
तेरी बातें करते हैं


उनकी मँज़िल तू ही है
वो तेरे मार्ग पे चलते हैं
जब भी बातें करते हैं
तेरी बातें करते हैं


बात तेरी कर हँसते हैं
और तेरी याद में रोते हैं
साईं तेरे प्यारे भक्त
ऐसे ही तो होते हैं


जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saikripa.dimple on September 30, 2011, 06:12:11 AM
Om SAi Ram,
Beautiful, really well said....

thanks a lot , (4 sharing this )

aisa lag raha hai jaise mere man ki sari bhawanaye is kavita me sama gai ho.......
kai baar aisa khyaal aata hai , kii kya hum bhi honge us pal waha....sang baba ke,,,,,,,,

ho na ho kuch toh sachchai hogi is khwaab me tabhi toh is janam me baba ke charno me thoda sathaan mila hai aur aap logo jaisa sai parivaar mila hai....

thanks babaji,,,,,,

Love You Babaji

Sai in my heart


ॐ साईं राम


क्या पता?

क्या पता जब बाबा देह में थे
तब मैं भी देहधारी ही थी
बाबा के संग संग रहती थी
मैं बाबा जी की प्यारी थी
क्या पता?

क्या पता॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
नित शिरडी में आना जाना था
या शिरडी में ही रहती थी
बाबा की वाणी सुनती थी
और दिल की बातें कहती थी
क्या पता?

क्या पता॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
कोई चिडिया कीट पतँगा थी
मस्जिद में उडती फिरती थी
किसी दिए से जा कर टकराती
मैं श्री चरणों में गिरती थी
क्या पता?

क्या पता॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
कोई कूकर, शूकर या मोटी गाय
बाबा के पास मँडराती थी
या मक्खी या तितली बनकर
बाबा का दर्शन पाती थी
क्या पता?

क्या पता॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
वो बूढा बाघ थी जिसने
श्री चरणों मे मुक्ति पाई थी
या फिर वो छिपकली थी शायद
जो औरँगाबाद से आई थी
क्या पता?

क्या पता॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
शिरडी के अनगिन लोगों में
मैं भक्त थी अपने देवा की
मैंने भी पाँव दाब कर के
अपने मालिक की सेवा की
क्या पता?

क्या पता॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
चुनकर सुँदर और ताजे फूल
मैं सुँदर हार बनाती थी
प्रभु प्यारे को अर्पित कर
मैं मन ही मन मुस्काती थी
क्या पता?

ऐसी ही अनगिन सँभावनाऐं
उठती हैं चँचल चित्तवन में
मैं भाव विह्वल हो जाती हूँ
खुश हो लेती हूँ मन में

क्या पता ये मेरा भरम ना हो
कुछ सच में हुआ हो ऐसा ही
सपना जो देखा है मन ने
कुछ घटा हो सच में वैसा ही

बाबा भी तो ये ही कहते हैं
जन्मों का नाता है अपना
फिर क्यूँ ना सोते जगते में
मैं देखूँ ये सुन्दर सपना

जय साईं राम

Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on October 12, 2011, 04:52:25 PM
OM SAI RAM

Thank You Saikripa.dimpleji

sach me  aisa hi khayaal aata hai kai baar...........

May Baba bless you always

JAI SAI RAM
Title: Re: बाबा का निर्वाण दिवस-१
Post by: saisewika on October 12, 2011, 04:54:44 PM
ॐ साईं राम


समय॰॰॰॰॰॰॰ २॰३० दोपहर
दिवस॰॰॰॰॰॰॰विजयादशमी १९१८
स्थान॰॰॰॰॰॰॰शिरडी
भाव॰॰॰॰॰॰॰॰॰सभी शिरडी वासियों के



सीमोंल्लंघन करके साईं
चले गए तुम आज
ना मुडके देखा हमको
ना तुमने दी आवाज़

गरीबों का मसीहा
दुखियों का था सहारा
बस छोड गया देह को
किया सबसे ही किनारा

कितनी ही आँखें भीगी
कितने ही प्राण छूटे
कितने ही ख्वाब बिखरे
कितने ही सपने टूटे

ना चिडिया कोई चहकी
ना फूल मुस्कुराए
ग़मों के काले साऐ
हर ज़िन्दगी पे छाए

दसों दिशाऐं सिसकीं
पृथ्वी का सीना काँपा
दुनिया के हर ज़र्रे में
दुखों का सागर व्यापा

तुम चल दिए तो चल दिया
दुनिया का नूर सारा
चहूँ ओर ही फैला है
कालरात्री का अँधियारा

वो करुणामयी आँखे
आशिश में उठा हाथ
श्री चरणों की शरण वो
उन सब का छूटा साथ

वो भक्ति भाव लहरी
हर हृदय में थी रहती
शिरडी के हर कूचे में
साईं नाम धुन थी बहती

मस्जिद में गूँजता वो
शँख नाद न्यारा
हर पल धधकती धूनि
प्रवचन वो प्यारा प्यारा

कैसे जिऐंगे देवा
तुम इतना तो बता दो
तुम्हारे बिना जीने की
तुम हमको ना सजा दो

निवेदन है तुम्हीं से
ये भक्ति भाव भीना
ले जाओ हमें सँग में
हमको नहीं है जीना

जय साईं राम
Title: Re: विजयादशमी को महासमाधि
Post by: saisewika on October 13, 2011, 01:52:28 PM
ॐ साईं राम


साईं प्रभु जी हो गए
महासमाधि में लीन
अश्रुपूरित नयन लिए
भक्त खडे बन दीन

काल कराल आन खडा
द्वारकामाई के द्वारे
स्वयं प्रभु की आज्ञा हो तो
यम भी कैसे टारे

विजयादशमी का दिवस चुना
महाप्रयाण के हेत
परम ईश में प्रभु मिले
साधन सभी समेट

सावधान किया साईं ने
भक्त जनों को आप
अन्तस दानव मार कर
हो जाओ निष्पाप


मार सको तो मार दो
अपनी "मैं" का रावण
सदगुरू साईं की शिक्षा को
कर लो हृदय में धारण

भेदभाव की भेद कर
मन में खडी दीवार
मानव मानव से करे
भातृवत अति प्यार

काम क्रोध मद मत्सर लोभ
वैर द्वेष कुविचार
अहंकार सब त्याग कर
क्षमा हृदय में धार

यही दशहरा पर्व है
दमन करो निज पाप
दलो सभी विकार को
बनो शुद्ध और पाक

जय साईं राम
Title: Re:महासमाधि की ओर
Post by: saisewika on October 14, 2011, 08:57:09 PM

ॐ साईं राम
 
 
२८ सितम्बर १९१८ के दिन
बाबाजी को ताप चढा
मानों काल ने दस्तक दी
दबे पाँव था काल बढा
 
 
भक्तों के कष्टों को ढोते
पावन काया जीर्ण हुई
जन जन की व्याधि को ओढे
दुर्बल काया क्षीण हुई
 
महा निर्वाण के दिवस का आगम
साईं नाथ ने भाँपा था
किंतु भीष्ण और कटु सत्य को
बडे जतन से ढाँपा था
 
तो भी धर्म की प्रथा के हेतु
श्री वझे को बुलवाया
'राम विजय' का पाठ निरँतर
चौदह दिन तक करवाया
 
शाँत बैठ गए बाबाजी फिर
आत्मस्थित हो मस्जिद में
पूर्ण सचेत बाबा भक्तों को
ढाँढस धैर्य देते थे
 
१५ अक्टूबर निर्वाण दिवस को
मध्याह्ण की आरती के बाद
साईं देव भक्तों से बोले
वाणी में भर प्रेम अगाध
 
जाओ मेरे प्यारे भक्तों
अपने अपने घर जाओ
विश्राम करो कुछ देर और फिर
भोजन कर वापिस आओ
 
तत्पश्चात श्री बाबाजी ने
लक्ष्मी शिंदे को बुलवाया
बडे प्रेम से उनको देखा
और श्री मुख से फरमाया
 
बडे जतन औेर प्रेम भाव से
तुमने की सेवा मेरी
मुझको मालिक समझा, खुद को
सदा कहा मेरी चेरी
 
यह कह कर प्रभु प्यारे जी ने
अपनी जेब में डाला हाथ
नौ रुपये का महादान उसे
दिया स्व आषिश के साथ
 
कोई नहीं साईं सम सदगुरु
उद्धारक और ईश महान
नवधा भक्ति दे लक्षमी को
देव किया उसका कल्याण
 
तत्पश्चात दिया बाबा ने
मानो भक्तों को आदेश
वो अँतिम इच्छा थी उनकी
और वही अँतिम सँदेश
 
"मेरे प्यारे भक्तों मुझको
तुमसे इतना कहना है
दिल नहीं लगता मशिद में मेरा
मुझे यहाँ नहीं रहना है"
 
"बूटी के पत्थर वाडे में
भक्तो मुझको ले जाओ
सुख पाऊँगा वाडे में मैं
तुम भी सँग सँग सुख पाओ"
 
इतना कहते देवा की देह
बयाजी पर झुक गई
भूमँडल और पृथ्वी सारी
मानों थम कर रुक गई
 
दसों दिशाऐं मर्माहत हो
चीत्कार करने लगी
बाबा के प्यारों की आँखे
झरने सम झरने लगीं
 
हाहाकार मचा चहुँ ओर
घर घर में मातम आया
भक्तों के जीवन पर छाया
दुखों का कलुषित साया
 
देह को त्याग परम आत्मा
परमात्मा में लीन हुई
किंतु साईं कृपा दृष्टि से
सँगत नहीं विहीन हुई
 
उसी दिवस कृपालु भगवन
दासगणु के सपने में आए
देह त्याग सँदेश दिया और
मधुर वचन ये फरमाए
 
"सुँदर ताजे फूलों की माला
गणु एक बना लो तुम
शिरडी आकर मम शरीर पर
स्वँय हाथ से डालो तुम"
 
अगले दिन श्री बाबाजी ने
मामा जोशी को स्वप्न दिया
हाथ खींच कर उन्हें उठाया
और फिर ये आदेश दिया
 
"मृत ना समझो मुझको तुम
शीघ्र मशिद में जाओ तुम
धूप दीप का थाल सजाकर
काँकण आरती गाओ तुम"
 
पूजन अर्चन का क्रम ना टूटा
सुँदर लीला थी साईं की
बूटी वाडे में बनी समाधि
साईं सर्व सहाई की
 
शिरडी पावन धाम बन गया
भक्तों का काशी काबा
वहीं समाधि मँदिर में
रहते हैं प्यारे बाबा
 
जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on October 20, 2011, 09:59:25 AM
ॐ साईं राम


कई बार ऐसा होता है
बिलख बिलख कर दिल रोता है
मैं ख़ुद पर ही झल्लाती हूँ
मन मार कर रह जाती हूँ

क्यूँ ना हो पाया ये साईं
तुम ही कह दो सर्वसहाई
जब तुम देह में थे हे दाता
तब क्यूँ ना जन्मी मैं विधाता

जो मैं शिर्डी वासी होती
तुम्हें निरख कर हंसती रोती
तव चरणों की रज मैं पाती
दर्शन करते नहीं अघाती 

सुप्रभात होती या रैन
तक तक तुम्हें ना थकते नैन
सरल साधारण सादा जीवन
क्यूँ ना मिल पाया सहचर धन

सुवचन नित्त सुनती तव मुख से
जीवन कट जाता अति सुख से
सुभक्तों की संगत पाकर
धन्य धन्य हो जाती चाकर

मैं भी तुमको चंवर ढुलाती
अपनी किस्मत पर इतराती
पश्चाताप बड़ा है भारी
क्यूँ अब जन्मी साईं मुरारी

काश मैं यंत्र ऐसा कोई पाऊँ
समय चक्र को पुन: घुमाऊं
आ पहुंचू मैं तेरे द्वारे
साक्षात दर्शन हों न्यारे

हाथ थाम लूँ साईं तेरा
जनम सफल हो जाए मेरा


जय साईं राम
 
Title: आभार
Post by: saisewika on December 08, 2011, 01:17:48 PM
ॐ साईं राम


हाथ जोड कर नमन करें
देवा बारम्बार
साईं नाम धन दान दे
किया परम उपकार

व्यक्त करें आभार हम
चरणों में धर शीश
धन्य धन्य चाकर हुए
पाकर तुम सा ईश

कुकर्मों से मुक्त किया
काटे सारे बन्ध
दुर्गुण अवगुण मेट कर
पापाग्नि की मँद

श्रद्दा और सबूरी का
देकर अनुपम ज्ञान
करी प्रकाशित आत्मा
साईं नाथ भगवान

अपने प्यारे भक्तों के
सारे दोष निवार
भक्ति पथ का पथिक बना
कृपा करी अवतार

कृतज्ञ रहें उस नाथ के
जो परम मोक्ष का द्वार
जिसका लक्ष्य एक था
भक्तों का उद्धार

अनुग्रहीत हमको किया
देव पकड कर हाथ
धन्यवाद करते तेरा
चरणों पर रख माथ

जन्म जन्म तक ऋणी रहें
माने तव उपकार
नख से शिख कृतार्थ हम
तेरे अपरम्पार

शुक्रगुज़ार रहें सदा
श्रद्धा मन में धार
रोम रोम इस काया का
व्यक्त करे आभार

जय साईं राम
Title: Re: नव वर्ष का निवेदन
Post by: saisewika on January 02, 2012, 11:16:07 AM
ॐ साईं राम


साईं नव वर्ष में हमको
अनुपम ये उपहार दे दो
मोह माया छूटे इस जग की
आँचल भर कर प्यार दे दो

जीवन का हर क्षण तुम ले लो
भक्ति रस का सागर दे दो
श्रद्धा और सबूरी भर लूँ
दृढ निश्चय की गागर दे दो

तृषित नेत्र शीतल हो जाऐं
दर्शन प्यारा प्यारा दे दो
किसी की आस ना हो इस मन में
अपना एक सहारा दे दो

अजपा जाप चले सदा भीतर
साईं नाम धन दान दे दो
आशा तृष्णा लोभ को मेटो
सब्र शुक्र की खान दे दो

अँतरमुख हो जाऐं स्वामी
हमको ये वरदान दे दो
बन्धन को पहचाने दाता
विरक्त भाव का ज्ञान दे दो

आसक्ति के भ्रम को तोडो
मोक्ष प्राप्ति की इच्छा दे दो
मुड मुड जीव ना आए धरा पर
मुक्ति की शुभेच्छा दे दो


जय साईं राम
Title: कल रात सपने में बाबा आये !!!
Post by: ShAivI on January 16, 2012, 01:48:58 AM


ॐ साईं राम !!!

कल रात सपने में बाबा आये !!!


बाबा :- क्यूँ दुखी होती है मैं जब तेरे साथ हूँ क्यूँ धीरज खोती है?

मैं बोली :- बाबा जानती हूँ तुम आस पास हो
फिर भी ये दिल चिंतित होता है
कर्मो के चक्कर में पड़कर ये दिल धीरज खोता है

बाबा :- श्रद्धा और सबुरी ये मंत्र मैने सबको सिखाया है
ये मत सोच तुने क्या खोया है
ये सोच के क्या क्या पाया है

मैं बोली :- बाबा मुझको तो बस साईं शरण ही प्यारी है
सबको भूल चुकी हूँ बस एक आस तुम्हारी है

तुम मुझसे रूठ जाओ बाबा ऐसा कभी न करना

तुम मुझसे दूर जाओ बाबा ऐसा कभी न करना

बाबा, मैं बुला बुला के हारूँ तुम को हर दम पुकारूँ
तुम फेर लो मुँह अपना ऐसा कभी न करना बाबा

मैं अनजाने में कुछ गलत कर दूं
तुम राह दीखाना मुझको मैं उसी राह पे चलूंगी

बाबा, तुम पास आकर मेरे, मुझे न बुलाओ ऐसा कभी न करना
ऐसा कभी न करना बाबा,  ऐसा कभी न करना, बाबा!!!


ॐ साईं राम, श्री साईं राम, जय जय साईं राम!!!

sharing.............what is shared with me ......................

Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Dipika on February 26, 2012, 03:06:19 PM
ॐ साईं राम


कई बार ऐसा होता है
बिलख बिलख कर दिल रोता है
मैं ख़ुद पर ही झल्लाती हूँ
मन मार कर रह जाती हूँ

क्यूँ ना हो पाया ये साईं
तुम ही कह दो सर्वसहाई
जब तुम देह में थे हे दाता
तब क्यूँ ना जन्मी मैं विधाता

जो मैं शिर्डी वासी होती
तुम्हें निरख कर हंसती रोती
तव चरणों की रज मैं पाती
दर्शन करते नहीं अघाती 

सुप्रभात होती या रैन
तक तक तुम्हें ना थकते नैन
सरल साधारण सादा जीवन
क्यूँ ना मिल पाया सहचर धन

सुवचन नित्त सुनती तव मुख से
जीवन कट जाता अति सुख से
सुभक्तों की संगत पाकर
धन्य धन्य हो जाती चाकर

मैं भी तुमको चंवर ढुलाती
अपनी किस्मत पर इतराती
पश्चाताप बड़ा है भारी
क्यूँ अब जन्मी साईं मुरारी

काश मैं यंत्र ऐसा कोई पाऊँ
समय चक्र को पुन: घुमाऊं
आ पहुंचू मैं तेरे द्वारे
साक्षात दर्शन हों न्यारे

हाथ थाम लूँ साईं तेरा
जनम सफल हो जाए मेरा


जय साईं राम
 
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on March 19, 2012, 04:24:35 PM
ॐ साईं राम


साईं तेरा शुक्र भी है
पर दिल में कुछ मलाल भी है
तेरे शुभ चरणों में सुकूँ भी है
पर जीवन कुछ बेहाल भी है


कुछ खालीपन और तन्हाई
किस्मत की तँगदिली भी है
पर तेरे नाम की सुन्दर सी
इक कली खिली खिली सी है


कुछ तो बदलेगा जीवन में
इक मौके की तलाश भी है
कोई आस नहीं है दुनिया से
पर तुझ पर दृढ विश्वास भी है


मेरी झोली में हैं छेद हजार
और किस्मत की कुछ मार भी है
पर तुझसे जो है जुडा नाता
तेरी रहमतों का इंतज़ार भी है


इन टेढे मेढे रस्तों पर
कई दोस्त मिले औेर छोड गए
पर तू ना छोडेगा मुझको
इस दिल में एतबार भी है


दुनिया के रिश्ते नातों ने
कुछ ज़ख्म दिए हैं सीने में
पर तेरे मेरे रिश्ते में
मरहम भी और प्यार भी है


जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on April 15, 2012, 07:45:15 PM
ॐ साईं राम
 
 
साईं तेरे द्वारे आऊँ
बाबा तुझको शीश नवाऊँ
तुझपे मैं बलिहारी जाऊँ
तुझपे वारि वारि जाऊँ
 
 
तेरा रस्ता मँज़िल मेरी
तुझको पाना चाहत मेरी
तेरे पथ पर चलती जाऊँ
थकूँ रुकूँ ना बढती जाऊँ
तुझपे मैं बलिहारी जाऊँ
तुझपे वारि वारि जाऊँ
 
 
तेरा सुमिरन काम है मेरा
मन मन्दिर में धाम है तेरा
साईं साईं रटती जाऊँ
साँस साँस से तुझको ध्याऊँ
तुझपे मैं बलिहारी जाऊँ
तुझपे वारि वारि जाऊँ
 
 
तेरी कथा कहूँ सुनूँ मैं
तेरा लीला गान गुनूँ मैं
तेरी महिमा सुनूँ सुनाऊँ
तेरी चर्चा में सुख पाऊँ
तुझपे मैं बलिहारी जाऊँ
तुझपे वारि वारि जाऊँ
 
 
तुझपे श्रद्धा, तेरी भक्ति
तुझसे चाहत और आसक्ति
तुझसे ही बस आस लगाऊँ
मन में दृढ विश्वास जगाऊँ
तुझपे मैं बलिहारी जाऊँ
तुझपे वारि वारि जाऊँ
 
 
जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on April 19, 2012, 09:27:01 AM
ॐ साईं राम


ये जो नश्वर काया है
इसकी अद्भुत माया है
मानों तो ये सब कुछ है
जान लो तो छाया है

चाहो तो जगत मिथ्या में
तुम राग रंग में मस्त रहो
या फिर खुद को पहचानो
श्री चरणों में अलमस्त रहो

चाहो तो इस पर मान करो
इस रूप पर अभिमान करो
पर इसने तो ढल जाना है
इस सच पर थोडा ध्यान धरो

वात्त, पित्त और कफ़ से दूषित
ऐसी नश्वर काया को
साईं नाम से निर्मल करके
जानो ठगिनी माया को

तो चलो क्षणभंगुर काया को
साईं नाम कर देते हैं
अंग अंग में साईं नाम की
भक्ति को भर लेते हैं

पांच इन्द्रियां केन्द्रित हो जायें
बाबा जी के ध्यान में
पांचों प्राण बाबा जी को
मन्जिल अपनी मान लें

ह्रदय को 'सुह्रदय' कर लो
मन को करो 'सुमन'
फिर बाबा को अर्पण करके
पावो नाम का धन

बुद्धि को सदबुद्धि कर लो
चित्त को सच्चिदानन्द
धृत्ति धारणा धार के
पावो परमानन्द

पलक उठे जब जब भी अपने
बाबा जी का दर्शन पाये
पलक झुके तो मन मन्दिर में
देवा को बैठा पाये

मुख से जब कुछ बोलें तो
साईं नाम ही दोहरायें
कानों से कुछ सुनना हो तो
साईं नाद ही सुन पायें

हाथ उठें तो जुड जायें
श्री चरणों में भक्ति से
कारज करते साईं ध्यायें
बाबा जी की शक्ति से

पांव चलें तो मन्ज़िल उनकी
बाबा जी का द्वारा हो
पांव रुकें तो ठीक सामने
मेरा साईं प्यारा हो

रसना का रस ऐसा हो जाये
साईं नाम में रस आये
बैठे, उठते, सोते, जगते 
साईं जी का जस गायें

चंचल मन इक मंदिर हो जाये
साईं का जिसमें डेरा हो
मोह माया ना होवे जिसमें
ना अज्ञान अंधेरा हो

मन की डोर थमी हो मेरे
बाबा जी के हाथ में
जब जी चाहे ले जायें वो
इसको अपने साथ में

सांस सांस जब आवे जावे,
साईं का अनहद नाद हो
अंत समय जब सांस रुके तो
साईं जी की याद हो

ऐसे काया पावन होगी
मन मन्दिर हो जावेगा
साईं याद में डूबा प्राणी
साईं में मिल जावेगा

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Pratap Nr.Mishra on April 19, 2012, 09:40:00 AM


ॐ श्री साईं नाथाय नमः

साईं राम जी

धन्यवाद. बहुत ही सुंदर और  सत्य को दर्शाती हुई ये आपकी कविता है. हर शब्द,हर पंक्ति ही साईं की गरिमा और साईं के वचनों का चित्रण करती हुई दिख रही है.

धन्यवाद .

ॐ साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on April 19, 2012, 06:27:49 PM
ॐ साईं राम

साईं राम प्रताप एन मिश्रा जी

आपके प्रशँसात्मक शब्दों के लिए धन्यवाद। बाबा ही सब कर्मों के कर्ता और प्रेरक हैं।  मैं स्वयँ आपके लेखों की मूक प्रशँसक हूँ।

बाबा आपको सदैव सुखी रखें

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on May 08, 2012, 12:20:32 PM
ॐ साईं राम


मेरे घर के पास बाबा का
इक मँदिर बन रहा है
खुशी के मारे मेरा
उछल ये मन रहा है


कब से तड़प रही थी
देवा तुम्हारी दासी
क्या भूल हुई मुझसे
क्यूँ अखियाँ रहीं प्यासी


मेरे मालिक ने तमन्ना
मेरे दिल की पूरी कर दी
सारे जहाँ की खुशियाँ
मेरे दामन में हैं भर दी


पावन पुनीत सुन्दर
दिलकश नज़ारा होगा
तरसे नैनों के सन्मुख
मेरा साईं प्यारा होगा


अब तेरे दर पे स्वामी
नित आना जाना होगा
भक्तों की सँगतों का
मँज़र सुहाना होगा


खुश होऊँगी मैं जब जब
तेरे पास आ जाऊँगी
बाँटूंगी तुझसे खुशियाँ
मन में मैं हरषाऊँगी


याऽ कभी जो देवा
गमगीन होगी दासी
दर्शन तुम्हारा पाकर
मिट जाएगी उदासी


नित आरती में आकर
मँजीरे बजाऊँगी
मनभावन साईं तेरा
नेवैद्य बनाऊँगी


परदेस में भी मेरा
इक मायका प्यारा होगा
साईं माँ का आँचल होगा
अद्भुत सहारा होगा


भक्तन की भावना को
स्वीकार दाता करना
मेरा फैला हुआ दामन
शुभ दर्शनों से भरना


जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on May 17, 2012, 10:15:14 AM
ॐ साईं राम


आज क्यूं फिज़ाओं में सुरूर छाया है
आज किसने ज़मीं पर अमृत बरसाया है
लगता है मेरा साईं है कहीं आस पास
उसने ही मेरे मन मयूर को थिरकाया है


आज सूरज भी कुछ ज़्यादा ही दमकता है
लगता है बाबा के मुख से इसने कुछ नूर चुराया है
आज फूलों की पंखुडियां हैं और भी कोमल
लगता है बाबा ने इन्हें प्यार से सहलाया है


आज मेरे घर के पीछे की झील का पानी है और भी निर्मल
लगता है इसने बाबा की दया दृष्टि को पाया है
आज चर्च के घंटे की आवाज़ ज़्यादा सुरीली क्यूं है
लगता है बाबा को छू कर आई हवा ने इसे बजाया है


हां मेरा साईं मेरा खुदा यकीनन मेरे पास है
उसी ने मेरे दिल के द्वार को खटखटाया है
वो यहीं मेरे पास आ के बैठा है
उसी ने इन पंक्त्तियों को मेरे कानों में गुनगुनाया है


जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on May 21, 2012, 09:51:58 AM
ॐ साईं राम


कल रात सपने में मैंने
बाबा जी को देखा
आंखों से आंसू झरते थे
मिट गयी थी स्मित रेखा


सिसक रहे थे मेरे बाबा
भरते लम्बी आँहें
भक्तों ने ये क्या कर डाला
चाहे या अनचाहे


मैंने तो समझा था मेरे     
प्यारे भक्त अनेक
मिल जुल नाम करेंगे रोशन
मेरा सहित विवेक 


देख देख गदगद होता था
सुंदर द्वारकामाई
दूर दूर के भक्तों ने
भावो. से जो सजायी


अनुभव कोई सुनाता अपने
नाम जाप कोई करता
सबने मुझको मान लिया था
सुख करता दुःख हरता


कुछ दिन से पर लगता ऐसा
भक्त खो गए सारे
तू तू मैं मैं पर आ उतरे
जो थे मेरे प्यारे


उलझन में यूँ उनको पाकर
मन रोता है मेरा
क्यूँ मेरे मन्दिर में छाया
अहम् भाव का घेरा


द्वारका छोड़ कोई कर लेता
मुझसे सहज किनारा
स्वयँ न्यायधीश बन जाता
मेरा कोई प्यारा


क्या मैं समझूं भक्तों का
विश्वास ना मैंने जीता
या फिर श्रद्धा और सबूरी से
उनका मन है रीता


घायल मन है दुखी आत्मा
देख सको तो देखो
नाम छोड़ कर भटक रहे हैं
मेरे भक्त अनेकों


बाबा जी की व्यथा जान कर
मन मेरा भी रोया
बाबा हमको वापस दे दो
जो भी हमने खोया


मानव हैं हम, हमसे दाता
भूल हो गयी भारी
हाथ जोड़कर क्षमा माँगते
तुमसे बारी बारी


बस अपना आशीष और प्यार
मैया हमको दे दो
अहम् भाव सब तुम्हें समर्पण
इसको तुम ही ले लो


वादा करते हैं हम तुमसे
फिर ना होगा ऐसा
जैसा तुम चाहते हो साईं
मन्दिर रहेगा वैसा


जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Pratap Nr.Mishra on May 22, 2012, 06:36:22 AM
ॐ श्री साई नाथाय नमः  

बाबा तुम्हारे श्री चरणों में
इस दिन दास का  कोटि-कोटि प्रणाम
कहना  चाहता हूँ देवा तुमसे अब
कुछ अपनी व्यथा का हाल ।।

कल तुम्हारी व्यथा को जानके
दिल मेरे भी बहुत रोता है
सुंदर सुहाना  बाग द्वारकामाई का
हमारे अहंकार ने रौंदा है  ।।

बाबा तुम तो हो सर्वज्ञानी
हम हैं मूढ़बुद्धि और अभिमानी
माया की माया को ना समझे
करते रहते है हरदम नादानी ।।

बाबा तुमभी अगर रूठोगे तो
हमसब कैसे फिर जी पायेंगे
क्षणभर में ही देवा हम तो
दुःख के भवसागर में डूब जायेंगे ।।

बाबा तुम्हारी लीला अजब निराली
नित्य  नए -नए खेल खिलाती
खेल -खेल में ही सबकुछ
कह  जाती है अमृत वाणी ।।

मस्जिद माई में रहकर भी हमसब ने
अनर्थ-अधर्म का ही काम किया
कर्ता -कारक खुद ही तुम बनके
अहं-त्वं का फिर से ज्ञान दिया ।।

बाबा तुम्हारी  शिक्षा की पद्धति
सबसे अनोखी सबसे है निराली
समय-समय पे याद दिलाके
करते रहते हो जीवन की रखवाली ।।

बाबा तुम्हारी इस लीला ने
ज्ञानचक्षु हमारे खोल दिए
ओर किसी को ना अब हम कभी
अपमानित करने को भी सोचेंगे ।।

राग द्वेष  की इस   चादर को
अब कभी ना हम फिर से  ओढेंगे
तुम्हारे वचनों की चादर में
बाकि जीवन को संजोयेंगे   ।।

बाबा तुम हो संरक्षक हमारे जानके
माया को भी ललकारना शुरू किया
तुम्हारे वचनों की खातिर
काँटों पर भी चलना अब सिख लिया ।।

हम अबोध और अज्ञानी
सदा अहं-त्वं में ही रहते हैं
माया की इस शक्ति को
तुम्हारी कृपा से ही विजय कर सकते हैं ।।

बाबा तुमने हमारे सुख के खातिर
श्रधा  -सबुरी का जीवन मन्त्र दिया
अहंकार के इस रावण ने
छल-बल से हमसे इसको छीन लिया ।।

बाबा हमसब बच्चे हैं तेरे
खोने इसे ना हम देंगे
अहंकार के इस रावण को हम मारके
तुम्हारे चरणों में फिर  अर्पण करेंगे ।।

पंचभूत  के इस देह में
माया का बसेरा है
काम क्रोध मद मोह लोभ ने
इसमें डाला डेरा है ||

बाबा तुम्हारे वचनों के प्रकाश से
ये असुर सब भाग जायेंगे
परमपिता के चरणों में तब हम
पूर्ण शरणागति को पाएंगे ||

माँ का आँचल छोड़ के भी
क्या कोई बच्चा रह पाया है
तेरे आँचल में ही तो
सब सुखो की छाया है  ||

बाबा तुमसे करते है एक निवेदन
अपनी बगिया को फिर बसादो
जो फूल टूटके  बिखर गये  
उनको अपनी माला में फिर से पिरो दो ||

वादा करते हैं हमसब तुमसे बाबा
अब ना कोई राग-द्वेष करेंगे
तुम्हारी इस प्यारी बगिया में
केवल प्रेम और ज्ञानके ही फूल खिलेंगे ||



ॐ साईं राम







 


Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saib on May 23, 2012, 12:11:25 AM
प्रताप जी, आपने और साईंसेविका बहन ने बहुत सुन्दर शब्दों मे अपनी भावनाएं व्यक्त की है ! मेरे अनुभव आपसे बांटना चाहूँगा ! प्रथम इश्वर की शरण मे मात्र इश्वर की कृपा और अनुमति से ही कोई रह सकता है, अहम् को त्यागे बिना इश्वर को प्राप्त नहीं किया जा सकता क्योंकि जहाँ "मै" है वहां "हरी" नाही ! जहाँ "हरी" वहां "मै" नाही ! जब कोई मनुष्य अपने को कर्ता मानने लगता है तो उसकी अंतरात्मा स्वम उसे सुधार के पथ पर ले जाती है ! दूसरा जिस प्रकार मानव देह एक सीमा से अधिक भोजन ग्रहण नही कर सकती उसी प्रकार मन भी एक सीमा से अधिक अध्यात्मिक ज्ञान नही ग्रहण कर सकता, वक़्त इश्वर की कृपा से अपने आप मन की शक्ति को वृहद् कर देता है !

यहाँ कई बड़े भक्त और ज्ञानवान सदस्य है जिनसे हम प्रेरणा ग्रहण करते है,पर मन का जुडाव मात्र साईं से होना चाहिए क्योंकि वही एक मात्र कर्ता है , वही मार्गदर्शक है ! सदा यह विश्वास मन मै रहना चाहिए वह जो भी कर रहे है, उसी मै सब का भला  है !

अंत मै साईं से यही प्रार्थना है सभी भाई बहनों का मन निर्मल हो और सभी मिल कर साईं की लीलाओं और साईं के पावन नाम के मधुर अमृत का आनंद प्राप्त करें !


ॐ श्री साईं राम !
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Pratap Nr.Mishra on May 24, 2012, 12:35:20 PM
ॐ श्री साईं नाथाय नमः

साईं के श्री चरणों में
करके कोटि-कोटि प्रणाम
साईं के वचनों का फिर
करता हूँ गुणगान

साईं तुम ही जड़ में
तुम चेतन में
तुम ही सर्व सृष्टि के
कण-कण में ||

तुम्हारा आदि है ना अंत है
शक्ति तुम्हारी अनंत है
तुम्हारे सत -चित-आनंद को
वेद भी वर्णन करने में असमर्थ हैं ||

बाबा तुम्हारी लीला बड़ी निराली
नित्य नये नये रूप दिखलाती है
खुद ही ब्रह्मा विष्णु महेश बनके
जगत की उत्पति संचालन संहार करवाती है ||

हम सब जगत के प्राणी
तुम्हारा ही तो अंश हैं
अज्ञानता के वस् में रहकर
कहते तुमसे भिन्न हैं ||

राग-द्वेष काम मद लोभ ने
डाला ऐसा डेरा है
खुद को तुमसे भिन्न जानके
अनंत दुखों ने घेरा है ||

हर युग काल में खुद ही आकर
देते रहते हो अभिन्नता का ज्ञान
पर हम मुरख-अज्ञानी फिर भी
करते रहते हैं सदा मनमानी

मनुष्य योनी पाकर भी हमने
धारण कभी ना किया तुम्हारा ज्ञान
माया के चक्कर में फंसके
करते रहे अधर्म और अकाम ||

जन्म जन्मांतर तक हम ऐसे ही
आवागमन के बंधन में बंधे रह जायेंगे
माया मोह को ना त्यागकर सदा ही
इस दुःख के सागर में गोते खायेंगे ||

गीता बाईबल गुरु ग्रंथ कुरान से तुमने
कर्म भक्ति प्रेम अहिंसा का ज्ञान दिया
खुद मनुष्य रूप जगत में आके
हम प्राणियों का कल्याण किया ||

कर्म किये जा फल की इच्छा
मतकर तू इंसान
जैसा कर्म करेगा वैसा
फल देगा भगवान्  ||

सबसे सदा ही प्रेमभाव रखना
राग-द्वेष कभी ना करना
सबके भीतर मुझको जानो
किसी का कभी अहित ना करना ||

जब तुम सब वासनाओं से
खुदको मुक्त करा पाओगे
उसदिन ही तुम मेरे
सत्य स्वरुप में लीन हो जाओगे ||

मन के मते ना कभी चलना
मन है एक बाजीगर
क्षण-क्षण अपनी बाजी से
झूट को बना देता है सच ||

मन के निग्रह से ही
मिलता है आत्मस्वरुप का ज्ञान
बिना इस ज्ञान के
जीव का हो नहीं सकता कल्याण ||

आत्मस्वरुप में स्थिर जीव
समानत्व का भाव रखता है
भौतिक सुख-दुःख आने पर भी
एक सामान ही रहता है ||

माया की माया भी उसका
कुछ बिगाड़ ना पाती है
माया भी खुद लज्जित होकर
नमन करने को आती है ||

मार्ग है बहुत कठिन भयंकर
पर हमको डर क्यों करना है
साईं के चरणों में हम हैं बेठे
अब साईं को ही सब करना है ||

ॐ साईं राम






















 









































 
 
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on May 24, 2012, 12:57:31 PM
ॐ साईं राम

साईं राम प्रताप एन मिश्रा जी

बहुत सुन्दर शब्दों में आपने साईं वचनों को कविता में पिरोया है।

सबसे सदा ही प्रेमभाव रखना
राग-द्वेष कभी ना करना
सबके भीतर मुझको जानो
किसी का कभी अहित ना करना

बाबा साईं आपको सदा सुखी रखें

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on May 24, 2012, 01:02:10 PM
ॐ साईं राम


साईं राम साइब जी

हमेशा की तरह आप थोड़े में बहुत कह जाते हैं। आप के सधे हुए शब्दों में सदा ही साईं का वास महसूस करती हूँ।  बहुत से ज्ञानवान साईं भाइयों और बहनों से बहुत कुछ सीखा। पता नहीं क्यों बहुत से द्वारकामाई में नहीं आते, पर उनकी कमी हमेशा ही महसूस होती है, क्योंकि वे सच में केवल साईं की दीवानगी में ही यहाँ आते थे। रमेश भाई जी, द्रष्टा जी, अनु, मानव और दीपक भाई , कई प्रकाशित भक्त अब नहीं आते तो यह भी मेरे बाबा की कोई लीला ही है।  आपने सही कहा मन का जुड़ाव केवल साईं से होना चाहिए। और जैसे जैसे साईं से मन जुड़ता है वैसे वैसे मन के सभी विकार वैसे ही दूर होते चले जाते हैं जैसे सूरज के आते ही अँधेरा भाग जाता है।

जबही नाम हिरदे घरा, भया पाप का नाश ।
मानो चिंगरी आग की, परी पुरानी घास ॥

बाबा साईं आपको हमेशा सुखी रखें

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: Pratap Nr.Mishra on May 24, 2012, 01:11:59 PM


ॐ श्री साईं नाथाय नमः

साईं राम साईं सेविकाजी

आपकी प्रशंसा के लिए धन्यवाद | बाबा ही स्वयम कर्ता कर्म एवंग कारक हैं | 

धन्यवाद

ॐ साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on May 26, 2012, 11:56:59 AM
ॐ साईं राम


यह वह पहली कविता है जो बाबा साईं ने पहली बार हाथ पकड़ कर लिखवाई थी।  यूँ तो पहले भी फोरम में पोस्ट कर चुकी हूँ, पर आज पुनः याद आई तो दोबारा प्रस्तुत कर रही हूँ-



हाथ जोड़ कर शीश झुका कर
साईं तेरे दर पर आकर
बाबा करते हम अरदास
रखना श्री चरणों के पास

माँगे हम आ हाथ पसारे
जो हम चाहे देना प्यारे
धन दौलत की नही है आस
ना ही राज योग की प्यास

नहीं चाहिये महल चौबारे
नहीं चाहिये वैभव सारे
नहीं चाहिये यश और मान
ना देना कोई सम्मान

जो हम चाहें सुन लो दाता
देना होगा तुम्हें विधाता
खाली हम ना जायेंगे
जो माँगा सो पायेंगे

हमको प्रभु प्रेम दो ऐसा
शामा को देते थे जैसा
हरदम रखो अपने साथ
मस्तक पर धर कर श्री हाथ

भक्ति हममे जगाओ वैसी
जगाई मेधा मे थी जैसी
भक्ति मे भूलें जग सारा
केवल तेरा रहे सहारा 

महादान हमको दो ऐसा
लक्ष्मी शिन्दे को दिया था जैसा
अष्टान्ग योग नवधा भक्ति
साईं सब है तेरी शक्ति

सेवा का अवसर दो ऐसा
भागो जी को दिया था जैसा
चाहे कष्ट अनेक सहें
श्री चरणों का ध्यान रहे

निकटता दे दो हमको वैसी
म्हाल्सापति को दी थी जैसी
प्रभु बना लो अपना दास
ह्रदय में आ करो निवास

सम्वाद करो हमसे प्रभु ऐसे
तात्या से करते थे जैसे
सुख दुख तुमसे बांट सकें
रिश्ता तुम से गाँठ सके

महाज्ञान दो हमको ऐसा
नाना साहेब को दिया था जैसा
दूर अज्ञान अन्धेरा हो
जीवन में नया सवेरा हो

वाणी दे दो हमको वैसी
दासगणु को दी थी जैसी
घर घर तेरा गान करें
साईं तेरा ध्यान धरें

आशीष दे दो हमको ऐसा
हेमाडपंत को दिया था जैसा
कुछ हम भी तो कर जाऐं
साईं स्तुति रच तर जाऐं

महाप्रसाद हमको दो ऐसा
राधा माई को दिया था जैसा
हम भी पाऐं कृपा प्रसाद
शेष रहे ना कोई स्वाद

आधि व्याधि हर लो ऐसे
काका जी की हरी थी जैसे
शेष रहे ना कोई विकार
दुर्गुण, दुर्मन, दुर्विचार

मुक्ति देना हमको वैसी
बालाराम को दी थी जैसी
श्री चरणों में डालें डेरा
जन्म मरण का छूटे फेरा

जो माँगा है नहीं असंभव
तुम चाहो तो कर दो संभव
विनती ना ठुकराओ तुम
बच्चों को अपनाओ तुम

माना दोष घनेरे हैं
बाबा हम फिर भी तेरे हैं
दो हमको मनचाहा दान
भक्तों का कर दो कल्याण

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on August 21, 2012, 12:11:48 PM
ॐ साईं राम


साईं गुणसमूह गुणगान॰॰॰॰॰॰

साईं सदगुरू तेरी शरण
परम मोक्ष का द्वार
तेरे दर पर जो झुका
हो गया भव से पार


साईं तुम पारस हो-

सुर सम तेरा रूप है
पारस सम व्यवहार
तपे स्वर्ण सा हो गया
जो आया तेरे द्वार


साईं तुम रँगरेज़ हो-

साईं तू रँगरेज है
देता तन मन रँग
चढ़े रँग जो प्रेम का
होवे नहीं अभँग


साईं तुम चँदन हो-

चन्दन सम सुवास तेरी
फैल रही चहुँ ओर
मँत्र मुग्ध हों ले सभी
शुभ चरणों की ठौर


साईं तुम प्रियतम हो-

तू तो प्रियतम प्यारा है
सबसे करता प्रीत
जिसने प्रेम से नाम लिया
हो गया उसका मीत


साईं तुम सगे सँबँधी हो-

तू है बन्धु और सखा
हे साईं अभिराम
मात पिता सम रूप तेरा
तू सदगुरू सुजान


साईं तुम ज्ञान स्वरूप हो-

साईं ज्ञान स्वरूप है
अखण्ड ज्योति प्रकाश
सकल सृष्टि का ज्ञाता तू
भू, पाताल, आकाश


साईं तुम सुख स्वरूप हो-

साईं तू सुखरूप है
पाप ताप से दूर
मुख मण्डल पर दमक रहा
सूर्य तेज का पूर


साईं तुम लीलाधर हो-

साईं लीलाधर बड़ा
अद्भुत तव अवतार
चमत्कार करके किया
भक्तों का उपकार


क्या क्या तेरे गुण गहूँ
क्या मेरी औकात
तू तो सँत बेअँत है
सारे जग का नाथ


स्वीकारो मम नमन देव
धरो शीश पर हस्त
तेरे लीला गान में
रहूँ सदा मैं मस्त


जय साईं राम
 
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on April 25, 2013, 11:55:03 AM
ॐ साईं राम

साईं तेरे दर पर आई
क्षमा प्राप्ति की आशा ले
पाप कर्म सब माफ कराके
मुक्ति की अभिलाषा ले

अवगुण मेरे अनगिन स्वामी
नख शिख भरे विकार हैं
मोह माया ना मिटती मेरी
चित्त में घर सँसार है

अहँकार के कारण अपना
क्रोध भी जायज़ लगता है
रिश्ते नातों में उलझा के
मन भी मुझको ठगता है

कभी स्वँय न्यायधीश बन जाती
पर के दोष परखती हूँ
शिक्षक बन उपदेश सुनाने
में भी नहीं झिझकती हूँ

मन में 'मैं' के भाव के कारण
खुद को ठीक समझती हूँ
अपने ही चश्में से सारी
दुनिया को मैं तकती हूँ

ईर्ष्या,ढाह,लोभ,मद,मत्सर
जितने अवगुण काया के
सब दिखते मुझे मेरे अँदर
इस सँसारी माया के

इतने अवगुण ओढ़ के स्वामी
कैसे तुझको पाऊँगी
कैसे मैले पैरों से चल
तेरे दर पर आऊँगी

साईं प्रभु जी दीन दयालु
मेरे अवगुण चित्त ना धरो
दुर्गुण दूर करो हे दाता
भक्तन पर उपकार करो

मेरी 'मैं' को मेटो स्वामी
निर्मल कर दो चित्तवन को
मनसा वाचा कर्मणा
शुद्ध करो इस तन मन को

शीश नवा शुभ चरणों में
विनती करती बारम्बार
अधम जीव को तारो बाबा
हाथ थाम लो अपरम्पार

जय साईं राम
Title: Re: जामनेर का विलक्षण चमत्कार
Post by: saisewika on May 01, 2013, 12:43:56 PM
ॐ साईं राम

रमते राम आओजी आओजी
उदिया की गुनिया लाओजी लाओजी


जामनेर का विलक्षण चमत्कार



साईं नाथ जी प्यारे ने
जामनेर की लीला की
दूरस्थल पर बैठे भक्तों की
परम प्रिय ने थी सुध ली

नानाजी की पुत्री मैना
गर्भावस्था में जब थी
प्रसवकाल निकट था उसका
पर तन से वो बोझिल थी

तीन दिनों से प्रसव वेदना ने
तन मन को तोड़ा था
लेकिन नाना ने सबुरी के
दामन को ना छोड़ा था

बाबा ने भी श्रद्धा और
सबुरी का था मान किया
मैना की जीवन नैया को
स्व हाथों में थाम लिया

बापूगीर बुवा जब वापस
खानदेश थे लौट रहे
तब बाबा ने उन्हें बुलाकर
श्रीमुख से शुभ वचन कहे

"जामनेर में उतर कर तुम
नाना के घर में जाना
आरती की ये प्रति और ऊदि
नाना को तुम दे आना"

बापूगीर बुवा तब बोले
दो ही रुपये हैं मेरे पास
जलगाँव तक के भाड़े को ही
वो होंगे शायद पर्याप्त

तीस मील आगे फिर जाना
सँभव ना हो पाएगा
बाबा बोले "अल्लाह देगा"
सब सँभव हो जाएगा

साईं के वचनों को सुनकर
बापू ने प्रस्थान किया
दुविधा तो थी मन में लेकिन
साईंनाथ का नाम लिया

जलगाँव में उतरे जब बापू
चपरासी ने उन्हें बुलाया था
नाना ने उन्हें लेने है भेजा
उसने उन्हें बतलाया था

घोडा़गाड़ी में फिर उसने
बापू जी को बैठा लिया
नाना ने भेजा है कह कर
उनको था जलपान दिया

जामनेर के निकट पहुँचकर
लघुशँका को रुके बुआ
लौट उन्होंने जो भी देखा
उनको अचरज घोर हुआ

ओझल हो चुके थे दोनों
ताँगा और ताँगे वाला
भक्तों की खातिर बाबा ने
चमत्कार था कर डाला

नाना जी का पता पूछते
बापू उनके घर आए
ऊदि औेर आरती दोनों
नाना जी को दिए थमाए

धन्यवाद जब किया बुवा ने
ताँगे और जलपान का
नाना कुछ भी समझ ना पाए
बुवा जी के बखान का

स्तब्ध हो गए बापूगीर तब
जब नाना ने बतलाया
ना ही ताँगा ना चपरासी
उन्होंने कुछ भी भिजवाया

भावविह्वल हो दोनों ने फिर
बाबा जी को नमन किया
अद्भुत प्यारी लीला करने को
साईं को धन्यवाद दिया

साईं नाम ले, घोल पानी में
ऊदि मैना ताई को दी
पाँच मिनट में प्रसव हो गया
लीला उस साईं की थी

अपने भक्त जनों की खातिर
करते थे लीला साईं
पाप ताप सँताप मिटा कर
सुख देते थे सर्व सहाई

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on May 06, 2013, 02:33:36 PM
ॐ साईं राम

साईं प्रभुजी कीजिए
हम पर सुख उपकार
श्री चरणों की शरण में ले
दीजिए भव से तार

तेरे नाम की लगन हो,
शुभ चरणों की आस
दुखों में भी डोले ना
अडिग रहे विश्वास

अलख जगे शुभ जोत तव
मेरे मन के भीत
तुझसे अपरिमित प्रेम हो
तू ही हो मन का मीत

तुझसे बिछड़ के दुखी रहूँ
सुख पाऊँ तव साथ
तेरी चर्चा के बिना
पूरी ना हो बात

सोते जगते सिमरन हो
भूलूँ सब सँसार
चेतूँ, जागूँ, समझ लूँ
थोथे सब व्यवहार

सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ूँ
तेरे दर की ओर
पग पग चलती आऊँ मैं
पकड़ नाम की डोर

मेरे आत्माराम जी
सजग रहें दिन रैन
तेरे दरस की आस में
खुले रहें मम नैन

जग जागे मैं सो जाऊँ
वृत्ति भीतर खींच
सोवे जग तो जागूँ मैं
तन की आँखें मीच

तुझसे एकाकार हो
मिट जाए मेरा आप
मेरी 'मैं' पर साईं जी
आप ही रहिए व्याप

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on August 20, 2013, 12:27:35 PM
ॐ साईं राम

साईं ज़िन्दगी के रास्ते ज़रूर
कुछ टेढ़े मेढ़े रहे हैं
जो भी देह के सुख दुख हैं
सब मैंने भी सहे हैं

कई बार बंधी और टूटी है
मेरे मकसदों की आस
पाया है और खोया भी है
मैंने भी बहुत खास

तन्हाईयाँ और मायूसियाँ
मैंने भी हैं झेली
हार जीत की बाज़ियां
हाँ मैनें भी हैं खेली

लेकिन हमेशा साईं तुम
रहते जो हो साथ
झँझावतों में भी ना
कभी छोड़ा मेरा हाथ

जब हारने को थी मैं
तुमने बँधाई आस
तन्हाईयों में भी तुम
मँडराए मेरे पास

कँटीले रास्तों पर
मखमल बिछा दी साईं
जो मुझको लगने को थी
वो चोट तुमने खाई


कैसे ना मानूँ दाता
मैं अहसान तेरा
नतमस्तक हो करूँ मैं
ले ले प्रणाम मेरा

जितना भी करूँ देवा
शुकराना कम ही होगा
मेरे लबों पे स्वामी
तेरा नाम हरदम होगा

बस इतना करम कर दे
दासी पे मेरे दाता
जब अँतिम साँस निकले
ध्याऊँ तुझे विधाता

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on September 18, 2013, 03:01:06 PM
ॐ साईं राम

हाँ मैंने साईं को देखा
सुन्दर मुख पर थी स्मित रेखा

प्यारी अखियाँ झील सी गहरी
भक्त जनों की चौकस प्रहरी

तन पर लँबी कफनी शोभित
जन जन को करती थी मोहित

काँधे पड़ा हुआ था झोला
शिव सम साईं दिखता भोला

मुख मँडल की प्रभा अनोखी
रक्तिम आभा मोहक चौखी

कोमल हाथ में था इक सटका
माथे पर था ज़री का पटका

दाहिना हाथ साईं स्वतः हिलाते
आशिष सबको देते जाते

चरणों में पादुका को डाल
शिरडी घूमें दीन दयाल

किसी के हाथ में ऊदि देते
माँग दक्षिणा किसी से लेते

कभी झिड़क कर देते गाली
भरते किसी की झोली खाली

स्व मुख से शुभ वचन सुनाते
कथा कहानी कहते जाते

अल्लाह मालिक जिव्हा पे धारा
साईं मेरा सर्व आधारा

धूनि में लकड़ी को डाल
भस्में सबके कष्ट मलाल

साईं मालिक दया का सागर
छलकाता करूणा की गागर

इतनी ममता इतना प्यार
अद्भुत साईं का दरबार

निरख निरख कर रूप निराला
भक्ति रस का छलका प्याला

भीगे मेरे तरसे नैन
व्याकुल चित्त ने पाया चैन

ऐसे ही ऐसे ही देव
दर्शन देते रहो सदैव

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on December 10, 2013, 08:16:14 PM
ॐ साईं राम

जिधर देखती हूँ
उधर तू ही तू है
आज अपनी ही नज़रों पे
प्यार आ रहा है

कभी खत्म ना हो
साईं दीदार तेरा
मेरे दिल को बड़ा ही
करार आ रहा है

क्या सुहाना है मँज़र
तू सन्मुख है मेरे
दरम्याँ कुछ नहीं है
साईं मेरे और तेरे

सच है या सपना
या प्यारा सा अहसास
हो जैसे भी, पर है
तू मेरे आस पास

तेरी खुश्बू भी फैली है
फिज़ा में हवा में
जैसे चँदन सा फैला हो
सारे जहाँ में

या जैसे यहाँ हो
कोई फूलों की वादी
इत्र की महक ज्यों
किसी ने बिखरा दी

मँदिर की घँटी
सुबह को बजी हो
गुलाबों से जैसे
सारी शिरडी सजी हो

दम दम दमकता
साईं मुखड़ा तुम्हारा
दे कर गया है
ये अदभुत् नज़ारा

अब बस साईं तुमसे
इतना है कहना
मेरी नज़रों में यूँ ही
समाए तुम रहना

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on March 20, 2014, 12:46:39 PM
ॐ साईं राम

साईं सच्चिदानन्द है
सदगुरू एक ओंकार
परम ईश परमेश्वर
कर्ता और करतार

आदि और अनन्त तू
जड़ चेतन आधार
विद्यमान सर्वत्र तू
देवा अपरम्पार

अति सबल सर्वज्ञ तू
कण कण तेरा वास
नभ तल जल में घुली हुई
तेरी मधुर सुवास

गीता का है ज्ञान तू
उपनिषदों का सार
सार तत्व है वेदों का
सृष्टि का सँचार

आगम निगम का भेद तू
अदभुत रचनाकार
तेरी शक्ति से चले
जीवन का व्यापार

ज्योतिर्मय जगदीश तू
परम पुरुष भगवान
तजोमय परमात्मा
परम शक्ति की खान

ब्रह्मा विष्णु महेश तू
निर्गुण और गुणवान
साईं शुद्ध स्वरूप का
दीजिए हमको ज्ञान

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: saisewika on March 29, 2020, 10:45:40 AM
ओम् साईं राम

बाबा फिर से पीसो चक्की -

श्रद्धा संग सबूरी रखी
बाबा फिर से पीसो चक्की
कोरोना को अब ख़त्म करो ना
ख़ुशियाँ जन जन में भरो ना


पीसो ना फिर चक्की साईं
भक्त जनों की तुम्हें दुहाई
पाप ताप संताप हरो तुम
फिर इक चमत्कार करो तुम

हाहाकार मचा चहुँ ओर
दुख दर्द का मच गया शोर
रोग शोक ने डाला डेरा
कष्टों ने दुनिया को घेरा

बंद हुए सब काशी क़ाबा
अब तो आ जाओ ना बाबा
सुन लो दाता अरज हमारी
कोरोना की मेटो महामारी

बच्चे बूढ़े सभी दुःखी हैं
जीवन की रफ़्तार रुकी है
घर के अंदर जेल बनी है
आफ़त जग पर बड़ी घनी है

बस इक तेरा नाम अधारा
साईं नाम का दो जयकारा
एकांतवास को ढाल बना लो
मन में साईं जाप चला लो

दौड़े आएँगे फिर देवा
फिर करने जन जन की सेवा
मिट जाएँगे सारे त्रास
महामारी का होगा नाश

जय साईं राम
Title: Re: बाबा की यह व्यथा
Post by: vanshi on March 29, 2020, 11:06:57 AM
Please aao baba