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Author Topic: बाबा की यह व्यथा  (Read 228910 times)

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Offline saisewika

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Re: बाबा की यह व्यथा
« Reply #75 on: April 22, 2008, 08:17:06 AM »
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  • ओम साईं राम

    मुझे नाम खुमारी चढ गई रे
    मैं हो गई रे दीवानी
    मुझे समझाते सब रह गए रे
    मेरे दिल ने एक ना मानी

    बढता ही गया वो उसकी तरफ
    बढी कठिन है जिस के दर की डगर
    मैं दुनिया भर से तोड के नाता
    हो गई रे बैगानी

    सब कहते रहे उसकी राहों में
    मिलेंगे मुझको कांटे
    ना दिन में चैन मैं पाऊंगी
    ना रात कटेगी काटे
    मैं फिर भी आगे बढ गई रे
    हुई अपनों से अनजानी

    अब नाम की मस्ती संग में रे
    और साईं से है नाता
    अब दुनिया की रंगरलियों में
    मुझको कुछ ना भाता
    मैं उसके रंग में रंग गई रे
    मैं हो गई रे दीवानी
    मुझे नाम खुमारी चढ गई रे.........

    जय साईं राम

    Offline saisewika

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #76 on: April 23, 2008, 01:10:25 PM »
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  • ओम साईं राम

    बाबा जी के कुछ और दोहे.............

    जो दूजे को पीडा देवे
    कष्ट पहुंचावे मोहे
    जो खुद ही पीडा को झेले
    सो ही मोको सोहे

    ज्यों नदिया सागर मे मिलती
    होती एकाकार
    त्यों भक्त आ मुझ मे मिलते
    तज के ये संसार

    जिन भक्तों के लिए सदा है
    शिरडी तीरथ स्थान
    सहज भाव से उन भक्तों का
    हो जाता कल्याण

    साईं नाथ प्रभु अनुकम्पा
    हर कोई सकत ना पाय
    बौर लगें कई वृक्ष पर
    कुछ सड कुछ झड जाएं

    भूखे को भोजन देवे
    प्यासे को दे पानी
    राही को आंगन देवे
    सो भक्त साईं का जानी

    सब जीवों में साईं का
    करे जो साक्षात्कार
    उसके पूजा अर्चन को
    साईं करे स्वीकार

    ये काया है पिंजरा
    पंछी आत्माराम
    मुक्त करेंगे बावरे
    तुझको साईं राम

    काया से माया जुडी
    पर ये माया अच्छी
    इस माया को पाय के
    कर ले भक्ती सच्ची

    सात समंदर जाय के
    भक्त भले बस जाय
    साईं खीचे डोर तो
    पंछी उड उड आय

    नीर दिखे ना दूध में
    पवन ना देखें नैन
    घट घट साईं जान ले
    पा जावेगा चैन

    नाविक पर विश्वास कर
    नदिया करते पार
    साईं हाथ में दे डालो
    जीवन की पतवार

    सभी चतुरता छोड दो
    साईं साईं ध्याओ
    भव सागर से पार हो
    जग से मुक्ति पाओ

    जय साईं राम

    Offline tana

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #77 on: April 23, 2008, 11:09:01 PM »
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  • ॐ सांई राम~~~
     
    मैनूं सांई दी मस्ती चढ़ गई,
    हाए नी मैं कमली हो गई,
    मैनूं ताने देंदे लोकी,
    ऐ तेनूं की होया?
    नी तूं ते झल्ली ही हो गई...
    तूं की कीत्ता जी,
    तूं ता कल्ली हो गई...
    मैं आख्या लोका नूं,
    मैं कल्ली नहीं ओ लोको,

    मेरे नाल है मेरा सांई....
    जिदे नाल है सांई ओदे नाल सारी खुदाई....

    जय सांई राम~~~

           
    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
    ॐ शन्तिः शन्तिः शन्तिः"

    " Loka Samasta Sukino Bhavantu
    Aum ShantiH ShantiH ShantiH"~~~

    May all the worlds be happy. May all the beings be happy.
    May none suffer from grief or sorrow. May peace be to all~~~

    Offline tana

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #78 on: April 27, 2008, 05:59:36 AM »
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  • ॐ सांई राम~~~

    बढता जाता है कुछ अजीब सा एहसास,
    नहीं कोई भी मेरे साथ,
    बस एक तेरी दिल को आस,
    मेरे सांई मेरे बाबा~~कहां हो तुम~~

    छुटता जाता है कुछ रिश्तों का साथ,
    नहीं बढ़ाता कोई अपना हाथ,
    बस एक तेरी ही नज़र की प्यास,
    मेरे सांई मेरे बाबा~~कहां हो तुम~~

    दिखाई देती है हर खुशी भी उदास,
    रूकी-रूकी सी आती है हर सांस~
    बस एक तेरी ही है तलाश,
    मेरे सांई मेरे बाबा~~कहां हो तुम~~

    जय सांई राम~~~
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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #79 on: April 27, 2008, 01:14:41 PM »
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  • ॐ सांई राम~~~

    बस इसी तरह,
    धीरे धीरे कदम बढ़ाते बढ़ाते,
    मैं यूँ ही होती गई बाबा के करीब,
    पता न चला कि कब थामी बाबा ने बाह,
    कब रखा सिर पर अपना हाथ,
    कब बना सांई मेरा सहारा,
    कुछ न पता चला,
    बस~~
    बाबा तुम्हारी तरफ बढ़ते हर कदम पर यही महसूस किया,
    कि मैं खुद से ही दूर होती चली गई~~~

    जय सांई राम~~~
    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #80 on: May 05, 2008, 08:22:13 AM »
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  • ओम साईं राम

    रे मन खुद को जान ले
    साईं का ले नाम
    विशुद्ध रूप पहचान ले
    आत्म रूप ले जान

    देह नही है देही तू
    तेरा नहीं शरीर
    स्त्री पुरुष तू है नहीं
    ना ही रंक अमीर

    ना ही तू जन्मा कभी
    ना ही तू मर पाएगा
    समय पूर्ण जो हो गया
    त्याग ये चोला जाएगा

    दुनयावी ये रिश्ते हैं
    मात पिता और भाई
    चोखा रिश्ता एक है
    तू और तेरा साईं

    ईंट जोड कर बना लिया
    तूने जो घर बार
    इनसे ना खुल पाएगा
    परम मोक्ष का द्वार

    ठगिनी माया खडी हुई
    ले सतरंगा रूप
    इससे जो मोहित हुआ
    गिरेगा अंधे कूप

    संभल संभल कर पांव धर
    साईं नाम कर जाप
    अगर कभी गिर जावे तो
    नाथ संभालें आप

    तू तो निर्मल रूप है
    अजर अमर निष्पाप
    परमात्मा का अंश है
    उसमें ही तू व्याप

    लाख चौरासी भोग कर
    जब आवेगा अंत
    परम प्रभु को पावेगा
    होगा तभी अनन्त

    साईं नाथ को पावेगा
    साईं का हर चेरा
    नया दिवस फिर आवेगा
    होगा दूर अंधेरा

    जय साईं राम

    Offline saisewika

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #81 on: May 12, 2008, 09:36:08 AM »
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  • ओम साईं राम

    आज सुबह बाबा ने मुझे
    झंझोड कर उठाया
    आंखो मे कुछ गुस्सा था
    मुख भी था तमतमाया

    वैसे मैं जानती थी
    आज बाबा ज़रूर आएंगे
    जो गलती मुझ से हो गई है
    वो ही मुझे बताएंगे

    हाथ जोड मैं उनके सन्मुख
    आंखे झुकाए खडी थी
    अपराध ही ऐसा हुआ था
    शर्म से मैं गढी थी

    दुखी स्वरों में बाबा बोले
    अब मैं तुमसे क्या बोलूं
    क्या क्या तुम कर जाती हो
    राज़ तुम्हारे क्या खोलूं

    अगर कहीं तुम मुझ पर ही
    पूर्ण विश्वास रख पातीं
    चाहे कष्ट घनेरे होते
    पर तुम वहां नहीं जाती

    आंखों में आंसू भर बोली
    बाबा भूल हुई मुझसे
    क्यों मैं ऐसा कर बैठी
    शर्मिन्दा हूं मैं भी खुद से

    पिछले कुछ दिन से बाबा
    कष्ट बडा ही गहरा था
    मेरे जीवन पर बैठा
    दुख दर्द का पहरा था

    अपने उन संतापों को
    मैं बस सह नहीं पाई
    साईं आपके वचन भुलाकर
    चली गई बस रह नहीं पाई

    सोचा था यह कष्ट सभी हैं
    दुष्ट ग्रहों के ही कारण
    कोई पंडित पोथी पढकर
    करवा देगा कोई निवारण

    पंडित जी ने हाथ देखकर
    हाल सभी बतलाया था
    उलटी राह पर ग्रह हैं सारे
    मुझको यह समझाया था

    वक्री ग्रहों को सीधी चाल
    कैसे अभी चलाना होगा
    दान दक्षिणा पूजा पाठ
    मुझसे अब करवाना होगा

    सब कुछ सुनकर मधुर स्वरों में
    प्यारे बाबा बोले यूं
    मुझको सौंप दिया जो जीवन
    दुख से फिर घबराना क्यूं

    मानव जीवन में कितने ही
    सुख आते दुख आते हैं
    सच्चे भक्त तो सम रहते हैं
    मुझको भूल ना पाते हैं

    याद करो तंदुलकर को तुम
    वो बिल्कुल ना घबराया था
    परीक्षा में पुत्र पास ना होगा
    पंडित ने बतलाया था

    लेकिन उस भक्त पुत्र का
    विश्वास मुझ पर पूरा था
    कष्ट देखकर घबरा जाता
    तुम सा नहीं अधूरा था

    मेहनत करता रहा निरंतर
    परीक्षा में वो पास हुआ
    मुझ पर जो था रखा उसने
    पूरा वो विश्वास हुआ

    भक्त जनों की सही परीक्षा
    ऐसे ही हो पाती है
    दुख आएं तो सारी भक्ति
    कहीं पडी रह जाती है

    वो जो पंडित, तंत्र और मंत्र के
    चक्कर में पड जाते हैं
    भक्ति पथ से डिग जाते हैं
    कच्चे भक्त कहाते हैं

    सुख दुख सब कर्मों का फल है
    सच्ची बात बताता हूं 
    कर्म भोग कर बन्ध काट लो
    तुमको फिर समझाता हूं

    ऐसे जीवन अपना जीकर
    अन्त समय जब आवेगा
    मेरा भक्त मुझे पावेगा
    मुझ में आ मिल जावेगा

    जय साईं राम
    « Last Edit: May 12, 2008, 03:52:30 PM by saisewika »

    Offline saisewika

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #82 on: May 14, 2008, 11:28:41 AM »
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  • ओम साईं राम

    आज सुबह,बाबा की मूरत के आगे
    सर झुकाया
    तो एक आंसू उनके गाल पर
    ढलता पाया

    आंखों से करुणा का सागर
    जैसे बहता जाता था
    दुख आंखों से टपक रहा था
    उनसे सहा ना जाता था

    मैंने पूछा बाबा से
    बाबा मुख मुरझाया क्यूं
    मुखमंडल पर पडा हुआ है
    दुख दर्द का साया क्यूं

    व्यथित हुए क्यूं साईं नाथ जी
    कैसी पीडा है आई
    प्रेम पगे से कमल नयन में
    घोर उदासी क्यूं छाई

    कंपित स्वर में बाबा बोले
    मेरा दुख बडा भारी है
    कैसे खुश रह सकता मैं
    जब पीडित दुनिया सारी है

    कभी सुनामी लाखों लोग
    साथ बहा ले जाता है
    कभी कहीं धरती कांपे तो
    मानव ना बच पाता है

    या फिर कलयुग के मानव
    ऐसा कुछ कर जाते हैं
    अपने हाथों से मानव को
    घोर कष्ट पहुंचाते हैं

    भूमंडल पर कोई बवंडर
    अति विकट हो जाता है
    कभी स्वयं को खुदा समझ कर
    मानुष घात लगाता है

    मैंने तो संदेश दिया था
    सबका मालिक एक है
    लेकिन मानव ने गढ डाले
    अपने खुदा अनेक हैं

    प्रकृति कभी विनाश करे नो
    मानव फिर सह जाता है
    इक दूजे का हाथ थाम कर
    फिर आगे बढ जाता है

    पर ना जाने क्यूं करता है
    प्राणी प्राणी पर ही वार
    क्यूं भाई भाई पर करता
    घोर अमानुष अत्याचार

    ऐसे उनको बंटा देख कर
    दिल ये मेरा रोता है
    इंसा ऐसा क्यूं हो गया
    बुरे कर्म क्यूं ढोता है

    बडे भाग्य से मिला ये जीवन
    इससे अच्छे काम करो
    इसको व्यर्थ ना जाने दो
    ना ही यूं बदनाम करो

    निष्पाप रहो सत्काज करो
    खुशियां बांटो तुम जन जन में
    जीव मात्र से प्रेम करो
    किंचित मैल ना हो मन में

    कभी नहीं मैं दुखी रहूंगा
    जो अमन चैन हो चारों ओर
    प्रेम मय हो धरती सारी
    सुख का पाऊंगा ना छोर

    सच्ची बात तुम्हें कहता हूं
    मानों या ना मानों तुम
    मेरा सुख दुख भक्तों के हाथ
    इस सच्च को पहचानों तुम

    जय साईं राम

    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #83 on: May 14, 2008, 11:53:35 PM »
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  • जय सांई राम।।।

    बहुत खूब। नमन् अपनी बहन सुरेखा को। निशब्द भावभीन नमन् अपने भक्तो के लिये चिन्तित बाबा सांई को।

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

    ॐ सांई राम।।।
    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #84 on: May 19, 2008, 09:49:59 AM »
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  • ओम साईं राम

    कौन प्रिय है साईं को
    आओ करें विचार
    वैसे ही फिर ढाल लें
    अपने सभी व्यवहार

    बाबा को लगते हैं प्यारे
    वो ही अपने बच्चे
    तज के सब दुर्भावना
    काज करें जो अच्छे

    अपने उन भक्तों को चाहते
    साईंनाथ भगवान
    प्रेम करें हर प्राणी से
    साईं रूप ही जान

    उन भक्तों के हृदय में
    साईंनाथ बस जाते
    दुनिया की सुख संपत जो
    श्री चरणों में पाते

    उन भक्तों के सिर पर होता
    बाबाजी का हाथ
    श्रद्धा और सबूरी का
    जो ना छोडें साथ

    जन प्यारा वो बाबा का
    जिसमें क्षमा का भाव
    मन में जो धारण करे
    जन जन से सदभाव

    श्री बाबा के प्रेम का
    वो ही है अधिकारी
    करूणा जिसके हृदय बसे
    दयावान उपकारी

    भक्त प्रिय वो बाबा को
    जो जीए पर हेत
    ग्यान चक्षु हों खुले हुए
    आत्मा होवे चेत

    भक्ति मार्ग का पथिक हो
    निर्लोभी निष्काम
    श्री चरणों में ही पावे
    अंत समय विश्राम

    जय साईं राम

    Offline saisewika

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #85 on: May 27, 2008, 08:25:22 AM »
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  • ओम साईं राम

    मेरे घट के मंदिर में
    साईं नाथ विराजे
    करतल घंटा वीणा छुन छुन 
    मधुर स्वरों में बाजे

    परम तेजमय पुंज है
    साईंनाथ अभिराम
    आन बसे जो हृदय में
    पायी भक्ति सुजान

    अलख जोत जगी नाम की
    पल पल स्पंदित होवे
    मन अंधियारा दूर कर
    करे प्रकाशित मोहे

    साईं प्रेम के भाव ने
    छेडा ऐसा नाद
    मन के तार बजे तो छूटे
    वाद विवाद विषाद

    श्री चरणों को पूज कर
    मैं का कर के त्याग
    श्रद्धा और सबूरी का
    पाया महाप्रसाद

    अब मैं और मेरा साईंया
    साथ रहें दिन रैन
    चंचल चित्त अधीर ने
    पाया अनुपम चैन

    जय साईं राम


    Offline saisewika

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #86 on: May 29, 2008, 09:45:55 AM »
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  • ओम साईं राम

    चंदा की खिडकी को खोल
    बाबा देख रहे चहुं ओर

    मधुर चांदनी चमचम चमके
    बाबा के नैनों में दमके

    टिम टिम करते ढेरों तारे
    आंगन में आ उतरे सारे

    संग संग उतरे मेरे बाबा
    अनुपम थी उस मुख की आभा

    ठंडी ठंडी मस्त हवाएं
    बाबा की ले रही बलाएं

    फूलों ने खुशबु बिखरा दी
    चंदा ने अपनी आभा दी

    दसों दिशाएं महिमा गाएं
    सूरज किरणें चंवर ढुलाएं

    कोयल कूकी छेडी तान
    मधुर स्वरों में गाया गान

    मेघों ने कर दी जल वृष्टि
    साईं मय हुई सारी सृष्टि

    सुंदर रूप दिखाया आप
    हृदय पटल पर छोडी छाप

    जय साईं राम

    Offline tana

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #87 on: June 10, 2008, 06:47:39 AM »
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  • ॐ सांई राम~~~

    आज बङे दुखी मन से की फरियाद,बाबा से
    इतना दुःख दिया मुझे प्रभु ये क्या किया,
    कुल मिला कर यूं कहें तो मैने खूब गिला दिया,
    बाबा तो कुछ न बोले बस रहे चुप,
    पर मेरा अंतरमन बोल पङा
    इतना सुख भोगा तूने क्या तब भी गिला दिया
    कि इतना सुख क्यों दिया ये आपने क्या किया,
    तब तो खूब मजा लिया खुशिया पाई आनन्द लिया
    मन से तो फिर भी शुक्र किया पर गिला तो कभी नहीं दिया,
    सुख-दुःख दोनों उसी की संताने
    हे मन उन्हे प्यार कर और गले लगा~~~

    जय सांई राम~~~
    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
    ॐ शन्तिः शन्तिः शन्तिः"

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    Offline tana

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #88 on: June 29, 2008, 01:29:08 AM »
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  • ॐ सांई राम~~~

    ये किन कर्मों का फल है बाबा,
    कि मैंने तुमको पाया है~~
    ये बहु-प्रतीक्षित सा समय बाबा,
    मेरे जीवन में आया है~~
    ये मूरत तेरी, ये सूरत तेरी बाबा,
    कितनी सुन्दर काया है~~
    चेहरे से नज़रे हटाऊँ कैसे बाबा,
    ये तेरी कैसी माया है~~~

    जय सांई राम~~~
    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
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    Offline bindu tanni

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #89 on: July 01, 2008, 02:00:49 PM »
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  • मेरा साँई जग का दाता
    सब का वो ही भाग्य विधाता
    नहीं चाहता स्वर्ण सिंहासन
    उसे चाहिये भाव भरा मन

    हाथ में सटका तन पर कफ़नी
    यही संपदा साईं की अपनी
    एसा सांई मुझको भाता
    लगता जनम-जनम का नाता

    स्वर्ण सिंहासन वाला सांई
    बहुत दूर है मुझको लगता
    उसको छू न सकने का दुख
    मेरे मन को घायल करता

    मेरा सांई अमनी का है
    मेरा सांई जमली का है
    बायजा माँ का बेटा है वो
    वही सांई मुझ पगली का है

    माँ सरस्वति की सतत कृपा हो
    बाबा की रहमत भी बरसे
    और तुम्हारी रचनाओं से
    हम भक्तों का मन भी सरसे

    और दुआ इतनी सी करना
    भजन रचूँ मैं बस सांई के
    सोते जगते चलते फ़िरते
    केवल स्वप्न दिखें सांई के

     


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