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Author Topic: बाबा की यह व्यथा  (Read 228937 times)

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Offline saisewika

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Re: बाबा की यह व्यथा
« Reply #210 on: July 17, 2010, 10:42:02 AM »
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  • ॐ साईं राम


    आओ हिल मिल कर लेते हैं
    साईं की जय जय कार सखी
    जो सदगुरू सर्व सहाई है
    उस पर तन मन दे वार सखी

    हम ठहरे मिट्टी के ढेले
    वो ठहरा कुम्भकार सखी
    हम बेढब पीतल के लौंदे
    वो अद्भुत है स्वर्णकार सखी
    हम अति मलिन, मैले, मलयुत
    वो पावन गँगा की धार सखी

    वो हमें थामने खडा हुआ
    हम गिरने को तैयार सखी
    काम, क्रोध से भरा ये मन
    और सौ सौ भरे विकार सखी
    अपराध हमारे पर्वत सम
    वो ठहरा बक्शनहार सखी

    भक्ति के पथ पर खँदक खाई
    और गड्ढों की भरमार सखी
    जो हाथ थाम ले सदगुरू साईं
    तो होगा बेडा पार सखी
    जो पूर्ण समर्पण कर दें हम
    तो हो जाए ऊद्धार सखी

    जीवन के रस्ते अति कठिन
    ज्यों दो धारी तलवार सखी
    ना चाहें तो भी उलझे हम
    ये होता बारम्बार सखी
    हम गिर के उठ ना पाऐंगे
    जो थामें ना सरकार सखी

    हम कर्म भूमि के पथ पर चल
    करते कितने व्यवहार सखी
    कितना भोला वो साईं है
    जो कर लेता स्वीकार सखी
    चलो हाथ जोड कर करें नमन
    कुछ व्यक्त करें आभार सखी

    हर आँख के सुँदर सपने को
    वो करता है साकार सखी
    जहाँ सबकी झोली भरती है
    वो सच्चा है दरबार सखी
    जहाँ झुकने को मन करता है
    हर भक्त का बारम्बार सखी

    जय साईं राम
    « Last Edit: July 27, 2010, 10:29:18 AM by saisewika »

    Offline Dipika

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #211 on: July 17, 2010, 11:29:46 AM »
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  • OMSAIRAM!Just love your poems dear SaiSewika..

    हर आँख के सुँदर सपने को
    वो करता है साकार सखी
    जहाँ सबकी झोली भरती है
    वो सच्चा है दरबार सखी
    जहाँ झुकने को मन करता है
    हर भक्त का बारम्बार सखी



    जय साईं राम

    Sai baba bless us all


    Bow to Sri Sai!

    Sai baba let your holy lotus feet be our sole refuge.OMSAIRAM जय साईं राम

    साईं बाबा अपने पवित्र चरणकमल ही हमारी एकमात्र शरण रहने दो.ॐ साईं राम


    Dipika Duggal

    Offline saisewika

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #212 on: July 18, 2010, 09:22:52 AM »
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  • OM SAI RAM

    SAIRAM Dipika ji

    I too am a humble servant of our Baba SAI. He alone is the doer of all Karmas. He is the one who assign different tasks to different devotees according to his wish.

    Hemadpant has a beautifully description about this in chapter 3 of SAI SATCHARITRA

    Different Works Assigned to Devotees

    The Lord entrusts different works to different devotees. Some are given the work of building temples and maths, or ghats (flight of steps) on rivers; some are made to sing the glories of God; some are sent on pilgrimages; but to me was allotted the work of writing the Sat Charita. Being a jack of all trades but master of none, I was quite unqualified for this job. Then why should I undertake such a difficult job? Who can describe the true life of Sai Baba? Sai Baba’s grace alone can enable one to accomplish this difficult work. So, when I took up the pen in my hand, Sai Baba took away my egoism and wrote Himself His stories. The credit of relating these stories, therefore, goes to Him and not to me. Though Brahmin by birth, I lacked the two eyes. (i.e. the sight or vision) of Shruti and Smriti and therefore was not at all capable of writing the Sat-Charita, but the grace of the Lord makes a dumb man talk, enables a lame man to cross a mountain. He alone knows the knack of getting things done as He likes. Neither the flute, nor the harmonium knows how the sounds are produced. This is the concern of the Player. The oozing of Chandrakant jewel and the surging of the sea are not due to the jewel and the sea but to the rise of the moon.


    Baba SAI bless us all

    JAI SAI RAM

    « Last Edit: July 18, 2010, 11:23:14 AM by saisewika »

    Offline Dipika

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #213 on: July 18, 2010, 11:24:46 AM »
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  • OMSAIRAM!Dear sis SaiSewika...ur my Sai Sister who is truly humble


    I totally agree with u that BABA's is the doer of all karmas.

    Its true BABA assigns different works to different devotees.


    Sai baba bless us all


    Bow to Sri Sai!

    Sai baba let your holy lotus feet be our sole refuge.OMSAIRAM जय साईं राम
    साईं बाबा अपने पवित्र चरणकमल ही हमारी एकमात्र शरण रहने दो.ॐ साईं राम


    Dipika Duggal

    Offline saisewika

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    कभी तो साईं
    « Reply #214 on: July 27, 2010, 10:25:39 AM »
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  • ॐ साईं राम


    कभी तो साईं सन्मुख आओ
    कभी तो कर लो हमसे बात
    कभी तो हाथ बढाओ स्वामी
    कभी तो थामों मेरा हाथ


    कभी तो बैठो बातें कर लें
    सुख दुख तुमसे बाँटे नाथ
    कभी तो दिल की गाँठे खोलें
    पल दो पल तो काटें साथ


    कभी तो सहला दो हे देवा
    कर कमलों से भक्त का माथ
    कभी तो प्रेम पगी दृष्टि से
    हमें निहारो प्यारे तात


    कभी तो साईं हँसी ठिठोली
    हमसे भी कर लो हे नाथ
    अधरों पे मुस्कान बिखेरो
    बहने दो दिल के जज़्बात


    कभी तो जीवन के रस्ते पर
    कदम मिला कर चल दो साथ
    इस जीवन में अपने सँग की
    एक बार दे दो सौगात


    जय साईं राम

    Offline saisewika

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    धन्यवाद हो तेरा साईं
    « Reply #215 on: July 28, 2010, 09:51:44 AM »
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  • ॐ साईं राम


    धन्यवाद हो तेरा साईं
    रोम रोम से मेरे
    तू ही पार लगाता स्वामी
    भक्त जनों के बेडे


    कैसे करता है तू देवा
    लीला इतनी प्यारी
    बँजर भूमि में उपजाता
    फूलों से भरी क्यारी


    बीहड में तू स्त्रोत बहाता
    अदभुत तेरी क्षमता
    कृपा सिन्धु तू दया की मूरत
    छल छल छलके ममता


    असँभव को कर देता सँभव
    जाने कैसे दाता
    दे देता है उसको जो भी
    हाथ पसारे आता


    तेरे आषिश से हे साईं
    पँगु चढते परबत
    चक्षुहीन दृष्टि पा जाते
    ऐसे तेरे करतब


    नास्तिक के हृदय में देवा
    तू भक्ति उपजाता
    पाषाण हृदय हैं जिनके उन में
    प्रेम के दीप जलाता


    बुद्धिहीन को बुद्धि देता
    निर्बल को बल देता
    भक्त जनों के दुख तकलीफें
    अपने ऊपर लेता


    निर्धन धन पाते हैं मालिक
    आ कर तेरे द्वारे
    बीच भँवर में जिनकी नैया
    करता तू ही किनारे


    अवगुण दूर हटा कर तू
    विनम्र बनाता दास
    तेरे शरण में आ कर होता
    अहँकार का नाश


    तेरी ऊदि से मिट जाते
    पाप ताप और श्राप
    कृपा दृष्टि से मिट जाते हैं
    मन के सब सँताप


    क्या गिनवाऊँ कैसे गाऊँ
    तेरा लीला गान
    शब्दकोश में शब्द नहीं
    मैं कैसे करूँ बखान


    वाणी में रस, हृदय में भाव
    भर दे करुणाप्रेरे
    नित नित गाऊँ गान तेरा
    अहोभाग्य हों मेरे

    जय साईं राम

    Offline saisewika

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    तू ही तू है
    « Reply #216 on: August 04, 2010, 07:38:24 AM »
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  • ॐ साईं राम


    साईं ये जग
    छाया तेरी
    कतरा कतरा
    माया तेरी
    तू उलझाता
    तू सुलझाता
    स्वप्न दिखा कर
    तू भरमाता
    सकल जगत
    प्रतिच्छाया तेरी

    जब जी चाहे
    तू दे देता
    जिससे चाहे
    वापस लेता
    रूप बदल
    आता हर युग में
    सतयुग कलयुग
    द्वापर त्रेता

    परमार्थ के रस्ते
    तू ही डाले
    मोह माया से
    भक्त निकाले
    रिद्धि सिद्धि
    दे देता उनको
    जिनका जीवन
    तेरे हवाले

    अहम भाव का
    नाशक तू है
    शुद्ध भाव का
    रक्षक तू है
    अणु अणु का
    स्वामी तू है
    सकल सृष्टि का
    सँरक्षक तू है

    स्व गाथा का
    गायक तू है
    अनुयायियों का
    नायक तू है
    सत्कर्मों का
    प्रेरक तू ही
    भक्तों को
    फलदायक तू है

    जीवन के
    हर कर्म में तू है
    भक्ति पथ और
    धर्म में तू है
    जिन खोजा
    तिन ये ही पाया
    जीवन के
    हर मर्म में तू है

    जय साईं राम

    Offline saisewika

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    अच्छा लगता है
    « Reply #217 on: August 07, 2010, 06:13:23 AM »
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  • ॐ साईं राम


    मुझे अच्छा लगता है
    मेरे साईं
    अच्छा लगता है

    काँकड गा कर तुझे जगाना
    अच्छा लगता है
    सुबह सुबह तेरा दर्शन पाना
    अच्छा लगता है

    श्रद्धा से तुझको नहलाना
    अच्छा लगता है
    बडे चाव से तुझे सजाना
    अच्छा लगता है

    तेरी खातिर भोज बनाना
    अच्छा लगता है
    प्रेम भाव से तुझे खिलाना
    अच्छा लगता है

    तेरे आगे दीप जलाना
    अच्छा लगता है
    मधुर स्वरों में आरती गाना
    अच्छा लगता है

    तेरे दर नित चल कर आना
    अच्छा लगता है
    श्री चरणों में शीश झुकाना
    अच्छा लगता है

    तेरे सँग कुछ वक्त बिताना
    अच्छा लगता है
    दिन भर की बातें बतलाना
    अच्छा लगता है

    बातें सुन तेरा मुस्काना
    अच्छा लगता है
    कभी कभी पलकें झपकाना
    अच्छा लगता है

    तेरी शान में गीत बनाना
    अच्छा लगता है
    सारी सँगत को पढवाना
    अच्छा लगता है

    मेरी मैं का तू हो जाना
    अच्छा लगता है
    तेरी दुनिया में खो जाना
    अच्छा लगता है

    जय साईं राम

    Offline saisewika

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    काश अगर ऐसा होता
    « Reply #218 on: August 11, 2010, 06:45:41 AM »
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  • ॐ साईं राम


    काश अगर ऐसा होता
    बाबा आज भी द्वारकामाई में
    सशरीर विराजित होते
    जो भी शिरडी जाता॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
    बाबा के सदेह दर्शन पाता॰॰॰॰॰॰॰॰

    अब यूँ ना कहिएगा कि
    बाबा हैं ना सब तरफ
    बस मन की आँखें चाहिए
    उन्हें भीतर खोजूँ वगैरहा वगैरहा॰॰॰॰॰॰॰॰॰

    मुझे तन की आँखों से देखना है उन्हें॰॰॰॰॰॰
    आमने सामने॰॰॰॰जेसे देखते थे सब भक्त
    जो उनके साथ थे॰॰॰॰॰॰॰

    काश अगर ऐसा होता
    आज भी समाधि मँदिर की जगह पर
    बाबा के हाथों से सींची, रोपी,
    पुष्पित, पल्लवित फुलवारी होती
    हम उसमें से फूल तोडते,गूँथते,
    और प्रेम से बनाई माला
    बाबा के गले में पहनाते॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰

    अब यूँ ना कहिएगा कि
    भावों की माला बनाकर
    बाबा को पहना दी
    तो समझो बाबा ने माला पहन ली॰॰॰

    मुझे सचमुच दुनिया के सुन्दरतम फूलों से
    गूँथी माला बाबा को पहनानी है॰॰॰॰॰॰॰॰
    और फिर देर तक उन्हें निहारना है॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰

    काश अगर ऐसा होता कि
    चावडी के जुलूस में॰॰॰॰॰॰
    बाबा के सन्मुख चँवर ढुलाने का अवसर
    हमें भी मिलता॰॰॰॰॰
    बाबा हौले हौले श्री चरण बढाते
    लाल गलीचे पर चलते
    तो हम भी उन के पीछे चलते

    अब यूँ ना कहिएगा कि
    शिरडी में पालकी यात्रा में
    शामिल हो जाओ॰॰॰॰॰॰॰या फिर
    हर रात सोने से पहले
    चावडी समारोह का दृश्य
    आँखों के सन्मुख लाऊँ
    और समझूँ कि मैं
    उस जुलूस में सम्मिलित थी॰॰॰॰॰॰॰॰॰

    मुझे सच में चावडी जुलूस में
    अपने बाबा के कोमल पैरों तले
    गुलाब की पँखुडियों को बिछाना है॰॰॰॰॰॰॰
    उनके श्री चरणों की धूल को
    अपने माथे से लगाना है॰॰॰॰॰॰॰॰॰

    काश अगर ऐसा होता कि
    बाबा द्वारकामाई में बैठ
    श्री मुख से प्रवचन सुनाते,
    अपने अनोखे अँदाज़ में कहानियाँ कहते,
    और मैं सब भक्तों के बीच बैठी
    बाबा की मधुर वाणी सुनती,
    उनकी ठिठोली पर हँसती,
    उनके गुस्से पर सहमती॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰

    अब यूँ ना कहिएगा कि
    मैं साईं सच्चरित्र का पाठ करके ही
    साईं लीलाओं का आनँद लूँ
    और भक्तों के अनुभव पढकर
    मालिक की कृपाओं को अनुभव करूँ

    सच तो ये है कि जब जब भी मैनें
    बाबा के चरित्र का पाठ किया है,
    उनकी लीलाओं का अमृत पान किया है॰॰॰॰॰॰
    तब तब ही जैसे कोई अँदर से चीत्कार करता है॰॰॰॰॰
    क्यों मै सौ बरस पहले ना जन्मी॰॰॰॰॰॰॰॰
    क्यों समय वहीं रूक नहीं गया॰॰॰॰॰॰
    क्यों॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰

    जय साईं राम
    « Last Edit: August 11, 2010, 06:47:28 AM by saisewika »

    Offline arti sehgal

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    • sai ke charno me koti koti pranam
    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #219 on: August 12, 2010, 01:09:54 AM »
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  • jai sairam sai sewika
    bahut sundar lika hai . may sai bless you . aaj to tumne sai ka bhi dil jeet liya hoga .
    jai sairam
    sabke dil me baste hi ushe sai sai kehte hai
    jai sainath

    Offline saisewika

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #220 on: August 12, 2010, 09:41:39 AM »
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  • OM SAI RAm

    SAIRAM Arti

    May Baba bless all of us.


    ॐ साईं राम


    वो मेरे मन का साईं
    हर पल हर घडी
    आठों याम मेरे साथ ही रहता है

    मेरी ढेर सी बातें सुनता है
    मुझसे ढेरों बातें कहता है

    सोते जगते उठते बैठते
    खाते पीते सब समय वो
    मेरे साथ होता है
    मेरे सुख में हँसता है
    मेरे दुख में रोता है

    वही गुनगुनाता है
    नईं नईं पँक्तियाँ मेरे कानो में
    यही अटूट सत्य है
    तुम मानों या ना मानों ये

    मेरी कलम से निकला
    हर शब्द उसका है
    हर पँक्ति उसकी है
    हर ख्याल उसका है

    मैं स्वयँ कुछ लिख नहीं सकती
    मैंने कुछ लिखा ही नहीं
    सच तो ये है कि
    उससे परे या उससे अलग
    मुझे कुछ दिखा ही नहीं

    कविता?॰॰॰॰॰॰॰वो क्या होती है?
    मैं नहीं जानती
    उसके कोई कायदे कानून
    मात्रा व्याकरण
    मैं नहीं मानती

    बस इतना जानती हूँ कि॰॰॰॰॰॰॰
    ये लेखनी उसकी है॰॰॰॰॰॰॰
    लीला उसकी है॰॰॰॰॰॰॰॰
    स्याही उसकी है॰॰॰॰॰॰॰

    और अगर ये पँक्तियाँ
    किसी को भाती हैं॰॰॰॰॰॰
    तो तारीफ भी उसकी है॰॰॰॰॰॰

    किसकी?????
    वही वो मेरे मन का साईं
    जो हर पल हर घडी
    आठों याम मेरे साथ ही रहता है
    मेरी ढेर सी॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰

    जय साईं राम

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    साईं तेरे दर पे
    « Reply #221 on: August 19, 2010, 12:51:33 PM »
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  • ॐ साईं राम


    हिंदु भी खडे हैं और
    मुसलमान खडे हैं
    निर्धन भी खडे हैं
    और धनवान खडे हैं

    साईं तेरे दर पे
    सब ही आन पडे हैं॰॰॰॰॰॰॰॰॰

    फैलाए खडे हैं कोई तो
    झोलियाँ अपनी
    कोई लुटाने को
    दिल और जान खडे हैं

    फरमान तेरा सुनने को
    चले आए हैं कई
    कहने को कोई अपनी
    दास्तान खडे हैं

    सीने में हूक, आँखों में
    पानी है कईयों के
    अधरों पे लिए कई तो
    मुस्कान खडे हैं

    थैलियाँ ले आए हैं
    कई सोने चाँदी की
    कोई लिए दिल में
    बस तूफान खडे हैं

    झुके खडे हैं कई
    तेरी रहमतों तले
    कोई तुझपे करने को
    अहसान खडे हैं

    दुनिया की ठोकरों से
    बेजान से हैं कई
    करने को तेरा सजदा
    कई इँसान खडे हैं

    पँक्ति में खडे हैं
    जो हैं आम आदमी
    पर आगे आगे खास
    कुछ मेहमान खडे हैं

    जय साईं राम

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #222 on: September 05, 2010, 10:32:58 AM »
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  • ॐ साईं राम


    शुक्रिया साईं

    मेरी हर माँग को पूरा करने के लिऐ
    मैंने वक्त, बेवक्त
    जायज़, नाजायज़
    सँभव, असँभव
    तिनका, पहाड
    चीज़ या रिश्ता
    यहाँ तक कि
    देश और जहान
    जो भी माँगा है तुमसे
    जैसे भी
    अड कर,
    ज़िद कर
    हक से
    रो कर
    पैर पटक कर
    मान मनुहार से
    रिश्वत का लालच दे कर
    और ना जाने
    किस किस चीज़ का वास्ता दे कर
    तुमने हमेशा ही दिया है॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
    कैसे साईं कैसे?॰॰॰॰॰॰॰
    मेरे दिल की धडकन तक तुम सुन लेते हो
    कैसे काँटों में से फूल फूल मेरे लिए चुन लेते हो
    कैसे तुम्हें पहले से पता होता है कि
    मैं जीवन के कौन से रास्तों से गुज़रने वाली हूँ
    तुम पहले से सब बाधाऐं दूर कर देते हो
    सच तो ये है कि
    अब मैं  स्तब्ध भी नहीं होती
    क्योंकि॰॰॰॰॰॰
    जब भी मेरे सामने कोई मुश्किल आ खडी होती है
    मैं जानती हूँ कि उसके पीछे तुम खडे ही हो॰॰॰॰॰॰॰
    धक्का दे कर परे कर ही दोगे उसे॰॰॰॰॰॰॰॰॰

    शुक्रिया साईं॰॰॰॰॰॰॰॰॰
    मेरे मन में इस विश्वास को जगाने के लिए॰॰॰॰॰॰॰॰॰
    शुक्रिया मेरे विश्वास पर दौडे आने के लिए॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰

    शुक्रिया मेरे मालिक॰॰॰॰॰॰॰

    जय साईं राम

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    साईं का निर्वाण दिवस
    « Reply #223 on: October 15, 2010, 12:45:35 PM »
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  • ॐ साईं राम

    चलो साईं का निर्वाण दिवस
    कुछ यूँ मनाते हैं
    द्वारकामाई की धूनि में
    हर पाप जलाते हैं

    भूल जाते हैं दीवारें
    झूठे मज़हब की
    चलो दीवाली और ईद
    इक साथ मनाते हैं

    छोड देते हैं दिखावा
    सोने चाँदी का
    चलो किसी भूखे को चल
    खाना खिलाते हैं

    मँदिरों की सीढियाँ तो
    हर रोज़ चढते हैं
    आज चल वृद्धाश्रम का
    चक्कर लगाते हैं

    शिकवे तो कर लेते हैं
    हर रोज़ साईं से
    आज श्री चरणों में बस
    मस्तक झुकाते हैं

    जय साईं राम

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #224 on: October 27, 2010, 12:15:20 PM »
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  • ॐ साईं राम


    जब भी हाथ पसारा साईं
    तुझसे श्रद्धा भक्ति माँगी
    सुख सँपत्त की आस ना रखी
    दुख सहने की शक्ति माँगी

    तेरी रज़ा में रही मैं राजी
    कष्टों से घबराई ना
    शूलों पर भी चली मैं लेकिन
    पीडा मुख पर आई ना

    पर हे देवा आज मैं आई
    आँचल को फैला कर के
    परम पिता मेरे प्रिय पिता के
    जीवन की भिक्षा तू दे

    पीडा उनकी बडी है भारी
    बोझिल है जर्जर काया
    जीवन पर मेरे तात के छाया
    दुखों का काला साया

    कष्ट उनका देख देख मैं
    सौ सौ आँसू रोती हूँ
    किंचित दुख भी बाँट ना पाती
    मन का आपा खोती हूँ

    दया करो मम जनक पे देवा
    स्वस्थ करो उन्हें तन मन से
    दीर्घायु का वर दो साईं
    हारें ना वो जीवन से

    वैद्यों के हे वैद्य महान
    खाली झोली भर दो तुम
    मेरे जीवन दाता की
    आधि व्याधि हर लो तुम

    भीमा जी के कर्म बन्ध को
    देवा तुमने काटा था
    दुख दर्द का साया साईं
    स्व आशिष से छाँटा था

    स्व भक्तों की व्याधि को
    तुमने तन पर धारा था
    शामा जी के सर्प दँश को
    तुमने नाथ उतारा था

    रामचन्द्र और तात्या को
    तुमने जीवन दान दिया
    जो भी आया हाथ पसारे
    तुमने था कल्याण किया

    मैं भी तेरे दर पर आई
    आँखों में आँसू भर के
    मेरे प्रिय पिता का जीवन
    साईं तेरे हाथों में

    कृपा करो हे परम कृपालु
    दया करो दयामय ईश
    बाबुल छत्र रहे मेरे सिर पर
    वरद हस्त धर दो आशिष

    जय साईं राम

     


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