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Author Topic: बाबा की यह व्यथा  (Read 229017 times)

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Offline Dipika

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Re: बाबा की यह व्यथा
« Reply #225 on: November 04, 2010, 08:41:27 PM »
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  • ॐ साईं राम


    जब भी हाथ पसारा साईं
    तुझसे श्रद्धा भक्ति माँगी
    सुख सँपत्त की आस ना रखी
    दुख सहने की शक्ति माँगी

    तेरी रज़ा में रही मैं राजी
    कष्टों से घबराई ना
    शूलों पर भी चली मैं लेकिन
    पीडा मुख पर आई ना

    पर हे देवा आज मैं आई
    आँचल को फैला कर के
    परम पिता मेरे प्रिय पिता के
    जीवन की भिक्षा तू दे

    पीडा उनकी बडी है भारी
    बोझिल है जर्जर काया
    जीवन पर मेरे तात के छाया
    दुखों का काला साया

    कष्ट उनका देख देख मैं
    सौ सौ आँसू रोती हूँ
    किंचित दुख भी बाँट ना पाती
    मन का आपा खोती हूँ

    दया करो मम जनक पे देवा
    स्वस्थ करो उन्हें तन मन से
    दीर्घायु का वर दो साईं
    हारें ना वो जीवन से

    वैद्यों के हे वैद्य महान
    खाली झोली भर दो तुम
    मेरे जीवन दाता की
    आधि व्याधि हर लो तुम

    भीमा जी के कर्म बन्ध को
    देवा तुमने काटा था
    दुख दर्द का साया साईं
    स्व आशिष से छाँटा था

    स्व भक्तों की व्याधि को
    तुमने तन पर धारा था
    शामा जी के सर्प दँश को
    तुमने नाथ उतारा था

    रामचन्द्र और तात्या को
    तुमने जीवन दान दिया
    जो भी आया हाथ पसारे
    तुमने था कल्याण किया

    मैं भी तेरे दर पर आई
    आँखों में आँसू भर के
    मेरे प्रिय पिता का जीवन
    साईं तेरे हाथों में

    कृपा करो हे परम कृपालु
    दया करो दयामय ईश
    बाबुल छत्र रहे मेरे सिर पर
    वरद हस्त धर दो आशिष

    जय साईं राम





    श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।


    साईं बाबा अपने पवित्र चरणकमल ही हमारी एकमात्र शरण रहने दो.ॐ साईं राम
    साईं बाबा अपने पवित्र चरणकमल ही हमारी एकमात्र शरण रहने दो.ॐ साईं राम


    Dipika Duggal

    Offline saisewika

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    दक्षिणा का मर्म
    « Reply #226 on: November 25, 2010, 12:24:39 PM »
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  • ॐ साईं राम



    साईं नाथ की लीला का
    अद्भुत था व्यवहार
    बाबा माँगे दक्षिणा
    अपने हाथ पसार

    यूँ ही व्यर्थ ना माँगते
    बाबा सबसे दान
    लक्ष्य नाथ का एक था
    भक्तों का कल्याण

    गत जन्मों का करना हो
    जिस जन ने भुगतान
    उससे पैसा माँगते
    शिरडी के भगवान

    इक पैसे की दक्षिणा
    माँगे जब सरकार
    अपने भक्त से साईं की
    होती ये दरकार

    प्राणी मात्र में जानिए
    एक आत्म का वास
    सबका मालिक एक है
    कर लो ये विश्चास

    दो पैसे की दक्षिणा
    साईं भक्ति का सार
    साईं नाथ से जोडता
    सीधे मन के तार

    इक पैसा है श्रद्धा का
    दूजा पैसा सबूरी
    धारणकर्ता की मिट जाती
    परम पिता से दूरी

    जब भी मालिक माँगते
    दान में रूपये चार
    तब वो चाहते भक्त से
    ऐसा कुछ व्यवहार

    अपने मन, चित्त, बुद्धि से
    अहँकार को त्याग
    चित्त उपवन मे रोप लो
    साईं का अनुराग

    पाँच रूपये की दक्षिणा
    जिससे माँगे देव
    प्रिय भक्त से चाहते
    दाता यही सदैव

    पाँच प्राण पाँच इन्द्रियाँ
    साध सके तो साध
    मन के पौधे में डालो
    भक्ति भाव की खाद

    जब जब माँगे साईं जी
    छः रूपये का दान
    भक्त को देना चाहते
    देवा ऐसा ज्ञान

    साईं के सन्मुख करो
    षड् रिपुओं का अर्पण
    काम क्रोध लोभ मोह मद मत्सर
    कर दो इन्हें समर्पण

    नौ रूपये की दक्षिणा
    भक्ति भाव की नींव
    भक्ति के प्रकार की
    देते दाता सीख

    चाहे जिस भी भाव से
    ध्याओ अपना ईश
    अडिग रहे विश्वास तो
    पाओगे जगदीश

    पँद्रह रूपये की दक्षिणा
    अनुपम बडी विशेष
    जब जब साईं माँगते
    देते ये सँदेश

    धार्मिक पुस्तक से करो
    शिक्षा आत्मसात
    फिर साईं के भक्तों में
    बाँटो वह सौगात

    अति उत्तम जो भक्त थे
    परम भाग्य की खान
    साढे सोलह रूपये का दान
    माँगे उनसे भगवान

    पूर्ण शरणागत से चाहें
    दक्षिणा ऐसी नाथ
    उन भक्तों के मस्तक पर
    रहता साईं का हाथ

    साईं नाथ की दक्षिणा का
    बडा गूढ था मर्म
    वो ही देते साईं को
    जिनके अच्छे कर्म

    अपने तन पर ओढते
    भक्त जनों के कष्ट
    माँग भक्त से दक्षिणा
    करते पाप को नष्ट

    दे दक्षिणा होते भक्त
    कर्म बन्ध से मुक्त
    भक्त जनों की पीडा हर
    नाथ भी होते तृप्त

    जय साईं राम

    Offline drashta

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #227 on: November 28, 2010, 09:50:14 AM »
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  • Om Sai Ram.

    Dear Saisewika ji,
    Thank you very much for this beautiful poem. I have been missing your presence on this forum. Great to have you back :).

    Love and regards,
    Jai Sai Ram.

    Offline saisewika

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #228 on: January 19, 2011, 01:15:11 PM »
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  • ॐ साईं राम


    तन पर कफनी
    सिर पर पटका
    काँधे झोला
    हाथ में सटका
    अद्भुत उसका रूप निराला
    दया दृष्टि बरसाने वाला


    होठो पर स्मित रेखा न्यारी
    आँखे सारे जग से प्यारी
    करूणा रस बरसाने वाला
    मेरा साईं बडा निराला


    दो आवाज़ तो दौडा आता
    स्व वचनों को सदा निभाता
    जन जन का जो है रखवाला
    व्याधि दूर भगाने वाला


    भक्त जनों के कष्ट ओढता
    बीच भँवर में नहीं छोडता
    भव से पार लगाने वाला
    ब्रह्म के दरस कराने वाला


    हृदय में प्रेम गँग थी बहती
    नयनों मे करूणा थी रहती
    जल से दीप जलाने वाला
    चमत्कार दिखलाने वाला


    ना कोई है, ना था, ना होगा
    तीन लोक में वैसा दूजा
    धूनि सदा रमाने वाला
    शिव सा साईं भोला भाला


    हिंदु मुस्लिम सब का स्वामी
    कण कण में वो अँतरयामी
    एक ईश बतलाने वाला
    भेदी भाव मिटाने वाला


    जड चेतन का कर्ता धर्ता
    वो दुख हरता वो सुख करता
    रमते राम बुलाने वाला
    उदिया की गुनिया लाने वाला


    जय साईं राम

    Offline Dipika

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #229 on: January 19, 2011, 08:52:44 PM »
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  • OMSAIRAM!SaiSewika dear i was really missing your wonderful poems.

    Your poem touches our emotions..दो आवाज़ तो दौडा आता
    स्व वचनों को सदा निभाता

    how sweet our BABA is,HE keeps running towards his bhaktas in their hour of need.

    Thankyou BABA

    I wil get ur no from Tana and speak wth u soon.


    साईं बाबा अपने पवित्र चरणकमल ही हमारी एकमात्र शरण रहने दो.ॐ साईं राम
    साईं बाबा अपने पवित्र चरणकमल ही हमारी एकमात्र शरण रहने दो.ॐ साईं राम


    Dipika Duggal

    Offline saisewika

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    हैप्पी वैलेन्टाइन डे
    « Reply #230 on: February 14, 2011, 11:53:03 AM »
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  • ॐ साईं राम



    आज सुबह वैलेन्टाइन डे के दिन बाबा ने
    प्यार से मेरे माथे को सहलाकर मुझे जगाया
    और मेरे हाथ में लाल गुलाबों का
    सुन्दर सा गुलदस्ता थमाया


    मैंने अचरज से बाबा की ओर देखा
    उनके दमकते चेहरे पर चमकती थी स्मित रेखा


    बाबा मुझे देख मँद मँद मुस्कुरा रहे थे
    और हौले हौले हैप्पी वैलेन्टाइन का गीत गा रहे थे


    मैं हैरान थी कि आज देवा को क्या हुआ है
    लगता है कि भक्तों के प्यार ने बाबा के दिल को छुआ है


    अँतरयामी साईं ने मेरे दिल की बात को जाना
    और फिर शुभ वचनों का बुना ताना बाना

    बाबा बोले-


    तुम्हारे दिल में बिल्कुल सही ख्याल आया है
    मेरे प्यारों की श्रद्धा और प्रेम ने
    मेरे दिल के तारों को झनझनाया है


    मैं हैरान होता हूँ जब मेरे भक्त
    दुखों में भी मेरा शुक्रिया अदा करते हैं
    और कष्टों का सागर
    मेरा नाम ले कर पार करते हैं


    मैंने उन्हें ना किए हुए पापों की भी
    क्षमा माँगते हुए देखा है
    उन्होंने अपना सर्वस्व समर्पण कर
    मेरे दर पर मस्तक टेका है


    वो हर दिन की शुरूआत
    मेरा ही नाम ले कर करते हैं
    उनके लबों पर मेरा ही नाम रहता है
    आठों पहर वो मेरा ही दम भरते हैं


    मेरी लीलाओं के गान में
    उन्हें अपरिमित सुख मिलता है
    चाहे उनका जीवन मरुस्थल सा ही क्यूँ ना हो
    उसमें मेरे ही नाम का फूल खिलता है


    जो मायूसियों में भी
    मेरा नाम लेना नहीं छोडते हैं
    जैसे बच्चा डाँट खाकर भी
    माँ का आँचल नहीं छोडता
    वैसे ही वो मेरी ही ओर दौडते हैं


    मैं उनके निष्काम प्रेम को
    बखूबी पहचानता हूँ
    और वो मुझे अपना वैलेन्टाइन बनाने की
    चाह रखते हैं
    इस बात को अच्छी तरह जानता हूँ


    इसीलिए मैं लाल गुलाबों का
    ये गुलदस्ता लाया हूँ
    और वैलेन्टाइन डे मनाने
    अपने भक्तों के पास खुद चलकर आया हूँ


    जाओ ये फूल दे दो
    मेरे भक्तों को, प्यारों को
    मेरा नाम लेने वालों को
    मेरे प्रेमी जन न्यारों को


    तुम भी जाकर उनके साथ
    हैप्पी वैलेन्टाइन डे का गीत गुनगुनाना
    और इस तरह हँसी खुशी
    इस प्रेम दिवस को मनाना



    जय साईं राम

    Offline drashta

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #231 on: February 14, 2011, 03:03:38 PM »
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  • Om Sai Ram.

    Dear Saisewika ji, thanks for this very beautiful poem! Yes, only Baba is our real Valentine.
    Happy valentine's Day!

    Jai Jai Sai Baba.

    Offline saisewika

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    Happy Women's Day
    « Reply #232 on: March 07, 2011, 11:04:14 AM »
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  • ॐ साईं राम


    अपने अद्भुत साईं की
    अनुपम रचना हूँ मैं
    बेटी हूँ , बहन हूँ ,
    बहू हूँ , माँ हूँ मैं

    सृष्टिकर्ता की सँरचना का
    ज़रिया हूँ मैं
    प्यार का बहता हुआ
    दरिया हूँ मैं

    माँ बाबा को आनन्द देती
    सुता हूँ मैं
    सहेजी सँभाली मायके की
    अस्मिता हूँ मैं

    भाई की कलाई पर बँधा
    प्यार हूँ मैं
    प्रेम के पवित्रतम रूपों का
    इज़हार हूँ मैं

    ससुराल के वँश को आगे बढाती
    बहू हूँ मैं
    पीढी दर पीढी रगों में दौडता हुआ
    लहू हूँ मैं

    धरती पर ईश्वर के होने का
    प्रमाण हूँ मैं
    उपहार हूँ , सँपदा हूँ ,
    वरदान हूँ मैं

    मातृत्व के सिंहासन पर बैठी
    साम्राज्ञी हूँ मैं
    सक्षम हूँ , सबला हूँ ,
    बडभागी हूँ मैं

    देवी हूँ , दासी हूँ ,
    वीराँगना हूँ मैं
    कामिनी हूँ , रमणा हूँ
    ललना हूँ मैं

    शक्ति हूँ , समर्थ हूँ ,
    ना बेचारी हूँ मैं
    जीवन को गतिमान बनाती
    नारी हूँ मैं

    जय साईं राम

    Offline Sai ki Laadli

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    • I LOVE MY SAI ALOT...
    Baba ne mujhe jeena Sikhaya... - Mai Ladli hu sai ki
    « Reply #233 on: March 26, 2011, 04:36:34 AM »
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  • Sadguru Shri Sai Baba,
    Jab Maine Tumhara Pyaar Paya,
    Mujhe Yaha Jeevan Jina Aya.
    Tumhare Is Pyaar Ki Khushbu Se
    Mujhe Mehkana Aya
    Mujhe Muskurana Aya
    Jo Baag Abhi Tak Sune The
    Vahaa Tumhare Pyaar Ki Shakti Se
    Phoolo Ko Khilna Aya
    Jab Mene Tumhara Pyaar Paya
    Mujhe Yaha Jeevan Jina Aya

    Baba,
    Jis Din Tum Ruthoge, Mar Jaaunga, Main
    Jin Din Chhodoge
    Kho Jaaunga, Main
    Lekin Mera Pyaar
    Tumhe Yaad Ayega
    Tumhe Bhi Hasayega
    Tumhe Bhi Rulayega
    Mera Pyaar Yu Hi
    Vyarth Naa Jayega
    Vo Tumse Mila Tha
    Isiliye Amar Ho Jayegaa
    Sabhi Ko Jeena Sikha Jayega
    Tumhare Pyaar Ki Shakti Se
    Muskurana Sikha Jayega

    Sadguru!
    Ab Main Kahi Naa Jaunga
    Har Baar Lout Kar
    Tumhare Paas Hi Aunga
    Phir Muskuraunga
    Apne Saath, Sabhi Ko
    Jeena Sikha Jaunga

    Baba!
    Vo Pal Bhi Kya Hasi The
    Jab Main Tumse Mila Tha
    Laga Tha! Shirdi Ki Bagiya Mein
    Ek Naya Phool Khila Tha
    Main Yu Hi Mahak Raha Tha
    Idhar-Udhar Dekh
    Chahak Raha Tha
    Tabhi Mujhe Tumhara
    Ek Deewana Mila
    Jisne Mujhe Uthaya
    Apne Gale Se Lagaya
    Mujhe Tum Se Prem Karna Sikhaya
    Mujhe Jeena Sikhaya
    JAI SAI RAM...
    SAI PAR YKIN HAI TO SAB THK HAI..
    SAI SABKA HAI SAB SAI K HAI....

    Offline saisewika

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #234 on: April 18, 2011, 01:48:42 AM »
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  • ॐ साईं राम


    जब याद तुम्हें मैं करती हूँ
    इक कविता सी बन जाती है
    भावों का वेग उमडता है
    शब्दों की मस्ती छाती है

    मन काबू में ना रहता है
    कुछ कह डालूँ ये कहता है
    मैं मौन कहाँ रह पाती हूँ
    तब कलम हाथ में आती है

    तेरी लीलाऐं कहने को
    वाणी भी मुखरित होती है
    जिव्हा मतवाली होकर के
    बस गान तेरा ही गाती है

    कुछ ताने बाने शब्दों के
    उगते हैं कोरे कागज़ पे
    श्रद्धा सबुरी के दीपक की
    ज्योति मन में जग जाती है

    जब बात ना तेरी कर पाऊँ
    तब मन मेरा अकुलाता है
    रूह घायल सी हो जाती है
    और प्रेम अश्रु छलकाती है

    तुम मुखर रहो मेरे शब्दों मे
    अपनी लीला खुद कह डालो
    करते जाना गुणगान तेरा
    मेरे जीवन की थाती है

    जय साईं राम

    Offline saisewika

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    Re: स्व को उपदेश
    « Reply #235 on: August 02, 2011, 12:56:07 PM »
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  • ॐ साईं राम


    सिमर सिमर रे मन सिमर
    साईं नाथ का नाम
    मन में जोत जला कर कर ले
    परम पिता का ध्यान

    मन के मनके से तू जप ले
    साईं नाम की माला
    भक्ति के सागर से भर ले
    साईं मस्ती का प्याला

    अँतरमन के खोल कर
    सारे बँद कपाट
    साईं नाम का महाप्रसाद
    जन जन में तू बाँट

    चँचल चित्त को साध ले
    नाम की डाल लगाम
    इधर उधर डोले नहीं
    सिमरे साईं नाम

    नाम बिना ये जिव्हा मरी
    निरा मास का लोथ
    नामामृत का पान कर
    मिट जावें सब खोट

    नख से शिख जितने भरे
    ईर्ष्या ढाह विकार
    नाम गँग से सभी धुलें
    होवे आत्म उजार

    कर कमाई नाम की
    धन तृष्णा को त्याग
    किया एकत्रित नाम तो
    जागेंगे तव भाग

    साईं नाम की लत लगा
    बाकी आदत छोड
    जोड साईं से नाता एक
    सब नातों को तोड

    जय साईं राम

    Offline Ishvarya

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #236 on: August 02, 2011, 01:01:42 PM »
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  • OM SAI RAM!

    Dear Saisewika ji,
    thanks for this very beautiful poem!

    VERY TRUE!



    ॐ साईं राम

    साईं नाम की लत लगा
    बाकी आदत छोड
    जोड साईं से नाता एक
    सब नातों को तोड

    जय साईं राम


    Offline Pratap Nr.Mishra

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #237 on: August 03, 2011, 01:39:56 PM »
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  • OM SAI RAM!

    Dear Saisewika ji,
    thanks for this very beautiful poem!

    VERY TRUE!



    ॐ साईं राम

    साईं नाम की लत लगा
    बाकी आदत छोड
    जोड साईं से नाता एक
    सब नातों को तोड

    जय साईं राम


    ॐ साईं राम


    साई से नाता जोड़ ले बन्दे ,सब सुख तुजेह मिलजायेगा
    सब नातो को तोडके तू क्या सोचे ,साई तुजेह अपनाएगा .||

    साई ने तो ये ज्ञान दिया ,तोडके नहीं प्यार से जोड़कर चलो
    पर  अपने जीवन भर हम अज्ञानी,  तोड़  के  करते रहे नादानी ||

    बाबा ने प्यार का सन्देश फेला कर ,सबको एक ही राह पर चलने का सन्देश दिया
    स्वार्थ ओर अज्ञानता के अंधकार के चलते हमने ,उनके वचनों को ही तोड़ दिया ||

    जय साईं राम

    Offline saisewika

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #238 on: August 04, 2011, 09:10:16 AM »
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  • ओम साईं राम


    कल मेरे चंचल से चित्त ने
    फिर से भरी उडान
    जिस आंगन में जाकर उतरा
    ना था वो अन्जान

    जो भी इसने देखा सोचा
    उसे स्वप्न ही कह लो
    संग संग मेरे ख्वाब देख लो
    भक्ती भाव में बह लो

    मैंने देखा मै पहुंची हूं
    बाबा जी के धाम
    भक्त जनों से घिरे हुए थे
    साईं जी अभिराम

    बापू जोग जी कर रहे थे
    आरती की तैयारी
    द्वारकामाई में उमडी थी
    शिरडी की जनता सारी

    तात्या बैठे बाबा जी के
    दबा रहे थे पांव
    भागो जी छाते से करते
    सिर पर ठंडी छांव

    म्हालसापति ने उनके मुख में
    बीडा पान का डाला
    बूटी जी ने उन्हें ओढाने
    शेला एक निकाला

    शामा जी कुछ परेशान से
    दिखते थे गंभीर
    बाबा थके हैं यही सोच कर
    होते थे वो अधीर

    हाथ जोडकर शीश नवाए
    मैं भी वहीं खडी थी
    एकाएक बाबा की दृष्टि
    मुझ पर आन पडी थी

    बाबा जी ने नाम मेरा ले
    मुझको पास बुलाया
    कानों में कुछ शहद सा टपका
    रोम रोम लहराया

    धीरे से मैं कदम बढाती
    चली साईं की ओर
    मन मयूर मेरा खुश था इतना
    जिसका ओर ना छोर

    आंखो से गिरते थे आंसू
    काया कांप रही थी
    सच है या सपना है कोई
    इसको भांप रही थी

    बाबा जी के पास पहुंच कर
    मैंने शीश नवाया
    आशिश मुद्रा में बाबा ने
    अपना हाथ उठाया

    आंखे बंद थीं हाथ जुडे थे
    मुख पर था साईं नाम
    डर था आंख खुली तो
    ओझल ना हों साईं राम

    जाने कितनी देर रही मैं
    वैसे आंखे मीचे
    साईं के पद पंकज मैनें
    इन अंसुअन से सींचे

    सपना है तो इसको सपना
    रहने दो करतार
    नहीं जागना मुझे नींद से
    हे मेरे सरकार

    हे साईं रहने दो मुझको
    निज चरणों के पास
    हर क्षण दरशन तेरा पाऊं
    पूरी कर दो आस

    जय साईं राम

    Offline saib

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    Re: बाबा की यह व्यथा
    « Reply #239 on: August 04, 2011, 09:42:37 AM »
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  • बहुत समय बाद एक सुन्दर कविता का उपहार दिया, साईंसेविका बहन ने !

    प्रिये प्रताप जी,  

    साईं  ने समस्त जगत से प्रीत रखने को कहा है पर साथ ही मोह ग्रस्त होने से भी सावधान किया है . प्यार और मोह मे बहुत फरक होता है . मोह जहाँ विकारों को जनम देता है, प्रेम वहीँ मन को निर्मल बनाता है . संसार से सम्बन्ध तोड़ने का अर्थ सब को छोड़ कर जंगलों मे तपस्या करना नहीं है बल्कि जगत मे रहते हुए जीवन का हर करम उस मालिक को समर्पित करना है , माया हमें उन संबंधनो से इस प्रकार जोडती है की हम इश्वर का साक्षात्कार होने पर भी उससे जगत के पदार्थ ही मंगाते है , इश्वर को प्राप्त करने की भावना उत्पन नहीं होती . यदि साईं साक्षात् आकर कहें की मे तुमारी भक्ति और प्रेम से प्रस्सन हूँ, मेरे साथ द्वारकामाई मे चलो और मेरे साथ रहो, तो क्या हम साहस कर पाएंगे , क्या हम संसार के समस्त संबंधों को तुरंत तितांजलि दे सकेंगे , वोह भी एक ही पल मे ..........!

    इसीलिए जगत मे रहते हुए भी इस सत्य को स्वीकार करना चहिये कि ............. सब कुछ अस्थाई है यदि कुछ सदेव रहने वाला है तो वोह है मात्र साईं और साईं का पावन मधुर और दिव्य नाम...............!

    और अंत मे ........... सब नातों को तोड़ का अर्थ सिर्फ मनुष्यों से नाता तोडना नहीं है पर पूरण समर्पण है, अपनी आदतों पर नियंत्रण , समय का सदुपयोग . यदि समय है तो व्यर्थ के कामो जैसे TV के बेसिरपैर के कार्यक्रम देखने, इन्टरनेट पर वक़्त बर्बाद  करने के स्थान पर, साईं का चिंतन किया जा सकता है, साईं सत्चरित्र या किसी भी ग्रन्थ का पठन, या कोई भी ऐसा कार्य जिससे जगत के जीवों का भला हो और साईं के चरणों से प्रीत और गहरी हो...........!


    ॐ श्री साईं राम!  


    सपना है तो इसको सपना
    रहने दो करतार
    नहीं जागना मुझे नींद से
    हे मेरे सरकार



    जिसे प्रीत हो साईं से सच्ची
    स्वपन ही जीवन बन जाता है
    साईं का अहसास
    दिन हो या रात
    पतझड़ हो या बहार
    मन मे ऐसे रम जाता है
    अब और कुछ सूझे न
    सब साईं ही साईं
    नजर आता है ........

    जय श्री साईं राम !
    om sai ram!
    Anant Koti Brahmand Nayak Raja Dhi Raj Yogi Raj, Para Brahma Shri Sachidanand Satguru Sri Sai Nath Maharaj !
    Budhihin Tanu Janike, Sumiro Pavan Kumar, Bal Budhi Vidhya Dehu Mohe, Harahu Kalesa Vikar !
    ........................  बाकी सब तो सपने है, बस साईं ही तेरे अपने है, साईं ही तेरे अपने है, साईं ही तेरे अपने है !!

     


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