जन जन मंगल होय
जन जन में जागे धरम, सुधरे जग व्यवहार ।
बैर भाव सारा मिटे, रहे प्यार ही प्यार॥
शुद्ध धर्म जैसा मिला, वैसा सब पा जायँ।
मेरे मन के शांति सुख, जन जन मन छा जायँ ॥
सुख छाए इस जगत में, दुखिया रहे न कोय।
जन जन में जागे धरम, जन जन सुखिया होय॥
शुद्ध धर्म जन में जगे, दूर होय संताप।
निर्भय हों, निर्वैर हों, सभी होयँ निष्पाप।
दुखियारा संसार है, जन- मन बसे विकार।
जन जन के मन विमल हों, सुखी होय संसार॥
ना कोई दुर्मन रहे, ना ही द्वेषी होय।
जन जन का कल्याण हो, जन जन मंगल होय॥