गुरु भक्ति की पराकाष्ठा तब पहुँचती है, जब एक मुरीद ( शिष्य ) अपने मुर्शिद ( गुरु ) के लिये पूरी तरह से समर्पित हो जाता है | उसको अपने गुरु के सिवाय कुछ नही दीखता, कुछ नही सूझता | एक टीस, एक इंतज़ार रहता है कि कब वो आ मिलेंगे | इन शब्दों के जरिये मैने एक मुरीद की मुरादों को व्यक्त करने की कोशिश की है |
मेरी चाहतों के हाथो मैं मजबूर हूँ,
मेरे इलाही, मेरे मालिक, तेरे नशे मैं चूर हूँ |
रंग दुनिया के इन आँखों में अब बसते नही,
दर्द हो या हो खुशी, दोनों से मसरूफ़ हूँ |
रंज की गलियों में भटकता हूँ मैं दर-बदर,
नही पता है अभी तेरे दर से कितना दूर हूँ |
शब जब तक टूटती है सहर के उजालों में,
यादें मेरी सिसकती है तेरे ही खयालो में |
है तड़प जब यहाँ पर तो होगी वहाँ भी,
जानता हूँ तेरे लिये मैं भी मंजिले-मक़सूद हूँ |
Om Sai Ram