DwarkaMai - Sai Baba Forum

Sai Literature => Sai Baba poems => Topic started by: Apoorva on May 06, 2008, 12:10:25 PM

Title: मुरीद की मुराद
Post by: Apoorva on May 06, 2008, 12:10:25 PM
गुरु भक्ति की पराकाष्ठा तब पहुँचती है, जब एक मुरीद ( शिष्य ) अपने मुर्शिद ( गुरु ) के लिये पूरी तरह से समर्पित हो जाता है |  उसको अपने गुरु के सिवाय कुछ नही दीखता, कुछ नही सूझता | एक टीस, एक इंतज़ार रहता है कि कब वो आ मिलेंगे | इन शब्दों के जरिये मैने एक मुरीद की मुरादों को व्यक्त करने की कोशिश की है |


मेरी चाहतों के हाथो मैं मजबूर हूँ,
मेरे इलाही, मेरे मालिक, तेरे नशे मैं चूर हूँ |
रंग दुनिया के इन आँखों में अब बसते नही,
दर्द हो या हो खुशी,  दोनों से मसरूफ़ हूँ |
रंज की गलियों में भटकता हूँ मैं दर-बदर,
नही पता है अभी तेरे दर से कितना दूर हूँ |
शब जब तक टूटती है सहर के उजालों में,
यादें मेरी सिसकती है तेरे ही खयालो में |
है तड़प जब यहाँ पर तो होगी वहाँ भी,
जानता हूँ तेरे लिये मैं भी मंजिले-मक़सूद हूँ |

Om Sai Ram
Title: Re: मुरीद की मुराद
Post by: SaiServant on May 06, 2008, 04:45:08 PM
Dear Apoorva ji,
Jai Sai Ram!

Bahut khoob likha hai aap ne. Truly, a beautiful expression of your devotion! Thank you for sharing this lovely thought and poem with us.
May Baba bless you with His love and grace!

Om Sai Ram!
Title: Re: मुरीद की मुराद
Post by: tana on May 07, 2008, 02:52:57 AM
ॐ सांई राम~~~

बहुत खूब लिखा है अपूर्वा आपने....

बाबा always bless you & Richa....

माली बाग दी राखी करदा,
फल पक्के होन या कच्चे~
पीर मुरीदां दे उत्ते रैदां,
भावे झूठे होन या सच्चे~~

जय सांई राम~~~
       
 
Title: Re: मुरीद की मुराद
Post by: saisewika on May 09, 2008, 02:08:50 PM
गुरु भक्ति की पराकाष्ठा तब पहुँचती है, जब एक मुरीद ( शिष्य ) अपने मुर्शिद ( गुरु ) के लिये पूरी तरह से समर्पित हो जाता है |  उसको अपने गुरु के सिवाय कुछ नही दीखता, कुछ नही सूझता | एक टीस, एक इंतज़ार रहता है कि कब वो आ मिलेंगे | इन शब्दों के जरिये मैने एक मुरीद की मुरादों को व्यक्त करने की कोशिश की है |


मेरी चाहतों के हाथो मैं मजबूर हूँ,
मेरे इलाही, मेरे मालिक, तेरे नशे मैं चूर हूँ |
रंग दुनिया के इन आँखों में अब बसते नही,
दर्द हो या हो खुशी,  दोनों से मसरूफ़ हूँ |
रंज की गलियों में भटकता हूँ मैं दर-बदर,
नही पता है अभी तेरे दर से कितना दूर हूँ |
शब जब तक टूटती है सहर के उजालों में,
यादें मेरी सिसकती है तेरे ही खयालो में |
है तड़प जब यहाँ पर तो होगी वहाँ भी,
जानता हूँ तेरे लिये मैं भी मंजिले-मक़सूद हूँ |

Om Sai Ram


ओम साईं राम

बहुत खूब अपूर्वा जी

अति सुन्दर और भाव पूर्ण अभिव्यक्ति.

वो जो साईं के नशे में चूर होते हैं
वो कब उनसे कहीं दूर होते हैं
जब जब भी याद आते हैं उन्हें साईं
पन्नों पर उतर आती है कोई रूबाई
प्यार के कुछ ऐसे आसार होते हैं
कि साईं शब्दों में साकार होते हैं

जय साईं राम
Title: Re: मुरीद की मुराद
Post by: Apoorva on May 13, 2008, 02:10:55 PM
thanks Sunita ji, Tana ji and Saisewika ji. It all Baba's grace and blessings from all of you.
May Naath give me more guidance so I can write more in praise of Holy feet.

Om Sai Ram