ॐ साईं नाथाय नमः !!!
आपको चिंता सिर्फ उन साठ हजार लोगो की है
जो वहां पर फंसे हुए है!
मुझे चिंता उन 80 लाख लोगो की है
जो उत्तराखंडी है
मुझे चिंता है उस पहाड़
की जिसकी जनसँख्या का 80 % भाग
पहाडो पर निवास करता है!
मुझे चिंता है उस नथ की जो बाप ने
पूरी जिन्दगी की कमाई से बेटी के लिए बनाई
थी, पर बेटी की नाक में सजते हुए न देख सका!
शायद दोनों ही कही मिटटी के ढेर तले दबे होंगे!
आपको चिंता वहा से निकलने की है और मुझे
चिंता है कि वहां रहेंगे कैसे? लाशो के ढेर और
मरे हुए पशुओ की दुर्गन्ध के बीच!
मुझे चिंता अब धूप से भी है
क्योंकि पानी पी चुकी जमीं सूरज की गर्मी से
भाप बने पानी के साथ छोड़ने पर दरकेगी!
मुझे चिंता है उस भूमि की जिस पर कभी घर
बनाया तो अहसास जरुर होंगा कि नीव के नीचे
किसी की लाश होगी!
मुझे चिंता है उस की जो दूर जंगलो में जाकर
घास लकड़ी इकठ्ठा करती थी और
उसका पति यहाँ कमाने के लिए उनसे दूर
चला आया! क्या पता इस बार मुलाकात हँसते
हुए चेहरे से नहीं बल्कि मिटटी से सनी इक लाश
से हो!
मुझे चिंता है उसकी जो अपनी माँ, माटी, और
यादों को छोड़ कर कही दूर गया है कमाने,
शायद अबकी बार माँ का आँचल ही नसीब न
हो!
मुझे चिंता है उसकी जिसने किसी के जीने
की कसमे साथ मिल के खायी हो और मौत
केवल नींद में आई तब जब जीने के सपने देख
रही थी!
मुझे चिंता है पहाड़ की!
''इंसान को अपनी औकात भूलने की बीमारी है
और कुदरत के पास उसे याद दिलाने की अचूक
दवा''!
ॐ साईं नाथाय नमः !!!