1918 की विजयदश्मी का दिन, जब बाबा साई ने महासमाधी ली। उनका भौतिक शरीर तो पंच भूतों मे विलीन हो गया पर परमात्मा के रूप मे वो आज भी हमारे साथ हैं। हमें रास्ता दिखाने के लिये, जब भी हम गिरने लगें, हमें सँभालने के लिये, हमारे सब सुख दुःखों मे हमारा साथ देने के लिये, जन्मो जन्मो के हमारे पापों के कारण इस जल रही आत्मा और हिर्दय को शीतल करने के लिये, मानव जीवन को सार्थक करने और मुक्ति प्राप्त कर उस ईश्वर के चरणों में सदा लीन हो जाने के लिये।
पर आज बाबा की इस सँसार को पुन: आवश्यकता है। आज मनुष्य सही गलत की पहचान खो चुका है। जहाँ धार्मिक और अध्यात्मिक जगत मे ढोंगी, कपटी और नकली गुरुओं की भरमार है, वहीं सामान्य मनुष्य भी पूरी तरह भगवान पर निर्भर हैं। युवा बेरोज़गार हैं, बहुत बड़े स्तर पर लोगों के व्यवसाय ठप्प पड़ें हैं, महँगाई का कोई तोड़ नही है, और जिन लोगों की जिम्मेदारी है, समाज के देखभाल की, वो उस जिम्मेदारी मे पूर्णत्या विफ़ल हो चुके हैं। धार्मिक और राजनैतिक दोनों क्षेत्रों से सच्चे और ईमानदार लोग लुप्त हो चुके हैं। आज फिर इस सँसार को आपकी जरुरत है, बाबा। अगले वर्ष आपको महासमाधी लिए 100 वर्ष बीत जायेंगे।
इस प्रार्थना के साथ की आप अपने भक्तों और उन सब जीवों जिनको आपकी जरुरत है के उद्धार के लिये पुन: प्रगट होंगें, हम अगले एक वर्ष तक आपकी आराधना करेंगे और आपके दर्शनों की प्रतीक्षा।
ॐ श्री साई राम !