यह प्रार्थना भक्तो का एक दुराग्रह हैं,
ये किसी शास्त्र में नही लिखी।।।
तितिक्षा सच्ची भक्ति से जनित वैराग्य से आती हैं.
मुझे भी कई बार लोग बहुत खुश होकर बताते हैं की हम तो बस ये मांगते हैं की मुसीबतों से लड़ सकू, और अपनी भक्ति से बड़े संतुष्ट होकर विचरते हैं।
परन्तु जब तक सच्ची तितिक्षा नही आये, मुसीबतों का सामना करने का अभिमान बना रहता हैं या फिर अपनी भक्ति के प्रति संतुष्टि बनी रहती हैं,जो की नही होनी चाहिय।।।