DwarkaMai - Sai Baba Forum

Main Section => Sai Baba Spiritual Discussion Room => Topic started by: suneeta_k on July 15, 2016, 03:02:50 AM

Title: अनहोनी को होनी करनेवाले मेरे साईबाबा की अद्भुत लीला का- गेहू पिसने का राज !
Post by: suneeta_k on July 15, 2016, 03:02:50 AM
हरि ॐ.

अनहोनी को होनी करनेवाले मेरे साईबाबा की अद्भुत लीला का- गेहू पिसने का राज  !

ओम कृपासिंधु श्रीसाईनाथाय़ नम: ।

आज श्रीसाईसच्चरित जैसे महान अपौरुषेय ग्रंथ की रचना करके हमें हमारे श्रीसाईबाबा की अद्भुत लीलाओंका परिचय करने वाले हेमाडपंतजी की सत्तासवी पुण्यतिथी है । श्रीसाईसच्चरित में इस बात का जिक्र होता है कि  श्रीसाईसच्चरित जैसा महान ग्रंथ लिखकर पूरा होने के पश्चात हेमाडपंतजी ने अपने देह को श्रीसाईबाबा के चरणों में समर्पित कर देने में एक पल का भी विलंब नहीं किया था , और १५ जुलाई १९२९ को जैसे ही अध्याय ५२ की आखिरी ओवी लिखी , उन के प्राण पखेरू उनके साईनाथ के चरणों में जाकर समा गए । हेमाडपंत जी की यह दिली ख्वाईश थी की ६० साल की उम्र में  मेरे साईबाबा ने मुझे अपनी पनाह में ले लिया , अपने चरणों में जगह ती तो अब मेरा बचा हुआ पूरा जीवन सिर्फ और सिर्फ मेरे साईनाथ की सेवा में बीत जाए । उन्होंने साईबाबा से यही बिनती की थी -
मी तों केवळ पायांचा दास । नका करूं मजला उदास । जोंवरी या देही श्वास । निजकार्यासी साधूनि घ्या ।। ४० ।    (अध्याय ३ , ओबी ४०)

हेमाडपंतजी के मन में साईबाबा के प्रति जो असीम प्यार था , उसकी पहचान इस ओबी से हमें हो ही जाती है, अत: उनके साईबाबा मे उनकी यह इच्छा का, आस को पूरा कर दिया और जैसे उन्होंने मांगा , वैसे ही पाया  ।  हम देखतें हैं कि हर अध्याय में हेमाडपंतजी अध्याय की समाप्ती दर्शानेवाली ओबी लिखतें हैं , पर अध्याय ५२ में , ना तो उन्होंने वैसी ओबी लिखी , ना ग्रंथ के अंतिम चरण में  लिखी जानेवाली अवतरणिका  लिखने के लिए उन्होंने सांस ली ।
शेवटीं जो जगच्चालक ।  सद्गुरु प्रबुध्दिप्रेर्क ।  तयाच्या चरणीं अमितपूर्वक ।  लेखणी मस्तक अर्पितो ।।  ८९ ।।  (अध्याय ५२, ओबी ८९ )

जिस हेमाडपंतजी के मन में यह चाह थी के मेरे साईबाबा की लीलाए लोग पढे, उन्हें जाने और सचमुच का भगवान कैसा होता है, साक्षात ईश्वर कैसा होता है , जब भगवान वसुंधरा पर जन्म लेता है, अवतार धारण करता है तो उसका आचरण कैसा होता है यह जाने, तो  उन्होंने अपने सदगुरु साईबाबा के आचरित बतलानेवाला ग्रंथ "श्रीसाईसच्चरित " लिखा ।

ऐसा पढने में आया था कि जब इंसान के कर्मस्वातंत्र्य के गलत इस्तेमाल से जब इंसाने के विश्व में सत्व गुण कमजोर हो जाता है और तामसी (राक्षसी ) गुण का प्रभाब बहुत ही तेजी से बढने लगता है तब तब सच्चे श्रध्दावानोंके , भक्तों की प्रार्थना से , बिनती से भगवान (परमेश्वर ) की इच्छा से परमात्मा ( ईश्वर ) ईंसान के रूप में धरती पर अवतरीत होता है । 
ईश्वर का यह मानवी अवतार यह मानव होने का सिर्फ बहाना या नाटक नहीं होता बल्कि वह परमात्मा (ईश्वर) पूर्ण तरीके से इंसान (मानव) बनकर ईंसानों में ही रहने लहता हैं और अपने खुद के कार्य से जादा से जादा ईंसानों को भक्ती की राह दिखाता है , भक्ती का महती दिखाकर , सिखाकर भक्ती मार्ग पर चलने की सींख देता है और मानव के विश्व में फिर से सत्त्व गुणों को बढाता है ।

श्रीसाईसच्चरित के पहले ही अध्याय में हेमाडपंतजी ने हम लोगों को साईबाबा की कोई भी कृती कैसे निहारनी चाहिए , उनके हर कार्य में से हमें कैसे संदेसा मिलता है इसीका मानों पाठ पढाया है ऐसे मुझे लगता है । 
देखिए न गेहू पिसने  की कितनी सरल , साधी दिखनीवाली यह क्रिया है , अपि तु मेरा साईबाबा जब इसे करता है , तो कितनी सारी अन्य बातों की सीख हमें मिलती है ।   पहले तो कभी नही था इतना गहराई  से मैंने सोचा  क्यों कि लगता था यह तो रोजमरा कि जिंदगी का औरतों का काम है ।  यह बात जरूर ही गौर       
फर्मानेवाली है कि जब मेरे साईबाबा ने यही आटा  खुद पिसा और बाद में उन शिरडी गांव कें चार औरतों ने पिसा तो उसी आटे से मेरे साईनाथ ने शिरडी को महामारी जैसे खौफ्नाक, जानलेवा बीमारी से बचाया था ।  यह तो आम ईंसान के बस की बात हो ही नहीं सकती , यह लीला तो साक्षात ईश्वर ही कर सकता है । 

किंतु आज एक संकेतस्थल पर ऐसा लेख पढा कि मैं खुद भौचक्की रह गयी कि कितनी ढेर सारी बातें मेरे साईनाथ ने मुझे सिखाई , सच है साईबाबा की लीलाओं को निहारने के लिए मेरे पास उतना प्यार चाहिए , मेरे साईबाबा की प्रति मेरी आस्था, मेरा बिश्वास ही फिर मुझे अपने आप दिखाएगा कि मेरे साईबाबा की कृपा कितनी महान है, उसे किसी चीज से नातो नापा जा सकता है , ना तौला जा सकता है । 

मेरे साईबाबा की अद्भुत सीख से आप सारे भी अपना परिचय करें ,इसी इच्छा से यह बात बता रहीं हूं -
आप अपने साईबाबा को और गहराई से जानिए और वैसे ही प्यार , भक्ती करें और आनंद मनाए -
http://www.newscast-pratyaksha.com/hindi/shree-sai-satcharitra-adhyay1-part36/

     

ओम साई राम
धन्यवाद
सुनीता करंडे