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Main Section => Sai Baba Spiritual Discussion Room => Topic started by: suneeta_k on February 28, 2017, 09:03:29 AM

Title: श्रीसाईसच्चरित - सच्चे भक्तिमार्ग को प्रकाशित करनेवाला - इतिहास !
Post by: suneeta_k on February 28, 2017, 09:03:29 AM
हरि ओम

ओम कृपासिंधु श्रीसाईनाथाय नम:


श्रीसाईसच्चरित - सच्चे भक्तिमार्ग को प्रकाशित करनेवाला - इतिहास !

एक नन्हा सा बच्चा अपनी मां से बहस कर रहा था कि मां उसे वही अक्षर बार बार लिखवाने के लिए बोल रही है, और खेलने नहीं जाने देती ।  मां उसे बडे प्यार से समझा रही थी कि बार बार वही अक्षर लिखवाने से उसकी लिखाई और भी अधिक सुंदर बनेगी और स्कूल में टीचर उसकी पीठ थपथपायेगी, सारे कक्षा में उसका अव्वल नंबर आयेगा , उसके दोस्त भी उसकी तारीफ करेंगे।  थोडी देर में मां उसे खेलने भी भेज देगी ।  आखिर वो बच्चा मान गया अपनी मां की बात , जिससे उसके अक्षर बहुत ही सुंदर हो गए और अत: उसे पुरस्कार भी हासिल हुआ। 

यह बात हमें दिखलाती है कि कभी कभी भले ही हमें एक ही बात बार बार करने में परेशानी होती है पर अपने हितचंतक , बडे बुजर्ग की बात सुनने में हमारी भलाई ही होती है । 

हमारे साईबाबा सही मायनो में देखा जाए तो  हमारी मां ही है , जो हमें भक्तिमार्ग के सच्चे मार्ग को प्रकाशित कर दिखलाती है ।  अत: उनका  चरित पढना ,  हररोज उनकी कथाओं को पढना , सुनना , उसपर सोच -बिचार करने से मुझे मेरे जीवन में यश का सच्चा मार्ग समझ आ सकता है ।

आम तौर पर यह देखा जाता है कि बचपन में  कई बच्चों को "इतिहास" की पढाई करने भी रूची नहीं लगती । पर "इतिहास" की पढाई से हमें कई बातें सिखने मिलती है जैसे की इंसान को कौन सी मुसीबतों का सामना करना पडता है, यकायक जिंदगी में आनेवाली कठिनाईयोंसे बिना डरे  कैसे डटकर मुकाबला करना है। हेमाडपंतजी तो कहते हैं कि श्रीसाईसच्चरित यह केवल एक ग्रंथ नहीं है , बल्कि यह "इतिहास " है - वो भी कैसा , जहां पर किसी भी काल्पनिक कथाओं का संग्रह किया नहीं है बल्कि  जो जैसे घटित हुआ उसे वैसा का वैसा ही लिखा गया है , इसिलिए वह  साक्षात ‘इतिहास’ ही है। हम यह महसूस भी करतें हैं कि खुद हेमाडपंत जी ने कोई भी बात छुपायी नहीं , हेमाडपंतजी के मन में पहले गुरुकी आवश्यकता क्या इस बात पर संदेह था, उन्होंने साईबाबा की पहली भेंट के उपरांत ही साठेजी के मकान पर बहस भी की थी और दूसरे दिन साईबाबा ने उन्हें "हेमाडपंत " यह नाम से टोककर उनकी गलती का एहसास भी दिलाया था ।  अगर हेमाडपंतजी अपनी इस बात को छुपाना चाहते थे तो छुपा भी सकते थे , किंतु उन्होंने बिना कोई अपने मान-सन्मान की परवाह किए बिना सच को सामने रखा है , अपनी गलतियां भी उन्होंने हमारे सामने रखी है , ताकि वही गलतियां हम अपने जिंदगी में ना करें । 
   नाना चांदोरकरजी को साईबाबा ने उन्होंने बिनीवालोंको उनके दत्त भगवान के दर्शन करने से मना करके सीधे शिरडी लेकर आए इस गलती पर बहुत डांटा था , या देव मामलेदारजी को साईबाबा ने आपने मेरी चिंधी (फटा कपडा) चुराया कहकर फटकारा यह बातें भी छुपायी नहीं है, यानि कि हेमाडपंतजी जैसे जैसे घटनाएं घटित हुई वैसे ही हमारे सामने प्रस्तुत किया है। 
श्रीसाईसच्चरित - एक ऐसा अनमोल ग्रंथ है , बल्कि एक ऐसा "इतिहास" है जहां बाबा एवं बाबा के भक्तों की कथा जैसे-जैसे घटित हुई बिलकुल उसी प्रकार उसे यहाँ पर संग्रहित किया गया है। यहाँ पर कहीं पर भी अनचाही बातों को मनोरंजन हेतु कल्पना के आधार पर नमक-मिर्च लगाकर थोपा नहीं गया है। बल्कि प्रत्यक्षरुप में जो कुछ भी घटित हुआ है उसे उसी प्रकार लिखा गया है। इसीलिए हम साईभक्तों के लिए यह साईसच्चरित ग्रंथ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण एवं प्रमाण (बोधप्रद) ग्रंथ है।

स्वयं हेमाडपंत ने अथक परिश्रम करके इस ग्रंथ की रचना की है। बाबा के एक श्रेष्ठ भक्त बालासाहेब देव ने इस ग्रंथ के प्रस्तावना में ही इस बात का विवरण दिया है। श्रीसाईसच्चरित में जिन कथाओं अथवा लीलाओं का वर्णन किया गया है, उनमें से बहुत सारी कथाएं  हेमाडपंत ने स्वयं अपनी आँखों से, ‘प्रत्यक्ष’ देखी  है। अन्य कथाएँ यानी भक्तों को बाबा के जो अनुभव आये, वे अनुभव उन भक्तों ने या तो ‘ज्यों के त्यों’ लिखकर हेमाडपंत को भेजे या फिर ‘प्रत्यक्ष’ रूप में मिलकर स्वयं अपनी ज़बानी बताये हैं। बाबा की उन सभी लीलाओं को तथा भक्तों के अनुभवों के आधार पर हेमाडपंत ने अपनी मधुर बानी से उसीका श्रीसाईसच्चरित में बखान किया है ।

स्वाभाविक है कि ये सारी कथाएँ साक्षात घटित हुई हैं और उन सभी की सभी कथाओं को उसी प्रकार से हेमाडपंतजी ने यहाँ पर प्रस्तुत किया है। इससे यह सिद्ध होता है कि श्रीसाईसच्चरित ग्रंथ अध्यात्मिक दृष्टि से तो महत्त्वपूर्ण हैं, ही साथ ही यह ऐतिहासिक दृष्टि से भी अनमोल है। सबसे महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि यह ग्रंथ सच्चाई एवं वास्तविकता के साथ पूर्णत: एकनिष्ठ है। इस में असत्य के लिए कोई जगह नहीं है, ना ही कल्पना अथवा काल्पनिकता के लिए कोई स्थान है। इसकी हर एक कथा प्रत्यक्ष रुप में घटित होने वाली घटना है। इसी लिए हेमाडपंत यहाँ पर इस अध्याय में कहते हैं कि यह साईसच्चरित रुपी ‘इतिहास’ लिखना चाहिए ऐसी मेरी इच्छा है। ‘चाहता हूँ मैं यह इतिहास लिखना॥ ’

इस श्रीसाईसच्चरित के "इतिहास" के बारे में मैंने लेख में पढा जहां लेखकजी ने बहुत ही स्पष्ट रूप से समझाया है श्रीसाईसचरित यह एक इतिहास होने  से ही हमें सच्चे भक्तिमार्ग का परिचय करवाता है , श्रीसाईसचरित पढते हुए हमारा भाव कैसा होना चाहिए , हमें हमारे साईबाबा पर कितना अटूतट विश्वास होना चाहिए कि हां यह सारी मेरे साईबाबा की लीलाएं हैं और वह वैसे की वैसे घटित भी हुई थी, उसमे तनिक भी झूठ नहीं हैं,कोई काल्पनिकता नहीं हैं । अगर हेमाडपंतजी ने लिखा है कि मेरे साई ने दिए में पानी डालकर पूरी रात दिए जलाए तो हां यही बात सच है, इस में कोई भी काल्पनिकता नहीं हैं , यह मेरे साई की अगाध शक्ति है जिसका बखान करतें हुए दासगणूजी की बानी भी नहीं थकती क्यों कि साईबाबा के चरणों में से बहती गंगा उन्होंने अपनी आंखो से देखी है। http://www.newscast-pratyaksha.com/hindi/shree-sai-satcharitra-adhyay2-part8/ 

मेरे साईबाबा की हर एक लीलाएँ १०८ प्रतिशत सत्य हैं। मेरे साईबाबा की लीलाओं पर कैसे अपना विश्वास बढाना है , यह जानने के लिए चलिए पढतें हैं -
http://www.newscast-pratyaksha.com/hindi/shree-sai-satcharitra-adhyay2-part8/   

ओम साईराम

धन्यवाद
सुनीता करंडे