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Author Topic: साईकथा सुनना - साईनाथ के सहज ध्यान का आसान तरीका !  (Read 3611 times)

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Offline suneeta_k

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हरि ॐ

साईकथा सुनना - साईनाथ के सहज ध्यान का आसान तरीका !

ॐ कृपासिंधु श्री साईनाथाय नम: ।

हम हमेशा देखतें हैं कि कथा सुनने में आदमी  बहुत दिलचस्पी लेता है और किसी अन्य चीज के मुकाबले उसका मन कथा सुनने में सबसे जादा जुड जाता है, भले वो कथा भगवान राम की हो , बाल गोपाल कृष्ण कन्हैय्या की हो , या फिर राजा की हो या डरावनी भूतोंवाली हो । अब रामायण की रामकथा हो या नटखट कन्हैया की बचपन की गोकुल की लीलाओं की कथा हो - ये कथाएं हम बचपन से सुनतें आए हैं फिर भी कभी यह कथाएं सुनने से हम उब नहीं जातें हैं , हम ही नही बल्कि हमारे पूरे  गांव में , राज्य में, शहर में या पूरे भारतवर्ष में यह कथाएं  हजारों वर्षों से बारंबार सुनी जाती रही है फिर भी हम सभी के लिए आज भी वह उतनी ही लुभावनी , मनमोहक है। है ना?

हमें इस के पिछे छुपी एक मूल बात को समझ लेना जरूरी है कि हर एक मनुष्य के मन में बचपन से ही कथाओं के प्रति लगाव रहता ही है , मन में कथाओंका   आकर्षण होता ही है। जब में जब अन्य कुछ भी समझ में नहीं आता है, तब भी बालमन का आकर्षण इन कथाओं की ओर बना रहता है। हमेशा परिवार में दादा-दादी से या फिर नाना-नानी से अथवा अन्य किसी से भी कहानियाँ सुनने का आकर्षण हर किसी के मन में आरंभ से ही होता है।हर किसी के मन में अन्य बातों के प्रति चाहत-नफरत  अलग अलग  मात्रा में (प्रमाण में) , भिन्न भिन्न  प्रकार से होती है, परन्तु ‘कहानियाँ’ सुनने का शौक हर किसी के मन में होता ही है। आगे चलकर बड़ा हो जाने पर भी उपन्यास, चलचित्र(फ़िल्में), नाटक आदि में मन रमने का भी मूल कारण उनमें होनेवाली कथाएँ यही है। अर्थात हर एक मनुष्य के मन में कथाओं के प्रति झुकाव होना यह बात तो सामान्य रूप में होती ही है। इसीलिए परमात्मा का ध्यान करने के लिए भी मन पर अन्य मार्गों से दबाव डालने पर अनेक मुसीबतें, अड़चनें आती ही रहती हैं, परन्तु भक्तिमार्ग में भगवान की कथाओं में मनुष्य का मन अपने-आप ही रम जाता है और वे कथाएँ सुनते-सुनते मन के सामने भगवान की आकृति सहज ही दृढ़ हो जाती है, सहज ही ध्यान आकर्षित होने लगता है। अन्य साधनाओं में मन ऊब जाता है क्योंकि एक ही कार्य अधिक समय तक करते रहने से उसी बात को दोहराना यह मन को तकलीफ़ देने लगता है, वहीं कथाओं में मन कभी भी ऊबता नहीं हैं, क्योंकि भगवान की कथाएँ भी भगवान की तरह ही नित्य-नूतन हैं, सदैव नयी एवं सदाबहार रहनेवाली हैं। हर बार कथा सुनते समय, पढ़ते समय, मनन करते समय भगवान की लीलाओं का नया-नया पहलु खुलते रहता है और इस प्रक्रिया का कोई अंत नहीं है और इसीलिए बार बार उन कथाओं को सुनकर भी मन ऊबता नहीं है।

साईकथा सुनना - साईनाथ के सहज ध्यान का आसान तरीका इसके बारे में मैंने एक लेख पढा जिससे इस राज का मुझे पता चला -

http://www.newscast-pratyaksha.com/hindi/shree-sai-satcharitra-adhyay2-part19/


इस लेख में लेखक महोदय हमें बतातें हैं कि हम साईकथा सुनते हुए आसानी से हमें साईनाथ का सहज ध्यान प्राप्त हो जाता है - अब देखिए हम साईबाबा के भक्त है तो हमारे साईबाबा की बातें सुनने के लिए हम उत्सुक रहते हैं, बाबा के दर्शन करने के लिए हमारी आँखें आतुर रहती हैं, हम हमेशा सोअचतें रहतें हैं  कि कब मुझे मेरे साईबाबा का बुलावा आएगा और मैं मेरे साईबाबा के दर्शन पाने शिरडी चला जाऊंगा । पर शिरडी के बाहर रहनेवाले भक्त इस रोज के दर्शन से वंचित हो जाता है तो जभी हम साईबाबा की कथाएं सुनतें हैं हमे यह एहसास होता हैं कि हम हमारे साईबाबा से मिल रहें हैं , हम हमारे साईबाबा के पास ही बैठें हैं ।  इसिलिए साईकथा सुनते  सहज ही हम ध्यानमग्न हो जाते हैं। वैसे तो ध्यान लगाने पर भी नहीं लगता, मन में अनेक प्रकार के विचार आने लगते हैं, मन एकाग्र हो ही नहीं पाता। परन्तु बाबा की ये कथाएँ ‘सहज ध्यान’ प्रदान करती हैं और जो बातें सहज अर्थात पवित्र परमेश्‍वरी नियमों के अनुसार उत्स्फूर्त रूप में होती हैं, वे ही संपूर्ण होती हैंत। इसीलिए अन्य किसी तरह ध्यान लगाने की अपेक्षा भक्तिमार्ग का सहज-ध्यान यह सबसे अधिक आसान एवं अंतिम ध्येय की प्राप्ति करवाने वाला रास्ता है। अन्य मार्ग से ध्यान लगाने से यूँ ही जबरदस्ती ध्यान लगाने पर भी वह लग नहीं पाता, वहीं, भक्तिमार्ग में वह अपने-आप ही लग जाता है। सहजता केवल परमात्मा की मर्यादाशील भक्ति से ही प्राप्त होती है।

‘ज्ञानात् ध्यानं विशिष्यते’ इस तरह ध्यान की महिमा स्वयं भगवान श्रीकृष्ण भगवद्गीता में कहते हैं। साई के सगुणरूप का ध्यान करना यह हम श्रद्धावानों के लिए सर्वश्रेष्ठ है। साई की कथाएँ सुनते समय मन में अपने आप ही श्रीसाई की सगुण आकृति अर्थात प्रत्यक्ष श्रीसाईनाथ ही बस जाते हैं और मन के सामने केवल साईनाथ के अलावा और कुछ बाकी ही नहीं रह जाता है। हर एक कथा में साईनाथ का ही सहजध्यान मन में अपना स्थान अपने-आप ही बना लेता है और बारंबार यही स्थिति कथा-वाचन-श्रवण-मनन-चिंतन इस प्रक्रिया के द्वारा भक्त अनुभव करता है। ऐसे में श्रीसाईनाथ का सहज ध्यान अपने-आप ही लगने लगता हैं। इस सगुण ध्यानावस्था में ही मन में परमात्मा की सबसे जादा  कृपा याने उनके नव-अंकुर-ऐश्‍वर्य प्रवाहित होते रहते हैं और अधिक से अधिक मन:सामर्थ्य प्राप्त होता है, ओज-संपन्नता प्राप्त होती है। साईनाथ भक्तों को उदी बांट रहें हैं यह कथा पढते हुए मन ही मन हम सोचतें हैं कि क्या मैं साईबाबा को सचमुच मिल पाता , तो मेरे साईबाबा मुझे भी इसी तरह अपने खुद के हाथों से उदी देतें , क्या मेरे साईबाबा अपने हाथों से पकाया हुआ हंडी का प्रसाद मुझे भी खाने देतें , क्या मुझे मेरे साईबाबा अपने  संकटो से बाहर निकालने का उचित रास्ता दिखातें , याने क्या दुनिया से हटकर मै मेरे साईबाबा के बारे में सोचता हूं , उनके पास जाकर बैठ जाता हूं, साईबाबा को निहारने लगता हूं , और यही तो साईनाथ के सगुण ध्यान से मुझे मिलेगा , मेरे साईबाबा का सहवास, उनका सामिप्य ! चलिए तो फिर श्रीसाईसच्चर्त पढकर यह साईबाबा का ध्यान करने सिख जातें हैं - जो सचमुच का सब तकलीफों का सही इलाज हैं - भगवान का नाम सुमिरन , भगवान का सगुण ध्यान !

हेमाडपंतजी  हमें बतलातें हैं कि -
साईभक्तों की कथाओं का प्रस्तुतीकरण । उसमें भाव का उन्मीलन॥
तल्लीन होकर सुनेंगे श्रोतृगण। सुख-संपूर्ण होंगे सभी॥

सुनते ही साई की कथाएँ कानों से। अथवा दर्शन लेते ही नयनों से॥
मन हो जाता है उन्मन। और सहज ध्यानमग्न भी ॥


जिंदगी का सच्च्चा सुख, मन की शांती, समाधान सबकुछ सिर्फ मेरे साईबाबा के चरणों में ही हैं , और उसको पाने के लिए हमे साईबाबा की कथाएं हमएशा सुननी चाहिए ।   
   
ओम साईराम

 


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