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Author Topic: श्रीसाईबाबा की पुकार सुनकर हमें कैसे "उठकर बैठना " है?  (Read 1793 times)

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Offline suneeta_k

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हरि ॐ

ॐ कृपासिंधु श्रीसाईनाथाय नम: ।

श्रीसाईबाबा की पुकार सुनकर हमें कैसे "उठकर बैठना " है?

हेमाडपंतजी दूसरे अध्याय में साईकथाओं की अनन्य साधारण महत्त्व बखान करतें हुए कहतें हैं कि -

सुनते ही हम हो जाते हैं सावधान।
अन्य सुख लगने लगते हैं तिनके के समान ।
भूख-प्यास का हो जाता है संशमन।
और संतुष्ट हो जाता है अन्तर्मन।


मेरे साईबाबा की कथाओं का महज़ श्रवण करने से भी हर एक मानव अपना समग्र विकास कर सकता है, ऐसा सामर्थ्य श्रीसाईसच्चरित की इन सभी कथाओं में हैं। इसलिए साईबाबा की कथाओं को अगर हम पढें तो हमारा जीवन विकास करना कभी भी असंभव हो ही नहीं सकता क्यों कि मेरे साईबाबा के शब्दकोश में नामुमकीन , असंभव ये शब्द हैं ही नहीं । ये कथाएं बार बार पढकर , सुनकर मुझे साईनाथ का सामीप्य प्राप्त होता है, मुझे मेरे साईनाथ हमेशा मेरे साथ है, मेरे पास है इस बात की अनुभूती मिलने लगती है ।
हमारे जीवन से भय , न्यूनता कोसों मील दूर भाग जातें हैं । हमारे जीवन के कर्ता हम न होकर हमारे प्यारे भगवान साईनाथ हो जातें हैं - देखिए रघुनाथ और सावित्रीबाई तेंडूलकर इस साईभक्त पती-पत्नी का लडका बाबू वैद्यकीय परीक्षा देने से ज्योतिषी ने बतायी भविष्य बानी सुनकर बैठने में डर रहा था , हिचकिचा रहा था , उसके मां-बाप के समझाने पर भी वो मान नहीं रहा था ।  तब सावित्रीवाई तेंडूलकर का तो पूरा भरोसा साईबाबा के चरणों में था, उन्होने अपनी दिल की पीडा अपने साईबाबा के चरणों में रखी, तो उनके साईबाबा ने उन्के उस अटूट भरोसे को कायम रखा ।
शिरडी में ही बैठकर केवल अपने बातों से उन्होने बाबू के मन से ज्योतिषीजी के बानी का भय भी हटा दिया, उसका खुद पर का विश्वास दुगना कर दिया और उसे परीक्षा देने भी भेज दिया । इतना ही नहीम बल्कि एक परीक्षा (Oral -जबानी परीक्षा) देने के बाद जब बाबू डर कर दूसरी परीक्षा ( written - लिखाई ) में नहीं जा रहा था , तो साईबाबा ही कोई परिचीत व्यक्ती के भेस में उसे पहले परीक्षा में वो पास हैं ऐसी खुश खबर बताने पहुंच जातें हैं और परीक्षा छोडकर डर से घर पर बैठकर खाना खाने बैठे बाबू को परीक्षा देने भेज देतें हैं । यह हैं हमारे साईबाबा - यहां पर बाबू के जीवन में साईबाबा खुद कर्ता बन गए , बाबू की मां का विश्वास , उसकी बाबा के चरणों पर बनी श्रध्दा को कायम रहने के लिए ।

हमें तो केवल हमारे साईबाबा के आने पर उठकर बैठना है ।
  ‘उठकर बैठना है’ यानी वास्तविकता में हमें  क्या करना है? तो हेमाडपंतजी हमें इसका अर्थ भी समझातें है कि हम अहंकार की, षड्रिपुओं की, विकार-वासनाओं की गहरी नींद में डूबे रहते हैं, उस में से जागृत होकर हमें अपनी ही जगह पर केवल उठकर बैठना है। चलने का श्रम भी हमें करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि ये साईनाथ ही स्वयं चलकर अपने हर एक भक्त के पास आते रहते हैं। परन्तु हम ही घोर अहंकार की गहरी निद्रा में इस कदर डूबे रहते हैं और साथ ही कल्पनाओं की दुनिया में खोये रहते हैं कि हम जीवन की सच्चाई से दूर भागतें रहते हैं । 
अब बाबू तेंडूलकर की कथा को ही देखिए तो वह अपनी पढाई पूरी करने के बाद भी ज्योतिष्य पे भरोसा करके परीक्षा देने से मुं ह मोड रहा था । झूठे भविष्य की कल्पनाओं से डर गया था ।   

मेरे साईनाथ बारंबार मेरी तरफ़ आते रहते हैं, मेरे द्वारा बंद की गयी दरवाजे-खिड़कियाँ भी इन्हें रोक नहीं पाती हैं, क्योंकि इनकी गति ‘अनिरुद्ध’ है। इन्हें कोई भी, कभी भी, कहीं भी, किसी भी प्रकार से रोक नहीं सकता है। इसीलिए मैं चारों ओर से अपने सभी दरवाज़ें मज़बूती के साथ बंद करके भी यदि सोया भी रहता हूँ, तब भी वे मुझ तक आते ही रहते हैं। ये साईनाथ मुझ तक आते हैं, बारंबार, तर्खड के कथा में जिस तरह हम पढ़ते हैं, बिलकुल उसी तरह। बाबा सौ. तर्खड को जो कहते हैं, उसे हमें मन में, हृदय में, अन्त:करण में अंकित करके रखना चाहिए। बाबा सौ. तर्खड से कहते हैं –

‘‘क्या करूँ माँ! मैं हर रोज़ की तरह। आज भी बांदरा गया था।
लेकिन नहीं मिला खाने-पीने को माँड। भूखा ही मुझे आना पड़ा।
कैसा देखो ऋणानुबन्ध। किवाड़ था यदि बंद।
तब भी मैंने प्रवेश किया स्वच्छंद । कौन प्रतिबंध लगा सके मुझ पर।’’
नौवे अध्याय में आनेवाले यह साईबाबा के खुद के शब्द हमें हमारे जीवन में अनिरूध्द गती से आनेवाले मेरे साईनाथ के बारे में बताते है, मेरे अहसास को ताकत देतें हैं ।

ऐसे ही हैं ये मेरे साईनाथ, हमारे साईबाबा  ! हम यदि अपने मन के सारे दरवाज़े भी हम बंद कर देते हैं यानी परमेश्‍वरी कृपा, मेरे साईबाबा की कृपा एवं सहायता का स्वीकार करने के सारे रास्ते बंद कर भी ले, या  नींद में यदि मग्न हो भी जाते हैं, तब भी मेरे पास वे आते ही रहते हैं, मेरे पास आकर मुझे आवाज देते ही रहते हैं, मुझे सावधान करते ही रहते हैं। 

संत तुलसीदास जी हमें सुंदरकांड में बतातें हैं कि भगवान श्रीराम की कथा हनुमानजी सदैव गाते ही रहते हैं। श्रीराम का काज करने- मैय्या जानकी को ढूंढने के कारण हनुमानजी लंका पहुंच जातें है । उस वक्त हनुमानजी
बिभीषण के पास भी गए और रावण के पास भी गए। हनुमानजी के आते ही बिभीषण नींद से उठ बैठे, वहीं रावण हनुमानजी के बारंबार समझाने पर भी अपनी अंहकार के गहरी नींद से जागने को तैयार ही नहीं था।
हनुमानजी हर किसी के पास आते ही रहते हैं, रामकथा का गायन हमारे सामने बैठकर करते ही रहते हैं, हमें बिभीषण की तरह स़िर्फ उठकर बैठना होता है, उन्हीं की तरह हनुमानजी का स्वागत करना होता है, बस इतना ही! इसे ही उठकर बैठना कहतें हैं ।

और यदि हम रावण की तरह उठकर बैठने को तैयार ही नहीं हैं, तो फ़िर अंतत: हमारे जीवन में भी सर्वनाश निश्‍चित है।
श्रीसाईसच्चरित की कथाओं का वाचन, श्रवण, अध्ययन करना यही है- साईनाथ की साद को प्रतिसाद देना, उठकर बैठना, बाबा की पुकार में ‘हामी’ भरना। यह मेरे श्रीसाईबाबा के कथाओं का अनन्य साधारण महत्त्व मैंने अधिक गहराई से जाना एक लेख को पढके - क्या आप पढना चाहेंगे ?
तो चलिए मेरे साईबाबा के पुकार को अपने जीवन में  सुनकर उठकर बैठने के लिए सिखतें हैं - 
http://www.newscast-pratyaksha.com/hindi/shree-sai-satcharitra-adhyay2-part12/

ॐ साईराम

धन्यवाद
सुनीता करंडे
 


     

 


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