साई राम
साई के अनमोल विचार . ये पंक्तीया श्री सी सत्चारीत से उध्रीत हैं.
"शरीर एक रथ हैं । आत्मा उसकी स्वामी तथा बुद्घि सारथी हैं । मन लगाम है और इन्द्रयाँ उसके घोड़े । इन्द्रिय-नियंत्रण ही उसका पथ है । जो अल्प बुद्घि है और जिनके मन चंचल है तथा जिनकी इन्द्रयाँ सारथी के दुष्ट घोड़ों के समान है, वे अपने गन्तव्य स्थान पर नहीं पहुँचते तथा जन्म-मृत्यु के चक्र में घूमते रहते है । परंतु जो विवेकशील है, जिन्होंने अपने मन पर नियंत्रण में है, वे ही गन्तव्य स्थान पर पहुँच पाते है, अर्थात् उन्हें परम पद की प्राप्ति हो जाती है और उनका पुनर्जन्म नहीं होता । जो व्यक्ति अपनी बुद्घि द्घारा मन को वश में कर लेता है, वह अन्त में अपना लक्ष्य प्राप्त कर, उस सर्वशक्तिमान् भगवान विष्णु के लोक में पहुँच जाता है ।"
"जब तक मनुष्य निष्काम कर्म नहीं करता, तब तक उसे चित्त की शुद्घि एवं आत्म-दर्शन संभव नहीं है । विशुदृ मनव में ही विवेक और वैराग्य उत्पन्न होते है, जिससे आत्म-दर्शन के पथ में प्रगति हो जाती है । अहंकारशून्य हुए बिना तृष्णा से छुटकारा पाना संभव नहीं है । विषय-वासना आत्मानुभूति के मार्ग में विशेष बाधक है । यह धारणा कि मैं शरीर हूँ, एक भ्रम है । यदि तुम्हें अपने जीवन के ध्येय (आत्मसाक्षात्कार) को प्राप्त करने की अभिलाषा है तो इस धारणा तथा आसक्ति का सर्वथा त्याग कर दो । "
साई राम