मंगल भवन अमंगल हारी
द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी
रे मन, हरि सुमिरन कर लीजै ।
हरि सुमिरन कर लीजै ।
हरि सुमिरन कर लीजै ।
हरिको नाम प्रेमसों जपिये, हरिरस रसना पीजै ।
हरिगुन गाइय, सुनिय निरंतर, हरि-चरननि चित दीजै ॥
हरि-भगतनकी सरन ग्रहन करि, हरिसँग प्रीति करीजै ।
हरि-सम हरि जन समुझि मनहिं मन तिनकौ सेवन कीजै ॥
हरि केहि बिधिसों हमसों रीझै, सो ही प्रश्न करीजै ।
हरि-जन हरिमारग पहिचानै, अनुमति देहिं सो कीजै ॥
हरिहित खाइय, पहिरिय हरिहित, हरिहित करम करीजै ।
हरि-हित हरि-सन सब जग सेइय, हरिहित मरिये जीजै ॥
जय श्री हरी ॐ साईं राम
जन्माष्टमी की शुभकामनाये बंधुओ
ॐ
मोसम कौन कुटिल खल कामी।
जिन तनुदियोताहि विसराया, एसो नमक-हरामी।।
भरि भरि उदर विषयोंको धाया, जैसेसकूर-गा्रमी।
हरिजन छाँड़ हरि बिमुखनकी, निसदिन करत गलुामी।।
पापी कौन बड़ोजग मोते, सब पतितनमेंनामी।
सूर पतित कौ ठौर कहॉ है, तुम बिन श्रीपति स्वामी।।