शुक्रिया v2birit, परन्तु वास्तव मे जो चीज मुझे अचंभित करती है, वह है ब्रहमचर्य को बहुत ही संकुचित रूप से परिभाषित करना ! ब्रहमचर्य का अर्थ मात्र काम वासना पर नियंत्रण नहीं है यह तो ब्रह्मा को पाने और स्वमं ब्रह्म मे लीन हो जाने की अवस्था है ! कलयुग मे कई योगी जो योग की शक्ति और औषदियों के सेवन से मन पर कुछ हद तक नियंत्रण पाने मे सफल हो जाते है , स्वाम के प्रचार और प्रसार मे लग जाते है ...... वास्तविक ब्रह्मचर्य का अर्थ बहुत विस्तृत है ... जिसमे जीव अपनी इन्द्रियों को अपने नियंत्रण मे रखता है ...... अथार्थ वह स्वाद के मोह, मान अपमान से ऊपर उठ जाता है ! अहम् की भावना से ऊपर उठ इस बात का बोध हो जाता है वास्तविक कर्ता तो मात्र ईश्वर ही है ..... वास्तविक साधक दुर्लभ है ... यहाँ तो ब्रह्मचर्य का उपदेश देने वाले ही बड़ी बड़ी गाड़ियों, छपन भोग का मोह नहीं त्याग पाते .... विलासिता का जीवन और ब्रहमचर्य का दिखावा ! अंत मे ब्रहमचर्य का अर्थ मात्र ईश्वर की प्राप्ति नहीं है, यह तो अनगिनत मार्गों मे से एक है , ब्रह्मचर्य का मार्ग मात्र अध्यात्मिक उन्नति के लिए अपनाना चाहिए , गृहस्त जीवन के दायित्वों से बचने के लिए नहीं ! ईश्वर को पाने का सरलतम मार्ग तो प्रेम ही है , प्रेम जो भोतिक्ताओं की सीमाओं से ऊपर दिव्यता और ईश्वर के प्रति पूरण समर्पण भाव उत्पन करता है !
ॐ श्री साईं राम !