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Author Topic: आइये दिंवगत आत्मा की शान्ति के लिये प्रार्थना करें।  (Read 11803 times)

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Offline Kavitaparna

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OM SRI SAI RAM

om sai om sai om sai om sai om sai
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om sai om sai om sai om sai om sai
om sai om sai om sai om sai om sai

JAI SRI SAI RAM
OM SAI NAMO NAMAHA SRI SAI NAMO NAMAHA
JAI JAI SAI NAMO NAMAHA SADGURU SAI NAMO NAMAHA



kavita

Offline mysai

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  • Baba, Chalo mere saath, raho mere saath!!!
    • Sai Baba
SAI SAI SAI SAI SAI
SAI SAI SAI SAI SAI
SAI SAI SAI SAI SAI
SAI SAI SAI SAI SAI
SAI SAI SAI SAI SAI

JAI SAI RAM JAI SAI SHYAM
JAI SRI AKHANDAKOTI BRAMHANDANAYAKA RAJADHIRAJA YOGIRAJA PARABRAMHA SRI SATCHITANANDA SAMARTHA SADGURU SAINATH MAHARAJ KI JAI!!!
BABA CHALO MERE SAATH, RAHO MERE SAATH, MUJHE AASHIRWAAD DO!!!
-keerti

Offline Ramesh Ramnani

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जय सांई राम।।।

आज सारा दिन मेरा मन बहुत उदास रहा। दिन भर मुझे कुछ भी अच्छा नही लग रहा था।  सुबह सुबह जब मुझे पहला सन्देश अपनी अन्जू बहन से मिला कि कविता बहन की बेटी के साथ कुछ घटना घटी है तो मै इसी पेशोपेश में रहा कि आखिर क्या हुआ होगा। चूकि मुझे आज सुबह अमेरिकन विज़ा के लिये इन्टरव्यू के लिये जाना था वंहा मेरा सारा ध्यान इस धटना क्रम मे ही लगा हुआ था कि कविता बहन के घर में क्या हुआ होगा।

वापसी में जब उसकी मौत का समाचार मिला तो मुझे विश्वास ही नही हो रहा था। अभी तक ना जाने कितनी मौत देखी और सुनी होंगी मैने लेकिन ना जाने क्यों इस बच्ची के गुज़रने से कुछ ऐसा लग रहा है जैसे पिछले जन्मों से कुछ गहरा रिश्ता रहा हो मेरा इस बच्ची के साथ। जिसको कभी आप मिले ना हो और ना ही जिसका आपने चेहरा तक भी कभी देखा हो वंहा ऐसी बात हो तो इसके पीछे ज़रुर कुछ गहरा राज़ होगा ऐसा मुझे कुछ आभास हो रहा है।

मेरी जानकारी के अनुसार कविता जी की बेटी 'सांई भवानी' कल जब पानी के हीटर से पानी गर्म करके बिना स्वीच आफ किये पानी को छूकर देख रही थी कि पानी गर्म हुआ यां नही तो उसको ज़ोरदार करंट लगा और वो धड़ाम से फर्श पर गिर पड़ी और १० मिनट मे सब कुछ खत्म हो गया।  कविता जी की हालात ऐसी नही कि वो किसी से बात कर सकें और उनके लिये इस दर्द से उबरने मे कुछ समय लगेगा। सच में जिन्दगी और मौत के इस खेल में किसी का बस नही चलता। ना जाने किस घड़ी, स्थान पर किसकी जिन्दगी की डोर खिंच जाये कुछ पता नही।  मौत की होनी को कोई नही टाल सकता।  आइये हम सब बाबा सांई से इस नन्ही बच्ची की दिंवगत आत्मा की शान्ति के लिये प्रार्थना करें।  बाबा उस बच्ची को हमेशा अपने चरणों मे यथा स्थान दिये रखें।

ॐ सांई राम।।।


जय सांई राम।।।

श्राद्ध का अर्थ है सभी दिवंगत प्राणियों के प्रति श्रद्धा

भारतीय धर्मग्रंथों के अनुसार मनुष्य पर तीन प्रकार के ऋण प्रमुख माने गए हैं- पितृ ऋण, देव ऋण तथा ऋषि ऋण। इनमें पितृ ऋण सर्वोपरि है। पितृ ऋण में पिता के अतिरिक्त माता तथा वे सब बुजुर्ग भी सम्मिलित हैं, जिन्होंने हमें अपना जीवन धारण करने तथा उसका विकास करने में सहयोग दिया।

इस ऋण को चुकाने के लिए प्रत्येक व्यक्ति से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने पिता, माता तथा अन्य सभी बुजुर्गों को उचित सम्मान दे और उनकी मृत्यु के उपरान्त उनका श्राद्ध करे। प्रारम्भ में एक वर्ष तक मृत्यु तिथि के दिन प्रतिमाह मासिक श्राद्ध किया जाता है। श्राद्ध करने की व्यवस्था हमारे धर्मग्रंथों में दी गई है।

भाद्रपद की पूर्णिमा से प्रारंभ होकर आश्विन मास के कृष्ण पक्ष तक की कुल 15 दिन की अवधि पितृ पक्ष कहलाती है। इसे कनागत भी कहते हैं, जो कन्यार्कगत का अपभ्रंश है। इस समय सूर्य (अर्क) कन्या राशि में चला जाता है और इसीलिए इसे कन्यार्कगत या कनागत कहते हैं। श्राद्ध करने वाले व्यक्तियों को पितर दीर्घ आयु, धन, सन्तान, विद्या तथा विभिन्न प्रकार के सांसारिक सुखों का आशीर्वाद देते हैं।

विष्णु पुराण के अनुसार श्रद्धा सहित श्राद्ध करने से मनुष्य ब्रह्मा, इन्द्र, रूद्र, अश्विनी कुमार, सूर्य, अग्नि, वसु, विश्वदेव, पितृगण, पक्षी, मनुष्य, पशु, सरीसृप, ऋषिगण, भूतगण आदि संपूर्ण जगत को तृप्त करता है।

संस्कृत की एक उक्ति (श्रद्धा दीयते तत श्राद्धम्) के अनुसार श्रद्धा से कुछ देना ही श्राद्ध है। इस रूप में तो श्राद्ध का अर्थ काफी विस्तृत हो गया। किन्तु सामान्य अर्थों में श्राद्ध केवल मृतक के लिए ही किया जाता है, परन्तु उसमें भी मुख्य तत्व श्रद्धा ही है। महर्षि मरीचि का कथन है- प्रेत तथा पितरों के निमित्त अपना प्रिय भोजन जिस कर्म में श्रद्धा के साथ दिया जाता है, वह श्राद्ध कहलाता है।

उपयुक्त देश, काल, पात्र के विचार से भविष्य आदि के द्वारा विधिपूर्वक, श्रद्धा के साथ तिल, कुश और मंत्र आदि की सहायता से पितरों की तृप्ति के लिए जो कार्य संपादित किया जाता है, उसे श्राद्ध कहते हैं। श्राद्ध में अपनी सामर्थ्य से अधिक व्यय करना या किसी प्रकार का प्रदर्शन करना कतई आवश्यक नहीं है। आवश्यकता केवल इस बात की होती है कि वह धन हमने परिश्रम और ईमानदारी से कमाया हुआ हो। साधनों के अभाव में पितरों को केवल जलांजलि दे देना या मात्र प्रणाम कर लेना ही पर्याप्त है। विष्णु पुराण में कहा गया है- मेरे पास श्राद्ध करने की न क्षमता है, न धन है और न कोई अन्य सामग्री। अत: मैं पितरों को प्रणाम करता हूं। वे मेरी भक्ति से तृप्ति लाभ करें। मैंने साक्षी स्वरूप अपनी दोनों भुजाएं उठा रखी हैं।

श्राद्ध का कोई निश्चित स्थान निर्धारित नहीं है। किसी भी शुद्ध और पवित्र स्थान पर श्राद्ध किया जा सकता है। परन्तु इसके लिए सवोर्त्तम स्थान अपना निवास स्थान ही है, जिसे तीर्थ से आठ गुना अधिक लाभदायक माना गया है। श्राद्धों के सम्बन्ध में हमारे धर्मग्रन्थों में अत्यन्त उदार व्यवस्था है। श्राद्ध केवल माता, पिता या दादा, दादी की तृप्ति के लिए ही नहीं है, अपितु सभी पितरों के लिए है। इससे भी आगे बढ़कर श्राद्ध सम्पूर्ण प्राणिमात्र के लिए है, जो अब इस संसार में नहीं हैं। यजुर्वेद कहता है- जो पितर इस लोक में हैं, जो इस लोक में नहीं हैं, जिनको हम जानते हैं, जिनको हम नहीं जानते हैं, हे सर्वज्ञ अग्निदेव! तुम उन सबको जानते हो। इसलिए जो-जो जहां हैं, सो आप उन पितरों की तृप्ति के निमित्त इस यज्ञ का सेवन करें।

हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि जब मनुष्य अपना शरीर छोड़ता है तब वह प्रेत योनि धारण करता है। और जब बारह दिनों तक श्रद्धा पूर्वक उसके लिए पिंडदान आदि कृत्य आयोजित कर दिए जाते हैं, तब वह पितृलोक में चला जाता है। ब्रह्मापुराण के अनुसार अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में यमराज सभी पितरों को अपने यहां से स्वतंत्र कर देते हैं ताकि वे अपनी संतान से पिंडदान के लिए पृथ्वी पर आ सकें।

MAY BABA SAI BLESS ALL THE DEPARTED SOULS...

ॐ सांई राम।।।

 
अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

 


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