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Author Topic: निष्ठा ओर श्रधा का महत्व  (Read 27412 times)

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Offline Anupam

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Re: निष्ठा ओर श्रधा का महत्व
« Reply #15 on: January 02, 2012, 10:53:39 AM »
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  • बहुत बहुत धन्यवाद Saib जी

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    Re: निष्ठा ओर श्रधा का महत्व
    « Reply #16 on: January 03, 2012, 12:39:04 AM »
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  • जो दृढ संकल्प के साथ नियमो का पालन करता है , भगवान निश्चित रूप से उसकी सहायता करते है, क्योकि जो अपनी सहायता आप करते है भगवान उनकी सहायता करते है.

    सत्य कहा प्रताप जी . जीवन मे संकल्प के आभाव मे ही कई मनुष्य धार्मिक मार्ग का अनुसरण नहीं कर पाते, उदहारण के लिए नए वर्ष पर लाखों मनुष्य मांसाहार भोजन का त्याग कर सात्विक भोजन और जीवन को अपनाने का प्रण लेते है, पर अधिकांश कुछ दिनों और महीनो मे ही पुरानी जीवन शैली मे लौट आते है पर जो संकल्प सहित अपने मार्ग पर अगर्सर रहते है वोह अवश्य ही एक दिन सफलता प्राप्त करते है, क्योंकि स्वम भगवान उनकी संकल्प पूर्ति मे मदद करते है !

    अंत मे धन्यवाद प्रताप जी प्रेरणादायक तथा मार्गदर्शक लेखों और कथाओं के संकलन और प्रस्तुतीकरण के लिए ! :)

    ॐ श्री साईं राम !

    ॐ श्री साईंनाथाय नमः

    जय साईं राम सैबजी

    आपके  उत्साहवर्धक शब्दों के लिए बहुत -बहुत धन्यबाद .मै लम्बे समय से प्रतीक्षा कर रहा था इस घडी का की कब आपसे इन शब्दों  को उपहार स्वरुप पाउँगा. सैबजी इस फोरम में वेसे तो सभी साईं प्रेमिओ से अन्तरंग स्नेह और प्रेम है पर आप का स्थान सर्वोपरि है ,कारण आपकी आधय्मिक सोच, बाबा के प्रति दृढ श्रधा एवंग  लेख लिखने की कला. आपके हर लेखो से एक नया ज्ञान और दिशा मुझे मिलती है और सही सकारात्मक सोच का भी उदय होता है.

    आपको पुनः तहे दिल से धन्यबाद . भविष्य में भी सही दिशा और मुझे आध्यात्मिक ज्ञान अर्जन करने में मेरी सहायता करने की  कृपा करियेगा.

    ॐ साईं राम

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू



    ॐ साईंनाथाय नमः

    स्वयं राम से राम नाम अधिक प्रभावशाली  और प्रतापी

    रामायण पाठ सत्संग

    समुद्र देवता के श्री राम की प्राथना स्वीकार करने के पश्चय्त नल और नील ने हर एक पत्थर पर श्री राम लिखकर पानी में डालने लगे और हर पत्थर पानी में तैरने लगे. प्रभु श्री राम ने देखा की हर पत्थर  पर नाम लिखने में विलम जादा लग रहा है, क्योना मै ही पत्थर को पानी में अपने हाथो से डाल दूँ जिससे समय की बचत हो जायेगी  प्रभु राम सबकी आँखों से दूर जाके खुद ही अपने हाथो से एक पत्थर पानी में डाला पर तैरने की जगह पत्थर पानी में डूब गया. श्री राम ले कई बार कोशिस की पर हर बार पत्थर पानी में डूब जाते थे. प्रभु को बहुत ही आश्चर्य और विस्मय हुआ. बार-बार पत्थर डालते समय वो आस-पास देख लेते थे कि कोई उनको अनुसरण तो नहीं कर रहा है. श्री हनुमानजी जो श्री राम के सेवक थे और उनको कभी भी अकेला नहीं छोड़ते थे ,उनके सामने अचानक आये और मंद -मंद मुस्कुराने लगे. श्री राम से उन्होंने पूछा कि प्रभु ये आप क्या कर रहे है ? श्री राम ने कहा मै दुसरे वनरो कि भाति पत्थर को पानी में डाल रहा हूँ पर तैरने की जगह  हरबार डूब जाते है.

    श्री हनुमानजी ने कहा प्रभु ये आपकी नाम का ही प्रताप है , जिसके नाम लेने से ही समस्त ब्रमांड की वस्तुए  इस भवसागर से तर जाती है (अर्थात मुक्त हो जाती है. ) ,वो ही अगर उनको भवसागर में खुद अपने हाथो से डालेगा तो फिर कैसे वो तरेगी . प्रभु आपके नाम का ही प्रताप है की पत्थर पानी में तैरने लगते है, अगर आप खुद ही अपने हाथो से इनको डूबाओगे तो फिर कैसे ये तैरेंगे.



    ॐ साईं राम



    « Last Edit: February 24, 2012, 12:02:59 AM by Pratap Nr.Mishra »

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू


    ॐ साईंनाथाय नमः

    भगवान् अपने भक्त हेतु सब कष्ट उठाते है

    सत्संग पाठ श्री मदभगवत गीता


    महाभारत  के युद्ध के दौरान दुर्योधन के कटाक्ष करने पर कि आप पांडव पुत्रो से असीम स्नेह करते हो इस वजह से युद्ध में उनको परास्त एवंग मारना नहीं चाहते हो. इन कटु वचनों को सुन भीष्म पितामह ने प्रतिज्ञा की कि कल युद्धभूमि में  मै एक पांडव वीर को मृतु प्रदान करूँगा. पांडव सिविर में इस बात से हाहाकार मच गया क्योकि सबको परमपराक्रमी भीष्म पितामह की प्रतिज्ञा का मतलब भलिभांत पता था.

    इस समाचार को लेकर भगवन श्री कृष्ण अर्जुन के सिविर में गये तो देखा कि अर्जुन गहन निंद्रा में था. उन्होंने आश्चर्य भरे होकर अर्जुन को उठाया और कहा कि तुम्हारे सभी भाई पितामह की प्रतिज्ञा से चिंतित होके बाहर उससे निजात पाने के लिए गहन विचार-विमश में व्यस्त हैं और तुम यहाँ आराम से निंद्रा का आनंद ले रहे हो . भगवान के वचनों को सुन अर्जुन ने कहा कि भगवन जब मैंने सम्पूर्ण रूप से सब कुछ आपके श्री चरणों में समर्पित कर दिया है तो मुझे किस बात के लिए सोचना . सोचना तो आप को है कि कैसे क्या करना है. हम तो केवल दास है और आपके कहे वचनों का पालन करेंगे.

    भगवान्  मन ही मन मुस्कुराये और कहने लगे की अब मुझे ही कुछ समाधान निकलना होगा. श्री कृष्ण तत्पस्च्यात द्रोपदी के सिविर में गये और कहा की तुम्हारे पतिओ से कुछ समाधान नहीं निकल पा रहा है इस विषम परिस्थिति में. मै जैसा कहता हूँ वैसा करो. भगवान ने कहा कि इस समय पितामह ध्यान में रहते है और तुम वहा अपने को ढक के जाओ जिससे कोई तुम्हे न पहचान  सके. वहा जाके पितामह के पांच बार चरण छुना. श्री कृष्ण के सुझाव के अनुसार द्रोपदी ने पितामह के ध्यानस्थ अवस्था में पांच बार पैर छुये. प्रतेक बार चरण छूने पर पितामह ने द्रोपदी को सौभाग्वती रहने का आशीर्वाद दिया. कुछ समय पस्चायत जब उनका ध्यान टुटा तो उन्होंने पुछा कि पुत्री तुम कोन हो और क्यों अपने को छुपा के रखा हुआ है एवंग मेरे सिविर में क्यों आई हो ?  द्रोपदी के  अपने  वास्तविक स्वरुप में आते ही वो समझ गये की माजरा क्या है. पितामह ने मुस्कुराते हुए पुछा की वो कहा है जिसने तुम्हे यहाँ मेरे पास भेजा है.  द्रोपदी ने कहा की बाहर सिविर के कोने में हैं. पितामह शिग्रह  वहा जाके भगवान  कृष्ण के चरणों में गिर गये.   जब वो उठने को हुये तो उनके मस्तक में जुतिया  लगी. उन्होंने पुछा प्रभु ये क्या है ? किसकी जूतियाँ है और आपने क्यों अपने दुशाला में छुपा के रखी है. भगवान् कृष्ण ने कहा कि द्रोपदी इसको लुकाना भूल गई थी और कही इसको देखकर कोई पहचान न ले इसलिए मैंने हाथो में लेकर दुशाला के अन्दर छुपाई हुई है.

    पितामह के आखो से आंसुओ कि धरा निकलने लगी और कहने लगे कि भगवन आपकी लीला बड़ी ही नयारी है. भक्तो कि खातिर आप खुद भी कितना कष्ट उठाते हो. जितना प्यार भक्त आपसे करता है उससे कही जादा आप उसका ख्याल रखते हो. मै उसी समय ही समझ गया था कि पांडवो को अभयदान दिलवाने के लिए ही आपने  ये सब लीला रची है.

    ॐ भक्तभयप्रदाय नमः ॐ भक्तवत्सलाय नमः ॐ सद्गुरुनाथाय नमः


     




         

    Offline Dipika

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    Re: निष्ठा ओर श्रधा का महत्व
    « Reply #19 on: January 14, 2012, 08:34:16 AM »
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  • OMSAIRAM!Mishra ji a very informative post.

    Thanku for enlightening this poor soul.

    पितामह के आखो से आंसुओ कि धरा निकलने लगी और कहने लगे कि भगवन आपकी लीला बड़ी ही नयारी है. भक्तो कि खातिर आप खुद भी कितना कष्ट उठाते हो. जितना प्यार भक्त आपसे करता है उससे कही जादा आप उसका ख्याल रखते हो. मै उसी समय ही समझ गया था कि पांडवो को अभयदान दिलवाने के लिए ही आपने  ये सब लीला रची है.

    Sai baba let your holy lotus feet be our sole refuge.OMSAIRAM
    साईं बाबा अपने पवित्र चरणकमल ही हमारी एकमात्र शरण रहने दो.ॐ साईं राम


    Dipika Duggal

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    परमपिता परमेश्वर के वचन
    « Reply #20 on: January 29, 2012, 05:50:07 AM »
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  • परम पिता परमेश्वर श्री साईंनाथ महाराज की जय

    अल्लाह साईं मौला साईं नानक साईं ईशु साईं

    राम भी तू रहीम भी तू , ईशुमसीह और नानक भी तू

    सबका मालिक एक


    ॐ साईंनाथाय नमः

    पवित्र ग्रंथ बाईबल से उद्धृत

    एक बार प्रभु ईसामसीह  अपने शिष्यों के साथ किसी गांव में पहुचे और वहां के जनसमूह को परम पिता परमात्मा के विचारो के बारे में बतलाने लगे. परम पिता परमेश्वर का ज्ञान वो छोटे-छोटे उदाहरणो में समझाया करते थे. "कोई बीज बोने वाला बीज बोने निकला. कुछ बीज मार्ग के किनारे गिरे और रौंद डाले गए और  पक्षिओ ने चुग लिया. कुछ बीज पथरीली जगह में गिरे जिन्हें पानी न मिलने के कारण वो मुरझा गये.. कुछ बीज झाड़ियो के बीच  गिरे जिन्हें झाड़ियो ने साथ-साथ बढकर उनको दबा लिया.. पर कुछ बीज अच्छी भूमि में गिरे और सभी पौधों  बने और उन्होंने फल दिया. हर एक ने सौ गुना और कुछ ने और भी अधिक. "

    उनके शिष्यों ने प्रभु ईशु से पूछा कि आप जब भीड़ इकठ्ठा होती है तो उदाहरणो में क्यों वचनों को कहते है,सीधे-सीधे क्यों नहीं कहते. प्रभु ईशु मुस्कुराये और उत्तर दिया कि "परम पिता परमेश्वर के रहष्यो का ज्ञान तुम्हे दिया गया है पर ओरो को उदाहरणो में ही समझाया जाता है क्योकि वो देखते हुये भी नहीं देखते और सुनते हुये भी नहीं समझते ".

    इस उदाहरण का अर्थ ये है "बीज परम पिता परमेश्वर का वचन है. मार्ग के किनारे गिरे बीज उन्हें दर्शाते है जो वचनों को सुनते है पर सैतान आके उनके मन से वचनों को चुरा लेता है ताकि वे विस्वास करके मुक्ति न पा ले. पथरीली भूमि पे गिरे बीज उन्हें दर्शाते है जो वचनों को सुनते है और आनंद से उसे ग्रहण  भी करते है पर जड़ नहीं पकड़ पाते वो कुछ देर तक विस्वास तो करते है और परीक्षा कि घडी आने पर टिक नहीं पाते.झाड़ियो में गिरे बीज उन्हें दर्शाते है जो वचन सुनते है पर जीवन कि चिन्ताओ,धन,मोह लोभ और  भोग विलास में फसने से उनके फल कभी नहीं पकते.वे बीज जो अच्छी भूमि में गिरे उनलोगों के प्रतिक हैं जो वचन सुनके उसे भले और आज्ञाकारी मन से ग्रहण करते है और फलवन्त होने तक उसे बचाके रखते है. मशाल को कोई बर्तन से ढकके या चारपाई के नीचे नहीं रखता कारण भीतर आने वालो को प्रकाश मिले जिससे जो कुछ छिपा है उसे बहार आना चाहिए  और जो ढका है उसे अन्धकार से प्रकाश में आना चाहिए ."


    बाबा के वचनों को पूर्ण रूपसे आत्मसात करने परही हम भी उस  वृक्ष की भांति नाना प्रकार के फलो की प्राप्ति कर पायेंगे. बाबा के वचनों को शुद्ध ह्रदय में  श्रधा से बोकर उसको पूर्ण भक्ति और प्रेम के जल से सीचते रहेंगे तो हमें भी बाबा इस भवसागर और हर पीड़ा से मुक्ति अवश्य दिलवा देंगे.  

    ॐ साईं राम ॐ साईं राम ॐ साईं राम ॐ साईं राम ॐ साईं राम

    « Last Edit: January 29, 2012, 02:55:38 PM by Pratap Nr.Mishra »

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    Re: मनसा-वाचा-कर्मणा
    « Reply #21 on: February 20, 2012, 12:57:33 AM »
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  • मनसा-वाचा-कर्मणा


    एक आदमी कथा कर रहा था उसने कहा बैगन का नाम इसलिए बैगन पड़ा क्योकि उस में गुण नहीं होता इसलिए बेगुन हो जाता है जिसे लोग बैगन कह देते है , उसको नहीं खाना चाहिए

    उसकी पत्नी भी कथा सुन रही थी वह घर आई उसने बैगन को बाहर फ़ेंक  दिया , जब वह आदमी घर आया बोला आज क्या बनाया है ?
    पत्नी  बोली दाल बनाया है, उसने कहा सुबह जो बैगन ला कर दिए थे वह मैंने फैक दी क्योकि आपने ही तो कथा में कहा था बेगुन में कोई गुन नहीं होता उसे नहीं खाना चाहिए . इसलिए मैंने फैक दी.


    विशेष :मनसा-वाचा-कर्मणा तीन बातें हमारे शास्त्र बताते हैं । मन से, वचन से, कर्म से तीनो एक जैसा होना चाहिए। जो मन में हो वह ही जुबान पर हो, जो कहो वह ही करो .

    Offline PiyaSoni

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    • ੴ ਸਤਿ ਨਾਮੁ
    Re: निष्ठा ओर श्रधा का महत्व
    « Reply #22 on: February 20, 2012, 01:31:59 AM »
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  • साईं राम प्रताप जी

    मनसा -वाचा -कर्मणा का जिस प्रकार से अपने वर्णन किया है , इस कथा को कह कर सच में बड़ा ही अच्छा लगा !
    जो मन में हो वह ही जुबान पर , जो कहो वही करो

    पर आज कल कोई ही ऐसा इंसान है, जो कहता है वही करता भी है ,जो उसके दिल में है वही उसकी जुबान पर भी , बाबा से बस इतनी अर्ज़ है की हम सभी को मनसा -वाचा - कर्मणा तीनो से एक जैसा होने का समर्थ प्रदान करे !!

    एक बार फिर से आपको धन्यावाद , आगे भी हमे इसी प्रकार के ज्ञान से अवगत कराते रहे !

    साईं समर्थ...........श्रद्धा सबुरी



    मनसा-वाचा-कर्मणा


    एक आदमी कथा कर रहा था उसने कहा बैगन का नाम इसलिए बैगन पड़ा क्योकि उस में गुण नहीं होता इसलिए बेगुन हो जाता है जिसे लोग बैगन कह देते है , उसको नहीं खाना चाहिए

    उसकी पत्नी भी कथा सुन रही थी वह घर आई उसने बैगन को बाहर फ़ेंक  दिया , जब वह आदमी घर आया बोला आज क्या बनाया है ?
    पत्नी  बोली दाल बनाया है, उसने कहा सुबह जो बैगन ला कर दिए थे वह मैंने फैक दी क्योकि आपने ही तो कथा में कहा था बेगुन में कोई गुन नहीं होता उसे नहीं खाना चाहिए . इसलिए मैंने फैक दी.


    विशेष :मनसा-वाचा-कर्मणा तीन बातें हमारे शास्त्र बताते हैं । मन से, वचन से, कर्म से तीनो एक जैसा होना चाहिए। जो मन में हो वह ही जुबान पर हो, जो कहो वह ही करो .

    "नानक नाम चढदी कला, तेरे पहाणे सर्वद दा भला "

    Offline revathi venkateshvaran

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    Re: निष्ठा ओर श्रधा का महत्व
    « Reply #23 on: February 20, 2012, 05:05:46 AM »
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  • ॐ साईं राम
    प्रताप जी , बहुत सुन्दर वर्णन किया है अपने निष्ठा और श्रद्धा का ...

    सच कहा की जब तक हमे अपने गुरु पर और उनके वचनों पर श्रद्धा है हम बड़े से बड़े तूफान से गुज़र सकते है ...

    मैंने कही पढ़ा था जो मैं आपके साथ बाँट रहे हु ...एक छोटी बच्ची बाबा के साथ जा रही थी. पुल पर पानी बहुत तेज़ी से बह रहा था, बाबा बोले, घबराओ मत मेरा हाथ पकड़ लो. बच्ची ने कहा, नहीं बाबा आप मेरा हाथ पकड़ लो. बाबा ने मुस्कुरा कर कहा, दोनों में क्या फरक है? बच्ची ने कहा, अगर.... मै आपका हाथ पकडू और अचानक कुछ हो जाये तो शायद मै आपका हाथ छोड़ दूँगी, लेकिन अगर आप मेरा हाथ पकड़ेंगे, तो मै जानती हूँ की चाहे कुछ भी हो जाये आप मेरा हाथ कभी नही छोड़ेंगे!

    शुक्रिया प्रताप जी , बाबा हम सभी को कृपा के लायक बनांये ....

    साईं समर्थ......श्रद्धा सबु

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    Re: ईश्वरलाभ की संपदा
    « Reply #24 on: February 20, 2012, 08:44:03 AM »
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  • ॐ श्री साईं नाथाय नमः

    ईश्वरलाभ की संपदा

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    अज्ञात लेखक


    एक गांव में एक लकडहारा रहा करता था।वह हर रोज जंगल में जाकर लकडी काटता और उसे बाजार में बेच देता। किन्तु कुछ समय से उसकी आमदनी घटती चली जा रही थी,ऐसी परिस्थिति में उसकी एक संन्यासी से भेंट हुई। लकडहारे ने संन्यासी से विनम्र बिनती की और बोला ''महाराज कृपा करें। मेरी समस्या का कोई उपाय बताइये।''

    इसपर उस सन्यासी ने लकडहारे को कहा ''जा आगे जा।''

    उस सन्यासी के आदेश पर या तो कहें  शब्दों पर विश्वास रख आगे की ओर निकल चला। तब कुछ समय पश्चात सुदूर उसे चंदन का वन मिला। वहां की चंदन की लकडी बेच-बेच कर लकडहारा अच्छा-खासा धनी हो गया। ऐसे सुख के दिनों में एक दिन लकडहारे के मन में विचार आया कि ''सन्यासी ने तो मुझे आगे जा कहा था। लेकिन मैं तो मात्र चंदन के वन में ही घिर कर रह गया हूं। मुझे तो और आगे जाना चाहिये।''

    यह विचार करते-करते वह और आगे निकल गया , आगे उसे एक सोने की खदान दिखाई दी। सोना पाकर लकडहारा और अधिक धनवान हो गया। उसके कुछ दिन के पश्चात लकडहारा और आगे चल पडा। अब तो हीरे-माणिक और मोती उसके कदम चूम रहे थे। उसका जीवन बहुत सुखी और समृध्द हो गया।

    किंतु लकडहारा फिर सोचने लगा ''उस सन्यासी को इतना कुछ पता होने के बावजूद वह क्यों भला इन हीरे माणिक का उपभोग नहीं करता।'' इस प्रश्न का समाधानकारक उत्तर लकडहारे को नहीं मिला। तब वह फिर उस सन्यासी के पास गया और जाकर बोला ''महाराज आप ने मुझे आगे जाने को कहा और धन-समृधि  का पता दिया लेकिन आप भला इन सब सुखकारक समृध्दि का लाभ क्यों नहीं उठाते?

    इसपर संन्यासी ने सहज किन्तु अत्यंत सटीक उत्तर दिया। वह बोले ''भाई तेरा कहना उचित है, लेकिन और आगे जाने से ऐसी बहुत ही खास उपलब्धि  हाथ लगती है जिसकी तुलना में ये हीरे और माणिक केवल मिट्टी और कंकर के बराबर महसूस होते हैं। मैं उसी खास चीज की तलाश में प्रवृत्त हूं। उस मूल्यवान चीज का नाम है ' ईश्वरलाभ ' । ''

    सन्यासी के इस साधारण मगर गहरे अर्थ वाले कथन से लकडहारे के मन में भी अब विवेक-विचार जागृत हुआ। वो समझ गया था कि कोई भी संपदा की तलाश ईश्वर के बिना पूर्ण नही होती क्योकि मन तब तक संतुष्ट नहीं हो सकता जब तक ईश्वरलाभ  की संपदा हाथ न लग जाये   ।

    ॐ श्री साईं राम

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    ॐ श्री साईं नाथाय नमः

    जियो तो ऐसे जियो ,जैसे हर दिन आखरी हो

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    सी .इ .ओ. स्टीव जाब्स ,एप्पल इंक के संस्थापक 

    पैनक्रियाज के कैंसर से लडाई में जित हासिल करके लौटने के तुरंत बाद स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में सन 2005 में एप्पल इंक के सी .इ .ओ. स्टीव जाब्स के कुछ शब्द

    "जब मैं 17 साल का था तो मैंने  पढ़ा था जो कुछ ऐसा था ,' अगर आप हर दिन को इस  तरह जिए कि मानो वह आपका आखिरी दिन है तो एक दिन आप बिलकुल सही जगह होगे .' इस वाक्य ने मुझ पर गहरा प्रभाव डाला और उसके बाद से यह मेरा नियम हो गया कि मैं हर दिन अपना चेहरा आईने में देखता हूँ और अपने आप से पूंछता हूँ ,अगर आज मेरी जिंदगी का आखरी दिन हो तो क्या मैं वह करना चाहूँगा जो मैं आज करने वाला हूँ और लगातार कई दिनों तक जब इसका जबाब नहीं होता है तो मैं समझ जाता हूँ कि मुझे कुछ बदलने की जरूरत है. कोई भी मरना नहीं चाहता. यहाँ तक कि जिन लोगो को पता है कि स्वर्ग में जायेंगे , वो भी नहीं. फिर भी मृत्यु वो गंतव्य है , जो हम सभी के हिस्से में आती है . कोई कभी इससे बच नहीं सका है . यह सब वैसा ही है जैसा उसे होना चाहिए क्योंकि मृत्यु जीवन का एकमात्र सर्वोतम अविष्कार है. यह जीवन को बदलने वाला तत्व है. यह नए के लिया रास्ता बनाने के लिए पुराने को साफ़ करता है .

    आपका समय बहुत सिमित है , इसलिए किसी दुसरे के जिन्दगी जीने में उसे बर्बाद न करे . मान्यताओं के शिकंजे में न फंसे - जिसमें आप उन परिणामों के साथ जीते है , जिसके बारे में दुसरे सोचते है . दुसरे के मत और विचारों के शोर से अपने अन्दर की आवाज को दबने न दे और सबसे महत्वपूर्ण बात, अपने दिल और पूर्वाभासों का अनुसरण करने का सहस रखे .ये दोनों किसी तरह पहले से ही जानते है की आप सच में क्या बनना चाहते है . बाकि सब बांते अप्रधान है."


    ॐ श्री साईं राम


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    Re: अपने अन्दर खोजिये
    « Reply #26 on: February 20, 2012, 11:55:15 PM »
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  • ॐ श्री साईं नाथाय नमः

    अपने अन्दर खोजिये

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    एक बार एक बूढी औरत अपने झोपडे के बाहर कुछ खोज रही थी। पास-पड़ोस के लोगो ने सोचा ,बूढी औरत है चलो मदद की जाए .

    उनलोगों ने पूछा क्या खोजती हो ? उसने कहा, 'मेरी सुई खो गयी है' इस पर लोगो ने सुई खोजना शुरू कर दिया । अब सुई जैसी छोटी चीज, साँझ का समय जब बहुत देर खोजने के बाद भी नही मिला और अँधेरा होने लगा तों एक आदमी ने पूछा,'ऐ! बूढी औरत ये तों बता दे की तेरी सुई खोई कहाँ है ?

    तब बूढी औरत ने कहा,' सुई तों मेरे घर के अन्दर खोई है, लेकिन वहाँ बहुत अँधेरा है और मेरे पास दीया नही है, इसलिए जहाँ उजाला है उसे वही खोजा जा सकता है, क्योकि अंधेरे में तों सुई मिलेगी नही।

     लोगो ने कहा पागल हो गयी है तू बुढिया , सुई अन्दर है और तू उसे बाहर खोज रही है ,चलो सब लौट चलो ,चलो इस पागल को खोजने दो ,यह कहकर सभी लोग लौटने लगे .

    जब वो लोग लौटने को हुए तों बूढी औरत हँसने लगी और कहा की तुम मुझे पागल कहते हो तब तों सारी दुनिया ही पागल है, क्योंकि सारे लोग तों बाहर ही खोजते है, उसे जो अन्दर है.

    दुनिया का हर सुख-चैन  तो  हमारे भीतर ही  छिपा होता है पर दुर्भाग्यवश लोग उसे वहाँ नही खोजते। अपने अन्दर खोजने वालों को ही परम आनंद और शुकून की  अनुभूति हो सकती  है ।

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    Re: अपने ककून से संघर्ष
    « Reply #27 on: February 21, 2012, 04:59:24 AM »
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  • ॐ श्री साईं नाथाय नमः

    अपने ककून से संघर्ष

    गौरतलब सामाजिक नैतिक और आध्यात्मिक शिक्षा केंद्र
     
    अज्ञात लेखक


    एक राहगीर को सड़क किनारे किसी झाड़ पर एक तितली का अधखुला कोकून(यह एक खोल होता है जिसमें से तितली का जन्म होता  है )  दिखा ।वहां बैठकर कुछ घंटे उस  तितली को देखता रहा जो छोटे से छिद्र से बहार निकलने के लिए जी-तोड़ कोशिश किये जा रही थी. पर उससे बाहर निकलते नहीं बन रहा था। ऐसा लग रहा था कि तितली का उससे बाहर निकलना सम्भव नहीं है।

    उस आदमी ने सोचा कि तितली की मदद की जाए। उसने कहीं से एक कतरनी लाया  और तितली के निकलने के छेद को थोड़ा सा बड़ा कर दिया।अब  तितली उसमें से आराम से निकल सकती थी । लेकिन वह बेहद कमज़ोर लग रही थी और उसके पंख भी नहीं खुल रहे थे। आदमी बैठा-बैठा तितली के पंख खोलकर फडफडाने का इंतजार करता रहा।

    लेकिन ऐसा नहीं हुआ।तितली ककून में ही फड़-फड़ाती रही पर तितली कभी नहीं उड़ पाई, और एक दिन मर गयी .

    उस व्यक्ति को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों हुआ ?  उस आदमी ने मदद किया काम आसान की,फिर क्यों नहीं उड़  पायी ?

    दरअसल उस राहगीर को यह नहीं मालुम था की तितली का यही संघर्ष उसे जिंदगी में उड़न भरने का मौका देता है. उससे  बाहर आने की प्रक्रिया में ही उस तितली के तंतु जैसे पंखों में पोषक द्रव्यों का संचार होता है , यह प्रकृति की व्यवस्था थी कि तितली  अथक प्रयास करने के बाद ही ककून  से  पुख्ता  होकर बाहर निकलती है .

    इसी तरह हमें भी अपने जीवन में संघर्ष करने की ज़रूरत होती है। यदि प्रकृति और जीवन हमारी राह में किसी तरह की बाधाएं न आने दें तो हम सामर्थ्यवान कभी न बन सकेंगे। जीवन में यदि शक्तिशाली और सहनशील बनना हो तो कष्ट तो उठाने ही पड़ेंगे।

    जिंदगी में ऊँची उडान भरने  के लिए अपने ककून (कठिन परिस्थिति) से संघर्ष  जरुरी है ,संघर्ष जितना लम्बा और कठिन होगा  आपकी उपलब्धि उतनी बड़ी और  पुख्ता होगी. 

    ॐ श्री साईं राम



    Offline Pratap Nr.Mishra

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    Re: विद्वता का अहंकार
    « Reply #28 on: February 21, 2012, 02:44:50 PM »
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  • ॐ श्री साईं नाथाय नमः

    विद्वता का अहंकार

    गौरतलब सामाजिक नैतिक और आध्यात्मिक शिक्षा केंद्र
     
    लेखक : श्री पवन कुमार शर्मा


    महाकवि कालिदास को अपार यश, प्रतिष्ठा और सम्मान पाकर अपनी विद्वत्ता का घमंड हो गया. उन्हें लगा कि उन्होंने विश्व का सारा ज्ञान प्राप्त कर लिया है और अब सीखने को कुछ बाकी नहीं बचा.

    एक बार पड़ोसी राज्य से शास्त्रार्थ का निमंत्रण पाकर कालिदास अपने घोड़े पर रवाना हुए , चिलचिलाती धूप में लगातार यात्रा से कालिदास को प्यास लग आई जंगल का रास्ता था और दूर तक कुछ दिखाई नहीं दे रही थी. थोङी तलाश करने पर उन्हें एक टूटी झोपड़ी दिखाई दी. पानी की आशा में वो उस ओर बढ चले. झोपड़ी के सामने एक कुआं भी था.

    उसी समय झोपड़ी से एक छोटी बच्ची मटका लेकर निकली. बच्ची ने कुएं से पानी भरा और जाने लगी. कालिदास उसके पास जाकर बोले ” हे बालिके ! बहुत प्यास लगी है ज़रा पानी पिला दे.”

    बच्ची ने कहा, “आप कौन हैं? मैं आपको जानती भी नहीं, पहले अपना परिचय दीजिए.” कालिदास को लगा कि मुझे कौन नहीं जानता मुझे परिचय देने की क्या आवश्यकता? फिर भी प्यास से बेहाल थे तो बोले, “ अभी तुम छोटी हो, इसलिए मुझे नहीं जानती. घर में कोई बड़ा हो तो उसको भेजो, वो मुझे देखते ही पहचान लेगा.  मेरा नाम सभी लोग जानते है.

    बालिका ने पुनः पूछा, “सत्य बताएं, कौन हैं आप?” वो चलने की तैयारी में थी, कालिदास थोड़ा नम्र होकर बोले, “बालिके! मैं बटोही हूं.” मुस्कुराते हुए बच्ची बोली, “आप झूठ बोल रहे हैं. संसार में दो ही बटोही हैं. उन दोनों को मैं जानती हूँ, बताइए वो दोनों कौन हैं?"

    थोङी देर सोचकर कालिदास बोले, “मुझे नहीं पता, तुम ही बता दो. मगर मुझे पानी पिला दो. मेरा गला सूख रहा है.

    बच्ची बोली, “आप स्वयं को बङा विद्वान बता रहे हैं और ये भी नहीं जानते? एक स्थान से दूसरे स्थान तक बिना थके जाने वाला बटोही कहलाता है. बटोही दो ही हैं, एक चंद्रमा और दूसरा सूर्य जो बिना थके चलते रहते हैं. आप तो थक गए हैं. भूख-प्यास से बेदम हो रहे हैं. आप कैसे बटोही हो सकते हैं?” इतना कहकर बालिका ने पानी से भरा मटका उठाया और झोपड़ी के भीतर चली गई.कलिदास चकित रह गए. बड़े से बड़े विद्वानों को पराजित कर चुके कालिदास एक बच्ची के सामने निरुत्तर खङे थे.

    इतने अपमानित वे जीवन में कभी नहीं हुए. प्यास से शरीर की शक्ति घट रही थी. दिमाग़ चकरा रहा था. उन्होंने आशा से झोपड़ी की तरफ़ देखा. तभी अंदर से एक वृद्ध स्त्री निकली. उसके हाथ में खाली मटका था. वो कुएं से पानी भरने लगी. अब तक काफी विनम्र हो चुके कालिदास बोले, “माते प्यास से मेरा बुरा हाल है. भर पेट पानी पिला दीजिए बङा पुण्य होगा”

    बूढी माँ बोलीं, ” बेटा मैं तुम्हे जानती नहीं. अपना परिचय दो. मैं अवश्य पानी पिला दूँगी.” कालिदास ने कहा, “मैं मेहमान हूँ, कृपया पानी पिला दें.”

    “तुम मेहमान कैसे हो सकते हो? संसार में दो ही मेहमान हैं. पहला धन और दूसरा यौवन. इन्हें जाने में समय नहीं लगता, सत्य बताओ कौन हो तुम?”
    इस  उत्तर  से पराजित और हताश कालिदास बोले “मैं सहनशील हूं. पानी पिला दें”

    “नहीं, सहनशील तो दो ही हैं. पहली, धरती जो पापी-पुण्यात्मा सबका बोझ सहती है, उसकी छाती चीरकर बीज बो देने से भी अनाज के भंडार देती है. दूसरे, पेड़ जिनको पत्थर मारो फिर भी मीठे फल देते हैं. तुम सहनशील नहीं. सच बाताओ कौन हो?”
    कालिदास लगभग मूर्छा की स्थिति में आ गए और तर्क-वितर्क से झल्लाकर बोले, ” मैं हठी हूं।”

    “फिर असत्य. हठी तो दो ही हैं, पहला नख और दूसरा केश. कितना भी काटो बार-बार निकल आते हैं. सत्य कहें ब्राह्मण कौन हैं आप?”

    पूरी तरह अपमानित और पराजित हो चुके कालिदास ने कहा, “फिर तो मैं मूर्ख ही हूं.”

    “नहीं तुम मूर्ख कैसे हो सकते हो. मूर्ख दो ही हैं. पहला राजा जो बिना योग्यता के भी सब पर शासन करता है, और दूसरा दरबारी पंडित जो राजा को प्रसन्न करने के लिए ग़लत बात पर भी तर्क करके उसको सही सिद्ध करने की चेष्टा करता है.”

    कुछ बोल न सकने की स्थिति में कालिदास वृद्धा के पैर पर गिर पड़े और पानी की याचना में गिङगिङाने लगे.

    उठो वत्स… ये आवाज़ सुनकर जब कालिदास ने ऊपर देखा तो साक्षात माता सरस्वती वहां खड़ी थी. कालिदास पुनः नतमस्तक हो गए.

    “शिक्षा से ज्ञान आता है न कि अहंकार. तूने शिक्षा के बल पर प्राप्त मान और प्रतिष्ठा को ही अपनी उपलब्धि मान लिया और अहंकार कर बैठे. इसलिए मुझे तुम्हारे चक्षु खोलने के लिए ये स्वांग करना पड़ा.” कालिदास को अपनी गलती समझ में आ गई और भरपेट पानी पीकर वे आगे चल पड़े.

    ॐ श्री साईं राम


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    Re: प्रभु के शरण में
    « Reply #29 on: February 22, 2012, 12:27:35 AM »
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  • ॐ श्री साईं नाथाय नमः

    प्रभु के शरण में

    गौरतलब सामाजिक नैतिक और आध्यात्मिक शिक्षा केंद्र
    लेखक : श्री पवन कुमार शर्मा

    एक बुढा व्यापारी था ,वह रोज कहा करता था - हे! प्रभु मुझे अपनी शरण में बुला लो . एक दिन सचमुच भगवान का दूत  आ गया बोला -चलिए ! भगवान ने आपकी सुन ली ,उन्होंने बुलाया है .

    व्यापारी के लिए ये तो अप्रत्याशित था . वह तो ऐसे ही  लोगो की देखा- देखी कहा करता था. वो भला अभी क्यों भगवान के पास जाना चाहता इसलिए उसने एक बहाना  बनाया बोला -भाई! तुम भगवान का सन्देश लेकर आये हो ,यह तो मेरा सौभाग्य है लेकिन मेरा बेटा अभी बहुत छोटा है जरा व्यापार का काम -काज देखने  लायक हो जाये तो मैं चलूँगा. तुम फिर तीन साल बाद आना.

    दूत फिर तीन  साल बाद  आया. व्यापारी  ने फिर कोई बहाना बनाया. इस तरह दूत आते गया और व्यापारी बहाने बनाते गया . जब दूत थक गया तो उसने आना बंद कर दिया .

    व्यापारी दिन-ब-दिन कमजोर होता चला गया लेकिन फिर भी  घर -बार और संसार का मोह उसे भगवान के पास जाने से रोके  रखा और अंत में जीवन के कष्ट मौत  के कष्ट से बड़े हो गए और आखिरकार उसने इस दुनिया से कूच कर दिया.

    यह सबको पता है कि आदमी खाली हाथ दुनिया में आता है और खाली हाथ ही चला जाता है. फिर भी संसार में रहते हुए वह मोह-माया का त्याग नहीं कर सकता और इसके त्याग के बिना परमात्मा कैसे मिल सकता है   

    ॐ साईं राम

     


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