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Author Topic: निष्ठा ओर श्रधा का महत्व  (Read 27410 times)

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Offline Pratap Nr.Mishra

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  • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
सभी साईं प्रेमियों को मेरा   साईं राम

निष्ठा ओर श्रधा का महत्व

एक बार एक शिष्य आपने गुरु के साथ गुरु पिता के पास मिलने को उनके आश्रम को जा   रहे थे.
गुरु का अनुसरण कर शिष्य उनके पीछे पीछे  वियावान जंगल के रास्ते से गुरु का स्मरण करते हुये
रहा था . जंगल पार करने के पश्चात उन्होने देखा की आगे एक गहरी उफंती नदी है जो मार्ग अवरोध
कर रही है .कोइ ओर भी मार्ग नही नजर नही आ रह था उनको आश्रम तक पहुचने का. गुरु ने कहाँ
की पहुचना शिग्रह ही जरूरी है वरना गुरु के आदेश की अवहेलना होगी पर यहाँ तो दुर-दुर तक कोइ
नाव भी नही दिख रही है जिसपर  सवार होगे इस उफन्ति नदी को पार किया जा सकता था .

शिष्य ने गुरु से कहाँ कि गुरुजी कुछ  पेड़ से टुटी टेहनिओ को मैने नदी के पानी मे बेहते हुए देखा है .
क्यो ना हमलोग उसी टेह्नी का सहारा लेकर इस नदी को पार कर ले . गुरु को अपने शिष्य की बातो
से बहुत ही अच्चाम्भा हुआ ओर उसकी मुर्खता  पर हसी भी. गुरु ने क्रोधित होके कहाँ की ठीक है तुम
 पहले नदी को पार कर के दिखाओ .

शिष्य गुरु के आदेश को सर्वोपरी मानके एक  बेहती हुइ टेह्नी को पकड लिया ओर आँखों को बांध कर
उसपर सवार हो गया . गुरु की आँखे विश्मय से खुली की खुली रह  गई  जब उन्होंने देखा कि शिष्य
बडी सहजता से उस टेह्नी पर सवार नदी पर कर दुसरे किनारे पहुच गया है .

शिष्य ने गुरु से निवेदन किया की गुरुजी आप भी मेरी भाति इस नदी को पार करके आ जाइये. गुरु ने
भी उसी तरह से प्रयास किये पर हर बार टेह्नी पर पैर रखते ही गुरूजी  पानी मे तैयरने की जगाह डूब
जाते थे . गुरुजी बहुत परेशान की शिष्य ने तो बडी ही सहजता से इस कार्य को कर लिया मै क्यो नही
 कर पा रहा हू.

संकोचित मन  से गुरुजी ने शिष्य से पूछा कि तुमने  कैसे  ये  सब  किया ?

शिष्य ने बड़ी ही विनम्रता और  छमा  मांगते  हुये कहाँ की गुरूजी  वो  आपही  है. जिन्होंने मुझे नदी
के इस पार लाया  है . मैने तो बस  आपके  आदेश को गुरु आदेश मानकर आपके  प्रति दृढ़ता और श्रधा
रखते हुये  आखे बांध  कर आपको  ही याद  करता रहा . वो  आपही थे जिन्होंने  टेह्नी को थामे  रखा
था ओर मुझे  डूबने  नही दिया  .

आप भी अपने गुरु पर दृढ़ता,श्रधा ओर विस्वास करते  हुये  टेह्नी पर सवार हो जाइये.आपके गुरुजी भी
आपकी तरह आपको  नदी पर करा  देगे .

श्रधाऔर भक्ती मे  वो शक्ति है जिसने ध्रुव प्रहलाद को महा आग्नि के लपटों के बीच मे भी सही सलामत रखा . .

साईं  राम

 
राम रहे बन भीतरे गुरु  की पूजा ना आस ।
रहे कबीर पाखंड सब, झूठे सदा निराश  ॥

कामी, क्रोधी , लालची, इनसे भक्ती  न होय ।
भक्ती  करे कोइ सूरमा, जाती वरन कुल खोय ॥

मै अपराधी जन्म  का, नख-सिख भरा विकार  ।तुम दाता दु:ख भंजना, मेरी करो  सम्हार  ॥

Offline PiyaSoni

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  • ੴ ਸਤਿ ਨਾਮੁ
ॐ साईं राम
प्रताप जी , बहुत सुन्दर वर्णन किया है अपने निष्ठा और श्रद्धा का ...

सच कहा की जब तक हमे अपने गुरु पर और उनके वचनों पर श्रद्धा है हम बड़े से बड़े तूफान से गुज़र सकते है ...

मैंने कही पढ़ा था जो मैं आपके साथ बाँट रहे हु ...एक छोटी बच्ची बाबा के साथ जा रही थी. पुल पर पानी बहुत तेज़ी से बह रहा था, बाबा बोले, घबराओ मत मेरा हाथ पकड़ लो. बच्ची ने कहा, नहीं बाबा आप मेरा हाथ पकड़ लो. बाबा ने मुस्कुरा कर कहा, दोनों में क्या फरक है? बच्ची ने कहा, अगर.... मै आपका हाथ पकडू और अचानक कुछ हो जाये तो शायद मै आपका हाथ छोड़ दूँगी, लेकिन अगर आप मेरा हाथ पकड़ेंगे, तो मै जानती हूँ की चाहे कुछ भी हो जाये आप मेरा हाथ कभी नही छोड़ेंगे!

शुक्रिया प्रताप जी , बाबा हम सभी को कृपा के लायक बनांये ....

साईं समर्थ......श्रद्धा सबु
"नानक नाम चढदी कला, तेरे पहाणे सर्वद दा भला "

Offline Pratap Nr.Mishra

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  • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू

पियागोलुजी  साईं राम

बहुत -बहुत धन्यबाद आपके प्रशंसनीय और उत्शावर्धक शब्दों  के लिए.

बाबा  और बच्ची के बीच का जो प्रशंग आपने फिर से स्मरण करवाया है उसके लिए
आपको बहुत-बहुत शुक्रिया . ऐसे ही बाबा के विचारो से हमलोगों को  सदा नवाजा
करियेगा जिससे साईं विचारों  का सही मुलायंकन और उसके महत्व की विशेस्ताओ
से हमलोग रूबरू हो सके.


Offline PiyaSoni

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  • ੴ ਸਤਿ ਨਾਮੁ
साईं के शिक्षा संदेश:

1- सबका मालिक एक साईं बाबा की सबसे बड़ी शिक्षा और सन्देश जाति, धर्म, समुदाय आदि व्यर्थ की बातों में न पड़ कर आपस में प्रेम और सदभावना से रहना है क्यों कि सबका मालिक एक है

2- श्रद्धा और सबूरी...साईं बाबा ने कहा है कि हमेशा श्रद्धा, विश्वास और सब्र के साथ जीवन गुजारें।

3- मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है।

4-गरीबों और लाचारों की मदद करना सबसे बड़ी पूजा है।

5- माता-पिता और बुर्जुगों का सम्मान करना चाहिए।

साईं समर्थ.......श्रद्धा सबुरी 

"नानक नाम चढदी कला, तेरे पहाणे सर्वद दा भला "

Offline vishwanath69

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  • OM SAI NATHAYA NAMO NAMAHA
OM SAI RAM

Dear Mishra ji,

On the eve of this guru parv whilst attempting to read your poetry I will be engaged in a medical camp for the poor.

Thank You Mishra sir for your query. Baba enlighten all of us.

SABKA MALLIK EK
Vishwanath

Offline Pratap Nr.Mishra

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  • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
True Example Of A Sai Servant (Sewak)
« Reply #5 on: July 11, 2011, 11:47:08 AM »
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  • Vishwanathji Jai Sai Ram,

    You are really doing a wonderful work on the eve of Guru Parv by serving the poor people. Hats off to you.
    Sir,there is no great tribute other than this to baba on this occasion.  I don't have any word  to praise
    you for this wonderful work. Only i can say it's a beyond the appreciation . I mean to say It's a priceless

    Sir i am also missing a lot this occasion buz  i am out of the country now. but my wife & my kid arrange
    EK Diwasiye Shri Sai Satcharit Parayan ( Completion of Shri Sai Satcharit in a day )in Sai temple on Guru Parv.


    Baba is with you so you are doing this wonderful work.

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    True Example Of A Sai Servant (Sewak)
    « Reply #6 on: July 11, 2011, 01:19:11 PM »
  • Publish



  • जय साई राम       जय साई राम         जय साई राम         जय साई राम                जय साई राम           जय साई राम              जय साई राम





    गुरु पर्व के शुभ अवसर पर
    विश्वनाथजी ने जो कार्य चुना
    बाबा के सच्चे सेवक होने का
    उन्होंने एक प्रमाण दिया

    बाबा ने हरदम ही
    दीन दुखिंयो को  पाला है
    गुरु पर्व के शुभ अवसर पर
    एक साई सेवक ने सच्ची सेवा का मन बना डाला है

    करता हूँ सलाम मे उनको
    बाबा के वचनों को उन्होंने जाना है
    करके दीन दुखिंयो की सेवा
    बाबा को अपना बना डाला है

    क्यों न हमसब भी कुछ इससे शिक्षा ले
    बाबा से कुछ नेकी करने की भिक्षा ले
    हमसब भी कोई एक ऐसा काम करे
    गुरु पर्व के शुभ अवसर पर ,साई के वचनों का ध्यान  करे

    बाबा ने दानों मे सबसे बड़ा
    अन्न दान को माना है
    गुरु पर्व के शुभ अवसर पर
    हमें दीन -दुखिंयो को भोजन करना है

    गुरु पर्व का अर्थ ही होता
    गुरु के चरणों मे कुछ अर्पण करना है
    एक  नेक  काम को करके
    एक सच्चा सेवक बनाना है .

    फटे पुराने कपड़ो मे ही
    बाबा ने अपना सारा जीवन काट दिया
    सोये ईट का तकिया बनाके
    सच्चाई ओर सादगी का विस्तार किया

    बाबा को जानना है तो पहले
    बाबा की(शिक्षा) को जानना होगा
    माया के चक्कर मे न पडके
    सच्चाई ओर सादगी को अपनाना होगा .

    आओ इस गुरु पर मे
    बाबा की शिक्षाओ का मनन करे
    राग देव्ष मद लोभ मोह का
    हम सब भी अपने मन से दमन करे
     

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    परमात्मा की प्राप्ति में सबसे बड़ी बाधा है ‘मैं’ का भाव

    स्रोत : श्रीमान विजयशंकर  मेहता और श्रीमान गोपाल किशन


    श्री साई सत्चरित मे बाबा ने सदा ही इस "मैं " को उनके और मनुष्य के बीच का अवरोधक कहा है. "मैं " के त्यागने के उपरांत ही  सभी को  बाबा के चरणों मे स्थान मिलता है ."मैं "वो एक अदृश्य दोधारी  तलवार है जो धीरे-धीरे इंसान के सगुणत्व को कटती  रहती है और इंसान को  पतन  की और ले जाती है,इसके साथ -साथ ये दुसरे को भी हानि पहुंचती है.

    हमारे आगे-पीछे क्या घटता है, इससे ज्यादा जरूरी यह है कि हमारे  भीतर क्या घटता है? हम जब अपने  भीतर उतरेंगे तो हमारी मुलाकात हमारे ही ‘मैं’ से होगी। परमात्मा प्राप्ति में सबसे बड़ी बाधा  ‘मैं’  होती है। यह  ‘मैं’  बड़े सूक्ष्म तरीके से काम करता है। गौर से देखेंगे  तो पाएंगे कि ‘मैं’ का संसार ही अलग है। इस  ‘मैं’  को छोड़ना पड़ेगा। यह  ‘मैं’  हमें आग की लपटों में घिरा देता है। ये लपटें हैं - पहली, तृष्णा की लपट। जो मेरे पास नहीं है वह मेरे पास हो जाए। किसी भी तरह आ जाए। दूसरी, क्रोध की लपट।जब तृष्णा में बाधा हो तो क्रोध आता है। और तीसरी लपट है लोभ की। लोभ यानी जो मुझे मिल गया, वह मेरे पास ही रहे। इसके लिए चाहे मुझे खुद नीचे गिरना पड़े या दूसरे को गिराना पड़े। दोनों के बीच क्रोध है। इन लपटों के भीतर अहंकार पैदा होता रहता है।

    क्रोध अहंकार का भोजन है। तृष्णा अहंकार का फैलाव है। लोभ अहंकार का पैर जमाकर खड़ा हो जाना है। ये तीनों लपटें बुझ जाएं तो अहंकार भी बुझ जाएगा। जहां अहंकार बुझा, वहां शून्य पैदा होगा और उसी शून्य में परमात्मा अवतरित होगा। इसलिए जब आप अकारण और अत्यधिक क्रोधित हो रहे हों तो अपने भीतर उतरकर ‘मैं’ को ढूंढ़िए। ‘मैं’ पकड़ में आएगा तो अहंकार पकड़ में आ जाएगा। दोनों को जैसे-जैसे गलाएंगे, क्रोध शांत होने लगेगा। इसलिए परमात्मा की यात्रा में अपने भीतर उतरकर ऐसे प्रयोग करने पड़ेंगे।



    जय श्री साईं राम                                                सब का मालिक एक                                                          जय श्री साईं राम    
    « Last Edit: July 20, 2011, 02:13:37 PM by Pratap Nr.Mishra »

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
       

     जय साई राम        जय साई राम       जय साई राम         जय साई राम    जय साई राम           जय साई राम    जय साई राम  जय साई राम

    बाबा की शिक्षा और उसका महत्व

    स्रोत : आध्यात्म का महत्व और प्रेणना


    बाबा अनंतराम परोपकारी और सेवाभावी संत थे | लोग उन्हें श्रद्धापूर्वक चढ़ावा चढ़ाया करते थे |
    हालांकि उन्होंने श्रद्धालुओं को मना भी किया पर वे नहीं मानें | बाबा उस चढ़ावे का समाजसेवा
    के लिये प्रयोग करने लगे | एक दिन एक सेठ असंख्य हीरे -मोती उनके चरणों मे रखते हुए बोला ,
    'बाबा,यह भेट मेरी ओर से स्वीकार करें | ' बाबा ने उन हीरे-मोतियों की ओर देखा तक नहीं ओर श्रद्धालुओं
    की समस्या का निवारण करते रहें | यह देखकर सेठ को क्रोध आ गया | वह बडबडाते हुए बोला ,'यह बाबा
    तो ढोंगी किस्म का मालूम होता है | हीरे-मोतियों को देखा तक नहीं लेकिन मेरे जाते ही उन पर ऐसे टूटेगा
    जैसे कुछ देखा ही नहीं | ' बाबा ने सेठ की बात सुन ली | उन्होंने बस इतना ही कहा, सेठजी आप कल आईएगा,
    कल आपको जवाब मिल जाएगा |' अगले दिन सेठ वहा फल व मिठाइयाँ लेकर पहुंचा तो बाबा अनंतराम हर पल
    उसकी लाई मिठाइयों ओर फल को ही देखते रहे | यह देखकर सेठ के आश्चर्य का ठिकाना न रहा | वह धीरे से
    बोला, 'अजीब बात है, कल मैं महंगे हीरे-मोती लाया तो उन्हें देखा तक नहीं ओर मिठाइयों ओर फल पर ऐसी
    नजर है जैसे आजतक कुछ देखा ही नहीं |' बाबा बोले, ' सेठजी,लोभी मनुष्य दूसरों को भी अपने जैसा ही समझता
    है | कल मेने आपके हीरे-मोती नहीं देखे तब भी आपने मुझे लोभी ठहराया और आज मामूली मिठाई व फल देखने
    पर भी लालची कहा | मैं तो एक मामूली संत हूँ | हीरे-मोती, फल,मिठाई से मुझे कुछ लेना -देना नहीं है |मैं तो
    बस समाज का दुःख दूर करने में ही अपना जीवन सार्थक समझता हूँ | आप जैसे लोगों के लाए धन से विधालय,
    आश्रम चल रहें हैं | असंख्य निर्धन कन्याओं के विवाह में भी आप ही लोगों का धन लगा है | मैं तो बस इन स्थानों
    पर आपका धन पहुँचाने का एक माध्यम मात्र हूँ |' यह सुनकर सेठ की आँखे शर्म से झुक गई |

    जय श्री साईं राम                                      सब का मालिक एक                                        जय श्री साईं राम
    « Last Edit: July 20, 2011, 02:31:45 PM by Pratap Nr.Mishra »

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    जय साई राम        जय साई राम       जय साई राम         जय साई राम    जय साई राम           जय साई राम    जय साई राम  जय साई राम

    जानिए किसका कैसा अंजाम होता है ?

    स्रोत : धर्म डेस्क. उज्जैन


    कहते हैं सभी को अपने कर्मों का परिणाम भुगतना पड़ता है। कई बार तो इस जन्म के कर्मों का हिसाब यहीं चुक्ता हो जाता है। पिछले कर्मों ने ही आज की परिस्थितियों का निर्माण किया है तथा आज किये जा रहे कर्म ही इंसान का भविष्य गढ़ते हैं। कर्मों के परिणाम से आज तक कोई भी बच नहीं पाया है।


    एक बार देवमुनि नारदजी पृथ्वी भ्रमण के लिये आए। उन्हें एक बेहद गरीब व्यक्ति मिला जिसे पेट भरने लायक खाना भी नसीब नहीं हो रहा था। दूसरी तरफ बहुत अमीर व्यक्ति मिला जिससे अपनी दौलत संभालते भी नहीं बन रहा था। अमीर होकर भी वह अंशात था, उसे हर समय यही चिंता रहती कि कोई उसका नुकसान न कर दे। दौलत को और ज्यादा बढ़ाने की उधेड़-बुन में ही वह रात-दिन चिंतित रहता था।

    नारदजी और आगे बढ़े तो उन्हें कुछ बनावटी व ढ़ोंगी साधुओं की मंडली मिली। उन्होंने नारदजी को पहचानकर घेर लिया और बोले- ''स्वर्ग में अकेले मजे करते हो! हम भी भगवान की पूजा-पाठ करते हैं, हमारे लिये भी स्वर्ग जैसे ठाट-बाट की व्यवस्था करो वरना चिमटे मार-मार कर हालत खराब कर देंगे। नारदजी जैसे-तैसे उनसे अपनी जान छुड़ाकर वहां से भागे और सीधे भगवान के पास पहुंचकर अपना हाल सुनाया। भगवान नारायण हंसे और बोले- '' देखो नारद! मैं हर मनुष्य को उसके कर्मों के अनुसार ही फल देता हूं। मेरे मन में आस्तिक और नास्तिक का भी भेद नहीं है। तुम अगली बार पृथ्वी पर जाओ तो उस गरीब आदमी से कहना कि - वह उपनी गरीबी से लड़े तथा खूब मेहनत और पुरुषार्थ करे, मैं निश्चित रूप से उसे सारे दुखों और गरीबी से मुक्त कर दूंगा।

    उस अमीर व्यक्ति से कहना कि- इतनी सारी धन-दौलत तुम्हें समाज की भलाई में खर्च करने के लिये मिली है, उसे अच्छे कार्यो में लगाए ऐसा करने पर उसे भौतिक सुख-सुविधाओं के साथ-साथ मानसिक शांति और परमानंद की प्रसाद भी मिल जाएगी।

    ...और उन झूठे साधुओं की मंडली से कहना कि- त्यागी, धार्मिक और सज्जनों का वेश बनाकर अपने स्वार्थों को पूरा करने की फिराक में रहने वाले आलसियों तुम्हारी हर हाल में दुर्गति होगी। तुम्हें नर्क जैसे निकृष्टतम स्थानों पर अनंतकाल तक रहना पड़ेगा।












    « Last Edit: July 21, 2011, 02:26:42 PM by Pratap Nr.Mishra »

    Offline PiyaSoni

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    • ੴ ਸਤਿ ਨਾਮੁ
    OmSaiRam Pratap Ji

    Thankyu for sharing with us this , Sach kaha hai hume apne karmo ka bhuktan to karna he padta hai chahe iss janam chahe agle janam ...aur waqt hamesha ek jaisa nai rehta isliye jo karo soch samjh kar karo ....

    Woh kaam karo jisse dusro ki bhalye ho , woh nai jo dusro ke dukh ka karan bane......

    Pls keep on posting such a nice stories....

    Sai Samarth.........Shraddha saburi
    "नानक नाम चढदी कला, तेरे पहाणे सर्वद दा भला "

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    ॐ  श्री  साईनाथाय: नमः :

    क्या है  सबसे बड़ा त्याग या पूर्ण आत्म बलिदान  ?

    श्रोत : अंग्रेजी से हिंदी मे अनुवादित

    निवेदन  : अंग्रेजी से हिंदी मे अनुवादित करते वक्त ये सम्भव है की मुझसे आपार गलतियाँ  हुई होंगी ,इसलिए पूर्व ही माफ़ी की दरखास्त करता हूँ .

    पूर्ण आत्म बलिदान  क्या है इसे एक लघु  प्रेणनादायक  कहानी के माध्यम से दर्शाने की कोशिस की जा रही है .............................. ......

    महाभारत के युद्ध के समाप्ति के पश्च्यात पाण्डवो ने एक विशाल समारोह  का  आयोजन किया और  अपने  महान त्याग को दर्शाने का प्रदर्शन भी किया एवंग गरीबों को बहुत ही कीमती से कीमती उपहार भेट किये. सभी व्यक्तिओ ने बहुत ही विश्मयता  के साथ् पाण्डवो की  महानता और  समृद्धि की प्रशंसा की और कहा की ऐसा न कभी संसार मे हुआ है न ही कभी होगा. लेकिल समारोह समाप्ति के कुछ  क्षण पहले एक छोटा सा नेवला आया जिसका आधा शारीर का हिस्सा सोने का था ओर आधा हिस्सा भुरा था। वह् समारोह स्थल मे जमीन पेर  एक तरफ़् से दुसरी तरफ़् लोटने मे लगा हुआ था.

    वो विस्मय से पाण्डवो को केहने लग की आप सबलोग सबसे बडे मिथ्यावादी हो,यह कोइ त्याग य बलिदान थोडे ही  है ।

    पाण्डवो ने आस्चर्य्चकित हो के कहा की क्या केहते हो । तुमेः क्या मालुम है की कितने बेसकिमति हिरे,मोती,सोने,चांदी ओर न जाने कितनी अमूल्य चिज़े यहा गरिबो को दान मे दी गयी हैं । सभी गरिब् बहुत ही खुस हैं ओर सभी बहुत धन्वान् बन गये हैं। ये दुनिय का सबसे बडा ओर सबसे सफ़ल् त्याग का महा समारोह है।

    नेवला मानने को तैयार नही था ओर पाण्डव उसको मनवाने की बहुत ही कोशिस कर रहे थे। आखिर पाण्डव ने इस कथन का  प्रमाण देने को कहा।

    तब् नेवले ने अपने कथन की पुष्टि एक छोटी सी कहिनी बतलाकार पाण्डवो को समझाई.................................

    एक  गांव  मे एक निर्धन गरिब् ब्रह्मन् अपनी पत्नी,बेटे ओर बहु के साथ् रेह्ता था। वह् उपदेश ओर शिक्षा बाटके जो धन संग्रह करता था उसी से उसके परिवार् का भरन -पोषन हो रहा था . अभग्यवस लगातार तीन वर्षो तक उस गांव  मे  आकाल पडा ओर गरिब् ब्रह्मन् की हालत पेहले से भी अधिक खराब् हो गयी । लगातार  कई दिनो तक परिवार् भूखे  रेहने के बाद गरिब् ब्रह्मन् कुछ जौ का आटा घर लाने मे सक्षम हो गया ओर उसने चार सामान -सामान हिस्सो मे उसको बाट दिया ओर सबको उनका हिस्सा दे दिया । सभी ने उससे भोजन बनाया ओर जैसे ही वो भोजन ग्रेहन करने के लिये जानेवाले ही थे की दरवाजे पर किसी को दस्तक देते सुना ।

    पिता  ने दरवाजा खोला ओर पाया की एक व्यक्ति बहुत ही थका हारा हुआ सामने खडा हुआ है । हमारे भारत देश मे आथिति को भगवान  समझा जाता  है। इसलिये ब्रह्मन् ने बडे ही आदर के साथ् अन्दर आके आसन ग्रहन करने को कहा । आथिति घर से भूखा  लौट जाये ये पाप होगा सोचकर ब्रह्मन् ने आपने हिस्से का भोजन आथिति को खाने को दिया । आथिति ने शिग्रःता से भोजन खतम कर दिया ओर कहने लगा कि महोदय आपने तो मुज्हे मार ही दिया । मै दस दिनो से भूखा हु ओर इतन कं भोजन देकर आपने मेरी भूख ओर बडा दी। ब्रह्मन् कि पत्नी ने कहा कि आप मेरा हिस्सा आथिति  को भोजन के लिये देदे । ब्रह्मन् ने कहा की एसा नही हो सकता। पत्नी ने अपने पति को कहा की गृहस्वामियों होने के नाते इस गरीब को भोजन देना हमारा कर्तव् है और आपकी पत्नी होने के नाते जा मै देख रही हूँ कि आपना भोजन देने के बाद आपके पास और कुछ देने को नहीं है तो पत्नी का कर्तव् निभाते हुये मै अपना भोजन इस गरीब को देती हूँ . अथिति भोजन समाप्त करने के बाद फिर से कहता है कि इससे मेरी भूख और भी बढ गई .तब बेटे ने अपने हिस्से का भोजन देते हुये
    अथिति को कहा कि आप ये ग्रहण करें क्योकि बेटे का फ़र्ज़ होता है कि पिता के कर्तवो का निर्वाह करे. अतिथि ने उसे भी  खाने के पश्च्यात कहा कि मुझे अभी भी संतुष्टि नहीं मिली . बहू ने  भी अपना हिस्सा का भोजन भी अथिति को दे दिया. भोजन करने के बाद अतिथि बहुत ही प्रशन्य हुआ और ढेरो आशीर्वाद देकर चला गया .

    उसी रात भूख के आग्नि ने उन चारो को निगल लिया . भूख के कारण उन सबकी  मौत हो गई . कुछ जौ के दाने जमीन मे पड़े हुये थे और जैसे ही मैंने उन दानो के उपर लोटना शुरू किया. मेरा आधा सरीर सोने का हो गया ,जो आपलोग देख रहे हो . उसके बाद से मैं सम्पूर्ण संसार मे घूमता फिर रहा कि मुझे कोई ऐसा ही त्याग (बलिदान) देखनो को मिले जिससे मेरा बचा हुआ आधा सरीर भी सोने का हो सके . पांडवो की और देखते हुये उसने कहा की इसी वजह से मैं कह रहा था की ये कोई त्याग नहीं है.



    ॐ साई राम   ॐ साई राम    ॐ साई राम    ॐ साई राम    ॐ साई राम    ॐ साई राम    ॐ साई राम    ॐ साई राम    ॐ साई राम     ॐ साई राम

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    चिंता और चिंतन का क्या अंतर है?

     
    आने वाले क्षण, समय या कल के लिए याने भवष्य के लिए जो कुछ सोचा जाए, विचार जाए, योजनाये बनाई जाए, सपने देखे जाए वहा सब चिंतन व मनन है. अपने व परिवार के लिए, देश व दुनिया के लिए कुछ अच्छा करने के लिए बेहतर और बेहतर बनाने के लिए व्यक्ति भविष्य के बारे में सोचता रहता है, यह चिंतन हुआ. इससे व्यक्ति को किसी भी प्रकार का नुक्सान नहीं होता बल्कि जीवन को अधिक बेहतर बनाने के लिए मार्गदर्शन मिलता है.
     
    जब भविष्य की यही सोच-विचार, कल्पनाएँ, योजनायें व्यक्ति के तन-मन में तनाव उत्पन्न करें, तब उसी क्षण से वे चिंतन न रहकर चिंताएँ बन जाती है. चिंतन दवा व्यक्ति को भविष्य सँवारने के लिए कार्य करने की प्रेरणा मिलती रहती है. अच्छी आशाओं व अपेक्षाओं की सुखद प्राप्ति की कामना बनी रहती है जिससे कार्य करने में हिम्मत-हौंसला व बल मिलता रहता है. परन्तु कार्य करते-करते जिस क्षण व्यक्ति ने उस कार्य के निश्चित परिणाम प्राप्ति की माना , हथाग्रह या दुराग्रह किया और मन में विचार आया की कार्य का परिणाम ऐसा नहीं मिला तो सारा करा कराया बेकार जाएगा. बस असुरक्षा व असफलता का यही भाव चिंतन को चिंता में परिवर्तित कर व्यक्ति को तनावग्रस्त  बनाता है.
     
    भविष्य को सुखद बनाने के लिए जो कुछ सोचा जाए या उससके लिए कार्य किया जाए तब कुदरत को सफलता के इवेदन किया जाए. अपेक्षित कर्म फल प्राप्ति की कामना अवश्य करे परन्तु ऐसा ही फल मिले नहीं तो.......सोचकर अपने कार्य की गति में बाधा न डाले, तानाव्ग्रथ या चिताग्रस्थ न बने. मर्जी आपकी है की चिंता और चिंतन  के भेद को जानो-मानो या न मानो.

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू



    ॐ साईं राम

    दृढ संकल्प और उसकी उपयोगिता

    एक बार एक नन्ही सी गौरैया ने समुद्र  के किनारे अपने अंडे दिये,किन्तु विशाल समुद्र उन्हें अपनी लहरों में लपेट ले गया. इसपर गौरैया अत्यंत क्रोधित हुई और उसने समुद्र को अंडे लौटा देने के लिए कहा. किन्तु समुद्र ने उसकी प्राथना पर कोई ध्यान नहीं दिया . अतः उसने समुद्र को सुखा डालने की ठान ली. वह अपनी नन्ही सी चोच से पानी उलेचने लगी. सभी उसके इस  असम्भव संकल्प का उपहास करने लगे. उसके इस कार्य की सर्वत्र चर्चा चलने लगी और अंत में भगवान विष्णु के विराट वाहन पक्षिराज गरुण ने ये बात सुनी. उन्हें अपनी इस नन्ही पक्षी बहिन पर दया आई और वो गौरैये से मिलने आये . गरुण उस नन्ही सी गौरैये के दृढ निश्चय से बहुत प्रसन्न हुये और उन्होंने उसी सहायता करने का वचन दिया . गरुण ने तुरंत समुद्र से कहा कि वह उसके अंडे लौटा दे, नहीं तो उसे स्वयं आगे आना पड़ेगा. इससे समुद्र भयभीत हुआ और उसने अंडे लौटा दिये. वह गौरैया गरुण कि कृपा से सुखी हो गई.

    सरांस : साईंभावनामृत में भक्तियोग अत्यंत दुष्कर प्रतीत हो सकता है, किन्तु जो दृढ संकल्प के साथ नियमो का पालन करता है , भगवान निश्चित रूप से उसकी सहायता करते है, क्योकि जो अपनी सहायता आप करते है भगवान उनकी सहायता करते है.


    ॐ साईं राम

    Offline saib

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    Re: निष्ठा ओर श्रधा का महत्व
    « Reply #14 on: January 02, 2012, 09:15:26 AM »
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  • जो दृढ संकल्प के साथ नियमो का पालन करता है , भगवान निश्चित रूप से उसकी सहायता करते है, क्योकि जो अपनी सहायता आप करते है भगवान उनकी सहायता करते है.

    सत्य कहा प्रताप जी . जीवन मे संकल्प के आभाव मे ही कई मनुष्य धार्मिक मार्ग का अनुसरण नहीं कर पाते, उदहारण के लिए नए वर्ष पर लाखों मनुष्य मांसाहार भोजन का त्याग कर सात्विक भोजन और जीवन को अपनाने का प्रण लेते है, पर अधिकांश कुछ दिनों और महीनो मे ही पुरानी जीवन शैली मे लौट आते है पर जो संकल्प सहित अपने मार्ग पर अगर्सर रहते है वोह अवश्य ही एक दिन सफलता प्राप्त करते है, क्योंकि स्वम भगवान उनकी संकल्प पूर्ति मे मदद करते है !

    अंत मे धन्यवाद प्रताप जी प्रेरणादायक तथा मार्गदर्शक लेखों और कथाओं के संकलन और प्रस्तुतीकरण के लिए ! :)

    ॐ श्री साईं राम !
    om sai ram!
    Anant Koti Brahmand Nayak Raja Dhi Raj Yogi Raj, Para Brahma Shri Sachidanand Satguru Sri Sai Nath Maharaj !
    Budhihin Tanu Janike, Sumiro Pavan Kumar, Bal Budhi Vidhya Dehu Mohe, Harahu Kalesa Vikar !
    ........................  बाकी सब तो सपने है, बस साईं ही तेरे अपने है, साईं ही तेरे अपने है, साईं ही तेरे अपने है !!

     


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