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Author Topic: रमेश रमनानीजी के लेखों का पुनः विमोचन और सम्मान  (Read 29457 times)

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Offline Pratap Nr.Mishra

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  • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू




ॐ साईं नाथाय नमः

फोरम की सदस्यता ग्रहण करने के पश्च्यात ही मैं फोरम के हर विभागों में जाके नई और पुराने लेखो को पढने का प्रयास करता रहता हूँ . ये कहना अतिस्योक्तिपूर्ण नहीं होगा  की इस फोरम से जुड़ने के पश्च्यात ही मुझे बाबा और उनके विचारो एवंग वचनों के करीब आने का मोका मिला..हर पोस्टो को पड़ने की जिज्ञासा की वजह से ही मै श्रीमान रमेश रमनानीजी की पोस्टो से रूबरू हुआ सका  . उनके  पोस्टो को पड़ने के पश्च्यात ये तो मै भालीभात समझ गया की ये एक सच और सही सोच के साथ ही साथ गहराई तक का ज्ञान रखते है पर आश्चर्य इस बात से रहा की लम्बे अंतराल तक उन्होंने इस फोरम में कोई नया लेख नहीं पोस्ट किया .मुझे केवल उनके पुराने पोस्टो ही पढने का अवसर प्राप्त हुए. शायद ये भी सम्भव हो की मै अभी तक उनकी नई पोस्टो को देख ही न पाया हूँगा . आज फिर उनके लेखो ,लघु कविताओ और टिप्पणियों  को फिर से पढ़ते समय एक विचार मन में आया कि क्यों न मै इस फोरम में इनकी सभी पोस्टो को एक जगह एकत्रित कर फिर से साईं प्रेमियों के समक्ष पेश करूँ . जिस आनंद की अनुभूति और ज्ञान का एहसास मुझे होता है रमेशजी के पोस्टो को पढने के उपरांत तो क्यों न सभी साईं प्रेमिओ को भी उसी आनंद के सागर में गोते लगवाऊ. कभी किसी व्यक्ति की विशेस्ताओ का आंकलन उसकी वाणी ,लिखे गए लेखो या कोई भी सलाह एवंग छुपी हुई भावनाओ को समझने के उपरांत  किया जा सकता है और मुझे रमेश रमनानीजी एक वेसे ही व्यक्तिव वाले व्यक्ति लगे.

बाबा से अनुमति की प्राथना कर श्रीमान रमेश रमनानीजी  को उनकी सुंदर और ज्ञानवर्धक और बेवाक  पोस्टो को सम्मानित करने का एक प्रयास आरम्भ करता हूँ . और भविष्य में उनके द्वारा कही गई गूढ़ बातो पर भी प्रकाश डालने का कष्ट भी अवश्य करना चाहूँगा  एवंग अन्य साईं प्रेमिओ से भी अनुरोध करूँगा की वो भी कष्ट अवश्य करें ..

इस फोरम के ज्ञान के भंडार में ऐसी कई सी ज्ञान की बातो का भंडार भरा पड़ा हुआ है केवल हम साईं प्रेमिओ को उसे खंगालना होगा और वहाँ से लेकर आना होगा .

साईं राम

Offline Pratap Nr.Mishra

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जय सांई राम।।।

पाप से नफरत कर पापी से प्यार......तेजल बहुत खूब कही.....शाबास।

मत देख कि कोई शख्स गुनहगार कितना है...
ये देख कि तेरे साथ व़फादार कितना है...
ये मत सोच कि उससे कुछ लोगों से नफरत भी है...
ये दें कि उसको तुझ से प्यार कितना है!

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

ॐ सांई राम।।।

JAI SAI RAM!!!

Accept your lot cheerfully. If you acquire wealth, become humble the way a tree laden with fruit bows down. Money is a necessity but don't get obsessed with it. Yet, don't be a miser, be generous.


OM SAI RAM!!!

जय सांई राम।।।

शाम एक फकीर गा रहा था,
दर्दो-ग़म मुझको दे दे अल्लाह !

पास ही चलती थी एक प्रार्थना,
ये दर्दो-ग़म कब तक अल्लाह !

और मैं बेठा सोच रहा था,
अजीब है ये दुनीया वाह अल्लाह !

वाह मेरे मौला सांई !

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

ॐ सांई राम।।।

जय सांई राम।।।

चुग़ली
*-*-*

एक आदमी एक दिन किसी समझदार आदमी के सामने चुगली कर रहा था. उसने कहा “तुम मेरे सामने दूसरों की बुराई कर रहे हो. यह अच्छी बात नहीं है. यह ठीक है कि जिसकी बुराई तुम मुझे बता रहे हो, उसके बारे में मेरे मन में विचार खराब हो जाएंगे, परंतु तुम्हारे बारे में भी मेरे विचार खराब हो जाएंगे. मैं सोचने लग गया हूँ कि तुम भी अच्छे आदमी नहीं हो.”

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

ॐ सांई राम।।।

जय सांई राम।।।

अरब के लोगों में हातिमताई अपनी उदारता के लिए दूर-दूर तक मशहूर था। वह सबको खुले हाथों दान देता था। एक बार उसने एक बड़ी दावत दी। इसमें कोई भी शामिल हो सकता था। हातिमताई कुछ सरदारों को लेकर दूर के मेहमानों को बुलावा देने चला। रास्ते में उसने एक लकड़हारे को देखा, जो सिर पर लकड़ियां उठाए चला जा रहा था।

हातिमताई ने उससे कहा, 'ओ भाई! जब हातिमताई दावत दे रहा है तो उसमें क्यों नहीं शरीक हो जाते? तुम्हें इतनी मेहनत भी नहीं करनी पड़ेगी।' लकड़हारे ने जवाब दिया, 'जो खुद अपनी रोटी कमाते हैं, उन्हें हातिमताई की मदद की जरूरत नहीं होती।' हातिमताई अवाक रह गया।

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

ॐ सांई राम।।।




जय सांई राम।।।

शुक्रिया आपकी पसन्दज़गी का।  बाबा सबको ऐसी समझ दे कि हर कोई बाबा को वैसे ही समझे जैसा 'वो' समझाना चाहते है।

जैसे सूरज की गर्मी से तपते हुए तन को मिल जाये तरुवर की छाया
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है मै जब से शरण् तेरी आया, मेरे सांई राम।

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

ॐ सांई राम।।।


Offline Pratap Nr.Mishra

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  • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू


जय सांई राम।।।

एक ऋषि भोजन करने बैठे थे कि एक याचक ने आकर भोजन की मांग की। खाना पर्याप्त न होने के कारण ऋषि ने साफ मना कर दिया। याचक बोला, 'भोजन न कराएं, पर यह तो बताएं कि आप किस देवता की उपासना करते हैं?' ऋषि बोले, 'मैं प्राण की उपासना करता हूं।' याचक ने पूछा, 'यह प्राण क्या है और आप उसकी कैसे उपासना करते हैं?' ऋषि बोले, 'प्राण तो सर्वव्यापक है। वह सब में विराजमान है। हम इसी इष्टदेव के लिए सब कुछ करते हैं।'

याचक बोला, 'आपके कथनानुसार तो आपका इष्टदेव मेरे अंदर भी विद्यमान है और वही आज आपके समक्ष आहार-याचक बनकर खड़ा है। फिर आप अपने उपास्य की अवमानना क्यों कर रहे हैं?' ऋषि को अपनी भूल का एहसास हुआ। वे बोले, 'आओ, हम मिलकर भोजन करें। तुम्हीं मेरे इष्टदेव हो।'

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

ॐ सांई राम।।।
ॐ सांई राम।।।

तेजल मैं यह जान गया हूँ कि तुम एक बहुत होनहार बच्ची हो।  मैं चाहूँगा कि तुम जो लिखती हो उस पर अमल करना भी सदा ध्यान में रखना। तभी तुम्हारा लिखना फलित होगा। बड़ों की तरह कापी पेस्ट करने तक ही सीमित मत रहना! समझो, जानो और अमल करना सीखो फिर यहाँ पोस्ट करना। नही तो उन बड़ों और तुममे कोई फर्क नही रह जायेगा जो समय की परीक्षा के वक्त अपनी समस्याओं के सामने अपने घुटने टेक देते है।

सलाम है उन माता पिता को जिनकी तुम सन्तान हो। मै चाहूंगा कि मेरे दूसरे और भी भाई बहन अपने बच्चों को यहां आने के लिये प्रेरित करें।

अपना साई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

ॐ सांई राम।।।

JAI SAI RAM!!!

In true love the smallest distance is too great, and the greatest distance can be bridged.

OM SAI RAM!!!
जय सांई राम

आशा और निराशा... यह दो शब्द किसी भी इंसान की जिंदगी में ताउम्र साथ नहीं छोड़ते हैं। कभी आप आशावान होते हैं तो कभी आप पर निराशा की काली घटा छा जाती है। हर व्यक्ति अपने जीवन में सफल होना चाहता है, आपमें से न जाने कितने ऐसे होंगे जो सफलता प्राप्त करने के लिये जी-तोड़ मेहनत कर रहे होंगे... आप अपनी असफलता और निराशा को भुलाकर अपने अन्दर आसमां छूने की ख्वाहिश रखते हैं... तो स्वागत है छू लो आसमां को ...

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई
ॐ सांई राम।।।


JAI SAI RAM!!!

"Never Believe what the lines of your hand predict about your future, because people who dont have hands also have a future...Believe in yourself"

OM SAI RAM!!!

JAI SAI RAM!!!

When a simpleton abused him, Buddha listened to him in silence, but when the man had finished, asked him, "Son, if a man declined to accept a present offered to him, to whom would it belong?"  The man answered, "To him who offered it".  "My son", Buddha said, " I decline to accept your abuse.  Keep it for yourself:. 

OM SAI RAM!!!

Offline Pratap Nr.Mishra

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JAI SAI RAM!!!

Too many times we forget what we have and concentrate on what we don't have. What is one person's worthless object is another's prize possession. It is all based on one's perspective. Makes you wonder what would happen if we all gave thanks for all the bounty we have, instead of worrying about wanting more. Take joy in all you have, especially your family and friends.

OM SAI RAM!!!
जय सांई राम।।।

खुशी

बहुत सी खुशियों में छिपी,
अनदेखी, अनजानी सी खुशी जब,
अचानक मिल जाती है,
तब हर जगह हर पल,
बस खुशी ही खुशी नज़र आती है।

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

ॐ सांई राम।।।


JAI SAI RAM!!!

Life without love is like a tree without blossoms or fruit.

OM SAI RAM!!!
जय सांई राम

थोड़े-से सुख, थोड़े-से दुख, थोड़े सपने थोड़ी आशा!
इनसे ही बनता है जीवन, ये ही जीवन की परिभाषा!!

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई
ॐ सांई राम।।।
जय सांई राम

थोथा
 
जो अगर कोई सोचता हो कि उसने बहुत सारी पोथियाँ पढ़ रखी हैं, और बहुत सारे मुल्क देखे है,  और आलिमों-फकीरों की सोहबत में बहुत सारी हिकमत सीख चुके हैं तो उन्हे सबसे पहले अपने ही दिल के भीतर झाँकना होगा और देखना होगा कि क्या वहाँ शांति है। अगर जो तुम्हें इस बात का गुमान हो कि तुम बहुत पहुँचे हुए ज्ञानी हो तो फिर अपने ही मन की ओर देखो कि क्या कभी दूसरों का सुख देख कर उसमें ईर्ष्या पैदा होती है। कभी दूसरों के जूतों के पास बैठ कर तुम्हें अपमान का बोध होता है या दूसरों की नाजायज हरकत देख कर ही सही, क्या तुम्हें गुस्सा आता है? तो फिर ऐसे ज्ञान और सिद्धि का क्या फायदा, क्योंकि बिल्कुल ठीक ऐसा ही उस शख्स के साथ भी होता है जिसने न कोई तालीम पाई, जो न कहीं घूमने निकला और जिसे न किसी ने धर्म की राह दिखाई। ऐसा ज्ञान थोथा है और सिर्फ हमारे-तुम्हारे अहंकार को बढ़ाने वाला है। 

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

ॐ सांई राम।।।

Offline Pratap Nr.Mishra

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ॐ साईं नाथाय नमः

"तेजल मैं यह जान गया हूँ कि तुम एक बहुत होनहार बच्ची हो।  मैं चाहूँगा कि तुम जो लिखती हो उस पर अमल करना भी सदा ध्यान में रखना। तभी तुम्हारा लिखना फलित होगा। बड़ों की तरह कापी पेस्ट करने तक ही सीमित मत रहना! समझो, जानो और अमल करना सीखो फिर यहाँ पोस्ट करना। नही तो उन बड़ों और तुममे कोई फर्क नही रह जायेगा जो समय की परीक्षा के वक्त अपनी समस्याओं के सामने अपने घुटने टेक देते है।"

श्रीमान रमेश रमनानीजी  के इस वक्तव से मै पूर्णता सहमत हूँ कारण ये एक कडुवा सच है, आज के इस भोतिकवादी मानसिकता में  कथनी और करनी में कोई सामंजस ही नहीं रहा है. हमलोग केवल एक बाहरी आडम्बरो से इस कदर ग्रषित है या कहिये प्रभावित है की झूठ  का मुखोटा पहने रहने में ही अपनी शान समझते है. वास्तविकता  को जानते हुए भी केवल एक झूठी  शान ओ शौकत के लिए वास्तविकता को नजर अंदाज़ करने में ही भलाई समझते है. जो नहीं है उसको दिखने का भरसक प्रयास करते है और जो हैं उसको छिपाने में ही अपनी पूरा समर्थ लगा देते है. उपदेश या कह सकते है सलाह देना निहायत ही आसन कार्य होता है बशर्ते खुद उन्ही बातो को आत्मसात या अमल करने में .
यदा कदा मै और अन्य साईं प्रेमी बाबा के वचनों और विचारो पर काफी कुछ कह जाते है पर क्या कभी इस बारे में भी सोचते है की क्या हमलोग खुद इन वचनों और विचारो का पालन अपनी दैनिक जिन्दगी में अमल करते है  या फिर कोसिस  भी करते है ?  सही कहा है किसी ज्ञानी व्यक्ति ने की

" कहन को तो बहुत ही सारिका ,करन पे लागत है डर"

हमें किसी को भी नसीहत देने के पहले खुद को उस नसीहत पे अमल करना पड़ेगा तभी जाके हम   उसके साथ न्याय कर सकेंगे . हम सेवा की बात तो अवश्य कहते है पर करते वक्त पूर्ण निस्वार्थ का आभाव ही रहता है. हम साईं के द्वारा कहे गए वचनों को केवल साधारणता कहने तक ही सिमित रखते  है.  बाबा ने "मै" के जाल से निकलने के लिए कहा पर क्या हम उस "मै " के मायाजाल से अपने को मुक्त करने की किंचित मात्र भी कोसिस करते है ? समाज में हो या इस फोरम में सर्वथा इस "मै" ने सबको किसी न किसी रूप में अपने मजबूत चंगुल में जकड के रखा हुआ है. वास्तविकता को ठुकराने से वास्तविकता न ही समाप्त होती है नहीं ही पीछा ही छोडती  है

श्रीमान रमेश रमनानीजी को उनको कहे गए इस वास्तविक सच के लिए मै धन्यबाद  देता हूँ जिन्होंने कुछ न कहते हुए भी एक गूढ़ सच को हमारे सामने रखने का प्रयास है . छुपी ही भावनाओ से ही सही पर आपने जो  मूल्य बात कही कि बाबा को केवल जानने से ही बाबा के प्रति सम्पूर्ण समर्पण नहीं होगा जबतक की बाबा की (उनके विचारो और वचनों)  को हमलोग अपनी दैनिक जिन्दगी में पूर्णता आत्मसात नहीं करेंगे .

साईं राम   

Offline sai ji ka narad muni

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  • दाता एक साईं भिखारी सारी दुनिया
Is forum pr ladkiyo k post dekhkr to koi bhi लेख  likhna chod de, ladkiya bas apne boyfriends k liy roti rhti h ,
Baba mera banda ek mulla h meri usse shaadi karado bla bla bla....
Aise logo k liy koi kuch likhkar apna time waste q kare....
I too have wasted much time here, want to quit now.....





ॐ साईं नाथाय नमः

फोरम की सदस्यता ग्रहण करने के पश्च्यात ही मैं फोरम के हर विभागों में जाके नई और पुराने लेखो को पढने का प्रयास करता रहता हूँ . ये कहना अतिस्योक्तिपूर्ण नहीं होगा  की इस फोरम से जुड़ने के पश्च्यात ही मुझे बाबा और उनके विचारो एवंग वचनों के करीब आने का मोका मिला..हर पोस्टो को पड़ने की जिज्ञासा की वजह से ही मै श्रीमान रमेश रमनानीजी की पोस्टो से रूबरू हुआ सका  . उनके  पोस्टो को पड़ने के पश्च्यात ये तो मै भालीभात समझ गया की ये एक सच और सही सोच के साथ ही साथ गहराई तक का ज्ञान रखते है पर आश्चर्य इस बात से रहा की लम्बे अंतराल तक उन्होंने इस फोरम में कोई नया लेख नहीं पोस्ट किया .मुझे केवल उनके पुराने पोस्टो ही पढने का अवसर प्राप्त हुए. शायद ये भी सम्भव हो की मै अभी तक उनकी नई पोस्टो को देख ही न पाया हूँगा . आज फिर उनके लेखो ,लघु कविताओ और टिप्पणियों  को फिर से पढ़ते समय एक विचार मन में आया कि क्यों न मै इस फोरम में इनकी सभी पोस्टो को एक जगह एकत्रित कर फिर से साईं प्रेमियों के समक्ष पेश करूँ . जिस आनंद की अनुभूति और ज्ञान का एहसास मुझे होता है रमेशजी के पोस्टो को पढने के उपरांत तो क्यों न सभी साईं प्रेमिओ को भी उसी आनंद के सागर में गोते लगवाऊ. कभी किसी व्यक्ति की विशेस्ताओ का आंकलन उसकी वाणी ,लिखे गए लेखो या कोई भी सलाह एवंग छुपी हुई भावनाओ को समझने के उपरांत  किया जा सकता है और मुझे रमेश रमनानीजी एक वेसे ही व्यक्तिव वाले व्यक्ति लगे.

बाबा से अनुमति की प्राथना कर श्रीमान रमेश रमनानीजी  को उनकी सुंदर और ज्ञानवर्धक और बेवाक  पोस्टो को सम्मानित करने का एक प्रयास आरम्भ करता हूँ . और भविष्य में उनके द्वारा कही गई गूढ़ बातो पर भी प्रकाश डालने का कष्ट भी अवश्य करना चाहूँगा  एवंग अन्य साईं प्रेमिओ से भी अनुरोध करूँगा की वो भी कष्ट अवश्य करें ..

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साईं राम

जिस कर्म से भगवद प्रेम और भक्ति बढ़े वही सार्थक उद्योग हैं।
ॐ साईं राम

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