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Author Topic: तृतीय विश्वयुध्द की महामारी से बचानेवाले एकमात्र धन्वंतरी - मेरे साईनाथ ।  (Read 2304 times)

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Offline suneeta_k

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हरि ॐ.

ओम कृपासिंधु श्रीसाईनाथाय़ नम: ।

तृतीय विश्वयुध्द की महामारी से बचानेवाले एकमात्र धन्वंतरी - मेरे साईनाथ  ।

श्रीसाईसच्चरित में पहले ही अध्याय में हेमाडपंतजी हमें हमारे साईनाथजी ने शिरडीवासियों को कैसे महामारी के चुंगूल से बालबाल बचाया इसकी कथा सुनातें हैं । यह अध्याय पढकर हम हमारे साईनाथ दुनिया के सबसे बेहतर धन्वंतरी यानि बैद्यजी है , इसका पता चलता है । मेरे साईबाबा ने एक बार संकल्प किया की वे महामारी को शिरडी के इर्द गिर्द भी टहलने नहीं देंगे , तो बस वो संकल्प सच होनेवाला ही है । किसी भी आदमी को यह जानकर परेशानी होगी की महामारी जैसी महा भयानक, जान लेवा बीमारी बिना किसी दवाई से कैसे ठीक हो सकती है? पर मेरे साईबाबा ने गेहू का आटा पिसवाकर शिरडी की चारों  दिशाओं में लकीर बनाकर ही महामारी को रोका था । यह नामुमकीन कार्य को मुमकीन कार्य बनाना ये सिर्फ और सिर्फ मेरे साईबाबा की लीला है । इसिलिए साईबाबा के एक भक्त दासगणूजी कहते फूले नहीं समाते -
अगाध शक्ति अघटीत लीला तव सदगुरुराया । जड जीवातें भविं ताराया तू नौका सदया ।। ( अध्याय ४ )

आज हम देख रहें की सारा विश्व दर के खौफ में झुलस रहा है , मानो पूरी दुनिया में ही अशांति का माहोल बना है । इस खौंफ से, डर से हमे सिर्फ हमारे साईबाबा ही बचा सकतें हैं , यह जिसका अटूट , अडिग भरोसा रहे साईबाबा के चरणों पर , वही श्रध्दावान इस भय के दर्या से पार निकलेगा ।  उस जमाने में ना तो आज की तरह दवाईयां उपलब्ध थी, ना इतनी बडी तादात में डॉक्टर भी थे, तो कॉलरा , प्लेग , महामारी जैसी बीमारी याने जानलेवा आपत्ती ही थी । शिरडी के आसपास के देहातों में इस महामारी ने अपने पैर फैलाये थे लेकिन शिरडी में हमारे साईनाथ जो बैठे थे , और उन्होंने संकल्प किया था महामारी को शिरडी में न आने देनेका । फिर हमारे सत्यसंकल्प प्रभू का संकल्प पूरा कैसे नहीं होता?

वैसे ही आज जो सारी दुनिया पत तृतीय विश्वयुध्द के बादल भले ही मँडरा रहे हैं , पर आज भी हम साईभक्त हमारे साईबाबा को पुकारेंगे तो हमारे साईबाबा हमें बचाने के लिए जरूर दौडे चलें आयेंगे , क्यों की हमारे साईबाबा ने हमे अपने वचनों से पहले ही आश्वस्त किया है -
‘यदि यह शरीर छोड़कर मैं चला भी जाऊँ | फिर भी मैं दौड़ा चला आऊँगा भक्तों की पुकार पर ॥ "अपने इस वचन का पालन वे करते ही हैं |

पर हमारे साईनाथ ने बतलाये मार्ग पर हमें चलना होगा , हमें भी मर्यादा का पालन करने की जिम्मेवारी निभानी पडेगी, बाबा का शब्द प्रमाण मानना पडेगा , जिसकी सींख हमें पहले अध्याय की कथा में साईबाबा का हाथ बटानेवाली चार औरतें देतीं है ‘यदि यह शरीर छोड़कर मैं चला भी जाऊँ | फिर भी मैं दौड़ा चला आऊँगा भक्तों की पुकार पर ॥ अपने इस वचन का पालन वे करते ही हैं | 

साईबाबा से आज हमारे मन की महामारी से और दुनिया पर मँडरा रही तृतीय महायुध्द की महामारी से मुक्ति देने के लिए बुहार लगाना चाहिए और वो क्यों जरूरी है और कैसे अत्यावश्यक है यह मैंने जाना "श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग १८) " इस लेख से -
http://www.newscast-pratyaksha.com/hindi/shree-sai-satcharitra-adhyay1-part18-hindi/

मुझे पूरा विश्वास है की हम सब साईभक्त हमारे साईबाबा को पुकारेंगे तो वो जरूर हमारी मदद के लिए आयेंगे .... क्या आप का भी भरोसा है ?

अपनी राय एक दुसरे से बाटकर , हम साईभक्त हमारी भक्ति को जरूर बढा सकतें हैं ?   

ओम साई राम
धन्यवाद
सुनीता करंडे


 


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