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Main Section => Sai Baba Spiritual Discussion Room => Topic started by: suneeta_k on July 29, 2016, 07:17:19 AM

Title: मेरे साईबाबा का आचरण - आत्मनिर्भरता का सबक ।
Post by: suneeta_k on July 29, 2016, 07:17:19 AM
हरि ॐ

ॐ कृपासिंधु श्री साईनाथाय नम:। 


हाल ही में २६ जुलाई को कारगिल दिन मनाया गया, आज से सतरह साल पहले १९९९ में कारगिल में घुसपैठी हुई थी और हमारे जवानोंने जान की बाजी लगाकर ओपरेशन विजय में कामयाबी हासिल की थी। यह दिन हमेशा हमें आत्मनिर्भरता का पाठ उचित समय में सिखना कितना आवश्यक है इसकी याद दिलाता है।         
नेवीगेशन सिस्टम के लिए आत्मनिर्भरता किसी भी देश के लिए काफी मायने रखती है। एक रिपोर्ट के अनुसार देशी नेवीगेशन सिस्टम आम आदमी की जिंदगी को सुधारने के अलावा सैन्य गतिविधियों,  आंतरिक सुरक्षा और आतंकवाद-रोधी उपायों के रूप में यह सिस्टम बेहद उपयोगी होगा। खासकर १९९९ में सामने आई कारगिल जैसी घुसपैठ और सुरक्षा संबंधी चुनौतियों से इसके जरिये समय रहते निपटा जा सकेगा। यह बताया जाता हैं कि कारगिल घुसपैठ के समय भारत के पास ऐसा कोई सिस्टम मौजूद नहीं होने के कारण सीमा पार से होने वाले घुसपैठ को समय रहते नहीं जाना जा सका। बाद में यह चुनौती बढ़ने पर भारत ने अमेरिका से जीपीएस सिस्टम से मदद मुहैया कराने का अनुरोध किया गया था। हालांकि तब अमेरिका ने मदद मुहैया कराने से इनकार कर दिया था। उसके बाद से ही जीपीएस की तरह ही देशी नेविगेशन सेटेलाइट नेटवर्क के विकास पर जोर दिया गया, और अब भारत ने खुद इसे विकसित कर बड़ी कामयाबी हासिल की है । इसीके फलस्वरूप नेवीगेशन सिस्टम की आत्मनिर्भरता का महत्व उजागर हुआ और आज हमारा अपना भारतीय जीपीएस दुनिया में नाविक के नाम से जाना जाता है। प्रधानमंत्री मोदीजीने कहा कि सालों से मछुआरे और नाविक चांद-सितारों की गति से समुद्र में यात्राएं करते थे। यह उपग्रह उनको समर्पित है। 

इसी बात से साईबाबा के आचरण की याद आई कि कैसे हमारे सदगुरु हमें जिंदगी के जरूरी चीजोंका सबक अपने खुद के ही आचरण से देतें हैं। देखिए आदमी को कोई भी चीज पढने से या सुनने से जितनी समझ में आती है, उससे कई गुनह जादा अगर वही चीज वो किसी आदमी को अपने हाथोंसे करता हुआ दिखाई पडे तो जल्दी समझ में आती है ऐसा मेरा मानना है ।
इसी वजह से हमारे साईबाबा अपने आचरण से कोई भी बात हमें समझा देंतें थे ।

श्रीसाईसच्चरित ग्रंथ में हेमाडपंतजी पहले अध्याय में हमे साईबाबा के गेहू पिसने की कथा बतातें हैं । ऐसे तो साईबाबा के कितने सारे भक्त उस वक्त शिरडी गांव में मौजूद थे, अगर बाबा किसी भक्त से गेहू पिसकर आटा बनाकर देने के लिए कहते , तो क्या कोई भक्त नहीं देता था ? किंतु मेरे साईनाथ तो पूरी दुनिया को अपने आचरण से अच्छी बातों का सबक सिखलाने के लिए हमेशा तत्पर रहतें थें , तो भला बाबा क्यों कहेंगे किसी से अपना काम करने के लिए ? इसिलिए साईबाबा ने खुद ही गेहू पिसना शुरु किया था । वैसे भी हम देखतें हैं कि साईबाबा अपनी कफनी खुद सितें थे, चाहे ५० हो या १०० लोगोंका खाना पकाना हो तो भी साईबाबा खुद दाल, चावल , सब्जी लातें थे. नमक , मरची. तेल आदी मसाला भी खुद अपने हाथोंसे खरीदकर , पिसतें भी थें ।
यानि ये अनंत कोटी ब्रम्हांडो का राजाधिराज होकर भी अपने काम खुद करने की , आत्मनिर्भरता की सींख हमें अपने बच्चोंको खुद के आचरण से देता था ।
इसी कथा से उन्होंने हमें सिखाया की चाहे सांसरिक जिंदगी हो या अध्यात्म हो हर ईंसान को आत्मनिर्भर होना कितना जरूरी है। इसी साईबाबा के आत्मनिर्भरता के पाठ के बारे में एक लेख मैंने पढा और मेरे साईबाबा के अकारण प्यार, उनकी अनगिनत कृपा  का एक नया एहसास हुआ और मेरा साई मेरे लिए खुद कितना कष्ट उठाता था यह जानकर आंखे नम हो गयी । हमारे साई की हर एक बात हमें कोई ना कोई सींख जरूर देती है । आप साईभक्ती का , साईरस का पान यह लेख पढकर करने मत भूलिएगा ।

उस लेख में लेखकने मेरे साईबाबा की अनेक बातोंसे आज मुझे परिचीत करवाया और साईबाबा के चरणों में अधिक प्यार से मैं जुड गयी, शरणागत बन गयी । साईमहिमा का आनंद जितना उठायें उतना कम ही है , तो चलिए आनंद की ओर बढतें हैं-
http://www.newscast-pratyaksha.com/hindi/shree-sai-satcharitra-adhyay1-part38/


ओम साईराम

धन्यवाद
सुनीता करंडे