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Main Section => Sai Baba Spiritual Discussion Room => Topic started by: suneeta_k on August 18, 2016, 03:26:48 AM

Title: मेरे साईबाबा ने सिखाया - कार्य सफलता का एक महत्त्वपूर्ण राज - एकाग्रता ।
Post by: suneeta_k on August 18, 2016, 03:26:48 AM
हरि ओम

ओम कृपासिंधु श्रीसाईनाथाय नम:

मेरे साईबाबा ने सिखाया - कार्य  सफलता का एक महत्त्वपूर्ण राज - एकाग्रता ।

मेरे सदगुरु साईनाथ की हरेक कृती , हरेक क्रिया मुझे हमेशा कुछ ना कुछ सींख जरूर देतीं है , चाहे वो साईबाबा का किसी को प्यार भरी नजर से देखना हो, चाहे किसी को गुस्से से डाटना हो, चाहे किसी को कुछ भी ना कहते हुए भले ही मौन धारण करके चुपचाप अपना कार्य करना हो । अभी देखिए "श्रीसाईसच्चरित"  के ग्यारह वे अध्याय में हम  हाजीअली की कहानी पढतें हैं जिसे अपने मक्का- मदीना की हज यात्रा कर आने पर बडा घमंड था या अपने कुरान पढने पर अंहकार था, उसे साईनाथ ने पहले तो नौ महीने तक दर्शन भी नहीं दिया , बाद में शामा (माधवराव देशपांडे ) के जरीए कुछ सवाल पूंछे और तब उसके साईबाबा के पास उनके कोलंबा ( भिक्षापात्र ) से एक नेवला मांगने पर साईबाबा कितने क्रोधित हुए थे, उनका गुस्सा मानों सातवें आसमान पर था , जिसे देखकर सारे डर गए थे , किंतु फिर उसी साईनाथ ने बूढे हाजी को बुलाकर आम की टोकरी और पचपन रुपये भी दिए और प्यार से खाने पर बुलाया था ।
देव -मामलेदार पर भी साईनाथ ने ऐसा ही गुस्सा दिखलाया था और मेरी चीज (फटे कपडे का टुकडा - चिंधी ) चुरानेका इल्जाम लगाया था, गाली थी , उनपर तो मारने के लिए अपना हाथ भी उठाया था , किंतु आखिर में चाहे हाजी हो या देव-मामलेदार हो सभी का कल्याण ही किया था ।
रोज पैसे मांगने आनेवाली आठ साल की छोटी बच्ची अमनी को मेरे साईनाथ पहले तो गुस्सा करते थे कि तेरे बाप का मैं कोई कर्जदार हूं क्या पर फिर प्यार से गले लगाकर पैसे भी देते थे ।
अब पहले अध्याय में देखिए  साईबाबा खुद गेहू का आटा पिसने बैठे हैं और वो भी कैसें ? हेमाडपंतजी इसका सुंदर बखान एक ही ओवी में करतें हैं कि -
खूँटा हाथों में अच्छे से पकड कर, गर्दन नीचे झुकाकर, अपने हाथ से जाँता चलाकर साईनाथ गेहूँ पीस रहे थे, बैर का खात्मा कर रहे थे।
मेरे साईनाथ अपने खुद के आचरण से हम सीखातें हैं - ‘एकाग्रता’ (कॉन्सन्ट्रेशन) का महत्त्व,  जो कोई भी कार्य के व्यवस्था के अन्तर्गत आनेवाले , उस कार्य की सफलता के लिए एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण बात है ।
इस पंक्ति के माध्यम से हेमाडपंत हम से कहते हैं कि मेरे बाबा पूर्ण समरस होकर गेहूँ पीस रहे हैं, पूर्ण एकाग्र होकर कार्य कर रहे हैं। हमें भी इससे ‘कार्य के साथ समरस होकर एकाग्रचित्त से काम करने की दिशा प्राप्त होती है। हम सामान्य मनुष्य हैं, हमें आसानी से, झट से एकाग्रता साध्य करते नहीं बनता। कोई बात नहीं। इस साईनाथ का नाम लेते हुए मन में उनका स्मरण कर काम करते रहना चाहिए, मेरी एकाग्रता को अधिक से अधिक दृढ़ बनाने के लिए ये मन:सामर्थ्यदाता साईनाथ मेरा ध्यान रखेंगे ही।
गर्दन झुकाकर पीसने की साईनाथजी की कृति से हमें ‘एकाग्रता’ यह महत्त्वपूर्ण बात सीखनी चाहिए। जो मनुष्य कार्य को पूर्ण एकाग्रता के साथ करता है, उसे अपने आप ही वर्तमान काल में जीने की कला प्राप्त हो जाती है। कोई भी कार्य करते समय जब मैं उस कार्य के अलावा कोई दूसरी बात का विचार न करते हुए उस कार्य में पूर्ण रूप से एकाग्रचित्त होकर सक्रिय रहता हूँ, तब अपने आप ही भूतकाल-भविष्यकाल की निरर्थक बातों में बेवजह फँसे रहने से बच जाता हूँ। साथ ही कार्य को एकाग्रचित्त करते समय स़िर्फ उसी कार्य में ही ध्यान बना रहने के कारण अवास्तविक कल्पनाओं से भी मैं दूर ही रहता हूँ । भूतकाल का भूत जिस तरह मेरे सिर पर सवार नहीं रहता, उसी तरह भविष्यकाल के भय का साया भी मेरे मन पर नहीं रहता, मैं वर्तमान काल मैं ही जीता हूँ, जिस कारण मेरा कार्य भी अचूक होता है।
अवास्तविक कल्पना हमारा कितना नुकसान करती हैं यह बात हम बचपन से ही उस शेखचिल्ली की कथा से जानते हैं , खयाली पुउलाव पकाने से ना तो हमारा पेट भरता है ना हमारी भूख मिटती है । वैसे ही भविष्यकाल की खयालों में उलझए रहने से मेरी मुसीबतें और भी बढ सकतीं हैं ।
इसिलिए हमें हमारे सदगुरु साईबाबा एकाग्रता की सींख अपने आचरण से देतें है ।   

मेरे लिए मेरे साईबाबा ही मेरे साईराम है, मेरे साईश्याम है । मुझे साईबाबा की कृती में ही अर्जुन को गीता सिखानेवालें भगवान कृष्ण भी नजर आतें हैं । इस बात को बखुबी एक लेखक महोदय ने अपने एक लेख में बहुत ही सुंदरता से बयान किया हुआ , मैने पढा । मैं खुशी से फूली नहीं समाई कि लेखक भी यही बात दोहरा रहा था कि एकाग्रता हो तो ऐसी कि मेरे साईनाथ ही मेरे जीवन में हमेशा एकमेव उच्च स्थान पर विराजमान है, वो ही मेरे लिए सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है ।
इस लेख को पढकर मेरी साईभक्ती ओर गहरी होने के लिए सींख मिली । आप भी शायद अपनी साईभक्ती को अधिक मजबूत धागोंसे बांधना जरूर पसंद करेंगे , तो आईए पढतें हैं -
http://www.newscast-pratyaksha.com/hindi/shree-sai-satcharitra-adhyay1-part41/    

ओम साईराम

धन्यवाद
सुनीता करंडे