DwarkaMai - Sai Baba Forum

Main Section => Sai Baba Spiritual Discussion Room => Topic started by: suneeta_k on October 22, 2016, 07:33:04 AM

Title: साईबाबा से अपनापन कैसे निभाना ?
Post by: suneeta_k on October 22, 2016, 07:33:04 AM
हरि ओम

ओम कृपासिंधु श्रीसाईनाथाय नम:

साईबाबा से अपनापन  कैसे निभाना ?

कई दिनों से मोबाईल फोन के व्हाटसऍप (Whatsapp) के भिन्न भिन्न ग्रूपस में एक पोस्ट ( POST) पढने मिली रही थी जिस में  इक आदमी पूरे दिन में बहुत सी मुश्किलों का सामना करता है , और दिन भर की लगातार आनेवाली मुसीबतों से बहुत ही परेशान  हो उठता है ।  आखिर में उसका गुस्सा इतना बेकाबू होता है कि वो भगवान से ही इन परेशानियों की वजह पूछता है कि भगवान तूने मेरे साथ ऐसे क्यों किया ? तुमने मुझपर सुबह से लेकर रात तक इतनी मुसीबतें क्यों लायी ? क्यों मुझे परेशान किया? क्यों मैंने सोचा था या तय किया था वैसे कोई भी चीज सही तरीके से मेरे साथ क्यों हुई नहीं और फिर भगवान उस आदमी को हर किस्से में भगवान ने उसकी कैसी सहाय्यताही की थी, उसके मनसूबे भले ही नाकामयाब हुए या भले ही उसने सोचा या उसने चाहा वैसेही एक भी चीज ढंग से ना घटी , फिर भी भगवान की असीम कृपा से ही वो बाल बाल बच गया और अभी तक जिंदा हैं यह समझाया था।अर्थात वह भगवान पे आग बबूला हुआ आदमी अपनी नादानी मान लेता है और भगवान की कृपा से उसकी आंखे नम हो जाती है । यह कहानी हमें बतलाती हैं ,सीख देतीं हैं कि जो भी आदमी भगवान की भक्ति करता है , उसके चरणो में विश्वास रखता है, उस पर श्रध्दा रखता है, उसका भरोसा करता है उसे भगवान कभी भी मायूस नहीं करता, या खाली हाथ लोटाता नहीं हैं ।  हां यह बात जरूर है कि कभी कभी भगवान हम जो चाहते हैं वह हमें नहीं देतें हैं या देरी से देतें है , पर इसके पीछे भी उनका अनगिनत प्यार और कृपा ही छुपी रहती है, यह हमारा  भरोसा होना चाहिए ।
साईबाबा के ग्यारह वचनों में सबसे महत्त्वपूर्ण वचन है -
शरण मज आला आणि वाया गेला । दाखवा दाखवा ऐसा कोणी  ।

मेरे साईबाबा , हमारे साईबाबा हमेशा हमें बतातें हैं कि जो भी मेरी शरण में आता है, मेरी पनाह में आता है , उसे मैं कभी भी खाली हाथ लौटाता नहीं हूं ।
अगर हम साईबाबा की भक्ति करतें हैं और उनकी शरण में गए हैं तो हमें हमारे साईबाबा पर १०८ % भरोसा होना ही चाहिए कि भले ही दुनिया इध्दर की उधर हो जाए , हमें हमारे साईबाबा हर हालात में संभालने वाले हैं ही ।
यही विश्वास साईबाबा के भक्तों में था । श्रीसाईसच्चरित लिखनेवाले हेमाडपंतजी यही बात हमें उजागर्कर देतें हैं - चाहे वो आंखों में इलाज के लिए साईबाबा ने  बिब्बा कूट कूट कर डाला हो या मलेरीया (हिवताप) जैसे न ठीक होनेवाले बुखार के लिए लक्ष्मी मां के मंदिर के नजदीक काले कुत्ते को दही-चावल खिलाने को साईबाबा ने कहा हुआ बाला शिंपी हो या कृष्णाष्टमी का उत्सव मनाने शिरडी आए हुए काका महाजनी को तुरंत बिना उत्सव मनाए वापस उसी दिन मुंबई अपने घर लौटने की बात कही हो । ये सभी भक्त अपने आचरीत से हमें बताते है कि सदगुरु साईबाबा को कभी क्यों , कैसे , कब ऐसे सवाल पूछने ही नहीं चाहिए , जब बाबा ने बताया तो तुरंत हमें वैसे ही करना चाहिए क्यों कि वैही हमारे लिए सबसे उचित अच्छा मार्ग रहता है ।

यही बात को पहले अध्याय में भी हेमाडपंतजी ने बखुबी बताया है , इस के बारे में हाल हि मैंने एक बहुत ही सुंदर लेख पढा । इस लेख में लेखक महोदय ने  बताया कि  श्रीसाईसच्चरित के प्रथम अध्याय ‘मंगलाचरण’ में मुख्य एवं मध्यवर्ती कथानक है- बाबा के द्वारा गेहूँ पीसा जाना और लेखक बताते है कि यह केवल कथानक नहीं है, सामान्य कथा नहीं है, बल्कि वह है एक घटित होनेवाली अद्भुत घटना। ऐसी घटना जिस घटना से हेमाडपंत का संपूर्ण जीवन ही बदल गया।   इस गेहूँ पीसनेवाली घटना को देखकर जिन हेमाडपंत के मन में बाबा का चरित्र लिखने की इच्छा उत्पन्न हुई उन्हीं हेमाडपंत की भूमिका के बारे में वे हम एक नया नजरीया देतें हैं कि हेमाडपंत जब इस घटना को देखते हैं, तब उस घटना की समाप्ति पश्‍चात् भी वे बाबा से कहीं भी यह प्रश्‍न नहीं पूछते हैं कि ‘‘बाबा, अब इस आटे का आप क्या करोगे?’’ अथवा यह भी नहीं पूछते है कि ‘‘बाबा, आपने इस गेहूँ को पीसने के लिए इतनी मेहनत की और अब इसे सीमा पर डालने के लिए कह रहे हो ऐसा क्यों?’’ इस प्रकार का कोई भी प्रश्‍न हेमाडपंत बाबा से नहीं पूछते हैं। वे स्पष्टत: कहते हैं- ‘‘बाद में मैंने लोगों से पूछा। बाबा ने ऐसा क्यों किया ।

यहीं पर हेमाडपंत और एक सामान्य मनुष्य इनके बीच का अंतर बिलकुल स्पष्ट हो जाता है। हेमाडपंत के सामने साक्षात परमात्मा होने पर भी उन्होंने ‘उनसे’ प्रश्‍न नहीं पूछा। लेकिन हम वे सामने हो (किसी भी स्वरूप में) या ना हो, हमसे संबंधित यदि कोई घटना हमारे मन के विरुद्ध घटित हो जाती है कि तुरंत ही हम उनसे सबसे पहले यह प्रश्‍न पूछते हैं, ‘‘अरे भगवान, तुमने ऐसा क्यों किया?’’ तुरंत ही हमारा दूसरा प्रश्‍न भी तैयार हो जाता है, ‘‘मैं ही मिला तुम्हें ऐसा करने के लिए?’’ और कितनी बार तो मेरा जिन बातों के साथ कोई संबंध ही नहीं रहता, उन बातों के संदर्भ में भी ‘उन्हीं’ से प्रश्‍न पूछते रहता हूँ और मेरी ओर से मेरे इस ‘क्यों’रूपी पूछनेवाली वृत्ति का अंत होता ही नहीं।
लेखक जी इक बात से मैं सहमत हो गयी कि परमात्मा ने कभी यह निश्‍चय कर लिया और हर मनुष्य से उसके हर व्यवहार के बारे में, उसके हर एक कर्म के प्रति पूछना शुरू कर दिया कि ‘अरे बालक, तुमने ऐसा क्यों किया?’ तो हमारी स्थिती क्या होगी, इतना यदि हम जान भी ले तो काफी है।
परन्तु वे अकारण करुणा के महासागर कभी भी मनुष्य से ‘क्यों’ यह प्रश्‍न नहीं पूछते, उलटे उस हर एक मनुष्य के ‘क्यों’ का उत्तर उस हर एक व्यक्ति को वह व्यक्ति उसे सह सके इस कदर देते ही रहते हैं।
इसीलिए हमें भी जीवन के किसी न किसी मोड़ पर परमात्मा से प्रश्‍न पूछने कि इस मनोवृत्ति को बदलना ही चाहिए ऐसे मुझे भी लगता है ।यही बात हेमाडपंत ने जान ली थी और इसी कारण उन्होने बाबा से कभी प्रतिप्रश्न नहीं पूछा था ।
 

आरंभ बाबा का कोई न जान पाये। क्योंकि प्रथमत: कुछ भी न समझ में आये।
धीरज रखकर ही बाद में परिणाम सामने आ जाये । महिमा अपार बाबा की॥

हेमाडपंत की उपर्युक्त पंक्तियों से ही बाबा की गेहूँ पीसने की क्रिया की पहेली सुलझ जाती है। इसीलिए वे कहते हैं कि बाबा का किसी भी क्रिया के आरंभ करने के पीछे का रहस्य समझ में आ ही नहीं सकता है। लेकिन जो धैर्य रखता है उसे अवश्य ही इस कारण का पता चल जाता है।

मेरे खयाल से इस लेख की ओर सारी बातों को जानने के लिए उसे पढना ही बेहतर होगा -
http://www.newscast-pratyaksha.com/hindi/shree-sai-satcharitra-adhyay1-part50/

मैंने  साईबाबा को अपना भगवान या सदगुरु माना , तो उन्हें "क्यों " जैसे प्रश्न नहीं पूछने चाहिए , बल्कि जो कुछ भी मेरे साईबाबा करतें हैं वोही मेरे लिए उचित है इस तरह का अटूट भरोसा , विश्वास मुझे अपने साईबाबा के चरणों में रखना चाहिए । यही सही मायनो में अपनापन जताना होगा । आप अगर इस राय से सहमत है या नहीं जरूर लिखने ना  भूलना । 

ओम साईराम

धन्यवाद
सुनीता करंडे