हरि ॐ
ॐ साई राम .
श्रीसाईसच्चरित में हेमाडपंत जी ने क्षणभंगुर नश्वर मनुष्य देह के बारेमें अध्याय ८ में ओवी में लिखा है -
ऐसा अमंगल आणि नश्वर । नरदेह जरी क्षणभंगुर । तरी मंगलधाम परमेश्वर । हातीं येणार एणेंचि ।। २४ ।।
ऐशिया क्षणभंगुर नरदेहीं । पुण्यश्लोक कथावार्ताही । गेला काळचि पडे संग्रहीं । तद्विरहित तो व्यर्थ । । २७ ।।
(मराठी श्रीसाईसच्चरित मैं पढती हूं , इसलिए मराठी ओवी लिखी है )
इससे ये प्रतित होता है कि इंसान का देह भले ही नश्वर ( नाश पानेवाला) और क्षणभंगुर है किंतु भगवान , परमेश्वर जो नित है , मंगलधाम हैं , उन्हें पाने के लिए इसी नरदेह का सहारा लेना पडता है । इसिलिए जभी हम परम पावन भगवान के पुण्य श्लोकों को या कथा वार्तोओं को हम सुनतें हैं उतना ही समय हम अपने लिए अच्छा संग्रह करतें हैं ।
आपने नितांत और क्षणभंगुर इकठ्ठा किस तरह से लिखा, कृपया बताईये । परमेश्वर नित और नितांत सुंदर है और इंसान क्षणभंगुर नरदेह धारण करता है।
मेरे खयाल से नितांत और क्षणभंगुर ये दोनो एक दूसरे के विरोधी तत्व है ।
धन्यवाद
ओम साईराम