जय सांई राम।।।
मेरे भाई दीपक सबने अपने अपने मुताबिक अपनी बात कही लेकिन मैने सिर्फ वोट किया था। और मेने वोट सीधा सादा तुम्हारे ना जाने के लिये किया था। लेकिन आज मै कुछ कहना चाहता हूँ। मै समझता हूँ मेरे दोस्त जिस काम का फैसला तुम खुद कर सकते हो उस काम के लिये बाबा के सामने चिट रखकर उनको तकलीफ देने से क्या फायदा? मैने जो शिक्षा बाबा से पायी है वो यह कि बाबा माता पिता की सेवा को अग्रनीय मानते थे तो फिर इस बात को बाबा से दोबारा क्यों पूछना? और मेरे भाई पद-प्रतिष्ठा, धन-दौलत अपना कैरियर तो तुम बाद में भी बना सकते हो लेकिन माता-पिता की सेवा का मौका तुम्हे फिर कभी नही मिलेगा। मै ऐसे कई परिवारों को जानता हूँ जंहा उनकी इकलौती सन्तान विदेश जाकर कितनी मजबूर हो जाती है। इस कुचक्र से किसी का निकलना संभव नही होता। फिर भी मेरी इस बात का विदेश में बसे कई लोग इतफाक नही रखेंगे क्योकि सबके अपने अपने कारण होते है। क्योकि तुम अपने माता पिता की इकलौती सन्तान हो तो तुम्हारे लिये तो मेरा सिर्फ यही कहना है - 'नही'
जीवन की शाम में बुजर्ग माता पिता को धन दौलत की ज़रुरत नही होती बल्कि अपनो की ज़रुरत होती है। मेरी जानकारी कई ऐसे परिवारों से है लेकिन एक परिवार वो मुझे हमेशा याद रहता है कुछ समय पहले मै उनसे वृदाश्रम में मिला - पूरी जिन्दगी उन्होने बिताई अपने दोनों बच्चों को इस लायक बनाने में ताकी वो अपने पैरों पर खडे हो सकें, बिना किसी के सहारे के, बच्चे जब बड़े हुए तो बस गए सात समुन्दर पार जाके, और छोड गए अपने बूढे माँ बाप को इस वृदाश्रम में, अपने बुदापे से जूझने को .... दो साल पहले उनकी पत्नी भी उन्हें छोड कर चली गयी हमेशा के लिए इस संसार को अलविदा कहकर, अब वे बिल्कुल अकेले हैं.... शायद उन्ही के दिल की तड़प है मेरी कलम से निकली इन पक्तियों में ....
ये डूबता सूरज,
ये सूखे पत्ते,
मुझे एहसास दिलाते है पल पल,
कि मैं भी
डूब रहा हूँ,
कि मैं भी,
सूख रहा हूँ,
ये झुका बदन, ये सूखापन,
मुझे अच्छा नही लगता,
ये बुझा मन, ये सूनापन,
मुझे अच्छा नही लगता ।
खाली खाली कमरे,
लम्हे बीते गुजरे,
चश्मे के शीशों से झांकते,
चेहरे की झुर्रीयों से कांपते ,
ये चेहरा, ये दर्पण,
मुझे अच्छा नही लगता,
ये कमरा, ये आंगन,
मुझे अच्छा नही लगता ।
अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई
ॐ सांई राम।।।