|| श्री सदगुरू साईनाथाय नमः
अथ श्री साई ज्ञानेश्वरी सप्तम: अध्याय ||
'श्री साई ज्ञानेश्वरी' का सातवाँ अध्याय “श्री साई का ऐश्वर्य' है।
श्री साई ने सगुण रूप में अवतार लेकर
मानवता के हित के लिए जो कार्य किया,
वह किसी सामान्य व्यक्ति के वश की बात नहीं।
उसे सिर्फ वही कर सकता है
जिसमें अनन्त शक्ति हो, दिव्य क्षमता हो।
श्री साई की वाणी में जादू था
जिससे सत्य उद्घाटित होता था और लोक-कल्याण की धारा फूटती थी।
श्री साई की आँखों में अमृत था
जो किसी की भी आत्मा को शान्ति और तृप्ति देता था।
श्री साईं के व्यक्तित्व में एक चुम्बकीय आकर्षण था
जिसके कारण जन-जन उनकी तरफ खिंचे चले आते थे।
श्री साई सबकी भौतिक एवं आध्यात्मिक इच्छाएँ पूरी करते हैं,
वे भक्तों को भगवद्भक्ति के पथ पर अग्रसर कर देते हैं।
इंसान ईश्वर से क्या चाहता है?
इंसान की हर मनोकामना पूरी हो,
यही हर व्यक्ति ईश्वर से चाहता है।
श्री साई सगुण रूप में भी सक्रिय थे,
निराकार रूप में, आज भी सक्रिय हैं।
वे हर भक्त की करूण पुकार सुनते हैं
और तत्काल उन्हें अपनी अनुभूति देते हैं।
वे ऐसे दाता हैं
जो मुक्त-हस्त सबकी खाली झोलियाँ भर रहे हैं।
जिसका कोई सहारा नहीं,
उसका सहारा और आश्रयदाता श्री साई हैं।
व्यक्ति श्री साई की ओर एक कदम बढ़ाता है,
श्री साई उसकी ओर दस कदम बढ़ाते हैं।
श्री साई अनन्त शक्ति, ज्ञान, धन, यश, सौन्दर्य एवं त्याग-वैराग्य से संपन्न हैं|
ऐसा श्री साई का ऐश्वर्य है।
श्री साई कल्पतरू हैं, कामधेनु हैं, नौका की पतवार हैं,
सबके माँ-बाप हैं, करूणा की मूर्ति हैं,
गंगा गोदावरी की धारा हैं, ज्ञान के भास्वर सूर्य हैं,
पारसमणि हैं, कलियुग के अवतार हैं|
वे सर्वजन हिताय हैं, पुरूषोत्तम हैं, संत-शिरोमणि हैं,
सदगुरू हैं, भक्तों के विश्राम-धाम हैं।
वे असीम हैं, अनंत हैं, सर्वव्यापी हैं, सर्वज्ञ हैं,
वे सर्वश्रेष्ठ हैं, सर्वशक्तिमान हैं ।
श्री साई जन-जन का कल्याण करनेवाले हैं,
श्री साई सारे जग का उद्धार करनेवाले हैं,
ऐसा श्री साई का ऐश्वर्य है।
तो आइये, अब हम “श्री साईं ज्ञानेश्वरी' के सप्तम अध्याय
'श्री साई का ऐश्वर्य" का पारायण करते हैं।
साईं करूणा-सिंधु हैं, वैभव का आगार |
नारायण नर में बसे, कलियुग के अवतार।।
ज्ञान-गगन के सूर्य तुम, पावन गंगा-धार |
शरणागत जो हो गया, उसकी नैया पार।।
हे साईनाथ! आपकी जय हो।
आप पतितों को भी पावन करते हैं।
आप सभी के लिए कृपा एवं करूणा बरसाते हैं।
आपकी शरण में आकर सभी निर्भय हो जाते हैं,
उन्हें न तो दुखों की छाया भयभीत करती है
और न जन्म-मरण के क्रम का डर सताता है।
आपके पावन चरणों में में अपना सर धरता हूँ।
मैं समर्पित भाव से आपकी शरण सदा-सदा के लिए स्वीकार करता हूँ।
हे साईनाथ! आप मानव-चोले में स्थित परमेश्वर हैं,
आप नर-देह में स्थित नारायण हैं।
आप ज्ञान रूपी गगन के सूर्य हैं।
आप दया के सागर एवं क॒पा के सिंधु हैं।
आप भव-भव के चक्र से निजात दिलानेवाली अचूक औषधि हैं |
हे साईनाथ।!
आप दीन-हीन, पतित, पददलित व्यक्तियों के लिए चिंतामणि रत्न हैं।
आप शरणागत भक्तों के हृदय को
शुद्ध और निर्मल करनेवाली गंगा की पावन धारा हैं।
आप सागर में डूबते व्यक्ति का जलपोत हैं ।
जिसका कोई सहारा नहीं, आप उसका सहारा हैं,
आप निरश्रितों के आश्रयदाता हैं,
जिसको संसार ने ठुकरा दिया, उसको गले लगानेवाले एकमात्र आप ही हैं।
हे साईनाथ! आप इस जगत की उत्पत्ति के मूल कारण हैं।
आप धवल, उज्ज्वल, शुद्ध चैतन्य हैं |
करूणा के अक्षय स्रोत भी आप ही हैं।
यह चर-अचर संसार आपकी आँखों के इशारे से ही गतिशीत है।
संपूर्ण ब्रह्मांड आपकी ही विलक्षण लीला है।
हे साईनाथ! आप अजन्मा हैं, जन्म से रहित हैं ।
मृत्यु का भी असर आप पर नहीं पड़ता।
आपके बारे में सघन चिन्तन करनेवाले और आपके मर्म को समझने वाले
अंततः इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि आप जन्म और मृत्यु से परे हैं,
ऐसा अस्तित्व ईश्वर का होता है, जो आप में है।
जन्म और मरण--- इस भव-बंधन के क्रम का कारण अज्ञान है
और यह क्रम चलता जाता है।
आप जन्म और मृत्यु के दोनों किनारों से, इसके चक्र से अलग हैं।
आप में अज्ञान का रंचमात्र भी अंश नहीं, आप पूर्णतः ज्ञानसंपन्न हैं,
आप ज्ञान के पुंज हैं, आप ज्ञान के प्रकाश-स्तंभ हैं ।
पानी झरने से प्रकट होता है।
क्या पानी का उदगम-स्थल वहीं होता है? नहीं ।
अक्षय श्रोत कहीं-न-कहीं तो अवश्य है।
एक अस्तित्व है जो निरंतर भरपूर जल देता है, जो कभी रिक्त नहीं होता,
जो आदि-काल से अक्षय है, अपने आप में पूर्ण है।
उसके कारण ही झरने में जल--श्रोत का संचार होता है।
अस्तित्व के अक्षय जल से झरने में गतिशीलता है ।
मनुष्य का शरीर झरने की तरह है।
इसके भीतर परमात्मा प्रदत्त चेतन ऊर्जा का शुद्ध जल है।
संसार में अनेक स्थलों पर जैसे अनगिनत झरने हैं,
वैसे ही इस जगत में हर जगह लाखों-करोड़ों इंसान और प्राणी विद्यमान हें।
इन सभी के अंदर जो चेतन ऊर्जा है,
जिसके कारण उसकी सत्ता है,
वह ईश्वर का ही अंश है, ईश्वर के द्वारा ही दिया हुआ वरदान है।
हे साईनाथ! आप जन्मातीत हैं|
आप दया के जल से परिपूर्ण बादल हैं।
आप इन्द्र के वज्र की तरह
अज्ञान के विशाल पर्वत को भी तोड़कर चूर-चूर कर सकते हैं।
हर प्राणी को ईश्वर ने चेतन-ऊर्जा दी है।
हर प्राणी में एक जैसी चेतन ऊर्जा है।
अतः प्राणी-प्राणी के बीच कोई भेद-भाव नहीं है।
प्राणियों के लिए एक-दूसरे के बीच 'में' और 'तू' का द्वैत भाव बरतना उचित नहीं |
बादलों में जल समाहित रहता है, वह जल एक समान हे।
धरती पर आने के बाद यह अनेक स्वरूप ग्रहण कर लेता है।
नदी, झरना, तालाब, कुआ-- जिस स्थान पर यह पहुँचता है,
उसी का स्वरूप स्वीकार कर लेता है।
गोदावरी में आकर यह जल गोदावरी नदी का पवित्र जल बन जाता है।
कूँए में गिरकर यह जल कप-उदक बन जाता है।
स्थान की विभिन्नता के कारण,
कए का जल उस गौरव-गरिमा को प्राप्त नहीं कर पाता
जो गौरव-गरिमा गोदावरी के जल को प्राप्त है।
संत गोदावरी नदी के समान है।
प्राणी जल के समान हैं।
जल रूपी प्राणी नदी, तालाब, झील, झरना, कुआ जिस स्थान पर पहुँचता है,
उसका स्वरूप ग्रहण करता है, वैसा ही बन जाता हे।
प्राणी के स्वभाव के कारण प्राणी-प्राणी के बीच विभिन्नता हे।
वर्तमान शताब्दी में पवित्र गोदावरी नदी के तीर पर,
कलियुग के नव-मध्य प्रहर पर भक्ति की एक तीव्र धारा आईं
जिसमें ईश्वर ने अवतार लिया,
उन्हें हम श्री साईनाथ महाराज के नाम से जानते हैं।
// श्री सदयुरुसाईनाथार्षणमस्तु / शुथम् भवतु ॥/
इति श्री सार्ई ज्ञानेश्वरी सप्तयगो अध्याय: //
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© श्री राकेश जुनेजा कि अनुमति से पोस्ट किया है।