श्री साईं ज्ञानेश्वरी
ऊँ सद्गुरू श्री साईनाथाय नम:
भूमिका
'श्री साई ज्ञानेश्वरी' सदगुरू साईनाथ महाराज के
दिव्य ज्ञान का एक अनमोल ग्रंथ है।
इसमें जीवन का व्यावहारिक ज्ञान है।
यह ज्ञान समसामयिक है और आज कं युग में दुनिया के लिए अत्यन्त उपयोगी है।
इस ज्ञान में वह क्षमता है जो व्यक्ति के जीवन को सार्थकता प्रदान करता है।
साईं बाबा के पास प्रतिदिन श्रद्धालु और जिज्ञासु भक्त
दूर-दूर से चलकर आते थे।
बाबा गिने-चुने कुछ शब्दों में
उन्हें मार्गदर्शन एवं आशीर्वाद देते थे ।
कुछ भक्त श्री साईं से ज्ञान प्रदान करने का आग्रह करते थे ।
बाबा उन्हें बातों-बातों में ही ज्ञान का अद्भुत खजाना थमा देते थे।
बाबा के पास जो भक्त जिस इच्छा और कामना को लेकर आता,
बाबा उसकी वह सद्-इच्छा और सत्कामना पूरी करते थे।
श्री साईं ज्ञान के अक्षय स्रोत थे, वे ज्ञान-सागर थे।
देखने में वे एक फकीर की तरह लगते थे
परन्तु वे ज्ञान के भास्वर सूर्य थे।
बाबा ने सरल, सुगम रूप में, अल्प संभाषण में
अपने भक्तों को जो ज्ञान प्रदान किया है,
वह “गागर में सागर' की तरह है।
इस ग्रंथ में श्री साई और भक्तों के कई महत्वपूर्ण संवाद हैं
जिसे दासगणु महाराज ने मराठी भाषा में, गेय काव्य के रूप में,
लावणी शैली में, ओवी छन्द में लिखा है।
उनके द्वारा रचित “श्री भक्तिलीलामृत', श्री संतकथामृत', एवं “श्री भक्तिसारामृत' में
सात अध्याय साईं भक्त संवाद' के रूप में प्राप्त होते हैं।
उनके इस लघुकाय काव्य में ज्ञान का विशाल सागर समाया हुआ है।
दासगणु ने साईं की भक्ति एवं स्तुति में “श्री साईनाथ स्तवनमंजरी' की रचना की।
इसमें उन्होंने बाबा को ईश्वर के रूप में स्वीकार किया है
और उनकी उपासना की है।
दासगणु महाराज ने बाबा के जीवन-काल में ही
साई-साहित्य का लेखन कर दिया था
और उसे श्री साई के श्री चरणों में समर्पित कर दिया था।
यह वह साहित्य है जिसे सद्गुरू श्री साई की कृपा का पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त है।
सद्गुरू साई किससे क्या कार्य करवाते हैं,
यह तो वही जान सकते हैं।
वे पंछी को डोर से बाँधकर किस ओर खींचते हैं
और किस दिशा में मोड़ते हैं, इसे तो उनके सिवा और कोई नहीं जानता ।
दासगणु पुलिस विभाग में हवलदार की छोटी-मोटी नौकरी करते थे।
वे ऊंचे पद पर पहुँच कर समाज को अपना रूतबा दिखाना चाहते थे।
न तो उनके मन में भक्ति की भावना थी और न उनका साईं बाबा के साथ कोई सरोकार था।
फिर भी बाबा ने उन्हें शिरडी की ओर खींचा,
उनकी मानसिकता को मोड़ा, उनका कार्य-क्षेत्र बदला
और उन्हें सत्कार्यों में लगाया।
साई जो अभकक्त को भी भक्त बना सकते हैं,
वे भला क्या नहीं कर सकते!
साई ने उन्हें अपनी शरण में लिया और वे गणु से दासगणु बन गये।
दासगणु में काव्यकला और गीतिकला की नैसर्गिक प्रतिभा थी।
वे आशुकवि थे और तत्काल ओवी छन्द में कविता लिख लेते थे।
सरस्वती उनके कंठों पर विराजती थी।
उनका कंठ मधुर था |
वे जब गाते थे तो सुर का अनोखा समां बँध जाता था।
उनके स्वर को सुनकर दो-चार हजार लोगों की भीड़ भी
शांत एवं मंत्रमुग्ध हो जाती थी।
वे जब भजन गाने लगते थे तो जनता क॑ हृदय में भक्ति की लहरें हिलोरें मारने लगती थी।
बाबा ने दासगणु को ग्रंथों का पठन-पाठन, पारायण एवं कीर्तन का कार्य सौंपा।
दासगणु ने साईं की अर्चना में अनेक हृदय-स्पर्शी भजन लिखे
जिनमें 'साई रहम नजर करना” 'रहम नजर करो',
'शिरडी माझें पंढ़रपुर', 'साईनाथ गुरू माझे आई” आदि भजन
आज भी जन-जन के कठों का सूंगार बने हुए है।
दासगणु बाबा की आज्ञा से जगह-जगह भजन-कीर्तन करने जाते।
इसके बदले वे किसी से एक कौड़ी भी नहीं लेते थे।
दासगणु ने संपूर्ण महाराष्ट्र में घूम-घूम कर
साई-भक्ति का प्रचार और बाबा की कीर्ति का गायन किया।
इससे प्रभावित होकर हजारों भक्त साई की ओर आकृष्ट हुए
और शिरडी जाने का क्रम प्रारम्भ हुआ |
दासगणु ने साईं बाबा के समय 15 वर्षा तक
एवं बाबा की समाधि के बाद 44 वर्षों तक
साईं की कीर्ति का गायन किया।
दासगणु जैसा निःस्वार्थ सेवक एवं साई-भक्ति का प्रचारक
आजतक दुनिया में दूसरा कोई नहीं हुआ।
श्री साई के आशीर्वाद से दासगणु ने
लोकिक धरातल पर रहते हुए अलौकिक साहित्य की रचना की |
दासगणु के साहित्य में काव्य का उत्कर्ष अपनी चरम सीमा पर है।
उन्होंने साईं के अध्यात्म ज्ञान को काव्य में अच्छी तरह से ढ़ाला है।
उनका काव्य सामाजिक जीवन को नीति-बोध एवं तत्वज्ञान प्रदान करता है।
उनकी एक-एक ओवियाँ हृदय के भीतर उतर जाती है
और गहराई के साथ दिल को छूती है।
वह गुरू-गंभीर अर्थ को उत्कीर्ण करती है।
वह पाठक को भक्ति के रस में पूरी तरह सराबोर कर देती है।
दासगणु का भक्ति-काव्य काबुली दाख की तरह है
जो सर्वत्र मिठास से परिपूर्ण है।
यह साहित्य की माला में अद्भुत मणि की तरह महत्वपूर्ण है।
दासगणु का काव्य वह प्रतिनिधि काव्य है
जिसे भक्ति के पवित्र मंदिर में आदर के साथ रखा जा सकता है।
इतना महत्वपूर्ण एवं हृदयस्पर्शी काव्य होने के बावजूद
दासगणु का काव्य उपेक्षित रह गया।
विद्वानों एवं बुद्धिजीवियों ने इसपर विशेष ध्यान नहीं दिया।
दासगणु के काव्य के रूप में बाबा ने ज्ञान की जो अनमोल गागर दुनिया को भेंट की थी, वह यूँ ही धरी-की-धरी रह गई |
दासगणु का अवदान दुनिया के सामने उभर कर नहीं आया
और लोगों को ज्ञान की एक अनमोल निधि से वंचित रहना पड़ा।
ऐसा क्यों हुआ, यह ज्ञात नहीं |
इसका क्या कारण है, यह भी बाबा जानें |
लेकिन साईं की इच्छा से, साईं के निर्वाण की लगभग एक शताब्दी के बाद बाबा की विशेष कृपा हुई |
शायद साईं चाहते थे कि दासगणु के अनमोल काव्य का कायाकल्प हो,
वह एक महाकाव्य का रूप ले और इस कलियुग में जन-जन का मार्गदर्शन करे |
इस कार्य के लिए बाबा ने आपके लघु भ्राता और साई-सेवक श्री राकेश जुनेजा को चुना।
उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि
बाबा के महाग्रंथ को लिखने का श्रेय उनको प्राप्त होगा।
धन्य है साई!
जो भक्तों को प्रेरणा और आशीर्वाद देते है,
अपनी कृपा बरसाते है और अपने सत्कार्य सहज रूप में करवा लेते है।
श्री साई ने शुभ घड़ी देखकर अपने कार्य का श्री गणेश करवाया ।
अल्प अवधि में ही बाबा की कृपा और आशीर्वाद से
असंभव लगनेवाला कार्य संभव हुआ और दासगणु के काव्य ने “श्री साईं ज्ञानेश्वरी' का रूप ले लिया।
वर्ष 2016 की गुरू-पूर्णिमा के शुभ अवसर पर
यह ग्रंथ शिरडी सहित देश-विदेश के अनेक नगरों एवं महानगरों में
धूम-धाम के साथ लोकार्पित हुआ ।
हम सभी साईभकत धन्य हैं जिन्हें बाबा के ज्ञान का अनमोल खजाना
श्री साईं ज्ञानेश्वरी' के रूप में प्राप्त हुआ।
श्री साई ज्ञानेश्वरी' साई की ही रचना है, साईं की ही कृति है और इस महाग्रंथ के सृजनहार वे खुद ही हैं।
'श्री साई ज्ञानेश्वरी' एक ऐसा ग्रंथ है, जिसका पारायण सरलता और सुगमता से
अल्प समय में किया जा सकता है।
श्री साईं ज्ञानेश्वरी का हिन्दी भाषा में पारायण सी.डी. के रूप में
आप सभी भक्तों के सामने प्रस्तुत है।
श्री बलदेव जी भारती के मार्गदर्शन एवं ग्रंथ के लेखक श्री राकेश जुनेजा के निर्देशन में सी.डी. की स्क्रिप्ट राईटिंग एवं दोहों की रचना
उनके सहयोगी डॉ. राजेन्द्र सुराना (डी. लिटू) ने की है।
हम आशा करते हैं कि
हमारा यह प्रयास आप सभी श्रोताओं को प्रेरित और प्रभावित करेगा,
बाबा के साथ आपको जोड़ेगा
आपके हृदय में भक्ति के भावों का संचार करेगा
और आपको साई की कपा प्राप्त हो,
इसमें सहायक सिद्ध होगा ।
ऊँ सद्गुरू श्री साईनाथाय नम:
© राकेश जुनेजा के अनुमति पोस्ट किया गया
(अगला भाग गुरुवार 30/4/20)