श्री साई ज्ञानेश्वरी – भाग 6
|| श्री सदगुरू साईनाथाय नम: ।।
।। द्वितीय: अध्याय - कर्म| |
वस्तुतः दोनों का जीवन प्रारब्ध के अधीन है।
प्रारब्ध के कारण चोरी करने वाला न पकड़ा जाए,
स्वतंत्रतापूर्वक घूमे,
परन्तु चोरी के पापकर्म का फल उसका पीछा नहीं छोड़ता,
वह उसे कभी न कभी भोगना ही पड़ेगा,
उसे भोगने के लिए उसे पुनर्जन्म लेने पड़ेंगे |
वर्तमान का पापकर्म भविष्य में पुनर्जन्म का कारण बनता है।
हे नाना! मेरी बात पर अच्छी तरह से ध्यान दो।
कर्म के अनुसार ही प्रारब्ध बनता है,
और प्रारब्ध के अनुसार फल तुम्हारे शरीर को भोगना पड़ता है।
इस नीतिपूर्ण वचन के प्रति सदा सचेत रहो |
आचार के अनुसार ही आचरण करो ।
सज्जनों की संगति करो |
दुष्ट, दुर्जन एवं अभक्त से सदा दूर रहो,
ऐसे लोगों की छाया भी अपने ऊपर न पड़ने दो |
तामसिक भोजन न करो |
बेकार के झगड़ों व विवादों में न पड़ो |
किसी से झूठे वायदे न करो |
किसी को कठोर शब्द न कहो |
एक बार किसी को वचन दे दो,
तो फिर उसे बिना किसी अविश्वास के निभाओ |
वचनों को न निभाने से ईश्वर भी दूर चले जाते हैं।
काम के संचार से शरीर में कामजन्य इच्छा पैदा होती है।
पुरूष केवल अपनी स्त्री के साथ
एवं स्त्री केवल अपने पति के साथ इसे पूर्ण करे।
परायी सुन्दर स्त्री को देखकर
पुरूष अपने मन में विकार न लाए,
पराए सुन्दर पुरूष को देखकर
स्त्री अपने मन में गलत इच्छा पैदा न होने दे ।
पति-पत्नी हमेशा एक-दूसरे की सीमा का ध्यान रखें
काम की तृप्ति शुद्ध प्रेम-भाव से करें ।
काम की लोलुपता एवं
काम की तृप्ति के लिए यत्र-तत्र काम-भोग करने की वृत्ति
सर्वथा अनुचित है,
ऐसे लोग कभी भी मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकते |
ध्यान दे रे!
यह काम बड़ा बलशाली है।
यह कभी भी तुम्हारे चित्त को स्थिर नहीं रहने देता।
छ: शत्रुओं में इसका प्रभुत्व सबसे अधिक है।
छ: मनोविकारों में यह अग्रगण्य है।
हे नाना!
काम पर हमेशा नियंत्रण रखते हुए
काम का सेवन करो |
काम के गले में विवेक की लगाम लगा दो।
काम को अपनी आज्ञा के अधीन रखो,
काम के हाथों में अपने आप को न जाने दो।
इन सत्य-वचनों के अनुसार जो कार्य करता है,
वही ज्ञानी एवं समझदार है।
अपने कर्म से जैसा प्रारब्ध तैयार करोगे,
उसका फल तुम्हारे शरीर को भोगना पड़ेगा।
अतः: इन छ: शत्रुओं को सीमित करो,
इनकी जितनी जरूरत हो,
उतना ही इन्हें प्रश्रय दो |
लोभ करना है, तो ईश्वर के नाम-जप का लोभ करो |
क्रोध करना है, तो अनीतिपूर्ण कार्यो के प्रति क्रोध करो।
आशा और इच्छा की लालसा हो, तो मन में मोक्ष की अभिलाषा रखो |
मोह रखना चाहते हो, तो परमार्थ के प्रति मोह रखो ।
घृणा करनी है तो दुष्कर्मो से घृणा करो।
प्रेम, भक्ति एवं समर्पण करना चाहते हो तो ईश्वर से करो ।
अपने को किसी के हाथ में सौंपना है,
तो अपने-आप को सदाचार के हाथों में सौंपो।
ऐसा करते समय अहंकार का भाव मन में न आने दो।
सद्गुरू की कथा सुनो,
अपने चित्त को सदा शुद्ध रखो |
ज्ञानियों का सम्मान करो,
माता-पिता का आदर करो |
हजार तीर्थ-यात्रा के बराबर है--
माँ की देवी के रूप में पूजा करना,
पिता की देवता के रूप में आराधना करना |
अतः: माता-पिता की शीष झुकाकर नित्य वंदना करो |
अपने सहोदर के साथ सदा प्रेम-भाव रखो |
यदि तुम समर्थ हो,
तो अपनी बहनों का भी सहयोग करो, उनका मान रखो |
पत्नी का हमेशा खयाल रखो,
उसे पूर्ण प्रेम दो एवं प्रेमपूर्ण व्यवहार रखो |
पत्नी के गुलाम बनकर कभी न रहो ।
घर-परिवार के कार्यो एवं मामलों में,
पत्नी का अनुमोदन स्वीकार करो,
उसकी सलाह मानो।
अपने पुत्र एवं पुत्रवधू के मामलों में दखल न दो।
उनके बीच किसी तरह का झगड़ा मत लगाओ |
उनकी एकान्तता में कभी अवरोध मत डालो |
उन्हें अपने तरीके से आगे बढ़ने दो।
अपने पुत्रों के सामने हंसी-ठट्ठा न करो |
अपने पुत्रों के साथ मित्रवत् व्यवहार रखो ।
नौकरों के साथ अधिक मित्रता न करो ।
अपनी बेटी को कभी मत बेचो |
धन या जमीन-जायदाद देखकर
अपनी बेटी का कन्यादान किसी बूढ़े के हाथ में न करो।
योग्य एवं शिष्ट व्यक्ति को किया गया कन्यादान ही
शोभा के योग्य होता है।
मैंने तुम्हें पुरूष का धर्म बताया है,
शास्त्रों में जैसा उल्लेख किया गया है,
वैसा ही तुम्हें कहा है।
नियम की सीमा में चलने पर कोई बाधा नहीं आती,
सच्चाई के साथ इन आचारों का पालन करो |
पति की सेवा करना और उसे आदर देना
स्त्री का सबसे बड़ा धर्म है।
इसके अलावा अन्य उसका कोई धर्म नहीं।
स्त्री के लिए उसका पति उसका देवता है,
वही उसका परमेश्वर है, वही उसका पंढ़रीनाथ है,
पति के चरणों में शुद्ध भाव से उसका मन रमा होना चाहिए |
यही उसके आनंद का मूलमंत्र है,
यही उसके सुखी जीवन की कुंजी है।
पति के गुस्सा हो जाने पर भी
जो स्त्री शांत-चित्त एवं नग्न रहती है,
पति के दैनिक कार्यों में जो सहयोग करती है,
वह स्त्री धन्य है,
उसे हमेशा गृहलक्ष्मी मानो |
जो स्त्री पति के चित्त को कष्ट दे,
उसे दुखी कर दे,
भांति-भांति का आचरण करे,
वह स्त्री अधर्मी है।
ऐसी स्त्री बातचीत करने के योग्य भी नहीं होती |
स्त्रियों को विनम्रता कभी नहीं छोड़नी चाहिए,
छिछलापन का व्यवहार कभी नहीं करना चाहिए,
चिकनी डगर देखकर कभी नहीं फिसलना चाहिए,
अन्य पुरूष के साथ एकांत में बात नहीं करनी चाहिए,
सदाचरण से दूर हटकर कभी कोई कदम नहीं उठाना चाहिए ।
रिश्ते में अपने भाई के साथ भी
उसे अपनी मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए |
एकांत में किसी पर-पुरूष के साथ
अनावश्यक रूप में कोई रूख नहीं जोड़ना चाहिए ।
स्त्री के तन की शारीरिक बनावट की विचित्र स्थिति है,
वह अनीति व अनाचार का भक्षण तत्परता से कर सकता है।
अतः उसे अपने शरीर के प्रति हमेशा सतक रहना चाहिए |
उसे चाहिए कि वह अपनी रक्षा-सुरक्षा
सदैव जागरूकता के साथ करे |
बकरी भेडिये का शिकार होती है।
बकरी को भेड़िये से बचाते हैं ।
चारों तरफ काँटों के तार की घेराबंदी करते हैं।
ताकि भेड़िया घेराबंदी के अन्दर न घुस सके।
इस प्रकार बकरी की रक्षा की जाती है।
बकरी की रक्षा-सुरक्षा के समान ही स्त्री के शरीर की रक्षा-सुरक्षा का विधान है।
व्रत और नियम की बाड़ लगाकर स्त्री की हिफाजत करनी चाहिए ।
पति की सकाम इच्छा को पूरा करने के लिए
पत्नी को हमेशा तत्पर रहना चाहिए |
उसे अपने बच्चों का लालन-पालन कुशलता से करना चाहिए ।|
बच्चों को हमेशा सन्मार्ग पर अग्रसर करना चाहिए ।
उन्हें इस प्रकार की शिक्षा देनी चाहिए,
जिससे उनका जीवन नैतिक दृष्टि से उन्नत हो ।
बच्चों को धर्म, नीति एवं सदाचार की कथाएँ सुनानी चाहिए ।
स्त्री को सास, ससुर, देवर, जेठ आदि के साथ
कभी भी तनिक भी द्वेष नहीं रखना चाहिए |
उसे परिवार के प्रत्येक सदस्य के साथ
प्रेम भाव रखना चाहिए,
मन में सौहार्द रखना चाहिए |
स्त्री को अपने गुणों का प्रकाश
चारों तरफ फैलाना चाहिए |
उसे पति की आज्ञा के अनुसार
आचरण एवं व्यवहार करना चाहिए |
उसे धार्मिक व्रत स्वीकार कर
उनका पालन करना चाहिए |
पुरूषों एवं स्त्रियों के हित में
ये साधारण नीति-नियम हैं |
इसके बारे में मैंने तुम्हें बता दिया।
जो इनका नियम-पूर्वक पालन करेगा,
उसकी बद्ध-स्थिति क्षीण होगी |
वह सांसारिक जन्म-मरण के चक्र को समाप्त करने
की दिशा में आगे बढ़ेगा ।
ऊँ सद्गुरू श्री साईनाथाय नम:
© राकेश जुनेजा के अनुमति पोस्ट किया गया
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